राज्य और जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों (एससीबी/डीसीसीबी) - आरबीआई - Reserve Bank of India
राज्य और जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों (एससीबी/डीसीसीबी)
भारिबैं/2005-06/55
ग्राआऋवि.केका.आरएफ.बीसी.14/07.02.03/2005-06
13 जुलाई 2005
सभी राज्य और जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक
मबेदय,
राज्य और जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों (एससीबी/डीसीसीबी)
का निवेश संविभाग - निवेशों का वर्गीकरण और मूल्यांकन
वफ्पया उपर्युक्त विषय पर 04 सितंबर 1992 का हमारा परिपत्र ग्राआऋवि.सं. आरएफ.बीसी.17/ए.4-92/93 देखें ।
2. वर्तमान अनुदेशों के अनुसार बैंकों को निदेशक बोड़ के अनुमोदन से सांविधिक चलनिधि अनुपात प्रतिभूतियों में उनके निवेश ’ चालू ’ श्रेणी से ’ स्थायी ’ श्रेणी में अंतरित करने की अनुमति है तथा मूल्यह्रास, यदि कोई बे तो, के लिए पूरा प्रावधान किया जाना चाहिए ।
3. प्रावधानीकरण संबंधी अनिवार्यताओं को पूरा करने में राज्य सहकारी बैंकों / जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों के सामने आई कठिनाइयों के कारण कतिपय राज्य सहकारी बैंकों और राज्य सहकारी बैंकों के मबसंघों से प्राप्त अभ्यावेदनों के मेनिजर उक्त मामले की समीक्षा की गई है और एक विशेष मामले के रप में यह निर्णय किया गया है कि प्रावधानन संबंधी उपर्युक्त अनिवार्यताओं में निम्नानुसार छूट दी जाए:
अनुसूचित राज्य सहकारी बैंक :
अनुसूचित राज्य सहकारी बैंक प्रतिभूतियों को ’ चालू ’ श्रेणी में से ’ स्थायी ’ श्रेणी में अंतरित करने के कारण उत्पन्न प्रावधानन संबंधी आवश्यकता की पहचान करें तथा 31 मार्च 2005 को समाप्त चालू लेखा वर्ष से प्रारंभ बेने वाली अधिकतम पाँच वर्षों की अवधि में उसका परिशोधन करें जिसमें प्रत्येक वर्ष इस प्रकार की राशि का न्यूनतम 20% शामिल बे ।
गैर - अनुसूचित राज्य सहकारी बैंक और सभी जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक
गैर -अनुसूचित राज्य सहकारी बैंकाें / जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों द्वारा प्रतिभूतियों का ’ चालू’ श्रेणी में से ’स्थायी’ श्रेणी में अंतरण निम्नलिखित शर्तों के अधीन बही मूल्य पर किया जा सकता है :
(क) यदि बही मूल्य अंकित मूल्य से अधिक है तो बही मूल्य और अंकित मूल्य का अंतर अर्थात् प्रीमियम का परिशोधन परिपक्वता अवधि की शेष समयावधि में बराबर किस्तों में किया जा सकता है । यदि प्रतिभूति अंकित मूल्य के मितीकाटा पर प्राप्त की गई है तो प्रतिभूति की परिपक्वता के समय अंतर को केवल लाभ के रप में अंकित किया जाना चाहिए ।
(वव) इस विशेष व्यवस्था के अंतर्गत अंतरित प्रतिभूतियों को अलग से ’स्थायी’ श्रेणी में रखा जाना चाहिए और भविष्य में उन्हें ’चालू’ श्रेणी में अंतरित नहीं किया जाना चाहिए ।
(ववव) सामान्यत: ’स्थायी’ श्रेणी के अंतर्गत आनेवाली प्रतिभूतियों की बिक्री बाजार में नहीं की जानी चाहिए और उनका मोचन केवल परिपक्वता पर ही बेगा । तथापि, अपवादात्मक परिस्थितियों में यदि इस प्रकार की प्रतिभूतियों की बिक्री की जानी है तो इस श्रेणी में निवेशों की बिक्री पर लाभ को पहले लाभ और बनि खाते में लिया जाएगा और उसके बाद इसे " पॅूंजीगत प्रारक्षित निधि " में विनियोजित किया जाएगा । बिक्री पर बनि का निर्धारण बिक्री के वर्ष में लाभ और बनि खाते में किया जाएगा ।
(वख्) बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे पर्याप्त प्रावधान बनाएं और वे 31 मार्च 2009 तक बिना किसी छूट के वर्तमान निवेश मानदंडों का पालन करें ।
4. आगे यह सूचित किया जाता है कि उपर्युक्त छूट वर्ष 2004-05 के लिए एकमुश्त उपाय है और 01 अप्रैल 2005 को या इसके बाद भविष्य में किए गए सभी नए निवेशों के लिए वर्तमान दिशानिर्देशों का पालन यथावत जारी रहेगा । इसके अलावा बैंकों को 31 मार्च 2004 की स्थिति के अनुसार निवेशों पर पहले ही किए गए प्रावधानों का पुनरांकन करने की अनुमति नहीं है ।
5. अनुरोध है कि आप अपने बैंक के बोड़ के समक्ष इस परिपत्र की विषयवस्तु रखें ।
6. वफ्पया हमारे संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को पावती भेजें ।
भवदीय,
(सी.एस. मूर्ति )
प्रभारी मुख्य मबप्रबंधक