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विदेशी मुदा प्रबंध अधिनियम 1999- चालू खाता लेन-देन

ए.पी.(डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.29

31 मार्च, 2001

सभी श्रेणी-। प्राधिकृत व्यापारी बैंक

महोदय/महोदया

विदेशी मुदा प्रबंध अधिनियम 1999- चालू खाता लेन-देन

प्राधिकृत व्यापारियों (एडीएस) का ध्यान विदेशी मुदा प्रबंध (चालू खाता लेनदेन), विनियमावली, 2000 को अधिसूचित करने वाली 3 मई 2000 की जी.एस.आर.सं.381(ई) की ओर आकर्षित किया जाता है जिसके अनुसार कतिपय चालू खाता लेनदेनों के लिए विदेशी मुदा का आहरण प्रतिबंधित कर दिया गया है और कतिपय अन्य लेनदेनों पर प्रतिबंध लगा दिये गये हैं ।

2. भारत सरकार ने अब 3 मई 2000 की अधिसूचना जी.एस.आर.सं.381(ई) को संशोधित करते हुए 30 मार्च 2001 की अधिसूचना सं.एस.ओ.301(ई) जारी की है।  प्राधिकृत व्यापारी संशोधन द्वारा लागू किये गये परिवर्तनों को भलीभाँति समझ लें।

3. संशोधन द्वारा लागू किये गये परिवर्तनों का सारांश नीचे दिया गया है:-

अ. अनुसूची-II

क. पर्यटन, विदेशी निवेश को बढ़ावा देने  और अंतर्राष्ट्रीय बोली लगाने (10,000 मिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक की ) {अर्थात मद सं.2} को छोड़कर अन्य किसी प्रयोजन से प्रिंट मीडिया में विज्ञापन के लिए किसी राज्य सरकार अथवा सार्वजनिक क्षेत्र के किसी उपक्रम द्वारा विप्रेषणों के लिए वित्त मंत्रालय (आर्थिक कार्य विभाग) से पूर्व अनुमति प्राप्त करना अपेक्षित है ।

ख. क्रमश: किसी विदेशी कंपनी से स्वास्थ्य का बीमा कराने के लिए तथा पी&आई की सदस्यता के लिए विप्रेषणों पर अनुसूची की मद सं.10 और 11 के तहत प्रतिबंध लागू होंगे, चाहे इसके लिए विप्रेषण विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा खाते में धारित निधियों से ही क्यों न भेजे गये हों ।

आ.अनुसूची-III

क. क्रमश: प्रति वर्ष प्रति प्रेषक/दानकर्ता 5,000 मिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक के और प्रति वर्ष प्रति प्रेषक/ दानकर्ता 5,000 मिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक के गिफ्ट विप्रेषण के लिए भारतीय रिजर्व बैंक से पूर्व अनुमति प्राप्त करना अपेक्षित है। यहाँ तक कि उन मामलों में भी प्रतिबंध लागू होंगे जिनके लिए चाहे विप्रेषण विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा खाते में धारित निधियों से ही क्यों न भेजे गये हों। अत: प्राधिकृत व्यापारी यह सुनिश्चित करें कि किसी भी व्यक्ति को वर्ष में एक बार, 5,000 मिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक के  गिफ्ट/ दान का विप्रेषण करने की अनुमति भारतीय रिजर्व बैंक से पूर्व अनुमति बिना नहीं दी जाए। ( देखें मद सं.3 तथा 4)

ख. अनुसूची की मद सं.11 तथा 16 के तहत  भारत में अचल संपत्ति की बिक्री पर कमीशन के भुगतान और अपने उपयोग अथवा ट्रेडमार्क / फ्रेंचाइजी की खरीद के लिए विप्रेषणों पर लागू प्रतिबंध, विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा खाते में धारित निधियों से भेजे गए विप्रेषणों पर भी लागू होंगे।

ग अनुसूची III की मद सं.7 में यथा उल्लिखित विदेश में रहने वाले नजदीकी रिश्तेदारों को प्रति वर्ष 5,000 मिलियन अमरीकी डॉलर के विप्रेषण की उच्चतम सीमा उन विदेशी  नागरिकों (पाकिस्तानी नागरिकों को छोड़कर) पर लागू नहीं होगी जो कि निवासी हैं किंतु स्थायी तौर पर भारत में नहीं रहते हैं।

घ. भारत के बाहर से प्राप्त की गयी किसी परामर्शदात्री सेवाओं के लिए प्रति परियोजना 100,000 मिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक विप्रेषण के लिए भारतीय रिजर्व बैंक से पूर्व अनुमति प्राप्त करना अपेक्षित है। यह प्रतिबंध ऐसे मामलों में भी लागू होगा जिनके लिए विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा खाते में धारित निधियों से विप्रेषण भेजे गये हों । (देखें मद सं.15)

ङ पूर्व-निगमन व्ययों की प्रतिपूर्ति  के लिए 100,000 मिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक के सभी विप्रेषणों के लिए भी भारतीय रिजर्व बैंक से पूर्व अनुमति प्राप्त करना अपेक्षित है।(देखें मद सं.17)

4. सभी प्राधिकृत व्यापारी इस परिपत्र की विषय-वस्तु से अपने सभी संबंधित घटकों अवगत कराएं।

5. इस परिपत्र में समाहित निर्देश, विदेशी मुदा प्रबंध अधिनियम 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और धारा 11 (1) के अधीन और अन्य किसी कानुन के अंतर्गत अपेक्षित अनुमति / अनुमोन यदि कोई हो , पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना जारी किए गए हैं।

भवदीया

(के.जी.उदेशी )
 मुख्य महाप्रबंधक

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