एकल उत्पाद के जमानत पर ऋण प्रदान करना- स्वर्ण आभूषण - आरबीआई - Reserve Bank of India
एकल उत्पाद के जमानत पर ऋण प्रदान करना- स्वर्ण आभूषण
भारिबैं/2013-14/435 08 जनवरी 2014 सभी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) महोदय, एकल उत्पाद के जमानत पर ऋण प्रदान करना- स्वर्ण आभूषण कृपया सोने के आयात तथा भारत में एनबीएफसी स्वर्ण ऋण से संबंधित मामलों का अध्ययन करने के लिए कार्य समूह (के यू बी राव कार्य समूह) द्वारा की गई सिफारिशों के तर्ज़ पर जारी 16 सितम्बर 2013 का परिपत्र गैबैंपवि.कंपरि.नीप्र.सं.356/03.10.01/2013-14 (‘परिपत्र) का अवलोकन करें। 21 मार्च 2012 का परिपत्र गैबैंपवि.कंपरि.नीप्र.सं.265/03.10.01/2011-12 का भी अवलोकन करें जिसमें एनबीएफसी को स्वर्ण आभूषण की संपार्श्विक जमानत के बदले स्वीकृत ऋण के लिए ऋण का अनुपात विक्रय मूल्य (एलटीवी) 60 प्रतिशत से अधिक नहीं रखना होगा। 2. इन मुद्दों पर हमें एनबीएफसी से कुछ अभ्यावेदन प्राप्त हैं। इनकी जांच की गई तथा निम्नलिखित निर्णय लिया गया: i) मूल्य की तुलना में ऋण (एलटीवी) अनुपात 21 मार्च 2012 का परिपत्र गैबैंपवि.कंपरि.नीप्र.सं.265/03.10.01/2011-12 के पैरा 2.1 के अनुसार एनबीएफसी को स्वर्ण आभूषण की संपार्श्विक जमानत के बदले स्वीकृत ऋण के लिए ऋण का अनुपात विक्रय मूल्य (एलटीवी) 60 प्रतिशत से अधिक नहीं रखना होगा। यह उल्लेखनीय है कि जहां तक संभव हो सके व्यवस्थित सेक्टर के माध्यम से निष्क्रिय सोना का मुद्रीकरण की सुविधा के लिए के यू बी राव कार्य समूह ने यह सिफारिश किया था कि एनबीएफसी का स्वर्ण ऋण कारोबार एक बार उप्युक्त मान्य स्तर तक आ जाने पर एलटीवी अनुपात को 60 प्रतिशत से बढाकर 75 प्रतिशत तक किया जा सकता है। कार्य समूह ने यह भी सिफारिश किया था कि स्वर्ण मूल्य के निर्धारण की प्रक्रिया को मानक बनाया जाए। हाल के दिनों में एनबीएफसी के स्वर्ण ऋण पोर्टफोलियों की वृद्धि संयम तथा अभी तक के अनुभव को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि तत्काल प्रभाव से स्वर्ण आभूषण की संपार्श्विक जमानत के बदले स्वीकृत ऋण के लिए एलटीवी अनुपात को 60 प्रतिशत की वर्तमान सीमा से बढाकर 75 प्रतिशत कर दिया जाए। इस संदर्भ में, यह समझा जाता है कि कुछ एनबीएफसी ‘परिपत्र’ के पैराग्राफ 2(iii) के अनुसार स्वर्ण आभूषणों का मूल्य निर्धारित करते समय बनवाई शुल्क (मेकिंग चार्ज) आदि शामिल करते है। यह स्पष्ट किया जाता है कि अधिकतम अनुमत ऋण राशि निर्धारित करने के उद्देश्य से आभूषणों का मूल्य केवल उसमें निहित स्वर्ण के आंतरिक मूल्य पर निर्धारित किया जाए तथा इसमें अन्य लागत घटकों को शामिल नहीं किया जाए। ‘परिपत्र’ में वर्णित के अनुसार आंतरिक मूल्य की गणना करना जारी रहेगी। ii) स्वर्ण मूल्य का मानकीकरण-एलटीवी अनुपात की गणना करने के लिए ‘परिपत्र’ के पैरा 2 (iii) के अनुसार, एनबीएफसी को उधारकर्ताओं को सोने की शुद्धता (कैरेट के रूप में) तथा वज़न लिखित रूप में देना है। एनबीएफसी ने जमानत के रूप में स्वीकृत स्वर्ण आभूषणों की शुद्धता को प्रमाणित करने के प्रति इस आधार पर आशंकाएं व्यक्त किया है कि मौजूदा पद्धति के तहत केवल सोने की अनुमानित शुद्धता का पता लगाया जा सकता है तथा ऐसे प्रमाणीकरण से उधारकर्ता के साथ विवाद उत्पन्न हो सकता है। यह स्पष्ट किया जाता है कि सोने की शुद्धता के संबंध में प्रमाण पत्र देने की आवश्यकता को अनावश्यक नहीं किया जा सकता है। शुद्धता का प्रमाण अधिकतम अनुमत ऋण निर्धारण तथा नीलामी के लिए आरक्षित मूल्य निर्धारण पर लागू होता है। तथापि, एनबीएफसी मोचन पर विवाद से स्वंय की रक्षा के लिए उचित चेतावनी को शामिल कर सकते है। iii) स्वर्ण के स्वामित्व का सत्यापन ‘परिपत्र’ के पैरा 2. Iv के अनुसार, उधारकर्ता द्वारा एक बार अथवा संचयी तौर पर 20 ग्राम से अधिक स्वर्ण आभूषणों को गिरवी रखकर ऋण लेने के मामले में, एनबीएफसी को आभूषणों के स्वामित्व का सत्यापन कर उसे अपने अभिलेख में रखना होगा। इसके साथ स्वर्ण आभूषणों के स्वामित्व को स्थापित करने के लिए एनबीएफसी को अपने बोर्ड से अनुमोदित नीति भी बनाना होगा। इन तथ्यों के आलोक में उधारकर्ताओं के लिए स्वामित्व स्थापित करने के लिए रसीद उपलब्ध कराना संभव नहीं है, विशेषकर ऐसी स्थिति में जब आभुषण विरासती हो, यह स्पष्ट किया जाता है कि गिरवी रखे आभूषणों के स्वामित्व का सत्यापन के लिए मूल रसीद की आवश्यकता नहीं है किंतु एक उचित दस्तावेज़ बनाना होगा जिससे स्वामित्व निर्धारित हो सके, विशेषकर जहां उधारकर्ता द्वारा एक बार अथवा संचयी तौर पर 20 ग्राम से अधिक स्वर्ण आभूषणों को गिरवी रखकर ऋण लेने के एक और प्रत्येक मामले में। एनबीएफसी को उनके समग्र ऋण नीति के संबंध में स्पष्ट नीति का निदेश दिया जाता है। iv) नीलामी प्रक्रिया और पद्धति ‘परिपत्र’ के पैरा 2. v के अनुसार, एनबीएफसी को सूचित किया गया था कि गिरवी रखे स्वर्ण आभूषणों की नीलामी उसी शहर अथवा तालुका में आयोजित की जाए जिस शहर अथवा तालुका में ऋण देने वाली शाखा अवस्थित है। इस संबंध में अभ्यावेदन प्राप्त है कि नीलामी तालुक के स्थान पर जिला में करने की अनुमति दी जाए। इस अनुरोध को स्वीकार करना तर्क संगत नहीं है अत: वर्तमान निदेश अपरिवर्तित है। v) अन्य निदेश ‘परिपत्र’ के पैरा 2.vi (ii) के अनुसार, एनबीएफसी को सूचित किया गया था कि रू एक लाख तथा उससे अधिक के उच्च ऋण राशि को चेक के माध्यम से संवितरित किया जाए। इस संबंध में एनबीएफसी से अभ्यावेदन प्राप्त है कि चेक के माध्यम से भुगतान के कारण उधारकर्ताओं को निधि तक पहुंच बनाने में विलम्ब होता है तथा सप्ताह की समाप्ति के दौरान संवितरण होने की स्थिति में और विलम्ब होता है। यह पाया गया है कि एनबीएफसी पोर्टफोलियों में संबंधित अधिकतर ऋण रू एक लाख से कम के है। अत: यह निर्णय लिया गया है कि इस संबंध में वर्तमान निदेश को बनाये रखा जाए। 3. गैर बैंकिंग वित्तीय (जमाराशि स्वीकार करने वाली या धारण करने वाली) कंपनी विवेकपूर्ण मानदंड (रिज़र्व बैंक) निदेश 2007 में निहित 22 फरवरी 2007 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि.192/डीजी(वीएल) 2007 तथा गैर बैंकिंग वित्तीय (जमाराशि नहीं स्वीकार या धारण करने वाली) कंपनी विवेकपूर्ण मानदंड (रिज़र्व बैंक) निदेश 2007 में निहित 22 फरवरी 2007 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि.193/डीजी(वीएल)2007 को संशोधित करने वाली अधिसूचनाएं गहन अनुपालन हेतु इसके साथ कृपया संलग्न प्राप्त करें। भवदीय, (एन एस विश्वनाथन) भारतीय रिज़र्व बैंक अधिसूचना सं. गैबैंपवि(नीप्र) 269/पीसीजीएम(एनएसवी)2014 08 जनवरी 2014 भारतीय रिजर्व बैंक, जनता के हित में यह आवश्यक समझकर और इस बात से संतुष्ट होकर कि देश के हित में ऋण प्रणाली को विनियमित करने के लिए बैंक को समर्थ बनाने के प्रयोजन से 22 फरवरी 2007 की अधिसूचना सं. डीएनबीएस.192/डीजी(वीएल) में अंतविष्ट गैर बैंकिंग वित्तीय (जमाराशियां स्वीकारने या धारण करने वाली) कंपनियां विवेकपूर्ण मानदण्ड (रिजर्व बैंक) निदेश 2007 (जिन्हें इसके बाद निदेश कहा गया है) को संशोधित करना आवश्यक है। भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम , 1934 (1934 का 2) की धारा 45 ञक द्वारा प्रदत्त शक्तियों और इस संबंध में प्राप्त समस्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए उक्त निदेश को तत्काल प्रभाव से निम्नवत संशोधित करने का निदेश देता है, यथा 2. पैराग्राफ 17ए के क्लॉज (ए) उप क्लॉज (i ) को निम्नलिखित से प्रतिस्थापित किया जाए “ (i) स्वर्ण आभूषण की संपार्श्विक जमानत के बदले स्वीकृत ऋण के लिए एलटीवी अनुपात 75 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए” बशर्ते अधिकतम अनुमत ऋण राशि निर्धारित करने के उद्देश्य से आभूषणों का मूल्य केवल उसमें निहित स्वर्ण के आंतरिक मूल्य पर निर्धारित किया जाए तथा इसमें अन्य लागत घटकों को शामिल नहीं किया जाए। निदेश के पैराग्राफ 17 सी (1) में निहित के अनुसार सोने की आंतरिक मूल्य की गणना की जाए।“ 3. पैराग्राफ (17बी) का अंतिम वाक्य निम्नलिखित से प्रतिस्थापित किया जाए- गिरवी रखे आभूषणों के स्वामित्व का सत्यापन के लिए मूल रसीद की आवश्यकता नहीं है किंतु एक उचित दस्तावेज़ बनाना होगा जिससे स्वामित्व निर्धारित हो सके, विशेषकर जहां उधारकर्ता द्वारा एक बार अथवा संचयी तौर पर 20 ग्राम से अधिक स्वर्ण आभूषणों को गिरवी रखकर ऋण लेने के एक और प्रत्येक मामले में। एनबीएफसी को इस संबंध में अपने बोर्ड से अनुमोदित समग्र ऋण नीति पर स्पष्ट नीति निदेश रखना होगा। 4. निम्नलिखित को पैराग्राफ 17सी के उप पैराग्राफ (1) के क्लॉज (iii) के अंतिम वाक्य के बाद जोड़ा जाए “ एनबीएफसी को मोचन पर विवाद से स्वंय की रक्षा के लिए चेतावनी को शामिल करना होगा, परंतु शुद्धता का प्रमाणपत्र अधिकतम अनुमत ऋण राशि तथा नीलामी के लिए आरक्षित मूल्य दोनो के निर्धारण के लिए लागू होगा।“ (एन एस विश्वनाथन) भारतीय रिज़र्व बैंक अधिसूचना सं. गैबैंपवि(नीप्र) 270/पीसीजीएम(एनएसवी)2014 08 जनवरी 2014 भारतीय रिजर्व बैंक , जनता के हित में यह आवश्यक समझकर और इस बात से संतुष्ट होकर कि देश के हित में ऋण प्रणाली को विनियमित करने के लिए बैंक को समर्थ बनाने के प्रयोजन से 22 फरवरी 2007 की अधिसूचना सं. डीएनबीएस.193/डीजी(वीएल) में अंतविष्ट गैर बैंकिंग वित्तीय (जमाराशियां स्वीकार नहीं करने वाली या धारण नहीं करने वाली) कंपनियां विवेकपूर्ण मानदण्ड (रिजर्व बैंक) निदेश 2007 (जिन्हें इसके बाद निदेश कहा गया है) को संशोधित करना आवश्यक है। भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम , 1934 (1934 का 2) की धारा 45 ञक द्वारा प्रदत्त शक्तियों और इस संबंध में प्राप्त समस्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए उक्त निदेश को तत्काल प्रभाव से निम्नवत संशोधित करने का निदेश देता है, यथा 2. पैराग्राफ 17ए के क्लॉज (ए) उप क्लॉज (i) को निम्नलिखित से प्रतिस्थापित किया जाए “ (i) स्वर्ण आभूषण की संपार्श्विक जमानत के बदले स्वीकृत ऋण के लिए एलटीवी अनुपात 75 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए” बशर्ते अधिकतम अनुमत ऋण राशि निर्धारित करने के उद्देश्य से आभूषणों का मूल्य केवल उसमें निहित स्वर्ण के आंतरिक मूल्य पर निर्धारित किया जाए तथा इसमें अन्य लागत घटकों को शामिल नहीं किया जाए। निदेश के पैराग्राफ 17 सी (1) में निहित के अनुसार सोने की आंतरिक मूल्य की गणना की जाए।“ 3. पैराग्राफ (17बी) का अंतिम वाक्य निम्नलिखित से प्रतिस्थापित किया जाए- गिरवी रखे आभूषणों के स्वामित्व का सत्यापन के लिए मूल रसीद की आवश्यकता नहीं है किंतु एक उचित दस्तावेज़ बनाना होगा जिससे स्वामित्व निर्धारित हो सके, विशेषकर जहां उधारकर्ता द्वारा एक बार अथवा संचयी तौर पर 20 ग्राम से अधिक स्वर्ण आभूषणों को गिरवी रखकर ऋण लेने के एक और प्रत्येक मामले में। एनबीएफसी को इस संबंध में अपने बोर्ड से अनुमोदित समग्र ऋण नीति पर स्पष्ट नीति निदेश रखना होगा। 4. निम्नलिखित को पैराग्राफ 17सी के उप पैराग्राफ (1) के क्लॉज (iii) के अंतिम वाक्य के बाद जोड़ा जाए “ एनबीएफसी को मोचन पर विवाद से स्वंय की रक्षा के लिए चेतावनी को शामिल करना होगा, परंतु शुद्धता का प्रमाणपत्र अधिकतम अनुमत ऋण राशि तथा नीलामी के लिए आरक्षित मूल्य दोनो के निर्धारण के लिए लागू होगा।“ (एन एस विश्वनाथन) |