सरकारी ऋण राहत योजनाएं (डीआरएस) - आरबीआई - Reserve Bank of India
सरकारी ऋण राहत योजनाएं (डीआरएस)
आरबीआई/2024-25/100 31 दिसंबर 2024 सभी वाणिज्यिक बैंक (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और स्थानीय क्षेत्र के बैंकों सहित) महोदया/ महोदय, सरकारी ऋण राहत योजनाएं (डीआरएस) दिनांक 8 जून 2023 के समझौता निपटान और तकनीकी रूप से बट्टे खाते (राइट-ऑफ) डालने के लिए रूपरेखा के साथ पठित दिनांक 7 जून 2019 का दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान के लिए विवेकपूर्ण ढांचा , उधारकर्ता के खातों में किसी भी दबाव को दूर करने हेतु विनियमित संस्थाओं (आरई) को एक सिद्धांत-आधारित समाधान का ढांचा प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित एक्सपोज़र की पुनर्रचना के लिए आरई को विशिष्ट फ्रेमवर्क उपलब्ध कराए गए हैं जैसे दिनांक 17 अक्तूबर 2018 के मास्टर निदेश-भारतीय रिज़र्व बैंक (प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों में बैंकों द्वारा राहत उपाय) निदेश, 2018-एससीबी ; दिनांक 17 अक्तूबर 2018 के मास्टर निदेश – भारतीय रिज़र्व बैंक (प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों में बैंकों द्वारा राहत उपाय) निदेश 2018 – आरआरबी ; दिनांक 28 जुलाई 2016 के प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों में एनबीएफसी द्वारा राहत उपायों के लिए दिशानिर्देश ; और दिनांक 25 जुलाई, 2023 के मास्टर परिपत्र - अग्रिमों का प्रबंधन - यूसीबी । 2. कुछ आरई राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न रूपों में घोषित ऋण राहत योजनाओं (डीआरएस) के कार्यान्वयन में भी शामिल हो रही होंगी, जिनमें अन्य बातों के साथ-साथ राजकोषीय सहायता के एवज में उधारकर्ताओं के लक्षित वर्ग के ऋण दायित्वों में त्याग/ ऋण माफ करना शामिल है। यदि ऐसी योजनाओं की घोषणा बार-बार, असंगत रूप से अथवा वित्तीय अनुशासन के सिद्धांतों पर उचित विचार किए बिना की जाती है तो वे ऋण अनुशासन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेंगी और दीर्घकाल में ऐसे उधारकर्ताओं के ऋण प्रवाह पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं। ऋण अनुशासन और नैतिक जोखिम के मुद्दों के लिए व्यापक निहितार्थ के अतिरिक्त, डीआरएस कुछ विवेकपूर्ण मुद्दें भी उठाता है, जिसमें बकाया राशि की प्राप्ति में विलंब; आरई द्वारा स्वीकृत/प्रस्तुत और योजना की शर्तों के अनुसार संबंधित सरकार द्वारा स्वीकार किए गए दावें मेल न खाना; आरई द्वारा नए ऋण की अनिवार्य आवश्यकता, आदि शामिल है । 3. इस प्रकार, ऐसे डीआरएस के अंतर्गत ऋणदाताओं के रूप में भाग लेने वाले आरई अनुबंध-1 में निहित दिशानिर्देश, जो इस संबंध में कुछ व्यापक सिद्धांत निर्धारित करते हैं, का अनुपालन करेंगे। यह दिशानिदेश इनके जारी होने के दिनांक अथवा उसके उपरांत अधिसूचित डीआरएस के संबंध में लागू होंगे और संबंधित आरई पर लागू दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान पर वर्तमान दिशानिदेशों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना लागू होंगे। 4. इस संदर्भ में, परामर्शी दृष्टिकोण के माध्यम से राज्य सरकारों के साथ एक मॉडल संचालन प्रक्रिया (एमओपी) (अनुबंध-2) भी साझा की गई है जिसे इस तरह के डीआरएस को डिजाइन और कार्यान्वित करते समय ध्यान मे रखा जा सके, जिससे इसमें शामिल हितधारकों जैसे सरकार, ऋणदाताओं, उधारकर्ताओं आदि की अपेक्षाओं की किसी भी अप्रमाणिकता से बचा जा सके। 5. इन दिशानिदेशों के लागू होने से पूर्व घोषित राहत उपायों के संबंध में सरकार से 90 दिनों से अधिक समय से लंबित किसी भी देय राशि पर 100% का विशिष्ट प्रावधान होगा। इस संबंध में आरई आवश्यक कार्रवाई करेंगी और ऐसे देयों के निपटान के लिए संबंधित सरकारों के साथ यथाशीघ्र सक्रिय अनुवर्ती कार्रवाई करेंगी। भवदीय (वैभव चतुर्वेदी) सरकारी ऋण राहत योजनाओं (डीआरएस) के संबंध में विवेकपूर्ण उपाय डीआरएस में भागीदारी 1. आरई सरकार द्वारा अधिसूचित किसी विशेष डीआरएस में सहभागिता करने का निर्णय अपने बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति के आधार पर विद्यमान विनियामक मानदंडों के अनुसार कर सकते हैं। योजना का कोई भी प्रावधान जिसमें उधारकर्ताओं का दीर्घावधिक हित अथवा विवेकपूर्ण कारणों से संशोधन अपेक्षित हो तो उसे डीआरएस तैयार करते समय परामर्श चरण के दौरान राज्य स्तरीय बैंकर समिति (एसएलबीसी) / जिला स्तरीय परामर्शदात्री समिति (डीसीसी) के माध्यम से संबंधित प्राधिकारी / प्राधिकारियों के ध्यान में विधिवत लाया जाए। 2. आरई, डीआरएस के अंतर्गत शामिल किए जाने के लिए प्रस्तावित उधारकर्ताओं के संबंध में अपनी बहियों में संभावित बकाया राशि का स्पष्ट रूप से निर्धारण करेंगी जिसमें डीआरएस के अंतर्गत देय राशियों का निपटान किए जाने तक गैर-निष्पादित खातों में संचित ब्याज भी शामिल होगा, जिससे सरकार राजकोषीय भागीदारी की सीमा के लिए उपयुक्त रूप से व्यवस्था कर सके । डीआरएस के अंतर्गत उधारकर्ताओं का कवरेज/चयन 3. आरई द्वारा यह सुनिश्चित किया जाएगा कि डीआरएस के अंतर्गत शामिल किए जाने वाले उधारकर्ताओं का चयन ऐसी योजनाओं की शर्तों के अनुसार सख्ती से किया जाए ताकि तकनीकी आधार पर प्राधिकारियों द्वारा तत्पश्चात् अस्वीकृति न की जा सके। 4. प्रस्तावित डीआरएस के अंतर्गत लाभ प्राप्त करने हेतु उधारकर्ता से स्पष्ट सहमति प्राप्त करते समय योजना की नियम एवं शर्तों के साथ-साथ नए ऋण प्रदान करने के लिए कूलिंग अवधि, क्रेडिट स्कोर पर प्रभाव आदि सहित विवेकपूर्ण पहलुओं के बारे में उधारकर्ताओं को स्पष्ट रूप से सूचित किया जाए। आरई द्वारा त्याग 5. डीआरएस के कार्यान्वयन के भाग के रूप में अथवा इसके कार्यान्वयन के बाद इसके लाभार्थियों के उधारकर्ता खातों में आरई द्वारा अर्जित किए गए लेकिन अप्राप्त ब्याज और/अथवा मूलधन का कोई भी अधित्याग एक समझौता निपटान के रूप में संसाधित किया जाएगा और दिनांक 08 जून 2023 के समझौता निपटान तथा तकनीकी बट्टे खाते के फ्रेमवर्क में निहित विवेकपूर्ण उपाय के अनुसार किया जाएगा। ऋण खाते की स्थिति 6. यदि डीआरएस के भाग के रूप में आरई द्वारा प्राप्त निधियों में उधारकर्ता की संपूर्ण बकाया राशि1 शामिल की गई है तो इससे उधारकर्ता के ऋण दायित्व समाप्त हो जाएंगे। 7. ऐसे मामलों में जहां योजना के भाग के रूप में आरई द्वारा प्राप्त निधियां उधारकर्ता के संपूर्ण बकाया राशि को समाविष्ट करने के लिए पर्याप्त नहीं होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप अवशिष्ट(रेसिडुअल) एक्सपोजर होता है तो अवशिष्ट(रेसिडुअल) एक्सपोजर2 के आस्ति वर्गीकरण का मूल्यांकन मूल ऋण संविदा की शर्तों के अनुसार किया जाएगा। ऐसे मामलों में मूल ऋण संविदा की नियम और शर्तों में किसी भी परिवर्तन/संशोधन का मूल्यांकन पुनर्रचना3 की कसौटी पर किया जाएगा और उसमें विवेकपूर्ण उपाय लागू होगा। 8. ऐसे उधारकर्ताओं के लिए कोई भी नया क्रेडिट एक्सपोज़र सुसंगत आंतरिक नीति के अंतर्गत आरई के वाणिज्यिक विवेकानुसार और मौजूदा लागू नियमों के अनुसार होगा। 9. इस योजना के अंतर्गत आरई द्वारा उधारकर्ताओं की साख सूचना कंपनी (सीआईसी) को रिपोर्टिंग, इस संबंध में मौजूदा दिशानिर्देशों द्वारा मार्गदर्शी होंगी। सरकारी बकाया राशि 10. डीआरएस के कारण सरकार को कोई प्राप्य राशि सृजित नहीं की जाएगी और आरई द्वारा निधियां प्राप्त होने तक उधारकर्ता पर एक्सपोज़र बना रहेगा। निधियां प्राप्त होने तक, आरई द्वारा आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधानीकरण मानदंडो सहित विवेकपूर्ण मानदंडों को लागू करना जारी रखा जाएगा। इसके अतिरिक्त, जो भी खाते गैर-निष्पादित हैं, आरई ऐसे उधारकर्ताओं के विरुद्ध अपने बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति के अनुसार वसूली के उपाय कर सकती हैं। मॉडल परिचालन प्रक्रिया सरकारी ऋण राहत योजनाएँ (डीआरएस)
1.मॉडल परिचालन प्रक्रिया (एमओपी) के प्रयोजन के लिए, ऋण राहत योजनाएं (डीआरएस) राज्य सरकारों द्वारा अधिसूचित योजनाओं को संदर्भित करती हैं, जिसमें उधारकर्ताओं के लक्षित वर्ग के ऋण दायित्वों को कवर करने के लिए राजकोषीय प्राधिकारियों द्वारा वित्त पोषण किया जाता है जिसे ऋणदाता संस्थानों को त्याग/माफ करना होता है। 2.किसी भी ऐसे डीआरएस की घोषणा/अधिसूचना में उस विशिष्ट दबाव अथवा संकट की स्थिति को शामिल किया जाना चाहिए जिसके लिए ऐसी योजना की घोषणा आवश्यक हो। ऋण संस्कृति के लिए ऐसे डीआरएस के व्यापक निहितार्थों को देखते हुए, जबकि व्यापक आधारित राहत उपायों को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के रूप में विशुद्ध राजकोषीय समर्थन द्वारा समाधान किया जा सकता है, डीआरएस को केवल अंतिम उपाय के रूप में ही माना जाना चाहिए, जब वित्तीय दबाव को कम करने के अन्य उपाय विफल हो गए हों। अधिसूचना-पूर्व परामर्श 3. किसी भी डीआरएस की घोषणा करने से पहले, सरकारें डीआरएस की अवधारणा, डिजाइन और कार्यान्वयन के लिए समन्वित कार्य योजना विकसित करने हेतु राज्य स्तरीय बैंकर समिति (एसएलबीसी)/जिला स्तरीय परामर्शदात्री समिति (डीसीसी) के साथ बातचीत कर सकती हैं। योजनाओं में योजना के महत्वपूर्ण पहलुओं को शामिल किया जाना चाहिए, जैसे उधारकर्ताओं की पहचान, प्रभाव आकलन, कार्यान्वयन समयसीमा, सरकार द्वारा ऋणदाता संस्थानों को बकाया राशि के निपटान से संबंधित मुद्दों का समाधान आदि। 4. डिजाइन विशेषताओं से यह सुनिश्चित होना चाहिए कि डीआरएस क्षेत्र/राज्य के वित्तीय स्थिरता पहलुओं को प्रभावित न करे अथवा उधारकर्ता वर्गों में नैतिक संकट उत्पन्न न करें। ऋण निपटान, साख सूचना कंपनियों को रिपोर्टिंग आदि पर प्रासंगिक विनियामक दिशानिर्देशों के अनुपालन को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। योजना का वित्तपोषण 5.किसी भी प्रस्तावित डीआरएस के लिए अपेक्षित निपटान राशि को पूर्णतः कवर करने के लिए विस्तृत बजटीय प्रावधान/वित्त पोषण पहले ही उपलब्ध कराया जा सकता है। जहां ऋणदाताओं पर सरकार का पूर्व डीआरएस योजनाओं से संबंधित बकाया है, वहां नई योजनाओं की घोषणा केवल पूर्णतः पूर्व-वित्तपोषित आधार पर ही की जानी चाहिए। योजना की डिज़ाइन (अभिप्राय) 6. डीआरएस को केवल प्रभावित उधारकर्ताओं पर लक्षित किया जाना चाहिए तथा इसमें समय पर पुनर्भुगतान के विरुद्ध कोई प्रतिबंधात्मक अनुबंध नहीं होना चाहिए। इसके अतिरिक्त, इसमें वस्तुनिष्ठ आधार पर पात्र उधारकर्ताओं के निर्धारण के लिए मानदंड, महत्वपूर्ण/भौतिक घटनाओं की विस्तृत समय-सीमा, दाखिल/प्रस्तुतीकरण के लिए अंतिम तारीख, पावती, अनुमोदन और दावों के निपटान के साथ-साथ सरकार की ओर से निधियों के निपटान में देरी के लिए क्षतिपूर्ति खंड निर्दिष्ट करना चाहिए। 7. डीआरएस में उधारकर्ताओं की संपूर्ण बकाया राशि को शामिल किया जाना चाहिए, जिसमें सरकार से ऋणदाता संस्थाओं द्वारा धनराशि प्राप्त होने की तिथि तक मूलधन और संचित ब्याज भी शामिल है। 8. डीआरएस को ऋणदाता संस्था की बहियों में सरकार को प्राप्य राशि के सृजन की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। उधारकर्ता के प्रति ऋण देने वाली संस्थाओं का एक्सपोज़र जारी रहेगा तथा सरकार से प्राप्त धनराशि की सीमा तक उसे कम किया जाएगा। 9. योजना का संपूर्ण कार्यान्वयन तथा सरकारों द्वारा बैंकों को दावों का निपटान सामान्यतः 45 से 60 दिनों के भीतर पूरा कर लिया जाना चाहिए। 10. डीआरएस में आरबीआई/नाबार्ड द्वारा जारी किसी भी विनियामक अनुदेशों के विपरीत कोई प्रावधान नहीं होना चाहिए। 11. डीआरएस के डिजाइन में ऐसा कोई प्रावधान नहीं होना चाहिए जो ऋणदाता संस्थान पर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से निम्नलिखित दायित्व डालता हो:
तथापि, यदि ऋणदाता संस्थान डीआरएस के डिजाइन के समय अथवा उसके बाद, अपने बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीतियों के अनुसार, उपर्युक्त में से किसी पर सहमत होते हैं, तो यह लागू विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों के अंतर्गत होगा। 3 दिनांक 07 जून 2019 को दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान हेतु विवेकपूर्ण ढांचा अथवा दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान पर संबंधित आरई पर लागू किसी अन्य दिशा-निर्देश के संदर्भ में |