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मास्टर परिपत्र - ग्राहक सेवा, निर्यात ऋण दिए जाने से संबंधित प्रािया का सरलीकरण और रिपोर्ट भेजने संबंधी अपेक्षाएँ

आरबीआई /2004-05/109
बैंेंपविवि. औनिऋक. सं. 24/04.02.02/2004-05

10 अगस्त 2004

19 श्रावण 1026 (शक)
सभी वाणिज्यिक बैंकों के
अध्यक्ष/मुख्य कार्यपालक

महोदय,

मास्टर परिपत्र - ग्राहक सेवा, निर्यात ऋण दिए जाने से संबंधित प्रािया का सरलीकरण और रिपोर्ट भेजने संबंधी अपेक्षाएँ

जैसा कि आप को ज्ञात है, भारतीय रिज़र्व बैंक ने उपर्युक्त विषय पर दिनांक 1 जुलाई 2003 के पत्र संदर्भ औनिऋवि. सं. 8/04.02.02/2003-04 द्वारा एक मास्टर परिपत्र जारी किया था ताकि सभी वर्तमान अनुदेश बैंकों को एक ही जगह प्राप्त हो सकें । मास्टर परिपत्र में निहित अनुदेशों को 1 जुलाई 2004 तक अद्यतन बना दिया गया है । संशोधित मास्टर परिपत्र की एक प्रति संलग्न है । यह ध्यान दिया जाए कि जहाँ तक ग्राहक सेवा, निर्यात ऋण दिए जाने से संबंधित प्रािया के सरलीकरण और रिपोर्ट भेजने संबंधी अपेक्षाओं का संबंध है, परिशिष्ट में सूचीबद्ध परिपत्रों में निहित अनुदेशों को मास्टर परिपत्र में समेकित करके अद्यतन बना दिया गया है ।

भवदीय,

(ए. श्रीकुमारन)
महाप्रबंधक

संलग्नक : यथोपरि


1. ग्राहक सेवा तथा कार्यविधि का सरलीकरण
2. रिपोर्ट भेजने संबंधी अपेक्षाएँं
अनुबंध 1
अनुबंध 2
परिशिष्ट



1. ग्राहक सेवा तथा कार्यविधि का सरलीकरण
1.1 ग्राहक सेवा

1.1.1 सामान्य

(व) बैंक अपने निर्यातक ग्राहकों को समय से तथा पर्याप्त ऋण दें तथा कार्यविधि संबंधी औपचारिकताओं और निर्यात के अवसरों के बारे में आवश्यक ग्राहक सेवाएँ / मार्गदर्शन प्रस्तुत करें ।

(वव) मुख्यत: छोटे निर्यातकों और गैर-परंपरागत निर्यात का काम करने वालों को मार्गदर्शन देने के लिए बैंकों को निर्यात परामर्श कार्यालय खोलने चाहिये ।

1.1.2 निर्यातकों के लिये गोल्ड काड़ योजना

भारत सरकार (वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय)ने ऋण पाने की योग्यता रखने के साथ अच्छा ट्रैक रिकाड़ रखने वाले निर्यातकों को सर्वोत्तम शर्तों(वर्ष 2003-04 की निर्यात- आयात नीति के अनुसार) पर निर्यात ऋण सुलभ कराने के लिए गोल्ड काड़ जारी करने का प्रस्ताव किया है । तदनुसार, चुनिंदा बैंकों और निर्यातकों के परामर्श से गोल्ड काड़ योजना बनाई गई । इस योजना व ी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं : (व) बैंकों द्वारा तय की गयी शर्तों के अनुसार छोटे और मध्यम निर्यातकों सहित ऋण पाने की योग्यता रखनेवाले सभी अच्छा ट्रैक रिकाड़ रखने वाले निर्यातक गोल्ड काड़ पाने के हकदार होंगें । (वव) बैंक द्वारा गोल्ड काड़ धारकों को प्राप्त होने वाले लाभों को स्पष्ट रूप से दर्शाया जाएगा। (ववव) बैंकों द्वारा काड़ धारकों के अनुरोधों को त्वरित रूप से नये आवेदनपत्र /ऋण सीमा नवीनीकरण और तदर्थ ऋण सीमा के लिये , यथााम 25/15 और 7 दिन के अंदर की समय-सीमा में निबटाया जाएगा। (वख्) "सिद्धांतत: "सीमा 3 वर्षों के लिए मंजूर की जाएगी जिसमें त्वरित ऋण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए 20 प्रतिशत आपाती सीमा अतिरिक्त रूप से रखी जाएगी । (ख्) गोल्ड काड़ धारकों को विदेशी मुद्रा में पैकिंग ऋण (पी सी एफ सी) मंजूर करने में प्राथमिकता दी जाएगी। तथा (ख्व) ऋण पाने की योग्यता और अच्छे ट्रैक रिकाड़ के आधार पर बैंक गोल्ड काड़ धारकों कोई सी जी सी की पैकिंग ऋण गांरटी-सेक्टोरल योजनाओं में छूट देने और संर्पाश्विकता माफ करने पर विचार करेंगें; तथा (ख्वव) पोतलदानोत्तर रुपया निर्यात ऋण के लिए 90 दिनों तक लगाई जाने वाली रियायती ब्याज की दरें अधिकतम 365 दिनों की अवधि के लिए भी उसी दर से लगाई जाए ।

1.1.3 विदेशी मुद्रा में आहरित निर्यात बिलों की आय जमा करने में विलम्ब

बैंकों के ‘नोस्त्रो’ खातों में विदेशी मुद्रा से संबंधित राशि जमा हो जाने के बाद भी विदेशी मुद्रा में आहरित निर्यात बिलों से संबंधित आय निर्यातकों को दिये जाने में विलम्ब होते देखा गया है । यद्यपि, इस आशय के अनुदेश पहले से ही हैं कि ‘नोस्त्रो’ खातों में राशि जमा होने की तारीख से ही रियायती पोतलदानोत्तर ब्याज दर समाप्त हो जाएगा, तथापि निर्यातकों द्वारा ली गयी ऋण सीमाओं पर ग्राहक के खाते में रुपया समरूप राशि जमा किये जाने की वास्तविक तारीख तक रोक लगाकर रखी जाती है । इसलिए यह आवश्यक है कि बिलों की वसूली के बाद निर्यातक को ऋण सीमाएँ तत्काल पुन: उपलब्ध करा दी जाएँ और ग्राहक को रुपया ऋण उपलब्ध करा दिया जाए ।

1.1.4 निर्यात बिलों की आय विलम्ब से जमा किए जाने के कारण निर्यातकों
को क्षतिपूर्ति का भुगतान

(व) हर तरह से पूर्ण जमा सूचनाओं से संबंधित राशि जमा किये जाने में हुए विलम्ब के लिये, फेडाई द्वारा निर्दिष्ट क्षतिपूर्ति की राशि, निर्यातक द्वारा माँग किये जाने का इंतजार किये बिना, निर्यातक ग्राहक को अदा कर दी जानी चाहिए ।

(वव) निर्यातकों के खाते में निर्यात संबंधी आय समय से जमा किये जाने तथा फेडाई के नियमों के अनुसार क्षतिपूर्ति के भुगतान पर नजर रखने के लिये बैंकों को एक प्रणाली विकसित करनी चाहिए ।

(ववव) बैंकों के आंतरिक लेखा परीक्षा और निरीक्षण दलों को अपनी रिपोर्टों में इन पहलुओं पर खास नजर रखनी चाहिए ।

1.2 निर्यात ऋण प्रस्तावों की मंजूरी

1.2.1 मंजूरी के लिये समय सीमा

ऋण सीमा संबंधी आवेदन पत्र अपेक्षित वित्तीय /परिचालन संबंधी विवरणों तथा अन्य ब्यैारों के साथ प्राप्त होने की तारीख से 45 दिनों के भीतर नये ऋण /वर्धित मात्रा वाले निर्यात ऋण संबंधी आवेदन पत्रों पर मंजूरी दे दी जानी चाहिए । ऋण सीमा के नवीनीकरण और तदर्थ ऋण सीमाओं की मंजूरी और तदर्थ ऋण सीमाओं के मामले में गोल्ड काड़ धारकों के अलावा बैंकों को ामश: 30 दिन और 15 दिन से अधिक समय नहीं लगाना चाहिए ।

1.2.2 तदर्थ सीमा

(व) कई बार बड़े निर्यात आदेशों के मामलों में निर्यातकों को ऐसे खर्च पूरे करने के लिये तदर्थ ऋण सीमाओं की जरूरत पड़ती है जिनका अंदाजा उन्हें पहले से नहीं होता । बैंकों को ऐसे मामले में त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए । इसके अलावा बैंकों को ऐसे निर्यातकों के मामले में लचीला रुख अपनाना चाहिए जो कुछ वास्तविक कठिनाइयों के कारण कुछ खास निर्यात आदेशों के लिए उच्चतर ऋण सीमा से संबंधित समरूप अतिरिक्त अंशदान की व्यवस्था नहीं कर पाते । पोतलदानपूर्व / पोतलदानोत्तर निर्यात ऋण के रूप में मंजूर की गयी तदर्थ सीमाओं के मामले में कोई अतिरिक्त ब्याज नहीं लगाया जाता है ।

(वव) जिन मामलों में निर्यात ऋण सीमाओं का उपयोग पूरी तरह कर लिया जाता है, उनमें साखपत्रों के आधार पर आहरित बिलों के बेचान के मामले में बैंकों को ऐसे निर्यातकों के मामले में लचीला रुख अपनाना चाहिए और निर्यातकों की ऋण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये शाखा प्रबंधकों को विवेकाधीन / उच्चतर मंजूरी संबंधी अधिकार देने पर भी विचार होना चाहिए। उसी तरह जिन प्राधिकारियों /बोर्डों / समितियों ने मूल ऋण मंजूर किया था, उनके द्वारा मंजूरी न दे दिए जाने तक, शाखाओं को भी वर्धित /तदर्थ ऋण के कुछ प्रतिशत भाग के संवितरण का अधिकार दिया जाना चाहिए ताकि निर्यातक अत्यावश्यक निर्यात आदेशों को समय से पूरा कर सके ।

1.2.3 अन्य अपेक्षाएँ

(व) निर्यात ऋण संबंधी प्रस्तावों की अस्वीवफ्ति से संबंधित सभी मामलों की जानकारी, अस्वीवफ्ति के कारण स्पष्ट करते हुए, बैंक के मुख्य र्काय्ापालक को दी जानी चाहिए ।

(वव) बैंकों के आंतरिक लेखा परीक्षा और निरीक्षण दलों को इस बात पर खास तौर से टिप्पणी देनी चाहिए कि निर्यात ऋणों की मंजूरी के मामले में रिजर्व बैंक द्वारा निश्चित की गयी समय- सीमा का पालन किया गया या नहीं ।

(ववव) कार्यशील पूँजी सीमा को ऋण और नकदी ऋण भाग में विभाजित करने के लिए निर्यात ऋण सीमाओं को अलग रखना चाहिए ।

(वख्) निर्यातकों से संबंधित मामलों का समय से और तुरन्त निपटान सुनिश्चित करने के लिये बैंकों को अपने विदेशी विभागों / विशेष शाखाओं मे उपयुक्त अधिकारियों को अनुपालन अधिकारी के रूप में नामित करना चाहिए ।
(ख्) निर्यातकों को ऋण सीमाओं की मंजूरी की स्थिति के संबंध में हर तिमाही में एक समीक्षा - नोट बैंक के निदेशक मंडल को प्रस्तुत करना आवश्यक है । ऐसे नोट में अन्य बातों के साथ- साथ यह भी बताना चाहिए कि कितने आवेदनपत्रों पर ( ऋण की मात्रा सहित) निर्धारित समय सीमा के अंदर मंजूरी दी गयी, कितने मामलों मे विलंब से मंजूरी दी गयी और कितने मामले मंजूरी के लिये बकाया हैं तथा इसके कारण क्या हैं ।

1.3 विदेशी मुद्रा और रुपये में निर्यात ऋण दिये जाने से संबंधित
कार्यविधि का सरलीकरण
1.3.1 सामान्य

निर्यातकों को समय से निर्यात ऋण उपलब्ध कराया जाना सुनिश्चित करने तथा कार्यविधि संबंधी असुविधाओं को दूर करने के लिये निम्नलिखित दिशानिर्देशों को लागू किया जाय । ये दिशानिर्देश रुपया निर्यात ऋण तथा विदेशी मुद्रा निर्यात ऋण के मामले में भी लागू होंगे ।

1.3.2 दिशानिर्देश

(व) कार्यविधि का सरलीकरण

क) बैंक आवेदन-पत्र का प्रारूप और अधिक सरल बनाएँ तथा निर्यातकों की ऋण संबंधी आवश्यकताओं का आकलन करने के लिए उनसे कम आँव ड़ेॅ माँगा करें ताकि निर्यातकों को आवेदन-पत्र भरने या बैंकों द्वारा मांगे गये आँकड़े देने के लिये बाहर से व्यावसायिकों की मदद न लेनी पड़े ।

ख) निर्यातकों की कार्यशील पूँजी संबंधी आवश्यकताओं का आकलन करने के लिए प्राजेक्टेड बैलेन्स शीट प्रणाली, टर्न-ओवर प्रणाली या नकदी बजट प्रणाली में से निर्यातकों को जो भी सबसे उपयुक्त और अच्छी हो, बैंक वही प्रणाली अपनाएँ ।

ग) सहायता संघ द्वारा वित्त उपलब्ध कराये जाने के मामले में सहायता संघ द्वारा आकलन का अनुमोदन कर दिये जाने के बाद सदस्य बैंकों को चाहिए कि वे मंजूरी संबंधी प्रािया साथ साथ शुरू कर दें ।

(वव) निर्यातकों को ’अनवरत ऋण’

क) बैंक सामान्यत: एक साल के लिये ऋण की सुविधा उपलब्ध कराते हैं तथा हर साल उस की समीक्षा करते हैं । ऋण के नवीनीकरण में विलंब होने पर मंजूर की गयी ऋण सीमा अनवरत जारी रखनी चाहिए और निर्यातकों की अनिवार्य आवश्यकताओं को तदर्थ आधार पर पूरा किया जाना चाहिए ।

ख) जिन प्रतिष्ठित निर्यातकों का पिछला रिकाड़ संतोषजनक है उन्हें बैंक लंबे समय के लिए (जैसे तीन वर्ष के लिये) ऋण सुविधा मंजूर करने पर विचार करें तथा अधिकतम आकलित सीमा के भीतर ऋण की मात्रा को घटा देने या बढ़ा देने की आंतरिक व्यवस्था भी करें । जब निर्यातक कार्यनिष्पादन के लिये पहले से निर्धारित मानदंडों को पूरा कर लें तो सीमा बढ़ा दी जानी चाहिए । बैंकों को चाहिए कि वे ऐसे बढ़े हुए समय के लिए निर्यातकों को मंजूर की गयी अधिकतम सीमाओं के लिये प्रतिभूति संबंधी दस्तावेज प्राप्त कर लें ।

ग) मौसमी वस्तुओं, वफ्षि पर आधारित उत्पादों इत्यादि के निर्यात के मामले में बैंक निर्यातकों को पीक / नॉन पीक ऋण सुविधा मंजूर करें ।

घ) बैंक पोतलदानपूर्व ऋण और पोतलदानोत्तर ऋण को आपस में अदल-बदल करने की अनुमति दें ।

ङ) बैंक क्षमता के विस्तार, मशीनरी के आधुनिकीकरण और तकनीक के विकास के लिये मियादी ऋण प्रदान करें ।

च) निर्यात ऋण सीमा का आकलन आवश्यकता पर आधारित होना चाहिये, न कि संपार्श्विक प्रतिभूति की उपलब्धता से प्रत्यक्षत: संबद्ध । निर्यातक के कार्यनिष्पादन और उसके पिछले रिकाड़ के आधारपर ऋण की आवश्यकता जिस सीमा तक उचित हो उस सीमा तक का ऋण, केवल संपार्श्विक प्रतिभूति की अनुपलब्धता के कारण उसे अस्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।

(ववव) पोतलदानपूर्व ऋण लेने के लिये निर्यात आदेश या
साख-पत्र प्रस्तुत करने से छूट प्रदान करना

क) जिन निर्यातकों का पिछला रिकाड़ लगातार अच्छा हो उन्हें पोतलदानपूर्व ऋण वितरित करते समय हर बार निर्यात आदेश या साख-पत्र प्रस्तुत करने के लिये उन पर जोर नहीं डालना चाहिए, बल्कि प्राप्त हुए निर्यात आदेशों या साखपत्रों का विवरण आवधिक आधार पर प्रस्तुत करने की एक प्रणाली लागू कर दी जानी चाहिए ।

ख) बैंक अच्छे ट्रैक रिकाड़ वाले निर्यातकों के मामले में प्रारंभ में ही निर्यात आदेश / साखपत्र प्रस्तुत किए जाने की शर्त से छूट प्रदान कर सकते हैं और उसके बजाय उनके पास बकाया आदेशों /साखपत्रों का आवधिक विवरण प्राप्त करने की प्रणाली लागू कर सकते हैं । तथापि इसका उल्लेख मंजूरी संबंधी प्रस्ताव में और निर्यातकों को जारी किए जाने वाले मंजूरी संबंधी पत्र में कर दिया जाना चाहिए तथा इसकी जानकारी निर्यात ऋण गारंटी निगम को भी दे दी जानी चाहिए । इसके अलावा यदि इस तरह की छूट की अनुमति उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा निर्यात ऋण-सीमा की मंजूरी के बाद दी गई हो तो मंजूरी की शर्तों में संशोधन के रूप में उनका उल्लेख कर दिया जाना चाहिए और इसकी जानकारी निर्यात ऋण गारंटी निगम को भी दे दी जानी चाहिए ।

(वख्) निर्यात संबंधी दस्तावेजों पर कार्रवाई आरंभ करना

फिलहाल बैंकों के लिए यह अपेक्षित है कि वे, विदेशी मुद्रा नियंत्रण संबंधी विनियमों के अनुसार, निर्यात संबंधी दस्तावेजों पर कार्रवाई आरंभ करने के लिए मूल किाय संविदा /पक्का आदेश / विदेश स्थित ोता प्रतिहस्ताक्षरित प्रोफार्मा इनवायस/ विदेश स्थित ोता के प्राधिवफ्त अधिकर्ता से इंडेंट प्राप्त करें । भविष्य में निर्यात संबंधी दस्तावेजों पर कार्रवाई आरंभ करते समय ऐसे दस्तावेजों के प्रस्तुतीकरण पर जोर नहीं देना चाहिए क्योंकि सीमा शुल्क प्राधिकारी ऐसे मामलों में वस्तुओं का मूल्यांकन करके अपेक्षित अनुमति प्रदान कर चुके होते हैं । इनमें अपवाद तभी होता है जब कोई लेनदेन साख-पत्र के आधार पर किया जाता है तथा ऐसी स्थिति में साख- पत्र की शर्तों के अनुसार किाय संविदा /अन्य वैकल्पिक दस्तावेजो का प्रस्तुतीकरण आवश्यक होता है ।

(ख्) निर्यात ऋण की शीघ्रतापूर्वक मंजूरी

क) निर्यातकों की सहायता करने के लिए विशेष शाखाओं में तथा निर्यात संबंधी बड़ा कारोबार करने वाली शाखाओं में एक ऐसी व्यवस्था शुरू की जानी चाहिए जिससे ऋण संबंधी आवेदन पत्रों की तेजी से प्रारंभिक जांच की जा सके और अतिरिक्त सूचना या स्पष्टीकरण प्राप्त करने के लिए विचार- विमर्श किया जा सके ।

ख) बैंकों को अपनी आंतरिक प्रणाली और ाियाविधि में इस तरह सुधार लाना चाहिए ताकि के निर्यात ऋण संबंधी प्रस्तावों का निष्पादन निर्धारित समय से कर सकें और साथ ही वे निर्यात ऋण संबंधी प्रस्तावों कासमय से पहले भी निष्पादन करने का प्रयास करें । निर्यात ऋण संबंधी प्रस्तावों के साथ एक ऐसा फ्लो-चार्ट भी प्रस्तुत किया जाना चाहिए जिसमें ऋण संबंधी आवेदन-पत्र की प्राप्ति की तारीख से लेकर उस पर प्रत्येक स्तर पर कार्रवाई करने के समय का उल्लेख किया जाए।

ग) बैंकों को निर्यात ऋण की मंजूरी के मामले में अपनी शाखाओं को और अधिकार प्रदान करना चाहिए ।

घ) बैंकों को चाहिए कि वे निर्यात ऋण संबंधी प्रािया के जितने स्तर हैं उनमें से कुछ मध्यवर्ती स्तरों को कम कर दें । यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि निर्यात वित्त के संबंध में निर्णय लेने की प्रािया में तीन से अधिक स्तर न हों ।

ङ) बैंकों को चाहिए कि वे निर्यात ऋण संबंधी प्रस्तावों पर तेजी से कार्रवाई करने के लिए शाखा स्तर के और प्रशासनिक कार्यालयों के अधिकारयों द्वारा संयुक्त मूल्यांकन की प्रणाली लागू करें ।

च) निर्यातकों की कार्यशील पूँजी संबंधी सुविधाऍं प्रदान करने / मंजूर करने के लिए बैंकों को चाहिए कि, जहाँ भी संभव हो, वहाँ पर विशेष शाखाओं और प्रशासनिक कार्यालयों में ऋण समिति गठित करें । ऋण समिति के पास मंजूरी की पर्याप्त उच्चतर शक्ति होनी चाहिए ।

(ख्व) प्रचार और प्रशिक्षण

(क) सामान्यत: अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगी दरों पर विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण बैंकों की केवल कुछ शाखाओं में प्रदान किया जाता है । इस योजना को अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए तथा विदेशी मुद्रा ऋणों पर प्रतियोगी ब्याज दरों को दृष्टिगत रखते हुए और किसी भी संभावित विनिमय जोखिम को कम करने के लिए विदेशी मुद्रा निर्यात ऋण का अधिकतम उपयोग करने के लिए निर्यातकों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है । इसलिए जिस क्षेत्र में निर्यातकों की संख्या अधिक हो उन क्षेत्रों में स्थित बैंकों को इस महत्त्वपूर्ण सुविधा का व्यापक प्रचार करना चाहिए और छोटे निर्यातकों सहित सभी निर्यातकों को यह सुविधा आसानी से उपलब्ध करानी चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विदेशी मुद्रा में ऋण प्रदान करने के लिए और अधिक शाखाओं को नामित किया जा रहा हैै।

(ख) बैंकों को यह भी चाहिए कि वे मानित निर्यातों के लिए ब्याजदरों पर दी जाने वाली छूट का भी व्यापक प्रचार करें तथा यह सुनिश्चित करें कि इसका काम देखने वाले स्टाफ इस बात से भलीभाँति अवगत हैं तथा इस बात का ध्यान भी रखते हैं ।

(ग) विदेशी मुद्रा में ऋण प्रदान करने के काम से जो अधिकारी जुड़े हों उन्हें पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए । निर्यात ऋण संबंधी कारोबार करने वाली विशिष्ट शाखाओं से कर्मचारियों का स्थानांतरण किए जाने के मामले में बैंकों को सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी जगह तैनात किये जाने वाले नये व्यक्तियों के पास विदेशी मुद्रा और निर्यात ऋण से संबंधित विषयों की पर्याप्त जानकारी है ताकि निर्यात ऋण संबंधी मामलों पर कार्रवाई करने /उनमें मंजूरी प्रदान करने में विलंब न हो तथा उन्हें निर्यातकों के निर्यात आदेशों के रद्द होने से संबंधित जोखिमों से भी अवगत करा दिया जाए ।

(ख्वव) ग्राहकों को जानकारी देना

(क) बैंकों को एक हैंडबुक तैयार करनी चाहिए जिसमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगी दरों पर निर्यात ऋण तथा रुपये में निर्यात ऋण मंजूर करने संबंधी सरलीवफ्त प्रािया की विशेष बातों की जानकारी दी गई हो ताकि निर्यातक इसका लाभ उठा सकें ।

ख) बैंकों और निर्यातकों के बीच विचारों के आदान प्रदान को सुगम बनाने के लिए बैंकों को ऐसे केन्द्रों पर निर्यातकों की बैठकें आयोजित करनी चाहिए जहाँ निर्यातकों की संख्या अधिक हो ।

1.3.3. दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन पर नजर रखना

(व) बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि निर्यातकों की निर्यात संबंधी आवश्यकताओं को प्रतिस्पर्धी दरों पर पूरी तरह और शीघ्र पूरा किया जा रहा है । उपर्युक्त दिशानिर्देशों का कार्यान्वयन, इस मास्टर परिपत्र की मूल भावना को दृष्टिगत रखते हुए, सुनिश्चित किया जाना चाहिए ताकि निर्यात क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराने और संबद्ध बैंकिंग सेवाएं प्रदान किए जाने के मामले में पर्याप्त सुधार परिलक्षित हों । बैंकों को अपने संगठन के अंतर्गत स्टाफ की तैनाती की प्रणाली की कमियों, यदि कोई हों तो, को भी दूर करना चाहिए ताकि निर्यात क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराने में आ रही बाधाओं को दूर किया जा सके ।

(वव) संबंधित दिशानिर्देशों का कार्यान्वयन किस सीमा तक किया जा रहा है, इस बात का पता लगाने के लिए बैंकों को एक आंतरिक कार्यदल गठित करना चाहिए जो समय समय पर (जैसे हर दो महीने पर) शाखाओं का दौरा करे ।


2. रिपोर्ट भेजने संबंधी अपेक्षाएँ

2.1 बैंकों के निर्यात ऋण कार्यनिष्पादन का सूचक

2.1.1 प्रत्येक बैंक के लिए अपेक्षित है कि वह अपने निवल बैंक ऋण के 12 प्रतिशत के बराबर बकाया निर्यात ऋण का स्तर प्राप्त करें । तदनुसार, भारतीय रिजर्व बैंक का बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग (औद्योगिक और निर्यात ऋण कक्ष) हर तीन महीने के अंतराल पर इस मामले में बैंकों के कार्यनिष्पादन की समीक्षा करता है । निर्यात ऋण देने के मामले में बैंकों के कार्यनिष्पादन का आकलन निर्यात ऋण पुनर्वित्त सीमाओं के उस पाक्षिक विवरण में सूचित किए गए औसत निर्यात ऋण बकायों के आधार पर की जाएगी जो रिपोर्ट भेजने के लिए नियत शुावार को भारतीय रिजर्व बैंक, मौद्रिक नीति विभाग, केन्द्रीय कार्यालय, मुम्बई को भेजे जाते हैं ।

2.1.2 बैंकों को अपने निवल बैंक ऋण के 12 प्रतिशत के बराबर निर्यात ऋण के स्तर तक पहुँचने का प्रयास करना चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस अनुपात में कमी न आने पाए । अच्छे निर्यात आदेशों के मामले में बैंकों को निर्यात ऋण देने से मना नहीं करना चाहिए ।

2.1.3 निर्यात ऋण का निर्धारित स्तर प्राप्त न कर पाने पर या निर्यात ऋण संबंधी कार्यनिष्पादन में स्पष्ट सुधार न दिखाई देने पर संबंधित बैंक के संबंध में कुछ नीतिगत कदम उठाए जा सकते हैं जिनके अंतर्गत प्रारक्षित निधि संबंधी अपेक्षाओं मे वफ्द्धि तथा पुनर्वित्त सुविधाएँ वापस ले लेना शामिल होगा। भारतीय रिजर्व बैंक का बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग (औद्योगिक और निर्यात ऋण अनुभाग) कार्यनिष्पादन पर कड़ी नजर रखेगा ।

2.2 निर्यात ऋण संवितरण संबंधी आँकडेॅ

बैंकों को निर्यात ऋण संवितरण संबंधी आँकड़े हर तीन महीने पर अनुबंध में दिए गए फॉर्मेट में भेजने चाहिए । बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उक्त विवरण भारतीय रिजर्व बैंक के बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग को संबंधित तिमाही के परवर्ती माह के अंत तक प्राप्त हो जाए ।

2.3 हीरा निर्यातकों को पोतलदानपूर्व ऋण-कान्फ्िलक्ट डायमंड्स -किम्बरले प्रोसेस सर्टिफिकेशन स्कीम (केपीसीएस) को लागू करना

संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव सं. 1173 एवं 1176 द्वारा कान्फ्लक्ट डायमंड्स की बिाी/खरीद को प्रतिबंधित कर दिया गया है, क्योंकि सियेरा लियोन के गफ्हयुद्ध प्रभावित क्षेत्रों में विद्रोहियों को धन देने में कान्फ्लक्ट डायमंड्स महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव सं. ामश: 1306 (2000) तथा 1343 (2001) के अनुसार सियेरा लियोन तथा लाइबेरिया से सभी किस्म के कच्चे हीरों के प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष आयात का "निषेध" कर दिया गया है । अन्य देशों के साथ भारत ने संयुक्त राष्ट्र की नयी किम्बरले प्रोसेस सर्टिफिकेशन स्कीम को स्वीकार किया है जिससे खुदाई या अवैध व्यापार से देश में कच्चे हीरों का आयात रोकना सुनिश्चित किया जा सके । अत: भारत में हीरों का आयात करते समय किम्बरले प्रोसेस सर्टिफिकेट (केपीसी) का होना जरुरी है । उसी प्रकार भारत से निर्यात करते समय केपीसी साथ में होना चाहिए जिसमें ज्ञात हो सके कि प्रािया में कान्फ्िलक्ट/कच्चे हीरे उपयोग में नहीं लाए गए हैं । आयात / निर्यात के मामलों में रत्न और आभूषण संवर्धन परिषद द्वारा के.पी.सी. (प्रमाणपत्र) की जाँच/उसका पुनर्वैधीकरण किया जाएगा । किम्बरले प्रोसेस सर्टिफिकेशन स्कीम लागू करना सुनिश्चित करने के लिए, किसी भी प्रकार के हीरों से जुड़े व्यापार के लिए बैंक से ऋण पाने वाले ग्राहकों से बैंक, संलग्नक 2 में दिए गए प्रपत्र में एक घोषणा-पत्र प्राप्त करें ।


अनुबंध 1

निर्यात ऋण डाटा (संवितरण /बकाया)

प्राधिवफ्त व्यापारी बैंक का नाम :

   

वर्ष

महीना

बैंक/एफआई

कोड

       

क. सभी निर्यातकों के लिए दि. . . . . . . . . . . . (मार्च /जून/ सितंबर /दिसंबर को समाप्त तिमाही के अंतिम शुक्रवार)

को कुल संवितरण और बकाया शेष दर्शाने वाला विवरण :

(राशि करोड़ रुपये में)

तिमाही के दौरान संवितरण

तिमाही के अंतिम शुक्रवार
को बकाया शेष

पोतलदानपूर्व ऋण

पोतलदानोत्तर ऋण

पोतलदानपूर्व ऋण

पोतलदानोत्तर ऋण

रुपया ऋण

 

 

विदेशी मुद्रा में

पोतलदानपूर्व ऋण

रुपया ऋण

 

निर्यात बिल रिडिस्काउंटिंग

आस्थगित भुगतान

अन्य (सरकार से प्राप्य ) भुगतान

रुपया ऋण

विदेशी मुद्रा में पोतलदानपूर्व ऋण

रुपया ऋण

निर्यात बिल

रिडिस्काउंटिंग

आस्थगित भुगतान

अन्य (सरकार

से प्राप्य ) भुगतान

1

2

3

4

5

6

7

8

9

10

11

12

ख. उपर्युक्त में से गोल्ड काड़ धारकों के संवितरण और बकाया शेष :

जारी किए गए गोल्ड कार्डों की संख्या : ------------------ (राशि करोड़ रुपये में)

तिमाही के दौरान संवितरण

(गोल्ड काड़ धारकों के लिए)

तिमाही के अंतिम शुक्रवार को बकाया शेष

(गोल्ड काड़ धारकों के लिए)

पोतलदानपूर्व ऋण

पोतलदानोत्तर ऋण

पोतलदानपूर्व ऋण

पोतलदानोत्तर ऋण

रुपया ऋण

 

 

विदेशी मुद्रा में

पोतलदानपूर्व ऋण

रुपया ऋण

निर्यात बिल रिडिस्काउंटिंग

आस्थगित भुगतान

अन्य सरकारी भुगतान

रुपया ऋण

विदेशी मुद्रा में पोतलदानपूर्व ऋण

रुपया ऋण

निर्यात बिल

रिडिस्काउंटिंग

आस्थगित

भ्ुगतान

अन्य

शासकीय भुगतान

1

2

3

4

5

6

7

8

9

10

11

12

क) ‘‘बिना अवलंबित’’ आधार पर निर्यात बिल रिडिस्काउंटिंग योजना के अंतर्गत डिस्काउंटेड /रिडिस्कांउटेड बिलों की राशि बकाया शेष से बाहर रखी जानी चाहिए ।

ख) यदि अंतिम शुावार किन्हीं महीनों जैसे मार्च, जून आदि का अंतिम दिन नहीं होता तो बैंकों को शेष बची अवधि के संवितरण अगली तिमाही में शामिल करने चाहिए । उदाहरण के लिए यदि मार्च तिमाही का अंतिम शुावार 25 मार्च को पड़ता है तब 26 मार्च से 31 मार्च तक के संवितरण जून तिमाही में शामिल किए जाएँगे ।


अनुबंध 2

मास्टर परिपत्र ग्राहक सेवा, निर्यात ऋण
दिये जाने से संबंधित कार्यविधि का सरलीकरण और
रिपोर्ट भेजने संबंधी अपेक्षाएँ
औ.नि.ऋ.वि. के परिपत्र सं. 13/04.02.02/2002-03
दिनांक 3 फरवरी, 2003 का संलग्नक

हीरा ग्राहकों से प्राप्त किया जानेवाला वचन-पत्र

हीरों से संबंधित किसी भी प्रकार का व्यापार करने के लिए ऋण लेनेवाले ग्राहकों से
लिये जाने वाले वचन-पत्र का फार्म ड पैराग्राफ 2.3


‘‘मैं एतद् द्वारा वचन देता हूँ कि :

i) मैं जानबूझकर कान्फ्िलक्ट डायमंड्स का ऐसा कोई व्यापार नहीं करुँगा जिसे संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रस्ताव सं. 1173, 1176 एवं 1343(2001) के द्वारा प्रतिबंधित किया गया है अथवा लाइबेरिया सहित अफ्रीका की संबंधित देश की विधिसम्मत एवं अंतरराष्ट्रीय मान्यताप्राप्त सरकार के विरुद्ध बलपूर्वक विद्रोह संचालित करने वाले किसी अन्य क्षेत्र से आनेवाले कान्फ्िलक्ट डायमंड्स का व्यापार नहीं करूंगा ।

ii) मैं सियेरा लियोन तथा/अथवा लाइबेरिया से प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से अपरिष्वफ्त हीरों का आयात नहीं करूंगा भले ही इन हीरों का उद्गम लाइबेरिया में हुआ हो या नहीं, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव सं. 1306 (2000) द्वारा सियेरा लियोन से सभी अपरिष्वफ्त हीरों के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आयात का निषेध किया गया है तथा प्रस्ताव सं. 1343(2001) द्वारा सियेरा लियोन से सभी प्रकार के अपरिष्वफ्त हीरों का तथा प्रस्ताव सं. 1343 (2001) द्वारा लाइबेरिया से इनका आयात करने का निषेध दिया गया है ।


iii) मैं हीरों के ाय-किाय में किम्बरले प्रोसेस सर्टिफिकेशन स्कीम का पालन करुँगा ।

2. मैं अपनी यह सहमति भी देता हूँ कि यदि मैं जानबूझकर ऐसे हीरों का व्यापार करने का दोषी पाया जाऊँ तो किसी भी समय, मेरी समस्त ऋण पात्रताएँ वापस ले ली जाएँगी’’।


परिशिष्ट

मास्टर परिपत्र ग्राहक सेवा , निर्यात ऋण दिये जाने से संबंधित
कार्यविधि का सरलीकरण और रिपोर्ट भेजने संबंधी अपेक्षाएँ

मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची

1 औनिऋवि.14/01.01.43/2003-04 . 30.6.2004 भारतीय रिज़र्व बैंक के औद्योगिक और निर्यात ऋण विभाग के कार्यों का अन्य विभागों में विलय
2 औनिऋवि.12/04.02.02/2003-04 18.05.2004 निर्यातकों के लिये गोल्ड काड़ योजना
3 औनिऋवि.13/04.02.01/2003-04 18.05.2004 गोल्ड काड़ धारक निर्यातकों के लिए रुपया निर्यात ऋण ब्याज दरें
4 औनिऋवि. 23/04.02.02/2001-02 07.05.2002 मानित निर्यातों के लिये रियायती रुपया निर्यात ऋण
5 औनिऋवि. 21/04.02.01/2001-02 29.04.2002 विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण पर ब्याजदर
6 औनिऋवि. 3/ 04.02.02/2001-02 30.08.2001 हीरा निर्यातकों को दिया गया ऋण - कान्फ्िलक्ट डायमंड के आयात पर प्रतिबंध - लाइबेरिया
7 औनिऋवि सं.7/04.02.02/2000-01 05.12.2000 हीरा निर्यातकों को दिया गया ऋण - कान्फ्िलक्ट डायमंड के आयात पर प्रतिबंध
8 औनिऋवि सं. 4/04.02.02/2000-2001 10.10.2000 निर्यात ऋण - कार्यविधि में सुधार के संबंध में निर्यातकों के सुझाव - कार्रवाई बिन्दु
9 औनिऋवि. सं. 1/04.02.02/2000-01 13.07.2000 हीरा निर्यातकों को दिया गया ऋण - कान्फ्िलक्ट डायमंड के आयात पर प्रतिबंध
10 औनिऋवि. सं. 3/04.02.01/99-2000 07.09.1999 निर्यात ऋण दिये जाने संबंधी कार्यविधि का सरलीकरण
11 औनिऋवि सं. 17/04.02.01/98-99 28.02.1999 अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी दरों पर विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण - कार्यविधि का सरलीकरण
12 औनिऋवि सं.ईए्फडी. 30/04.02. 02/97-98 31.12.1997 निर्यात ऋण संबंधी आँकड़े
13 औनिऋवि सं. ईएफडी. 27 /04.02. 02/ 95-96 05.06.1996 निर्यात ऋण संबंधी आँकड़े -
बैंकों द्वारा विवरणियों की प्रस्तुति
14 औनिऋवि सं. ईएफडी. 48/04.02. 02/94-95 22.05.1995 निर्यात ऋण संबंधी आँकड़े
15 औनिऋवि सं. 9/04.02.02/94-95 29.08.1994 निर्यात ऋण - बैंकों के कार्यनिष्पादन के सूचक
16 औनिऋवि सं. ईएफडी 45/04.02. 02/93-94 23.05.1994 निर्यात ऋण संबंधी आँकड़े
17 औनिऋवि सं. ईएफडी.22/04.02. 02/93-94 08.12.1993 निर्यात ऋण ढाँचा संबंधी समिति - ऋणों और अग्रिमों की, विशेष रूप से निर्यात ऋण के संदर्भ में, मंजूरी प्रािया में सुधार
18 औनिऋवि सं. ईएफडी. 18/04.02. 02/93-94 20.10.1993 निर्यात बिलों की आय जमा होने में विलंब होने पर निर्यातकों को क्षतिपूर्ति का भुगतान
19 औनिऋवि सं. ईएफडी. 18/819 पीओएल-ईसीआर /92-93 26.12.1992 निर्यात ऋण लक्ष्य
20 औनिऋवि सं. ईएफडी. 8/819 पीओएल-ईसीआर /92-93 05.11.1992 उधारकर्ताओं को, विशेषत: निर्यातकों के संदर्भ में, ऋण सीमाओं की मंजूरी में विलंब
21 औनिऋवि सं. ईएफडी.3/बीसी/819/ पीओएल-ईसीआर /92-93 24.08.1992 निर्यात ऋण संबंधी आँकड़े
22 बैंपविवि. सं. बीपी बीसी 58/सी 469-91 07.12.1291 निर्यातकों को ऋण की मंजूरी में बैंकों द्वारा किया जाने वाला विलंब
23 औनिऋवि सं. ईएफडी.17 /003/ एसइएम/91-92 31.08.1991 निर्यातों का वित्तपोषण
24 औनिऋवि सं. ईएफडी. बीसी 40 / 819- पीओएल-ईसीआर /91 04.03.1991 समय से और पर्याप्त निर्यात ऋण की व्यवस्था
25 औनिऋवि सं. ईएफडी. बीसी 35 / 819- पीओएल-ईसीआर /90-91 15.01.1991 निर्यात ऋण संबंधी आँकड़े
26 औनिऋवि सं. ईएफडी.बीसी 191 / 819- पीओएल-ईसीआर /87 24.11.1987 निर्यातों का वित्तपोषण -समय से और पर्याप्त निर्यात ऋण की व्यवस्था
27 बैंपविवि सं बीपी बी सी 47/सी. 469 (डब्ल्यू) 87 08.10.1987 निर्यातकों को होने वाली कठिनाइयाँं
28 बैंपविवि सं बीपी बी सी 73/ सी. 469 (डब्ल्यू) 84 02.08.1984 निर्यातकों को होने वाली कठिनाइयाँं
29 औनिऋवि. सं. ईएफ्डी. बीसी. 24/819 - पीओएल-ईसीआर -84 28.05.1984 निर्यातों का वित्तपोषण - बैंकों की कार्यदक्षता और ग्राहक सेवा की गुणवत्ता
30 बैंपविवि सं ईसीसी बी सी 67/सी.297एल (12)81 02.06.1981 निर्यात ऋण संबंधी आँकडे -विवरणों का प्रस्तुतीकरण
31 बैंपविवि सं. ईसीसी. बीसी. 53/सी 297 पी- 78 17.04.1978 निर्यातों का वित्तपोषण - छोटे निर्यातकों और गैर-परंपरागत वस्तुओं के निर्यातकों को परामर्श की आवश्यकता
32 बैंपविवि सं . बीएम. 680 /सी. 297 के- 69 07.04.1969 बैंकों द्वारा निर्यात परामर्श कार्यालय खोला जाना

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