मास्टर परिपत्र - प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात और सांविधिक चलनिधि अनुपात - आरबीआई - Reserve Bank of India
मास्टर परिपत्र - प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात और सांविधिक चलनिधि अनुपात
आरबीआई /2005-2006/70
बैंपविवि. सं. आरईटी बीसी. 18 /12.01.001/2005-06
19 जुलाई 2005
28 आषाढ़ 1927 (शक)
सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों
के मुख्य कार्यपालक
मबेदय,
मास्टर परिपत्र - प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात और सांविधिक चलनिधि अनुपात
वफ्पया उपर्युक्त विषय पर दिनांक 5 अप्रैल 2004 का मास्टर परिपत्र आरबीआई/2004 /100 बैंपविवि. सं. आरईटी. बीसी. 23/12.01.001/2004-05 देखें । हम उपर्युक्त मास्टर परिपत्र का अद्यतन पाठ इसके साथ संलग्न करते हैं ।
2. यह मास्टर परिपत्र भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा इस विषय पर जारी किए गए परिपत्रों में निहित ऐसे अनुदेशों का संकलन है जो यह परिपत्र जारी किए जाने की तारीख को लागू हैं।
भवदीय
(प्रशांत सरन)
मुख्य मबप्रबंधक
1. |
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2. |
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2.1 |
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2.2 |
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2.3 |
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2.3.1. |
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2.3.2 |
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2.3.3 |
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2.3.4 |
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2.3.5 |
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2.3.6 |
मांग और मीयादी देयताओं/निवल मांग और मीयादी देयताओं के प्रयोजन हेतु शामिल न करने योग्य देयताएं |
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2.3.7 |
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2.3.8 |
विदेशी मुद्रा अनिवासी खातों (बैंक) और |
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2.3.9 |
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2.3.10 |
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2.3.11 |
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2.3.12 |
प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात के अंतर्गत |
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2.3.13 |
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2.3.14 |
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3. |
सांविधिक चलनिधि अनुपात |
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3.1 |
सांविधिक चलनिधि अनुपात के प्रयोजनार्थ मांग और |
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3.2 |
सांविधिक चलनिधि अनुपात के लिए |
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3.3 |
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3.4 |
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3.5 |
मांग और मीयादी देयताओं की गणना की शुद्धता |
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मास्टर परिपत्र - प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात और सांविधिक चलनिधि अनुपात
अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा प्रारक्षित निधि संबंधी सांविधिक अपेक्षाओं, अर्थात् प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात और सांविधिक चलनिधि अनुपात से संबंधित अपेक्षाओं के अनुपालन पर नज़र रखने की दृष्टि से भारतीय रिज़र्व बैंक ने भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 24 के अंतर्गत फार्म ङघ्घ्घ् विवरणी तथा बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 24 के अंतर्गत फार्म ए विवरणी निर्धारित की है । प्रारक्षित निधि संबंधी अपेक्षाओं का विस्तफ्त विवरण संक्षेप में नीचे दिया जा रब है ।
2. प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात
2.1 प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात रखना
भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42 (1) के अनुसार अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के लिए यह ज़रूरी है कि वे भारतीय रिज़र्व बैंक के पास औसत नकदी शेष रखें जिसकी राशि, पाक्षिक आधार पर, भारत में निवल मांग और मीयादी देयताओं के योग के तीन प्रतिशत से कम नहीं बेगी । भारतीय रिज़र्व बैंक को भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के अंतर्गत यह अधिकार है कि वह प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात की उक्त दर को ऐसी उच्चतर दर तक बढ़ा सके जो निवल मांग और मीयादी देयताओं के 20 प्रतिशत से अधिक न बे । इस समय, 02 अक्तूबर 2004 से आरंभ बेनेवाले पक्ष से प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात की दर निवल मांग और मीयादी देयताओं का 5 प्रतिशत है ।
2.2 वर्धमान प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात रखना
भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42 (1ए) के अनुसार अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के लिए यह आवश्यक है कि वे उक्त अधिनियम की धारा 42 (1) के अंतर्गत निर्धारित शेष राशियों के अलावा, अतिरिक्त औसत दैनिक शेष रखें जिसकी राशि भारत के राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित दर से कम नहीं बेगी, तथा ऐसी अतिरिक्त शेष राशि की गणना, अधिसूचना में निर्दिष्ट तारीख को कारोबार की समाप्ति के समय, भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42 (2) में निर्दिष्ट विवरणी में दिखाई गई निवल मांग और मीयादी देयताओं के योग से अधिक, अतिरिक्त राशि को ध्यान में रखते हुए की जाएगी ।
इस समय अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के लिए कोई अतिरिक्त वर्धमान प्रारक्षित नकदी निधि रखने की आवश्यकता नहीं है ।
2.3 मांग और मीयादी देयताओं की गणना
किसी बैंक की देयताएं मांग या मीयादी जमाराशियों या उधारों या देयताओं की अन्य विविध मदों के रूप में बे सकती हैं । बैंकों की देयताएं बैंकिंग प्रणाली के प्रति (जैसा कि भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42 के अंतर्गत परिभाषित है) या दूसरों के प्रति मांग और मीयादी जमाराशियों के रूप में या उधारों के रूप में या देयताओं की अन्य विविध मदों के रूप में बे सकती हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42 (1सी) के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक को इस बात के लिए अधिवफ्त किया गया है कि वह किसी भी खास देयता को वर्गीवफ्त कर सके । इसलिए बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे किसी खास देयता के वर्गीकरण के संबंध में कोई संदेह बेने पर आवश्यक स्पष्टीकरण के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक से संपर्क करें ।
"मांग देयताओं" के अंतर्गत ऐसी सभी देयताएं शामिल हैं जो मांग पर देय हैं और उनके अंतर्गत चालू जमाराशियां, बचत बैंक जमाराशियों का मांग देयता भाग, साखपत्रों/गारंटी के बदले धारित मार्जिन, अतिदेय मीयादी जमाराशियों में शेष, नकद प्रमाणपत्र और संचयी/आवर्ती जमाराशियां, बकाया तार अंतरण, मेल अंतरण, मांग ड्राफ्ट, अदावावफ्त जमाराशियां, नकदी जमा खाते में जमाशेष और उन अग्रिमों के लिए जमानत के रूप में रखी गयी जमाराशियां जो मांग पर देय हैं, शामिल हैं । बैंकिंग प्रणाली के बाहर से माँग और अल्प सूचना पर प्रतिदेय धन अन्यों के प्रति देयता के सामने दिखाया जाना चाहिए ।
मीयादी देयताएं वे हैं जो मांग से अन्यथा देय हैं तथा इनके अंतर्गत मीयादी जमाराशियां, नकदी प्रमाणपत्र, संचयी और आवर्ती जमाराशियां, बचत बैंक जमाराशियों का मीयादी देयता भाग, स्टाफ जमानत जमाराशियां, साख पत्र के बदले धारित मार्जिन (यदि मांग पर प्रतिदेय न बे तो), ऐसे अग्रिमों के लिए जमानत के रूप में रखी गयी जमाराशियां जो मांग पर प्रतिदेय न बें, इंडिया मिलेनियम डिपाजिॅट्स और गोल्ड डिपाजिॅट्स ।
2.3.3 विदेश स्थित बैंकों से उधार
भारत स्थित बैंकों द्वारा विदेशों से लिये गये ऋण/उधार "अन्यों के प्रति देयताएं" माने जाएंगे तथा ऐसे मामलों में प्रारक्षित नकदी निधि संबंधी अपेक्षाएं लागू बेंगी।
2.3.4 विप्रेषण सुविधाओं के लिए समरूप बैंकों के साथ समझौता
विप्रेषण सुविधा योजना के अंतर्गत जब कोई बैंक किसी ग्राहक से निधि स्वीकार कर लेता है तब ऐसी निधि उसकी बहियों में देयता (अन्यों के प्रति देयता) बन जाती है । निधि स्वीकार करनेवाले बैंक की देयता तभी समाप्त बेगी जब समरूप बैंक, निधि स्वीकार करनेवाले बैंक द्वारा उसके ग्राहकों को जारी किये गये ड्राफटों को स्वीकार कर लेगा । अत: विप्रेषण सुविधा योजना के अंतर्गत निधि स्वीकार करनेवाले बैंक द्वारा समरूप बैंक पर जारी किये गये ड्राफटों के संबंध में ऐसी अदत्त शेष राशि, निधि स्वीकार करनेवाले बैंक की बहियों में बाहरी देयता के रूप में दिखायी जानी चाहिए तथा ऐसी राशि प्रारक्षित नकदी निधि/सांविधिक चलनिधि अनुपात के प्रयोजन के लिए निवल मांग और मीयादी देयताओं का हिसाब करने हेतु शामिल की जानी चाहिए ।
समरूप बैंकों द्वारा प्राप्त राशि उनके द्वारा ‘बैंकिंग प्रणाली के प्रति देयता’ के रूप में दिखायी जानी चाहिए, न कि ‘अन्यों के प्रति देयता’ के रूप में, और इस तरह की देयता का समायोजन समरूप बैंकों द्वारा अंतर-बैंक आस्तियों में से किया जाना चाहिए । इसी प्रकार ड्राफट /ब्याज/ लाभांश वारंट जारी करने वाले बैंकों द्वारा रखी गयी राशि उनकी बहियों में ‘बैंकिंग प्रणाली के पास आस्ति’ मानी जानी चाहिए और इसका समायोजन उनकी अंतर-बैंक देयताओं में से किया जाना चाहिए ।
2.3.5 अन्य मांग और मीयादी देयताएंअन्य मांग और मीयादी देयताओं के अंतर्गत शामिल हैं - जमाराशियों पर उपचित ब्याज, भुगतान योग्य बिल, अदत्त लाभांश, उचंत खाते में पड़ी हुई ऐसी शेष राशि जो अन्य बैंकों या जनता को देय बे, शाखा समायोजन लेखा के अंतर्गत निवल जमा शेष, "बैंकिंग प्रणाली" को भुगतान योग्य ऐसी राशि जो जमाराशियों या उधारों के रूप में न बे । ऐसी देयताएं (व) अन्य बैंकों की ओर से बिलों के संग्रहण, (वव) अन्य बैंकों को देय ब्याज और इसी तरह की अन्य मदों के चलते निर्मित बे सकती हैं । यदि कोई बैंक "अन्य मांग और मीयादी देयताओं" के योग में से बैंकिंग प्रणाली के प्रति देयताओं को अलग न कर सकता बे तो समग्र ‘अन्य मांग और मीयादी देयताएं’ फॉर्म ए में विवरणी की मद घ्घ् (सी) ‘अन्य मांग और मीयादी देयताएं’ के अंतर्गत दर्शायी जानी चाहिए और अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को इसपर औसत प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात रखना बेगा । अन्य बैंकों को जारी किया गया सहभागिता प्रमाणपत्र, अंतर शाखा समायोजन लेखे में पांच वर्ष से अधिक समय से पफ्थक्वफ्त बकाया जमा प्रविष्टियों से संबंधित अवरुद्ध खाते में बकाया शेष, खरीदे गये/भुनाये गये बिलों पर मार्जिन धन और बैंकों द्वारा देश के बाहर से उधार लिया गया सोना भी अन्य मांग और मीयादी देयताओं के अंतर्गत शामिल किये जाने चाहिए ।
2.3.6 मांग और मीयादी देयताओं/निवल मांग और मीयादी देयताओं के प्रयोजन हेतु शामिल न करने योग्य देयताएं
निम्नलिखित देयताएं प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात के प्रयोजन के लिए देयताओं का अंग नहीं मानी जाएंगी :
क) प्रदत्त पूंजी, प्रारक्षित निधि, बैंक के लाभ-बनि लेखे में कोई भी जमाशेष, भारतीय रिज़र्व बैंक तथा निर्यात-आयात बैंक, नाबाड़, राष्ट्रीय आवास बैंक, भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक इत्यादि शीर्ष वित्तीय संस्थाओं से पुनर्वित्त के रूप में ली गयी राशि ।
ख) वास्तविक /आकलित देयताओं से अधिक, आयकर के लिए प्रावधान की राशि ।
ग) दावों के प्रति जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम से प्राप्त ऐसी राशि जो उनके समायोजन न बेने तक बैंकों द्वारा अपने पास रखी गयी बे ।
घ) गारंटी लागू करके निर्यात ऋण गारंटी निगम से प्राप्त राशि ।
ङ) न्यायालय का निर्णय न बेते तक, दावों के तदर्थ निपटारे के संबंध में बीमा कंपनी से प्राप्त राशि ।
च) कोर्ट रिसीवर से प्राप्त राशि ।
छ) बैंकर स्वीवफ्ति सुविधा के अंतर्गत ऋण-सीमाओं के उपयोग के कारण निर्मित बेनेवाली देयताएं ।
ज) 15 दिन और उससे अधिक तथा एक वर्ष तक की मूल परिपक्कवता अवधि वाली अंतर-बैंक मीयादी जमाराशियां/मीयादी उधार देयताएं, 11 अगस्त 2001 से आरंभ बेनेवाले पखवाड़े से ।
अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को निम्नलिखित देयताओं पर औसत प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात रखने से छूट प्रदान की गयी है :
- भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42(1) के स्पष्टीकरण के खंड (घ) के अंतर्गत, भारत में बैंकिंग प्रणाली के प्रति परिकलित देयताएं ।
- एशियाई समाशोधन यूनियन खातों (अमेरिकी डालर) में जमाशेष।
- भारतीय समाशोधन निगम लिमिटेड (सीसीआईएल) के साथ समर्पाश्विकीवफ्त उधार और ऋणदान संबधी दायित्वों वाले लेनदेन ।
- उनकी अपतटीय बैंकिंग इकाइयों के संबंध में मांग और मीयादी देयताएं ।
यद्यपि अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को उपर्युक्त देयताओं पर औसत प्रारक्षित नकदी निधि रखने से छूट प्रदान की गयी है तथापि उनके लिए यह ज़रूरी है कि वे उनपर तीन प्रतिशत सांविधिक प्रारक्षित निधि रखें । अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए यह अपेक्षित नहीं है कि वे 15 दिन और उससे अधिक तथा एक वर्ष तक की मूल परिपक्वता अवधि वाली अंतर-बैंक मीयादी जमाराशियों/मीयादी उधार संबंधी देयताओं को ‘बैंकिंग प्रणाली के प्रति देयताएं’ के अंतर्गत (फार्म ए की मद घ्) शामिल करें । उसी प्रकार बैंकों को 15 दिन और उससे अधिक तथा एक वर्ष तक की मूल परिपक्कवता अवधि वाली मीयादी जमाराशियों और मीयादी ऋणों से संबंधित अंतर-बैंक आस्तियों को प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात रखने के प्रयोजन के लिए ‘बैंकिंग प्रणाली के पास आस्तियां’ से अलग कर दें । लेकिन इस तरह की छूट सांविधिक चलनिधि अनुपात रखने के मामले में उपलब्ध नहीं बेगी ।
2.3.8 विदेशी मुद्रा अनिवासी खातों (बैंक) और अंतर-बैंक विदेशी मुद्रा खातों से ऋणविदेशी मुद्रा अनिवासी खातों (बैंक) (एफसीएनआर डबी जमा योजना) और अंतर-बैंक विदेशी मुद्रा जमाओं से दिये गये ऋणों को, फॉर्म ‘ए’ में रिपोर्ट देते समय बैंक-ऋण के अंग के रूप में शामिल किया जाना चाहिए । रिपोर्ट देने के प्रयोजन हेतु, विदेशी मुद्रा अनिवासी (बैंक) जमाओं, विदेश स्थित विदेशी मुद्रा आस्तियों और चार प्रमुख मुद्राओं में विदेशी मुद्रा में भारत में बैंक ऋणों को, रिपोर्ट देने के लिए नियत शुक्रवार को फेडाई के मध्याह्न औसत दर पर रुपये में परिवर्तित कर दिया जाना चाहिए ।
2.3.9 बैंकिंग प्रणाली के पास आस्तियांबैंकिंग प्रणाली के पास आस्तियों के अंतर्गत बैंकों के पास चालू खातों में शेष, बैंकों और अधिसूचित वित्तीय संस्थाओं के पास अन्य खातों में शेष, बैंकिंग प्रणाली को ऐसे ऋणों या जमाओं के रूप में उपलब्ध करायी गयी निधियां जो 15 दिनों या उससे कम की मांग या अल्प सूचना पर चुकौती योग्य बें और बैंकिंग प्रणाली को उपलब्ध कराये गये ऐसे ऋण जो मांग और अल्प सूचना पर चुकौती योग्य धन से भिन्न बे । बैंकिंग प्रणाली से प्राप्त बेनेवाली कोई अन्य राशि, जो उपर्युक्त किन्हीं मदों के अंतर्गत वर्गीवफ्त नहीं की जा सकती, बैंकिंग प्रणाली के पास आस्तियों के रूप में मानी जानी चाहिए ।
2.3.10 प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात की गणना के लिए कार्यविधिबैंकों द्वारा नकदी प्रबंधन में सुधार लाये जाने के लिए सरलीकरण के उपाय के रूप में बैंकों द्वारा निर्धारित प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात रखने के मामले में एक पखवाड़े के विलंब की प्रक्रिया 6 नवंबर, 1999 से आरंभ बेनेवाले पखवाड़े से शुरू की गयी है । इस प्रकार सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए अपेक्षित है कि वे दूसरे पूर्ववर्ती पखवाड़े के अंतिम शुक्रवार की स्थिति के अनुसार अपनी निवल मांग और मीयादी देयताओं के आधार पर, निर्धारित प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात जो इस समय (12 अक्तूबर 2004 से आरंभ बेनेवाले पखवाड़े से 5 प्रतिशत की दर पर है) रखें ।
2.3.11 दैनिक आधार पर प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात रखनाबैंकों के आंतर-अवधि नकदी प्रवाह के आधार पर प्रारक्षित नकदी निधि रखने की इष्टतम नीति का चयन करने के मामले में बैंकों को लचीलापन प्रदान करने की दृष्टि से सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए अपेक्षित हैं कि वे 28 दिसंबर, 2002 से आरंभ बेनेवाले पखवाड़े से हर दिन कुल प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात संबंधी अपेक्षा का 70 प्रतिशत न्यूनतम प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात शेष बनाकर रखें । यदि कोई बैंक संबंधित पखवाड़े के दौरान किसी दिन/दिनों प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात का न्यूनतम स्तर बनाये रखने में असफल रहेगा तो उस बैंक को ब्याज की पात्र राशि के 1/14 भाग की सीमा तक का ब्याज अदा नहीं किया जाएगा, भले ही औसत आधार पर प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात में कोई कमी न रही बे ।
2.3.12 प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात के अंतर्गत अनुसूचित वाणिज्य बैंकों द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक के पास रखे गए पात्र नकदी शेष पर ब्याज का भुगतान- भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42(1) और धारा 42 (1ए) के परंतुक के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक के पास रखे गये सभी पात्र नकदी शेषों पर सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को वर्तमान में बैंकों को 3.50 प्रतिशत (18 सितंबर 2004 से प्रभावी) ब्याज दिया जाता है ।
- अनुसूचित वाणिज्य बैंकों से निर्धारित प्रोफार्मा में तिमाही ब्याज दावा विवरण प्राप्त बेने पर प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात संबंधी शेषों पर उन्हें 100 प्रतिशत ब्याज का भुगतान किया जाता था। अप्रैल 2003 से आरंभ करके अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को, उनसे ब्याज दावा विवरण प्राप्त बेने पर प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात संबंधी शेषों पर मासिक आधार पर ब्याज का भुगतान किया गया । अगस्त 2004 से अनुसूचित वाणिज्य बैंकों से ब्याज दावा विवरण प्राप्त हुए बिना ही प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात संबंधी शेषों पर ब्याज का भुगतान किया जा रहा है ।
ववव) निर्धारित दर (वर्तमान में 3.50 प्रतिशत) पर भुगतान योग्य ब्याज की राशि की गणना, प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात संबंधी शेष राशि के पात्र भाग पर 14 दिनों की अवधि के लिए किया जाना है । यदि भारतीय रिज़र्व बैंक के पास रखे गये प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात संबंधी शेष किसी भी पखवाड़े के लिए रखी जानेवाली राशि से कम बे तो चूक के पखवाड़े से संबंधित अवधि के लिए पात्र ब्याज का भुगतान, कमी की राशि की लागत की गणना प्रति वर्ष 25 प्रतिशत वार्षिक की दर पर करने के बाद और इस प्रकार निकाली गयी राशि अदा किये जानेवाले ब्याज की राशि में से घटाने के बाद ही किया जाएगा ।
2.3.13 अर्थ दंडप्रारक्षित नकदी निधि अनुपात रखे जाने में पायी जानेवाली किसी भी कमी की गणना, निवल मांग और मीयादी देयताओं पर रखे जाने के लिए अपेक्षित पात्र नकदी शेषों के आधार पर की जाती है । इस प्रकार निकाले गये भुगतान योग्य ब्याज की कुल राशि में से, कमी की राशि पर प्रति वर्ष 25 प्रतिशत की दर पर गणना की गयी राशि कम कर दी जाती है । यदि कोई ऐसी स्थिति पैदा बे जब कमी की राशि उस स्तर से भी अधिक बे जाए जिसके अंतर्गत निवल आधार पर (अर्थात् प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात से संबंधित कमी की राशि पर ब्याज घटाने के बाद) किसी बैंक द्वारा रखे गये पात्र शेषों पर कोई भी ब्याज भुगतान योग्य न रह जाता बे, तब भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42 की उप-धारा 3 के अंतर्गत उल्लिखित रूप में दांडिक ब्याज लगाया जाता है ।
अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए यह अपेक्षित है कि वे अपेक्षित प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात रखने में हुई चूक के लिए दिनांक, राशि, प्रतिशतता और कारण जैसे विवरण, तथा इस तरह की चूक पुन: न बेने देने के लिए की गयी कार्रवाई की भी सूचना दें ।
2.3.14 फॉर्म ‘ए’ में पाक्षिक विवरणी
भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42(2) के अंतर्गत सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए यह आवश्यक है कि वे संबंधित पखवाड़े की समाप्ति से 7 दिनों के भीतर भारतीय रिज़र्व बैंक को फॉर्म ‘ए’ में एक अनंतिम विवरणी प्रस्तुत करें । इसका उपयोग प्रेस विज्ञप्ति तैयार करने के लिए किया जाता है । अंतिम फॉर्म ‘ए’ संबंधित तिमाही समाप्त बेने के बाद 20 दिनों के भीतर भारतीय रिज़र्व बैंक को भेजा जाना आवश्यक है । "मुद्रा आपूर्ति : विश्लेषण और संकलन की पद्धति" पर गठित किये गये कार्यदल की सिफारिशों के आधार पर, भारत में स्थित सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए यह ज़रूरी है कि वे 9 अक्तूबर, 1998 से आरंभ बेनेवाले पखवाड़े से फॉर्म ‘ए’ विवरणी का ज्ञापन (जिसके अंतर्गत प्रदत्त पूंजी, प्रारक्षित निधियों, मीयादी जमाराशियों - दीर्घावधि और अल्पावधि सहित, जमा प्रमाणपत्रों, निवल मांग और मीयादी देयताओं, प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात संबंधी कुल अपेक्षाओं इत्यादि का विवरण शामिल बे), फॉर्म ‘ए’ विवरणी का अनुबंध ‘ए’ (जिसके अंतर्गत सभी विदेशी मुद्रा देयताओं और आस्तियों का विवरण दिया गया बे) और फॉर्म ‘ए’ विवरणी का अनुबंध ‘बी’ (जिसके अंतर्गत अनुमोदित प्रतिभूतियों तथा गैर-अनुमोदित प्रतिभूतियों में किये गये निवेशों का विवरण शामिल बे), ज्ञापन संबंधी मदें (जैसे शेयरों/डिबेंचरों/प्राथमिक बाज़ार में बांडों में अभिदान) और प्राइवेट प्लेसमेंट के माध्यम से अभिदान का विवरण प्रस्तुत करें ।
फॉर्म ‘ए’ विवरणी में रिपोर्ट देने के लिए बैंकों को चाहिए कि वे विदेश स्थित अपनी विदेशी मुद्रा आस्तियों और 4 प्रमुख विदेशी मुद्राओं (अमेरिकी डालर, ग्रेट ब्रिटेन का पौंड, जापान का येन और यूरो) में भारत में बैंक ऋण को, रिपोर्ट देने के लिए नियत शुक्रवार को फेडाई की मध्याह्न औसत दर पर रुपयों में परिवर्तित कर दें ।
फॉर्म ‘ए’ में पाक्षिक विवरणियों के वर्तमान फार्मेट तथा फॉर्म ‘ए’ में मांग और मीयादी देयताओं की गणना की पद्धति, अर्थात् यदि (घ्-घ्घ्घ्) धनात्मक है, तो ड(घ्-घ्घ्घ्) + घ्घ्, अन्यथा केवल घ्घ्, में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है ।
फॉर्म ‘ए’ में विवरणी की मद संख्या घ्, घ्घ् तथा घ्घ्घ् के संबंध में स्पष्टीकरण नीचे दिया गया है :
मद घ् - भारत में बैंकिंग प्रणाली के प्रति देयताएँ।
मद घ्घ् - भारत में अन्यों के प्रति देयताएँ।
मद घ्घ्घ् - भारत में बैंकिंग प्रणाली के पास आस्तियाँ ।
भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42 (1) के स्पष्टीकरण के खंड (डी) के अनुसार, निवल अंतर-बैंक देयताओं की राशि की गणना बैंकिंग प्रणाली के पास देयताओं में से बैंकिंग प्रणाली की आस्तियाँ घटाने के बाद किया जाएगा । बैंकिंग प्रणाली के अंतर्गत अंतर-बैंक जमाराशियों और उधारों को, जिनकी परिपक्कवता अवधि 15 दिन और उससे अधिक तथा एक वर्ष तक है, 11 अगस्त, 2001 से आरंभ बेनेवाले पखवाड़े से बैंकिंग प्रणाली के प्रति देनदारियों से पूरी तरह बाहर रखा गया हैै । भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42 (1) के अंतर्गत समय-समय पर निर्धारित दरों पर प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात निर्धारित करने के लिए देनदारियों की गणना करने के प्रयोजन के लिए (02 अक्तूबर 2004 से आरंभ बेनेवाले पखवाड़े से इस समय 5 प्रतिशत) यदि निवल अंतर-बैंक देनदारियां धनात्मक बें तो उन्हें कुल निवल मांग और मीयादी देयताओं में से घटा दिया जाना चाहिए । तथापि, कुल निवल मांग और मीयादी देयताओं पर 3 प्रतिशत सांविधिक न्यूनतम प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात की गणना के प्रयोजन हेतु निवल अंतर- बैंक देनदारियों को शामिल किया जाना चाहिए ।
बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 24 (2-ए) के अनुसार सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए यह अपेक्षित है कि वे भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42 के
अंतर्गत रखे जानेवाले औसत दैनिक शेष के अलावा, किसी भी दिन/प्रति दिन कारोबार की समाप्ति के समय ऐसी राशि रखें जो दूसरे पूर्ववर्ती पखवाड़े के अंतिम शुक्रवार की स्थिति के अनुसार भारत में उनकी निवल मांग और मीयादी देयताओं के योग के 25 प्रतिशत से कम नहीं बेगी या भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा भारत के गजट में अधिसूचना द्वारा समय-समय पर निश्चित की गयी ऐसी राशि, जो 40 प्रतिशत से अधिक नहीं बेगी, निम्नलिखित रूप में भारत में रखें ।
क) नकद, या
ख) सोने के रूप में जिसका मूल्यांकन वर्तमान बाज़ार मूल्य से अनधिक मूल्य पर किया गया बे
या
ग) भाररहित अनुमोदित प्रतिभूतियों में जिनका मूल्यांकन भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर निर्दिष्ट मूल्य पर किया गया बे ।
इस समय सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए यह अपेक्षित है कि वे दूसरे पूर्ववर्ती पखवाड़े के अंतिम शुक्रवार की स्थिति के अनुसार भारत में अपनी निवल मांग और मीयादी देयताओं के योग का 25 प्रतिशत एक समान सांविधिक चलनिधि अनुपात रखें, जैसा कि बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 24 के अंतर्गत निर्धारित है ।
3.1 सांविधिक चलनिधि अनुपात के प्रयोजनार्थ मांग और मीयादी देयताओं की गणना हेतु कार्यविधि
बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 24 (2) के अंतर्गत सांविधिक चलनिधि अनुपात के प्रयोजन हेतु कुल निवल मांग और मीयादी देयताओं की गणना की कार्यविधि प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात के प्रयोजन हेतु अपनायी जानेवाली कार्यविधि के समान ही है । तथापि, यह स्पष्ट किया जाता है कि अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए यह ज़रूरी है कि वे 15 दिनों और उससे अधिक तथा एक वर्ष तक की मूल परिपक्कवता अवधि वाली अंतर-बैंक मीयादी जमाराशियों/आवधिक उधारसंबंधी देनदारियों को ‘बैंकिंग प्रणाली के प्रति देनदारियां’ के अंतर्गत शामिल करें । उसी तरह उनके लिए यह भी ज़रूरी है कि वे सांविधिक चलनिधि अनुपात रखने के प्रयोजन हेतु, 15 दिनों और उससे अधिक तथा एक वर्ष तक की मूल परिपक्कवता अवधि वाली मीयादी जमाराशियों और मीयादी ऋणदान से संबंधित अपनी अंतर-बैंक आस्तियों को ‘बैंकिंग प्रणाली के पास आस्तियां’ के अंतर्गत शामिल करें । तथापि, प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात के प्रयोजन हेतु मांग और मीयादी देयताओं/निवल मांग और मीयादी देयताओं की गणना के लिए, ऊपर बतायी गयी देनदारियों और आस्तियों - दोनों को बैंकिंग प्रणाली के प्रति देनदारियों/ आस्तियों के अंतर्गत शामिल नहीं किया जाना है, जैसा कि ऊपर 2.3.7 में बताया गया है ।
3.2 सांविधिक चलनिधि अनुपात के लिए अनुमोदित प्रतिभूतियों का वर्गीकरण और मूल्यांकन
सांविधिक चलनिधि अनुपात के प्रयोजन से अनुमोदित प्रतिभूतियों के वर्गीकरण और मूल्यांकन के संबंध में, बैंक, हमारे मास्टर परिपत्र - आरबीआई /2004-05/47 बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 15/21.04.141/2005-06 दिनांक 12 जुलाई 2005 (समय-समय पर यथासंशेाधित)जो कि बैंकों द्वारा निवेश संविभाग के वर्गीकरण, मूल्यांकन और परिचालन हेतु विवकेपूर्ण मानदंडों से संबंधित है, में निहित अनुदेशों से दिशानिर्देश प्राप्त करें ।
यदि कोई बैंकिंग कंपनी सांविधिक चलनिधि अनुपात की अपेक्षित मात्रा नहीं रख पाएगी तो उसे उस चूक के मामले में भारतीय रिज़र्व बैंक को उस दिन के लिए कमी की राशि पर बैंक दर से 3 प्रतिशत प्रति वर्ष अधिक दर पर अर्थ दंड का भुगतान करना बेगा और यदि ऐसी चूक आगामी परवर्ती कार्य दिवस को भी बनी रहेगी तो कमी की राशि पर चूक वाले संबंधित दिनों के लिए बैंक दर से 5 प्रतिशत प्रति वर्ष अधिक दर पर दांडिक ब्याज अदा करना पड़ेगा ।
3.4 भारतीय रिज़र्व बैंक को फॉर्म VIII में विवरणी प्रस्तुत करना
(व) बैंकों को हर महीने की 20 तारीख से पहले भारतीय रिज़र्व बैंक को ठीक पिछले महीने के एकांतर शुक्रवारों को रखे गये सांविधिक चलनिधि अनुपात की राशि दिखाते हुए फॉर्म ङघ्घ्घ् में एक विवरणी प्रस्तुत करनी चाहिए तथा ऐसे शुक्रवारों को रखी गयी भारत में मांग और मीयादी देयताओं का विवरण भी साथ में देना चाहिए या यदि ऐसे शुक्रवार को परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 के अंतर्गत सार्वजनिक अवकाश का दिन घोषित किया गया बे तो उससे पूर्ववर्ती कारोबार के दिन की समाप्ति के समय का विवरण दिया जाना चाहिए ।
(वव) बैंकों को फॉर्म ङघ्घ्घ् के अनुबंध के रूप में एक विवरण भी प्रस्तुत करना चाहिए जिसमें (क) सांविधिक चलनिधि अनुपात के अनुपालन के प्रयोजन हेतु रखी गयी प्रतिभूतियों का मूल्य और (ख) भारतीय रिज़र्व बैंक के पास उनके द्वारा रखे गये अतिरिक्त नकदी शेषों का निर्र्धारित फॉर्मेट में विवरण दिया गया बे ।
3.5 मांग और मीयादी देयताओं की गणना की शुद्धता सांविधिक लेखा-परीक्षकों द्वारा प्रमाणित किया जाना
सांविधिक लेखा-परीक्षकों को यह सत्यापित और प्रमाणित करना चाहिए कि बैंक की बहियों के अनुसार बाहरी देयताओं की सभी मदों का विधिवत् बैंक द्वारा संकलन कर लिया गया था और उन्हें संबंधित वित्तीय वर्ष के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक को भेजी गयी पाक्षिक/मासिक सांविधिक विवरणियों में मांग और मीयादी देयताओं/निवल मांग और मीयादी देयताओं के अंतर्गत ठीक-ठीक दर्शाया गया था ।
मास्टर परिपत्र
प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात और सांविधिक चलनिधि अनुपात
मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची
क्रम सं. |
परिपत्र सं. |
दिनांक |
विषय |
इस मास्टर परिपत्र में समरूप पैराग्राफ सं. |
1. |
बैंपविवि. सं. एलईजी. बीसी. 34/सी. 233ए-85 |
23/03/1985 |
मांग देयताएं, मीयादी देयताएं, अन्य मांग और मीयादी देयताएं
|
2.3.1, 2.3.2, 2.3.5 |
2. |
बैंपविवि.सं.बीसी.111/ 12.02.001/97 |
13/10/1997 |
विदेश स्थित बैंकों से उधार लेना प्रारक्षित नकदी निधि अपेक्षाओं का पालन
|
2.3.3 |
3. |
बैंपविवि.सं.आरईटी.बीसी.14/12.01. 001/ 2003-04
|
21/08/2003 |
संपर्ककर्ता बैंक के साथ विप्रेषण सुविधाओं के लिए व्यवस्था |
2.3.4 |
4. |
बैंपविवि.सं.149/सी.236 (जी) 71 |
27/12/1971 |
सहभागिता प्रमाणपत्र को अन्य मांग और मीयादी देयताओं में शामिल करना
|
2.3.5 |
5. |
बैंपविवि.सं.बीसी. 58/ 12.02.001/94-95
|
13/05/1995 |
खरीदे गये बिलों पर मार्जिन धन |
2.3.5 |
6. |
बैंपविवि. सं. आरईटी. बीसी.40/सी.236 (जी) एसपीएल-86
|
27/03/986 |
डी.आई.सी.जी.सी. से प्राप्त राशि |
2.3.6 (सी) |
7. |
बैंपविवि. सं. आरईटी. बीसी. 98/ सी. 96 (आरईटी) -86 |
12/09/1986 |
निवल मांग और मीयादी देयताओं से अलग करना - कोर्ट रिसीवर, बीमा और ई.सी.जी.सी. से प्राप्त |
2.3.6 (डी, ई, एफ) |
8. |
बैंपविवि.सं.बीसी. 191/12.01.001/93 |
2/11/1993 |
बैंकर्स स्वीवफ्ति सुविधा (बीएएफ) के अंतर्गत देयताएँ |
2.3.6 (जी) |
9. |
बैंपविवि.सं.बीसी.5/12.01.001/2001-02 |
7/08/2001 |
फॉर्म ए में अंतर बैंक देनदारियों की रिपोर्ट भेजना |
2.3.6 (एच) 2.3.7 |
10. |
बैंपविवि. सं. बीसी. 82/12.01.001/ 2001-2002
|
26/03/2002 |
प्रा. न. नि. अनु. रखना - एशियाई समाशोधन संगठन डॉलर निधि - छूट |
2.3.7 (वव) |
11. |
बैंपविवि.सं.आरईटी.बीसी.63/12.01.001/2003-04 |
14/01/2004 |
संपार्शिविकीवफ्त उधार और ऋण दान दायित्व सी बी एल ओ में लेनदेन पर प्रा. न. नि. अनु. / सां. च. नि. अनु. रखना |
2.3.7 (ववव) |
12. |
बैंपविवि.आइबीएस. बीसी.88/23.13. 04/ 2002-03
|
27/03/2003 |
विशेष आर्थिक क्षेत्रों में अपतटीय बैंकिंग इकाइयां |
2.3.7 (वख्) |
13. |
बैंपविवि.सं.बीसी.50/ 12.01.001/2000-01
|
7/11/2000 |
अनुसूचित वाणिज्य बैंकों से अनुबंध ए और बी में आंकड़े एकत्र करना |
2.3.8 |
14. |
आरबीआई/2004-05/172. बैंपविवि. सं. आरइा्रटी. बीसी. 41/ 12.02.001/2004-05 |
29/04/2003 |
प्रा.न.नि.अनु. रखना |
2.1, 2.3 10, 2.3 12 |
15. |
बैंपविवि. सं. बीसी. 54/ 12.01.001/2002-03
|
27/12/2002 |
दैनिक न्यूनतम प्रा.न.नि.अनु. रखने के मामले में शिथिलता |
2.3.11 |
16. |
बैंपविवि. आरईटी. बीसी. सं. 79/12.10. 001/ 2002 -2003 |
7/03/2004 |
पात्र प्रा.न.नि. शेषों पर हर महीने ब्याज का भुगतान - ब्याज दावा प्रस्तुति हेतु फार्मेट में संशोधन -फॉर्म ए के लिए नया सॉफटवेयर शुरू करना |
2.3.12 (वव) |
17. |
बैंपविवि. सं. आरईटी. बीसी. सं. 98/12.01.001 /2003-04 |
18/06/2004 |
पात्र प्रा.न.नि.अनु. शेषों पर मासिक आधार पर ब्याज भुगतान हेतु कार्यविधि में संशोधन |
2.3.12 (वव) |
18. |
बैंपविवि.सं.आरईटी. बीसी.61/सी.96 (आरईटी)-90 |
24/12/1990 |
प्रा.न.नि.अनु. रखने में कमी - क्रमिक ब्याज दर योजना |
2.3.12 (ववव) |
19. |
बैंपविवि. बीसी. 89/ 12.01.001/98-99 |
24/08/1998 |
फॉर्म ए में विवरणी |
2.3.14 |
20. |
बैंपविवि. सं. बीसी. 117/ 12.02.01/ 97-98 |
21/10/1997 |
सां.च.नि.अनु.का युक्तिसंगत बनाया जाना |
3 |
21. |
बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी.32/21.04.048/2000-2001 |
16/10/2000 |
बैंकों द्वारा निवेशों के वर्गीकरण और मूल्यांकन के लिए दिशा-निर्देश |
3. 2 |
22. |
बैंपविवि. सं. बीसी. 87/ 12.02.001/2001-2002 |
10/04/2002 |
सां. च. अनु. के प्रयोजनार्थ प्रतिभूतियों का मूल्यांकन |
3.2 |
23. |
सीपीसी.बीसी.69/279 (ए)-84 |
20/10/1984 |
सां. च. अनु. रखने के संबंध में आंकड़े - विशेष विवरणी से संबंधित पूरक सूचना |
3.4(वव) |