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निर्यात अग्रिम के लिए गारंटियां

आरबीआइ/2006-07/303
बैंपविवि. सं. डीआइआर. बीसी. 72/13.03.00/2006-07

3 अप्रैल 2007
13 चैत्र 1929 (शक)

सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के मुख्य कार्यपालक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)

महोदय

निर्यात अग्रिम के लिए गारंटियां

हमारे ध्यान में आया है कि न्यून निर्यात आवर्त (टर्नओवर) वाले निर्यातक देशी बैंक गारंटियों के बदले, न्यून ब्याज दर वाली मुद्राओं में बड़ी राशि के निर्यात अग्रिम प्राप्त कर रहे हैं तथा ब्याज दर अंतर का लाभ उठाने के लिए वे ऐसे अग्रिमों को भारतीय रुपयों में बैंकों में जमा करते हैं । इसके अलावा, अग्रिम प्राप्त होने से पहले ही इस शर्त के साथ गारंटियां जारी की जा रही हैं कि अग्रिम प्राप्त हो जाने के बाद ही गारंटियां प्रभावी होंगी । निर्यात अग्रिमों के बट्टागत मूल्यों के बदले सममूल्य पर गारंटियां जारी की जा रही हैं । फेमा विनियमों का उल्लंघन करते हुए बिना किसी निर्यात परिणति के तथा/या पूर्व कार्य- निष्पादन देखे बगैर निर्यातकों को खुले तौर पर वायदा संविदा बुक करने, निरस्त करने तथा पुन: बुक (रिबुक) करने की अनुमति दी जा रही है । यह भी पाया गया है कि निर्यातक अपने मुद्रा एक्सपोज़र के भारतीय रुपया-अमेरिकी डॉलर लेग के बड़े हिस्से को खुला रखते हैं जिससे निर्यातकों और देशी बैंकों, दोनों को ही विदेशी मुद्रा जोखिम रहता है । ऐसे मामलों में, सामान्यत: न तो निर्यात हुआ होता है और न ही निर्यातकों की कोई अच्छी पृष्ठभूमि है या बड़े पैमाने के निर्यात आदेश निष्पादित करने की उनकी क्षमता है । ये लेनदेन मूलत: ब्याज दर अंतर और मुद्रा मूल्यों की घट-बढ़ से लाभ उठाने के लिए तैयार किये गये हैं, तथा पूंजी प्रवाह पर इसका प्रभाव पड़ सकता है ।

2. निर्यातक द्वारा भारत से निर्यात करने के लिए लिये गये ऋण या अन्य देयताओं के संबंध में गारंटियों की अनुमति दी गई है । अत: इसका उद्देश्य निर्यातक द्वार निर्यात अनुबंधों को निष्पादित करने में सहायता देना था और इसका कोई अन्य उद्देश्य नहीं था । विद्यमान अनुदेशों के अनुसार बैंकों को यह भी सूचित किया गया है कि गारंटियों में अंतर्निहित जोखिम होता है तथा यह बैंक के हित में या लोक हित में नहीं होगा कि साधारण तौर पर केवल गारंटी सुविधाओं की आसान उपलब्धता के बल पर पार्टियों को अपनी प्रतिबद्धता अनावश्यक रूप से बढ़ाने के लिए तथा नए उद्यम प्रारंभ करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। अत: इस बात को दोहराया जाता है कि चूंकि गारंटियों में अंतर्निहित जोखिम होते हैं, पैरा 1 में उल्लिखित लेनदेन यदि बैंकों द्वारा किए जाते हैं तो यह बैंक और वित्तीय प्रणाली के हित में नहीं होगा । अतएव बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे निर्यात अग्रिमों के बदले गारंटियां प्रदान करते समय सावधानी बरतें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि फेमा विनियमों का उल्लंघन नहीं होता है तथा बैंक विभिन्न जोखिमों में नहीं पड़ते है। बैंकों के लिए यह आवश्यक है कि उन्हें ऐसे निर्यातकों के संबंध में आवश्यक छानबीन करनी चाहिए तथा इस प्रकार के निर्यात आदेशों को निष्पादित करने की उनकी क्षमता की जाँच करने के लिए उनके ट्रैक रिकार्ड की जाँच करनी चाहिए।

3. बैंकों को यह भी सुनिश्चत करना चाहिए कि निर्यातकों द्वारा प्राप्त किए गए निर्यात अग्रिमों में विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 के अंतर्गत जारी विनियमों /निदेशों का अनुपालन हुआ है।

भवदीय

(पी. विजय भास्कर)
मुख्य महाप्रबंधक

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