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दूसरे देशों के साथ भारतीय रुपये (आई.एन.आर) में व्यापारिक सौदों का निपटान

भा.रि.बैंक/2022-23/90
ए.पी. (डी.आई.आर. सीरीज़) परिपत्र सं. 10

11 जुलाई 2022

सेवा में

सभी श्रेणी-I प्राधिकृत व्यापारी बैंक

महोदया/ महोदय

दूसरे देशों के साथ भारतीय रुपये (आई.एन.आर) में व्यापारिक सौदों का निपटान

भारत से निर्यात पर जोर देते हुए वैश्विक व्यापार में वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए और आई.एन.आर में पूरी दुनिया के व्यापारिक समुदाय की बढ़ती रुचि को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया गया है कि निर्यात/ आयात के इन्वाइस बनाने, भुगतान, और निपटान आई.एन.आर में करने की एक अतिरिक्त व्यवस्था लागू की जाए। इस प्रणाली को लागू करने से पहले एडी बैंकों से यह अपेक्षित होगा कि वे मुंबई स्थित भारतीय रिज़र्व बैंक के केंद्रीय कार्यालय के विदेशी मुद्रा विभाग से इसके लिए पूर्व अनुमति प्राप्त करें।

2. विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (फेमा) के अंतर्गत आई. एन. आर में किए जाने वाले सीमापारीय व्यापारिक लेन-देन से संबंधित उक्त व्यापक फ्रेमवर्क निम्नानुसार है:

क) इन्वाइस बनाना: इस व्यवस्था के तहत सारे निर्यात और आयात का मूल्यवर्ग और उसका इन्वाइस रुपये (आई.एन.आर) में होगा।

ख) विनिमय दर: व्यापार में साझेदार दोनों देशों की मुद्राओं के बीच विनिमय दर बाजार द्वारा तय की जाएगी।

ग) निपटान: इस व्यवस्था के तहत व्यापारिक लेन-देन का निपटान इस परिपत्र के पैरा 3 में उल्लिखित प्रकिया के अनुसार आई.एन.आर में किया जाएगा।

3. विदेशी मुद्रा प्रबंध (जमा) विनियमावली, 2016 के विनियम 7(1) के अनुसार भारत के एडी बैंकों को रूपी वॉस्ट्रो खाते खोलने की अनुमति दी गयी है। तदनुसार, किसी भी देश के साथ व्यापारिक लेन-देन के निपटान हेतु भारत में स्थित एडी बैंक व्यापार में साझेदार देश के कॉरिस्पॉण्डेंट बैंक/बैंकों के स्पेशल रुपी वॉस्ट्रो खाते खोल सकते हैं। इस व्यवस्था के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक लेन-देन के निपटान की अनुमति देने के लिए यह निर्णय लिया गया है कि:

(क) इस व्यवस्था के जरिए आयात करने वाले भारतीय आयातकर्ता आई.एन.आर में भुगतान करेंगे जिसे विदेशी विक्रेता /आपूर्तिकर्ता द्वारा वस्तुओं अथवा सेवाओं के इन्वाइस प्रस्तुत करने पर व्यापारिक साझेदार देश के स्पेशल वॉस्ट्रो अकाउंट में क्रेडिट किया जाएगा।

(ख) इस व्यवस्था के जरिए वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात करने वाले भारतीय निर्यातकर्ताओं को निर्यात से प्राप्य राशि का भुगतान व्यापारिक साझेदार देश के कॉरिस्पॉण्डेंट बैंक के नामित स्पेशल वॉस्ट्रो अकाउंट में मौजूद शेषराशि में से आई.एन.आर में करेंगे।

4. दस्तावेज: इस व्यवस्था के तहत निर्यात/आयात और उसका निपटान करते समय दस्तावेज और रिपोर्टिंग संबंधी अपेक्षाएं सामान्य रूप से निर्धारित प्रक्रिया के अधीन होंगी। साख पत्र (एलसी) और व्यापार संबंधी अन्य दस्तावेजों के बारे में निर्णय यूनिफॉर्म कस्टम्स एण्ड प्रैक्टिस फॉर डॉक्यूमेंटरी क्रेडिट्स (यूसीपीडीसी) के व्यापक फ्रेमवर्क एवं वाणिज्यिक व्यापार नियमों (इंकोटर्म्स) के तहत सौदे में भागीदार देशों के बैंकों द्वारा पारस्परिक रूप से लिए जाएँ।

5. निर्यात के बदले अग्रिम: भारतीय निर्यातक रुपये में भुगतान की उपर्युक्त व्यवस्था के माध्यम से विदेशी आयातकों से निर्यात के बदले भारतीय रुपये में अग्रिम भुगतान प्राप्त कर सकते हैं। निर्यात के बदले अग्रिम भुगतान की ऐसी किसी भी प्राप्ति की अनुमति देने से पहले, भारतीय बैंक यह सुनिश्चित करेंगे कि इन खातों में उपलब्ध धनराशि का उपयोग पहले से निष्पादित निर्यात आदेशों / वर्तमान में जारी निर्यात भुगतान से उत्पन्न भुगतान दायित्वों के लिए किया जाए। उक्त अनुमति वस्तु और सेवाओं के निर्यात पर मास्टर निदेश, 2016 (समय-समय पर यथासंशोधित) के अंतर्गत निर्यात के बदले अग्रिम की प्राप्ति से संबंधित पैरा-सी.2 में उल्लिखित शर्तों के अनुसार दी जाएगी। यह सुनिश्चित करने के लिए कि अग्रिम राशि केवल विदेशी आयातक के निर्देशों के अनुसार जारी की जाए, भारतीय बैंक जिसके पास अपने कॉरिस्पॉण्डेंट बैंक का स्पेशल वॉस्ट्रो अकाउंट है, वह समुचित सावधानी के तौर पर किए जाने वाले अन्य सामान्य उपायों के अतिरिक्त, अग्रिम राशि जारी करने से पहले निर्यातक के दावे का सत्यापन कॉरिस्पॉण्डेंट बैंक से प्राप्त सूचना के साथ मिलान करते हुए करेगा।

6. निर्यात से प्राप्य राशियों का समंजन (सेट-ऑफ): विदेशी खरीददार और आपूर्तिकर्ता यदि एक ही है, तो उसे अपनी आयात की देयताओं का निर्यात से प्राप्य राशियों के बदले में समंजन (सेट-ऑफ), यदि कोई हो, करने की अनुमति रुपया भुगतान प्रणाली के तहत दी जा सकती है, बशर्ते वह “माल और सेवाओं का निर्यात” विषय पर जारी 01 जनवरी 2016 (समय-समय पर यथासंशोधित) के मास्टर निदेश के पैरा सी.26 में उल्लिखित ‘निर्यात से प्राप्य राशियों के बदले आयात की देयताओं के समंजन (सेट-ऑफ)’ के संबंध में दी गई शर्तों के अधीन हो।

7. बैंक गारंटी: इस व्यवस्था के तहत किए गए व्यापारिक लेन-देन के लिए बैंक गारंटी जारी करने की अनुमति है, बशर्ते इसमें समय-समय पर यथासंशोधित फेमा अधिसूचना सं.8 के प्रावधानों तथा ‘गारंटी और सह-स्वीकृतियां’ विषय पर जारी मास्टर निदेश के प्रावधानों का अनुपालन किया जाए।

8. अधिशेष राशि का उपयोग: खातों में धारित रुपया अधिशेष राशि का उपयोग पारस्परिक समझौते के अनुसार अनुमत पूंजी और चालू खाता लेन-देन के लिए किया जा सकता है। विशेष वॉस्ट्रो खातों में धारित शेष राशि का उपयोग निम्नलिखित प्रयोजनों के लिए किया जा सकता है:

क) परियोजनाओं और निवेशों के लिए भुगतान।

ख) निर्यात/आयात अग्रिम प्रवाह का प्रबंधन।

ग) फेमा तथा इसी प्रकार के अन्य सांविधिक प्रावधानों के अधीन रहते हुए मौजूदा दिशानिर्देशों और निर्धारित सीमाओं के अनुसार सरकारी ट्रेजरी बिलों, सरकारी प्रतिभूतियों आदि में निवेश।

9. रिपोर्टिंग संबंधी अपेक्षाएँ: सीमापारीय लेन-देन की रिपोर्टिंग फेमा, 1999 के तहत मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार किए जाने की आवश्यकता है।

10. अनुमोदन प्रक्रिया: साझेदार देश का बैंक विशेष आई.एन.आर वॉस्ट्रो खाता खोलने के लिए भारत में किसी प्राधिकृत व्यापारी (एडी) बैंक से संपर्क कर सकता है। उक्त एडी बैंक इस योजना का विस्तृत ब्योरा देते हुए रिज़र्व बैंक से अनुमोदन प्राप्त करेगा। विशेष वॉस्ट्रो खाता खोलने वाले उक्त एडी बैंक को यह सुनिश्चित करना होगा कि कॉरिस्पान्डन्ट बैंक किसी ऐसे देश या क्षेत्राधिकार का नहीं है जिसका नाम अद्यतन एफएटीएफ पब्लिक स्टेटमेंट में उच्च जोखिम वाले और असहयोग करने वाले देशों/ क्षेत्राधिकारों के रूप में शामिल हो जिनके लिए एफएटीएफ ने प्रतिकार स्वरूप कदम उठाने का आह्वान किया है।

11. उपर्युक्त अनुदेश तत्काल प्रभाव से लागू होंगे। प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंक इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने संबंधित सहभागियों को अवगत कराएं।

12. इस परिपत्र में निहित निर्देश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम (फेमा), 1999 (1999 के 42) की धाराओं 10(4) और 11(1) के तहत जारी किए गए हैं और ये किसी भी अन्य कानून के तहत अपेक्षित अनुमति/अनुमोदन, यदि कोई हो, पर विपरीत प्रभाव नहीं डालते।

भवदीय

(विवेक श्रीवास्तव)
मुख्य महाप्रबंधक

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