सदस्य बैंकों के क्लीयरिंग दायित्वों को निपटाने के लिए क्लीरिंग हाउस प्रबंधक बैंकों द्वारा क्लीयरिंग-संबद्ध ओवरड्राफ्ट पर ब्याज लगाया जाना - आरबीआई - Reserve Bank of India
सदस्य बैंकों के क्लीयरिंग दायित्वों को निपटाने के लिए क्लीरिंग हाउस प्रबंधक बैंकों द्वारा क्लीयरिंग-संबद्ध ओवरड्राफ्ट पर ब्याज लगाया जाना
आरबीआई/2009-10/452 6 मई 2010 अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक/ मुख्य कार्यपालक अधिकारी महोदया / प्रिय महोदय, सदस्य बैंकों के क्लीयरिंग दायित्वों को निपटाने के लिए क्लीरिंग हाउस प्रबंधक बैंकों द्वारा क्लीयरिंग-संबद्ध ओवरड्राफ्ट पर ब्याज लगाया जाना जैसा कि आप जानते हैं कि बैंकर्स समाशोधन गृहों के लिए एकसमान विनियम और नियम (यूआरआरबीसीएच) के नियम 10(जी) में निहित प्रावधानों के अनुसार प्रतिकूल क्लीयरिंग स्थिति के कारण अप्राधिकृत ओवरड्राफ्टों के लिए चूककर्ता बैंकों से अपेक्षित है कि वे ओवरड्रॉफ्ट को क्लीन करने के लिए स्थिति को नियमित किए जाने तक आगामी कार्यदिवस के बाद से अनुमेय दर पर दंडात्मक ब्याज सहित 2 प्रतिशत रकम का भुगतान करें। सदस्य बैंक के निपटान खातों में में क्लीयरिंग-संबद्ध ओवरड्रॉफ्ट प्रदान करने हेतु कुछ क्लीयरिंग हाउस प्रबंधक बैंकों द्वारा बहुत अधिक ब्याज लगाए जाने के बारे में कई मामले प्राप्त हुए हैं और यह भी कि कुछ सदस्य बैंक नेमी प्रकार से निपटानकर्ता बैंकों से ब्याज मुक्त ओवरड्राप्ट की मांग करते हैं ताकि वे दिन के कारोबार के दौरान क्लीयरिंग संबद्ध कमियों को पूरा कर सकें। यदि आगामी दिवस अवकाश का होता है तो बिना किसी पर्याप्त प्रतिपूर्ति के लिए अधिक समय के लिए निधियों से वंचित रहने के अलावा इससे ओवरड्रॉफ्ट देने वाले बैंक के लिए क्रेडिट का बड़ा जोखिम हो सकता है। तदनुसार 23 अक्तूबर 2009 से नियम 10(जी) का आंशिक तौर पर संशोधन करते हुए क्लीयरिंग ओवरड्राफ्ट देने वाले निपटानकर्ता बैंकों को दिवस-भीतर अतिआहरण हेतु ब्याज लगाने की अनुमति दी गई है (जितने घन्टे के लिए निधियों को उधार दिया गया है उस पर विचार किए बिना)। यह ब्याज दर पारदर्शी रहेगी और इस पर क्लीयरिंग निपटानकर्ता और ओवरड्रॉफ्ट लेने वाले बैंकों के बीच आरंभ में ही विचार-विमर्श कर लिया जाए। यह स्पष्ट किया जाता है कि ओवरड्रॉफ्ट की क्लीयरिंग और लगाए जाने वाले ब्याज के समस्त मुद्दे पर विचार किया गया। अभी हाल ही में क्लीयरिंग हाउस प्रबंधन करने वाले प्रमुख बैंकों की एक बैठक आयोजित की गई जिसमें इस मुद्दे पर चर्चा की गई और क्लीयरिंग संबद्ध ओवरड्रॉफ्टों हेतु ब्याज लगाने में एकसमानता के प्रयोजन से निम्नानुसार निर्णय किए गए : क. क्लीयरिंग संबद्ध ओवरड्रॉफ्टों के लिए अनुमेय ब्याजदर को आरबीआई एलएएफ (चलनिधि समायोजन सुविधा) रीपो दर को बेन्चमार्क तय कर दिया जाए। ख. वस-भीतर ओवरड्रॉफ्ट के लिए (जितनी समयावधि के लिए ओवरड्रॉफ्ट सुविधा ली जाती है उस पर ध्यान दिए बिना जिस दिन ओवरड्रॉफ्ट दिया गया है वह दिन) उस दिन के लिए संगत आरबीआई एलएएफ रीपो दर + 100 आधार अंक की दर से ब्याज लिया जाएगा। ग. यदि यह ओवरड्रॉफ्ट अगले दिन तक (रात भर और उसके बाद भी) बना रहता है तो संगत आरबीआई एलएएफ रीपो दर + 300 आधार अंक की दर से ब्याज लिया जाएगा। घ. संगत आरबीआई एलएएफ रीपो दर (रीपो संपार्श्वीकृत होते हैं) पर 100 और 300 आधार अंकों का कुशन प्रदान किया जाता है क्योंकि क्लीयरिंग संबद्ध ओवरड्रॉफ्ट अपनी प्रकृति में संपार्श्वीकृत नहीं होते हैं। ङ. ऐसी स्थितियां जिनमें सदस्य बैंकों के निपटान खाते (संबंधित क्लीयरिंग लोकेशन पर निपटानकर्ता बैंक के साथ) समय पर क्रेडिट नहीं किए जाते हैं और निपटानकर्ता बैंक ने ओवरड्रॉफ्ट प्रभार लगा दिए हैं, जबकि निधियां तो पहले ही प्रेषित की जा चुकी हैं और निपटानकर्ता बैंक के खाते में मुम्बई में (या किसी अन्य केन्द्रीय लोकेशन पर – आरटीजीएस के माध्यम से या अन्य प्रकार से) क्रेडिट की जा चुकी हैं, तो ओवरड्रॉफ्ट प्रभारों को लौटाना होगा यदि सदस्य बैंक यह सिद्ध कर दे कि निपटानकर्ता बैंक द्वारा निधियां समय पर प्राप्त कर ली गई थीं। ये संशोधन इस परिपत्र की तारीख से अनुमेय हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा ये अनुदेश भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 (सन 2007 का अधिनियम 51) के तहत इसे प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए जारी किए गए हैं। भवदीय, (जी. पद्मनाभन) |