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मास्टर परिपत्र - प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों में बैंकों द्वारा किए जाने वाले राहत उपायों के लिए दिशानिर्देश

भारिबैं / 2005-2006 /58
ग्राआऋवि.सं.पीएलएफएस.बीसी. 10 /05.04.02/2006-07

जुलाई 10, 2006

अध्यक्ष / प्रबंध निदेशक /मुख्य कार्यकारी अधिकारी
डसभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के अतिरिक्त)

महोदय,

मास्टर परिपत्र - प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों में बैंकों द्वारा किए जाने वाले राहत उपायों के लिए दिशानिर्देश

कृपया दिनांक 7 जनवरी 2005 का हमारा मास्टर परिपत्र ग्राआऋवि.सं. पीएलएफएस. बीसी.71/ 05.04.02/2005-06 देखें जिसमें प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों में उपलब्ध कराए जाने वाले राहत उपायों से संबंधित मामलों के संबंध में बैंकों को जारी दिशानिर्देश सम्मिलित किए गए थे । उपर्युक्त विषय पर वर्तमान दिशानिर्देशों /अनुदेशों को सम्मिलित करते हुए वर्ष 2005-06 के लिए मास्टर परिपत्र तैयार किया गया है और संलग्न है । इस मास्टर परिपत्र में सम्मिलित परिपत्रों की सूची परिशिष्ट में दी गई है ।

कृपया पावती दें ।

भवदीय

( सी.एस.मूर्ति )
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक


प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों में बैंकों द्वारा राहत उपायों हेतु दिशानिर्देश

हमारे देश में किसी न किसी क्षेत्र में कुछ अन्तरालों पर लेकिन बार-बार होने वाले सूखे, बाढ़, चक्रवात, लहरों के झंझावात और अन्य प्राकृतिक आपदाओं में बड़ी संख्या में लोगों की जान जाती है तथा इससे जनमानस को आर्थिक रुप से भारी हानि होती है । इन प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली हानि की पूर्ति के लिए बड़े पैमाने पर पुनर्वास प्रयासों की आवश्यकता होती है । वाणिज्य बैंकों और सहकारी बैंकों को सौंपी गई विकासात्मक भूमिका हेतु आर्थिक गतिविधियों के पुनर्गठन में उनके सक्रिय समर्थन की आवश्यकता है ।

2. चूंकि प्राकृतिक आपदाओं के आने का समय और स्थान तथा गंभीरता अत्प्रयाशित होती है, अत: यह अत्यावश्यक है कि बैंकों के पास ऐसी घटनाओं के दौरान की जाने वाली कार्रवाई संबंधी योजनाएँ होनी चाहिए ताकि अपेक्षित राहत और सहायता तीव्र गति से तथा बिना समय गँवाए उपलब्ध कराई जा सके । वाणिज्य बैंकों की सभी शाखाओं और उनके क्षेत्रीय और आँचलिक कार्यालयों में उपलब्ध पूर्वानुमानों में स्थायी अनुदेशों का एक सैट होगा जिसमें जिला / राज्य प्राधिकरण द्वारा घोषणा किए जाने के तुरन्त बाद आपदा से प्रभावित क्षेत्रों में शाखाओं द्वारा कार्रवाई आरम्भ करने की जानकारी होगी । यह आवश्यक है कि ये अनुदेश राज्य सरकार प्राधिकरण तथा सभी जिला कलेक्टरों के पास भी उपलब्ध हों ताकि सभी संबंधितों को मालूम हो कि प्रभावित क्षेत्रों मों बैंक की शाखाओं द्वारा क्या कार्रवाई की जानी है ।

3. वाणिज्य बैंकों द्वारा ऋण सहायता के प्रावधान में संक्षिप्त ब्योरा स्थिति की आवश्यकता, उनकी अपनी परिचालनगत क्षमता तथा उधारकर्ताओं की वास्तविक जरुरत पर निर्भर करेगा । वे इसका निर्णय जिला प्राधिकरण के परामर्श से ले सकते हैं ।

4. तथापि, प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित कृषकों, लघु उद्योग इकाइयों, कामगारों, छोटे व्यावसायियों तथा व्यापारिक संस्थानों को वित्तीय सहायता, उपलब्ध कराने के लिए एकसमान तथा संगठित कार्रवाई अवलिम्ब करने के उद्देश्य से निम्नलिखित दिशानिर्देश दोहराते हैं ।

क) जिला परामर्शदात्री समिति की बैठक

वित्तीय संस्थाओं द्वारा समन्वयन तथा अविलम्ब कार्रवाई की दृष्टि से प्रभावित जिलों की जिला परामर्शदात्री समितियों के संयोजकों को प्राकृतिक आपदा घटने के तुरन्त बाद एक बैठक आयोजित करनी चाहिए । राज्य का बड़ा भाग आपदा की चपेट में आने पर राज्य स्तरीय बैंकर समिति भी राज्य / जिला प्राधिकरण के सहयोग से तुरन्त एक बैठक का आयोजन करे । प्राकृतिक आपदा से प्रभावित व्यक्ति को दी जाने वाली सहायता राशि निर्धारित करते समय बैंक राज्य सरकार तथा/अथवा अन्य एजेंसियों से उसे दी जाने वाली सहायता / सब्सिडी का भी ध्यान रखें ।

ख) बैंकों के मंडल / आंचलिक प्रबंधकों को विवेकाधिकार

वाणिज्य बैंकों के मंडल प्रबंधकों / अंचल प्रबंधकों को कतिपय विवेकाधीन शक्तियाँ प्रदान की जानी चाहिए ताकि जिला /राज्य स्तरीय बैंकर समितियों द्वारा अनुमोदित कार्रवाई के लिए उन्हें अपने केन्द्रीय कार्यालयों से दोबारा अनुमोदन लेने की आवश्यकता न हो । उदाहरणार्थ, ऐसी विवेकाधीन शक्तियों की आवश्यकता वित्त की मात्रा, ऋण अवधि को बढ़ाने, उधारकर्ता की कुल देयता के मद्देनजर नए ऋणों की स्वीकृति (अर्थात् पुराने ऋणों, जहाँ वित्तपोषित आस्तियाँ नष्ट हो गई हैं तथा ऐसी आस्तियों के सृजन / मरम्मत के लिए नए ऋण ), मार्जिन, प्रतिभूति इत्यादि के लिए होगी ।

ग) हिताधिकारियों की पहचान

बैंक शाखाओं को संबंधित सरकारी प्राधिकरणों से अपने परिचालन क्षेत्र में प्रभावित गाँवों की सूचियाँ प्राप्त करनी चाहिए । पहचान किए गए लोगों में से बैंकों के वर्तमान घटकों द्वारा क्षति का मूल्यांकन करना आसान होगा । तथापि, नए उधारकर्ताओं के बारे में इस संबंध में जाँच अपने विवेक के आधार पर की जानी चाहिए तथा उनकी आवश्यकताओं की वास्तविकता सुनिश्चित करने के लिए सरकारी प्राधिकरणों की सहायता, जहाँ भी उपलब्ध हो, लेनी चाहिए । फसल ऋण के संबंध में परिवर्तन सुविधा उपलब्ध कराने के लिए क्षेत्रों की पहचान की प्रक्रिया, जहाँ ऐसी सुविधाएँ उपलब्ध करानी हैं, नीचे पैराग्राफ 9 में फसल ऋण के अन्तर्गत निर्दिष्ट की गई हैं ।

घ ) कवरेज

  1. प्रत्येक शाखा न केवल वर्तमान उधारकर्ताओं को , बल्कि अपने क्षेत्र के अन्य पात्र व्यक्तियों को भी ऋण सहायता देगी, बशर्ते कि उन्होंने किसी अन्य वित्तीय एजेंसी के माध्यम से सहायता न ली हो ।

वव) सहकारी समितियों के उधारकर्ता सदस्यों की ऋण आवश्यकताएं प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां (पीएसीएस) / बड़े आकारवाली बहु उद्देशीय समितियां (पीएएमपीएस) / कृषक सेवा समितियां (एफएसएस) आदि पूरी करेंगी । तथापि, वाणिज्य बैंकों की शाखाएं सहकारी समितियों के उधार न लेनेवाले सदस्यों को वित्त प्रदान कर सकती हैं, जिसके लिए सहकारी समितियां सामान्य "अनापत्ति" प्रमाणपत्र शीघ्र जारी करेंगी ।

ङ) प्राथमिकताएं

खड़ी फसलों / फलोद्यानों / फसलों आदि को बचाने और क्षय से रोकने के लिए वित्त उपलब्ध कराने के साथ साथ तुरंत सहायता की आवश्यकता होगी । पशुधन शेड, अनाज और चारा रखने के भंडारण, ड्रेनेज, पंपिंग की मरम्मत और बचाव तथा पंपसेटों, मोटरों, इंजिनों और अन्य उपस्करों के मरम्मत के लिए कार्रवाई और अन्य उपाय भी उतने ही जरुरी हैं । मौसमी आवश्यकताओं के अधीन अगली फसल का वित्तपोषण किया जाए ।

च) कृषि ऋण

व) फसलें उगाने के लिए अल्पावधि ऋण तथापि दुधारु / जुताई पशुओं की खरीद, चालू नलकूप और पंपसेट की मरम्मत, नए नलकूपों की खुदाई और नए पंपसेट लगाना, भूमि सुधार, सिल्ट /रेत हटाना, खड़ी फसलें /फलोद्यान/बागान आदि को बचाने तथा क्षय से रोकने, पशुधन शेड, अनाज और चारा रखने के भंडारण की मरम्मत और बचाव आदि के लिए मीयादी ऋण के रुप में कृषि के संबंध में बैंक सहायता की आवश्यकता होगी ।

वव) बैंक प्रभावित उधारकर्ताओं को नए ऋण की मात्रा, फसल की क्षति / वित्त का मान और उनकी चुकौती क्षमता को ध्यान में रखते हुए अपने आप निर्धारित कर सकते हैं ।

छ) फसल ऋण

प्राकृतिक आपदाओं के मामले जैसे सूखा, बाढ़ आदि में सरकारी प्राधिकारी फसल की क्षतिग्रस्त मात्रा को दर्शाने के लिए अन्नेवारी घोषित कर सकते थे । तथापि, जहाँ ऐसी घोषणा न की गई हो, बैंकों को परिवर्तन सुविधाएँ उपलब्ध कराने में विलंब नहीं करना चाहिए तथा जिलाधीश से इस संबंध में (जिसके लिए एक विशेष बैठक का आयोजन करना पड़े) जिला परामर्शदात्री समिति के विचारों से समर्थित इस आशय का प्रमाणपत्र कि फसल की उपज सामान्य ऋण के 50% से कम है, तत्काल सहायता व्यवस्था उपलब्ध कराने के लिए पर्याप्त होगा । जिलाधीश का प्रमाणपत्र फसल-वार जारी किया जाना चाहिए जिसमें सभी फसलें, खाद्यान्न सहित,शामिल हों । नकदी फसल के संबंध में ऐसे प्रमाणपत्र जारी करना जिलाधीश के विवेक पर छोड़ सकते हैं ।

ज) परिवर्तन सुविधाएँ उपलब्ध करवाने हेतु दिशा-निर्देश

i) प्राकृतिक आपदा होने वाले वर्ष में अल्पावधि ऋणों की देय मूल धन की राशि तथा ब्याज को मीयादी ऋण में परिवर्तित किया जाए या चुकौती की अवधि को उचित रुप से पुन: निर्धारित किया जाए ।

प्रदान की जानेवाली परिवर्तन / पुनर्निर्धारण अवधि आपदा की गंभीरता, फसल नष्ट होने की मात्रा तथा किसानों के समक्ष उत्पन्न संकट के आधार पर बदली जा सकती है । आपदा होनेवाले वर्ष में वसूल न की गई राशि को सामान्य परिस्थितियों में 3 वर्ष की अवधि के लिए मीयादी ऋण में तथा छोटे और सीमांत किसानों के लिए 5 वर्ष तक की अवधि के लिए परिवर्तित किया जाए । तथापि, जहाँ आपदा के कारण फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है तथा किसानों के समक्ष भारी संकट उत्पन्न हुआ है अथवा यदि आपदा लगातार दो वर्ष तक हुई हो, बैंक अपने विवेकानुसार तथा कार्य दल/राज्य स्तरीय बैंकर समिति की संचालन समिति के साथ विचार-विमर्श के बाद परिवर्तित ऋण 5 से 7 वर्ष की लंबी अवधि के लिए प्रदान कर सकते हैं । फसलों की बहुत ही गंभीर हानि के कारण उत्पन्न हुई अत्यधिक भयंकर स्थिति या लगातार तीन फसलों के नष्ट होने

तथा ऋण के बोझ को उधारकर्ता की तत्काल चुकाने की क्षमता के परे पाए जाने के मामलों में बैंक कार्य दल/राज्य स्तरीय बैंकर समिति के साथ विचार-विमर्श करके 9 वर्ष की अधिकतम लंबी अवधि के लिए परिवर्तित करने हेतु विचार कर सकते हैं ।

ii) जहां तक संभव हो, परिवर्तित ऋण और बढ़ाई गई अवधि वाले मीयादी ऋणों के भुगतान की किस्तों के लिए एक ही देय तारीख के निर्धारण को तरजीह दी जाए ।

iii) प्राकृतिक आपदाओं के समय अतिदेय ऋणों के अतिरिक्त सभी अल्पावधि ऋण परिवर्तन सुविधाओं के लिए पात्र होंगे ।

iv) अल्पावधि ऋणों को परिवर्तित करने तक, बैंक प्रभावित किसानों को नए फसल ऋण स्वीकृत कर सकते हैं ।

v) बैंकों द्वारा प्रभावित किसानों को नए फसल ऋण स्वीकृत करते समय नियत तारीख का इन्तजार न करके , जो ऐसे ऋण स्वीकृत करते समय सामान्य रुप से किया जाता है, अल्पावधि फसल ऋण्ों का परिवर्तन किया जाए ।

vi) उसी तरह, मीयादी ऋणों के मूलधन / ब्याज की किस्तें 3 वर्ष की अवधि के लिए पुन:निर्धारित की जाएँ जो ऊपर (क) में उल्लिखित परिस्थिति में लंबी अवधि तक बढ़ायी जा सकती हैं ।

vii) परिवर्तित ऋणों पर ब्याज दर अल्पावधि ऋणों पर प्रभारित ब्याज दरों की तरह हो ।

viii) जहां किसानों को ऋणों के परिवर्तन / पुनर्निर्धारण के रुप में राहत दी जाती है, ऐसे परिवर्तित/पुन:निर्धारित अतिदेय वर्तमान अतिदेय के रुप में माने जाएंगे और बैंकों को इस तरह परिवर्तित/पुनर्निर्धारित ऋणों के मामले में चक्रवृध्दि ब्याज नहीं लगाना चाहिए ।

5. प्रभावी होने के लिए किसानों को वित्तीय सहायता का संवितरण शीघ्रातिशीघ्र होना चाहिए । इस प्रयोजन हेतु अग्रणी बैंक तथा संबंधित जिला प्राधिकरणों को एक प्रक्रिया आरंभ करनी चाहिए, जिसमें उधारकर्ताओं की पहचान, सरकारी/सहकारी/बैंक अतिदेयों संबंधी प्रमाणपत्र का जारी करना, भूमि के लिए आवेदक का हकनामा आदि का भी साथ-साथ प्रबंध किया जाए ।

ऐसे स्थानों पर ऋण कैम्प लगाने की संभावनाओं का पता ऋण कैम्पों का आयोजन करने वाले प्राधिकरणों से विचार विमर्श करके लगाया जाए जहाँ ब्लॉक विकास और राजस्व अधिकारी, सहकारी निरीक्षक, पंचायत प्रधान आदि आवेदनपत्रों का निपटान उसी समय करने में सहायक

हों । राज्य सरकार भी कलेक्टर की सहायता से कार्यकारी आदेश जारी करने की व्यवस्था करेगी, जिससे अनुसरण करनेवाले अधिकारी या उनके प्राधिकृत प्रतिनिधि उधार कैम्प कार्यक्रम के कार्यान्वयन के अंतर्गत परिकल्पित कर्तव्य तथा जिम्मेदारियां निभा सकें ।

क) खंड विकास अधिकारी

ख) सहकारी निरीक्षक

ग) राजस्व प्राधिकारी / ग्राम राजस्व सहायक

घ) क्षेत्र में कार्यरत बैंक अधिकारी

ङ) प्राथमिक कृषि ऋण समितियां / बड़े आकार वाली बहुउद्देशीय समितियां / कृषक सेवा समितियां

च) ग्राम पंचायत प्रधान

उधार कैम्प में राज्य सरकारी अधिकारियों को जिस फार्म में प्रमाणपत्र देने हैं, संबंधित जिला मैजिस्ट्रेट द्वारा पर्याप्त संख्या में छपवाये जाएं ताकि इसमें विलंब न हो ।

आगामी फसल मौसम के लिए ऋण आवेदनों पर विचार करते समय, राज्य सरकार के प्रति आवेदक की वर्तमान देयता पर ध्यान न दिया जाए, बशर्ते राज्य सरकार प्राकृतिक आपदा की तारीख को सरकार के प्रति देय राशि पर पर्याप्त रुप से लंबी अवधि के लिए स्थगन अवधि घोषित करती है ।

6. वित्त का मान

जिले में विभिन्न फसलों का वित्तीय मान एक समान होगा । विभिन्न उधारकर्ता एजेंसियों द्वारा वर्तमान में अपनाये गये मानदंडों और प्रचलित शर्तों को ध्यान में रखकर मान निर्धारित किया जाए । मान निर्धारित करते समय, उधारकर्ता की न्यूनतम उपभोक्ता आवश्यकताओं पर विचार किया जाए । संबंधित जिला मैजिस्ट्रेटों तथा जिले में परिचालित बैंकों की शाखाओं के प्रबंधकों को ऐसे निर्धारित मान अपनाने के लिए सूचित किया जाए ।

7. विकास ऋण - निवेश लागत

उधारकर्ता की चुकौती क्षमता और प्राकृतिक आपदा के स्वरुप को ध्यान में रखकर वर्तमान मीयादी ऋण किस्तों का पुनर्निर्धारण/स्थगन किया जाना चाहिए , अर्थात्

व) सूखा, बाढ़ या चक्रवात आदि जहां उसी वर्ष में केवल फसल की क्षति हुई है और उत्पादक आस्तियों की क्षति नहीं हुई है ।

वव) बाढ़ या चक्रवात जहां उत्पादक आस्तियां अंशत: या पूर्णत: क्षतिग्रस्त हैं और उधारकर्ताओं को नए ऋण की आवश्यकता हो ।

श्रेणी (व) के अन्तर्गत प्राकृतिक आपदा के संबंध में बैंक निम्नलिखित अपवादों के अधीन प्राकृतिक आपदा के वर्ष के दौरान किस्तों के भुगतान को स्थगित कर सकते हैं तथा ऋण की अवधि एक वर्ष आगे बढ़ा सकते हैं :-

क) उन कृषकों को जिन्होंने वह विकास और निवेश नहीं किया है जिसके लिए ऋण लिया था अथवा ऋण की राशि से खरीदे गए औजार अथवा मशीनरी बेच दी हो ।

ख) वे जो आयकर दाता हैं

ग) सूखे की स्थिति में, नहरों से न छोड़े गए पानी की आपूर्ति के अतिरिक्त सिंचाई के बाराहमासी स्रोत हैं अथवा अन्य बाराहमासी स्रोतों से सिंचाई सुविधा उपलब्ध नहीं थी ।

घ) ट्रैक्टर मालिक, केवल वास्तविक मामलों में जहाँ आय समाप्त हो गई हो तथा उसके परिणामस्वरुप उनकी चुकौती क्षमता में कमी आई हो ।

इस व्यवस्था के अन्तर्गत, पहले वर्षों में जानबूझकर की गई चूक वाली किस्तें पुनर्निर्धारण के लिए पात्र नहीं होंगी । उधारकर्ताओं द्वारा ब्याज की अदायगी बैंकों द्वारा स्थगित करनी पड़ सकती है । अवधि बढ़ाने का निर्धारण करते समय ब्याज की पाबन्दी को भी हिसाब में लिया जाना चाहिए ।

श्रेणी (वव) के संबंध में अर्थात जहाँ उधारकर्ता की आस्तियाँ पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई हैं, ऋण की अवधि बढ़ाकर उनका पुनर्निधारण उधारकर्ता की पुराने मीयादी ऋणों की चुकौती प्रतिबध्दता सहित अल्पावधि ऋणों तथा नए ऋण्ों की चुकौती स्थगित होने पर (मध्यम अवधि ऋण) परिवर्तिति ऋण के प्रति उनकी समग्र चुकौती क्षमता के आधार पर किया जाए । ऐसे मामलों में सरकारी एजेंसियों से प्राप्त सब्सिडी, बीमा योजनाओं के अन्तर्गत उपलब्ध मुआवजा इत्यादि कम करके (ब्याज देयता सहित) कुल ऋण की चुकौती अवधि उधारकर्ता की चुकौती क्षमता के अनुसार निर्धारित की जाए जिसकी अधिकतम सीमा 15 वर्ष होगी तथा भूमि तैयार करने, सिल्ट हटाने, भूसंरक्षण इत्यादि से संबंधित ऋण के मामलों के अतिरिक्त यह निवेश के स्वरुप, वित्तपोषित नई आस्तियों की अवधि (उपयोगिता) के अधीन होगी । अत: कृषि मशीनरी यथा पम्पसैटों के लिए ऋण के संबंध में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कुल ऋण अवधि अग्रिम की तारीख से सामान्यतया 9 वर्ष से अधिक न हो ।

8. वर्तमान मीयादी ऋणों के पुनर्निर्धारण के अतिरिक्त बैंक प्रभावित किसानों को विकासात्मक प्रयोजनों के लिए विभिन्न प्रकार के मीयादी ऋण उपलब्ध कराएंगे यथा :-

क) लघु सिंचाई : वुँओं, पम्पसेटों की मरम्मत के लिए मीयादी ऋण, जिसकी मात्रा क्षति के मूल्यांकन के बाद मरम्मत की अनुमानित लागत के आधार पर तय की जाएगी ।

ख ) बैल जहां जुताई के लिए प्रयोग किए जाने वाले जानवर बह गए हों, बैंलों / भैंसों की नई जोड़ी खरीदने के लिए नए ऋण के आवेदन पर विचार किया जा सकता है । जहाँ नए जानवर खरीदने के लिए ऋण दिया जा चुका है अथवा जहाँ किसानों ने दुधारु पशु खरीद लिए हैं, वहाँ चारा खरीदने के लिए यथोचित ऋण दिया जा सकता है ।

ग) दुधारु पशु दुधारु पशुओं के लिए आवधिक ऋण देने के लिए जानवरों की नस्ल, दूध से प्राप्त होने वाली आय इत्यादि के आधार पर विचार किया जा सकता है । इस ऋण में छप्परों की मरम्मत, औजारों तथा चारे की खरीद के लिए भी राशि सम्मिलित होगी ।

घ ) बीमा चक्रवात तथा अन्य प्राकृतिक आपदाओं वाले क्षेत्रों में इस आशंका के मद्दइेनज़र जानवरों का बीमा कराया जाना चाहिए । दुधारु पशुओं और जुताई वाले जानवरों की पहचार इस रुप में की जानी चाहिए कि हिताधिकारी उन्हें बेच कर अपने हितों की रक्षा कर सकें ।

ङ) मुर्गी पालन और सुअर पालन मुर्गी पालन, सुअर पालन तथा बकरी पालन के लिए ऋणों के लिए विभिन्न बैंकों के मानदण्डों के अनुसार विचार किया जाएगा ।

च) मत्स्यपालन उन उधारकर्ताओं के मामले में जिनकी नाव, जाल और अन्य उपकरण नहीं रहे, उन्हें वर्तमान अतिदेय राशि के भुगतान के पुनर्निर्धारण की अनुमति उनके मामले के गुणदोषों के आधार पर की जाए । उन्हें 3-4 वर्ष की अवधि के लिए नए ऋण दिए जाएँ । वर्तमान उधारकर्ताओं की नावों की मरम्मत के लिए ऋणों पर भी विचार किया जाए । उन मामलों में, जहाँ सब्सिडी उपलब्ध है, ऋण को उस सीमा तक कम किया जाए । उन राज्यों में जहाँ नाव, जाल इत्यादि के लिए मूल सब्सिडी उपलब्ध होने वाली हो, वहाँ राज्य सरकार के विभाग के साथ उचित समन्वय सुनिश्चित किया जाना चाहिए । अग्रिम देने के लिए अन्य मानदण्डों के अनुपालन के अतिरिक्त, मत्स्य विभाग से सहायता की मांग की जाए । नावों का व्यापक रुप से जहाँ तक संभव हो प्राकृतिक आपदाओं सहित सभी जोखिमों के लिए बीमा कराना चाहिए ।

9. यह संभव है कि रेत की ढलाई वाली भूमि के सुधार के लिए वित्तीय सहायता की आवश्यकता पड़ सकती है । सामान्यत: तीन इंच तक की रेत / सिल्ट के ढेर को बिना किसी वित्तीय सहायता के या तो हल चलाकर मिट्टी में मिलाया जा सकता है अथवा किसानों द्वारा निकाला जा सकता है । तथापि, ऐसे मामलों में की ऋण के आवेदनों पर विचार किया जायेगा जहाँ तत्काल खेती करना संभव हो तथा सुधार (रेत को निकालना) आवश्यक हो । जहाँ खारी भूमि के लिए भूमि सुधार हेतु वित्त की वारंटी दी गई है , वहाँ फसल ऋण के लिए अनुमत मान के 25% से अनधिक भूमि सुधार की लागत फसल ऋण के साथ ही प्रदान की जाए ।

10. अन्य कार्यकलापों जैसे कृषि, बागवानी, पुष्प-कृषि, पान के पत्तों की खेती आदि के लिए बैंक उनकी मौजूदा योजनाओं के अंतर्गत निवेश हेतु ऋण तथा कार्यशील पूंजी प्रदान करेंगे तथा स्वयं ही तैयार की गई सामान्य प्रक्रिया का पालन करेंगे / कार्यशील पूंजी वित्त उस अवधि तक उपलब्ध करवाया जाए जब तक ऐसे खर्च को संभालने के लिए फसल की आय पर्याप्त न हो ।

11. तथापि, वैयक्तिक मूल्यांकन के आधार पर खड़ी फसलों / बागों को क्षय से रोकने के लिए जरुरत पड़ने पर अतिरिक्त आवश्यकता आधारित फसल ऋण दिये जा सकते हैं ।

12. बीजों की मात्रा तथा विभिन्न प्रकार के उर्वरकों की पर्याप्त आपूर्ति की अधिप्राप्ति तथा सही व्यवस्था से संबंधित प्रश्न पर प्रत्येक जिले की राज्य सरकार तथा जिला प्रशासन के साथ विचार-विमर्श करना होगा । इसी प्रकार, पर्याप्त सिंचाई सुविधाएँ सुनिश्चित करने के लिए बाढ़ तथा अन्य प्राकृतिक आपदाओं द्वारा क्षतिग्रस्त सरकारी स्वामित्व वाले सतही तथा गहरे नल-कूपों तथा नदी उत्थान सिंचाई प्रणाली की मरम्मत राज्य सरकार द्वारा की जायेगी । मत्स्य पालन के मामले में, राज्य सरकार का मत्स्य-पालन विभाग मछलियों को प्राप्त करने की व्यवस्था करेगी तथा उसकी आपूर्ति उन लोगों को करेगा जो बैंक वित्त से टैंक मत्स्यपालन दुबारा शुरु करना चाहते हैं ।

13. राज्य सरकार ऐसी योजनाएँ तैयार करने पर विचार करेगी ताकि उक्त प्रयोजन हेतु बैंकों द्वारा प्रदान की जानेवाली राशि के लिए वाणिज्य बैंक नाबार्ड दरों पर पुनर्वित्त प्राप्त कर सकें ।

उपभोग ऋण

14. फसल और संपत्ति को पहुँची क्षति को देखते हुए वर्तमान उधारकर्ताओं को आजीविका के लिए तब तक उपयोग ऋण की आवश्यकता है जब तक कि आय दुबारा से आरंभ न हो जाए । बैंक ऐसे राज्यों में प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों में पात्र व्यक्तियों को रु.1000 तक के सामान्य उपभोग ऋण प्रदान कर सकते हैं जहाँ राज्य सरकारों ने वाणिज्य बैंकों द्वारा ऐसे उधार हेतु जोखिम निधि गठित की है ।

कारीगर तथा स्वनियोजित व्यक्ति

15. हथकरघा बुनकरों सहित ग्रामीण कारीगरों तथा स्वनियोजित व्यक्तियों के सभी वर्गों के लिए शेडों की मरम्मत, औजारों की प्रतिस्थापना एवं कच्चा माल खरीदने और गोदाम के लिए ऋण की आवश्यकता होगी । ऋण स्वीकृत करते समय संबंधित राज्य सरकार द्वारा सब्सिडी/सहायता हेतु उपयुक्त भत्ता उपलब्ध कराया जायेगा ।

16. ऐसे कई कारीगर, व्यापारी तथा स्वनियोजित व्यक्ति होंगे जिनके पास किसी बैंक के साथ कोई बैंकिंग व्यवस्था अथवा सुविधा न हो लेकिन अब उन्हें पुनर्वास के लिए वित्तीय सहायता की जरुरत पड़ेगी । ऐसे वर्ग बैंक शाखाओं से सहायता हेतु पात्र होगें जिनके अधिकार क्षेत्र में वे रहते हों अथवा अपना व्यवसाय / कारोबार करते हों । जहाँ ऐसे व्यक्ति /पार्टी एक से अधिक बैंक के अधिकार क्षेत्र में आते हों वहाँ संबंधित सभी बैंक मिलकर उनकी समस्या का हल निकालेंगे ।

लघु एव अत्यंत लघु इकाइयाँ

17. ग्रामीण एवं कुटीर उद्योग क्षेत्र, लघु औद्योगिक इकाइयों तथा मध्यम औद्योगिक क्षेत्र की क्षतिग्रस्त छोटी इकाइयों के अंतर्गत आनेवाली इकाइयों के पुनर्वास पर ध्यान देना आवश्यक होगा । कारखानों के भवनों /शेडों और मशीनों की मरम्मत एवं नवीकरण तथा क्षतिग्रस्त भागों को भी बदलने के लिए मीयादी ऋण और कच्चे माल की खरीद एवं गोदामों के लिए कार्यशील पूंजी तत्काल उपलब्ध करवाना आवश्यक है ।

18. जहाँ कच्चा अथवा तैयार माल बह गया या खराब या क्षतिग्रस्त हो गया हो वहाँ कार्यशील पूंजी के लिए बैंक के पास रखी गई जमानत नि:संदेह समाप्त हो जायेगी तथा कार्यशील पूंजी खाता (नकदी उधार /ऋण) खराब हो जायेगा । ऐसे मामलों में बैंक जमानत के मूल्य से अधिक आहरणों को मीयादी ऋण में बदल देगा तथा उधारकर्ता को अतिरिक्त कार्यशील पूँजी भी प्रदान करेगा ।

19. इस प्रकार हुई हानि और पुनर्वास एवं उत्पादन और बिक्री को पुन: शुरु करने के लिए आवश्यक, समय के आधार पर, निर्माण करने की क्षमता को देखते हुए इकाई की आय के अनुसार मीयादी ऋणों की किस्तों को उपयुक्त रप से पुनर्निर्धारित किया जाना चाहिए । मार्जिन में हुई कमी में छूट देनी होगी अथवा उसे माफ भी किया जा सकता है और उधारकर्ता को उसके भविष्य में होने वाले नकद सृजन से धीरे - धीरे मार्जिन का निर्माण करने हेतु समय दिया जाना चाहिए । जहाँ राज्य सरकार अथवा अन्य एजेंसी ने अनुदान/सब्सिडी/प्रारंभिक धन के लिए विशेष योजनाएँ तैयार की हों, वहाँ ऐसे अनुदान /सब्सिडी/प्रारंभिक धन के लिए उपयुक्त मार्जिन निर्धारित किया जाए ।

लघु/अत्यंत लघु इकाइयों को उनके पुनर्वास के लिए ऋण प्रदान करते समय बैंकों का ध्यान पुनर्वास कार्यक्रम शुरु करने के उपरांत मुख्य रुप से उद्यम की व्यवहार्यता पर होना चाहिए ।

20. शर्तें

I राहत ऋणों को नियंत्रित करने वाली शर्तें जमानत, मार्जिन आदि के मामलों में लचीली होंगी । निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम द्वारा गारंटीकृत छोटे ऋणों के संबंध में व्यक्तिगत गारंटियों पर

जोर नहीं दिया जायेगा । किसी भी मामले में व्यक्तिगत गारंटी के लिए उधार को अस्वीकार नहींे किया जाना चाहिए ।

II जमानत

क). जहाँ बाढ़ से हुई क्षति या विनाश के कारण बैंक की मौजूदा जमानत बह गई हो, केवल अतिरिक्त नई जमानत की मांग के कारण सहायता अस्वीकार नहीं की जायेगी । जमानत का मूल्य

(मौजूदा तथा नए ऋण से प्राप्त की जानेवाली आस्तियों)ऋण की राशि से कम होने पर भी नया ऋण प्रदान किया जाना चाहिए । नए ऋणों के लिए सहानुभूतिपूर्ण रुख अपनाया जाना चाहिए ।

ख) जहाँ पहले व्यक्तिगत जमानत / फसल को दृष्टिबंधक रख कर फसल ऋण (जिसे मीयादी ऋण में परिवर्तित किया गया है ) प्रदान किया गया हो, तथा उधारकर्ता परिवर्तित ऋण के लिए जमानत के रुप में भूमि का प्रभार /बंधक प्रस्तुत करने में असमर्थ हो तो केवल भूमि को जमानत के रुप में प्रस्तुत करने की उनकी असमर्थता के आधार पर उन्हें परिवर्तन सुविधा से वंचित नहीं रखना चाहिए । यदि उधारकर्ता भूमि पर बंधक / प्रभार के किरध्द पहले ही एक मीयादी ऋण ले चुका है, बैंक को परिवर्तित मीयादी ऋण के लिए द्वितीय प्रभार से संतुष्ट हो जाना चाहिए । बैंकों को परिवर्तन सुविधाएँ उपलब्ध करवाने हेतु तृतीय पक्ष की गारंटियों पर जोर नहीं देना चाहिए ।

ग) औजार बदलने, मरम्मत आदि के लिए मीयादी ऋण, तथा कारीगारों ओर स्वनियोजित व्यक्तियों को कार्यशील पूंजी प्रदान करने या फसल ऋण के मामले में सामान्य जमानत प्राप्त की जा सकती है । जहॉ भूमि जमानत के रुप में हो, मूल स्वत्व अभिलेखों की अनुपलब्धता में उन किसानों जिनके स्वत्व अर्थात विलेख के रुप में तथा पंजीकृत बटाईदारों द्वारा जारी पंजीयन प्रमाणपत्रों के सबूत गुम हो गए हाें, को वित्तपोषण करने हेतु राजस्व विभाग के प्राधिकारियों द्वारा जारी प्रमाणपत्र स्वीकार किये जा सकते हैं ।

घ) ग्राहक सेवा पर भारतीय रिज़र्व बैंक की सिफारिशों के अनुसार बैंक किसी भी प्रकार के आर्थिक कार्यकलापों के लिए संपार्श्विक प्रतिभूति अथवा गारंटी हेतु जोर दिये बिना उन उधारकर्ताओं को वित्त प्रदान करेगा जिन्हें रु.500 तक के ऋण की आवश्यकता हो ।

III मार्जिन

मार्जिन अपेक्षाओं में छूट दी जाए अथवा संबंधित राज्य सरकार द्वारा प्रदान अनुदान/सब्सिडी को मार्जिन समझा जाये ।

IV ब्याज दर

ब्याज की दरें भारतीय रिज़र्व बैंक के निदेशों के अनुसार होंगी । तथापि, बैंकों से अपेक्षा की जाती है कि वे उनके क्षेत्राधिकार में उधारकर्ताओं की कठिनाइयों पर उदारता का रुख उपनाएं तथा आपदा से प्रभावित लोगों के साथ सहानुभूतिपूर्वक पेश आएँ ।

विभेदक ब्याज दर योजना के अंतर्गत पात्रता मानदंडों को पूरा करने वालों को योजना के प्रावधानों के अनुसार ऋण उपलब्ध कराया जाए ।

चूक वाली वर्तमान बकाया राशि के संबंध में दण्डात्मक ब्याज लगाया नहींे जायेगा । बैंकों को ब्याज प्रभारों के यौगिक होने को उपयुक्त रुप से स्थगित करना चाहिए ।

बैंकों को कोई दण्डात्मक ब्याज नहीं लगाना चाहिए तथा परिवर्तित/पुनर्निर्धारित ऋणों के संबंध में यदि कोई दण्डात्मक ब्याज लगाया जा चुका हो तो उसमें छूट देने पर विचार किया जाना चाहिए ।

21. प्राकृतिक आपदा आने पर राहत उपाय लेने में होनेवाले विलंब से बचने के लिए बैंकों को निदेशक मंडल के अनुमोदन से इस संबंध में उचित नीति की रुपरेखा तैयार करनी चाहिए तथा नीति नोट की एक प्रति हमारे अभिलेख के लिए भेजनी चाहिए । यह उचित होगा कि इन उपायों में लचीलापन शामिल किया जाए ताकि यह इन उपायों से मेल खा सके और किसी विशेष राज्य या जिले की विशेष परिस्थिति में उपयुक्त साबित हो सके तथा इससे संबंधित मानदंडों को राज्य स्तरीय बैंकर समिति/जिला परामर्शदात्री समिति, जैसा भी मामला हो, के साथ परामर्श करके निर्धारित किया जाए ।

दंगे और गड़बड़ी के मामलों में दिशा-निर्देशों की व्यावहारिकता

22. जब कभी भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बैंकों को दंगे /गड़बड़ी से प्रभावित लोगों को पुनर्वास सहायता प्रदान करने के लिए कहा जाता है तब इस प्रयोजनार्थ बैंकों द्वारा उक्त दिशा-निर्देशों का व्यापक रुप से पालन किया जाए । तथापि, यह सुनिश्चित किया जाए कि केवल वास्तविक व्यक्ति, राज्य प्रशासन द्वारा यथोचित रुप से पहचाने गये तथा दंगे/गड़बड़ी से प्रभावित व्यक्तियों को ही दिशा-निर्देशों के अनुसार सहायता उपलब्ध करवायी जा रही है ।

23. राज्य सरकार से अनुरोध / सूचना प्राप्त होने पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बैंकों को सूचना जारी करने के बाद बैंकों द्वारा उनकी शाखाओं को अनुदेश जारी किए जाते हैं । इस कारण दंगों से प्रभावित लोगों को सहायता प्रदान करने में सामान्यत: विलंब हो जाता है । प्रभावित लोगों को

तत्काल सहायता सुनिश्चित करने के लिए यह निर्णय लिया गया है कि दंगे / गड़बड़ी होने पर जिलाधीश अग्रणी बैंक अधिकारी को जिला परामर्शदात्री समिति की बैठक, यदि आवश्यक हो, बुलाने के लिए तथा दंगों/गड़बड़ी से प्रभावित क्षेत्रों में जान और माल की हानि पर एक रिपोर्ट जिला परामर्शदात्री समिति को प्रस्तुत करने हेतु कह सकता है । यदि जिला परामर्शदात्री समिति संतुष्ट है कि दंगे /गड़बड़ी के कारण जान और माल की व्यापक हानि हुई है, तो दंगे / गड़बड़ी से प्रभावित लोगों को उपर्युक्त दिशा-निर्देशों के अनुसार राहत प्रदान की जाए । कुछ मामलों में, जहाँ जिला परामर्शदात्री समितियाँ नहीं है, जिलाधीश राज्य के राज्य स्तरीय बैंकर समिति के संयोजक को प्रभावित लोगों को राहत प्रदान करने हेतु विचाार करने के लिए बैंकरों की एक बैठक बुलाने के लिए अनुरोध कर सकता है । जीलाधीश द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट तथा उस पर जिला परामर्शदात्री /राज्य स्तरीय बैंकर समिति द्वारा लिये गये निर्णयों को रिकार्ड किया जाए ओर उसे बैठक के कार्य-विवरण में शामिल किया जाए । बैठक की कार्यवाही की एक प्रति भारतीय रिज़र्व बैंक के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को प्रेषित की जाए ।


परिशिष्ट

मास्टर परिपत्र
प्राकृतिक आपदाओं द्वारा प्रभावित क्षेत्रों में
बैंकों द्वारा राहत उपायों हेतु दिशानिर्देश
मास्टर परिपत्र में संकलित परिपत्रों की सूची

सं.

परिपत्र सं.

तारीख

विषय

1.

ग्राआऋवि.सं.पीएलएफएस.बीसी.128/05.04.02/97-98

20.06.98

प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों के लिए राहत उपाय-कृषि अग्रिम

2.

ग्राआऋवि.सं.पीएलएफएस.बीसी.59/05.04.02/92-93

06.01.93

प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों में बैंकों द्वारा राहत उपायों हेतु दिशानिर्देश - (उपभोग ऋण )

3.

ग्राआऋवि.सं.पीएलएफएस.बीसी.38/पीएस 126-91-92

21.09.91

दंगों / सांप्रदायिक गड़बड़ी इत्यादि से प्रभावित लोगों को बैंकों से सहायता

4.

ग्राआऋवि.सं.पीएस.बीसी. 06/पीएस.126-84

02.08.84

प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों में बैंकों द्वारा राहत उपायों के लिए संशोधित दिशानिर्देश

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