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बैंकों द्वारा गारंटियां जारी करना

आरबीआइ/2008-09/488
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.136/13.03.00/2008-09

29 मई 2009
7 ज्येष्ठ 1931 (शक)

सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)

महोदय

बैंकों द्वारा गारंटियां जारी करना

यह पाया गया है कि आजकल कुछ बैंक 1 जुलाई 2008 के मास्टर परिपत्र आरबीआइ/2008-09/79 बैंपविवि. सं. डीआइआर. बीसी. 18/13.03.00/2008-09 के पैराग्राफ 2.4.2.3(क) (उद्धरण संलग्न) के अनुसार कार्पोरेट संस्थाओं द्वारा जारी किए गए अपरिवर्तनीय डिबेंचरों के संबंध में उनकी ओर से गारंटियां जारी कर रहे हैं । यह स्पष्ट किया जाता है कि मौजूदा अनुदेश केवल ऋणों पर ही लागू होते हैं, बांड अथवा ऋण लिखतों पर नहीं । कार्पोरेट बांड अथवा किसी भी प्रकार के ऋण लिखत के लिए बैंकिंग प्रणाली द्वारा गारंटी जारी करने से न केवल महत्वपूर्ण प्रणालीगत प्रभाव पड़ता है बल्कि उससे एक वास्तविक कार्पोरेट ऋण बाज़ार के विकास में भी बाधाएं आती हैं ।

2. बैंकों को सूचित किया जाता है कि मौजूदा विनियमों का कड़ाई से पालन करें और विशेष रूप से किसी भी प्रकार के बांड अथवा ऋण लिखतों के निर्गम के लिए गारंटियां अथवा समतुल्य प्रतिबद्धताएं प्रदान न करें ।


भवदीय

(पी. विजय भास्कर)
मुख्य महाप्रबंधक


1 जुलाई 2008 के मास्टर परिपत्र आरबीआइ 2008-09/79 बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.18/13.03.00/2008-09 से उद्धरण

2.4.2.3 (क) बैंक अन्य बैंकों, वित्तीय संस्थाओं तथा ऋण देने वाली अन्य एजेंसियों द्वारा दिए गए ऋणों के लिए उनके पक्ष में गारंटी दे सकते हैं परंतु इस संबंध में उन्हें निम्नलिखित शर्तों का कड़ाई से पालन करना पड़ेगा ।

i. निदेशक-मंडल को बैंक की जोखिम प्रबंध प्रणाली की सुस्वस्थता /सुदृढ़ता को समझ लेना चाहिए और तदनुसार इस संबंध में एक सुव्यवस्थित नीति तैयार करनी चाहिए ।

निदेशक-मंडल द्वारा अनुमोदित नीति में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए :

1. बैंक की टीयर I पूंजी से संबद्ध किस विवेकपूर्ण सीमा तक अन्य बैंकों, वित्तीय संस्थाओं तथा ऋण देने वाली अन्य एजेंसियों के पक्ष में गारंटी दी जा सकती है ।

2. जमानत और मार्जिनों का स्वरूप तथा सीमा

3. अधिकारों का प्रत्यायोजन

4. रिपोर्टिंग प्रणाली

5. आवधिक समीक्षाएं

ii. गारंटी केवल उधारकर्ता-ग्राहकों के संबंध में तथा उन्हें अन्य बैंकों, वित्तीय संस्थाओं तथा ऋण देने वाली अन्य एजेंसियों से अतिरिक्त ऋण प्राप्त करने के लिए उपलब्ध करायी जाएगी ।

iii. गारंटी देने वाले बैंक को गारंटीकृत एक्सपोज़र के कम से कम 10 प्रतिशत के बराबर निधिक एक्सपोज़र की जिम्मेवारी लेनी चाहिए।

iv. बैंकों को विदेशी ऋणदाताओं के पक्ष में तथा विदेशी ऋणदाताओं को समनुद्देश्य गारंटी अथवा लेटर ऑफ कंफर्ट प्रदान नहीं करने चाहिए। तथापि, प्राधिकृत व्यापारी बैंक दिनांक 3 मई 2000 का अधिसूचना सं. फेमा 8/2000-आर बी में निहित प्रावधानों धसे भी मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं ।

v. बैंक द्वारा दी गई गारंटी ऋण लेने वाली उस संस्था पर एक्सपोज़र माना जाएगा जिसकी ओर से गारंटी दी गई है तथा उनके लिए प्रचलित दिशानिर्देशों के अनुसार समुचित जोखिम-भार लागू होगा ।

vi. बैंकों को घोष समिति की सिफारिशों तथा गारंटी देने से संबंधित अन्य अपेक्षाओं का पालन करना चाहिए ताकि इस संबंध में धोखाधड़ी की संभावनाओं से बचा जा सके ।

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