मास्टर परिपत्र एक्सपोजर मानदंड और सांविधिक/अन्य प्रतिबंध - शहरी सहकारी बैंक - आरबीआई - Reserve Bank of India
मास्टर परिपत्र एक्सपोजर मानदंड और सांविधिक/अन्य प्रतिबंध - शहरी सहकारी बैंक
आरबीआई/2013-14/16 01 जुलाई 2013 मुख्य कार्यपालक अधिकारी महोदया / महोदय मास्टर परिपत्र कृपया उपर्युक्त विषय पर 02 जुलाई 2012 का हमारा मास्टर परिपत्र शबैंवि. बीपीडी (पीसीबी). एमसी.सं. 1/13.05.000/2012-13 (भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट www.rbi.org.in पर उपलब्ध) देखें। संलग्न मास्टर परिपत्र में 30 जून 2013 तक जारी सभी अनुदेशों/दिशा-निर्देशों को समेकित एवं अद्यतन किया गया है तथा परिशिष्ठ में उल्लिखित है। भवदीय (ए.के.बेरा) संलग्नक: यथोक्त ऋण सीमा मानदंड और विषय वस्तु
मास्टर परिपत्र ऋण सीमा संबंधी मानदंड और 1.1 बेहतर जोखिम प्रबंधन के एक विवेकपूर्ण उपाय के रूप में और ऋण जोखिम की ओर केन्द्रित ध्यान को हटाने के उद्देश्य से प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों को -
1.2 इसके अलावा, इन बैंकों के लिए निम्नलिखित के बारे में कतिपय सांविधिक और विनियामक प्रतिबंधों का पालन करना आवश्यक है। (i) शेयरों, डिबेंचरों और बाँडों की जमानत पर अग्रिम (ii) शेयरों, डिबेंचरों और बाँडों में निवेश 1.3 इन सभी पहलुओं पर वर्तमान में प्रचलित अनुदेश निम्नलिखित परिच्छेदों में दिए गए हैं। 2.1 व्यक्ति/ग्रुप उधारकर्ताओं को ऋण प्रदान करने की उच्चतम ऋण सीमा 2.1.1 प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के लिए, अपने निदेशक मंडल के अनुमोदन से बैंक की पूँजीगत निधियों के संबंध में ऋण सीमा की एक उच्चतम सीमा तय करना आवश्यक होगा। इस प्रयोजन के लिए ऋण सीमा में पैरा 2.2.2(ख) में दिए गए विवरण के अनुसार ऋण सीमा (ऋण तथा अग्रिम) और निवेश ऋण सीमा (ग़ैर-एसएलआर) दोनों निहित हैं ताकि - (i) किसी वैयक्तिक उधारकर्ता की ऋण सीमा पूंजीगत निधियों के 15 प्रतिशत से अधिक न हो और (ii) किसी उधारकर्ताओं के समूह की ऋण सीमा पूंजीगत निधियों के 40 प्रतिशत से अधिक न हो । 2.1.2 ऋण की उच्चतम सीमा निर्धारित करने का कार्य प्रतिवर्ष बैंक के तुलनपत्र को अंतिम रुप देने और उसकी लेखापरीक्षा हो जाने के बाद किया जाना चाहिए और उसकी सूचना ऋण मंजूर करनेवाले अधिकारियों तथा बैंक के निवेश विभाग को दी जानी चाहिए । शेअरधारिता को ऋण से जोड़ दिए जाने के कारण तुलनपत्र की तारीख के बाद शेअरपूंजी में हुई वृद्धि अथवा कमी को ध्यान में रखते हुए बैंक अपने निदेशक मंडल के अनुमोदन से अर्ध वार्षिक आधारपर ऋण की उच्चतम सीमा के निर्धारण के लिए स्थिति के अनुसार उपलब्ध शेयर पूंजी की राशि को हिसाब मे लेते हुए नई ऋण सीमा निर्धारित कर सकते हैं । तदनुसार, बैंक यदि चाहे तो 30 सितंबर की स्थिति के अनुसार मौजूद शेयर पूंजी की राशि को हिसाब में लेते हुए नए सिरे से ऋण सीमा का निर्धारण कर सकते हैं। तथापि, शेयर पूंजी में हुई वृद्धि को छोड़कर पूंजीगत निधियों, जैसे कि अर्धवार्षिक लाभ आदि, में हुई वृद्धि ऋण सीमा के निर्धारण के लिए हिसाब में लेने की पात्र नहीं होगी । बैंक यह भी सुनिश्चित करें कि वे भविष्य में पूंजी में और वृद्धि होने की प्रत्याशा को ध्यान में रखकर निर्धारित की गई सीमा से अधिक जोखिम नहीं उठाते हैं । 2.2.1 पूँजीगत निधियां ऋण सीमा मानदंड के प्रयोजन के लिए "पूंजीगत निधियों" में टियर I तथा टियर II दोनों ही पूँजी निहित होगी जैसाकि हमारे पूंजी पर्याप्तता पर मास्टर परिपत्र में परिभाषित किया गया है। 2.2.2 ऋण सीमा के अंतर्गत ऋण सीमा (ऋण तथा अग्रिम) और निवेश ऋण सीमा दोनों ही शामिल होंगे जैसाकि नीचे दर्शाया गया है: 2.2.2.1 ऋण सीमा : (i) ऋण सीमा में (ए) निधिक और गैर - निधिक ऋण सीमाएं और हामीदारी और उसी प्रकार की प्रतिबद्धता, (बी) उपकरण पट्टेदारी एवं किराया खरीद वित्तपोषण के जरिए दी गई सुविधाएं, (सी) आकस्मिक खर्चों को पूरा करने के लिए उधारकर्ताओं को मंजूर की गई तदर्थ सीमाएं शामिल होंगी। (ii) ऋण सीमा में बैंक की अपनी मीयादी जमाराशियों की जमातन पर दिए गए ऋण और अग्रिम शामिल नहीं होंगे। (iii) ऋण जोखिम की सीमा का पता लगाने के लिए मंजूर की गई सीमा या बकाया राशि, जो भी अधिक हो, हिसाब में ली जाएगी। इसके अतिरिक्त पूरी तरह आहरित मीयादी ऋणों के मामले में, जहां मंजूर की गई सीमा के किसी हिस्से के पुन:-आहरण की गुंजाइश न हो, बैंक ऋण जोखिम की सीमा का पता लगाने के लिए बकाया राशि की गणना करें। (iv) गैर निधिक सीमा के संबंध में, ऐसी सीमा या बकाया का 100%; जो भी अधिक हो, को इस प्रयोजन के लिए हिसाब में लिया जाएगा। (v) संघीय /बहुविध बैंकिंग/समूहन प्रत्येक बैंक के शेयर का स्तर एकल उधारकर्ता/समूह की ऋण सीमा (एक्सपोज़र) द्वारा नियंत्रित होगा । 2.2.2. (बी) निवेश ऋण सीमा (ग़ैर-एसएलआर) बैंकों को ’ए’ अथवा समकक्ष रेटिंग वाले वाणिज्यिक पत्रों (सीपी), डिबेंचरों तथा प्रतिदेय किस्म के बांडों में निवेश करने की अनुमति होगी। तथापि, सतत ऋण लिखतों में निवेश की अनुमति नहीं है। बैंकों को ऋण म्यूचअल फंड तथा मुद्रा बाजार म्यूचअल फंड की इकाइयों मे निवेश करने की अनुमति हैं। ए) गैर-एसएलआर प्रतिभूतियों में निवेश गत वर्ष के 31 मार्च की स्थिति के अनुसार बैंक की कुल जमाराशियों के 10 प्रतिशत तक सीमित होना चाहिए। बी) ग़ैर-सूचीबद्ध प्रतिभूतियों में निवेश किसी भी समय कुल ग़ैर-एसएलआर निवेशों के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। जिन मामलों में बैंकों ने पहले ही 10 प्रतिशत की सीमा पार कर ली हो वहाँ ऐसी प्रतिभूतियों में किसी भी प्रकार के वृद्धिशील निवेश की अनुमति नहीं है। शहरी सहकारी बैंकों द्वारा गैर एस एल आर ऋण प्रतिभूतियों में निवेश (प्राथमिक तथा अनुषंगी दोनो ही बाजारों में) जहां प्रतिभूति एक्सचेंज में सूचीबध्द किए जाने का प्रस्ताव निवेश के समय सूचीबध्द प्रतिभूति में निवेश के रुप में माना जा सकता है। यद्यापि, ऐसी प्रतिभूति निर्धारित समय में सूचीबध्द नहीं होती है तो इस प्रकार के निवेश गैर सूचीबध्द गैर एस एल आर प्रतिभूतियों के अंतर्गत शामिल 10 प्रतिशत की सीमा के लिए माना जाएगा । गैर सूची बध्द गैर - एस एल आर प्रतिभूतियो में ऐसे निवेश शामिल करने पर इसे 10 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन समझा जाएगा तथा बैंक को उक्त सीमा तक पहूचने तक गैर एस एल आर प्रतिभूतियों में निवेश करने की अनुमति नहीं होगी । सी) उपर्युक्त सभी निवेश निर्धारित विवेकपूर्ण वैयक्तिक/समूह ऋण सीमाओं के भीतर होंगे। डी) गैर एसएलआर श्रेणी के अतर्गत सभी नए निवेशों के कारेबार के लिए धारित (एचएफटी) / बिक्रीके लिए उपलब्ध (एएफएस) केवल बाजार के लिए अंकित श्रेणियां के अंतर्गत वर्गीकृत किया जाए। यद्यपि आधारभूत संरचना गतिविधियों मे लगी और न्यूनतम सात वर्षो की अवशिष्ट परिपक्वता रखनेवाली कंपनियों द्वारा जारी दिर्घावधिक बांडो मे शहरी सहकारी बैंको द्वारा किया गया निवेश एच टी एम संवर्ग के अधीन वर्गीकृत किया जाएगा । 2.2.3 समूह (ग्रुप) की परिभाषा के बारे में निर्णय को बैंक की धारणा पर छोड़ दिया गया है जिन्हें साधारणत: अपने ग्राहक वर्ग के मूल गठन की जानकारी होती है। कोई उधारकर्ता इकाई विशेष किस समूह से है, इसका निश्चय उनके पास उपलब्ध संबंधित जानकारी के आधार पर किया जा सकता है। इस बारे में मार्गदर्शी सिद्धांत है प्रबंधन और कारगर नियंत्रण में सामंजस्य होना । 2.2.4 एक या एक ही तरह के अधिक साझेदारों के साथ एक ही प्रकार के कारबार जैसे कि वस्तु-निर्माण, प्रक्रिया, व्यापार आदि में लगी विभिन्न फर्मों को सम्बद्ध समूह एवं एक ही स्वामित्व के अंतर्गत आनेवाली इकाइयों को एकल पार्टी माना जाएगा । गैर जमानती अग्रिम 2.2.5 गैर जमानती अग्रिमों में निर्बाध ओवरड्राफ्ट, वैयक्तिक जमानत पर ऋण, खरीदी या भुनाई गई निर्बाध हुंडियां या पारस्पारिक हुंडियां, वसूली के लिए भेजे गए चेकों की जमानत पर खरीदे गए चेक या अनुमत आहरण शामिल होंगे जब कि;
टिप्पणी: प्राथमिक सहकारी बैंक के निदेशक मंडल द्वारा यथाअनुमोदित भारतीय रेल, इंडियन एअरलाइंस निगम, या सड़क और जलमार्ग परिवहन परिचालकों की आधिकारिक रसीदों के बिना प्राप्त सभी विनिमय हुंडिया निर्बाध हुंडिया मानी जाएंगी । फर्म/कंपनियों के निदेशक और रिश्तेदार का हित 2.2.6 वह संस्था जिसमें किसी प्राथमिक सहकारी बैंक के निदेशक या उसके रिश्तेदार का हित निहित है, का तात्पर्य (i) मालिकाना हकवाली संस्थाएं/साझेदारी फर्में (हिन्दू अविभक्त परिवार की संस्था और व्यक्तियों के संघ सहित) जिनमें बैंक के किसी निदेशक या उसके रिश्तेदार का मालिक/ साझेदार/समांशी के रूप में हित निहित हो। (ii) वे निजी/सार्वजनिक लिमिटेड कंपनियां जहां बैंक का कोई निदेशक कंपनी को दिए गए ऋण और अग्रिम की चुकौती के लिए गारंटर रहा हो। 2.2.7 निदेशक का "रिश्तेदार" से तात्पर्य नीचे बताए गए अनुसार निदेशक के किसी भी रिश्तेदार से है; कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति का रिश्तेदार तभी और केवल तभी माना जाएगा, यदि; (ए) वे हिन्दू अविभक्त परिवार के सदस्य हैं; या (बी) वे पति - पत्नी हैं; या (सी) एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से नीचे बताए गए अनुसार संबंधित है;
अन्य वित्तीय सहायता :- 2.2.8 कोई भी अन्य वित्तीय सहायता’ में निधिक और गैर-निधिक ऋण सीमाएं और हामीदारियां एवं उसी प्रकार की निम्नलिखित प्रतिबद्धताएं शामिल हैं। (i) निधि आधारित सीमाओं में ऋण और अग्रिमों के रुप में खरीदे/भुनाए गए बिल, पोतलदानपूर्व और पोतलदानोत्तर ऋण सुविधाएं और उधारकर्ताओं को स्वीकृत पूंजीगत उपकरणों की खरीद एवं किसी अन्य प्रयोजन के लिए स्वीकृत पूंजीगत उपकरणों की खरीद एवं किसी अन्य प्रयोजन के लिए स्वीकृत सीमाओं सहित आस्थगित भुगतान गारंटी सीमा और ऐसी गारंटियां शामिल होंगी जिनके जारी करने पर कोई बैंक अपने ग्राहकों को पूंजीगत आस्तियां प्राप्त करने के लिए वित्तीय दायित्व स्वीकार करता है। (ii) गैर-निधि आधारित सीमाओं में साख-पत्र, गारंटियां और हामीदारियां एवं उसी प्रकार की प्रतिबद्धताएं शामिल होंगी। आवास, स्थावर संपदा, वाणिज्यिक स्थावर संपदा के लिए ऋण सीमा 2.3 प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे अपने निदेशक मंडल के अनुमोदन से, यह सुनिश्चित करने के लिए कि बैंक ऋण निर्माण गतिविधियों के लिए ही इस्तेमाल किया जाता है न कि स्थावर संपदा की सट्टेबाजी के लिए, भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों को ध्यान में रखते हुए स्थावर संपदा ऋण की उच्चतम सीमा के संबंध में व्यापक विवेकपूर्ण मानदंड तैयार करें बशर्ते: 2.3.1 प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों को दी जानेवाली आवास, स्थावर संपदा, वाणिज्यिक स्थावर संपदा के लिए ऋण सीमा उनकी कुल संपत्ति के 10 प्रतिशत तक सीमित होना चाहिए और किसी व्यक्ति को ₹25 तक आवास ऋण या निवासी इकाई के निर्माण के लिए ऋण देना हो तो उक्त एक्सपोज़र को कुल संपत्ति के 5 प्रतिशत से बढाया जा सकता है। 2.3.2 टियर I शहरी सहकारी बैंक किसी निवासी इकाई के प्रत्येक लाभार्थी को ₹30.00 लाख रुपये की अधिकतम सीमा तक आवास ऋण दे सकते हैं। तथापि, टियर II शहरी सहकारी बैंक (वे अन्य सभी बैंक जो टियर I बैंक नहीं हैं *) किसी निवासी इकाई के प्रत्येक लाभार्थी को मौज़ूदा विवेकपूर्ण ऋण-सीमाओं के अंतर्गत ₹ 70.00 लाख रुपये की अधिकतम सीमा तक वयैक्तिक आवास ऋण दे सकते हैं। * टियर I शहरी सहकारी बैंकों को निम्नानुसार श्रेणीबद्ध किया गया है:
उपर दी गयी परिभाषा में उल्लिखित जमाराशि और अग्रिम पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष के 31 मार्च की स्थिति समझे। 2.3.3 कुल आस्तियों की गणना पिछले वर्ष के 31 मार्च के लेखापरीक्षीत तुलन पत्र के आधार पर की जाए। कुल आस्तियों की गणना के लिए हानि, अमूर्त आस्तिया, प्राप्य बिल जैसे उभयपक्षी मदे शामिल न की जाए। 2.3.4 शहरी सहकारी बैंकों द्वारा बिना अग्रिम लिए अपेक्षाकृत छोटे निमार्ण कार्य करनेवाले ठेकेदारों को उनकी निमार्ण सामग्री की जमानत पर दिए गए कार्यशील पूंजी ऋण निर्धारित सीमा में शामिल नहीं है। 2.3.5 शहरी सहकारी बैंकों को पहले हायर फिनासिंग एजेंसी तथा राष्टीय आवास बैंक से प्राप्त पुर्नवित्त की सीमा तक आवास, स्थावर संपदा, वाणिज्यिक स्थावर संपदा को दिए जानेवाले ऋण की निर्धारित सीमा से अधिक ऋण प्रदान करने की अनुमति थी। 2.4.1 विवेकपूर्ण अंतर-बैंक (सकल) निवेश सीमा मांग मुद्रा / सूचना मुद्रा और जमाराशियों सहित सभी प्रयोजनों के लिए अन्य बैंको (अंतर बैक) में किसी शहरी सहकारी बैंक की कुल जमाराशियां यदि कुछ हो, और समाशोधन सुविधा, ग्राहकों की सामान्य खाता बही (सीएसजीएल) सुविधा, मुद्रा तिजोरी सुविधा, विप्रेषण सुविधा और बैंक गारंटी, साख-पत्र आदि जैसी गैर-निधि आधारित सुविधाओं के लिए रखी हो तो उसे 31 मार्च तक अपनी कुल जमा देयताओं के 20 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। वाणिजगयिक बैंकों में और अनुमत अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों में जमलेखा तथा अंतर-बैंक के निवेश के रूप में वाणिज्यिक बैंकों द्वारा जारी जमाप्रमाण पत्रों में निवेश के रूप में धारित शेष को इस 20 प्रतिशत की सीमा में शामिल किया जाएगा। 2.4.2 विवेकपूर्ण अंतर-बैंक काउंटरपार्टी सीमा विवेकपूर्ण अंतर बैंक (सकल) निवेश सीमा के भीतर किसी एकल बैंक के पास जमाराशियां गत वर्ष के 31 मार्च तक जमा करने वाली बैंक की कुल जमा देयताओं के 5 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। विवेकपूर्ण सीमा में छूट संबंधित जिले के मध्यवर्ती सहकारी बैंक अथवा संबंधित राज्य के राज्य सहकारी बैंक में शहरी सहकारी बैंकों द्वारा अनुरक्षित शेष को बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी समितियों पर यथा लागू) की धारा 24 के प्रावधानों के अंतर्गत सांविधिक चलनिधि अनुपात माना जाएगा। इन जमाराशियों को अंतर-बैंक निवेश सीमा पर विवेकपूर्ण सीमा से छूट दी गयी है। ( पैरा 2.4.1 तथा 2.4.2) 2.4.3 ग़ैर-अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों द्वारा अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों में रखी गई जमाराशियां 2.4.3.1 ग़ैर-अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों को मजबूत शहरी सहकारी बैंकों में जमाराशि रखने की अनुमति है बशर्ते वे निम्नलिखित मानदंडों का अनुपालन करते हों:
2.4.3.2 ग़ैर-अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों से प्राप्त जमाराशियों की स्वीकृति निम्नलिखित शर्तों के भी अधीन होगी: i) किसी ग़ैर-अनुसूचित शहरी सहकारी बैंक द्वारा स्वीकृत कुल अंतर-बैंक जमाराशि गत वर्ष के 31 मार्च की स्थिति के अनुसार उसकी मांग एवं मीयादी देयताओं के 10% से अधिक नहीं होना चाहिए। ii) इस प्रकार की जमाराशियों पर दी जाने वाली ब्याज दर बाजार से जुड़ी होनी चाहिए। iii) तथापि, अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों को अन्य अनुसूचित/ग़ैर-अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों में जमाराशि नहीं रखनी चाहिए। 3. गैर जमानती अग्रिमों की उच्चतम सीमा (जमानत सहित और बिना जमानत के) 3.1 गैर-जमानती अग्रिमों की सीमा (जमानत के सहित या रहित) निम्नानुसार है: वैयक्तिक उधारकर्ता तथा समूह उधारकर्ता के लिए सीमा
3.2 ग़ैर - जमानती अग्रिमों की सकल उच्चतम सीमा शहरी सहकारी बैंकों द्वारा उनके सदस्यों को प्रदान समग्र गैर- जमानती ऋण और अग्रिम (जमानत या जमानत के बिना या चेक खरीदी के लिए) पिछले वर्ष के 31 मार्च के लेखापरिक्षीत तुलनपत्र के अनुसार उनकी कुल आस्तियों के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए । प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों को दिए जाने वाले ऋण को बढ़ावा देने और वित्तीय समावेशन को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया गया है कि निम्नलिखित शर्तों को पूरा करने वाले शहरी सहकारी बैंक रिज़र्व बैंक के पूर्वानुमोदन से अपनी कुल परिसंपत्ति के 25 प्रतिशत तक गैर ज़मानती (ज़मानत के साथ या गैर ज़मानत) ऋण प्रदान कर सकते हैं: i) बैंक के संपूर्ण ऋण पोर्टफोलियो प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के तहत सम्मिलित हों। ii) सभी ऋण, छोटे ऋण के रूप में अर्थात् 20,000/- तक ऋण एक खाते में दिए जाने चाहिए। iii) शहरी सहकारी बैंकों का सीआरएआर का मूल्यांकन 9 प्रतिशत तक होना चाहिए। iv) शहरी सहकारी बैंक का मूल्यांकित सकल एनपीए सकल अग्रिम के 10 प्रतिशत से कम होना चाहिए। उपर्युक्त प्रयोजन के लिए पिछले वर्ष की 31 मार्च की वित्तीय मानदंडों की स्थिति के पर विचार किया जाए। मूल्यांकित सीआरएआर और सकल एनपीए का मूल्यांकन, रिज़र्व बैंक द्वारा हाल ही में किए गए निरीक्षण के अनुसार होगा। कोई भी बैंक किसी ऐसे उधारकर्ता को जो किसी दूसरे बैंक से पहले से ही ऋण सुविधाएं ले रहा है, वित्तपोषित बैंक से "अनापत्ति प्रमाणपत्र" प्राप्त किए बिना वित्त प्रदान नहीं करेगा और जहां उधारकर्ता द्वारा ली गई ऋण सुविधा दिशानिर्देश में एकल पार्टी के लिए निर्धारित की गई सीमा से अधिक हो तो भारतीय रिज़र्व बैंक का पूर्व अनुमोदन लेना आवश्यक होगा। 3.2.1 इस तथ्य के मद्देनजर कि वेतनभोगी बैंक किसी संस्था विशेष/संस्थाओं के समूह के वेतनधारी कर्मचारियों को अग्रिम प्रदान करते हैं जिसके लिए उनकी सदस्यता सीमित होती है और अग्रिम की वसूली नियोक्ता द्वारा कर्मचारी के वेतन से कटौती करके की जाती है। वेतनभोगी बैंक निर्धारित सीमा से अधिक ऐसे अग्रिम मंजूर कर सकते हैं बशर्ते वे निम्नलिखित शर्तों का पालन करते हों: (i) संबंधित राज्य सरकार के सहकारी सोसायटी अधिनियम में बैंक के दावों को पूरा करने के लिए नियोक्ता द्वारा कर्मचारी के वेतन से ऋण की आवधिक किस्त की कटौती करने का बाध्यकारी उपबंध किया गया हो। (ii) बैंक ने ऐसे प्रत्येक अग्रिम के लिए इस उपबंध का लाभ उठाया हो। (iii) बैंक ने कर्मचारी की मासिक आय को ध्यान में रखते हुए पे-पैकेट के गुणजों में ऐसे अग्रिमों के लिए एक सामान्य सीमा निर्धारित कर दी हो। 3.2.2 वेतनभोगी सोसायटियों को छोड़कर, प्राथमिक(शहरी) सहकारी बैंकों द्वारा वेतनभोगी उधारकर्ताओं को दिए गए ऐसे अग्रिमों को जहां राज्य सहकारी सोसायटी अधिनियम के उपबंधों के अनुसार अग्रिम की चुकौती उधारकर्ताओं के वेतन से कटौती करे सुनिश्चित की जाती है, सारे सदस्यों को मिलाकर दिए गए कुल गैर-जमानती अग्रिमों के अभिकलन के प्रयोजन के लिए जमानती अग्रिम के लिए हिसाब में लिया जाएगा। प्रत्येक वेतनधारी उधारकर्ताओं को अग्रिम प्रदान करते समय बैंक यह सुनिश्चित करें कि ये अग्रिम गैर-जमानती अग्रिमों की उच्चतम सीमा से, जैसा कि पैरा 3.1 में बताया गया है, अधिक नहीं होने चाहिए। 4.1 बैंक के अपने शेयरों की जमानत पर अग्रिम बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी सोसायटियों पर यथालागू) की धारा 20 (1)(क) के अनुसार कोई भी प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक अपने ही शेयरों की जमानत पर अग्रिम नहीं दे सकता है। 4.2 ऋण कम करने की शक्तियों पर प्रतिबंध 4.2.1 बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी सोसायटियों पर यथालागू की धारा 20-क (1) यह निर्धारित करती है कि कोई भी प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक, रिज़र्व बैंक की पूर्व अनुमति लिए बिना निम्नलिखित द्वारा उसे देय किसी भी ऋण की सारी राशि या आंशिक राशि को कम नहीं करेगा; (i) उसके किसी भूतपूर्व या वर्तमान निदेशक, या (ii) कोई फर्म या कंपनी जिसमें उसके किसी भी निदेशक का निदेशक, साझेदार, प्रबंधकीय एजेंट या गारंटर के रूप में हित निहित हो, या (iii) किसी व्यक्ति को, यदि उसका कोई निदेशक उस व्यक्ति का साझेदार या गारंटर हो 4.2.2 उक्त अधिनियम की धारा 20-क (2) के अनुसार ऊपर बताई गई उप-धारा (1) के उपबंधों के उल्लंघन में की गई कोई भी कमी अमान्य और अप्रभावी होगी। 5.1 निदेशकों और उनके रिश्तेदारों को ऋण और अग्रिम प्रदान करना 5.1.1 01 अक्तूबर 2003 से प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों को अपने निदेशकों या उनके रिश्तेदारों और उन फर्मो /कंपनियों/ संस्थाओं को जिनमें उनका हित निहित है, जमानती या गैर जमानती ऋण और अग्रिम या कोई भी वित्तीय सहायता देने से मना किया गया है। मौजूदा अग्रिमों को उनकी देय तारीख तक जारी रखने की अनुमति दी गई है। अग्रिमों को न तो आगे नवीनीकृत किया जाएगा और न ही आगे और दिया जाएगा। 5.1.2 निदेशकों से संबंधित ऋणों की निम्नलिखित श्रेणियों को उपर्युक्त अनुदेशों के दायरे से मुक्त रखा गया है।
5.1.3 बैंकों के लिए अपने निदेशकों और उनके रिश्तेदारों को दिए गए ऋण और अग्रिमों की सूचना प्रत्येक तिमाही की समाप्ति (अर्थात् 31 मार्च, 30 जून, 30 सितंबर और 31 दिसंबर) पर अनुबंध1 में दिए प्रोफार्मा में संबंधित तिमाही की समाप्ति से 15 दिनों के अंदर इस विभाग के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को देना आवश्यक है। 5.1.4 बैंक प्रशासक /प्रभारी व्यक्ति द्वारा चलाए जाने की स्थिति में संबंधित बैंक को चाहिए कि वह विशेष अधिकारी/प्रशासक तथा उनके रिश्तेदारों द्वारा लिए गए ऋणों और अग्रिमों के संबंध में जानकारी प्रस्तुत करे। नाममात्र के सदस्यों को अग्रिम की अधिकतम सीमा 5.2 बैंक नाममात्र सदस्यों को निम्नलिखित उच्चतम सीमा के अधीन उपभोक्ता वस्तुएं खरीदने के लिए अल्प/अस्थायी अवधि के लिए ऋण मंजूर कर सकते हैं:
अन्य बैंकों द्वारा जारी सावधि जमा रसीदों (एफडीआर) की जमानत पर अग्रिम 5.3 बैंकों को अन्य बैंकों की एफडीआर/मीयादी जमा राशियों की जमानत पर अग्रिम मंजूर नहीं करने चाहिए। पूरक (ब्रीज) ऋण/अंतरिम वित्तपोषण 5.4 प्राथमिक शहरी सहकारी बैंकों को पूंजी/डिबेंचरों के निर्गमी की जमानत पर दिए जानेवाले ऋणों सहित पूरक ऋण/अंतरिम वित्त पोषण और/या ब्रीजिंग स्वरूप के ऋणों के रूप में उन प्रस्तावों को स्वीकार करने से मना कर दिया गया है जहां बाजार से सभी प्रकार की गैर बैंकिंग कंपनियों अर्थात् उपकरण लीजिंग, किराया खरीद, ऋण, निवेश और अवशेषी गैर बैंकिंग कंपनियों से पूंजी/जमा राशियों के रूप में दीर्घावधि निधियां जुटाई जानी हैं । 5.5 शेयरों, डिबेंचरों और बांडों की जमानत पर ऋण और अग्रिम 5.5.1 शेयर दलालों (स्टॉक ब्रोकरों) को बैंक वित्त 5.5.1.1 शहरी सहकारी बैंकों को शेयर दलालों को शेयरों तथा डिबेंचरों/बांडों अथवा सावधि जमाराशियों, भारतीय जीवन बीमा निगम की पॉलिसियों आदि जैसी अन्य प्रतिभूतियों पर कोई निधिक या ग़ैर-निधिक ऋण सुविधाएं, चाहे वे जमानती हों या ग़ैर-जमानती, देने से प्रतिबंधित किया गया है। 5.5.1.2 शहरी सहकारी बैंकों को पण्य (कोमोडिटी) दलालों को कोई सुविधा प्रदान करने की अनुमति नहीं दी गई है। इसके अंतर्गत उनकी तरफ से गारंटियां जारी करना भी शामिल है। 5.5.1.3 म्युचूअल फंड की यूनिटों पर अग्रिम केवल व्यक्तियों को दिया जा सकता है जैसा कि शेयरों, डिबेंचरों तथा बाण्डों पर अग्रिम के मामले में किया जाता है। (पैरा 5.5.2) 5.5.2 यदि प्रतिभूति भौतिक रूप में हो तो शेयरों डिबेंचरों की प्राथमिक/संपाश्दिवक जमानत पर ऋण की सीमा 5 लाख रुपये तथा यदि प्रतिभूति डिमैट रूप में हो तो ऋण की राशि 10 लाख रुपये तक सीमित होगी। 5.5.3 इस प्रकार के सभी अग्रिमो पर 50% का मार्जिन बनाए रखा जाना चाहिए। 5.5.4 शेयरों और डिबेंचरों की जमानत पर दिए गए सभी ऋणों की कुल राशि बैंक की स्वाधिकृत निधियों के 20 प्रतिशत की सकल उच्चतम सीमा के अंदर होनी चाहिए। 5.5.5 बैंकों के लिए यह आवश्यक है कि वे प्रत्येक उधारकर्ता व्यक्ति और अन्य संस्थाओं को शेयरों की जमानत पर दिए गए ऋणों की बकाया राशि तिमाही आधारपर अनुबंध 2 में दिए गए फार्मेट में रिज़र्व बैंक के क्षेत्रीय कार्यालय को सूचित करें। 5.5.6 यह आवश्यक है कि शेयरों को जमानत के रुप में स्वीकारने से पहले बैंकों को एक यथोचित जोखिम प्रबंध प्रणाली आरंभ करनी चाहिए। सभी अनुमोदित ऋण प्रस्तावों को दो माह में कम से कम एक बार बैंक की लेखा परीक्षा के समक्ष रखना चाहिए। प्रबंध और लेखा परीक्षा समिति को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शेयरों की जमानत पर सारे ऋण केवल उन्हीं व्यक्तियों को दिए जाते हैं जो स्टॉक दलाली संस्था से किसी भी तरह से जुड़े नहीं है। मंजूर किए गए ऋणों के ब्योरे बोर्ड की आगामी बैठक में सूचित किए जाने चाहिए। अधिमानी शेयर तथा लंबावधि (सबोरडिनेट) जमाराशियों की जमानत पर बैंक वित्त 5.6 प्राथमिक शहरी सहकारी बैंकों को अन्य बैंकों द्वारा जारी सतत असंचयी अधिमानी शेयर (टियर I), अन्य अधिमानी शेयर (टियर II ), जैसे सतत संचयी अधिमानी शेयर, प्रतिदेय असंचयी अधिमानी शेयर, प्रतिदेय संचयी अधिमानी शेयर तथा लंबावधि (सबोरडिनेट) जमाराशि (टियर I) में निवेश नहीं करना चाहिए और न ही उक्त लिखतों की जमानत पर अग्रिम मंजूर करना चाहिए। 5.7 ग़ैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं (एनबीएफसी) को बैंक वित्त 5.7.1 सदस्य के रूप में एनबीएफसी को प्रवेश देना (i) प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक से ऋण अथवा अग्रिम लेने के लिए उसका सदस्य होना आवश्यक है। तथापि, प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों से सामान्यत: यह अपेक्षित नहीं है कि वे गैर-वित्तीय कंपनियो को (बैंक के कारोबार के साथ स्पर्धा या प्रतिद्वंिद्वता करनेवाली निवेश और वित्तीय कंपनियां और व्यक्तिं) अपना सदस्य बनाएं क्योंकि यह संबंधित राज्य सहकारी सोसायटी अधिनियम का उल्लंघन होने के साथ-साथ आदर्श उप-विधि संख्या 9 के उपबंधों के अनुरुप भी नहीं होगा। अत: बैंकों को किराया खरीद/लीजिंग में कारोबार करनेवाली उन बीएफसी को छोड़कर अन्य एनबीएफसी को वित्तपोषण प्रदान नहीं करना चाहिए। (ii) इसी प्रकार उन बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को सदस्य के रूप में प्रवेश देना जो लीजिंग/किराया खरीद के कारोबार से अभिन्न रूप से नहीं जुड़ी हैं; संबंधित राज्य सहकारी सोसायटी अधिनियम और आदर्श उपविधि संख्या 9 के विरुद्ध होगा। इसलिए प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के लिए यह आवश्यक होगा कि वे ऐसी लीजिंग/किराया खरीद कंपनियों को सदस्य बनाने से पहले संबंधित निबंधक, सहकारी सोसायटियां का पूर्वानुमोदन प्राप्त कर लें। किराया खरीद/लीजिंग कार्यकलापों में कार्यरत एनबीएफसी को वित्तपोषण प्रदान करने के लिए पात्र कार्यकलाप 5.7.2 ऋण सीमा संबंधी निर्धारित मानदंडों एवं ऊपर बताए गए प्रतिबंधों के भीतर पाथमिक (शहरी) सहकारी बैंक जिनकी सकल पूंजीगत निधियां 25 करोड़ रुपये और अधिक हैं, उपकरण लीज़िग/किराया खरीद कंपनियों को निम्नलिखित शर्तों के अधीन वित्तपोषण प्रदान कर सकते हैं;
* इक्विपमेंट लिजिंग एण्ड हायर परचेज कंपनियों को अब "असेट फाइनान्स कंपनी " के नाम से जाना जाता है। टिप्पणी: (i) बैंक वित्त की अधिकतम सीमा एमबीएफसी द्वारा उधार लेने की सकल उच्चतम सीमा के भीतर उनकी स्वाधिकृत निधियों का 10 गुना तक होनी चाहिए । (ii) लीजिंग संस्था को बैंक वित्त "पूर्ण प्रदत्त" लीज तक सीमित होना चाहिए अर्थात् वे लीज़ जहां आस्ति का लागत मूल्य प्राथमिक लीज अवधि में ही वसूल कर लिया गया हो और आगे इसमें केवल नए उपकरण की खरीद शामिल होनी चाहिए । (iii) विवेकपूर्ण नीति के अनुसार अगले पांच वर्षों तक देय लीज किराया को ही ऋण देने के प्रयोजन के लिए हिसाब में लिया जाना चाहिए। 5.7.3 किराया खरीद/लीज़िंग कार्यकलापों में जुडी एनबीएफसी को वित्तपोषण प्रदान करने के संबंध में अपात्र कार्यकलाप (i) किराया खरीद/लीज़िंग कार्यकलापों में लगी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा किए जा रहे निम्नलिखितकार्यकलाप बैंक ऋण के लिए पात्र नहीं हैं। इसलिए इन मदों को, सभी श्रेणी की एनबीएफसी के लिए स्वीकार्य बैंक वित्त का परिकलन करते समय चालू आस्तियों में शामिल नहीं किया जाना चाहिए। (ए) एनबीएफसी द्वारा भुनाए/पुनर्भुनाए गए बिल, विशिष्ट रुप से अनुमत बिलों को छोड़कर (बी) चालू स्वरूप के शेयरों/डिबेंचरों आदि अर्थात् स्टॉक-इन ट्रेड में किया गया निवेश (सी) अनुषंगी कंपनियों, सामूहिक कंपनियों या अन्य संस्थाओं में निवेश/को अग्रिम तथा (डी) अन्य कंपनियों में निवेश और आंतर कंपनी ऋण/जमा राशियां (ii) ऊपर (ए) और (बी) में उल्लिखित मदों के संबंध में बैंको को अनुमानित निवल कार्यशील पूंजी में कोई समायोजन नहीं करना चाहिए। यह भी सूचित किया जाता है कि अनुमानित निवल कार्यशील पूंजी चालू परिचालनों के समर्थन में उपलब्ध दीर्घावधि अधिशेष दर्शाती हैं, इसलिए स्वीकार्य बैंक वित्त के अधिकतम स्तर को घटाते समय चालू आस्तियों के स्तर में परिवर्तन/काट-छाँट करने के फलस्वरूप समयोजित नहीं किया जाना चाहिए। 5.7.4 अनुसूचित प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों द्वारा एनबीएफसी को वित्तपोषण प्रदान करना (i) अनुसूचित प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक हल्के वाणिज्यिक वाहनों, दुपहिया वाहनों, तिपाहिया वाहनों सहित वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री से उत्पन्न एवं एनबीएफसी द्वारा भुनाए गए बिलो की ऋण देने के सामान्य सुरक्षा उपायों के अधीन एवं निम्नलिखित शर्तों पर पुनर्भुनाई कर सकते हैं: (ए) बिल निर्माताओं द्वारा डीलरों पर आहरित किए गए हों, (बी) बिल वास्तविक बेक्री लेनदेनों से संबंधित हों जिनकी वास्तविकता का पता चेसिस/इंजिन नंबरों से लगाया जा सकता हो, तथा (सी) बिलों की पुनर्भुनाई से पहले अनुसूचित प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों को बिलों की भुनाई करनेवाली एनबीएफसी की वास्तविकता और पिछले रेकार्ड से आश्वस्त हो लेना चाहिए। (ii) अनुसूचित प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक ट्रक खरीदने के लिए छोटे सड़क और जलमार्ग परिवहन परिचालकों को उधार देने के लिए बैंक वित्त पाने की पात्र एनबीएफसी को वित्तपोषण प्रदान कर सकते हैं और ऐसे अग्रिमों को प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत कर सकते हैं बशर्ते अंतिम उधारकर्ता (छो.स.ज.प.प) प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाने के लिए आवश्यक पात्रता पूरी करते हों। (iii) कृषि के लिए आगे उधार देने के लिए अनुसूचित प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक एनबीएफसी को और अन्य वित्तीय मध्यस्थियों को वित्तपोषण प्रदान कर सकते हैं और उसे कृषि के लिए अप्रत्यक्ष वित्तपोषण के रुप में प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार के प्रयोजन के लिए हिसाब में ले सकते हैं। (iv) अतिलघु क्षेत्र में खाद्य और कृषि प्रक्रिया उद्योग को आगे ऋण देने के लिए अनुसूचित प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक एनबीएफसी और अन्य वित्तीय मध्यस्थियों को वित्तपोषण प्रदान कर सकते हैं और ऐसे वित्तपोषण को इस बात से आश्वस्त हो लेने पर कि अंतिम उधारकर्ता के स्तर पर संबंधित मानदंडों का पालन किया गया है, प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत कर सकते हैं। 5.8 हाईयर परचेस फि नांसिंग तथा इक्विपमेंट लिजिग को वित्तपोषण प्रदान करना 5.8.1 भारत सरकार की 12 दिसंबर 1995 की अधिसूचना के अनुसार प्राथमिक शहरी सहकारी बैंक हाईर परचेस तथा इक्विपमेंट लिजिग कारोबार कर सकता है। अनुसूचित शहरी सहकारी बैंक को यह कार्यकलाप करने की अनुमति हैं। अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों को यह सूचित किया जाता है कि वह यह सुनिश्चित करें कि: (i) यह कार्य बैंकों के चयनित शाखाओं में ही किया जाता है। (ii) इन कार्यों को ऋण और अग्रिम के समान समझना चाहिए तथा यह व्यक्तिगत / समूह उधारकर्ता के लिए विद्यमान ऋण संबंधी मानदंडों के अधीन होंगे। (iii) बैंकों को समग्र ऋण की तुलना में इक्विपमेंट लिजिग, हाईयर परचेस का संतुलित पोर्टफोलिओ रखना चाहिए । इन कार्यो के लिए ऋण जोखिम कुल अग्रिम के 5 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। (iv) यह कार्य करनेवाले बैंकों को विवेकपूर्ण लेखा मानकों का अनुपालन करना चाहिए। संपूर्ण लिज रेंटल को बैंक के आय लेखे में शामिल नहीं करना चाहिए। केवल ब्याज घटक आय लेखे में शामिल करें। आस्ति की प्रतिस्थापन लागत दर्शानेवाला घटक तुलन पत्र में मूल्यह्रास के लिए प्रावधान के रूप में दिखाए। (v) सावधानी उपाय के रूप में आस्ति की प्राथमिक लिज की अवधि में पूर्ण मूल्यह्रास प्रदान किया जाना चाहिए। (vi) अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों द्वारा दिए गए लिजिग तथा हाईयर परचेस फिनांसिंग को प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार के रूप में वर्गीकृत किया जाए। बशर्ते भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को अग्रिम के लिए निर्धारिन पात्रता मानदंड लाभार्थी पूर्ण करता हो। यह कार्य करने के लिए इच्छुक गैर-अनुसूचित बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक की अनुमति ले। 5.9 कृषि कार्य-कलापों के लिए वित्तपोषण 5.9.1 प्राथमिकताप्राप्त (शहरी) सहकारी बैंकों को निम्नलिखित शर्तों के अधीन प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत कृषि कार्य-कलापों को वित्तपोषण प्रदान करने की अनुमति दी गई है: (i) बैंक केवल सदस्योंको (नाममात्र सदस्यों को नहीं) प्रत्यक्ष वित्त पोषण प्रदान करेंगे लेकिन प्राथमिक कृषि क्रेडिट सोसायटी और प्राथमिक भूमि विकास बैंक आदि जैसे एजेंसियों के मार्फत प्रदान नहीं करेंगे। (ii) उस क्षेत्र में कार्यरत मौजूदा क्रेडिट एजेंसियो से "कोई राशि देय नहीं प्रमाणपत्र" प्राप्त करने के बाद ही ऋण प्रदान करेंगे। (iii) बैंक वित्त-मान का पालन करेंगे और भारतीय रिज़र्व बैंक/नाबार्ड द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार जमानत प्राप्त करेंगे। 5.10 स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) संयुक्त देयता समूह (जेएलजी) को ऋण 5.10.1 शहरी सहकारी बैंक स्वयं सहायता समूह /संयुक्त देयता समूह को, भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों के अनुरुप अपने निदेशक मंडल के अनुमोदन से बनायी नीति के अनुसार उधार दे सकते हैं। 5.10.2 शहरी सहकारी बैंक स्वयं सहायता समूह /संयुक्त देयता समूह को सीधे ऋण देने की पद्धति अपनाएं। मध्यस्थों के माध्यम से उधार देने की अनुमति नही है। 5.10.3 गैर-जमानती ऋण और अग्रिम प्रदान करने पर विद्यमान सीमाएं (व्यक्तिगत और कुल) स्वयं सहायता समूहों को उधार देने पर लागू नहीं हैं । तथापि शहरी सहकारी बैंकों द्वारा संयुक्त देयता समूहों को मूर्त जमानत से समर्थित ऋण की सीमा तक उसे गैर-जमातनी समझा जाएगा तथा गैर-जमानती ऋण और अग्रिमो की सीमा के अधीन होगा । 5.10.4 स्वयं सहायता समूह /संयुक्त देयता समूहो को दिए गए ऋण पर वैयक्तिक एक्सपोजर सीमा के दिशानिर्देश लागू होंगे। 5.10.5 स्वयं सहायता समूह को दिए जानेवाले ऋण की राशि समूह की बचत राशि के चार गुना से अधिक नहीं होनी चाहिए । अच्छी तरह प्रबंधित स्वयं सहायता समूहों के मामले में समूह की बचत के दस गुना सीमा तक यह सीमा बढायी जा सकती है । समूह को वस्तुपरक मापदंड के आधार पर जैसे सिद्ध ट्रेक रिकार्ड, बचत का पैटर्न, वसूली दर, हाउस किपिंग, रेटिंग दिया जाए । 5.11 सांविधिक देय राशियों के चूककर्ताओं को अग्रिम देने पर प्रतिबंध 5.11.1 कानून के अंतर्गत, उधारकर्ता नियोक्ता के दिवालिया हो जाने पर या उसके कारोबार बंद कर दिए जाने पर भविष्य निधि के प्रति कर्मचारियों/सदस्यों के वेतन से छ: माह से अधिक अवधि के लिए काटा गया अभिदान यदि आयुक्त को नहीं भेजा जाता है तो उधारकर्ता की आस्तियों पर वह प्रथम प्रभार होगा। उन परिस्थितियों में प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों को ऐसी सांविधिक देय राशियों की तुलना में अपने हितों की रक्षा करनी चाहिए। 5.11.2 अत: बैंकों को उधारकर्ताओं से इस बात का घोषणापत्र लेकर आश्वस्त हो लेना चाहिए कि उधारकर्ता की ओर से भविष्य निधि और अन्य सांविधिक देय राशियां बकाया नहीं हैं और ऐसी सभी देय राशियां अदा कर दी गई हैं। उन्हीं हालातों में प्रमाण की मांग की जानी चाहिए जब बैंक के पास उधारकर्ता के घोषणापत्र पर संदेह करने का कोई ठोस कारण हो। प्रमाण आवश्यक होने पर भी उधारकर्ता के लिए क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त से इस आशय का प्रमाणपत्र लेकर प्रस्तुत किया जाना जरुरी नहीं है। देय राशियों के भुगतान के समर्थन में रसीद का प्रस्तुत किया जाना या उधारकर्ता के लेखा परीक्षक का प्रमाणपत्र या उसी प्रकार का कोई प्रमाण पर्याप्त होगा। बीमार इकाइयों के मामलों में जहां बकाया उधारकर्ताओं के नियंत्रण से बाहर कारणों की वज़ह से है वहां बैंक ऐसे मामले के गुण-दोषों के आधार पर विचार कर सकते हैं। |