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तत्काल सकल निपटान (आरटीजीएस) और राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक निधि अंतरण (एनईएफटी) प्रणालियों के लिए लाभार्थी बैंक खाता नाम लुक-अप सुविधा की शुरूआत

आरबीआई/2024-25/99
सीओ.डीपीएसएस.आरपीपीडी.सं.एस987/ 04.03.001/ 2024-25

30 दिसंबर, 2024

आरटीजीएस और एनईएफटी प्रणाली में भाग लेने वाले बैंकों के अध्यक्ष
/ प्रबंध निदेशक / मुख्य कार्यकारी अधिकारी

प्रिय महोदय/महोदया,

तत्काल सकल निपटान (आरटीजीएस) और राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक निधि अंतरण (एनईएफटी) प्रणालियों के लिए लाभार्थी बैंक खाता नाम लुक-अप सुविधा की शुरूआत

कृपया 9 अक्तूबर, 2024 के विकासात्मक और विनियामक नीतियों पर वक्तव्य देखें, जिसमें तत्काल सकल निपटान (आरटीजीएस) प्रणाली और राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक निधि अंतरण (एनईएफटी) प्रणाली के लिए लाभार्थी खाता नाम लुक-अप सुविधा शुरू करने का प्रस्ताव है।

2. वर्तमान में, एकीकृत भुगतान इंटरफ़ेस (यूपीआई) और तत्काल भुगतान सेवा (आईएमपीएस) प्रणालियाँ धन भेजने वाले को अंतरण शुरू करने से पहले लाभार्थी का नाम की पुष्टि करने में सक्षम बनाती हैं। इसी तरह, धन प्रेषक को आरटीजीएस या एनईएफटी प्रणाली का उपयोग करके लेनदेन शुरू करने से पहले लाभार्थी के बैंक खाते का नाम सत्यापित करने की सुविधा आरंभ करने का निर्णय लिया गया है। तदनुसार, भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) को यह सुविधा विकसित करने और सभी बैंकों को इसमें शामिल करने की सलाह दी गई है।

3. जो बैंक आरटीजीएस और एनईएफटी सिस्टम के भागीदार हैं, उन्हें अपने ग्राहकों को इंटरनेट बैंकिंग और मोबाइल बैंकिंग के माध्यम से यह सुविधा उपलब्ध करानी होगी। यह सुविधा शाखाओं में लेन-देन करने के लिए आने वाले धन प्रेषकों को भी उपलब्ध होगी। इससे संबंधित विस्तृत आवश्यकताएं अनुलग्नक में उपलब्ध है।

4. सभी बैंक जो आरटीजीएस और एनईएफटी के सदस्य या उप-सदस्य हैं, उन्हें सूचना दी जाती है कि वे 1 अप्रैल, 2025 से पहले यह सुविधा प्रदान करें।

5. यह निदेश भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 (2007 का अधिनियम 51) की धारा 18 के साथ पठित धारा 10 (2) के तहत जारी किया गया है।

(सुधांशु प्रसाद)
मुख्य महाप्रबंधक


अनुलग्नक

(सीओ. डीपीएसएस.आरपीपीडी.सं.एस987/04.03.001/2024-25 दिनांक 30 दिसंबर, 2024)

तत्काल सकल निपटान (आरटीजीएस) और राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक निधि अंतरण (एनईएफटी) प्रणालियों के लिए लाभार्थी बैंक खाता नाम लुक-अप सुविधा की शुरूआत

1. यह सुनिश्चित करने के लिए कि आरटीजीएस और एनईएफटी सिस्टम का उपयोग करने वाले प्रेषक अंतरण शुरू करने से पहले धन अंतरित किए जा रहे बैंक खाते का नाम सत्यापित कर सकें और इस तरह की गलतियों और धोखाधड़ी से बच सकें, लाभार्थी का नाम प्राप्त करने के लिए एक समाधान लागू किया जा रहा है। प्रेषक द्वारा दर्ज किए गए लाभार्थी के खाता संख्या और आईएफएससी के आधार पर, यह सुविधा बैंक के कोर बैंकिंग समाधान (सीबीएस) से लाभार्थी के खाते का नाम प्राप्त करेगी।

2. यह सुविधा इंटरनेट बैंकिंग और मोबाइल बैंकिंग के माध्यम से धनप्रेषक को उपलब्ध कराई जाएगी। यह सुविधा लेनदेन करने के लिए शाखाओं का उपयोग करने वाले धनप्रेषक को भी उपलब्ध होगी।

3. ग्राहकों के लिए समान अनुभव सुनिश्चित करने के लिए, बैंक नीचे दिए गए निर्देशों का पालन करेंगे:

  1. लाभार्थी के पंजीकरण के समय तथा लाभार्थी के पंजीकृत न होने पर एक बार निधि अंतरण के समय इंटरनेट बैंकिंग और मोबाइल बैंकिंग सुविधाओं में लाभार्थी के बैंक खाते के नाम को सत्यापित करने का प्रावधान किया जाएगा।

  2. पंजीकृत लाभार्थी को किसी भी समय पुनः सत्यापित करने का प्रावधान भी किया जाएगा।

  3. लाभार्थी बैंक द्वारा प्रदान किया गया लाभार्थी खाता नाम धन प्रेषक को प्रदर्शित किया जाएगा।

  4. यदि किसी कारणवश लाभार्थी का नाम प्रदर्शित नहीं किया जा सकता है, तो धन प्रेषक अपने विवेकानुसार निधि अंतरण के लिए आगे बढ़ सकता है।

  5. एनपीसीआई द्वारा पहले जारी तकनीकी दस्तावेज में दिए गए विशिष्ट अलर्ट संदेश धन प्रेषक को प्रदर्शित किए जाएंगे।

4. धन प्रेषणकर्ता और लाभार्थी दोनों बैंक, लाभार्थी बैंक खाता नाम लुकअप सुविधा के अंतर्गत किए गए सभी प्रश्नों, प्राप्त प्रतिक्रियाओं और अन्य सभी गतिविधियों का विस्तृत लॉग सुरक्षित रखेंगे।

5. एनपीसीआई इस सुविधा से संबंधित कोई भी डेटा संग्रहीत नहीं करेगा। विवाद की स्थिति में, प्रेषणकर्ता बैंक और लाभार्थी बैंक विशिष्ट(युनीक) लुकअप संदर्भ संख्या और संबंधित लॉग के आधार पर विवाद का समाधान करेंगे।

6. सुविधा प्रदान करते समय, बैंकों को डेटा गोपनीयता से संबंधित कानूनी प्रावधानों, यदि कोई हो, का अनुपालन सुनिश्चित करना होगा।

7. लाभार्थी खाता नाम देखने की सुविधा ग्राहकों को बिना किसी शुल्क के उपलब्ध कराई जाएगी।

8. सभी बैंक जो आरटीजीएस और एनईएफटी के सदस्य या उप-सदस्य हैं, उन्हें सूचना दी जाती है कि वे 1 अप्रैल, 2025 से पहले यह सुविधा प्रदान करें।

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