RbiSearchHeader

Press escape key to go back

पिछली खोज

थीम
थीम
टेक्स्ट का साइज़
टेक्स्ट का साइज़
S3

Notification Marquee

आरबीआई की घोषणाएं
आरबीआई की घोषणाएं

RbiAnnouncementWeb

RBI Announcements
RBI Announcements

असेट प्रकाशक

79084213

अपने ग्राहक को जानिये (केवाइसी)मापदंड/धन शोधन निवारक (एएमएल)मानक/आतंक वाद के वित्तपोषण का सामना करना (सीएफटी)/ धन शोधन निवारण (संशोधन) अधिनियम,  2009 द्वारा यथा संशोधित धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत प्राधिकृत व्याक्तियों का दायित्व- मुद्रा परिवर्तन संबंधी गतिविधियां- संदेहास्पद लेनदेन रिपोर्टिंग फॉर्मेट

भारिबैंक/2009-10/227
.पी. (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं. 15
ए.पी. (एफएल/आरएल  सिरीज) परिपत्र सं. 02

 19 नवंबर 2009

सभी प्राधिकृत व्यक्ति

महोदया/महोदय

अपने ग्राहक को जानिये (केवाइसी)मापदंड/धन शोधन निवारक (एएमएल)मानक/आतंक वाद के वित्तपोषण का सामना करना (सीएफटी)/ धन शोधन निवारण (संशोधन) अधिनियम,  2009 द्वारा यथा संशोधित धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत प्राधिकृत व्याक्तियों का दायित्व- मुद्रा परिवर्तन संबंधी गतिविधियां- संदेहास्पद लेनदेन रिपोर्टिंग फॉर्मेट

प्राधिकृत व्यक्तियों का ध्यान 02 दिसंबर 2005 के ए.पी. (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं. 18 (ए.पी. (एफएल सिरीज) परिपत्र सं. 01) के जरिये जारी मुद्रा परिवर्तन संबंधी गतिविधियां शासित करनेवाले प्राधिकृत मुद्रा परिवर्तकों के लिए धन शोधन निवारण दिशा-निर्देशों की ओर आकर्षित किया जाता है ।

2. भारत सरकार ने धन शोधन निवारण (संशोधन) अधिनियम,  2009 (2009 का 21) के जरिये  धन शोधन निवारण  अधिनियम में संशोधन किया है और उक्त संशोधन 1 जून 2009 से लागू किया  है । इस संशोधन ने , अन्य बातों के साथ -साथ,  प्राधिकृत व्यक्तियों को इस अधिनियम की धारा 2(1) के तहत ``वित्तीय संस्थान'' की परिभाषा के भीतर लाया है । तदनुसार, इस अधिनियम की धारा 12 और उसके तहत बनाये गये नियमों के अनुसार, प्राधिकृत व्यक्तियों को  वित्तीय आसूचना इकाई  - इंडिया (एफआइयू-आइएनडी) को निर्धारित फॉर्मेट मे ंजानकारी देना अपेक्षित है  । भारत सरकार ने  अपनी दिनांक 12 नवंबर 2009 की अधिसूचना सं.13/2009/एफ.सं. 6/8/2009-इएस के जरिये धन शोधन निवारण (लेनदेनों के स्वरुप और लागत के अभिलेखों का रखरखाव, रखरखाव की प्रक्रिया और पध्दति तथा जानकारी प्रस्तुत करने  के लिए समय  और बैंकिंग कंपनियों, वित्तीय संस्थानों और मध्यवर्ती संस्थाओं के ग्राहकों की पहचान के अभिलेखों का सत्यापन और रखरखाव) नियम, 2005 में  भी संशोधन किया है । संशोधित अधिसूचना की एक प्रति संलग्नक में दी गयी है (संलग्नक -।) ।

3. तदनुसार, सभी प्राधिकृत व्यक्तियों को सूचित किया जाता है कि वे ऐसे निष्कर्ष, कि प्रयासित लेनदेन सहित लेनदेन , नकद में किये गये अथवा अन्यथा, अथवा अनिवार्यत: जुडी हुई लेनदेन की श्रृंखला संदेहास्पद स्वरुप की है , तक पहुंचने पर सात दिनों के भीतर मुद्रा परिवर्तन संबंधी संदेहास्पद लेनदेन रिपोर्ट (एसटीआर) एफआइयू-आइएनडी को प्रस्तुत करें । संदेहास्पद लेनदेन रिपोर्ट (एसटीआर) के  मैन्युअल और ईलेक्ट्रॉनिक दोनों फॉर्मेटस्  एफआइयू-आइएनडी द्वारा उनकी वेबसाइट  http://fiuindia.gov.in  पर उपलब्ध कराये गये हैं ।

4. निर्धारित किये गये एसटीआर फॉर्मेटस्  प्राधिकृत व्यक्तियों के सभी फ्रेंचाइजीस को भी लागू होंगे और फ्रेंचाइजर की यह सुनिश्चित करने की अकेले  की जिम्मेदारी होगी कि उनके फ्रेंचाइजीस भी उपर्युक्त रिपोर्टिंग आवश्यकताओं का पालन करते हैं।

5. इस परिपत्र में निहित निदेश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999(1999का 42) के खंड 10(4) और खंड 11 (1),  धन शोधन निवारण  अधिनियम, (पीएमएलए),  2002 (यथा संशोधित) और समय समय पर यथा संशोधित धन शोधन निवारण (लेनदेनों के स्वरुप और लागत के अभिलेखों का रखरखाव, रखरखाव की प्रक्रिया और पध्दति तथा जानकारी प्रस्तुत करने  के लिए समय  और बैंकिंग कंपनियों, वित्तीय संस्थानों और मध्यवर्ती संस्थाओं के ग्राहकों की पहचान के अभिलेखों का सत्यापन और रखरखाव) नियम, 2005 के तहत जारी किये गये हैं । दिशा-निर्देशों का अनुपालन न  करने पर  संबंधित अधिनियमों के दंडात्मक प्रावधानों  को लागू किया जाएगा ।

भवदीय

(सलीम गंगाधरन)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक


संलग्नक -।

भारत सरकार
वित्त मंत्रालय
(राजस्व विभाग)

अधिसूचना

नयी दिल्ली, 12 नवंबर 2009

जी.एस.आर. 816 (ई) )-  धन शोधन निवारण  अधिनियम,  2002 (2003 का 15) की धारा 73 की उप- धारा (2) के खंड  (ज), (झ), (ञ) और (त) के साथ पठित धारा 12 और धारा 15 की उप- धारा (1) के खंड (क),(ख) और (ग) द्वारा प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग करते हुए, केंद्र सरकार, भारतीय रिज़र्व बैंक के परामर्श से एतद्द्वारा धन शोधन निवारण (लेनदेनों के स्वरुप और लागत के अभिलेखों का रखरखाव, रखरखाव की प्रक्रिया और पध्दति तथा जानकारी प्रस्तुत करने  के लिए समय  और बैंकिंग कंपनियों, वित्तीय संस्थानों और मध्यवर्ती संस्थाओं के ग्राहकों की पहचान के अभिलेखों का सत्यापन और रखरखाव) नियम, 2005 में  और संशोधन करने के लिए निम्नलिखित नियम बनाता है , अर्थात्:-

1.         (1) ये नियम धन शोधन निवारण (लेनदेनों के स्वरुप और लागत के अभिलेखों का रखरखाव, रखरखाव की प्रक्रिया और पध्दति तथा जानकारी प्रस्तुत करने  के लिए समय  और बैंकिंग कंपनियों, वित्तीय संस्थानों और मध्यवर्ती संस्थाओं के ग्राहकों की पहचान के अभिलेखों का सत्यापन और रखरखाव) संशोधन नियम, 2009 कहलाये जाएंगे ।

(2)        वे सरकारी गज़ट में उनके प्रकाशन की तारीख से लागू होंगे ।

2.         धन शोधन निवारण (लेनदेनों के स्वरुप और लागत के अभिलेखों का रखरखाव, रखरखाव की प्रक्रिया और पध्दति तथा जानकारी प्रस्तुत करने  के लिए समय  और बैंकिंग कंपनियों, वित्तीय संस्थानों और मध्यवर्ती संस्थाओं के ग्राहकों की पहचान के अभिलेखों का सत्यापन और रखरखाव) नियम 2005 में (इसके आगे से मूल नियमावली कहा जायेगा ):-

नियम 2 के उप-नियम (1) में,-

(क) खंड (ग) के बाद, निम्नलिखित खंड  अंत: स्थापित किया जाएगा, अर्थात्:-

` (गक)  `` गैर-लाभकारी संगठन '' का अर्थ  किसी संस्था अथवा संगठन जो किसी न्यास अथवा सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 (1860 का 21) अथवा उसी प्रकार के राज्य कानून के तहत सोसाइटी अथवा कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 25 के तहत पंजीकृत कंपनी  के रुप में पंजीकृत है ;'

(ख) खंड (च) के बाद,  निम्नलिखित खंड अंत: स्थापित किया जाएगा, अर्थात्:-

`(चक )``नियामक '' का अर्थ कोई व्यक्ति अथवा कोई प्राधिकारण अथवा सरकार है, जिसे बैंकिंग कंपनी, वित्तीय संस्थान अथवा मध्यवर्ती संस्था, यथास्थिति,  की गतिविधि को लाइसेंस देने, प्राधिकार देने, पंजीकरण करने , नियमित करने अथवा पर्यवेक्षण करने का  अधिकार हो  ;

(ग) खंड (छ) के लिए, निम्नलिखित खंड प्रतिस्थापित किया जाएगा, अर्थात्:-

`(छ )    ``संदिग्ध लेनदेन '' का अर्थ  खंड (ज) में उल्लिखित  लेनदेन से है  जिसमें नकद अथवा बिना नकदी के अथवा किसी विश्वसनीय व्यक्ति के साथ लेनदेन  करने  की  कोशिश की गई हो शामिल हैं।

(क)      संदेह उत्पन्न होने  का ठोस आधार  हो कि अपराध में निहित आय , उसके  मूल्य पर ध्यान दिये बिना अधिनियम की सारणी में विनिर्दिष्ट प्रक्रिया में शामिल  हो सकती है ; अथवा

(ख)      असामान्य अथवा तर्क से परे परिस्थितियों  में किया गया  प्रतीत होता हो; अथवा

(ग)       कोई आर्थिक औचित्य अथवा वास्तविक प्रयोजन न  दिखायी देता हो; अथवा

(घ)       संदेह उत्पन्न  होने  का ठोस आधार हो कि इसमें आतंकवादी गतिविधियों का  वित्तपोषण शामिल  हो सकता है ।''

3.         मूल नियमों में, नियम 3 में, उप-नियम (1) में, खंड (बी) के बाद, निम्नलिखित खंड अंत:स्थापित  किया जाएगा, अर्थात्:-

`` (बीए) ऐसे सभी लेनदेन जिनमें कि  गैर-लाभकारी संगठनों  द्वारा  दस लाख रुपये अथवा विदेशी मुद्रा में उसके समतुल्य से अधिक लागत की प्राप्तियाँ शामिल हो ''।

4.         मूल नियमों में, नियम 5 में, जहाँ कहीं  ``भारतीय रिज़र्व बैंक अथवा भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड, अथवा बीमा विनियामक विकास प्राधिकरण, यथास्थिति ,''  शब्दों की जगह  ``उसके नियामक'' शब्द रखा जाएगा, अर्थात्:-

5. मूल नियमों में, नियम 3 में, नियम 6 के लिए निम्नलिखित नियम प्रतिस्थापित  किया जाएगा, अर्थात्:-

``6. लेनदेनों के अभिलेखों का प्रतिधारण - नियम 3 में उल्लिखित अभिलेख, ग्राहक और बैंकिंग कंपनी, वित्तीय संस्थान अथवा मध्यवर्ती संस्था, यथास्थिति,  के बीच के लेनदेनों की तारीख से दस वर्षों की अवधि तक रखे जाने चाहिए ।''

6. मूल नियमावली  के नियम 7 में, जहाँ कहीं  ``भारतीय रिज़र्व बैंक अथवा भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड, अथवा बीमा विनियामक विकास प्राधिकरण, यथास्थिति,''आये शब्दों के स्थान पर ``उसके नियामक''शब्द प्रतिस्थापित किये जाएंगे;

7. मूल नियमावली  के नियम 8 में,

(क) उप-नियम(1) में, ``खंड (ए) और (बी) ''  शब्द,कोष्ठकों और अक्षरों के लिए ``खंड (ए) और (बी) और (बीए)''  शब्द,कोष्ठक और अक्षर प्रतिस्थापित किये जाएंगे;

(ख)उप-नियम (3) के बाद, अंत में निम्नलिखित उपबन्ध अंत:स्थापित  किया जाएगा, अर्थात्:-

`` बशर्ते कि बैंकिंग कंपनी, वित्तीय संस्थान अथवा मध्यवर्ती संस्था, यथास्थिति, और उसके कर्मचारी  नियम 3 के उप-नियम(1)के खंड (डी) में संदर्भित लेनदेनों के संबंध में प्रस्तुत की जानेवाली जानकारी के तथ्य अत्यंत गोपनीय रखेंगे ।''

8. मूल नियमावली  के नियम 9 में,

(क) उप-नियम (1) और (2) के स्थान पर निम्नलिखित उप-नियम प्रतिस्थापित किये जाएंगे;अर्थात्:-

`` (1)प्रत्येक बैंकिंग कंपनी, वित्तीय संस्थान अथवा मध्यवर्ती संस्था, यथास्थिति;

(क) किसी के साथ खाता-आधारित संबंध बनाते समय, अपने ग्राहकों की पहचान और उस पहचान का सत्यापन करें तथा व्यवसायिक संबंध के प्रयोजन और उसका इरादा क्या है , इसकी जानकारी प्राप्त करें , और

(ख) अन्य सभी मामलों में,निम्नलिखित कार्य कलापों के समय पहचान पहचान का सत्यापन करें

(i) पचास हजार रुपये के समतुल्य अथवा उससे अधिक राशि का लेनदेन, क्या वह एकल लेनदेन है  अथवा अनेक लेनदेन जो  एक दूसरे से  जुड़े प्तीत होते हैं , अथवा
(ii) कोई अंतरराष्ट्रीय मुद्रा अंतरण गतिविधि

(1क)    प्रत्येक बैंकिंग कंपनी, वित्तीय संस्थान अथवा मध्यवर्ती संस्था, यथास्थिति, लाभप्रद मालिक की पहचान करेगा और उसकी पहचान सत्यापित करने  के लिए  पूरी सावधानी बरतेगा ।

(1बी)    प्रत्येक बैंकिंग कंपनी, वित्तीय संस्थान अथवा मध्यवर्ती संस्था, यथास्थिति, प्रत्येक ग्राहक के साथ व्यावसायिक संबंध के बारे में पूरी जाँच-पड़ताल करती  रहेगी  और यह सुनिश्चित करने के लिए लेनदेनों की गहन जांच करेगी कि  लेनदेन उनके पास  उपलब्ध  ग्राहक  की , उसके व्यवसाय और जोखिम-रुपरेखा  की जानकारी से मेल खाते हैं ।

(1सी)    कोई भी बैंकिंग कंपनी, वित्तीय संस्थान अथवा मध्यवर्ती संस्था, यथास्थिति, कोई गुमनाम खाता अथवा फर्जी ध नाम  वाला खाता नहीं रखेगा ।

(2)        यदि ग्राहक कोई व्यक्ति है तो वह उप-नियम (1) की अपेक्षानुसार,बैंकिंग कंपनी, वित्तीय संस्थान अथवा मध्यवर्ती संस्था, यथास्थिति, को आधिकारिक वैध दस्तावेज  , जिसमें उसकी पहचान और पते के ब्योरे, हाल ही का एक फोटो हो ,की एक प्रमाणित प्रति प्रस्तुत करेगा और बैंकिंग कंपनी, वित्तीय संस्थान अथवा मध्यवर्ती संस्था, यथास्थिति, धद्वारा अपेक्षित  ऐसे ही अन्य दस्तावेज,जिसमें ग्राहक के व्यवसाय का स्वरुप और गाहक की मालियत आदि शामिल हों , प्रस्तुत करेगा ।

किंतु शर्त यह है कि  उप-नियम  (1) के  खंड (ख) के अंतर्गत  आनेवाले ग्राहक द्वारा फोटो प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है ।''

(ख) उप-नियम (6) के बाद, निम्नलिखित उप-नियम अंत:स्थापित किया जाएगा, अर्थात्

``(6ए) यदि ग्राहक कोई न्यायिक व्यक्ति है तो बैंकिंग कंपनी, वित्तीय संस्थान अथवा मध्यवर्ती संस्था, यथास्थिति,  यह सत्यापित करेगी कि इस प्रकार के ग्राहक की ओर से कार्य करने का दावा करनेवाला कोई व्यक्ति ऐसा करने के लिए प्राधिकृत है तथा उस व्यक्ति की पहचान  का सत्यापन  करेगी  ।''

(ग) उप-नियम (7) को  निम्नलिखित उप-नियम  से  प्रतिस्थापित किया जाएगा, अर्थात्

``(7) (i) नियामक , उपर्युक्त (6ए) में उप-नियम (1) की अपेक्षाओं को अंतर्निहित करते हुए दिशा-निर्देश जारी करेगा और ग्राहक कैसा है ,उसके व्यावसायिक संबंध अथवा लेनदेन कैसे है तथा उनकी कीमत  को  ध्यान में  रखते हुए ग्राहक की पहचान सत्यापित करने के लिए निर्धारित उपायों में बढ़ोतरी करेगा।

(ii) प्रत्येक बैंकिंग कंपनी, वित्तीय संस्थान अथवा मध्यवर्ती संस्था, यथास्थिति,अपने ग्राहकों की असली पहचान करने  के लिए  उपर्युक्त (6ए) में उप-नियम (1) और खंड (i) के अंतर्गत जारी दिशा-निर्देशों की अपेक्षाओं को अंतर्निहित करते हुए एक ग्राहक पहचान कार्यक्रम तैयार करेगा और उसे लागू करेगा।

9. मूल नियमों में, नियम 7 में, ``भारतीय रिज़र्व बैंक अथवा भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड, अथवा बीमा विनियामक विकास प्राधिकरण, यथास्थिति'' आये शब्दों की जगह ``उसके विनियामक'' शब्द प्रतिस्थापित किये जाएंगे;

( अधिसूचना सं.13/2009/एफ.सं.6/8/2009-ईएस)

एस.जी.पी. वर्गीज, अवर सचिव

टिप्पणी: मूल विनियमावली 1 जुलाई 2005  को जी.एस.आर.सं. 444 (ई) के जरिये सरकारी राजपत्र  में  भाग ।।, धारा  3, उप-धार (i)में  प्रकाशित   की गयी और तत्पश्चात्    13 दिसंबर 2005 को जी.एस.आर.सं. 717 (ई)  और 24 मई 2007 को  जी.एस.आर.सं. 389 (ई) द्वारा संशोधित की गयी ।

RbiTtsCommonUtility

प्ले हो रहा है
सुनें

संबंधित एसेट

आरबीआई-इंस्टॉल-आरबीआई-सामग्री-वैश्विक

RbiSocialMediaUtility

आरबीआई मोबाइल एप्लीकेशन इंस्टॉल करें और लेटेस्ट न्यूज़ का तुरंत एक्सेस पाएं!

Scan Your QR code to Install our app

RbiWasItHelpfulUtility

क्या यह पेज उपयोगी था?