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स्वर्ण ऋण भुगतान - शहरी सहकारी बैंक

आरबीआई/2007/194
शबैंवि.केंका.पीसीबी.परि.सं..22/13.05.000/2007-08

26 नवंबर, 2007

मुख्य कार्यपालक अधिकारी
सभी प्राथमिक (शहरी)
सहकारी बैंक
महोदय / महोदया

स्वर्ण ऋण भुगतान - शहरी सहकारी बैंक

कृपया आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधानीकरण एवं अन्य संबंधित मामलों पर 04 जुलाई 2007 के मास्टर परिपत्र शबैंवि.पीसीबी.एमसी.सं.10/09.14.000/2007-08 के पैराग्राफ 2.2.8 तथा 2.1.3 देखें ।

2. हमें इस आशय के अभ्यावेदन बैंकों तथा उनके संघों से प्राप्त हुए हैं कि स्वर्ण ऋणों की एकमुश्त चुकौती की अनुमति विशेष रूप से छोटे जमाकर्ताओं को, दी जाए । इस मामले की समीक्षा की गई और यह निर्णय लिया गया है कि एक अतिरिक्त विकल्प के रूप में 1.00 लाख रुपए तक के स्वर्ण ऋणों की एकमुश्त बड़ी और अंतिम चुकौती की अनुमति दी जाए । इसलिए, शहरी सहकारी बैंकों को अनुमति दी जाती है कि वे निम्नलिखित दिशानिर्देशों के आधीन एकमुश्त बड़ी और अंतिम चुकौती के लिए अपने निदेशक मंडल के अनुमोदन से नीति निर्धारित करें ।

  1. मंजूर किए गए स्वर्ण ऋण की राशि कभी भी 1.00 लाख रुपए से अधिक नहीं होनी चाहिए ।
  2. मंजूरी की तारीख से ऋण की अवधि 12 माह से अधिक न हो ।
  3. इस खाते पर मासिक अंतराल पर ब्याज लगाया जाएगा लेकिन वह मूलधन के साथ भुगतान के लिए देय केवल मंजूरी की तारीख से 12 माह के अंत में ही होगा ।
  4. बैंकों को ऐसे ऋणों के मामले में एक न्यूनतम मार्जिन बनाई रखनी चाहिए और तदनुसार प्रतिभूति (स्वर्ण / स्वर्णाभूषण) के मूल्य, मूल्य में संभावित उतार-चढ़ाव तथा ऋण की अवधि के दौरान लगने वाले ब्याज आदि को ध्यान में रखते हुए ऋण सीमा निर्धारित करनी चाहिए ।
  5. ऐसे ऋण आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधानीकरण संबंधी मौजूदा मानदंडों से नियंत्रित होंगे तथा मूलधन एवं ब्याज के एक बार अतिदेय हो जाने की स्थिति में उन पर लागू होंगे ।
  6. यदि निर्धारित मर्जिन नहीं बनाई रखी जा रही हो तो इस खाते को चुकौती की तारीख से पहले भी अनर्जक आस्ति (अवमानक श्रेणी) के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा ।

3. यह स्पष्ट किया जाता है कि स्वर्ण / स्वर्णाभूषण की संपार्श्विक प्रतिभूति पर मंजूर फसल ऋणों पर आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधानीकरण संबंधी मौजूदा मानदंड लागू रहेंगे ।

भवदीय

(ए. के. खौण्ड)
मुख्य महाप्रबंधक

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