विदेशी मुद्रा प्रबंध (भारत में अचल परिसंपत्ति का अभिग्रहण तथा अंतरण) (संशोधन) विनियमावली, 2008
भारतीय रिज़र्व बैंक
अधिसूचना सं.फेमा 186/2009-आरबी दिनांक : फरवरी 3, 2009 विदेशी मुद्रा प्रबंध (भारत में अचल परिसंपत्ति का अभिग्रहण विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम,1999 (1999 का 42) की धारा 6 की उपधारा (3) के खण्ड (1) और धारा 47 की उपधारा (2) द्वारा प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग करते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक एतद् द्वारा विदेशी मुद्रा प्रबंध (भारत में अचल परिसंपत्ति का अधिग्रहण ऐार अंतरण)(संशोधन) विनियमावली, 2000 (3 मई 2000 की अधिसूचना सं.फेमा.21/2000-आरबी) में निम्नलिखित संशोधन करता है, अर्थात्, 2. संक्षिप्त नाम और प्रारंभ (क) ये विनियम विदेशी मुद्रा प्रबंध (भारत में अचल परिसंपत्ति का अर्जन और अंतरण) (संशोधन) विनियमावली, 2009 कहलाएंगे । (ख) वे इन विनियमावली में विनिर्दिष्ट तारीखों से लागू समझे जाएंगे । 3. विनियम 6 में संशोधन 4. विनियम 8 में संशोधन मूल विनियमावली के विनियम 8 में, उपबंध के बाद,निम्नलिखित उपबंध अंत: स्थापित किया जाएगा और यह समझा जाएगा कि उसे 11 जुलाई 2008 से अंत: स्थापित किया गया है अर्थात्,- " परन्तु , प्राधिकृत व्यापारी बैंक , इस संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी निदेशों की शर्त पर विदेशी मुद्रा प्रबंध (विदेशी मुद्रा में उधार लेना और देना) विनियमावली, 2000 (3 मई 2000 की अधिसूचना सं. फेमा.3/2000-आरबी) के प्रावधानों के तहत , लिये गये बाह्य वाणिज्य उधार की जमानत के लिए भारत में रहने वाले किसी व्यक्ति को अथवा समुद्रपारीय उधारदाता अथवा प्रतिभूति न्यासी को भारत में उसकी अचल परिसंपत्ति पर ऋण-भार सृजित करनेवाले ऐसे निवासी की ओर से अनुमति दे सकता है ।" (सलीम गंगाधरन) पाद टिप्पणी : 1) यह स्पष्ट किया जाता है कि किसी व्यक्ति पर इन विमियमों के पूर्वव्यापी प्रभाव से कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा । 2) मूल विनियमावली 8 मई 2000 को जी.एस.आर.सं.407 (अ) के जरिये सरकारी राजपत्र भाग ।।, धारा 3, उपधारा ( i)में प्रकाशित की गयी और तत्पश्चात् निम्नलिखित द्वारा संशोधित की गयी :
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