भारतीय लेखा मानकों (इंड एएस) का कार्यान्वयन - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय लेखा मानकों (इंड एएस) का कार्यान्वयन
भारिबैं/2016-17/34 04 अगस्त 2016 अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाएं महोदया / महोदय, भारतीय लेखा मानकों (इंड एएस) का कार्यान्वयन कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए), भारत सरकार ने दिनांक 16 फरवरी 2015 को कंपनी (भारतीय लेखा मानक) नियमावली, 2015 अधिसूचित किया है। इस संबंध में कंपनी मामलों के मंत्रालय द्वारा दिनांक 18 जनवरी 2016 को जारी प्रेस विज्ञप्ति भी देखें, जिसमें बैंकों, गैर वित्तीय बैंकिंग कंपनियों, चुनिंदा अखिल भारतीय मीयादी ऋण और पुनर्वित्त संस्थाओं तथा बीमा इकाइयों के लिए अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग मानक के कार्यान्वयन हेतु रोडमैप के अनुसार भारतीय लेखा मानक की रूपरेखा का उल्लेख किया गया है। 2. इस संबंध में यह सूचित किया जाता है कि अखिल भारतीय चुनिंदा मीयादी ऋण और पुनर्वित्त संस्थाएं (एआईएफआई) (एग्ज़िम बैंक, नाबार्ड, एनएचबी, और सिडबी) को कंपनी (भारतीय लेखा मानक) नियम, 2015 के तहत अधिसूचित किए गए भारतीय लेखा मानक को इस संबंध में रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किए गए किसी भी प्रकार के निदेश या दिशानिर्देश के अधीन निम्नलिखित तरीके से पालन करेंगी : (i) एआईएफआई 01 अप्रैल 2018 से शुरु होने वाली लेखा अवधि हेतु वित्तीय विवरणों के लिए भारतीय लेखांकन मानक (इंड एएस) का अनुपालन करेंगी, जो 31 मार्च 2018 को समाप्त होने वाली अवधि या इसके बाद से तुलनात्मक रूप में होंगी। भारतीय लेखांकन मानक, एकल (स्टैंड-अलोन) वित्तीय विवरणों तथा समेकित वित्तीय विवरणों दोनों के लिए लागू होगा। ‘‘तुलनात्मक’’ से आशय पूर्व लेखांकन अवधि के लिए तुलनात्मक आंकड़ों से है। (ii) एआईएफआई को उपर्युक्त समय-सीमा के अनुसार ही भारतीय लेखा मानक लागू करना होगा तथा इससे पहले लेखा मानक को अपनाने की अनुमति नहीं होगी। 3. एआईएफआई को सूचित किया जाता है कि वे कंपनी मामलों के मंत्रालय द्वारा 18 जनवरी 2016 को जारी प्रेस विज्ञप्ति को संज्ञान में लें जिसमें कहा गया है कि अखिल भारतीय चुनिंदा मीयादी ऋण और पुनर्वित्त संस्थाओं (एआईएफआई) (एक्ज़िम बैंक, नाबार्ड, एनएचबी, और सिडबी) से अपेक्षित है कि 31 मार्च 2018 को समाप्त होने वाली अवधि या इसके बाद से तुलनात्मक रूप में 01 अप्रैल 2018 से शुरु होने वाली लेखा अवधि हेतु भारतीय लेखा मानक आधारित वित्तीय विवरण तैयार करें। 4. भारतीय लेखा मानक के कार्यान्वयन से वित्तीय रिपोर्टिंग प्रणाली तथा प्रक्रियाओं को महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित होने की संभावना है और इसलिए इन परिवर्तनों को कार्यान्वित करने की तारीख से पहले इनके लिए योजना बनाने, इन्हें प्रबंधित, परीक्षित तथा क्रियान्वयित करने की आवश्यकता है। प्रत्येक एआईएफआई को सूचित किया जाता है कि वे कार्यान्वयन प्रक्रिया को तत्काल आरंभ करने के लिए कार्यपालक निदेशक (या समतुल्य) रैंक के अधिकारी के नेतृत्व में संचालन समिति का गठन करें, जिसमें एआईएफआई के विभिन्न कार्य-क्षेत्रों से सदस्यों को शामिल किया जाए। निर्दिष्ट अधिकारी और टीम के नाम तथा विवरण हमें ई-मेल के माध्यम से अग्रेषित किए जाएं। बोर्ड की लेखापरीक्षा समिति भारतीय लेखा मानक कार्यान्वयन प्रक्रिया की प्रगति की निगरानी करेगी तथा तिमाही अंतराल पर बोर्ड को रिपोर्ट करेगी। भारतीय लेखा मानक के कार्यान्वयन योजना में शामिल महत्वपूर्ण मुद्दे, जिनका समाधान करना आवश्यक है, में निम्नलिखित शामिल हैं : क) भारतीय लेखा मानक तकनीकी आवश्यकताएं: मौजूदा लेखांकन ढांचा तथा इंड आईएस में भिन्नताओं का लाक्षणिक विश्लेषण करना, वित्तीयन को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण लेखा संबंधी नीतिगत निर्णय, लेखाकंन नीतियों का प्रारूपण, प्रकटीकरण तैयार करना, प्रलेखन, इंड एएस वित्तीय विवरण प्रोफार्मा तैयार करना, इंड आईएस में परिवर्तन का समय-निर्धारण, तथा वास्तविक रूपांतरण से पहले एंड टू एंड रिपोर्टिंग प्रोसेस और लेखांकन प्रणालियों का पूर्वाभ्यास करना। ख) प्रणाली और प्रक्रियाएं: प्रणाली परिवर्तन का मूल्यांकन –प्रक्रियाएं, जिनमें परिवर्तन आवश्यक है का मूल्यांकन, सूचना प्रणाली (सूचना प्रौद्गिकी प्रणाली सहित) को व्यापक रूप से प्रभावित करने वाले मुद्दे, तथा जहां आवश्यक हो, डेटा कैपचर सिस्टम को विकसित/ मजबूत करना। ग) कारोबार पर प्रभाव: लाभ आयोजना और बजट करना, कराधान, पूंजी आयोजना और पूंजी पर्याप्तता पर प्रभाव। घ) लोग – संसाधनों का मूल्यांकन: कार्यान्वयन, व्यापक प्रशिक्षण कार्यनीति और कार्यक्रम के लिए पर्याप्त और पूरी तरह से समर्पित आंतरिक कर्मचारी। ङ) परियोजना प्रबंधनः पूरी प्रक्रिया का प्रबंध करना – हितधारकों के लिए प्रभावी संप्रेषण कार्यनीतियों के अलावा आयोजना के प्रति समग्र दृष्टिकोण तथा लेखांकन, प्रणालियों, लोगों और कारोबार के बीच सभी संपर्क श्रुंखलाओं को सुनिश्चित करते हुए निष्पादन करना। 5. एआईएफआई के लिए इंड आईएस जब भी और जैसे ही लागू होता है, उन्हें बासेल III की पूंजी अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए, पूंजी पर्याप्तता सहित उनकी वित्तीय स्थिति पर इंड आईएस के कार्यान्वयन के प्रभाव का आकलन करना होगा तथा अपने बोर्ड को तिमाही प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी। एआईएफआई से यह भी अपेक्षित है कि 30 सितंबर 2016 को समाप्त होने वाली छमाही से अनुलग्नक V में दिए गए मार्गदर्शन और अनुलग्नक I से IV में दिए गए प्रारूप के अनुसार इंड एएस वित्तीय विवरण के प्रोफार्मा को प्रस्तुत करने के लिए तैयार रहें। प्रोफार्मा इंड एएस वित्तीय विवरण को तैयार करने के लिए दिशानिर्देश परिशिष्ट में दिए गए हैं। 30 सितंबर 2016 को समाप्त छमाही के लिए प्रोफार्मा विवरण 30 नवंबर 2016 तक प्रस्तुत कर दिया जाना चाहिए। एनएचबी का वित्तीय वर्ष जुलाई से जून तक होता है, इसे ध्यान में रखते हुए वे इंड एएस विवरण का प्रोफार्मा 31 दिसंबर 2016 को समाप्त छमाही के लिए तैयार कर सकते हैं, जिसे 28 फरवरी 2017 तक प्रस्तुत किया जाएगा। 6. रिजर्व बैंक को एआईएफआई के साथ आवधिक बैठकें आयोजित कर कार्यान्वयन प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिए भी कदम उठाएगा। रिजर्व बैंक संबंधित पहलुओं पर जब और जैसे अपेक्षित हों, आवश्यक अनुदेश / मार्गदर्शन / स्पष्टीकरण जारी करेगा। 7. एआईएफआई अपनी वार्षिक रिपोर्ट में, इंड एएस के कार्यान्वयन के लिए रणनीति सहित इस संबंध में हुई प्रगति का प्रकटीकरण करेंगे। ऐसे प्रकटीकरण वित्तीय वर्ष 2016-17 से लेकर पूर्ण कार्यान्वयन होने तक किया जाएगा। 8. भारतीय लेखांकन मानक की दिशा और रणनीति निर्धारित करने तथा भारतीय लेखांकन मानक के कार्यान्वयन योजना के निष्पादन और विकास की देखरेख करने की अंतिम जिम्मेदारी एआईएफआई बोर्ड के पास होगी। 9. इसमें निहित निदेश भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 (एल) के तहत जारी किए गए हैं तथा एआईएफआई इसका कठोरतापूर्वक अनुपालन सुनिश्चित करेंगे। भवदीय, (राजिंदर कुमार) भारतीय लेखांकन मानक का कार्यान्वयन एनएचबी को छोड़कर सभी एआईएफआई 30 सितंबर 2016 को समाप्त छमाही के लिए प्रोफार्मा इंड एएस विवरण 30 नवंबर 2016 तक प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक, बैंकिंग विनियमन विभाग, केंद्रीय कार्यालय, भारतीय रिजर्व बैंक, मुंबई को प्रस्तुत करेंगे। एनएचबी, 31 दिसंबर 2016 को समाप्त छमाही के लिए प्रोफार्मा इंड एएस वित्तीय विवरण 28 फरवरी 2017 तक प्रस्तुत करेगा। एआईएफआई, इस संबंध में, समय-समय पर संशोधित कंपनी (भारतीय लेखांकन मानक) नियम, 2015 तथा कंपनी (भारतीय लेखांकन मानक) (संशोधन) नियम, 2016 के तहत कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा अधिसूचित भारतीय लेखांकन मानक (इंड एएस) से मार्गदर्शन प्राप्त करेंगे। [संदर्भः दिनांक 16 फरवरी, 2015 का जी.एस.आर.111 (ङ) तथा दिनांक 30 मार्च, 2016 का जी.एस.आर.365 (ङ)]. एआईएफआई दिनांक 20 अक्तूबर 2015 को आरबीआई वेबसाइट पर प्रकाशित, “भारत में बैंकों द्वारा इंड एएस का कार्यान्वयन” पर कार्यदल की रिपोर्ट का भी संदर्भ लेंगे। 2. इंड एएस वित्तीय विवरण प्रोफार्मा में निम्नलिखित शामिल होगें - (क) इक्विटी में हुए परिवर्तनों के विवरण सहित तुलन-पत्र (अनुबंध I & II) (ख) लाभ और हानि लेखा (अनुबंध III). (ग) नोट्स (अनुबंध IV). (एनएचबी के लिए इंड एएस वित्तीय विवरण प्रोफार्मा प्रस्तुत करने की नियत तिथि 30 सितंबर 2016 के बजाए 31 दिसंबर 2016 और 01 अप्रैल 2016 के बजाए 01 जुलाई 2016 होगा) 3. अनुबंध में दिए गए प्रोफार्मा पूरी तरह से प्रोफार्मा इंड एएस वित्तीय विवरण तैयार करने और रिजर्व बैंक को प्रस्तुत करने के लिए हैं। 01 अप्रैल 2018 से शुरू होने वाली लेखांकन अवधि के लिए इंड एएस वित्तीय विवरण का प्रारूप अलग से अधिसूचित किया जाएगा। यह भी स्पष्ट किया जाता है कि एआईएफआई को वित्तीय वर्ष 2016-17 तथा 2017-18 के लिए वित्तीय विवरणों को तैयार करने तथा प्रस्तुत करने के संदर्भ में संबंधित राजपत्र अधिसूचनाओं और सामान्य विनियमों के माध्यम से जारी मौजूदा अनुदेशों के अनुसार ही चलना होगा। 4. एआईएफआई वित्तीय विवरण में प्रमुख पंक्ति मदों / उप पंक्ति मदों पर व्यापक अनुप्रयोग मार्गदर्शन के लिए अनुबंध V देखें। इस संबंध में विशिष्ट स्पष्टीकरणों/ मुद्दों के लिए एआईएफआई रिजर्व बैंक को ईमेल कर सकते हैं। 5. प्रारंभ में, एआईएफआई, जो 30 सितंबर 2016 को समाप्त छमाही के लिए स्टैंडअलोन तथा समेकित दोनों वित्तीय विवरण प्रोफार्मा प्रस्तुत करने की स्थिति में नहीं हैं उन्हें केवल स्टैंडअलोन प्रोफार्मा प्रस्तुत करने की अनुमति है। तथापि, बाद की अवधि में, एआईएफआई को भारतीय लेखांकन मानक के स्टैंडअलोन तथा समेकित दोनों प्रोफार्मा प्रस्तुत करने होंगे। 6. एआईएफआई को महत्वपूर्ण लेखांकन नीतियों का प्रकटीकरण करना होगा, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित शामिल होगा : (i) प्रारंभिक मान्यता पर लाभ या हानि के माध्यम से उचित मूल्य पर परिभाषित वित्तीय आस्तियों या वित्तीय देनदारियों (एफवीटीपीएल) में उचित मूल्य के विकल्प के प्रयोग सहित वित्तीय आस्तियां और वित्तीय देनदारियां। (ii) वित्तीय आस्तियों की हानि, निम्नलिखित विवरणों के साथ : • अपेक्षित ऋण हानि (ईसीएल) की गणना के लिए कार्यप्रणाली • प्रयुक्त पोर्टफोलियो में विभाजन के स्तर • चरण 1 (12 महीने का ईसीएल) से चरण 2 और चरण 3 (आजीवन ईसीएल) तक की गतिविधि के निर्धारण के लिए प्रयुक्त मानदंड। • आजीवन ईसीएल की संगणना के लिए उपयोग की गई विधि • जिस तरीके से भावी सूचनाओं को ईसीएल अनुमान में शामिल किया गया है- दी गयी सूचना में अपेक्षित निर्णय पर चर्चा तथा स्वीकरण के लिए इसे कैसे प्रयुक्त किया गया, दोनों शामिल होना चाहिए। • गैर –निधि आधारित सुविधाओं के लिए ट्रीटमेंट। • परिक्रामी (रिवाल्विंग) ऋण सुविधाओं के लिए ईसीएल की गणना हेतु कार्यप्रणाली • वे क्षेत्र जहां एआईएफआई इस ईसीएल अनुमान में अपने कार्यों को परिष्कृत करना चाहते हैं और इसे हासिल करने के लिए कार्ययोजना/समयसीमा बनाते हैं। • वर्तमान विधि के स्थान पर अपनाई गई ईसीएल विधि का प्रभाव- वर्तमान रिपोर्टिंग आवश्यकताओं के तहत स्टॉक के प्रावधानों का प्रारंभिक आईएनडी एएस 109 अनुमति के साथ मिलान करना। आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधानीकरण पर मौजूदा विवेकपूर्ण मानदंडों के संगत प्रावधानों के साथ 30 सितंबर 2016 को समाप्त छमाही के लिए ईसीएल के अंतर्गत हानि वृत्ति की तुलना का भी प्रकटीकरण किया जाना चाहिए। एआईएफआई नोट करें कि जब अनुमानित ऋण हानि की माप करते हैं तब अपनाई जाने वाली विधि के अनुसार आईएनडी एएस 109 विनिर्दिष्ट नहीं है। रिज़र्व बैंक अलग-अलग एआईएफआई के विशिष्ट आकार, जटिलता, रिस्क प्रोफाइल के अनुरूप स्वस्थ प्रत्याशित ऋण हानि कार्यप्रणालियां अपनाए जाने की आशा करता है। एआईएफआई यह भी नोट करें कि रिज़र्व बैंक इंड एएस109 के तहत हानिगत अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए समुचित विचार-विमर्श करेगा तथा अन्य बातों के साथ –साथ उपर्युक्त इनपुट सहित विभिन्न कारकों पर विचार करने के बाद प्रत्याशित ऋण हानि प्रावधानीकरण संबंधी नीति को अंतिम रूप देगा। इसलिए एआईएफआई को सूचित किया जाता है कि इस संबंध में प्रणालियों और प्रक्रियाओं का डिजाइनिंग करते समय लचीलापन बनाए रखें। (iii) डेरिवेटिव और हेज़ लेखांकन. (iv) वित्तीय आस्तियों और वित्तीय दायित्वों की अमान्यता (v) कर्मचारी लाभ. (vi) वित्तीय लिखतों का समंजन (vii) आयकर. (viii) आकलन अनिश्चितताओं के महत्वपूर्ण क्षेत्र, लेखांकन नीतियों को लागू करने में महत्वपूर्ण निर्णय तथा पूर्वधारणाएं। (ix) भारतीय लेखा मानक को प्रथम बार अपनाने पर इंड एएस 101 के तहत छूट पर दृष्टिकोण। 7. 30 सितंबर 2016 को समाप्त छमाही के लिए भारतीय लेखांकन मानक वित्तीय विवरण प्रोफार्मा तैयार करने के प्रयोजन से इंड एएस संक्रमण की अनुमानित तारीख 01 अप्रैल 2016 कारोबार आरंभ होने (या एनएचबी के लिए इसी के समान 31 मार्च 2016 / 30 जून 2016 को कारोबार की समाप्ति पर)। तथापि इससे 01 अप्रैल 2018 से प्रारंभ होने वाली लेखांकन अवधियों के लिए इंड एएस वित्तीय विवरण तैयार करने के प्रयोजन से संक्रमण तारीख में कोई परिवर्तन नहीं होगा, जो कि इंड एएस 101 भारतीय लेखांकन मानक को प्रथम बार अपनाए जाने के प्रावधानों के अनुसार होगा। 8. इंड एएस वित्तीय विवरण प्रोफार्मा में निम्नलिखित भी शामिल होगा - (i) (क) 01 अप्रैल 2016 तक मौजूदा वित्तीय रिपोर्टिंग अपेक्षाओं के अनुसार रिपोर्ट की गई उसकी इक्विटी का उसी तारीख को इंड एएस के अनुसार इक्विटी के साथ मिलान। (ख) 30 सितंबर 2016 तक मौजूदा वित्तीय रिपोर्टिंग अपेक्षाओं के अनुसार रिपोर्ट की गई उसकी इक्विटी का उसी तारीख का इंड एएस के अनुसार इक्विटी के साथ मिलान। (ii) 30 सितंबर 2016 को समाप्त छमाही के लिए इंड एएस के अनुसार कुल सविस्तार आय का मौजूदा वित्तीय रिपोर्टिंग अपेक्षाओं के अंतर्गत लाभ या हानि के साथ मिलान। 9. उपर्युक्त पैराग्राफ 8 में अपेक्षित मिलानों में तुलन –पत्र तथा लाभ- हानि विवरण में महत्वपूर्ण समायोजनों को समझने के लिए पर्याप्त ब्योरा दिया जाएगा, जिसमें यह स्पष्ट किया जाएगा कि मौजूदा वित्तीय रिपोर्टिंग प्रणाली से इंड एएस में संक्रमण ने रिपोर्ट किए गए तुलनपत्र और वित्तीय प्रदर्शन को किस प्रकार प्रभावित किया है। ब्योरा इसप्रकार होगा कि उससे रिज़र्व बैंक इक्विटी में किए गए उन महत्वपूर्ण समायोजनों का पता लगा सके, जो विनियामक पूंजी को प्रभावित करते हैं। रिज़र्व बैंक द्वारा इंड एएस वित्तीय विवरण प्रोफार्मा का ऑडिट किया जाना अपेक्षित नहीं है तथा बैंक इस बात से वाकिफ है कि यह सूचना प्रारंभिक इक्विटी पर पड़ने वाले प्रभाव का उचित आकलन होते हुए भी परिवर्तनाधीन है। 10. कृपया नोट करें कि रिज़र्व बैंक को इंड एएस वित्तीय विवरण प्रोफार्मा की प्रस्तुति का अर्थ रिज़र्व बैंक द्वारा वित्तीय विवरण के किसी रूप में प्रमाणीकरण के रूप में नहीं लगाया जाएगा। |