मास्टर परिपत्र - निर्यात ऋण - ग्राहक सेवा, निर्यात ऋण दिए जाने से संबंधित प्रािया का सरलीकरण और रिपोर्ट भेजने संबंधी अपेक्षाएँ - आरबीआई - Reserve Bank of India
मास्टर परिपत्र - निर्यात ऋण - ग्राहक सेवा, निर्यात ऋण दिए जाने से संबंधित प्रािया का सरलीकरण और रिपोर्ट भेजने संबंधी अपेक्षाएँ
आरबीआई /2005-2006/12 1 जुलाई 2005 10 आषाढ़ 1927 (शक) मास्टर परिपत्र - निर्यात ऋण - ग्राहक सेवा, निर्यात ऋण दिए जाने से संबंधित प्रक्रिया का सरलीकरण और रिपोर्ट भेजने संबंधी अपेक्षाएँ जैसा कि आप को ज्ञात है, भारतीय रिज़र्व बैंक ने उपर्युक्त विषय पर दिनांक 10 अगस्त 2004 के पत्र संदर्भ औनिऋअ. सं. 24/04.02.02/2004-05 द्वारा एक मास्टर परिपत्र जारी किया था ताकि सभी वर्तमान अनुदेश बैंकों को एक ही जगह प्राप्त बे सकें । मास्टर परिपत्र में निहित अनुदेशों को 1 जुलाई 2005 तक अद्यतन बना दिया गया है । संशोधित मास्टर परिपत्र की एक प्रति संलग्न है । यह ध्यान दिया जाए कि जबँ तक ग्राहक सेवा, निर्यात ऋण दिए जाने से संबंधित प्रक्रिया के सरलीकरण और रिपोर्ट भेजने संबंधी अपेक्षाओं का संबंध है, परिशिष्ट में सूचीबद्ध परिपत्रों में निहित अनुदेशों को मास्टर परिपत्र में समेकित करके अद्यतन बना दिया गया है । भवदीय,
(पी. विजय भास्कर) मुख्य मबप्रबंधक 1. ग्राहक सेवा तथा कार्यविधि का सरलीकरण 1.1 ग्राहक सेवा 1.1.1 सामान्य
1.1.2 निर्यातकों के लिये गोल्ड काड़ योजना भारत सरकार (वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय) ने भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ परामर्श करके वर्ष 2003-04 की निर्यात-आयात नीति में निर्दिष्ट किया था कि ऋण पाने की योग्यता रखने के साथ अच्छा ट्रैक रिकाड़ रखने वाले निर्यातकों को सर्वोत्तम शर्तों पर निर्यात ऋण सुलभ कराने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा गोल्ड काड़ योजना बनायी जाएगी । तदनुसार, चुनिंदा बैंकों और निर्यातकों के परामर्श से गोल्ड काड़ योजना बनाई गई। इस योजना में निर्यातकों के कार्यनिष्पादन के रिकाड़ के आधार पर उन्हें कुछ अतिरिक्त लाभ देने पर ध्यान दिया गया है । अपने अच्छे ट्रैक रिकाड़ के आधार पर गोल्ड काड़ धारक को आसान और अधिक सक्षम ऋण प्रदान करने की प्रक्रिया का लाभ मिलेगा । इस योजना की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं :
("विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण" तथा "रुपया निर्यात ऋण" पर 1 जुलाई 2005 को जारी किए गए मास्टर परिपत्रों के क्रमश: पैरा 3 एवं 4 भी देखें) 1.1.3 विदेशी मुद्रा में आहरित निर्यात बिलों की आय जमा करने में विलम्ब बैंकों के नोस्त्रो खातों में विदेशी मुद्रा संबंधित राशि जमा बे जाने के बाद भी विदेशी मुद्रा में आहरित निर्यात बिलों से संबंधित आय निर्यातकों को दिये जाने में विलम्ब बेते देखा गया है । यद्यपि इस अशय के अनुदेश पहले से ही हैं कि नोस्त्रो खातों में राशि जमा बेने की तारीख से ही रियायती पोतलदानोत्तर ब्याजदर समाप्त बे जाएगा, तथापि निर्यातकों द्वारा ली गयी ऋण सीमाओं पर ग्राहक के खातेमें रुपया समरूप राशि जमा किये जाने की वास्तविक तारिखतक रोक लगाकर रखी जाती है । इसलिये यह आवश्यक है कि बिलों की वसूली के बाद निर्यातक को ऋण सीमाएँ तत्काल पुन: उपलब्ध करा दी जाएँ और ग्राहक को रुपया ऋण उपलब्ध करा दिया जाए । 1.1.4 निर्यात बिलों की आय विलम्ब से जमा किए जाने के कारण निर्यातकों को क्षतिपूर्ति का भुगतान (व) हर तरह से पूर्ण जमा सूुचना ओं से संबंधित राशि जमा किये जाने में हुो विलम्ब के लिये, फेडाई द्वारा निर्दिष्ट क्षतिपूर्ति कि राशि, निर्यातक द्वारा माँग किये जाने का इंतजार किये बिना, निर्यातक ग्राहक को अदा कर दी जानी चाहिए । (वव) निर्यातकों के खाते में निर्यात संबंधी आय समय से जमा किये जाने तथा फेडाई के नियमों के अनुसार क्षतिपूर्ति के भुगतान पर नजर रखने के लिये बैंकों को एक प्रणाली विकसित करनी चाहिए ।
(ववव) बैंकों को आंतरिक लेखा परीक्षा और निरीक्षण दलों को अपनी रिपोर्टों में इन पहलुओं पर खास नजर रखनी चाहिए ।
1.2 निर्यात ऋण प्र स्तावों की मंजूरी 1.2.1 मंजूरी के लिये समय सीमा ऋण सीमा संबंधित आवेदन पत्र अपेक्षित वित्तीय/ परिचालन संबंधी विवरणों तथा अन्य ब्यैारों के साथ प्राप्त बेने की तारीख से 45 दिनों के भीतर नये ऋण वर्धित मात्रा वाले निर्यात ऋण संबंधी आवेदन पत्रों पर मंजूरी दे दी जानी चाहिए । ऋण सीमा के नवीकरण और तदर्थ ऋण सीमा ओं की मंजूरी के मामले में ं बैंकों को क्रमश: 30 दिन और 15 दिन से अधिक समय नहीं लगाना चाहिए । 1.2.2 तदर्थ सीमा (व) कई बार बडे निर्यात आदेशों के मामलों में निर्यातकों को ऐसे खर्च पूरे करने के लिये तदर्थ ऋण सीमाओं की जरूरत पड़ती है जिनका ांदाजा उन्हे पहले से नहीं बेता । बैंकों को ऐसे मामले में त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए । इसके अलावा बैंकों को ऐसे निर्यातकों के मामले में लचीला रुख अपनाना चाहिए जो कुछ वास्तविक कठिनाइयों के कारण कुछ खास निर्यात आदेशों के लिए उच्चतर ऋण सीमा से संबंधित समरूप ातिरिक्त अंशदान की व्यवस्था नहीं कर पाते । पोतलदानपूर्व/ पोतलदानोत्तर निर्यात ऋण के रूपमें मंजूर की गयी तदर्थ सीमा ओं के मामले में कोई अतिरिक्त ब्याज नहीं लगाया जाता है । (वव) जिन मामलेां में निर्यात ऋण सीमा ओं का उपयोग पूरी तरह कर लिया जाता है , उनमें साखपत्रों के आधारपर आहरित बिलों के बेचान के मामले में बैंकों को ऐसे निर्यातकों के मामले में लचीला रुख अपनाना चाहिए ओर निर्यातकों की ऋण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये शाखा प्रबंधकों को विवेकाधीन /उच्चतर मंजूरी संबंधी अधिकार देने पर भी विचार बेना चाहिए । उसी तरह जिन प्राधिकारियों /बोर्डों/समितियों ने मूल ऋण मंजूुर किया था, उन के द्वारा मंजूरी न दे दिए जाने तक, शाखाओं को भी वर्धित / तदर्थ ऋण के कुछ प्रतिशत भाग के संवितरण का अधिकार दिया जाना चाहिए ताकि निर्यातक अत्यावश्यक निर्यात आदेशों को समय से पूरा कर सके । 1.2.3 अन्य अपेक्षाएँ (व) निर्यात ऋण संबंधी प्रस्तावों की अस्वीवफ्ति से संबंधित सभी मामलेां की जानकारी, अस्वीवफ्ति के कारण स्पष्ट करते हुए, बैंकों के मुख्य र्काय्ापालकों को दी जानी चाहिए । (वव) बैंकों के आंतरिक लेखा परीक्षाऔर निरीक्षण दलों को इस बात पर खास तौर से टिप्पणी देनी चाहिए कि निर्यात ऋणों की मंजूरी के मामले में रिजर्व बैंक द्वारा निश्चित की गयी समय- सीमा का पालन किया गया या नहीं । (ववव) कार्यशील पूँजी सीमा को ऋण और नकदी ऋण भाग में विभाजित करने के लिए निर्यात ऋण सीमाओं को अलग रखना चाहिए । (वख्) निर्यातकों से संबंधित मामलों का समय से और तुरन्त निपटान सुनिश्चित करने के लिये बैंकों को अपने विदेशी विभागों/विशेष शाखाओं मे उपयुक्त अधिकारियोंको अनुपालन अधिकारी के रूप में नामित करना चाहिए । (ख्) निर्यातकों को ऋण सीमाओं की मंजूरी की स्थिति के संबंध में हर तिमाही में एक समीक्षा - नोट बैंक के निदेशक मंडल को प्रस्तुत करना आवश्यक है । ऐसे नोट में अन्य बातों के साथ- साथ यह भी बताना चाहिए कि कितने आवेदनपत्रों पर (ऋण की मात्रा सहित) निर्धारित समय सीमा के अंदर मंजूरी दी गयी, कितने मामलों मे विलंब से मंजूरी दी गयी और कितने मामले मंजूरी के लिये बकाया हैं तथा इसके कारण क्या हैं । 1.3 विदेशी मुद्रा और रुपये मे निर्यात ऋण दिये जाने से संबंधित कार्यविधि का सरलीकरण 1.3.1 सामान्य निर्यातकों को समय से निर्यात ऋण उपलब्ध कराया जाना सुनिश्चित करने तथा कार्यविधि संबंधी असुविधाओं को दूर करने के लिये निम्नलिखित दिशानिर्देशों को लागूु किया जाय । ये दिशानिर्देश रुपया निर्यात ऋण तथा विदेशी मुद्रा निर्यात ऋण के मामले में भी लागू बेंगे । 1.3.2 दिशानिर्देश (व) कार्यविधि का सरलीकरण (क) बैंक आवेदन पत्र का प्रारूप और सरल बनाएँ तथा निर्यातकों की ऋण संबंधी आवश्यकताओं का आकलन करने के लिए उनसे कम आँकडे माँगा करें ताकि निर्यातकों को आवेदन -पत्र भरने या बैंकों द्वारा मांगे गये आँकडे देने के लिये बाहर से व्यावसायिकों की मदद न लेनी पडे । (ख) निर्यातकों की कार्यशील पूँजी संबंधी आवश्यकताओंका आकलन करने के लिए प्राजेक्टेड बैलन्स शीट प्रणाली, टर्न-ओवर प्रणाली या नकदी बजट प्रणाली में से निर्यातकों को जो भी सबसे उपयुक्त और अच्छी बे, बैंक वही प्रणाली अपनाएँ । (ग) सबयतासंघ द्वारा वित्त उपलब्ध कराये जाने के मामलेमें सबयतासंघ द्वारा आकलन का अनुमोदन कर दिये जाने के बाद सदस्य बैंकों को चाहिए कि वे मंजूरी संबंधी प्रक्रिया साथ साथ शुरु कर दें । (वव) निर्यातकों को ’अनवरत ऋण’ (क) बैंक सामान्यत: एक साल के लिये ऋण कि सुविधा उपलब्ध कराते हैं तथा हर साल उस की समीक्षा करते हैं ।ऋण के नवीकरन में विलंब बेने पर मंजूर की गयी ऋण सीमा अनवरत जारि रखनी चाहिए और निर्यातकों की अनिवार्य आवश्यकताओं को तदर्थ आधार पर पूरा किया जाना चाहिए । (ख) जिन प्रतिष्ठित निर्यातकों का पिछला रिकाड़ संतोषजनक है उन्हें बैंक लंबे समय के लिए (जैसे तीन वर्ष के लिये ) ऋण सुविधा मंजूर करने पर विचार करें तथा अधिकतम आकलित सीमा के भीतर ऋण की मात्रा को घटा देने या बढा देने की आंतरिक व्यवस्था भी करें ।जब निर्यातक कार्यनिष्पादन के लिये पहले से निर्धारित मानदंडों को पूरा कर ले तो सीमा बढा दी जानीचाहिए। बैंकों को चाहिए कि वे ऐसे बढे हुए समय के लिए निर्यातकों को मंजूर की गयी अधिकतम सीमाओं के लिये प्रतिभूति संबंधी दस्तावेज प्राप्त कर लें । (ग) मौसमी वस्तुओं, वफ्षि पर आधारित उत्पादों इत्यादि के निर्यात के मामले में बैंक निर्यातकों को पीक / नॉन पीक ऋण सुविधा मंजूर करें । (घ) बैंक पोतलदानपूर्व ऋण और पोतलदानोत्तर ऋण को आपस में अदल-बदल करने की अनुमति दें । (ड.) बैंक क्षमता के विस्तार, मशीनरी के आधुनिकिकरण और तकनीक के विकास के लिये मियादी ऋण प्रदान करें ।
(च) निर्यात ऋण सीमा का आकलन आवश्यकता पर आधारित बेना चाहिये, न कि संपार्श्विक प्रतिभूति की उपलब्धता से प्रत्यक्षत: संबध्द । निर्यातक के कार्यनिष्पादन और उसके पिछले रिकाड़ के आधारपर ऋण की आवश्यकता जिस सिमा तक उचित बे उस सीमा तक का ऋण, केवल संपार्श्विक प्रतिभूति की अनुपलब्धता के कारण उसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।
(ववव) पोतलदानपूर्व ऋण लेने के लिये निर्यात आदेश या साख- पत्र प्रस्तुत करने से छूट प्रदान करना (क) जिन निर्यातकों का पिछला रिकाड़ लगातार अच्छा बे उन्हें पोतलदानपूर्व ऋण वितरित करते समय हर बार निर्यात आदेश या साख- पत्र प्रस्तुत करने के लिये उनपर जोर नहीं डालना चाहिए, बल्कि प्राप्त हुए निर्यात आदेशों या साखपत्रों का विवरण आवधिक आधार पर प्रस्तुत करने की एक प्रणाली लागू कर दी जानि चाहिए । (ख) बैंक अच्छे ट्रैक रिकाड़ वाले निर्यातकों के मामले में प्राारंभ में ही निर्यात आदेश /साखपत्र प्रस्तुत किए जाने की शर्त से छूट प्रदान कर सकते हैं और उस के बजाय उन के पास बकाया आदेशों / साखपत्रों का आवधिक विवरण प्राप्त करने की प्रणाली लागू कर सकते हैं । तथापि इस का उल्लेख मंजूरी संबंधी प्रस्ताव में और निर्यातकों को जारी किए जाने वाले मंजूरी संबंधी पत्र में कर दिया जाना चाहिए तथा इस की जानकारी निर्यात ऋण गारंटी निगम को भी दे दी जानी चाहिए । इस के अलावा यदि इस तरह की छूट कि अनुमति निर्यात ऋण- सीमा की मंजूरी की शर्तों में संशोधन के रूप में कर दिया जाना चाहिए और इस की जानकारी निर्यात ऋण गारंटी निगम को भी दे दी जानी चाहिए । (वख्) निर्यात संबंधी दस्तावेजों पर कार्रवाई आरंभ करना फिलबल बैंकों के लिए ये अपेक्षित है कि वे, विदेशी मुद्रा नियंत्रण संबंधी विनियमों के अनुसार, निर्यात संबंधी दस्तावेजों पर कार्रवाई आरंभ करने के लिए मूल विक्रय संविदा/पक्का आदेश/विदेश स्थित क्रेता प्रतिहस्ताक्षरित प्रोफार्मा इनवायस/ विदेश स्थित क्रेता के प्राधिवफ्त अदिकर्ता से इंडेंट प्राप्त करें । भविष्य में निर्यात संबंधी दस्तावेजों पर कार्रवाई आरंभ करते समय ऐसे दस्तावेजों के प्रस्तुतीकरण पर जोर नहीं देना चाहिए क्यों कि सीमा शुल्क प्राधिकारी ऐसे मामलों में वस्तुओं का मूल्यांकन कर के अपेक्षित अनुमति प्रदान कर चुके बेते हैं । इनमें अपवाद तभी बेता है जब कोई लेनदेन साख-पत्र के आधार पर किया जाता है तथा ऐसी स्थिति में साख-पत्र शर्तों के अनुसार विक्रय संविदा/अन्य वैकल्पिक दस्तावेजो का प्रस्तुतीकरण आवश्यक बेता है । (ख्) निर्यात ऋण की शीघ्रता पूर्वक मंजूरी (क) निर्यातकों की सबयता करने के लिए विशेष शाखाओं में तथा निर्यात संबंधी बडा कारोबार करने वाली शाखाओं में एक ऐसी व्यवस्था शुरु की जानि चाहिए जिस से ऋण संबंधी आवेदन पत्रों की तेजी से प्रारंभिक जांच की जा सके और अतिरिक्त सूचना या स्पष्टीकरण प्राप्त करने के लिए विचार- विमर्श किया जा सके । (ख) बैंकों को अपनी आंतरिक प्रणाली और क्रियाविधि में इस तरह से सुधार लाना चाहिए ताकि के निर्यात ऋण संबंधी प्रस्तावों के निष्पादन के लिए निर्दारित समय सीमा से पहले भी निर्यात ऋण संबंधी प्रस्तावों का निष्पादन करने का प्रयास करना चाहिए। निर्यात ऋण संबंधी प्रस्तावों के साथ एक ऐसा फ्लो चार्ट भी प्रस्तुत कोया जाना चाहिए जिसमें ऋण संबंधी आवेदन -पत्र की प्राप्ती की तारीख से लेकार उसपर प्रत्येक स्तरपर कार्रवाई करने के समय का उल्लेख किया जाए । (ग) बैंकों को निर्यात ऋण कि मंजूरी के मामले में अपनी शाखाओं को और अधिकार प्रदान करना चाहिए । (घ) बैंकों को चाहिए कि वे निर्यात ऋण संबंधी प्रक्रिया के जितने स्तर हैं उनमें से कुछ मध्यावर्ती स्तरों को कम कर दें । यह सुनिश्चित करम्ना भी आवश्यकहै कि निर्यात वित्त के संबंध में निर्णय लेने की प्रक्रीया में तीन से अधिक स्तर न बें । (ङ ) बैंकों को चाहिए कि वे निर्यात ऋण संबंधी प्रस्तावों पर तेजी से कार्रवाई करने के लिए शाखा स्तर के और प्रशासनिक कार्यालयों के अधिकारयों द्वारा संयुक्त मूल्यांकन की प्रणाली लागू करें । (च) निर्यातकों की कार्यशील पूँजी संबंधी सुविधाऍ प्रदान करने / मंजूर करने के लिए बैंकों को चाहिए कि, जबँ भी संभव बे, वबँ वो विशेष शाखाओं और प्रशासनिक कार्यालयोन में ऋण समिति के पास मंजूरी की पर्याप्त उच्चतर शक्ति बेनी चाहिए । (ख्व) प्रचार और प्रशिक्षण (क) सामान्यत: अंतर्राष्ट्रीय स्तरपर प्रतियोगी दरों पर विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण बैंकों की केवल कुछ शाखाओं में प्रदान किया जाता है । इस योजना को अधिक लोकप्रीय बनाने के लिए तथा विदेशी मुद्रा ऋणों पर प्रतियोगी ब्याज दरों को द्रफ्ष्टिगत रखते हुए और किसी बी संभावित विनिमय जोखीम को कम करने के लिए विदेशी मुद्रा निर्यात ऋण का अधिकतम उपयोग करने के लिए निर्यातकों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। इसलिए जिस क्षेत्र में निर्यातकों की संख्या अधिक बे उन क्षेत्रों में स्थित बैंकों को इस महत्त्वपूर्ण सुविधा का व्यापक प्रचार करना चाहिए और छोटे निर्यातको सहित सभी ंनिर्यातकों को यह सुविधा आसानी से उपलब्ध करानी चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विदेशी मुद्रा में ऋण प्रदान करने के लिए और अधिक शाखाओं को नामित किया जा रब हैै। बैंकों को यह भी चाहिए कि वे मानित निर्यातों के लिए ब्याजदरों पर दी जाने वालि छूट का भी व्यापक प्रचार करें तथा यह सुनिश्चित करें कि इस का काम देखने वाले स्टाफ इस बात से भलीभाँति अवगत है तथा इस बात का ध्यान भी रखते हैं। (ख) विदेशी मुद्रा में ऋण प्रदान करने के काम से जो अधिकारी जुडे बें उन्हें पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए । निर्यात ऋण संबंधी कारोबार करने वाली विशिष्ट शाखाओं से कर्मचारियों का स्थानांतरण किए जाने के मामले में बैंकों को सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी जगह तैनात किये जाने वाले नये व्यक्तियों के पास विदेशी मुद्रा और निर्यात ऋण से संबंधित विषयों की पर्याप्त जानकारी हे ताकि निर्यात ऋण संबंधी मामलों पर कार्रवाई करने / उनमें मंजूरी प्रदान करने में विलंब न बे तथा निर्यातकों को निर्यात आदेशों के र िबेने से संबंधित जोखिमों से भी अवगत करा दिया जाए । (ख्वव) ग्राहकों को जानकारी देना (क) बैंकों को एक हैंडबुक तैयार करनी चाहिए जिसमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगी दरों पर निर्यात ऋण तथा रुपये में निर्यात ऋण मंजूर करने संबंधी सरलीवफ्त प्रक्रया की विशेष बातों की जानकारी दी गई बे ताकि निर्यातक इसका लाभ उठा सकें । (ख) बैंकों और निर्यातकों के बीच विचारों के आदान प्रदान को सुगम बनाने के लिए बैंकों को ऐसे केन्द्रोंपर निर्यातकों की बैठकें आयोजित करनी चाहिए जबँ निर्यातकों की संख्या अधिक बें । 1..3.3 राज्य स्तरीय बैंकर समिति के अंतर्गत अलग उप-समिति का गठन राज्य स्तर पर निर्यात वित्त तथा बैंक से संबंधित अन्य विषयों से संबंधित मामलों पर राज्य स्तरीय बैंकर समिति (एसएलबीसी) की उप-समिति द्वारा कार्रवाई की जाएगी । इस उप-समिति में जिसे ‘निर्यात संवर्धन के लिए एसएलबीसी की उप-समिति’ नाम से जाना जाता है, स्थानीय निर्यातकों के संघ, भारतीय स्टेट बैंक, पर्याप्त निर्यात व्यापार करने वाले दो/तीन अग्रणी बैंक, विदेश व्यापार महानिदेशालय, सीमा शुल्क, राज्य सरकार (वाणिज्य तथा उद्योग विभाग तथा वित्त विभाग), भारतीय निर्यात-आयात बैंक, निर्यात ऋण तथा गारंटी ंनिगम, भारतीय विदेशी मुद्रा व्यापारी संघ, समिति के सदस्यों के रूप में शामिल होंगे । उप-समिति की बैठकें छमाही अंतरालों पर होंगी अथवा आवश्यकता होने पर उससे पहले भी हो सकती हैं । एसएलबीसी का संयोजक बैंक ही संबंधित राज्य में उप-समिति की बैठक का संयोजक होगा और संयोजक बैंक के कार्यपालक निदेशक बैठकों के अध्यक्ष रहेंगे । 1.3.4 दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन पर नजर रखना (व) बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि निर्यातकों की निर्यात संबंधी आवश्यकताओं को प्रतिस्पर्धी दरों पर पूरी तरह और शीघ्र पूरा किया जा रब है । उपर्युक्त दिशानिर्देशों का कार्यान्वयन, इस मास्टर परिपत्र की मूल भावना को दृष्टिगत रखते हुए सुनिश्चित किया जाना चाहिए ताकि निर्यात क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराने और संबध्द बैंकिंग सेवाएं प्रदान किए जाने के मामले में पर्याप्त सुधार परिलक्षित बें । बैंकों को अपने संगठन के अंतर्गत स्टाफ की तैनाति की प्रणाली की कमियों, यदि कोई बे तो, को भी दूर किया जा सके । (वव) संबंधित दिशानिर्देशों का कार्यान्वयन किस सीमा तक किया जा रब है, इस बात का पता लगाने के लिए बैंकों को एक आंतरिक कार्यदल गठित करना चाहिए जो समय समय पर (जैसे हर दो महिने पर) शाखाओं का दौरा करे । 2. रिपोर्ट भेजने संबंधी अपेक्षाएँ 2.1 बैंकों के निर्यात ऋण कार्यनिष्पादन का सूचक 2.1.1 प्रत्येक बैंक के लिए अपेक्षित है कि वह अपने निवल बैंक ऋण के 12 प्रतिशत के बराबर बकाया निर्यात ऋण का स्तर प्राप्त करे। तदनुसार भारतीय रिजर्व बैंक का बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग (निदेश प्रभाग) हर तीन महीने के अंतराल पर इस मामले में बैंकों के कार्यनिष्पादन की समीक्षा करता है। निर्यात ऋण देने के मामले में बैंकों के कार्यनिष्पादन का आकलन निर्यात ऋण पुनर्वित्त सीमाओं के उस पाक्षिक विवरण में सूचित किए गए औसत निर्यात ऋण बकायों के आधारपर की जाएगी जो रिपोर्ट भेजने के लिए नियत शुक्रवार को भारतीय रिजर्व बैंक, मौद्रिक नीति विभाग, केन्द्रीय कार्यालय, मुम्बई को भेजे जाते हैं । 2.1.2 बैंकों को अपने निवल बैंक ऋण के 12 प्रतिशत के बराबर निर्यात ऋण के स्तर तक पहूँचने का प्रयास करना चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस अनुपात में कमी न आने पाए । अच्छे निर्यात आदेशों के मामले में बैंकों को निर्यात ऋण देने से मना नहीं करना चाहिए । 2.1.3 निर्यात ऋण का निर्धारित स्तर प्राप्त न कर पाने पर या निर्यात ऋण संबंधी कार्यनिष्पादन में स्पष्ट सुधार न दिखाई देने पर संबंधित बैंक के संबंध में कुछ नीतिगत कदम उठाए जा सकते हैं जिनके अंतर्गत प्रारक्षित निधि संबंधी अपेक्षाओं मे वफ्द्धी तथा पुनर्वित्त सुविधाएँ वापस ले लेना शामिल बेगा । भारतीय रिजर्व बैंक के बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग का (निदेश प्रभाग अर्थात् ऋण के संबंध में बैंकों के) कार्यनिष्पादन पर कडी नजर रखेगा । 2.2 निर्यात ऋण संवितरण संबंधी आँकडे बैंकों को निर्यात ऋण संवितरण संबंधी आँकडे हर तीन महिने पर अनुबंध में दिए गए फॉर्मेट में भेजने चाहिए । बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उक्त विवरण भारतीय रिजर्व बैंक का बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग को संबंधित तिमाही के परवर्ती माह के अंत तक प्राप्त बे जाए ।
2.3 हीरा निर्यात को लदान पूर्व ऋण कांपिलक्ट डायमंडस् -किम्बरले प्रोसेस सर्टिफिकेशन स्कीम (केपीसीएस) को लागू करना संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव सं. 1173 एवं 1176 के द्वारा कांपिलक्ट डायमंडस् का व्यापार / खरीद को प्रतिबंधित कर दिया गया है, क्योंकि सियारा लोन, अंगोला एवं कांगों के गफ्हयुध्द प्रभावित क्षेत्रों में विद्रोहियों को धन देने में कांपिलक्ट डायमंडस् महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव सं. 1306 (2000) तथा क्रमश: 1343(2001) के अनुसार सियारा लोन तथा लाइबेरिया से सभी किस्म के कच्चे हीरों के प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष आयात को निषेध कर दिया गया है । अन्य देशों के साथ भारत ने संयुक्त राष्ट्र की नयी किम्बरले प्रोसेस सर्टिफिकेशन स्कीम को स्वीकार किया है जिससे खुदाई या अवैध व्यापार से देश में कच्चे हीरों का आयात रोकना सुनिश्चित किया जा सके । अत: भारत में हीरों का आयात करते समय किम्बरले प्रोसेस सर्टिफिकेट (केपीसी) का बेना जरुरी है । उसी प्रकार भारत से निर्यात करते समय केपीसी साथ में बेना चाहिए जिसमें ज्ञात बे कि प्रक्रिया में कांपिलक्ट/कच्चे हीरे उपयोग में नहीं लाए गए हैं । आयात/निर्यात के मामलों में रत्न और आभूषण संवर्धन परिषद द्वारा के.पी.सी.(प्रमाणपत्र) की जाँच/वैधता की जाएगी । किम्बरले प्रोसेस सर्टिफिकेशन स्कीम लागू करना सुनिश्चित करने के लिए, किसी भी प्रकार के हीरों से जुड़े व्यापार करने के लिए बैंक से ऋण पाने वाले ग्राहकों से बैंक, संलग्नक 2 में दिए गए प्रपत्र में एक घोषणा पत्र प्राप्त किया जाए । निर्यात ऋण डाटा (संवितरण /बकाया) अनुबंध 1
क. सभी निर्यातकों के लिए दि. . . . . . . . . . . . . . . (मार्च/जून/सितंबर/दिसंबर को समाप्त तिमाही के अंतिम शुक्रवार) को कुल संवितरण और बकाया शेष दर्शाने वाला विवरण : (राशि करोड़ रुपये में)
ख. उपर्युक्त में से गोल्ड काड़ धारकों के संवितरण और बकाया शेष : जारी किए गए गोड कार्डों की संख्या : --------------------- (राशि करोड़ रुपये में)
क) ‘‘बिना अवलंबित’’ आधार पर निर्यात बिल रिडिस्काउंटिंग योजना के अंतर्गत डिस्काउंटेड /रिडिस्काउटेड बिलों की राशि बकाया शेष से बाहर रखी जानी चाहिए । ख) यदि अंतिम शुक्रवार किन्हीं महीनों जैसे मार्च, जून आदि का अंतिम दिन नहीं होता तो बैंकों को शेष बची अवधि के संवितरण अगली तिमाही में शामिल करने चाहिए । उदाहरण के लिए यदि मार्च तिमाही का अंतिम शुक्रवार 25 मार्च को पड़ता है तब 26 मार्च से 31 मार्च तक के संवितरण जून तिमाही में शामिल किए जाएँगे । अनुबंध 2 मास्टर परिपत्र ग्राहक सेवा, निर्यात ऋण दिये जाने से संबंधित कार्यविधि का सरलीकरण और रिपोर्ट भेजने संबंधी अपेक्षाएँ औ.नि.ऋ.वि. के परिपत्र सं. 13/04.02.02/2002-03 दिनांक 3 फरवरी, 2003 का संलग्नक हीरा ग्राहकों से प्राप्त किया जानेवाला वचन-पत्र हीरों से संबंधित किसी भी प्रकार का व्यापार करने के लिए ऋण पानेवाले ग्राहकों से लिया जाने वाला वचन पत्र का फार्म ड पैराग्राफ 2.3 "मैं एतद्द्वारा वचन देता हूँ :
2. मैं अपनी सहमति भी देता हूँ कि यदि मैं जान बूझ कर ऐसे हीरों का व्यापार करने का दोषी पाया जाता हूँ तो किसी भी समय, मेरी समस्त ऋण पात्रताएँ वापस ले ली जाएँगी" । मास्टर परिपत्र ग्राहक सेवा, निर्यात ऋण दिये जाने से संबंधित कार्यविधि का सरलीकरण और रिपोर्ट भेजने संबंधी अपेक्षाएं मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची
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