निर्यात ऋण पुनर्वित्त सुविधा संबंधी मास्टर परिपत्र - आरबीआई - Reserve Bank of India
निर्यात ऋण पुनर्वित्त सुविधा संबंधी मास्टर परिपत्र
भारिबैं/2013-14/108 1 जुलाई 2013 सभी अनुसूचित बैंकों के अध्यक्ष/मुख्य कार्यपालक महोदय, निर्यात ऋण पुनर्वित्त सुविधा संबंधी मास्टर परिपत्र कृपया निर्यात ऋण पुनर्वित्त सुविधा पर दिनांक 2 जुलाई 2012 का मास्टर परिपत्र सं.एमपीडी सं.356/07.01.279/2012-13 देखें। इस मास्टर परिपत्र में 30 जून 2013 तक जारी किये गये सभी अनुदेशों/दिशा-निर्देशों को समेकित और अद्यतन किया गया है। इस विषय के संबंध में जारी सभी अनुदेशों/दिशा-निर्देशों को परिशिष्ट में अलग से दर्शाया गया है। यह मास्टर परिपत्र भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट (http://www.rbi.org.in) पर भी उपलब्ध है। भवदीय, (माइकल देबब्रत पात्र) अनु: यथोक्त निर्यात ऋण पुनर्वित्त सुविधा संबंधी मास्टर परिपत्र विषय – सूची
निर्यात ऋण पुनर्वित्त (ईसीआर) सुविधा संबंधी मास्टर परिपत्र 1.1 भारतीय रिज़र्व बैंक, भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 की धारा 17 (3क) के अंतर्गत बैंकों को निर्यात ऋण पुनर्वित्त सुविधा उपलब्ध कराता है। यह सुविधा पोतलदान-पूर्व और पोतलदानोत्तर, (प्रि-शिपमेंट और पोस्ट-शिपमेंट) दोनों चरणों पर बैंकों की पात्र बकाया रुपया निर्यात ऋण राशि के आधार पर दी जाती है। पुनर्वित्त की मात्रा भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति के रुख़ के आधार पर समय-समय पर निर्धारित की जाती है। 2.1 (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़ कर) वे सभी अनुसूचित बैंक जो विदेशी मुद्रा के प्राधिकृत व्यापारी हैं और जिन्होंने निर्यात ऋण दिया है, निर्यात ऋण पुनर्वित्त का लाभ उठाने के पात्र हैं। 3.1 वर्तमान में अनुसूचित बैंकों को दूसरे पूर्ववर्ती पखवाड़े के अंत की स्थिति के अनुसार पुनर्वित्त के लिए पात्र बकाया निर्यात ऋण के 50.0 प्रतिशत तक निर्यात ऋण पुनर्वित्त प्रदान किया जाता है। निर्यात क्षेत्र में ऋण के प्रवाह को बढ़ाने की दृष्टि से, 30 जून 2012 से प्रारंभ पखवाड़े से यह सीमा 15.0 प्रतिशत से बढ़ाकर 50.0 प्रतिशत की गई थी। पुनर्वित्त के लिए पात्र बकाया निर्यात ऋण की परिभाषा अनुबंध I में दी गई है। 4.1 निर्यात ऋण पुनर्वित्त सुविधा समय-समय पर घोषित चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत रिपो दर पर उपलब्ध है। 4.2 ब्याज मासिक अंतरालों पर देय होगा और दैनिक शेष-राशियों (डेली बैलेंस) पर गणना की गई ब्याज की यह राशि, संबंधित महीने के अंत में अथवा पहले, जब बकाया शेष का निपटान हो जाए, बैंकों के चालू खाते (करेंट अकाउंट) में डेबिट की जाएगी । 5.1 कोई मार्जिन रखने की आवश्यकता नहीं है। 6.1 ईसीआर मांग पर अथवा निर्धारित अवधि के समाप्त होने पर, जो एक सौ अस्सी दिन से अधिक नहीं होगी, देय है, बशर्ते न्यूनतम अवधि एक दिन की हो। 7.1 भारिबैं, बैंकों के मांग वचन पत्र (डीपीएन) पर निर्यात ऋण पुनर्वित्त प्रदान करता है। मांग वचन पत्र के साथ इस आशय की घोषणा होनी चाहिए कि उन्होंने निर्यात ऋण दिया है एवं पुनर्वित्त के लिए बकाया राशि भारतीय रिज़र्व बैंक से लिये गये ऋण/अग्रिम से कम नहीं है। 8.1 इस सुविधा के अंतर्गत न्यूनतम उपलब्ध राशि एक लाख रुपये है और न्यूनतम से अधिक की राशि एक लाख रुपये के गुणजों (मल्टीपल्स) में होगी । 9.1 रिज़र्व बैंक के बैंकिंग विभाग वाले केंद्रों पर यह सुविधा प्राप्त की जा सकती है। 10.1 निर्यात ऋण पुनर्वित्त की प्राप्ति में अनियमितता बरतने वाले अनुसूचित बैंक के मामले में, बकाया ऋण अथवा ऋणों पर रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर निर्धारित दंडात्मक दर पर ब्याज वसूल किया जाएगा । 10.2 निर्यात ऋण पुनर्वित्त की प्राप्ति में अनियमिता बरतने पर लागू दण्डात्मक दर वाली दृष्टांतपरक (परंतु संपूर्ण नहीं) उदाहरणों की एक सूची नीचे दी गई है: ए) कुल सीमा से अधिक निर्यात ऋण पुनर्वित्त का उपयोग। बी) बैंकों द्वारा पुनर्वित्त सीमा की गलत गणना/रिपोर्टिंग। सी) 180 दिनों के भीतर पुनर्वित्त की चुकौती न करना। डी) बैंकों द्वारा अधिक उपयोग किये जाने की रिपोर्टिंग में विलंब । 11. प्रलेखीकरण (डॉक्यूमेंटेशन) 11.1 बैंकों को निर्यात ऋण पुनर्वित्त सुविधा प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित दस्तावेजों का निष्पादन करना होता है : (अनुबंध II) ए) फॉर्म सं.डीएडी 297 में मुद्रांकित करार (स्टेंप्ड एग्रीमेंट) बी) फॉर्म सं.डीएडी 295 ए में एक मांग वचन पत्र (डीपीएन) सी) फॉर्म सं.डीएडी 298 में बोर्ड का संकल्प जिसमें इस योजना के अंतर्गत उधार लेने को एवं बैंक की ओर से ऋण दस्तावेजों का निष्पादन करने वाले अधिकारियों को भी प्राधिकृत किया गया हो। डी) सीमा बढ़ाने के लिए, नयी सीमा के लिए समेकित मांग वचन पत्र (डीपीएन) के साथ करार के रूप में स्टैंप किया जाने वाले फॉर्म सं.डीएडी 299 में एक पत्र जिसमें सीमा बढ़ाने के लिए, करार में विस्तार किया गया हो। उधार लेने वाला बैंक, फॉर्म नंबर. डीएडी.389 (अनुबंध III) में पाक्षिक घोषणा प्रस्तुत करेगा ताकि रिज़र्व बैंक यह देख सके कि योजना के तहत बकाया निर्यात ऋण अग्रिमों की तुलना में बकाया उधारियों की क्या स्थिति है। ई) बैंकिंग विभाग के मैनुअल के पैराग्राफ 7.30 के अनुसार, करार व सीमा में विस्तार के पत्रों के नवीकरण की तब तक कोई आवश्यकता नहीं जब तक उनके शर्तों में किसी प्रकार का बदलाव न हो। तथापि, उधार खाते में बकाया चाहे जितना हो, उधारकर्ता बैंक द्वारा दिए गए मांग वचन पत्रों का, उनके निष्पादन की तारीखों से तीन वर्ष के भीतर, नवीकरण किया जाना चाहिए। 12.1 पुनर्वित्त का लाभ उठाने वाले बैंकों से यह अपेक्षा की जाती है कि, वे अनुबंध III में दिये गये फॉर्मेट में, संबंधित तारीख से पाँच दिन के भीतर पुनर्वित्त के लिए पात्र अपने बकाया निर्यात ऋण की रिपोर्ट करें। 13.1 यह आवश्यक है कि किसी बैंक द्वारा लिया गया जितना उधार बकाया हो, वह उसके बराबर, पात्र पोत-लदानपूर्व अग्रिमों की राशि के निर्यात बिल/राशि (जैसा कि उनके नवीनतम घोषणापत्र में बताया गया हो), हमेशा अपने पास रखे। यदि किसी भी समय यह पाया जाता है कि बैंकों द्वारा धारित बिलों की कुल राशि/घोषणा पत्र में उल्लिखित पात्र पोत-लदानपूर्व अग्रिमों की राशि उधार ली गई राशि से कम है तो भारतीय रिज़र्व बैंक से लिये गये अतिरिक्त पुनर्वित्त का समायोजन/उसकी चुकौती बैंकों द्वारा तुरंत की जानी चाहिए। 14.1 निर्यात ऋण पुनर्वित सुविधा से संबंधित परिभाषाएं, करार के फ़ॉर्म और रिपोर्टिंग फॉर्मेट क्रमश: अनुबंध I, अनुबंध II और अनुबंध III में दिए गए हैं। 15.1 निर्यात ऋण पुनर्वित सुविधा के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वार जारी किए गए सभी परिपत्र परिशिष्ट में दिए गए हैं। परिभाषाएं इन दिशानिर्देशों में, जब तक कि संदर्भ में अन्यथा अपेक्षित न हो :
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