भारतीय रिज़र्व बैंक (व्यापार राहत उपाय) निदेश, 2025
आरबीआई/2025-26/96 14 नवंबर 2025 भारतीय रिज़र्व बैंक (व्यापार राहत उपाय) निदेश, 2025 अध्याय I: प्रारंभिक प्रस्तावना 1. भारत की ऋण प्रणाली से देश लाभान्वित हो इस उद्देश्य से ऋण प्रणाली का परिचालन करने के लिए रिज़र्व बैंक को सांविधिक रूप से अधिकार प्राप्त है। इस प्रयास में, तथा वैश्विक प्रतिकूल परिस्थितियों से व्यापार में उत्पन्न व्यवधानों से उत्पन्न ऋण भुगतान के बोझ को कम करने तथा व्यवहार्य कारोबारों की धारणीयता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा इस बात से संतुष्ट होकर कि ऐसा करना जनहित में आवश्यक और समीचीन है, यह निदेश जारी किए जाते हैं, जिनका उल्लेख आगे किया गया है। 2. यह निदेश बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 21, 35ए और 56, भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45जेए, 45एल और 45एम, फैक्टर विनियमन अधिनियम, 2011 की धारा 6, राष्ट्रीय आवास बैंक अधिनियम, 1987 की धारा 30ए, 32 और 33 तथा प्रत्यय विषयक जानकारी कंपनी (विनियमन) अधिनियम, 2005 की धारा 11 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए जारी किए जा रहे हैं। संक्षिप्त शीर्षक और प्रारंभ 3. इन निदेशों को भारतीय रिज़र्व बैंक (व्यापार राहत उपाय) निदेश, 2025 कहा जाएगा। 4. यह निदेश तत्काल प्रभाव से लागू होंगे। प्रयोज्यता 5. यह निदेश निम्नलिखित संस्थाओं पर लागू होंगे, जिन्हें आगे से संदर्भानुसार विनियमित संस्था (आरई) और सामूहिक रूप से विनियमित संस्थाएं (आरईएस) कहा जाएगा:
अध्याय II: पात्रता मानदंड 6. विनियमित संस्थाएं द्वारा इन निदेशों में आगे निर्दिष्ट राहत उपाय प्रदान करने के लिए नीति तैयार की जाएगी, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ राहत पर विचार करने के लिए वस्तुनिष्ठ मानदंड भी शामिल होंगे तथा इसका प्रकटीकरण सार्वजनिक डोमेन में किया जाएगा। आरई को स्वयं इस बात से संतुष्ट होना होगा कि उधारकर्ता का कारोबार वैश्विक प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण उत्पन्न व्यापार व्यवधानों से प्रभावित है। 7. इन निदेशों के अंतर्गत राहत पर विचार करने के प्रयोजन से, उधारकर्ता को निम्नलिखित सभी शर्तों को पूरा करने पर ही पात्र माना जाएगा:
8. उधारकर्ता को निर्यात ऋण सुविधा संस्वीकृत करने वाली विनियमित संस्थाओं के अतिरिक्त अन्य विनियमित संस्थाएं स्वयं को संतुष्ट कर सकती हैं कि उधारकर्ता उपर्युक्त अनुच्छेद 7(ii) में उल्लिखित मानदंडों के अंतर्गत आता है, यदि उन्हें उधारकर्ता को निर्यात ऋण देने वाले विनियमित संस्थाओं से प्रमाण पत्र प्राप्त हुआ हो। अध्याय III: राहत उपाय ए. अधिस्थगन/आस्थगन 9. पात्र उधारकर्ताओं के लिए, आरई द्वारा निम्नलिखित राहत उपायों को दिया जा सकता है:
बी. निर्यात ऋण के लिए अवधि का विस्तार 10. निर्यात वित्तपोषण कारोबार करने के लिए पात्र आरई, 31 मार्च 2026 तक संवितरित पोतलदानपूर्व तथा पोतलदान के पश्चात निर्यात ऋणोंके लिए 450 दिनों तक की बढ़ी हुई ऋण अवधि की अनुमति दे सकता है। 11. निर्यातकों द्वारा 31 अगस्त 2025 तक पहले से प्राप्त पैकिंग ऋण सुविधाओं के संबंध में, जहां माल का प्रेषण नहीं हो सका, कोई आरई किसी भी विधिसम्मत वैकल्पिक स्रोतों से ऐसी सुविधाओं के परिसमापन की अनुमति दे सकता है, जिसमें ऐसे माल की घरेलू बिक्री आगम या किसी अन्य निर्यात ऑर्डर की आगम के साथ संविदा का प्रतिस्थापन शामिल है। अध्याय IV: आस्ति वर्गीकरण और प्रावधानीकरण ए. आस्ति वर्गीकरण 12. आरई पर लागू मौजूदा आईआरएसीपी (IRACP) मानदंडों के तहत आस्ति वर्गीकरण के प्रयोजन के लिए अधिस्थगन अवधि/आस्थगन, जहां भी प्रदान किया गया हो, को देय दिनों की संख्या की गणना करते समय आरई द्वारा अपवर्जित किया जाएगा। 13. इन निदेशों के अनुसार किश्तों पर अधिस्थगन/आस्थगन प्रदान करना और 'आहरण शक्ति' की पुनर्गणना को मौजूदा विनियमों के अनुसार पुनर्गठन की घटना नहीं माना जाएगा। परिणामस्वरूप, ऐसे उपाय से, अपने आप में, आस्ति वर्गीकरण में अवनति नहीं आएगी। 14. अधिस्थगन/आस्थगन अवधि की समाप्ति के बाद, आस्ति वर्गीकरण संबंधित आरई पर लागू मौजूदा आईआरएसीपी (IRACP) मानदंडों के अनुसार होगा। 15. विनियमित संस्थाएं उपर्युक्त प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए, विद्यमान अनुदेशों के अनुसार साख सूचना कंपनियों (सीआईसी) को रिपोर्ट करेंगी। 16. सीआईसी यह सुनिश्चित करें कि इन निदेशों के अनुसरण में विनियमित संस्थाओं द्वारा की गई कार्रवाई से उधारकर्ताओं के ऋण इतिहास पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। बी. प्रावधानीकरण 17. पात्र उधारकर्ता खातों के संबंध में, जो 31 अगस्त 2025 तक चूक में थे, लेकिन 'मानक' के रूप में वर्गीकृत थे और जिनमें इन निदेशों के अनुसरण में राहत उपायों को प्रदान किया गया है, आरई 31 दिसंबर 2025 तक ऐसे खातों में कुल बकाया राशि के कम से कम 5 प्रतिशत तक का सामान्य प्रावधानीकरण करेगा। 18. उक्त सामान्य प्रावधान को इन उधारकर्ता खातों से होने वाली गिरावट के लिए वास्तविक विशिष्ट प्रावधानीकरण आवश्यकताओं के विरुद्ध समायोजित किया जा सकता है। वित्तीय वर्ष 2025-26 के अंत में किसी भी अवशिष्ट सामान्य प्रावधान को या तो बट्टे खाते में डाला जाएगा या 30 जून 2026 तक अन्य सभी उधारकर्ता खातों के लिए आवश्यक प्रावधानों के विरुद्ध समायोजित किया जाएगा। 19. उपर्युक्त सामान्य प्रावधानों को निवल एनपीए की गणना के लिए तब तक नहीं गिना जाएगा जब तक कि उन्हें उक्त पैरा 18 के तहत वास्तविक प्रावधान आवश्यकताओं के विरुद्ध समायोजित नहीं किया जाता है। इसके अतिरिक्त, ऐसे समायोजनों तक, इन प्रावधानों को सकल अग्रिमों से घटाया नहीं जाएगा, बल्कि उचित रूप से तुलन पत्र में अलग से दिखाया जाएगा। अध्याय V: प्रकटीकरण आवश्यकताएं 20. एक विनियमित संस्था अपने उधारकर्ताओं को प्रदान की गई राहतों पर एक एमआईएस (MIS) विकसित करेगी, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ, दी गई राहत की प्रकृति और राशि के संबंध में उधारकर्ता-वार और ऋण-सुविधा-वार जानकारी शामिल होगी। आरई को पाक्षिक रिपोर्ट (प्रत्येक माह की 15 तारीख को तथा उसके अंत में) एक प्रारूप मे प्रस्तुत करनी होगी, जिसे भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अपने दक्ष प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराया जाएगा। पात्र क्षेत्रों की सूची
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