मास्टर परिपत्र - अग्रिमों पर ब्याज दरें - आरबीआई - Reserve Bank of India
मास्टर परिपत्र - अग्रिमों पर ब्याज दरें
आरबीआई/2014-15/65 1 जुलाई 2014 सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक महोदय मास्टर परिपत्र - अग्रिमों पर ब्याज दरें कृपया आप 1 जुलाई 2013 का मास्टर परिपत्र बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी. 15/13.03.00-2013-14 देखें जिसमें अग्रिमों पर ब्याज दरों के संबंध में बैंकों को 30 जून 2013 तक जारी किये गये अनुदेश/दिशानिर्देश समेकित किये गये थे। 30 जून 2014 तक जारी किये गये अनुदेशों को शामिल करते हुए इस मास्टर परिपत्र को उचित रूप से अद्यतन बना दिया गया है और इसे रिज़र्व बैंक की वेबसाइट (http://www.rbi.org.in) पर भी उपलब्ध करा दिया गया है। मास्टर परिपत्र की प्रति संलग्न है। भवदीया, (लिली वडेरा) अनुलग्नक: यथोक्त
अग्रिमों पर ब्याज-दरों से संबंधित मास्टर परिपत्र अग्रिमों पर ब्याज दरों के संबंध में रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी किए गए निदेशों को समेकित करना। बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किया गया सांविधिक निदेश। इस मास्टर परिपत्र में उपर्युक्त विषय पर परिशिष्ट में सूचीबद्ध किए गए परिपत्रों में निहित अनुदेशों को समेकित तथा अद्यतन किया गया है। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक संरचना 1. प्रस्तावना 2. दिशानिर्देश 2.1 सामान्य 1.1 भारतीय रिज़र्व बैंक ने 1 अक्तूबर 1960 से अनुसूचित वाणिज्य बैंकों द्वारा प्रदान किए जाने वाले अग्रिमों पर न्यूनतम ब्याज दर निर्धारित करना प्रारंभ किया। 2 मार्च 1968 से न्यूनतम उधार दर की जगह बैंकों द्वारा प्रभारित की जाने वाली अधिकतम उधार दर लागू की गई जिसे 21 जनवरी 1970 से रद्द किया गया जब न्यूनतम उधार दर का निर्धारण पुन: लागू किया गया। बैंकों द्वारा अग्रिमों पर लगाई जाने वाली उच्चतम उधार दर को 15 मार्च 1976 से पुन: लागू किया गया और बैंकों को पहली बार यह सूचित किया गया कि अग्रिमों पर आवधिक अंतरालों पर अर्थात,तिमाही अंतरालों पर ब्याज प्रभारित किया जाए। उसके बाद की अवधि के दौरान विशिष्ट क्षेत्रों,कार्यक्रमों तथा प्रयोजनों के लिए विभिन्न ब्याज दरें लागू की गई । 1.2 समय के साथ-साथ विकसित हुई दरों की अत्यधिक विविधता की विशिष्टता वाले अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के उधार दरों के प्रचलित ढांचे के परिप्रेक्ष्य में सितंबर 1990 में ब्याज दरों को ऋण की मात्रा के साथ जोड़ने वाला उधार दरों का एक नया ढांचा निर्धारित किया गया जिसके कारण ब्याज दरों की बहुविधता और जटिलता में उल्लेखनीय कमी आयी। विभेदक ब्याज दर योजना के मामले में जिसके अंतर्गत 4.0 प्रतिशत वार्षिक की दर पर ऋण प्रदान किया जाता था और निर्यात ऋण जो कि ब्याज दर सहायताओं से अनुपूर्ति किए गए उधार दरों की संपूर्णत: भिन्न व्यवस्था के अधीन था, विद्यमान उधार दर ढांचे को जारी रखा गया। 1.3 वित्तीय क्षेत्र सुधारों का एक लक्ष्य प्रशासित ब्याज दरों में निहित वित्तीय दमन को हटाना सुनिश्चित करना रहा है। तदनुसार, बैंकों को अधिक कार्यात्मक स्वायत्ता प्रदान करने के परिप्रेक्ष्य में 18 अक्तूबर 1994 से यह निर्णय लिया गया कि अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की 2 लाख रुपये से अधिक राशि की ऋण सीमाओं के लिए उधार दरों को मुक्त किया जाए, 2 लाख रुपये तक के ऋणों के लिए यह निर्णय लिया गया कि इन उधारकर्ताओं को संरक्षण देना जारी करने की दृष्टि से यह आवश्यक था कि उधार दरों को प्रशासित रखा जाए, दो लाख रुपये से अधिक राशि की ऋण सीमाओं के लिए न्यूनतम उधार दर निर्धारित किया जाना समाप्त कर दिया गया तथा बैंकों को ऐसी ऋण सीमाओं के लिए उधार दरों को निर्धारित करने की स्वतंत्रता दी गयी। अब बैंकों को न्यूनतम मूल उधार दर (बीपीएलआर) निर्धारित करने के लिए अपने संबंधित बोर्ड का अनुमोदन प्राप्त करना पडता है। यह बीपीएलआर रुपए 2 लाख से अधिक राशि की ऋण सीमाओं के लिए संदर्भ दर रहेगी। प्रत्येक बैंक को बेंचमार्क मूल उधार दर घोषित करनी होगी और वह सभी शाखाओं में एकसमान रूप से लागू होगी। 1.4 वर्ष 2003 में प्रारंभ की गई बीपीएलआर प्रणाली उधार दरों में पारदर्शिता लाने के अपने मूल उद्देश्य को पाने में असफल रही। इसका मुख्य कारण यह था कि बीपीएलआर प्रणाली के अंतर्गत बैंक बीपीएलआर से कम दर पर उधार दे सकते थे। इसी कारण बैंकों की उधार दरों में रिज़र्व बैंक की नीति दरों के संचरण का मूल्यांकन करना भी कठिन था। तदनुसार बेंचमार्क मूल उधार दर पर गठित कार्यदल, जिसने अपनी रिपोर्ट अक्तूबर 2009 में प्रस्तुत की, की सिफारिशों के आधार पर बैंको को सूचित किया गया कि वे 1 जुलाई 2010 से आधार दर प्रणाली में अंतरित हो जाएं। आधार दर प्रणाली का उद्देश्य है बैंकों की उधार दरों में अधिक पारदर्शिता लाना और मौद्रिक नीति के संचरण का बेहतर मूल्यांकन करना। 2.1.1 अग्रिमों पर ब्याज लगाने के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी किये गये निदेशों के अनुसार, बैंकों को ऋण / अग्रिम / नकदी ऋण / ओवरड्राफ्ट पर अथवा उनके द्वारा स्वीकृत /दिये गये / नवीकृत किये गये किसी भी अन्य वित्तीय निभाव पर ब्याज लगाना चाहिए अथवा मीयादी बिल भुनाना चाहिए । 2.1.2 ब्याज की निर्दिष्ट दरें मासिक अंतरालों पर प्रभारित की जाएं (यह पैरा 2.9 में निर्धारित शर्तों के अधीन होगी) तथा उसे निकटतम रुपये तक पूर्णांकित किया जाए। 2.2.1 1 जुलाई 2010 से बीपीएलआर प्रणाली के स्थान पर आधार दर प्रणाली लागू की गयी है। आधार दर में उधार दरों के वे सब तत्व होंगे जो उधारकर्ताओं के सभी संवर्गों में सर्वसामान्य हैं। बैंक किसी विनिर्दिष्ट अवधि के लिए आधार दर निर्धारित करने के लिए कोई भी बेंचमार्क तय कर सकते हैं, जिसे पारदर्शी तरीके से प्रकट किया जाना चाहिए । आधार दर की गणना का एक उदाहरण अनुबंध 1 में दिया गया है । बैंक कोई और उपयुक्त विधि अपनाने के लिए स्वतंत्र हैं, बशर्ते वह सुसंगत हो और आवश्यकता पड़ने पर पर्यवेक्षीय समीक्षा/जांच के लिए उपलब्ध हो । 2.2.2 बैंक ऋणों और अग्रिमों के संबंध में अपनी वास्तविक उधार दरों का निर्धारण आधार दर को संदर्भ मानते हुए तथा यथोपयुक्त अन्य ग्राहक - विशेष प्रभारों को शामिल करते हुए कर सकते हैं । वास्तविक उधार दरें पारदर्शी और सुसंगत होनी चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर पर्यवेक्षीय समीक्षा/जांच के लिए उपलब्ध होनी चाहिए । 2.2.3 दिनांक 9 अप्रैल 2010 के हमारे परिपत्र डीबीओडी.सं.डीआईआर.बीसी. 88/13.03.00/2009-10 के अनुसार बैंकों को शुरुआती छः महीनों, अर्थात् दिसंबर 2010 के अंत तक, के दौरान कभी भी बेंचमार्क और पद्धति बदलने के लिए अनुमति दी गई थी जिसे बाद में हमारे दिनांक 6 जनवरी 2011 के परिपत्र बैंपविवि. डीआईआर. बीसी. सं. 73/13.03.00/2010-11 द्वारा 30 जून 2011 तक बढा दिया गया था। बैंकों के समक्ष उनकी आधार दर की गणना में आ रही कठिनाईयों को दूर किए जाने के क्रम में, यह निर्णय लिया गया कि बैंकों को आधार दर पद्धति की संगणना/संशोधन में कुछ लचीलापन प्रदान किया जाए। तदनुसार, बैंकों को सूचित किया गया कि वे 2 सितंबर 2013 से आधार दर गणना पद्धति पर निम्नानुसार संशोधित दिशानिर्देशों का पालन करें: (i) जिन बैंकों ने भारत में अपना बैंकिंग परिचालन जुलाई 2010 में आधार दर प्रणाली लागू होने के बाद शुरू किया है लेकिन जिनके बैंकिंग परिचालन का 1 वर्ष इस परिपत्र की तिथि ( 2 सितंबर 2013) को पूरा नहीं हुआ है उन्हें भारत में अपने व्यवसाय के परिचालन शुरू होने के 1 वर्ष के भीतर अपनी आधार दर पद्धति को संशोधित करने की अनुमति होगी। (ii) जो बैंक भारत में अपना बैंकिंग व्यवसाय इस परिपत्र के जारी होने ( 2 सितंबर 2013) के बाद करेंगे उन्हें भारत में अपना बैंकिंग व्यवसाय शुरू करने की तिथि से 1 वर्ष के भीतर अपनी आधार दर पद्धति को संशोधित करने की अनुमति दी जाएगी। (iii) यदि कोई बैंक, जिसमें उक्त पैरा 2.2.3 (i) एवं (ii) में सूचीबद्ध किए गए बैंक भी शामिल हैं, अपनी आधार दर पद्धति को अंतिम रूप देने के 5 वर्ष बाद उसकी समीक्षा करना चाहे तो ऐसा बैंक इस संबंध में अनुमति के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक से संपर्क कर सकता है। 2.2.4 प्रत्येक बैंक के लिए केवल एक आधार दर हो सकती है । बैंक एकल आधार दर निर्धारित करने के लिए कोई भी बेंचमार्क चुनने के लिए स्वतंत्र है जिसे पारदर्शी तरीके से प्रकट किया जाना चाहिए। 2.2.5 आधार दर में परिवर्तन बिना किसी भेदभाव के पारदर्शी तरीके से आधार दर से जुड़े सभी वर्तमान ऋणों पर लागू होगा । 2.2.6 चूंकि आधार दर सभी ऋणों के लिए न्यूनतम दर होगी, बैंकों को आधार दर से कम में उधार देने की अनुमति नहीं है । तदनुसार, रुपए 2 लाख तक के ऋणों के लिए उच्चतम दर के रूप में बीपीएलआर की वर्तमान व्यवस्था समाप्त की जा रही है । ऐसी आशा है कि उधार दर को उपर्युक्त रीति से नियंत्रणमुक्त करने से छोटे उधारकर्ताओं को तर्कसंगत दर पर अधिक ऋण मिलेगा और प्रत्यक्ष बैंक वित्तपोषण से उच्च लागत वाले अन्य प्रकार के ऋणों को कड़ी चुनौती मिलेगी । 2.2.7 बैंकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे तिमाही में कम-से-कम एक बार बैंक की प्रथा के अनुसार,बोर्ड या आस्ति देयता प्रबंध समिति के अनुमोदन से आधार दर की समीक्षा करें। चूंकि उधार उत्पादों के ब्याज निर्धारण की पारदर्शिता एक प्रमुख लक्ष्य है, बैंकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी आधार दर के संबंध में सूचना अपनी सभी शाखाओं तथा वेबसाइट पर प्रदर्शित करें । आधार दर में परिवर्तन की सूचना भी समय-समय पर समुचित माध्यमों से सामान्य जनता को दी जानी चाहिए । बैंकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे पहले की तरह ही तिमाही आधार पर रिज़र्व बैंक को वास्तविक न्यूनतम और उच्चतम उधार दरों की सूचना देते रहें । 2.2.8 आधार दर प्रणाली के आरंभ के बाद भी बैंकों के पास ऋण की सभी श्रेणियों को नियत अथवा अस्थायी दर पर प्रस्तावित करने की स्वतंत्रता होगी । जहां ऋण नियत दर के आधार पर दिए जाते हैं वहां आधार दर की तिमाही समीक्षा के बावजूद नियत दर ऋणों पर लगाई जाने वाली ब्याज की दर इस शर्त के अधीन वहीं रहना जारी रहेगी कि ऐसी नियत दर ऋण मंजूरी के समय आधार दर से कम नहीं होगी। तथापि, यदि उसके बाद आधार दर में वृद्धि की जाती है और इस क्रम में नियत दर नई आधार दर से कम हो जाए तो इसे आधार दर संबंधी दिशानिर्देशों का उल्लंघन नहीं माना जाएगा। 2.3.1 1 जुलाई 2010 से घरेलू रुपये ऋण की सभी श्रेणियों का ब्याज दर निर्धारण केवल आधार दर का संदर्भ लेते हुए किया जाना चाहिए। तदनुसार आधार दर प्रणाली सभी नये ऋणों पर और पुराने ऋणों के नवीकरण पर लागू होगी। बीपीएलआर प्रणाली पर आधारित वर्तमान ऋण परिपक्वता तक जारी रह सकते हैं । यदि वर्तमान उधारकर्ता वर्तमान संविदा की समाप्ति के पहले नई प्रणाली अपनाना चाहें तो परस्पर सहमत शर्तों पर उन्हें यह विकल्प प्रदान किया जा सकता है । तथापि, बैंकों को इस बदलाव के लिए कोई शुल्क नहीं लगाना चाहिए । 2.3.2 तथापि निम्नलिखित ऋण की श्रेणियों का ब्याज दर निर्धारण आधार दर का संदर्भ लिए बिना किया जा सकता है : (क) डीआरआई अग्रिम; 2.3.3 उन मामलों में जहां उधारकर्ताओं को ब्याज दर सहायता उपलब्ध हैं, वहां निम्नानुसार स्पष्टीकरण दिया जाता है: (i) फसल ऋणों पर ब्याज दर सहायता क) तीन लाख रुपये तक के फसल ऋणों के मामले में जिनके लिए ब्याज दर सहायता उपलब्ध है, बैंकों द्वारा किसानों पर सरकार द्वारा निर्धारित ब्याज दर लगाया जाना चाहिए । यदि बैंक को मिलने वाला प्रतिफल (ब्याज दर सहायता को शामिल करने के बाद) आधार दर से कम है तो इस तरह के उधार को आधार दर दिशानिर्देशों का उल्लंघन नहीं माना जाएगा। (ख) तुरंत चुकौती के लिए प्रदान की गई छूट के संबंध में, चूंकि उससे ऐसे ऋणों पर बैंकों को मिलने वाले प्रतिफल (उपर्युक्त `क' में उल्लिखित) में कोई परिवर्तन नहीं होता है, अत: आधार दर दिशानिर्देशों के अनुपालन के निर्धारण में उसे एक घटक नहीं माना जाएगा । ii) निर्यात ऋण पर ब्याज दर सहायता रुपया निर्यात ऋण की सभी अवधियों पर लागू होने वाली ब्याज की दरें आधार दर के बराबर या उससे अधिक होंगी। उन मामलों में जहां ब्याज दर सहायता उपलब्ध है वहां बैंकों को आधार दर प्रणाली के अनुसार निर्यातकों को प्रभार्य ब्याज दर को ब्याज दर सहायता की उपलब्ध राशि से घटाना होगा । यदि, ऐसा करने के परिणामस्वरूप निर्यातकों को प्रभारित ब्याज दर आधार दर से कम हो जाती है तो ऐसे उधार को आधार दर दिशानिर्देशों का उल्लंघन नहीं समझा जाएगा । (भारत सरकार की पिछली रुपया निर्यात ऋण पर ब्याज दर सहायता योजना 31 मार्च 2014 तक वैध थी) । 2.3.4 पुनर्रचित ऋण पुनर्रचित ऋणों के मामले में यदि अर्थक्षमता के प्रयोजन के लिए कुछ कार्यशील पूंजी मीयादी ऋण (डबल्यूसीटीएल), निधिक ब्याज मीयादी ऋण (एफआईटीएल), आदि को आधार दर से कम दर पर मंजूरी दी जाती हैं और उनमें क्षतिपूर्ति आदि की शर्तें शामिल हैं तो ऐसे उधारों को आधार दर दिशानिर्देशों का उल्लंघन नहीं माना जाएगा। 2.3.5 जिन मामलों में उधारकर्ताओं को पुनर्वित्त उपलब्ध है, वहाँ निम्नानुसार स्पष्ट किया जाता है: (क) ऑफ-ग्रिड एंड डिसेंट्रलाइज्ड सोलर एप्लिकेशनों का वित्तपोषण भारत सरकार, नई और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन (जेएनएनएसएम) के एक हिस्से के रूप में ऑफ-ग्रिड एंड डिसेंट्रलाइज्ड सोलर (फोटोवोल्टेइक एंड थर्मल) एप्लिकेशनों के वित्तपोषण के लिए एक योजना बनाई है। इस योजना के अंतर्गत बैंक ऐसे मामलों में उद्यमियों को पांच प्रतिशत या उससे कम ब्याज दरों पर आर्थिक सहायता प्राप्त ऋण प्रदान करें जहां भारत सरकार से दो प्रतिशत की पुनर्वित्त सुविधा उपलब्ध हो। जहां भारत सरकार की पुनर्वित्त सुविधा उपलब्ध हो, वहां पांच प्रतिशत और उससे कम ब्याज दरों पर दिए जाने वाले इस प्रकार के उधार को आधार दर संबंधी हमारे दिशानिर्देशों का उल्लंघन नहीं माना जाएगा। (ख) राष्ट्रीय अनुसूचित जनजातीय वित्त तथा विकास निगम (एनएसटीएफडीसी) की लघु ऋण योजना तथा नैशनल हैन्डीकॅप्ड फाइनेंस एंड डेवलप्मेंट कार्पोरेशन (एनएचडीएफसी) की विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत वित्तीय सहायता प्रदान करना बैंक पुनर्वित्त की उपलब्धता की सीमा तक एनएसटीएफडीसी/एनएचएफडीसी की योजनाओं के अंतर्गत निर्धारित ब्याज दर प्रभारित कर सकते हैं । इस प्रकार से दिए गए उधार को, आधार दर से कम दर पर होने के बावजूद, हमारे आधार दर दिशानिर्देशों का उल्लंघन नहीं माना जाएगा । पुनर्वित्त के अंतर्गत नहीं आने वाले अंश पर प्रभारित ब्याज दर आधार दर से कम नहीं होनी चाहिए । (ग) राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त तथा विकास निगम (एनएसकेएफ़डीसी) की योजनाओं के अंतर्गत वित्तीय सहायता प्रदान करना बैंक पुनर्वित्त की उपलब्धता की सीमा तक राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त तथा विकास निगम (एनएसकेएफ़डीसी) की योजनाओं के अंतर्गत निर्धारित ब्याज दर प्रभारित कर सकते हैं। इस प्रकार से दिए गए उधार को, आधार दर से कम दर पर होने के बावजूद, हमारे आधार दर दिशानिर्देशों का उल्लंघन नहीं माना जाएगा । पुनर्वित्त के अंतर्गत नहीं आने वाले अंश पर प्रभारित ब्याज दर आधार दर से कम नहीं होनी चाहिए । (घ) प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पीएसीएस) को उधार देना अल्पावधि मौसमी कृषि कार्यों के लिए प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पीएसीएस) को वित्त प्रदान करने वाले बैंक नाबार्ड से उपलब्ध पुनर्वित्त की सीमा तक अपनी आधार दर से कम दर पर वित्त प्रदान कर सकते हैं। तथापि बैंक जब अपनी स्वयं की निधियों का उपयोग करते हैं तो उन्हें आधार दर से कम दर पर उधार देने की अनुमति नहीं है। (ङ) राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त और विकास निगम (एनएफएसडीसी) के हिताधिकारियों के लिए बैंक का वित्तपोषण उपलब्ध कराया गया है बैंक पुनर्वित्त उपलब्ध होने की सीमा तक राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त और विकास निगम (एनएफएसडीसी) की योजनाओं के अंतर्गत निर्धारित दरों पर ब्याज ले सकते हैं। ऐसे उधार, यदि आधार दर से कम हों, तो भी आधार दर दिशानिर्देशों का उल्लंघन नहीं माना जाएगा। तथापि, पुनर्वित्त के अंतर्गत शामिल न किए जाने वाले भाग पर ब्याज दर आधार दर से कम नहीं होनी चाहिए। 2.3.6 बेंचमार्क मूल उधार दर प्रणाली के अंतर्गत लागू ब्याज दरें 30 जून 2010 तक स्वीकृत किए गए सभी ऋणों पर लागू हैं। बेंचमार्क मूल उधार दर (बीपीएलआर) तथा स्प्रेड और 30 जून 2010 तक स्वीकृत मौजूदा ऋणों के लिए उसके निर्धारण संबंधी दिशानिर्देश अनुबंध 2 तथा 3 दिए गए हैं। माइक्रो और लघु उद्यमों (एमएसई) के लिए विभेदक ब्याज दर मएसई उधारकर्ताओं को दिए जाने वाले ऋणों की कीमत निर्धारित करते समय बैंकों को चाहिए कि वे एमएसई के लिए ऋण गारंटी निधि न्यास (सीजीटीएमएसई) की क्रेडिट गारंटी कवर तथा ऋण के सीजीटीएमएसई द्वारा गारंटीकृत अंश के लिए पूंजी पर्याप्तता के उद्देश्य के लिए शून्य जोखिम भार के रूप में उपलब्ध प्रोत्साहन को ध्यान में रखें तथा ऐसे एमएसई उधारकर्ताओं को अन्य उधारकर्ताओं की तुलना में विभेदक ब्याज दर प्रदान करें। तथापि, बैंक यह नोट करें कि ऐसी विभेदक ब्याज दर बैंक की आधार दर से कम नहीं होनी चाहिए। 2.4. ऋणों के लिए अस्थायी ब्याज दर 2.4.1 बैंक इस बात के लिए स्वतंत्र हैं कि वे सभी प्रकार के ऋण निश्चित या अस्थायी दर पर दे सकें परंतु इस संबंध में उन्हें आस्ति-देयता प्रबंध संबंधी दिशानिर्देशों का पालन करना होगा। पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए बैंकों को अपने अस्थायी दर के ऋण उत्पादों का मूल्य निर्धारण करने के लिए सिर्फ बाह्य अथवा बाजार आधारित रुपया बेंचमार्क मूल उधार दर का प्रयोग करना चाहिए । अस्थायी दरों की गणना की विधि वस्तुनिष्ठ, पारदर्शी तथा दोनों पार्टियों को परस्पर स्वीकार्य होनी चाहिए । बैंकों को अपने आंतरिक बेंचमार्क दर या पूर्वताप्राप्त (अंडर लाइंग) किसी अन्य व्युत्पन्न दर से संबद्ध किसी अस्थायी दर वाले ऋण प्रस्तावित नहीं करने चाहिए । यह विधि सभी नए ऋणों के लिए अपनाई जानी चाहिए। दीर्घावधि/सावधि वर्तमान ऋणों के मामलों में, बैंकों को ऋण खातों की समीक्षा या नवीकरण करते समय संबंधित उधारकर्ता/उधारकर्ताओं की सहमति प्राप्त करके उपर्युक्त विधि के अनुसार अस्थायी दरों को पुनर्निर्धारित करना चाहिए । बैंकों को अपने निदेशक-मंडल के अनुमोदन से दंडात्मक ब्याज लगाने के लिए पारदर्शी नीति बनाने की अनुमति दी गई है । परंतु प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के उधारकर्ताओं को दिये गये ऋणों के संबंध में रुपए 25,000/- तक के ऋणों के लिए कोई दंडात्मक ब्याज नहीं लगाया जाना चाहिए।चुकौती में चूक, वित्तीय विवरण प्रस्तुत न करने आदि कारणों के लिए दंडात्मक ब्याज लगाया जा सकता है । परन्तु दंडात्मक ब्याज संबंधी नीति पारदर्शिता, निष्पक्षता, ऋण की चुकौती के लिए प्रोत्साहन और ग्राहकों की वास्तविक कठिनाइयों को ध्यान में रखने के सम्यक्-स्वीकृत सिद्धांतों को आधार बनाकर तैयार की जानी चाहिए । 2.6 ऋण करारों में सामर्थ्यकारी खंड 2.6.1 बैंकों को मीयादी ऋण सहित सभी प्रकार के अग्रिमों के मामलों में ऋणसंबंधी करारों में निम्नलिखित शर्त अनिवार्यत: शामिल करनी चाहिए जिससे कि बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी किये गये निदेशों के अनुकूल ब्याज दर लागू कर सकें । “बशर्ते ऋणकर्ता द्वारा देय ब्याज भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर किये गये ब्याज दर संबंधी परिवर्तनों के अधीन होगा।'' 2.6.2 चूंकि बैंक ऋणों और अग्रिमों पर ब्याज दरों के संबंध में रिज़र्व बैंक के निदेशों से बाध्य हैं जो बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 21 और 35 क के अंतर्गत जारी किये जाते हैं, अत: बैंक किसी भी प्रकार के ब्याज दर संशोधन को लागू करने के लिए बाध्य हैं, चाहे दरें बढ़ायी जायें या घटायी जायें और यह निदेश / संशोधित ब्याज दर (आधारभूत मूल उधार-दर और अंतर) में परिवर्तन के लागू होने की तारीख से सभी मौजूदा अग्रिमों पर लागू होगा, जब तक कि विशिष्ट रूप से किसी अन्य बात के निदेश न हों । 2.7. समाशोधित न हुए चेक आदि पर आहरण 2.7.1 जहां समाशोधन के लिए भेजे गये चेकों, अर्थात् समाशोधित न हुई राशि (उदाहरण के लिए समाशोधित न हुए स्थानीय या बाहरी चेक) जो गैर-जमानती अग्रिम के स्वरूप के होते हैं /होती है, के बदले आहरण की अनुमति है, वहाँ बैंकों को ऐसे आहरणों पर अग्रिमों पर ब्याज दर संबंधी निदेशों के अनुसार ब्याज लगाना चाहिए । 2.7.2 यह नोट किया जाए कि ये अनुदेश ग्राहक-सेवा के एक उपाय के रूप में उगाही के लिए भेजे गये चेकों के संबंध में तत्काल राशि जमा करने संबंधी जमाकर्ताओं को दी गयी सुविधा पर लागू नहीं होंगे। 2.8 सहायता संघीय व्यवस्था के अंतर्गत ऋण बैंकों को सहायता संघीय व्यवस्था के अंतर्गत भी एकसमान दर पर ब्याज लगाना आवश्यक नहीं है। प्रत्येक सदस्य-बैंक को ऋणकर्ताओं को दी गयी ऋण-सीमा के भाग पर अपनी आधारभूत मूल उधार दर के अधीन ब्याज लगाना चाहिए । 2.9. मासिक अंतराल पर ब्याज प्रभारित करना 2.9.1 बैंकों को 1 अप्रैल 2002 से मासिक अंतरालों पर ब्याज प्रभारित करने के लिए सूचित किया गया था। मासिक अंतराल पर ब्याज सभी नये और मौजूदा मीयादी ऋणों तथा अपेक्षाकृत लंबी / नियत अवधि के अन्य ऋणों पर लागू होगा। अपेक्षाकृत लंबी / नियत अवधि के मौजूदा ऋणों के मामले में बैंक ऋण की शर्तों की समीक्षा करते समय अथवा ऐसे ऋण- खातों का नवीकरण करते समय या ऋणकर्ता से सहमति प्राप्त करने के बाद मासिक अंतराल पर ब्याज लगाना आरंभ करेंगे। 2.9.2 मासिक अंतराल पर ब्याज लगाने से संबंधित अनुदेश कृषि अग्रिमों पर लागू नहीं होंगे और बैंक फसल-मौसमों से संबद्ध कृषि अग्रिमों पर ब्याज लगाने /चक्रवृद्धि ब्याज लगाने की वर्तमान प्रथा जारी रखेंगे। 29 जून 1998 के परिपत्र आरपीसीडी.सं. पीएलएफएस. बीसी. 129/05.02.27/97-98 में दिये गये अनुदेशों के अनुसार बैंकों को लंबे समय की फसलों के लिए कृषि अग्रिमों पर वार्षिक अंतराल पर ब्याज लगाना चाहिए । अल्प समय की फसलों और संबद्ध कृषि कार्यकलापों जैसे डेरी, मछली पालन, सुअर पालन, मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन आदि के संबंध में यदि ऋण / किस्त का भुगतान अतिदेय हो जाये तो बैंक ब्याज लगाते समय और चक्रवृद्धि ब्याज लगाते समय ऋण लेने वालों के साथ लचीलेपन और फसल कटने /बेचने के मौसम के आधार पर तय की गयी तारीखों को ध्यान में रखें । साथ ही, बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि छोटे और सीमांत किसानों को दिए जाने वाले अल्पावधि अग्रिमों के संबंध में, किसी खाते पर नामे कुल ब्याज मूलधन की राशि से अधिक नहीं होना चाहिए । 2.10. उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं के लिए शून्य प्रतिशत ब्याज-दर वाली ऋण योजनाएं बैंकों को निर्माताओं / डीलरों से प्राप्त डिस्काउंट के समायोजन के माध्यम से ऋणकर्ताओं को उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं के लिए कम / शून्य प्रतिशत ब्याज-दर पर अग्रिम देने से बचना चाहिए क्योंकि ऐसी ऋण- योजनाओं में परिचालनगत पारदर्शिता की कमी होती है और इनके चलते ऋण उत्पादों की मूल्यन-व्यवस्था विकृत हो जाती है। ये उत्पाद लगाये गए ब्याज की दरों के संबंध में ग्राहकों को स्पष्ट जानकारी भी नहीं देते। बैंकों को विभिन्न समाचार-पत्रों और प्रचार माध्यमों में विज्ञापन देकर ऐसी योजनाओं को बढ़ावा भी नहीं देना चाहिए कि वे ऐसी योजनाओं के अंतर्गत उपभोक्ताओं को सुविधा /वित्त प्रदान कर रहे हैं । बैंकों को किसी भी ऐसे प्रोत्साहन-आधारित विज्ञापन के साथ किसी भी रूप में/प्रकार से अपना नाम जोड़ने से बचना चाहिए जहां ब्याज दर के संबंध में स्पष्टता न हो। 2.11 बैंकों द्वारा प्रभारित अत्यधिक ब्याज 2.11.1. हालांकि ब्याज दरों का अविनियमन किया गया है, फिर भी, एक विशिष्ट स्तर से अधिक ब्याज प्रभारित करना सूदखोरी मानी जाती है और उसे न तो निरंतर बनाए रखा जा सकता है और वह न ही सामान्य बैंकिंग प्रथाओं के अनुसार हो सकता है। अत: बैंकों के बोर्डों को सूचित किया गया है कि वे ऐसी उचित आंतरिक सिद्धांत तथा क्रियाविधियां निर्धारित करें कि जिससे वे ऋण तथा अग्रिमों पर अत्यधिक (सूदखोर) ब्याज जिसमें प्रसंस्करण तथा अन्य प्रभार शामिल हैं, प्रभारित नहीं करेंगे। कम मूल्य के ऋणों, विशेषत: व्यक्तिगत ऋणों तथा उसी प्रकार के कुछ अन्य ऋणों के संबंध में ऐसे सिद्धांतों तथा क्रियाविधियों को निर्धारित करते समय बैंकों को अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित विस्तृत दिशानिर्देशों को ध्यान में लेना हो : (क) ऐसे ऋणों को स्वीकृत करने के लिए एक उचित पूर्वानुमोदन प्रक्रिया निर्धारित करनी होगी। इस प्रक्रिया में अन्य बातों सहित भावी उधारकर्ता के नकद प्रवाहों को ध्यान में लिया जाना चाहिए। (ख) बैंकों द्वारा प्रभारित ब्याज दरों में अन्य बातों के साथ-साथ उधारकर्ता के आंतरिक रेटिंग को ध्यान में लेते हुए उचित तथा योग्य समझे गये जोखिम प्रीमियम को शामिल किया जाना चाहिए। इसके अलावा, जोखिम पर विचार करते समय, जमानत का होना या न होना तथा उससे मूल्य को ध्यान में लिया जाना चाहिए। (ग) उधारकर्ता को ऋण की कुल लागत जिसमें ऋण पर लगाए जाने वाला ब्याज और अन्य सभी प्रभार शामिल हैं, उचित होनी चाहिए और जिस ऋण को चुकाया जाना है, उसे प्रदान करने में बैंक द्वारा ग्रहण की गई कुल लागत तथा उक्त लेन-देन से अपेक्षित उचित लाभ की मात्रा के अनुकूल होनी चहिए। (घ) ऐसे ऋणों पर लगाए जाने वाले प्रसंस्करण तथा अन्य प्रभारों सहित ब्याज की एक उचित उच्चतम सीमा निर्धारित की जानी चाहिए और उसे उचित रूप से प्रकाशित किया जाना चाहिए। |