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वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य -सूचना प्रौद्योगिकी की सहायता से वित्तीय समावेशन

आरबीआइ/2006-07/378
बैंपविवि. सं. एलईजी. बीसी. 94 /09.07.005/2006-07

7 मई 2007
17 वैशाख 1929 (शक)

अध्यक्ष/मुख्य कार्यपालक अधिकारी/प्रबंध निदेशक
सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)

महोदय/महोदया

वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य - सूचना प्रौद्योगिकी की सहायता से वित्तीय समावेशन

कृपया वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य के पैराग्राफ 163 का अवलोकन करें, जिसकी प्रतिलिपि संलग्न है।

2. हमारे 11 नवंबर 2005 के परिपत्र बैंपविवि. सं. एलईजी. बीसी. 44/09.07.005/2005-06 के अनुसार बैंकों ने एक बुनियादी बैंकिंग ‘नो-फ्रिल्स’ खाते की सुविधा उपलब्ध करायी है ताकि बृहत्तर वित्तीय समावेशन का उद्देश्य प्राप्त हो सके। बैंकों के प्रयास से आम आदमी बैंक खाते खोल पा रहा है। तथापि, वित्तीय समावेशन का उद्देश्य तब तक पूरी तरह से प्राप्त नहीं होगा, जब तक बैंक देश के दूरवर्ती क्षेत्रों तक बैंकिंग पहुँच को विस्तृत नहीं करते हैं। ऐसा समुचित प्रौद्योगिकी के प्रयोग से कम परिचालन लागत पर तथा कम खर्चीले इनफ्रास्ट्रक्चर के साथ किया जाना है। इससे बैंक लेनदेन की लागत कम कर सकेंगे ताकि ‘स्मॉल टिकट ट्रान्जैक्शन’ अर्थक्षम हो सके।

3. कुछ बैंकों ने पहले से ही देश के विभिन्न दूरवर्ती हिस्सों में स्मार्ट कार्ड/मोबाइल प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर शाखा में प्रदत्त सुविधाओं जैसी बैंकिंग सुविधाएँ देने के लिए कुछ प्रायोगिक परियोजनाएँ आरंभ की हैं। अत: बैंकों से अनुरोध है कि वे समुचित प्रौद्योगिकी अपना कर अपने वित्तीय समावेशन प्रयासों में और वृद्धि करें। इस संबंध में ध्यान रखना चाहिए कि जो सॉल्यूशन विकसित किए जाते हैं, वे -

  • अत्यंत सुरक्षित हों
  • उनकी लेखा परीक्षा हो सकती हो
  • उनमें व्यापक रूप से स्वीकृत खुले मानकों का अनुसरण किया गया हो, ताकि विभिन्न बैंकों द्वारा प्रयुक्त विभिन्न प्रणालियों के बीच में परस्पर परिचालन हो सके।

भवदीय

(प्रशांत सरन)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक

वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य का पैराग्राफ 163

सूचना प्रौद्योगिकी की सहायता से वित्तीय समावेशन

163. ‘शून्य शेष राशि’ या ‘नो फ्रिल्स’ खातों के आरंभ किए जाने से आम आदमी बैंक खाते खोल पा रहा है। तथापि, ग्राहक तक, विशेष रूप से दूरस्थ और बैंक रहित क्षेत्रों में, बैंकिंग सुविधाएँ लेनदेन की कम लागत पर पहुँचाना अभी भी चुनौती है। यह देखते हुए कि इस चुनौती का प्रभावी सामना सूचना प्रौद्योगिकी की सहायता से दी जानेवाली सेवाओं के माध्यम से किया जा सकता है, बैंकों ने अपनी पहुँच बढ़ाने के लिए स्मार्ट कार्ड/मोबाइल प्रोद्योगिकी का उपयाग करते हुए प्रायोगिक परियोजनाएँ आरंभ की हैं। ग्राहकों की अलग से पहचान के लिए बायोमीट्रिक विधियों का भी प्रयोग बढ़ रहा है। अत:

.बैंकों से अनुरोध है कि वे वित्तीय समावेशन के लिए सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी पहल में तेजी लाएँ तथा साथ ही यह सुनिश्चित करें कि सॉल्यूशन अत्यंत सुरक्षित हैं, उनकी लेखा परीक्षा हो सकती है तथा उनमें व्यापक रूप से स्वीकृत खुले मानकों का अनुसरण किया गया है, ताकि अन्तत: विभिन्न प्रणालियों के बीच परस्पर परिचालन सुनिश्चित हो सके।

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