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असेट प्रकाशक

110645401

निदेशक मंडल पर मास्टर परिपत्र - शहरी सहकारी बैंक (यूसीबी)

आरबीआई/2024-25/01

डीओआर.एचजीजी.जीओवी.सं.1/18.10.010/2024-25

1 अप्रैल 2024

प्रबंध निदेशक/ मुख्य कार्यपालक अधिकारी
सभी प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक

महोदय/महोदया,

निदेशक मंडल पर मास्टर परिपत्र - शहरी सहकारी बैंक (यूसीबी)

कृपया उपर्युक्त विषय पर 1 जुलाई 2015 का हमारा मास्टर परिपत्र डीसीबीआर.बीपीडी (पीसीबी/आरसीबी).परि.सं.2/14.01.062/2015-16 (भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट www.rbi.org.in पर उपलब्ध) देखें। संलग्न मास्टर परिपत्र में अब तक जारी सभी अनुदेशों/ दिशानिर्देशों को समेकित और अद्यतन किया गया है।

भवदीया

(सेंटा जॉय)

मुख्‍य महाप्रबंधक

मास्टर परिपत्र - निदेशक मंडल - शहरी सहकारी बैंक (यूसीबी)

क्रमांक

विषय

पृष्‍ठ सं .

1

निदेशक मंडल का गठन

3-4

2

निदेशकों की भूमिका

4-6

3

बोर्ड की समितियाँ

6-7

4

समीक्षाओं का कैलेंडर - निदेशक मंडल के समक्ष प्रस्तुत किए जाने वाले मामले

7

5

निदेशक अथवा उनके रिश्तेदार जिस न्यास (ट्रस्ट) और संस्थान में पदधारी या हितबद्ध हैं, उनके लिए दान

7-8

6

निदेशकों को फीस तथा भत्तों का भुगतान

8

7

अनुबंध 1 - निदेशक मंडल के संबंध में शहरी सहकारी बैंकों पर माधवदास समिति की सिफारिशें

9-11

8

अनुबंध 2 - प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के निदेशक मंडल को प्रस्तुत की जाने वाली समीक्षाएँ

12-15

9

परिशिष्ट – मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची

16-17

 

 

मास्टर परिपत्र - निदेशक मंडल - शहरी सहकारी बैंक (यूसीबी)

 

1. निदेशक मंडल का गठन

1.1 प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक (यूसीबी अथवा बैंक) अन्य के साथ-साथ बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (बैंवि अधिनियम) और भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 (भारिबैं अधिनियम) के अंतर्गत निहित शक्तियों के अनुसार भारतीय रिज़र्व बैंक (रिज़र्व बैंक अथवा आरबीआई) के विनियमन तथा पर्यवेक्षण में कार्य कर रहे हैं।

1.2 यूसीबी के बोर्ड में निदेशकों को जानकार और उच्च निष्ठा वाला व्यक्ति होना चाहिए। बोर्ड में व्यावसायिकता सुनिश्चित करने के लिए बैंकों को हमेशा कम से कम दो पेशेवर निदेशक, अर्थात् ऐसे व्‍यक्ति जिन्‍हें उपयुक्त बैंकिंग अनुभव (मध्यम/वरिष्ठ प्रबंधन स्तर पर) अथवा कानून, लेखा-शास्‍त्र अथवा वित्त के क्षेत्र में संबंधित व्यावसायिक योग्यता हो, रखने चाहिए। यह सुनिश्चित करने के लिए बैंकों को अपने उप-विधि में उचित प्रावधान भी रखना चाहिए। तथापि, वेतन अर्जक बैंकों की सदस्यता की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए उनके मामले में इन अनुदेशों पर जोर नही दिया जाएगा।

1.3 आरबीआई के दिनांक 31 दिसंबर 2019 के परिपत्र विवि(पीसीबी).बीपीडी.परि.सं. 8/12.05.002/2019-20 में निहित दिशानिर्देशों के अनुसार यूसीबी (100 करोड़ रुपये से कम जमा राशि वाले और वेतन अर्जक बैंकों को छोड़कर) को अपनी उप-विधि में उपयुक्त संशोधन करके व्यावसायिक प्रबंधन को सुसाध्य बनाने और बैंकिंग-संबंधी गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक प्रबंधन बोर्ड (बीओएम) का गठन करना भी आवश्यक है।

1.4 चूँकि निदेशकों (सहयोजित तथा नामित निदेशकों के अतिरिक्‍त) को सदस्यों में से निर्वाचित किया जाता है, इसलिए जो व्यक्ति एक सदस्य के रूप में भी प्रवेश के लिए पात्र नहीं हैं, वे यूसीबी के निदेशक नहीं बन सकते। विशेष रूप से, व्यक्तिगत हैसियत से अथवा किसी संस्था के स्वत्वधारी/साझीदार/ कर्मचारी/निदेशक की हैसियत से उधार देने, वित्तपोषण तथा निवेश गतिविधियों में शामिल व्यक्ति और नैतिक पतन सहित किसी प्रकार के दंडनीय अपराध में अभियोजित व्यक्ति मॉडल उप-विधि सं. 9 के खंड ख (ii) तथा/या संबंधित सहकारी समिति अधिनियम में निहित उपबंधों के अनुसार पात्र नहीं हैं। इसके अतिरिक्‍त, यूसीबी में निदेशक बनने के लिए कुछ योग्यता/अर्हता/अयोग्यता मानदंड बैंवि अधिनियम और संबंधित सहकारी कानूनों में भी निर्धारित हैं।

1.5 निदेशक मंडलों के संबंध में श्री माधव दास की अध्यक्षता में बनी "शहरी सहकारी बैंकों पर समिति" द्वारा की गई और बैंकों द्वारा उन्हें अपनाए जाने के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा संस्तुत की गई सिफ़ारिशें अनुबंध 1 में दर्शाई गई हैं।

1.6 पर्यवेक्षी समीक्षाओं के दौरान यह देखा गया कि कुछ यूसीबी ने बोर्ड स्तर पर मानद पदनाम (लाभकारी या अन्यथा) बनाने/उपाधियाँ प्रदान करने की प्रथा को अपनाया है, जैसा कि अध्‍यक्ष एमेरिटस, समूह अध्‍यक्ष, आदि, जिन्हें लागू क़ानून अथवा विनियमन में मान्यता प्राप्त नहीं है। यद्यपि इन पदधारियों के लिए इस तरह के पद/उपाधियॉं सभी बोर्ड सामग्रियों तक पहुँच और बोर्ड/समितियों की बैठकों में भाग लेने के लिए कुछ विशेषाधिकारों/अधिकारों का संकेतक हो सकते हैं, ऐसे व्यक्तियों पर जवाबदेही या दायित्व प्रवर्तित करना कठिन हो सकता है। ऐसे पदों को हितों के टकराव के साथ-साथ सभी हितधारकों के सर्वोत्तम हित में कानूनी रूप से गठित बोर्ड के प्रभावी और स्वतंत्र कामकाज में बाधा डालने वाले समानांतर या बिम्ब प्राधिकारी के निर्माण के रूप में देखा जा सकता है। अतः यूसीबी को निर्देश दिया जाता है कि वे बोर्ड स्तर पर कोई मानद पद/उपाधियाँ न बनाएं अथवा ऐसी उपाधियाँ प्रदान न करें जिनकी प्रकृति असांविधिक हों[1]

2. निदेशकों की भूमिका

2.1 शहरी सहकारी बैंक के निदेशक मंडल (बीओडी अथवा बोर्ड) को प्रथमतया सांविधिक प्रावधानों और भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी दिशानिर्देशों को ध्यान में रखते हुए नीतियों के निरूपण को सुनिश्चित करना है। बोर्ड को बैंक के कामकाज पर समग्र पर्यवेक्षण और नियंत्रण भी रखना चाहिए, और दैनिक प्रशासन का कार्य प्रबंध निदेशक (एमडी) / मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) पर छोड़ना चाहिए।

2.2 यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी सभी परिपत्र तथा नीतियों से संबंधित अन्य सामग्री बोर्ड के समक्ष रखी जाए।

2.3 यूसीबी के निदेशकों को अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित दिशानिर्देशों द्वारा मार्गदर्शित होना चाहिए[2]:

  1. बोर्ड बैठकों में निदेशकों को नियमित और प्रभावी ढंग से भाग लेना चाहिए। उन्हें बोर्ड के कागजात का गहन अध्ययन करना चाहिए और बोर्ड की बैठकों में कोई भी जानकारी प्राप्त करने के लिए एमडी/सीईओ की सहायता लेनी चाहिए। तथापि, बैठकों में चर्चा किए जानेवाले एजेंडा बिंदुओं के संबंध में जांच आदि के लिए विभिन्न विभागों द्वारा दर्ज किए गए कागजात/फ़ाइलों/नोटों को निदेशकों द्वारा उनसे सीधे नहीं मांगा जाना चाहिए।
  2. प्रबंधन से अपेक्षा की जाती है कि निदेशकों को पहले से ही पूर्ण तथ्य और संपूर्ण कागजात अथवा वह सभी अतिरिक्त जानकारी/स्पष्टीकरण जो निदेशक निर्णय लेने से पहले मांग सकते हैं, प्रस्तुत करे। निदेशकों से बैंक के एजेंडा कागजात/नोट्स की गोपनीयता सुनिश्चित करने की अपेक्षा की जाती है। उन्हें बैंक के किसी भी घटक से संबंधित कोई भी जानकारी किसी को नहीं बतानी चाहिए, क्योंकि वे गोपनीयता और निष्ठा की शपथ के अधीन हैं।
  3. निदेशकों को सामान्य नीति के निर्माण के मामले में खुद को पूरी तरह से शामिल करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बोर्ड स्तर पर बैंक के कार्य-निष्पादन की पर्याप्त निगरानी की जाए। उन्हें किसी भी तरीके से बैंक के किसी भी खास अधिकारी/कर्मचारी को कोई अनुदेश/दिशा-निर्देश जारी नहीं करना चाहिए/नहीं देना चाहिए, और अधिकारी/कर्मचारी या यूनियनों को किसी भी तरीके से उनसे सीधे संपर्क करने से भी हतोत्साहित करना चाहिए।
  4. निदेशकों को बैंक के व्यापक उद्देश्यों और रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित नीतियों से वाकिफ़ होना चाहिए। उन्हें अर्थव्यवस्था के रुझानों का विश्लेषण करना चाहिए, जनता के प्रति प्रबंधन की जिम्मेदारी के निर्वहन और ग्राहक सेवा में सुधार के उपायों के निरूपण में सहायता करनी चाहिए, और आम तौर पर बैंक प्रबंधन को रचनात्मक सहायता देनी चाहिए।
  5. बोर्ड को सामंजस्यपूर्ण तरीके से कार्य करना चाहिए और बैंक के मामलों को सुचारू और कुशल तरीके से प्रबंधित करने के लिए उचित नेतृत्व प्रदान करना चाहिए। निदेशकों को एक टीम के रूप में और सहकारिता की भावना से काम करना चाहिए और प्रबंधन को यथासंभव अपनी बुद्धिमत्ता, मार्गदर्शन और ज्ञान प्रदान करना चाहिए।
  6. निदेशकों द्वारा बैंक की कार्यप्रणाली के निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए:
  • क) आरबीआई की नियामक नीतियों का अनुपालन
  • ख) नकद आरक्षित निधि और सांविधिक चलनिधि अनुपातों का अनुपालन
  • ग) निधियों का कुशल प्रबंधन और लाभप्रदता में सुधार
  • घ) प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र/कमज़ोर वर्ग को ऋण देने के लक्ष्य
  • ङ) सुनिश्चित करना कि बैंक के धन का उपयोग सामान्य सदस्यों के लाभ के लिए उचित और विवेकपूर्ण तरीके से किया जाए
  • च) शीघ्र वसूली, एवं अतिदेय में कमी
  • छ) गैर-निष्पादित आस्तियों हेतु आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधानीकरण पर दिशानिर्देशों का अनुपालन
  • ज) ग्राहक सेवा
  • झ) आरबीआई निरीक्षण रिपोर्ट / सांविधिक लेखापरीक्षा रिपोर्ट पर की गई कार्रवाई की समीक्षा
  • ञ) एक मजबूत प्रबंधन सूचना प्रणाली का विकास
  • ट) भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित मदों की समीक्षा
  • ठ) सतर्कता, धोखाधड़ी और धन का दुरुपयोग
  • ड) आंतरिक नियंत्रण प्रणाली और व्यवस्था (हाउसकीपिंग) को सुदृढ़ करना, अर्थात, लेखा बहियों का उचित रखरखाव और सामयिक समाधान करना।
  • ढ) परिचालनों का कम्प्यूटरीकरण
  1. निदेशकों को कार्मिक प्रशासन से संबंधित किसी भी मामले, जैसे नियुक्ति, स्थानांतरण, पदस्थापन या पदोन्नति, या किसी कर्मचारी की व्यक्तिगत शिकायतों के निवारण में खुद को शामिल नहीं करना चाहिए। उन्हें ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए जो कर्मचारियों के अनुशासन, अच्छे आचरण और सत्यनिष्ठा के संरक्षण में हस्तक्षेप करेगा और/या विध्वंसक होगा।
  2. निदेशकों को बैंक से किसी भी प्रकार की सुविधा की स्वीकृति के लिए संपर्क करना या प्रभाव का उपयोग करना नहीं चाहिए। उन्हें किसी भी ऋण प्रस्ताव, बैंक के परिसर के लिए इमारतों या जगहों, ठेकेदारों, वास्तुकारों, डॉक्टरों, वकीलों आदि की भर्ती या पैनलीकरण को प्रायोजित नहीं करना चाहिए। साथ ही, उन्हें खास प्रस्तावों के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित भी नहीं होना चाहिए।
  3. यदि कोई प्रस्ताव जिसमें वे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रुचि रखते हैं, चर्चा के लिए आता है तो उन निदेशकों को बोर्ड की उस चर्चा में भाग नहीं लेना चाहिए। उन्हें अपनी रुचि के बारे में एमडी/सीईओ और बोर्ड को पहले से ही बताना चाहिए।
  4. निदेशक अपने विजिटिंग कार्ड या लेटर हेड पर बैंक के अपने निदेशक पद को इंगित कर सकते हैं, लेकिन बैंक के प्रतीक चिह्न (लोगो) या विशिष्ट डिजाइन को विजिटिंग कार्ड/लेटर हेड पर प्रदर्शित नहीं करना चाहिए।

3. बोर्ड की समितियाँ

3.1 बोर्ड की लेखा-परीक्षा समिति

3.1.1 एक प्रबंधन उपकरण के रूप में आंतरिक लेखा-परीक्षा/निरीक्षण की प्रभावशीलता को सुनिश्चित करने और बढ़ाने के लिए, बैंक के आंतरिक लेखा-परीक्षा/निरीक्षण तंत्र और अन्य अधिकारियों की निगरानी और निर्देश प्रदान करने के लिए बोर्ड स्तर पर एक शीर्ष लेखा-परीक्षा समिति का गठन किया जाना चाहिए। समिति में एक अध्यक्ष और तीन/चार निदेशक हो सकते हैं; ऐसे निदेशकों में से एक या अधिक सनदी लेखाकार (चार्टर्ड अकाउंटेंट) हों या प्रबंधन, वित्त या लेखाकर्म (अकाउंटेंसी) और लेखा-परीक्षा प्रणाली (ऑडिट सिस्टम) में अनुभव रखते हों।

3.1.2 बोर्ड की लेखा-परीक्षा समिति (एसीबी) को आरबीआई द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के कार्यान्वयन की समीक्षा करनी चाहिए और तिमाही अंतराल पर बोर्ड को एक नोट प्रस्तुत करना चाहिए। एसीबी के प्रमुख कर्तव्य/जिम्मेदारियाँ नीचे दी गई हैं:

  1. एसीबी द्वारा बैंक में संपूर्ण लेखा-परीक्षा कार्य के परिचालन के लिए दिशा-निर्देश प्रदान किए जाने चाहिए और उसकी निगरानी करनी चाहिए। संपूर्ण लेखा-परीक्षा कार्य में बैंक के भीतर आंतरिक लेखा-परीक्षा और निरीक्षण का संगठन, परिचालन और गुणवत्ता नियंत्रण, बैंक के सांविधिक लेखा-परीक्षा और रिज़र्व बैंक के निरीक्षण रिपोर्ट के अनुपालन पर अनुवर्ती कार्यवाही करना शामिल होगा।
  2. इसके द्वारा बैंक में आंतरिक निरीक्षण/लेखा-परीक्षा कार्य - प्रणाली, अनुवर्ती कार्रवाई के संदर्भ में इसकी गुणवत्ता और प्रभावशीलता की समीक्षा की जानी चाहिए। इसके द्वारा आंतरिक निरीक्षण रिपोर्टों पर अनुवर्ती कार्रवाई की समीक्षा की जानी चाहिए। इसके द्वारा निम्नलिखित पर अनुवर्ती कार्यवाही पर भी विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए:
  • क) अंतर-शाखा समायोजन खाते
  • ख) अंतर-शाखा खातों और अंतर-बैंक खातों में लंबे समय से बकाया प्रविष्टियों का निपटान न होना
  • ग) बहियों के संतोलन में बकाया
  • ग) धोखाधड़ी
  • घ) हाउसकीपिंग के अन्य सभी प्रमुख क्षेत्र
  1. सांविधिक लेखा-परीक्षा/समवर्ती लेखा-परीक्षा/आरबीआई निरीक्षण रिपोर्ट का अनुपालन
  2. गंभीर अनियमितताओं का पता लगाने में आंतरिक निरीक्षण अधिकारियों की ओर से चूक।
  3. बैंक के खातों में अधिक पारदर्शिता और लेखांकन नियंत्रण की पर्याप्तता सुनिश्चित करने की दृष्टि से बैंक में लेखांकन नीतियों/प्रणालियों की समय-समय पर समीक्षा।

3.2 बोर्ड की जोखिम प्रबंधन समिति

जोखिम प्रबंधन की प्राथमिक जिम्मेदारी बोर्ड की है। जोखिम प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं पर आवश्यक स्तर पर ध्यान केंद्रित करने के लिए, ₹5000 करोड़ या उससे अधिक (पिछले वर्ष 31 मार्च को) की आस्ति वाले यूसीबी को एक जोखिम प्रबंधन समिति (बोर्ड की) स्थापित करने के लिए कहा जाता है। जोखिम प्रबंधन समिति की सदस्यता, कार्य का दायरा और बैठक की आवृत्ति बोर्ड द्वारा तय की जाएगी।

4. समीक्षाओं का कैलेंडर - निदेशक मंडल के समक्ष प्रस्तुत किए जाने वाले मामले

उपर्युक्त पैराग्राफ 2.3 में इस बात पर जोर दिया गया है कि निदेशकों द्वारा बैंक के कामकाज के महत्वपूर्ण पहलुओं की समय-समय पर की जाने वाली समीक्षा पर ध्यान दिया जाना चाहिए। समीक्षाओं की एक उदाहरणात्मक सूची, जिस पर निदेशकों का ध्यान आकर्षित होना चाहिए, और साथ ही वह आवधिकता जिस पर इन्हें निदेशक मंडल के समक्ष रखा जाना चाहिए, अनुबंध 2 में दर्शायी गयी है।

5. निदेशक अथवा उनके रिश्तेदार जिस न्यास (ट्रस्ट) और संस्थान में पदधारी या हितबद्ध हैं, उनके लिए दान/चन्दा

5.1 30 अगस्त 2013 से, यूसीबी को उन ट्रस्टों और संस्थानों को, पिछले वर्ष के लिए बैंक के प्रकाशित लाभ के 1% की अनुमेय सीमा के भीतर भी, दान/चन्दा देने से प्रतिबंधित कर दिया गया है जहां निदेशक और/या उनके रिश्तेदार किसी पद पर हैं या उनमें हितबद्ध हैं।

5.2 इस अनुच्छेद के प्रयोजन हेतु, एक व्यक्ति को दूसरे का रिश्तेदार माना जाएगा, यदि और केवल यदि,:-

क) वे एक अविभाजित हिंदू परिवार के सदस्य हैं; या

) वे पति और पत्नी हैं; अथवा

) एक दूसरे से नीचे बताए गए तरीके से संबंधित है:

  1. पिता
  2. माँ (सौतेली माँ सहित)
  3. पुत्र (सौतेले पुत्र सहित)
  4. पुत्र की पत्नी
  5. पुत्री (सौतेली पुत्री सहित)
  6. पुत्री का पति
  7. भाई (सौतेला भाई सहित)
  8. भाई की पत्नी
  9. बहन (सौतेली बहन सहित)
  10. बहन का पति

5.3 उक्त अनुच्छेद के प्रयोजन के लिए, 'हित' शब्द से तात्पर्य है - “वह न्यास जिसमें निदेशक/ निदेशकों के रिश्तेदार न्यासी के रूप में पदधारी हैं या लाभार्थी हैं या न्यास के कामकाज में किसी भी हैसियत से शामिल है, जिससे निदेशक(कों) की स्वाधीनता पर प्रभाव डालने की संभावना हो।

6. निदेशकों को फीस तथा भत्तों का भुगतान

निदेशक मंडल की बैठकों के संचालन आदि पर सभी खर्चों को लाभ-हानि खाते की मद सं. 3, अर्थात "निदेशक और स्थानीय समिति के सदस्य - फीस और भत्ता", में दर्शाया जाए। इस प्रकार के खर्चों में निदेशकों तथा स्थानीय समिति के सदस्यों को वास्तव में भुगतान की गई और इस प्रकार की बैठकों में भाग लेने के लिए उनकी तरफ़ से खर्च की गई राशियां शामिल होंगी।


अनुबंध 1

निदेशक मंडल के संबंध में शहरी सहकारी बैंकों

पर माधव दास समिति की सिफारिशें

---------------------------------------------------------------------------

[पैरा 1.5 के अनुसार]

 

1. निदेशक मंडल में शाखा सदस्यों को प्रतिनिधित्व प्रदान करना

शाखाओं के सदस्यों को शहरी बैंकों की गतिविधियों के प्रबंधन में शामिल करने की दृष्टि से निदेशक मंडल में उनका प्रतिनिधित्व आवश्यक है। निदेशक मंडल में निदेशकों के चयन के प्रयोजन के लिए शाखाओं को निम्नलिखित श्रेणियों के अनुसार समूहबद्ध किया जा सकता है।

  1. प्रधान कार्यालय की सीमाओं के भीतर शाखाएं जिसमें प्रधान कार्यालय के नगर से लगभग 25 कि.मी. के भीतर आने वाली शाखाएं शामिल हैं।
  2. उपर्युक्त सीमाओं के बाहर परंतु जिले के भीतर की शाखाएं।
  3. जिले के बाहर की शाखाएं जिसमें राज्य के बाहर की शाखाएं शामिल हैं।

प्रतिनिधित्व शाखाओं की सदस्यता पर आधारित हो, न कि उनकी जमाराशियों या ऋण कारोबार पर। निदेशक मंडल में कुछ निश्चित सीटें विशेष रूप से केवल प्रधान कार्यालय के नगर को प्रदान किए जाने चाहिए और किसी समूह की प्रत्येक शाखा को क्रमिक रूप से प्रतिनिधित्व दिया जाए।

2. निदेशक के पद की अर्हता

  1. किसी शहरी बैंक में निदेशक के रूप में पद ग्रहण करने की अर्हता के संबंध में शेयरधारिता को निर्धारक तत्व नहीं बनाया जाना चाहिए। किसी निदेशक का चुनाव सदस्यों में उसके प्रति विश्वास के आधार पर किया जाना चाहिए। इसलिए, मौजूदा नियम की निदेशक मंडल की सदस्यता के लिए न्यूनतम शेयर पात्रता संबंधी मौजूदा निर्धारण पर ज़ोर नहीं दिया जाना चाहिए, हितकर है।
  2. शहरी बैंकों में निदेशक के पद के लिए चुनाव लड़ रहे व्यक्तियों को कम से कम दो वर्षों की अवधि के लिए बैंक का सदस्य होना चाहिए। इसी प्रकार, निदेशक मंडल में चुनाव लड़ने वाले सदस्यों की संबंधित शहरी बैंक में कम से कम लगातार दो वर्षों की अवधि तक किसी भी प्रकार की ₹500/- की न्यूनतम जमाराशि होनी चाहिए।

3. मतदान के लिए सदस्य की योग्यता

मुख्य रूप से निदेशक मंडल की सीटों पर कब्जा जमाने की दृष्टि से तथा इसके जरिए दक्षतापूर्ण प्रबंधन वाले शहरी बैंकों के निदेशक मंडलों को अस्थिर तथा अपदस्थ करने के उद्देश्य से साधारण सभा की बैठक के तुरंत पहले कुछ निहित स्वार्थों की पहल पर सामूहिक नामांकन की घटनाओं को रोकने के लिए प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक के सदस्यों को बैंक के प्रबंधन मंडल[3] के चुनाव में भाग लेने की अनुमति उनके सदस्यता प्राप्त करने की तारीख से 12 महीनों की न्यूनतम अवधि पूरी होने के बाद ही मिलनी चाहिए।

4. निदेशक मंडल में महिला प्रतिनिधि

जिस क्षेत्र में केवल महिलाओं के लिए किसी शहरी बैंक के गठन के अवसर सीमित हैं, मौजूदा शहरी बैंक अपने प्रबंधक मंडलों में महिला सदस्यों को प्रतिनिधित्व दे सकते हैं और जहां आवश्यक हो, महिला सदस्यों की जरूरतों को पूरा करने के लिए एक पृथक अनुभाग बना सकते हैं। निदेशक मंडलों में महिला शेयरधारकों के लिए कम से कम एक सीट आरक्षित रखी जाए।

5. निदेशक मंडल के सदस्यों के लिए विकास कार्यक्रम

एक दक्ष नीति निर्माता एवं निर्णयन निकाय के रूप में स्वयं को विकसित करने के लिए निदेशक मंडल के सदस्यों के लिए नियमित कार्यक्रमों की आवश्यकता है। इन कार्यक्रमों के अंतर्गत निदेशक मंडल के सदस्यों को अल्पकालिक अभिमुख पाठ्यक्रमों, कार्यशालाओं, सेमिनारों से परिचित करवाना और अन्य बैंकों का दौरा शामिल है। बैंक द्वारा स्वयं या शहरी बैंकों के संघों या संगठनों द्वारा तैयार किए गए उचित मैनुअल, निदेशकों को उप-विधियों के तहत उनके कार्यों से परिचित कराने का एक तरीका हो सकता है। राष्ट्रीय शहरी सहकारी बैंक तथा क्रेडिट सोसायटी संघ तथा शहरी बैंकों के राज्य स्तरीय संघों या संगठनों के सहयोग से राष्ट्रीय सहकारी संघ को शहरी बैंकों के प्रबंधन मंडलों को शिक्षित एवं प्रशिक्षित करने के इस अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य में स्वयं को लगाना चाहिए तथा इस प्रयोजन के लिए समन्वित कार्यक्रम की रूप-रेखा बनानी चाहिए।

6. निदेशक मंडल में मुख्य कार्यपालक का होना

किसी शहरी बैंक के मुख्य कार्यपालक को अधिमानत: निदेशक मंडल का एक सदस्य होना चाहिए, अर्थात् उसे प्रबंध निदेशक होना चाहिए।

7. निदेशक मंडल में राज्य सरकार का नामित सदस्य

जिस शहरी बैंक की शेयर पूंजी में राज्य की भागीदारी है ऐसे बैंकों के निदेशक मंडल में राज्य सरकार अपना प्रतिनिधि नामित कर सकता है। इस प्रकार के प्रतिनिधियों की संख्या निदेशकों की कुल संख्या के एक-तिहाई या तीन, इनमें से जो भी कम हो, से अधिक नहीं होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त, सरकार द्वारा नामित निदेशकों को सहकारिता विभाग का अधिकारी होने के बजाय अधिमानत: सक्षम गैर-अधिकारी होना चाहिए।

 

परिशिष्ट

मास्टर परिपत्र - निदेशक मंडल - यूसीबी

मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची

No.

परिपत्र सं.

दिनांक

विषय

1

विवि.जीओवी.आरईसी.सं.26/18.10.004/2022-23

21.04.2022

शहरी सहकारी बैंकों में बोर्ड स्तर पर मानद पदनामों का सृजन

2

विवि.सीआरई(डीआईआर).आरईसी.26/21.04.103/2021-22 (अंशत:)

25.06.2021

प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों में मुख्य जोखिम अधिकारी की नियुक्ति

3

विवि.(पीसीबी).बीपीडी.परि.सं.8/12.05.002/2019-20 (अंशत:)

31.12.2019

प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों (यूसीबी) में प्रबंधन बोर्ड (बीओएम) का गठन

4

शबैंवि.पीसीबी.परि.सं. 7 / 09.72.000/2013-14

30.08.2013

उन ट्रस्टों और संस्थानों को दान जहां निदेशक, उनके रिश्तेदार पद पर हैं या हित रखते हैं

5

शबैंवि.पीसीबी.परि. No. 41 / 09.103.01/2007-08

21.04.2008

शहरी सहकारी बैंकों के प्रबंधन का व्यावसायीकरण

6

शबैंवि.पीसीबी.परि. No. 6/09.103.01/2007-08

18.09.2007

शहरी सहकारी बैंकों के प्रबंधन का व्यावसायीकरण

7

शबैंवि.बीपीडी.परि 36/09.06.00/2002-03

20.02.2003

निदेशक मंडल की लेखापरीक्षा समिति

8

शबैंवि पीसीबी.परि.पीओटी.39/09.10.3.01/2001-02

05.04.2002

प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के निदेशक मंडल का व्यावसायीकरण

9

शबैंवि.पीओटी.73/09.06.00/2000-01

12.07.2001

निदेशक मंडल की लेखापरीक्षा समिति

10

शबैंवि.सं.प्लान(पीसीबी)12/09.08.00/2000-01

15.11.2000

समीक्षाओं का कैलेंडर - बैंकों के निदेशक मंडल के समक्ष रखे जाने वाले मामले।

11

शबैंवि. सं. आई&एल (पीसीबी) 39 /12.05.00/96-97

07.02.1997

बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (एएसीएस) - धारा 29– वार्षिक बैलेंस शीट और लाभ और हानि खाता जमा करना - निदेशकों को शुल्क और भत्ते का भुगतान

12

शबैंवि.सं.आई&एल/(पीसीबी) 41/12.05.00/96-97

27.02.1997

बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी समितियों पर लागू)– अनुबंध 29- वार्षिक बैलेंस शीट और लाभ और हानि खाता प्रस्तुत करना - निदेशकों को शुल्क और भत्ते का भुगतान

13

शबैंवि.सं.प्लान.(पीसीबी).11/09.08.00/94-95

02.08.1994

समीक्षाओं का कैलेंडर- प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के निदेशक मंडल के समक्ष रखे जाने वाले मामले।

14

शबैंवि.सं.प्लान.( पीसीबी). 09/09.06.00/94-95

25.07.1994

बोर्डों की लेखापरीक्षा समिति की स्थापना करके बैंकों में आंतरिक लेखापरीक्षा कार्य की देखरेख करना

15

शबैंवि.सं.प्लान.( पीसीबी). परि. 55/09.08.00/ 93-94

11.02.1994

प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के निदेशक मंडल - व्यावसायीकरण और उनकी भूमिका - क्या करें और क्या न करें

 

[1] यूसीबी को ऐसे किसी भी मौजूदा पद/उपाधियॉं को 20 अप्रैल 2023 तक समाप्त करने का भी निर्देश दिया गया था।

[2] यह दिशानिर्देश संबंधित क़ानूनों में उल्लिखित/निर्धारित निदेशक मंडल के निर्दिष्ट कर्तव्यों, जिम्मेदारियों, अधिकारों अथवा अदायित्वों को प्रतिस्थापित या अधिक्रमण करने के लिए नहीं हैं।

[3] यह ध्यान दिया जाए कि इन सिफारिशों में प्रयुक्त शब्द "प्रबंधन मंडल" का अर्थ निदेशक मंडल है, न कि प्रबंधन मंडल, जैसा कि आरबीआई के 31 दिसंबर 2019 के परिपत्र विवि(पीसीबी).बीपीडी.परि.सं.8/12.05.002/2019-20 में संदर्भित है।

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