अपने ग्राहक को जानिये (केवाइसी) मापदंड/धन शोधन निवारण (एएमएल) मानक/आतंकवाद के वित्तपोषण का प्रतिरोध (सीएफटी) करने / धन शोधन निवारण (संशोधन) अधिनियम, 2009 द्वारा यथा संशोधित धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत प्राधिकृत व्याक्तियों का दायित्व- धन अंतरण सेवा योजना (एमटी - आरबीआई - Reserve Bank of India
अपने ग्राहक को जानिये (केवाइसी) मापदंड/धन शोधन निवारण (एएमएल) मानक/आतंकवाद के वित्तपोषण का प्रतिरोध (सीएफटी) करने / धन शोधन निवारण (संशोधन) अधिनियम, 2009 द्वारा यथा संशोधित धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत प्राधिकृत व्याक्तियों का दायित्व- धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस) के तहत सीमापार आवक प्रेषण
भारिबैंक/2009-10/236 27 नवंबर 2009 सेवा में सभी प्राधिकृत व्यक्ति, जो मुद्रा अंतरण सेवा योजना के तहत भारतीय एजेंट हैं महोदया/महोदय अपने ग्राहक को जानिये (केवाइसी) मापदंड/धन शोधन निवारण (एएमएल) मानक/आतंकवाद के वित्तपोषण का प्रतिरोध (सीएफटी) करने / धन शोधन निवारण (संशोधन) अधिनियम, 2009 द्वारा यथा संशोधित धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत प्राधिकृत व्याक्तियों का दायित्व- धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस) के तहत सीमापार आवक प्रेषण सभी प्राधिकृत व्यक्तियों, जो धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस) के तहत भारतीय एजेंट हैं, का ध्यान धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस) पर 04 जून 2003 की अधिसूचना और विदेशी नियंत्रक कार्यालय के साथ तालमेल व्यवस्था के जरिये भारत में आवक सीमापार धन अंतरण गतिविधियां करने के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा फेमा, 1999 के तहत उन्हें प्रदान की गयी विशिष्ट अनुमति की ओर आकर्षित किया जाता है । 2. धन शोधन निवारण (संशोधन) अधिनियम, 2009 द्वारा यथा संशोधित धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के अनुसार, विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम,1999 के खंड 10 (1) के तहत प्राधिकृत सभी प्राधिकृत व्यक्तियों को धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 की सीमा में लाया गया है । अत: धन शोधन निवारण (एएमएल) मानकों पर/आतंकवाद के वित्तपोषण का प्रतिरोध करने (सीएफटी)पर वित्तीय कार्रवाई कृतीदल (एफएटीएफ) की सिफारिशों के संदर्भ में सीमापार आवक धनप्रेषण गतिविधियों के संबंध में अपने ग्राहक को जानिये (केवाइसी) मापदंड/धन शोधन निवारण (एएमएल)मानक/आतंकवाद के वित्तपोषण का प्रतिरोध करने (सीएफटी) पर विस्तृत अनुदेश निर्धारित किये गये हैं । 3. तदनुसार, धन शोधन निवारण (संशोधन) अधिनियम, 2009 द्वारा यथा संशोधित धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत प्राधिकृत व्यक्तियों के दायित्व पर दिशा-निर्देश संलग्नक -। में दिये गये हैं । अत: सभी प्राधिकृत व्यक्ति अपने बोर्ड के अनुमोदन के साथ अपने ग्राहक को जानिये (केवाइसी) मापदंड/धन शोधन निवारण (एएमएल) मानक/आतंकवाद के वित्तपोषण का प्रतिरोध (सीएफटी) करने के उपायों पर एक यथोचित नीतिगत रुपरेखा तैयार करें। 4. ये दिशा-निर्देश धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस) के तहत भारतीय एजेंटों के सभी उप-एजेंटों को यथोचित परिवर्तनों सहित लागू होंगे और प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) की यह सुनिश्चित करने की स्वयं की जिम्मेदारी होगी कि उनके उप-एजेंट भी इन दिशा-निर्देशों का ठीक से पालन करते हैं। 5. प्राधिकृत व्यक्ति इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने संबंधित घटकों को अवगत करा दें । 6. इस परिपत्र में निहित निर्देश, विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999(1999का 42) के खंड 10(4) और खंड 11 (1), और धन शोधन निवारण (संशोधन) अधिनियम, 2009 द्वारा यथा संशोधित धन शोधन निवारण अधिनियम, (पीएमएलए), 2002 और समय- समय पर यथा संशोधित धन शोधन निवारण (लेनदेनों के स्वरुप और लागत के अभिलेखों का रखरखाव, रखरखाव की प्रक्रिया और पद्धति तथा जानकारी प्रस्तुत करने के लिए समय और बैंकिंग कंपनियों, वित्तीय संस्थानों और मध्यवर्ती संस्थाओं के ग्राहकों की पहचान के अभिलेखों का सत्यापन और रखरखाव) नियम, 2005 के तहत जारी किये गये हैं । दिशा-निर्देशों का अनुपालन न करने से संबंधित अधिनियमों अथवा उसके तहत बनाये गये नियमों के दंडात्मक प्रावधानों को लागू किया जाएगा । भवदीय (सलीम गंगाधरन) (संलग्नक -।) अपने ग्राहक को जानिये (केवाइसी) मापदंड/धन शोधन निवारण (एएमएल) मानक/आतंकवाद के वित्तपोषण का प्रतिरोध (सीएफटी)करने / धन शोधन निवारण (संशोधन) अधिनियम, 2009 द्वारा यथा संशोधित धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत प्राधिकृत व्याक्तियों का दायित्व- धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस) के तहत सीमापार आवक प्रेषण प्रस्तावना धन शोधन का अपराध, धनशोधन निवारण अधिनियम,2002 (पीएमएलए) की धारा 3 में "जो कोई अपराध की प्रक्रिया के साथ जुड़ी किसी क्रियाविधि अथवा गतिविधि में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष शामिल होने का प्रयास करता है अथवा जानबूझकर सहायता करता है अथवा जानबूझकर कोई पार्टी है अथवा वास्तविक रूप से शामिल है और उसे बेदाग संपत्ति के रूप में प्रक्षेपित करता है वह धन शोधन के अपराध का दोषी होगा" इस प्रकार परिभाषित किया गया है । धन शोधन ऐसी प्रक्रिया कही जा सकती है जिसमें मुद्रा अथवा अन्य परिसंपत्तियां अपराध के आगम के रूप में प्राप्त की गयी है, जो "बेजमानती मुद्रा " के लिए विनिमय की जाती है अथवा उनके आपराधिक मूल से कोई स्पष्ट संबंध नहीं है ऐसी अन्य परिसंपत्तियां हैं । धन शोधन अपराध के तीन चरण हैं जिसके दौरान अपराधकर्ताओं द्वारा बहुत से लेनदेन किये जा सकते हैं, जो आपराधिक गतिविधि से संस्था को सावधान कर सकते हैं। नियोजन - अवैध गतिविधि से प्राप्त नकद राशि का वास्तविक निपटान । लेयरिंग - लेखा-परीक्षा जांच के दौरान छद्मवेष धारण करने और गुमनाम होने के लिए इस प्रकार किये गये वित्तीय लेनदेन के जटिल स्तर निर्माण करते हुए अपने स्त्रोतों से अवैध राशि अलग करना । समाकलन - आपराधिक रूप से प्राप्त संपत्ति को आभासी वैधता देना । यदि लेयरिंग प्रक्रिया सफल होती है तो समाकलन योजना से आपराधिक रूप से प्राप्त राशि अर्थव्यवस्था में इस प्रकार फिर से लायी जाती है कि वे सामान्य व्यवसाय निधि के रूप में दर्शाते हुए वित्तीय प्रणाली में पुन: प्रवेश करते हैं । उद्देश्य अपने ग्राहक को जानिये (केवाइसी)/धन शोधन निवारण (एएमएल)/आतंकवाद के वित्तपोषण का प्रतिरोध (सीएफटी) करने संबंधी दिशा-निर्देश निर्धारित करने का उद्देश्य आपराधिक घटकों से काले धन शोधन अथवा आतंकवाद वित्तपोषण गतिविधियों के लिए जानबूझकर अथवा अनजाने में अपनायी जानेवाली धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस) के तहत पूरे विश्वभर से भारत में सीमापार अवक मुद्रा अंतरण की पद्धति को रोकना है । अपने ग्राहक को जानिये (केवाइसी) क्रियाविधि से प्राधिकृत व्यक्ति, जो धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस) के तहत भारतीय एजेंट है (अब इसके बाद प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंट) के रूप में उल्लिखित है), अपने ग्राहकों तथा उनके वित्तीय व्यवहारों को बेहतर जान/समझ सकेंगे, जिससे वे अपना जोखिम प्रबंधन विवेकपूर्ण तरीके से कर सकेंगे । 3.धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस) 3.1 (क) धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस), विदेश से भारत में लाभार्थियों को वैयक्तिक प्रेषण अंतरित करने का यह एक शीघ्र और आसान तरीका है । वैयक्तिक प्रेषण के अंतर्गत केवल परिवार भरण-पोषण तथा भारत का दौरा करनेवाले विदेशी पर्यटकों के लिए अनुमोदित प्रेषण ही अनुमत हैं । यह प्रणाली विदेश की धन अंतरण प्रख्यात कंपनियाँ (विदेशी नियंत्रक कार्यालय) तथा प्राधिकृत व्यक्तियाँ (भारतीय एजेंट), जो चालू विनिमय दरों पर लाभार्थियों को निधि वितरित करती हैं, के बीच की एक ताल-मेल व्यवस्था संबंधी विचार करती है । यह प्रणाली कोई बाह्य प्रेषण अनुमत नहीं करती है । ख) धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस) के तहत लेनदेन की प्रमुख विशेषताएं निम्नानुसार हैं : i) धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस) के तहत सीमापार आवक प्रेषण की प्राप्ति, प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंट) और भारत में उनके उप-एजेंट के किसी आउटलेट में लाभाधिकारी व्यक्ति को धन की राशि उपलब्ध करने की दृष्टि से इलेक्ट्रॉनिक साधनों के जरिये विदेश में स्थित किसी समुद्रपारीय नियंत्रक कार्यालय के माध्यम से किसी धन प्रेषक की ओर से किया गया लेनदेन है । धन प्रेषक और लाभाधिकारी एक ही व्यक्ति हो सकता है। ii) विदेशी प्रेषणकर्ता धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस) के तहत प्रेषण के लिए समुद्रपारीय नियंत्रक कार्यालय के पास आदेश देते हैं। ग) धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस) तात्कालिक है और विश्व भर में से निधियों के सीमापार आवक अंतरण के लिए मार्गों में से एक है। आतंकवादियों तथा अन्य अपराधियों को उनके निधियों के अंतरण के लिए इस चैनल का उन्मुक्त उपयोग करने देने से रोकने और जब यह लेनदेन किया जाता है तो उसके दुरुपयोग का पता लगाने की अति आवश्यकता है । यह तब प्राप्त हो सकता है जब धन प्रेषक की आधारभूत जानकारी जाँच करने, अभियोजन में तथा उनकी आस्तियों का पता लगाने में यथोचित् कानून लागू करनेवाले और/अथवा अभियोजक प्राधिकारियों को सहायता करने के लिए उनके पास तुरंत उपलब्ध हो जिससे कि आतंकवादियों एवं अन्य अपराधियों को दंडित किया जा सके। यह जानकारी वित्तीय आसूचना ईकाई-भारत (एफआइयु-आइएनडी) द्वारा संदेहास्पद अथवा असामान्य गतिविधि का विश्लेषण करने और आवश्यक हो तो प्रसारित करने के लिए उपयोग की जा सकती है । प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंट) द्वारा धन प्रेषक की जानकारी का उपयोग संदेहास्पद लेनदेनों को पहचानने तथा वित्तीय आसूचना ईकाई-भारत (एफआइयु-आइएनडी) को उसकी रिपोर्टिंग के लिए भी उपयोग किया जा सकता है । छोटे अंतरणों द्वारा प्रतिपादित किये गये संभाव्य आतंकवादी वित्तपोषण भय के कारण इसका उद्देश्य सभी आवक धनप्रेषणों का धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस) के तहत पता लगाने की स्थिति में होना आवश्यक है। तदनुसार, प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंट) को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस) के तहत सभी धनप्रेषणों के साथ निम्नलिखित जानकारी दी जाती है : " धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस) के तहत सभी सीमापार आवक धन प्रेषणों के साथ निधियों को अंतरित करने और भेजे गये संबंधित संदेशों पर धन प्रेषक की सही और अर्थपूर्ण जानकारी (नाम, पता और एमटीसीएन जैसे प्रत्येक धन प्रेषण की विशिष्ट (युनिक) पहचान संख्या ) होनी चाहिए तथा भुगतान शृंखला के जरिये अंतरण अथवा संबंधित संदेश के साथ जानकारी होनी चाहिए । संबंधित देश में यथा लागू एक विशिष्ट (युनिक) संदर्भ संख्या का समावेश अवश्य होना चाहिए । " 3.2 विदेशी नियंत्रक कार्यालय और भारतीय एजेंट की भूमिका (क) विदेशी नियंत्रक कार्यालय विदेशी नियंत्रक कार्यालय जो धन प्रेषक द्वारा दिये गये आदेश के अनुसार भारत में सीमापार आवक धन प्रेषित करने का कार्य शुरू करता है । विदेशी नियंत्रक कार्यालय ने यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी आवक धनप्रेषणों में धन प्रेषक की पूर्ण जानकारी दी गई है । विदेशी नियंत्रक कार्यालय को सत्यापन करना चाहिए और उक्त जानकारी न्यूनतम दस वर्षों की अवधि तक परिरक्षित करनी चाहिए । (ख) भारतीय एजेंट भारतीय एजेंटों के पास सीमापार आवक धन प्रेषण में धन प्रेषक की पूर्ण जानकारी में कमी पहचानने के लिए जोखिम-आधारित प्रभावी क्रियाविधि होनी चाहिए । धन प्रेषक की पूर्ण जानकारी में कमी, सीमापार आवक धन प्रेषण अथवा संबंधित लेनदेन संदेहास्पद है अथवा नहीं और वे वित्तीय आसूचना ईकाई-भारत (एफआइयु-आइएनडी) को रिपोर्ट किये गये अथवा नहीं इस जानकारी को बहुत महत्वपूर्ण कारक के रूप में लेना चाहिए। यदि धन प्रेषण के साथ धन प्रेषक की विस्तृत जानकारी नहीं होती है तो भारतीय एजेंट को उक्त मामला विदेशी नियंत्रक कार्यालय के साथ उठाना चाहिए । यदि विदेशी नियंत्रक कार्यालय धन प्रेषक की जानकारी प्रस्तुत करने में असफल होता है तो भारतीय एजेंट को आवक धन प्रेषण पर प्रतिबंध लगाने अथवा विदेशी नियंत्रक कार्यालय के साथ अपने व्यवसाय संबंध समाप्त करने पर भी विचार कर सकता है। भारतीय एजेंटों ने, धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस) के तहत तालमेल व्यवस्था के संबंध में, सामान्य यथोचित सावधानी उपाय बरतने के अतिरिक्त निम्नलिखित उपाय भी करने चाहिए: i) विदेशी नियंत्रक कार्यालय के संबंध में उनके व्यवसाय का स्वरूप पूर्णत: समझने के लिए पर्याप्त जानकारी जमा करना तथा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी से संस्था की प्रतिष्ठा तथा यह कि क्या धन शोधन अथवा आतंकवादी वित्तपोषण जाँच अथवा नियामक कार्रवाई की शर्त पर की गई है सहित पर्यवेक्षण की योग्यता निर्धारित करना। ii) संबंधित कागजात जमा करना और विदेशी नियंत्रक कार्यालय के धन शोधन तथा आतंकवादी वित्तपोषण नियंत्रण निर्धारित करना । iii) विदेशी नियंत्रक कार्यालय के साथ तालमेल व्यवस्था करने से पहले वरिष्ठ प्रबंधन का अनुमोदन प्राप्त करना । iv) प्रत्येक संस्था की संबंधित जिम्मेदारियों का प्रलेखन । 4. ग्राहक की परिभाषा अपने ग्राहक को जानिये (केवाइसी) नीति के प्रयोजन के लिए ग्राहक को निम्नानुसार पारिभाषित किया जाता है : कोई व्यक्ति जो धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस) के तहत कभी-कभी/नियमित सीमापार धनप्रेषण प्राप्त करता है ; कोई एक जिसकी ओर से धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस) के तहत सीमापार आवक धनप्रेषण प्राप्त करता है (अर्थात् हिताधिकारी स्वामी) । 5. दिशा-निर्देश 5.1 सामान्य प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) को यह ध्यान में रखना चाहिए कि सीमापार आवक धनप्रेषण करते समय ग्राहकों से जमा की गयी जानकारी गोपनीय रखी जानी चाहिए और उसके ब्योरे प्रति बिक्री अथवा उसके जैसे किसी अन्य प्रयोजन के लिए व्यक्त नहीं किये जाने चाहिए। अत: प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ग्राहक से मांगी गयी जानकारी ज्ञात जोखिम से संबंधित है एवं वह अनुचित नहीं है और इस संबंध में जारी किये गये दिशा-निर्देशों के अनुसार है। जहाँ कहीं आवश्यक हो ग्राहक से अपेक्षित कोई अन्य जानकारी उसकी सहमति से अलग से माँगी जानी चाहिए । 5.2 अपने ग्राहक को जानिये नीति प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) को अपनी "अपने ग्राहक को जानिये नीति" निम्नलिखित चार मुख्य घटकों को अंतर्निहित करते हुए बनानी चाहिए : क) ग्राहक स्वीकृति नीति; 5.3 ) ग्राहक स्वीकृति नीति (सीएपी) क) प्रत्येक प्राधिकृत व्यक्ति (भारतीय एजेंट) को ग्राहकों की स्वीकृति के लिए सुनिश्चित मापदंड निर्धारित करते हुए एक स्पष्ट ग्राहक स्वीकृति नीति विकसित करनी चाहिए । ग्राहक स्वीकृति नीति में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्राधिकृत व्यक्ति (भारतीय एजेंट) के साथ ग्राहक की रिश्तेदारी के निम्नलिखित पहलुओं पर सुनिश्चित दिशा-निर्देश दिये गये हैं । अज्ञातनाम अथवा काल्पनिक /बेनामी नाम (नामों ) से कोई धनप्रेषण प्राप्त नहीं किया जाता है । ii) जोखिम अवधारणा के मापदंड, व्यवसाय गतिविधि का स्वरुप, ग्राहक और उसके मुवक्किल का स्थान, भुगतान का तरीका, टर्नओवर की मात्रा, सामाजिक और वित्तीय स्थिति, आदि के अनुसार स्पष्ट रुप से परिभाषित किये गये हैं, जिससे ग्राहकों को निम्न, मध्यम और उच्च जोखिम में वर्गीकृत किया जा सकें (प्राधिकृत व्यक्ति कोई यथोचित नामपध्दति अर्थात् स्तर ।,स्तर।। और स्तर।।। पसंद कर सकते हैं )। ऐसे ग्राहक,अर्थात् पोलिटिकली एक्सपोज्ड पर्सन (पीइपीएस) जिनके लिए उच्च स्तर की मॉनिटरिंग की आवश्यकता है, अधिक उच्चतर श्रेणी में भी वर्गीकृत किये जा सकते हैं । iii) आवश्यक कागजात और सौंपी गयी जोखिम और धन शोधन निवारण अधिनियम, (पीएमएलए), 2002 और समय समय पर यथा संशोधित धन शोधन निवारण अधिनियम, (पीएमएलए), 2009, धन शोधन निवारण (लेनदेनों के स्वरुप और लागत के अभिलेखों का रखरखाव, रखरखाव की प्रक्रिया और पद्धति तथा जानकारी प्रस्तुत करने के लिए समय और बैंकिंग कंपनियों, वित्तीय संस्थानों और मध्यवर्ती संस्थाओं के ग्राहकों की पहचान के अभिलेखों का सत्यापन और रखरखाव) नियम, 2005 की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए निर्धारित ग्राहकों के विभिन्न श्रेणियों के संबंध में प्राप्त की जानेवाली अन्य जानकारी तथा इसके साथ-साथ समय समय पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी अनुदेश/दिशा-निर्देश का पालन होना चाहिए। iv) जिन मामलों में प्राधिकृत व्यक्ति (भारतीय एजेंट) यथोचित् ग्राहक सावधानी उपाय लागू नहीं कर सकता अर्थात् प्राधिकृत व्यक्ति (भारतीय एजेंट) पहचान सत्यापित नहीं कर सकता है और / अथवा ग्राहक के असहकार अथवा प्राधिकृत व्यक्ति को प्रस्तुत किये गये आँकड़े/जानकारी की अविश्वसनीयता के कारण जोखिम वर्गीकरण के अनुसार आवश्यक दस्तावेज प्राप्त नहीं कर सकता है तो ऐसे मामलों में किसी धनप्रेषण का भुगतान नहीं किया जाना चाहिए। तथापि, यह आवश्यक है कि ग्राहक को होनेवाली परेशानी टालने के लिए यथोचित् नीति बनायी जाए । v) जिस स्थिति में ग्राहक को दूसरी व्यक्ति/संस्था की ओर से कार्य करने की अनुमति दी जाती है उस स्थिति का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए, लाभाधिकारी स्वामी की पहचान की जानी चाहिए और उसकी पहचान के सत्यापन के लिए सभी संभव कदम उठाये जाने चाहिए । ख) प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) ने जब नियमित सीमापार आवक धनप्रेषण प्राप्त किये जाते हैं/अपेक्षित होते हैं तब जोखिम वर्गीकरण के आधार पर प्रत्येक नये ग्राहक का प्रोफाइल बनाना चाहिए । ग्राहक प्रोफाइल में ग्राहक की पहचान, उसकी सामाजिक /वित्तीय स्थिति संबंधी जानकारी आदि निहित होनी चाहिए । यथोचित सावधानी का स्वरुप और सीमा प्राधिकृत व्यक्ति (भारतीय एजेंट) द्वारा सौंपी गयी जोखिम संबंधी जानकारी पर आधारित होंगी । तथापि, ग्राहक प्रोफाइल तैयार करते समय प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) ने ग्राहक से केवल वहीं जानकारी मांगने पर ध्यान देना चाहिए जो जोखिम की श्रेणी से संबंधित है न कि हस्तक्षेप करनेवाली। ग्राहक प्रोफाइल एक गोपनीय दस्तावेज है और उसमें निहित ब्योरे आदान-प्रदान अथवा किसी अन्य प्रयोजन के लिए व्यक्त नहीं किये जाने चाहिए । ग) जोखिम वर्गीकरण के प्रयोजन के लिए, ऐसे व्यक्तिविशेष (उच्च निवल मालियत से अन्य) और संस्थाएं, जिनकी पहचान और संपत्ति के स्त्रोत आसानी से जाने जा सकते हैं और सब मिलाकर जिनके द्वारा किये गये लेनदेन ज्ञात प्रोफाइल के अनुरुप हैं, उन्हें निम्न जोखिम के रूप में वर्गीकृत किया जाए । ऐसे ग्राहक, जो औसतन जोखिम से उच्चतर जोखिमवाले प्रतीत होते हैं, उन्हें ग्राहक की पृष्ठभूमि, गतिविधि का स्वरुप और स्थान, मूल देश, निधियों के स्त्रोत और उसके मुवक्किल के प्रोफाइल, आदि के आधार पर मध्यम अथवा उच्च जोखिम के रूप में वर्गीकृत किया जाए । प्राधिकृत व्यक्तियों को जोखिम निर्धारण पर आधारित वृद्धिंगत किये गये यथोचित् सावधानी के उपाय लागू करने चाहिए, जिसके लिए उच्चतर जोखिम ग्राहकों , विशेषत: जिनके निधियों के स्त्रोत ही स्पष्ट नहीं हैं ,के संबंध में गहन यथोचित सावधानी की आवश्यकता होगी । वृद्धिंगत की गयी अपेक्षित यथोचित सावधानीवाले ग्राहकों के उदाहरण में (क) अनिवासी ग्राहक;(ख) ऐसे देशों के ग्राहक जो वित्तीय कार्रवाई कृतीदल मानक लागू नहीं करते हैं अथवा अपर्याप्त रुप से लागू करते हैं ; (ग) उच्च निवल मालियत व्यक्तिविशेष; (घ) राजनयिक (पोलिटिकली एक्सपोज्ड पर्सन) (पीईपी);(ड.) सामने न होनेवाले ग्राहक; और (च) उपलब्ध आम जानकारी के अनुसार सन्दिग्ध प्रतिष्ठा वाले ग्राहक, आदि शामिल हैं । (घ) यह बात ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है कि ग्राहक स्वीकृति नीति अपनाना तथा उसका कार्यान्वयन करना अत्यंत नियामक नहीं होना चाहिए और आम जनता को सीमापार आवक धनप्रेषण सुविधाओं से नकारा नहीं जाना चाहिए । 5.4 ग्राहक पहचान प्रक्रिया (सीआइपी) क) प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) के बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति में लाभार्थी को भुगतान करते अथवा प्राधिकृत व्यक्ति को पूर्व में प्राप्त ग्राहक पहचान संबंधी आंकड़ो की प्रामाणिकता/यथातथ्यता अथवा पर्याप्तता के बारे में संदेह है तो ग्राहक पहचान प्रक्रिया स्पष्ट रूप से तैयार की जानी चाहिए । ग्राहक पहचान का अर्थ ग्राहक को पहचानना और विश्वसनीय, स्वतंत्र स्त्रोत दस्तावेज, आंकड़े अथवा जानकारी का उपयोग करते हुए उनकी पहचान सत्यापित करना है। प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) को उनकी संतुष्टि होने तक प्रत्येक नये ग्राहक की पहचान स्थापित करने के लिए पर्याप्त आवश्यक जानकारी प्राप्त करने की आवश्यकता है भले ही संबंध नियमित अथवा प्रासंगिक हो। संतुष्ट होने का अर्थ है कि प्राधिकृत व्यक्ति सक्षम प्राधिकारियों को इस बात से संतुष्ट करा सकें कि मौजूदा दिशा-निर्देशों के अनुसार ग्राहक की जोखिम प्रोफाइल के आधार पर यथोचित सावधानी बरती गयी थी । इस प्रकार जोखिम आधारित दृष्टिकोण प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) को असमानुपातिक लागत और ग्राहकों के लिए भारी व्यवस्था टालने के लिए लिए आवश्यक है । प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंट) ने ग्राहक की पहचान करने तथा उसके पते/स्थान का सत्यापन करने के लिए पर्याप्त पहचान आँकडें प्राप्त करने चाहिए। ऐसे ग्राहकों के लिए जो साधारण व्यक्ति है , प्राधिकृत व्यक्तियों को ग्राहक की पहचान और उसके पते / स्थान का सत्यापन करने के लिए पर्याप्त पहचान दस्तावेज प्राप्त करने चाहिए । ऐसे ग्राहकों के लिए जो विधिक व्यक्तिविशेष हैं , प्राधिकृत व्यक्ति (भारतीय एजेंट) को (i) यथोचित और संबंधित दस्तावेजों के जरिये विधिक व्यक्ति की विधिक स्थिति सत्यापित करनी चाहिए; (ii) विधिक व्यक्ति की ओर से कार्य करनेवाला कोई व्यक्ति ऐसा करने के लिए प्राधिकृत है तथा उस व्यक्ति की पहचान पहचाननी तथा सत्यापित करनी चाहिए; और (iii) ग्राहक का स्वामित्व और नियंत्रण संरचना समझनी चाहिए और निर्धारित करना चाहिए कि साधारण व्यक्ति कौन हैं जो विधिक व्यक्ति का आखिरकार नियंत्रण करता है । प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) के दिशा-निर्देश के लिए कुछ विशिष्ट मामलों के संबंध में ग्राहक पहचान अपेक्षाएं, विशेषत:, विधिक व्यक्तियों , जिनके बारे में और अधिक सतर्कता की आवश्यकता है , नीचे पैराग्राफ 5.5 में दी गयी है । तथापि, प्राधिकृत व्यक्ति(भारतीय एजेंट), ऐसे व्यक्तियों के साथ कार्य करते समय आये हुए उनके अनुभव, उनके सामान्य विवेक और स्थापित परंपराओं के अनुसार विधिक अपेक्षाओं के आधार पर अपने निजी आंतरिक दिशा-निर्देश तैयार करें । यदि प्राधिकृत व्यक्ति (भारतीय एजेंट) ऐसे लेनदेन ग्राहक स्वीकृति नीति के अनुसार करना निर्धारित करता है तो प्राधिकृत व्यक्ति(भारतीय एजेंट) को लाभार्थी स्वामी (स्वामियों ) की पहचान करने के लिए यथोचित उपाय करने चाहिए तथा उसकी पहचान सत्यापित करने के लिए सभी उचित कदम उठाने चाहिए । ख) कुछ नजदीकी रिश्तेदारों को, अर्थात् पत्नी, पुत्र, कन्या और माता-पिता, आदि जो उनके पति, पिता/माता और पुत्र, जैसी भी स्थिति हो, के साथ रहते हैं, तो प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) के साथ लेनदेन करना कठिन हो सकता है क्योंकि पते के सत्यापन के लिए आवश्यक उपयोगिता बिल उनके नाम में नहीं है । यह स्पष्ट किया जाता है कि ऐसे मामलों में प्राधिकृत व्यक्ति(भारतीय एजेंट), भावी ग्राहक जिस रिश्तेदार के साथ रहता है उससे इस घोषणापत्र के साथ कि लेनदेन करने के लिए इच्छुक व्यक्ति वही व्यक्ति (भावी ग्राहक) है तथा वह उनके साथ रहता है, उसके पहचान दस्तावेज और उपयोगिता बिल प्राप्त कर सकते हैं । प्राधिकृत व्यक्ति (भारतीय एजेंट) पते के और सत्यापन के लिए डाक द्वारा प्राप्त पत्र जैसी अनुपूरक साक्ष्य का उपयोग कर सकते हैं । इस विषय पर शाखाओं को परिचालनगत अनुदेश जारी करते समय, प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) ने रिज़र्व बैंक द्वारा जारी अनुदेशों का भाव ध्यान में रखना चाहिए और ऐसे व्यक्तियों, जो अन्यथा कम जोखिमवाले ग्राहकों के रूप में वर्गीकृत किये गये हैं, को होनेवाली अनावश्यक कठिनाइयों को टालना चाहिए । ग) प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) ने, यदि कारोबारी संबंध बने रहते है तो ग्राहक पहचान डाटा आवधिक रूप से अद्यतन करने की एक प्रणाली बनानी चाहिए । घ) ग्राहक पहचान के लिए जिन कागजातों/जानकारी पर विश्वास किया जाना चाहिए, उनके प्रकार और स्वरुप की एक निर्देशक सूची इस परिपत्र के संलग्नक ।। में दी गयी है । यह स्पष्ट किया जाता है कि संलग्नक ।। में उल्लिखित सही स्थायी पते का अर्थ है कि व्यक्ति सामान्यत: उस पते पर रहता है और ग्राहक के पते के सत्यापन के लिए प्राधिकृत व्यक्ति द्वारा उपयोगिता बिल अथवा स्वीकृत कोई अन्य कागजात में उल्लिखित पते के रूप में लिया जा सकता है । ङ) लाभार्थियों को भुगतान लाभार्थियों को भारतीय रुपयों में भुगतान के लिए इस परिपत्र के संलग्नक ।। में उल्लेख किये गये अनुसार, पहचान कागजातों का सत्यापन किया जाए तथा उसकी एक प्रति रखी जाए ।
5.5 ग्राहक पहचान अपेक्षाएं- राजनयिकों (पोलिटिकली एक्स्पोजड़् पर्सन्स )(पीइपी) द्वारा लेनदेन- निर्देशात्मक दिशा-निर्देश राजनयिक व्यक्ति वे है जिन्हें विदेशी मुद्रा के संबंध में प्रमुख सार्वजनिक कार्य सौंपे गये हैं अर्थात् राज्यों अथवा सरकारों के प्रमुख, वरिष्ठ राजनयिक, वरिष्ठ सरकारी/न्यायिक/सेना अधिकारी,सरकारी स्वामित्ववाले निगमों के वरिष्ठ कार्यकारी अधिकारी, महत्वपूर्ण राजनयिक पार्टी के अधिकारी , आदि । प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) ने लेनदेन करने अथवा व्यवसाय संबंध स्थापित करने के इच्छुक श्रेणी के किसी व्यक्ति/ग्राहक की पर्याप्त जानकारी प्राप्त करनी चाहिए और उस व्यक्ति की पब्लिक डोमेन पर उपलब्ध सभी जानकारी की जांच करनी चाहिए । प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) ने उस व्यक्ति की पहचान सत्यापित करनी चाहिए और ग्राहक के रूप में राजनयिकों को स्वीकृत करने से पहले संपत्ति के स्त्रोतों और निधियों के स्त्रोतों के बारे में जानकारी मांगनी चाहिए। राजनयिकों के साथ लेनदेन करने का निर्णय वरिष्ठ स्तर पर लिया जाना चाहिए और ग्राहक स्वीकृति नीति में उसका उल्लेख स्पष्ट रूप से करना चाहिए । प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) को ऐसे लेनदेनों पर लगातार निगरानी रखनी चाहिए । उपर्युक्त मानदंड राजनयिकों के परिवार के सदस्यों अथवा नजदीकी रिश्तेदारों के साथ के लेनदेनों के लिए भी लागू किये जाएं । उपर्युक्त मानदंड ऐसे ग्राहकों को भी लागू किये जाएं जो व्यवसाय संबंध स्थापित करने के लिए राजनयिकों के उत्तराधिकारी है । 5.6 लेनदेनों की निगरानी अपने ग्राहक को जानिये की प्रभावी क्रियाविधि का अत्यंत आवश्यक घटक सतत निगरानी रखना है । प्राधिकृत व्यक्ति (भारतीय एजेंट) अपनी जोखिम केवल तभी प्रभावी रूप से नियंत्रित और कम कर सकेंगे जब उन्हें लाभार्थी के धनप्रेषण की सामान्य और यथोचित प्राप्तियों(आय) के संबंध में जानकारी होगी और उनके पास ऐसी आय की पहचान करने के लिए साधन उपलब्ध होंगे जो कार्यकलाप के नियमित पैटर्न से अलग है । तथापि, निगरानी की सीमा धनप्रेषण की जोखिम संवेदनशीलता पर निर्भर होंगी । प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) को सभी जटिल, असामान्यत: बड़ी आय और सभी असामान्य पैटर्न पर विशेष ध्यान देना चाहिए जिनका कोई प्रत्यक्ष आर्थिक और प्रत्यक्ष वैध प्रयोजन नहीं है । प्राधिकृत व्यक्ति(भारतीय एजेंट) आय की विशिष्ट श्रेणी के लिए प्रारंभिक सीमा निर्धारित करें और इन सीमाओं से अतिरिक्त आय पर विशेष रूप से ध्यान दें । उच्च-जोखिम प्राप्तियाँ(आय), गहन निगरानी की शर्त पर होनी चाहिए । प्रत्येक प्राधिकृत व्यक्ति (भारतीय एजेंट) को ग्राहक की पृष्ठभूमि जैसे मूल देश, निधियों के स्त्रोत, निहित लेनदेनों के प्रकार और अन्य जोखिम घटक ध्यान में लेते हुए ऐसी आय के लिए 'मूल संकेतक' (की इंडिकेटर्स) निर्धारित करने चाहिए । प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) को ग्राहकों के जोखिम वर्गीकरण की आवधिक पुनरीक्षा और बढ़े हुए यथोचित सावधानी उपाय लागू करने की आवश्यकता संबंधी एक प्रणाली बनानी चाहिए । ग्राहकों के जोखिम वर्गीकरण की पुनरीक्षा आवधिक रूप से की जानी चाहिए । 5.7 प्रत्यासित लेनदेन जब प्राधिकृत व्यक्ति (भारतीय एजेंट) ग्राहक द्वारा जानकारी प्रस्तुत न किये जाने और / अथवा सहयोग न दिये जाने के कारण यथोचित् अपने ग्राहक को जानिये उपाय लागू नहीं कर सकते हैं तब प्राधिकृत व्यक्तियों को लेनदेन नहीं करने चाहिए। ऐसी स्थितियों में , प्राधिकृत व्यक्तियों को ग्राहक के संबध में संदिग्ध लेनदेन, यदि वे वास्तव में नहीं किये जाते हैं तो भी वितीय आसूचना ईकाई - भारत (एफआइयू-आइएनडी ) को रिपोर्ट करने चाहिए । 5.8 जोखिम प्रबंधन क) प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंट) के निदेशकों के बोर्ड को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यथोचित क्रियाविधि स्थापित करते हुए एक प्रभावी "अपने ग्राहक को जानिये" कार्यक्रम तैयार किया गया है और उसका प्रभावी कार्यान्वयन किया जा रहा है । उसमें यथोचित प्रबंधन निरीक्षण, प्रणालियाँ और नियंत्रण, ड्यूटियों का विनियोजन, प्रशिक्षण और अन्य संबंधित विषय होने चाहिए । यह सुनिश्चित करने के लिए प्राधिकृत व्यक्तियों के बीच जिम्मेदारी स्पष्ट रुप से विनियोजित की जानी चाहिए कि प्राधिकृत व्यक्तियों की नीतियों और क्रियाविधियों का प्रभावी कार्यान्वयन किया गया हो। प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) को अपने बोर्ड के साथ परामर्श करते हुए अपने मौजूदा और नये ग्राहकों के जोखिम प्रोफाइल बनाने के लिए नयी क्रियाविधियाँ बनानी चाहिए और किसी लेनदेन में निहित जोखिम को ध्यान में रखते हुए विभिन्न धन शोधन निवारण उपाय लागू करने चाहिए । ख) अपने ग्राहक को जानिये नीतियाँ और क्रियाविधियों का मूल्यांकन करने और उसका पालन सुनिश्चित करने में प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) की आंतरिक लेखा-परीक्षा और अनुपालन कार्यों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । सामान्य नियम के रूप में अनुपालन कार्य द्वारा प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) की निजी नीतियाँ और क्रियाविधियों का विधिक और विनियामक आवश्यकताओं सहित एक स्वतंत्र मूल्यांकन उपलब्ध कराया जाना चाहिए। प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) ने यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी लेखा-परीक्षा संबंधी व्यवस्था में पर्याप्त स्टाफ है जो इस प्रकार की नीतियों और क्रियाविधियों में अत्यंत निपुण है । समवर्ती लेखा-परीक्षकों ने यह सत्यापित करने के लिए सभी सीमापार आवक धनप्रेषण लेनदेनों की जाँच करनी चाहिए कि सभी लेनदेन धन शोधन निवारण दिशा-निर्देशों के अनुसार किया गये हैं और जहाँ आवश्यक हो संबंधित प्राधिकारियों को रिपोर्ट किये गये हैं । समवर्ती लेखा-परीक्षकों द्वारा अभिलेखित गलतियों पर अनुपालना, यदि कोई हो तो बोर्ड को प्रस्तुत करनी चाहिए । वार्षिक रिपोर्ट तैयार करते समय अपने ग्राहक को जानिये/धन शोधन निवारण /आतंकवाद के वित्तपोषण का प्रतिरोध दिशा-निर्देशों के अनुपालन पर सांविधिक लेखा-परीक्षकों से एक प्रमाणपत्र प्राप्त करना चाहिए और उसे रिकार्ड में रखना चाहिए । 5.9 नयी तकनीकी का परिचय प्राधिकृत व्याक्तियों (भारतीय एजेंटों) को नयी अथवा इंटरनेट के जरिये किये गये लेनदेनों सहित विकसनशील तकनिकियों से प्राप्त किसी धनशोधन धमकियों पर विशेष ध्यान देना चाहिए जो गुमनामी हो सकती हैं और उसका धनशोधन के प्रयोजन हेतु उपयोग करने को रोकने के लिए उपाय करने चाहिए। 5.10 आतंकवाद के वित्तपोषण का प्रतिरोध क) धनशोधन निवारण नियमों के अनुसार, संदेहास्पद लेनदेनों में अन्य बातों के साथ- साथ ऐसे लेनदेन भी शामिल किये जाने चाहिए जो संदेह का यथोचित आधार होते हैं और ये मूल्य पर ध्यान दिये बिना धनशोधन निवारण अधिनियम की अनुसूची में उल्लिखित अपराधिक कार्यवाही में शामिल होते हैं। अत: प्राधिकृत व्यक्तियों ने आतंकवाद से संबंधित संदेहास्पद लेनदेनों की निगरानी और लेनदेनों की शीघ्र पहचान और वित्तीय आसूचना ईकाई को प्राथमिकता आधार पर यथोचित रिपोर्ट करने के लिए यथोचित् व्यवस्था विकसित करनी चाहिए । ख) प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) को सूचित किया जाता है कि वे वित्तीय कार्रवाई टास्क फोर्स (एफएटीएफ) विवरण में पहचाने गये अनुसार कतिपय क्षेत्राधिकार अर्थात् ईरान, उजबेकिस्तान, पाकिस्तान,तुर्कमेनिस्तान, साओ टोम और प्रिंसिपे में किसी व्यक्तिगत अथवा व्यवसायी के साथ व्यवहार करते समय एएमएल/सीएफटी प्रणाली में समय समय पर पायी गयी कमियों से उप्तन्न होनेवाले जोखिमों को ध्यान में रखें । 5.11 प्रधान अधिकारी (क) प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) ने किसी वरिष्ठ प्रबंधन अधिकारी को प्रधान अधिकारी के रूप में पदनामित करना जाना चाहिए। प्रधान अधिकारी ने प्राधिकृत व्यक्ति के मुख्य/कार्पोरेट कार्यालय में होना चाहिए और वह सभी लेनदेनों की निगरानी और रिपोर्टिंग करने तथा कानून के तहत यथा आवश्यक जानकारी देने के लिए जवाबदेह होंगा । प्रधान अधिकारी धन शोधन निवारण /आतंकवाद के वित्तपोषण के प्रतिरोध के पूरे क्षेत्र (अर्थात् ग्राहक यथोचित सावधानी,रिकॉर्ड कीपिंग, आदि) में यथोचित अनुपालन प्रबंधन व्यवस्थाएं विकसित करने के लिए भी जवाबदेह होंगा । वह प्रवर्तन एजेंसियों , प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) और धन शोधन निवारण /आतंकवाद के वित्तपोषण के प्रतिरोध का सामना करनेवाले किसी अन्य संस्था के साथ नजदीक से संपर्क रखेगा । प्रधान अधिकारी को उसकी जिम्मेदारियों का निर्वाह करने के लिए सक्षम बनाने की दृष्टि से यह सूचित किया जाता है कि प्रधान अधिकारी और अन्य यथोचित स्टाफ को ग्राहक पहचान डाटा और अन्य सीडीडी जानकारी, लेनदेन रिकार्ड और अन्य संबंधित जानकारी समय पर उपलब्ध होनी चाहिए । इसके अतिरिक्त, बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रधान अधिकारी स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकें और वरिष्ठ प्रबंधन अथवा निदेशक बोर्ड को सीधे ही रिपोर्ट कर सकें । ख) प्रधान अधिकारी वित्तीय आसूचना ईकाई - भारत को नकदी लेनदेन रिपोर्ट और संदिग्ध लेनदेन रिपोर्ट के समय पर प्रस्तुतीकरण के लिए जवाबदेह होंगा । 5.12 लेनदेनों के रिकॉर्ड रखना /परिरक्षित की जानेवाली जानकारी/रिकॉर्डों को रखना और परिरक्षण/वित्तीय आसूचना ईकाई - भारत को नकदी और संदिग्ध लेनदेनों की रिपोर्टिंग धन शोधन निवारण (संशोधन) अधिनियम, 2009 द्वारा यथा संशोधित धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 की धारा 12, लेनदेन संबंधी जानकारी के परिरक्षण और रिपोर्टिंग के बारे में प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) को कतिपय दायित्व देता है । अत: प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) को सूचित किया जाता है कि वे धन शोधन निवारण (संशोधन) अधिनियम, 2009 द्वारा यथा संशोधित धन शोधन निवारण (संशोधन) अधिनियम,2002 के प्रावधानों और उसके तहत अधिसूचित नियमों का अध्ययन करें और पूर्वोक्त अधिनियम की धारा 12 की आवश्यकताओं के अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक सभी कदम उठायें । (i) लेनदेनों के रिकार्डों को रखना प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) ने नियम 3 के तहत निर्धारित लेनदेनों का उचित रिकार्ड रखने के लिए नीचे दर्शाये गये अनुसार एक प्रणाली तैयार करनी चाहिए : क) दस लाख रुपये अथवा विदेशी मुद्रा में उसके समतुल्य राशि से अधिक मूल्य के सभी नकदी लेनदेन ; ख) दस लाख रुपये अथवा विदेशी मुद्रा में उसके समतुल्य राशि से कम मूल्य के एक दूसरे से संबद्ध सभी नकदी लेनदेनों की श्रृंखला, जब श्रृंखला के सभी लेनदेन एक महीने के भीतर किये गये हो ; और ग) नकदी में और नियमों में उल्लेख किये गये रूप में अथवा न किये गये सभी संदेहास्पद लेनदेन। (ii) परिरक्षित की जानेवाली जानकारी प्राधिकृत व्यक्तियों ने नियम 3 में उल्लिखित लेनदेनों के संबंध में निम्नलिखित जानकारी रखना आवश्यक है :
(iii) रिकॉर्ड का रखरखाव और परिरक्षण क) प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) ने उपर्युक्त नियम 3 में उल्लिखित लेनदेनों के संबंध में जानकारी का रिकॉर्ड रखना आवश्यक है । प्राधिकृत व्यक्तियों ने लेनदेन जानकारी के उचित रखरखाव और परिरक्षण के लिए एक ऐसी प्रणाली विकसित करने के लिए यथोचित कदम उठाने चाहिए कि जिसमें जब कभी आवश्यकता पड़ती है अथवा सक्षम प्राधिकारी द्वारा मांगे जाते हैं तो डाटा सहजता से और शीघ्रता से उपलब्ध हो । इसके अतिरिक्त, प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) को प्राधिकृत व्यक्ति और ग्राहक के बीच निवासियों और अनिवासियों दोनों के साथ किये गये लेनदेनों के सभी आवश्यक रिकॉर्ड लेनदेन की तारीख से न्यूनतम दस वर्षों के लिए रखे जाने चाहिए, जो व्यक्तिगत लेनदेनों ( निहित राशियाँ और मुद्रा के प्रकार, यदि कोई हो, के सहित) का पुनर्निर्माण कर सकेंगे, जिससे उस रिकॉर्ड को यदि आवश्यक हो तो आपराधिक कार्यकलाप में संलिप्त व्यक्तियों के अभियोजन के लिए साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकेगा। ख) प्राधिकृत व्यक्तियों(भारतीय एजेंटों) को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि लेनदेन करते समय और व्यवसाय संबंध की अवधि के दौरान प्राप्त किये गये ग्राहक और उसके पते की पहचान से संबंधित रिकॉर्ड,(अर्थात् पारपत्र, ड्राइविंग लायसेंस, पैन कार्ड, चुनाव आयोग द्वारा जारी मतदाता पहचान कार्ड, उपयोगिता बिल, आदि जैसे दस्तावेजों की प्रतियाँ ) लेनदेन/व्यवसाय संबंध की समाप्ति से कम से कम दस वर्षों के लिए यथोचित रूप से परिरक्षित किये जाते हैं । पहचान संबंधी रिकॉर्ड और लेनदेन के आंकड़े मांगे जाने पर सक्षम प्राधिकारियों को उपलब्ध किये जाने चाहिए । ग) इस परिपत्र के पैराग्राफ 5.6 में, प्राधिकृत व्यक्तियों(भारतीय एजेंटों) को सूचित किया गया है कि सभी जटिल, असामान्य बड़े लेनदेन और लेनदेनों के सभी असामान्य पैटर्न , जिसका कोई प्रथमदर्शनी आर्थिक अथवा प्रत्यक्ष वैध प्रयोजन नहीँ है, पर विशेष ध्यान दिया जाए । इसके साथ यह भी स्पष्ट किया जाता है कि ऐसे लेनदेनों से संबंधित सभी दस्तावेज/कार्यालय रिकॉर्ड/ज्ञापन सहित पृष्ठभूमि और उसके प्रयोजन की यथासंभव जांच की जानी चाहिए और शाखा तथा प्रधान अधिकारी के स्तर पर पाये गये निष्कर्ष यथोचित रूप से रिकॉर्ड किये जाने चाहिए । ऐसे अभिलेख और संबंधित दस्तावेज, लेखा-परीक्षकों को लेनदेनों की छान-बीन से संबंधित उनके दैनिक कार्य में सहायक होने के लिए और रिज़र्व बैंक /अन्य संबंधित प्राधिकारियों को उपलब्ध किये जाने चाहिए । इन रिकॉर्डों को दस वर्षों के लिए परिरक्षित किया जाना आवश्यक है , क्योंकि यह धन शोधन निवारण (संशोधन) अधिनियम, 2009 द्वारा यथा संशोधित धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 और समय समय पर यथा संशोधित धन शोधन निवारण (लेनदेनों के प्रकार और लागत के रिकॉर्ड रखना,रिकॉर्ड रखने की क्रियाविधी और पद्धति और जानकारी प्रस्तुत करने के लिए समय और बैंकिंग कंपनियाँ, वित्तीय संस्थाएं और मध्यवर्ती संस्थाओं के ग्राहकों की पहचान के रिकॉर्डों का सत्यापन और रखरखाव) नियमावली, 2005 के तहत आवश्यक है । (iv) वित्तीय आसूचना ईकाई - भारत को रिपोर्टिंग क) धन शोधन निवारण नियमावली के अनुसार प्राधिकृत व्यक्तियों को नियम 3 में उल्लिखित लेनदेनों के संबंध में नकदी और संदेहास्पद लेनदेनों से संबंधित जानकारी निदेशक, वित्तीय आसूचना ईकाई- भारत को निम्नलिखित पते पर रिपोर्ट करना आवश्यक है : निदेशक ख) प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) ने सभी रिपोर्टिंग फॉर्मेटों का अध्ययन करना चाहिए । इस परिपत्र के संलग्नक में विस्तृत रूप (संलग्नक ।।।) से दर्शाये गये अनुसार कुल मिलाकर चार रिपोर्टिंग फॉर्मेटस् हैं अर्थात् i) नकदी लेनदेन रिपोर्ट (सीटीआर); ii) ईलेक्ट्रॉनिक फाइल स्ट्रक्चर-सीटीआर; iii) संदेहास्पद लेनदेन रिपोर्ट (एसटीआर); iv) ईलेक्ट्रॉनिक फाइल स्ट्रक्चर-एसटीआर । रिपोर्टिंग फॉर्मेटों में समेकन संबंधी विस्तृत दिशा-निर्देश और वित्तीय आसूचना ईकाई - भारत(एफआइयु-आइएनडी) को रिपोर्टों की प्रस्तुति की पद्धति तथा क्रियाविधि दी गयी है । प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) को यह आवश्यक होगा कि वे वित्तीय आसूचना ईकाई - भारत(एफआइयु-आइएनडी) को सभी प्रकार की रिपोर्टों का ईलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग सुनिश्चित करने के लिए अविलंब कदम उठायें । ईलेक्ट्रॉनिक फॉर्मेट में रिपोर्ट तैयार करने के लिए संबंधित हार्डवेयर और तकनीकी आवश्यकता, संबंधित डाटा फाइल्स और उसका डाटा स्ट्रक्चर संबंधित फार्मेटों के अनुदेश भाग में प्रस्तुत किया गया हैं। ग) इस परिपत्र के पैराग्राफ 5.3(ख) में निहित अनुदेशों के अनुसार, प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) को प्रत्येक ग्राहक के लिए जोखिम वर्गीकरण पर आधारित एक प्रोफाइल तैयार करना आवश्यक है । इसके अतिरिक्त, पैराग्राफ 5.6 के जरिये, जोखिम वर्गीकरण की आवधिक पुनरीक्षा की आवश्यकता पर बल दिया गया है । अत: यह दोहराया जाता है कि लेनदेन निगरानी व्यवस्था के एक भाग के रूप में प्राधिकृत व्यक्तियों(भारतीय एजेंटों) ने, जब लेनदेन जोखिम वर्गीकरण और ग्राहकों के अद्यतन प्रोफाइल के साथ सुसंगत नहीं है, तब सावधान करने के लिए यथोचित सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन तैयार करना आवश्यक है । यह जोड़ने की जरूरत नहीं है कि संदेहास्पद लेनदेन पहचानने और उसके रिपोर्टिंग के लिए सावधान करनेवाला रोबस्ट(सक्षम) सॉफ्टवेयर आवश्यक है । 5.13 नकदी और संदेहास्पद लेनदेन रिपोर्ट क) नकदी लेनदेन रिपोर्ट (सीटीआर) जबकि सभी प्रकार की रिपोर्टों के फाईलिंग के लिए विस्तृत अनुदेश संबंधित फार्मेटों के अनुदेश भाग में दिये गये हैं , प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) ने अत्यंत सावधानी से निम्नलिखित का पालन करना चाहिए : i) प्रत्येक महीने के लिए नकदी लेनदेन रिपोर्ट (सीटीआर) अनुवर्ती महीने की 15 तारीख तक एफआइयु-आइएनडी को प्रस्तुत करनी चाहिए । अत: शाखाओं द्वारा उनके नियंत्रणकर्ता कार्यालयों को नकदी लेनदेन रिपोर्ट अनिवार्यत: मासिक आधार पर प्रस्तुत की जानी चाहिए और प्राधिकृत व्यक्तियों ने यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक महीने के लिए नकदी लेनदेन रिपोर्ट (सीटीआर) निर्धारित समय सीमा के भीतर प्रस्तुत की जाती है । ii) नकदी लेनदेन रिपोर्ट (सीटीआर) फाइल करते समय, 50,000 रुपये के नीचे के वैयक्तिक लेनदेन प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है । iii) नकदी लेनदेन रिपोर्ट (सीटीआर) में प्राधिकृत व्यक्ति के आंतरिक खाते में किये गये लेनदेनों को छोड़कर प्राधिकृत व्यक्ति द्वारा अपने ग्राहकों की ओर से किये गये लेनदेनों का ही समावेश होना चाहिए । iv) समग्र रूप से प्राधिकृत व्यक्ति के लिए नकदी लेनदेन रिपोर्ट (सीटीआर), विनिर्दिष्ट फॉर्मेट के अनुसार प्राधिकृत व्यक्ति के प्रधान अधिकारी द्वारा प्रत्यक्ष रूप में प्रत्येक महीने में तैयार की जानी चाहिए । उक्त रिपोर्ट प्रधान अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित की जानी चाहिए और एफआइयु-इंडिया को प्रस्तुत की जानी चाहिए । v) यदि प्राधिकृत व्यक्ति (भारतीय एजेंटों) द्वारा शाखाओं के लिए नकदी लेनदेन रिपोर्ट (सीटीआर) उनके सेंट्रल डाटा सेंटर स्तर पर केंद्रीकृत रूप से तैयार की गयी हो तो प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) ने एफआइयु-इंडिया को आगे के प्रेषण के लिए एक जगह पर केंद्रीय कंप्यूटरीकृत वातावरण के तहत शाखाओं के संबंध में केंद्रीकृत नकदी लेनदेन रिपोर्ट (सीटीआर) तैयार करनी चाहिए, बशर्ते : क) नकदी लेनदेन रिपोर्ट (सीटीआर) इस परिपत्र के पैराग्राफ 5.12 (iv)(ख) में रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित फॉर्मेट में तैयार की गयी है । ख) उनकी ओर से एफआइयु-इंडिया को प्रस्तुत किये गये मासिक नकदी लेनदेन रिपोर्ट (सीटीआर) की एक प्रति मांगे जाने पर लेखा-परीक्षकों/निरीक्षकों को प्रस्तुत करने के लिए संबंधित शाखा में उपलब्ध है । ग) इस परिपत्र के क्रमश: पैराग्राफ 5.12(i),(ii) और (iii)में उपर्युक्त में निहित किये गये अनुसार लेनदेनों के रिकॉर्डों का रखरखाव, परिरक्षित की जानेवाली जानकारी और रिकॉर्डों का रखरखाव और परिरक्षण पर अनुदेशों का शाखा द्वारा कड़ाई से पालन किया जाता है । तथापि, केंद्रीय कंप्यूटरीकृत वातावरण के तहत न आनेवाली शाखाओं के संबंध में मासिक नकदी लेनदेन रिपोर्ट (सीटीआर) तैयार की जानी और शाखा द्वारा प्रधान अधिकारी को एफआइयु-इंडिया को आगे के प्रेषण के लिए प्रेषित करना जारी रखा जाना चाहिए। ख) संदेहास्पद लेनदेन रिपोर्ट (एसटीआर) i) संदेहास्पद लेनदेनों का निर्धारण करते समय, प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) को समय समय पर यथा संशोधित धन शोधन निवारण नियमावली में निहित संदेहास्पद लेनदेन की परिभाषा द्वारा दिशा-निर्देश दिये जाएंगे । ii) यह संभव है कि कुछ मामलों में लेनदेन, ग्राहकों द्वारा कुछ ब्योरे देने अथवा दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए पूछे जाने पर परित्यक्त/निष्फल होते हैं । यह स्पष्ट किया जाता है कि प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) ने संदेहास्पद लेनदेन रिपोर्ट(एसटीआर) में लेनदेन की राशि पर ध्यान दिये बिना ग्राहकों द्वारा पूर्ण न किये जाने पर भी सभी प्रयासित लेनदेन सूचित करने चाहिए । iii) प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) ने यदि उनके पास विश्वास का यह उचित आधार है कि प्रयासित लेनदेन सहित लेनदेन में , लेनदेन की राशि पर ध्यान दिये बिना, अपराध की राशि निहित है और/अथवा अपराध निर्धारित करने के लिए प्रारंभिक सीमा परिकल्पित है तो संदेहास्पद लेनदेन रिपोर्ट(एसटीआर) धन शोधन निवारण (संशोधन) अधिनियम, 2009 द्वारा यथा संशोधित धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 की अनुसूची के भाग ख में करनी चाहिए। iv) नकदी अथवा गैर-नकदी के प्रयासित लेनदेन सहित लेनदेन, अथवा एकीकृत रूप से संबध्द लेनदेनों की श्रृंखला संदेहास्पद स्वरुप की है , इस निष्कर्ष पर पहुंचने पर 7 दिनों के भीतर संदेहास्पद लेनदेन रिपोर्ट(एसटीआर) प्रस्तुत की जानी चाहिए । प्रधान अधिकारी ने किसी लेनदेन अथवा लेनदेनों की श्रृंखला संदेहास्पद लेनदेन के रूप में मानने के लिए अपने कारण रिकॉर्ड करने चाहिए । यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि किसी शाखा अथवा किसी अन्य कार्यालय से एक बार संदेहास्पद लेनदेन रिपोर्ट प्राप्त होने पर निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए कोई विलंब नहीं होता है । ऐसी रिपोर्ट मांगे जाने पर सक्षम प्राधिकारियों को उपलब्ध की जानी चाहिए । v) स्टाफ के बीच अपने ग्राहक को जानिये/धन शोधन निवारण जागरुकता निर्माण करने के संबंध में और संदेहास्पद लेनदेनों के लिए सचेत करने हेतु प्राधिकृत व्यक्ति संदेहास्पद कार्यकलापों की निम्नलिखित निदर्शी सूची पर विचार करें । कुछ संभाव्य संदेहास्पद कार्यकलाप निदर्शक नीचे दिये गये हैं:
उपर्युक्त सूची केवल निदर्शी है और न कि सर्वसमावेशक है । vi) प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) को ऐसे लेनदेनों पर कोई रोक नहीं लगानी चाहिए जहां संदेहास्पद लेनदेन रिपोर्ट(एसटीआर)की गयी है । साथ में यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्राधिकृत व्यक्तियों के कर्मचारी इस प्रकार की जानकारी प्रस्तुत करने का तथ्य अत्यंत गोपनीय रखेंगे और किसी भी स्तर पर ग्राहक को संकेत नहीं देंगे । 5.14 ग्राहक शिक्षा/कर्मचारियों का प्रशिक्षण/कर्मचारियों का नियोजन क) ग्राहक शिक्षा अपने ग्राहक को जानिये क्रियाविधि के कार्यान्वयन की अपेक्षा है कि प्राधिकृत व्यक्ति (भारतीय एजेंट) ग्राहक से कुछ जानकारी मांगे जो वैयक्तिक प्रकार की हो अथवा इसके पहले कभी मांगी न गयी हो । इस प्रकार की जानकारी जमा करने के उद्देश्य और प्रयोजन से ग्राहक द्वारा अनेक प्रश्न पूछे जा सकते हैं । अत: प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंट) को विशिष्ट साहित्य/पुस्तिका, आदि तैयार करने की आवश्यकता है जिससे अपने ग्राहक को जानिये कार्यक्रम के उद्देश्यों से ग्राहक को शिक्षित किया जा सकें । ग्राहकों के साथ व्यवहार करते समय ऐसी स्थितियों का सामना करने के लिए फ्रंट डेस्क स्टाफ को विशेष रूप से प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है । ख) कर्मचारी प्रशिक्षण प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंट) को कर्मचारियों के लिए लगातार प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए जिससे स्टाफ सदस्य धन शोधन निवारण से संबंधित नीतियाँ और क्रियाविधियाँ , धन शोधन निवारण अधिनियम के प्रावधान जानने में पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित होंगे और सभी लेनदेनों की निगरानी रखने की आवश्यकता यह सुनिश्चित करने के लिए महसूस करेगे कि धनप्रेषण के बहाने कोई संदेहास्पद कार्य नहीं किया जा रहा है। फ्रंटलाइन स्टाफ, अनुपालन स्टाफ और नये ग्राहकों के साथ कार्य करनेवाले स्टाफ के लिए विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकताएं होंगी । यह कठिन है कि सभी संबधित अपने ग्राहक को जानिये नीतियों के पीछे का तर्काधार समझें और लगातार उनका कार्यान्वयन करें । जब स्टाफ के सामने कोई संदेहास्पद लेनदेन ( जैसे निधियां के स्त्रोत के संबंध में प्रश्न पूछना, पहचान दस्तावेजों की सावधानीपूर्वक जांच करना, प्रधान अधिकारी को तुरंत रिपोर्ट करना, आदि) होता है तो की जानेवाली कार्रवाई प्राधिकृत व्यक्ति (भारतीय एजेंट) द्वारा सावधानीपूर्वक तैयार की जानी चाहिए और यथोचित क्रियाविधि निर्धारित करनी चाहिए । धन शोधन निवारण उपायों के लगातार कार्यान्वयन के लिए प्राधिकृत व्यक्तियों (भारतीय एजेंटों) के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए। ग) कर्मचारियों का नियोजन यह समझना चाहिए कि अपने ग्राहक को जानिये मापदंड/ धन शोधन निवारण मानक/आतंकवाद के वित्तपोषण के प्रतिरोध के उपाय यह सुनिश्चित करने के लिए निर्धारित किये गये हैं कि अपराधी वर्ग, प्राधिकृत व्यक्तियों की प्रणाली का दुरुपयोग न कर सकें । अत: यह आवश्यक होगा कि प्राधिकृत व्यक्तियों द्वारा उच्च मानक सुनिश्चित करने के लिए अपने कर्मचारियों की भर्ती/नियोजन प्रक्रिया के अविभाज्य भाग के रूप में पर्याप्त स्क्रीनिंग व्यवस्था की जाती है । (संलग्नक-।।) [ 27 नवंबर 2009 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं. 18 ग्राहक पहचान क्रियाविधि
(संलग्नक-।।।) [ 27 नवंबर 2009 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं. 18 विभिन्न रिपोर्टों और उनके फॉर्मेटों की सूची
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