धोखाधडियां वर्गीकरण और सूचना देना - प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक - आरबीआई - Reserve Bank of India
धोखाधडियां वर्गीकरण और सूचना देना - प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक
भारिबैं/2015-16/1 01 जुलाई 2015 मुख्य कार्यपालक अधिकारी महोदया / महोदय धोखाधडियां वर्गीकरण और सूचना देना - प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक कृपया उपर्युक्त विषय पर 01 जुलाई 2014 का हमारा मास्टर परिपत्र शबैंवि.केंका.बीपीडी एमसी.सं. 17/12.05.001/2014-15 (भारतीय रिज़र्व बैंक की वेब साइट www.rbi.org.in पर उपलब्ध) देखें। संलग्न मास्टर परिपत्र में 30 जून 2015 तक जारी सभी अनुदेशों/ दिशानिर्देशों को समेकित और अद्यतन किया गया है। भवदीया (सुमा वर्मा) संलग्नक: यथोक्त 1.1 बैंकों में धोखाधड़ी, डकैती, लूटमार इत्यादि की होने वाली घटनाएं चिंता का विषय हैं। जहां धोखाधड़ी को रोकने की प्राथमिक जिम्मेदारी स्वयं बैंकों की है, भारतीय रिजर्व बैंक समय- समय पर बैंकों को धोखाधडी प्रवण प्रमुख क्षेत्रों तथा उन्हें रोकने के लिए आवश्यक रक्षोपायों की जानकारी देता रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक सुकल्पित स्वरूप की ऐसी धोखाधड़ियों के ब्यौरे भी बैंकों को देता रहा है जिसकी सूचना पहले नहीं दी गई है ताकि बैंक उपयुक्त प्रक्रियाओं और आंतरिक नियंत्रणों द्वारा आवश्यक रक्षोपाय/ निवारक उपाय प्रारंभ कर सकें। इस सतत प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए यह आवश्यक है कि बैंक धोखाधड़ियों से संबंधित पूरी जानकारी और उनके द्वारा की गई अनुवर्ती कारवाई से रिज़र्व बैंक को अवगत कराएं। अतः, बैंक धोखाधड़ियों के संबंध में सूचना देने के लिए निम्नलिखित पैराग्राफों में निर्दिष्ट की गई सूचना प्रणाली अपनाएं । 1.2 यह देखा गया है कि प्राय: धोखाधड़ी हो जाने के काफी समय बाद बैंकों को उसकी जानकारी मिलती है। कभी-कभी धोखाधड़ी संबंधी रिपोर्टे रिजर्व बैंक को काफी देरी से प्रस्तुत की जाती हैं और वह भी अपेक्षित (पूरी) जानकारी के बिना। कुछ अवसरों पर तो भारतीय रिजर्व बैंक को बड़ी राशियों से संबंधित धोखाधड़ियों की जानकारी प्रेस रिपार्टों के माध्यम से ही प्राप्त होती है। अत: बैंकों को चाहिए कि वे इस बात को सुनिश्चित करें कि सूचना - प्रणाली को उपयुक्त रूप से कारगर बनाया गया है ताकि धोखाधड़ियों से संबंधित सूचना अविलंब दी जा सके। बैंकों को चाहिए कि वे रिजर्व बैंक को सूचना देने में होने वाली देरी के संबंध में स्टाफ को जवाबदेह बनाएं। 1.3 धोखाधड़ियों से संबंधित सूचना देर से देने और उसके बाद बेईमान उधारकर्ताओं की कार्य-प्रणाली के संबंध में अन्य बैंकों को सतर्क करने और उनके विरुद्ध चेतावनी सूचनाएं जारी करने में देरी होने से इसी प्रकार की धोखाधड़ियां किसी अन्य स्थान पर भी हो सकती हैं। अत: बैंकों को चाहिए कि वे रिजर्व बैंक को धोखाधड़ियों के मामलों की सूचना देने के लिए इस परिपत्र में निर्धारित समय सीमा का कड़ाई से पालन करें अन्यथा उनके विरुद्ध बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी समितियों पर यथालागू) की धारा 47 (ए) के अंतर्गत निर्दिष्ट दंड़ात्मक कारवाई की जाएगी । 1.4 बैंकों को चाहिए कि वे वरिष्ठ स्तर के किसी पदाधिकारी को विशेष रूप से इस बात के लिए नामित करें जो इस परिपत्र में दी गई सभी विवरणियों को प्रस्तुत करने के लिए उत्तरदायी होंगे । 2.1 धोखाधड़ियों के मामलों की सूचना देने में एकरूपता लाने के लिए धोखाधड़ियों को भारतीय दंड संहिता के उपबंधों के आधार पर निम्नानुसार वर्गीकृत किया गया है: (ए) दुर्विनियोजन और आपराधिक विश्वास भंग । (बी) जाली लिखतों, लेखा-बहियों में हेर-फेर अथवा बेनामी खातों के जरिये कपटपूर्ण नकदीकरण और संपत्ति का परिवर्तन । (सी) पुरस्कृत करने अथवा अवैध तुष्टीकरण के लिए दी गयी अनधिकृत ऋण सुविधाएं । (डी) लापरवाही और नकदी की कमी । (इ) छल और ज़ालसाजी । (एफ) विदेशी मुद्रा संबंधी लेनदेनों में अनियमितताएं । (जी) अन्य किसी प्रकार की धोखाधड़ी, जो उक्त किसी विशिष्ट शीर्ष के अंतर्गत शामिल न हो । 2.2 ऊपर मद (डी और एफ ) में उल्लिखित 'लापरवाही और नकदी की कमी' तथा 'विदेशी मुद्रा संबंधी लेनदेनों में अनियमितताओं' के मामलों को तभी धोखाधड़ी के रूप में सूचित किया जाए यदि छल करने/ धोखा देने के इरादों का संदेह हो/ इरादा साबित हो गया हो। तथापि, निम्नलिखित मामले, जिनमें पता चलने वाले दिन धोखाधड़ी के इरादों का संदेह न हो/ प्रमाणित न हो, धोखाधड़ी माने जाएंगे तथा तद्नुसार सूचित किए जाएंगे : (ए) ₹ 10,000/- तथा उससे अधिक के नकदी की कमी के मामले, तथा (बी) ₹ 5,000/- से अधिक के नकदी की कमी के मामले यदि वे प्रबंध-तंत्र/ लेखा-परीक्षक/ निरीक्षण अधिकारी द्वारा पाए गए हों तथा नकदी का कार्य करने वाले व्यक्तियों द्वारा घटित होने वाले दिन उनकी सूचना न दी गई हो । 2.3 एकरूपता सुनिश्चित करने तथा दोहरेपन से बचने के लिए जाली लिखतों से संबंधित धोखाधड़ियों की सूचना अदाकर्ता बैंकर द्वारा ही दी जाए, वसूलीकर्ता बैंकर द्वारा नहीं। फिर भी, उन लिखतों के मामलों में, जो वास्तविक हैं, लेकिन जिनका संग्रहण धोखाधड़ीपूर्वक उस व्यक्ति द्वारा किया गया है जो उनका वास्तविक मालिक नहीं है, वसूलीकर्ता बैंकर को जो धोखाधड़ी का शिकार हुआ है, मामले की रिपोर्ट भारतीय रिज़र्व बैंक को करनी चाहिए । लिखत वसूली के ऐसे मामले में जहाँ वसूली से पूर्व रकम की जमा प्रविष्टियां कर दी गई हों तथा बाद में लिखत नकली/ जाली पाई गई हो तथा अदाकर्ता बैंक द्वारा लौटा दी गई हो, वहां वसूलीकर्ता बैंक को भारतीय रिज़र्व बैंक में एफएमआर-1 दाखिल करना चाहिए क्योंकि लिखत की वसूली से पहले रकम अदा करने की वजह से हानि उसे उठानी पड़ी है। 2.4 एक ही बैंक की दो या अधिक शाखाओं को शामिल करते हुए रूपांतरित/ जाली चेकों को भुनाना । 2.4.1 एक ही बैंक की दो या अधिक शाखाओं को शामिल करते हुए रूपांतरित/ जाली चेकों के संग्रहण के मामले में, वह शाखा जहां रूपांतरित/ जाली चेक भुनाया गया है, उक्त बैंक के प्रधान कार्यालय को धोखाधड़ी की रिपोर्ट करनी चाहिए। तत्पश्चात, उक्त बैंक का प्रधान कार्यालय भारतीय रिज़र्व बैंक के पास धोखाधड़ी की रिपोर्ट दर्ज करेगा। 2.4.2 कोर बैंकिंग सोल्युशन (सीबीएस) के अंतर्गत एक ही बैंक की दो या अधिक शाखाओं को शामिल करते हुए रूपांतरित/ जाली चेकों के भुगतान करने/ भुनाने पर वहां यह विवाद/ मतभेद की संभावना हो सकती है कि शाखा जहां चेक का आहर्ता खाते को संचालित करता है या फिर शाखा जहां चेक भुनाया गया है इनमें से किस शाखा को बैंक के प्रधान कार्यालय को मामले की रिपोर्ट करनी चाहिए। ऐसे मामलों में वह शाखा जिसने रूपांतरित/ जाली चेक के विरुद्ध भुगतान निर्गमन किया है,को प्रधान कार्यालय को धोखाधड़ी की रिपोर्ट करनी चाहिए। तत्पश्चात, उक्त बैंक का प्रधान कार्यालय भारतीय रिज़र्व बैंक के पास धोखाधड़ी की रिपोर्ट दर्ज करेगा। 2.5 चोरी, लूटपाट, डकैती तथा बैंक लूटने के मामलों को धोखाधड़ी के रूप में सूचित नहीं करना चाहिए जैसा कि अनुच्छेद 8 में विवरण दिया गया है, ऐसे मामलों को अलग से सूचित किया जाए। 3. धोखाधड़ियों की सूचना भारतीय रिज़र्व बैंक को देना 3.1 ₹ 1.00 लाख से कम की राशि वाली धोखाधड़ियां ₹ 1.00 लाख से कम राशि के धोखाधड़ी के मामलें, भारतीय रिज़र्व बैंक को अलग-अलग रिपोर्ट न करें। हालांकि ऐसे मामलों के सांख्यिकीय आंकड़े भारतीय रिज़र्व बैंक को अनुच्छेद 4.1 में वर्णित अनुसार तिमाही विवरणी में प्रस्तुत किया जाना चाहिए। 3.2 ₹ 1.00 लाख तथा उससे अधिक लेकिन ₹ 25.00 लाख से कम की राशि वाली धोखाधड़ियां ₹ 1.00 और उससे अधिक लेकिन ₹ 25.00 लाख से कम की धोखाधड़ियों के मामलों में धोखाधड़ी रिपोर्ट एफएमआर -1 फॉर्मेंट में धोखाधड़ी का पता चलने के तीन सप्ताह के भीतर सहकारी बैंक पर्यवेक्षण विभाग, क्षेत्रीय कार्यालय, भारतीय रिज़र्व बैंक को भेजी जाएं जिसके क्षेत्राधिकार में बैंक का प्रधान कार्यालय आता है। 3.3 ₹ 25.00 लाख तथा उससे ऊपर की राशि संबंधी धोखाधड़ी के मामले 3.3.1 ₹ 25.00 लाख तथा उससे ऊपर की राशि के व्यक्तिगत धोखाधडी के मामलों को एफएमआर-1 फॉर्मेंट में धोखाधड़ी का पता चलने के तीन सप्ताह के भीतर धोखाधडी निगरानी कक्ष, बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग, 10/3/8, नृपतुंगा रोड, पी बी सं 5467, बंगलूरु – 560 001 को प्रस्तुत की जानी है। हर एक मामले के लिए अलग-अलग (बिना क्लब किए) एफएमआर -1 प्रस्तुत किया जाना चाहिए। उसकी एक प्रति सहकारी बैंक पर्यवेक्षण विभाग, क्षेत्रीय कार्यालय, भारतीय रिज़र्व बैंक को भी भेजी जाएं जिसके क्षेत्राधिकार में बैंक का प्रधान कार्यालय आता है। 3.3.2 पैराग्राफ-3.3.1 में दी गई अपेक्षाओं के अलावा बैंकों को चाहिए कि धोखाधड़ियों की रिपोर्ट, ऐसी धोखाधड़ियां बैंक के प्रधान कार्यालय के ध्यान में आने की तारीख से एक सप्ताह के भीतर प्रधान मुख्य महाप्रबंधक, बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक, केन्द्रीय कार्यालय को संबोधित अ.शा. पत्र द्वारा करें। पत्र में धोखाधड़ी के संक्षिप्त विवरण जैसे कि धोखाधड़ी की राशि, धोखाधड़ी का स्वरूप, संक्षेप में आपराधिक कार्य-प्रणाली, शाखा/ कार्यालय का नाम, धोखाधड़ी में शामिल पार्टियों के नाम (यदि वे स्वामित्व/ भागीदारी के प्रतिष्ठान या निजी लिमिटेड कंपनियां हैं, तो मालिकों, भागीदारों तथा निदेशकों के नाम) शामिल अधिकारियों के नाम, तथा पुलिस के पास शिकायत दर्ज़ किए जाने के बारे में विवरण दिए जाएं। जिस शाखा में धोखाधड़ी हुई हैं वह बैंक शाखा जिसके अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत कार्य करती है, अर्द्धशासकीय पत्र की प्रतिलिपि भारतीय रिज़र्व बैंक के उस क्षेत्रीय कार्यालय के सहकारी बैंक पर्यवेक्षण विभाग को भी पृष्ठांकित की जाए। 3.4 बेईमान किस्म के उधारकर्ताओं द्वारा की गई धोखाधड़ियां 3.4.1 यह देखा गया है कि बड़ी संख्या में धोखाधड़ियां बेईमान किस्म के उधारकर्ताओं द्वारा, जिनमें कंपनियां, भागीदारी फर्में/ साझा कंपनिया/ स्वाम्य प्रतिष्ठान और/ अथवा उनके निदेशक/ भागीदार शामिल हैं, निम्नलिखित समेत विभिन्न तरीकों से की जाती हैं : (i) लिखतों की कपटपूर्ण भुनाई अथवा समाशोधन में काइट फ्लाइंग । (ii) बैंक की जानकारी के बिना गिरवी रखे गए स्टॉक को कपटपूर्ण ढंग से हटाना/ दृष्टिबंधक रखे गए स्टॉक को बेचना/ स्टॉक विवरण में स्टॉकों का मूल्य बढ़ाकर दर्शाना तथा अतिरिक्त बैंक वित्त का आहरण। (iii) उधारकर्ता इकाइयों के बाहर निधियों का अपयोजन, उधारकर्ताओं, उनके भागीदारों आदि के स्तर पर रुचि का अभाव अथवा आपराधिक उपेक्षा तथा प्रबंधन में चूक के कारण इकाई का रुग्ण होना और बैंक कर्मियों के स्तर पर उधार खातों में होने वाले परिचालनों पर प्रभावी पर्यवेक्षण में कमी के कारण अग्रिमों की वसूली में कठिनाई होना और परिणामस्वरूप बैंक को हानि पहूँचना। उधार खातों में धोखाधड़ियों के संबंध में एफएमआर-1 के भाग 'बी' के तहत यथा निर्धारित अतिरिक्त जानकारी भी प्रस्तुत की जानी चाहिए। 3.5 धोखाधड़ी का प्रयास करने संबंधी मामले धोखाधड़ी का प्रयास करने संबंधी ऐसे मामले, जहां संभावित नुकसान ₹ 25 लाख या उससे अधिक होता, धोखाधड़ी निगरानी कक्ष, बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग, भारतीय रिजर्व बैंक, केंद्रीय कार्यालय, मुंबई को रिपोर्ट करना 8 मार्च 2013 के परिपत्र सं शबैंवि.बीपीडी (पीसीबी) परि.सं.41/12.05.001/2012-13 के माध्यम से बंद किया गया है। तथापि, ₹ 25 लाख और उससे अधिक राशि के लिए धोखाधड़ी के प्रयास के अलग - अलग मामले को अपने बोर्ड की लेखा परीक्षा समिति के समक्ष रखना चाहिए। लेखा परीक्षा समिति के समक्ष रखी जानेवाली धोखाधड़ी के प्रयास की रिपोर्ट में निम्नलिखित तथ्यों को शामिल किया जाना चाहिए जैसे
4. धोखाधडी वाले खातों के संबंध में प्रावधानीकरण इस संबंध में यह निर्णय लिया गया है कि सभी धोखाधडी के मामलों के लिए निम्नानुसार एकसमान प्रावधानीकरण मानक निर्धारित किया जाए: (क) बैंक के प्रति देय समग्र राशि (ऐसी आस्तियों के विरुद्ध रखी गई प्रतिभूति की मात्रा पर ध्यान दिए बिना) अथवा जिसके लिए बैंक जिम्मेदार है (जमाराशि खातों के मामले सहित), के लिए उस तिमाही जिसमें धोखाधडी उजागर हुई है, से प्रारंभ करते हुए अधिकतम चार तिमाहियों की अवधि के भीतर प्रावधान पूर्ण कर लिया जाए; (ख) तथापि, जब कभी भारतीय रिजर्व बैंक को धोखाधडी की सूचना दिए जाने में निर्धारित अवधि से अधिक का विलंब होता है, तब सारा प्रावधान एक बार में ही किया जाना जरूरी होगा । इसके अलावा, जब कभी किसी बैंक द्वारा धोखाधडी की सूचना दिए जाने अथवा इसके प्रति प्रावधानीकरण में विलंब किया गया हो तो भारतीय रिजर्व बैंक, यथोचित पर्यवेक्षीय कार्रवाई भी शुरू कर सकता है। 5.1 धोखाधड़ियों के बकाया मामलों पर रिपोर्ट (एफएमआर – 2) 5.1.1 बैंकों को चाहिए कि वे एफएमआर-2 में दिए गए फार्मेट में धोखाधड़ियों के बकाया मामलों की तिमाही रिपोर्ट की एक-एक प्रति संबंधित तिमाही की समाप्ति के 15 दिन के भीतर भारतीय रिज़र्व बैंक के केंद्रीय कार्यालय तथा सहकारी बैंक पर्यवेक्षण विभाग के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को प्रस्तुत करें, जिसके अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत बैंक का प्रधान कार्यालय कार्यरत है। जानकारी केवल सॉफ्ट कॉपी में दी जाए। जिन बैंकों के पास तिमाही की समाप्ति पर धोखाधड़ियों के कोई बकाया मामले न हों, वे शून्य रिपोर्ट प्रस्तुत करें । 5.1.2 रिपोर्ट के भाग-ए में तिमाही के अंत में धोखाधड़ियों के बकाया मामले शामिल किए जाते हैं। रिपोर्ट के भाग बी तथा सी में तिमाही के दौरान रिपोर्ट की गई धोखाधड़ियों के क्रमश: श्रेणी-वार तथा अपराधी-वार विवरण दिए जाते हैं। भाग बी तथा सी में दर्शाए अनुसार तिमाही के दौरान रिपोर्ट किए गए धोखाधड़ियों के मामलों की कुल संख्या तथा राशि रिपोर्ट के भाग-ए के कालम सं.4 तथा 5 के कुल जोड़ से मेल खानी चाहिए। 5.1.3 उपर्युक्त रिपोर्ट के भाग के रूप में बैंक इस आशय का प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करें कि तिमाही के दौरान एफएमआर-1 में रिज़र्व बैंक को रिपोर्ट किए गए एक लाख रुपए तथा उससे अधिक के सभी व्यक्तिगत धोखाधड़ी के मामले भी बैंक के बोर्ड के समक्ष रखे गए हैं तथा एफएमआर-2 के भाग ए (कालम 4 तथा 5) एवं भाग बी तथा सी में शामिल किए गए हैं। 5.2 धोखाधड़ियों के संबंध में प्रगति रिपोर्ट (एफएमआर-3) 5.2.1 बैंकों को चाहिए कि वे ₹1.00 लाख और उससे अधिक की राशि की धोखाधड़ियों पर मामले-वार तिमाही प्रगति रिपोर्टे एफएमआर-3 में दिए गए फार्मेट में संबंधित तिमाही की समाप्ति के 15 दिन के भीतर भारतीय रिज़र्व बैंक, शहरी बैंक विभाग, क्षेत्रीय कार्यालय को प्रस्तुत करें जिसके अधिकार क्षेत्र में बैंक का प्रधान कार्यालय स्थित है । 5.2.2 जिन धोखाधड़ियों के मामले में तिमाही के दौरान कोई प्रगति नहीं हुई हो , ऐसे मामलों की एक सूची शाखा का नाम तथा सूचना देने की तारीख के संक्षिप्त विवरण सहित एफएमआर-3 के भाग - ख में प्रस्तुत करें। 5.2.3 जिन बैंकों में ₹1.00 लाख और उससे अधिक की राशि की धोखाधड़ियों का कोई भी मामला बकाया नहीं है वे शून्य रिपोर्ट प्रस्तुत करें। 6. बोर्ड को रिपोर्ट प्रस्तुत करना 6.1.1 बैंक यह सुनिश्चित करें कि रु. 1.00 लाख और उससे अधिक की सभी धोखाधड़ियों का पता लगने के तुरंत बाद उनके बोर्डों को सूचित किया जाता है। 6.1.2 ऐसी रिपोर्टों में अन्य बातों के साथ-साथ संबंधित शाखा अधिकारियों तथा नियंत्रक प्राधिकारियों के स्तर पर हुई चूकों का उल्लेख किया जाए तथा धोखाधड़ी के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ उपयुक्त कार्रवाई प्रारंभ किए जाने के लिए विचार किया जाए। 6.2 धोखाधड़ियों की तिमाही समीक्षा 6.2.1 मार्च, जून तथा सितंबर को समाप्त तिमाहियों के लिए धोखाधड़ियों से संबंधित जानकारी संबंधित तिमाही के अगले माह के दौरान निदेशक बोर्ड की लेखा परीक्षा समिति के समक्ष प्रस्तुत की जाए, भले ही, रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित समीक्षा कैलेंडर के अनुसार इन्हें बोर्ड / प्रबंध समिति के समक्ष प्रस्तुत करना आवश्यक हो अथवा न हो। 6.2.2 मार्च को समाप्त होनेवाले वर्ष के लिए वार्षिक समीक्षा निर्धारित है, तथा उक्त को ध्यान में रखते हुए, मार्च को समाप्त होनेवाली तिमाही के लिए अलग समीक्षा की आवश्यकता नहीं है। मार्च को समाप्त वर्ष की समीक्षा बोर्ड के समक्ष अगली तिमाही की समाप्ती के पूर्व अर्थात 30 जून को समाप्त तिमाही से पूर्व रखा जाए। 6.3 निदेशक मंडल की विशेष समिति द्वारा उच्च मूल्य के धोखाधड़ी की निगरानी धोखाधड़ी का पता लगाना, विनियामक प्राधिकारियों और प्रवर्तन एजेंसियों को उसे रिपोर्ट करना आदि विभिन्न पहलुओं में देरी होना चिंता का विषय है, इसलिए उच्चतम स्तर पर धोखाधड़ी की निगरानी पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक प्रतीत हुआ है और यह सुझाव दिया गया है कि बोर्ड की एक उपसमिति का गठन किया जाए जो अनन्य रूप से धोखाधड़ी के मामलों की निगरानी करेगी। धोखाधड़ी के मामलों की निगरानी में बैंकों के बोर्ड के लिए एक अच्छी तरह से परिभाषित भूमिका नियत करने की भी आवश्यकता है। इसलिए यह निर्णय लिया गया है कि एक करोड या उससे अधिक राशि के धोखाधड़ी की निगरानी करने तथा अनुवर्ती कार्रवाई करने के लिए बैंक के बोर्ड द्वारा एक विशेष समिति का गठन किया जाए, जबकि सभी सामान्य मामलों की पुनरीक्षा आगे भी एसीबी द्वारा किया जाएगा। (i) बोर्ड के विशेष समिति की गठन एवं कार्यों के संदर्भ में व्यापक दिशानिर्देश निम्न अनुच्छेदों में दिए हैं। ए) विशेष समिति का गठन विशेष समिति में बोर्ड के पांच निदेशक होंगे जिनमें शहरी सहकारी बैंकों के अध्यक्ष, एसीबी के दो सदस्य और बोर्ड के दो अन्य सदस्य शामिल होंगे। बी) विशेष समिति के कार्य विशेष समिति का प्रमुख कार्य एक करोड या उससे अधिक राशि के सभी धोखाधड़ी की निगरानी होगी ताकि; *यदि किसी प्रकार की प्रणालीगत कमी है जिससे धोखाधड़ी रूपी अपराध सुसाध्य हुआ है तो उसे पहचानकर रोकने का उपाय *यदि है तो धोखाधड़ी को पहचानने, उसे बैंक के उच्च प्रबंधन और भारतीय रिज़र्व बैंक को रिपोर्ट करने में हुई देरी का कारण जानना *केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो/ पुलिस जांच की निगरानी और वसूली की स्थिति और; *सभी प्रकार के धोखाधड़ी के मामलों में सभी स्तरों पर स्टाफ की जवाबदेही सुनिश्चित किया जाए और यदि आवश्यक है तो स्टाफ की ओर से कार्रवाई बिना समय गवाए पूरी की जाए। *आंतरिक नियंत्रण को मज़बूत करते हुए धोखाधड़ी का न होना सुनिश्चित करने के लिए उपचारात्मक कार्रवाई की प्रभाविता की पुनरीक्षा की जाए। *धोखाधड़ी को रोकने के लिए आवश्यक उचित उपाय रखे जाए। सी) बैठक उभरे हुए मामलों की संख्या के आधार पर विशेष समिति की बैठक की आवधिकता के संदर्भ में निर्णय लिया जाए। फिर भी, 1 करोड़ या उससे अधिक राशि के धोखाधड़ी सामने आने पर समिति की बैठक आयोजित करते हुए पुनरीक्षा की जाए। डी) विशेष समिति के कार्यकलाप की समीक्षा बोर्ड के विशेष समिति के कार्यों को छमाही आधार पर पुनरीक्षित किया जाए और पुनरीक्षा के संदर्भ में सूचना निदेशक मंडल को प्रस्तुत किया जाए। 6.4.धोखाधड़ियों की वार्षिक समीक्षा 6.4.1. बैंकों को चाहिए कि वे धोखाधड़ियों की वार्षिक समीक्षा करें तथा निदेशक बोर्ड/ स्थानीय परामर्शी बोर्ड के समक्ष जानकारी देने के लिए नोट प्रस्तुत करें। 6.4.2 ऐसी समीक्षा करते समय ध्यान में रखे जाने वाले प्रमुख पहलुओं में निम्नलिखित मुद्दे शामिल किये जाएं : (क) क्या एकबार धोखाधड़ी हो जाने पर कम से कम समय में उस का पता लगाने के लिए बैंक में विद्यमान प्रणाली पर्याप्त है? (ख) क्या धोखाधड़ियों की स्टाफ की दृष्टि से जांच की जाती है और जहां कहीं आवश्यक है, वहां आगे कार्रवाई बिना किसी विलंब किया जाता है? (ग) क्या जहां कहीं उपयुक्त पाया गया वहां जिम्मेदार पाये गये व्यक्तियों के लिए बिना किसी विलंब निवारक सजा दी गई? (घ) क्या प्रणालियों और क्रियाविधियों का पालन करने में शिथिलता के कारण धोखाधड़ियां हुईं और यदि ऐसा हो तो क्या यह सुनिश्चित करने के लिए कारगर कार्रवाई की गयी कि संबंधित स्टाफ द्वारा प्रणालियों और क्रियाविधियों का पूरी सावधानी से पालन किया जाता है या खामियों को दूर किया गया है। (ङ) क्या स्थानीय पुलिस को धोखाधड़ियों के बारे में जांच-पड़ताल के लिए सूचना दी गई है। 6.4.3 वार्षिक समीक्षाओं में अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित ब्यौरे भी शामिल होने चाहिए: (क) वर्ष के दौरान पता लगायी गई कुल धोखाधड़ियां तथा पिछले दो वर्ष की तुलना में उनमें फंसी हुई राशि। (ख) पैरा 2.1 में दी गई विभिन्न श्रेणियों के अनुसार धोखाधड़ियों का विश्लेषण तथा बकाया धाखाधड़ियों पर तिमाही रिपोर्ट में उल्लिखित विभिन्न कारोबारी क्षेत्रों का भी विश्लेषण (एफएमआर-2 के अनुसार)। (ग) वर्ष के दौरान रिपोर्ट की गई मुख्य-मुख्य धोखाधड़ियों की वर्तमान स्थिति सहित उनकी आपराधिक कार्य-प्रणाली। (घ) एक लाख रुपए और उससे अधिक की धोखाधड़ियों का ब्यौरे-वार विश्लेषण। (ङ) वर्ष के दौरान धोखाधड़ियों के कारण बैंक को हुई अनुमानित हानि, वसूल हुई राशि तथा किए गए प्रावधान। (च) जहां स्टाफ शामिल है, ऐसे मामलों की संख्या (राशि सहित) एवं उनके खिलाफ की गई कार्रवाई। (ज) धोखाधड़ी के मामलों का पता लगाने में लगा समय (धोखाधड़ी होने के तीन महीने, छह महीने, एक वर्ष के भीतर पता लगाये गये मामलों की संख्या)। (झ) पुलिस को रिपोर्ट की गई धोखाधड़ियों की स्थिति। (ञ) धोखाधड़ी के ऐसे मामलों की संख्या जिनमें बैंक द्वारा अंतिम कार्रवाई हो गयी है और मामले निपटा दिए गए हैं। (ट) धोखाधड़ी की घटनाओं में कमी करने/ उन्हें न्यूनतम रखने के लिए बैंक द्वारा वर्ष के दौरान किये गये निवारक/ दण्डात्मक उपाय। क्या शिथिलता से बचना सुनिश्चित के लिए प्रणालियों और क्रियाविधियों की जांच की जाती है। 7. पुलिस को धोखाधड़ियों की सूचना देने हेतु दिशा-निर्देशः 7.1 बैंकों को अवैध तुष्टीकरण के लिए बैंक द्वारा दी गयी अनधिकृत ऋण सुविधाएँ, लापरवाही और नकदी कम हो जाने, छल, जालसाजी आदि जैसी धोखाधड़ियों के संबंध में राज्य पुलिस अधिकारियों को सूचित करने के लिए निम्नलिखित दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए: (क) धोखाधड़ियों/ गबन के मामलों पर कार्रवाई करते हुए बैंकों को, मात्र संबंधित राशि के शीघ्र वसूल करने के लिए ही प्रवृत्त नहीं होना चाहिए बल्कि उन्हें लोक-हित से और यह सुनिश्चित करने के लिए भी प्रेरित होना चाहिए कि दोषी व्यक्ति दण्डित हुए बिना नहीं छूटें। (ख) अतः सामान्य नियमानुसार निम्नलिखित मामले अनिवार्यतः राज्य पुलिस के पास भेजे जाने चाहिए: (i) बाहरी व्यक्तियों द्वारा स्वयं तथा/ या बैंक के स्टाफ/ अधिकारियों की सांठगांठ से बैंक में ₹1.00 लाख या उससे अधिक की राशि के धोखाधड़ी के मामले। (ii) बैंक के कर्मचारियों द्वारा किये गये धोखाधड़ी के मामले, जिनमें ₹ 10,000 से अधिक की बैंक निधियां शामिल हों। 7.2 माँग ड्राफ्ट/ तार अंतरण/ भुगतान आदेश/ चेक/ लाभांश वारंट, आदि को धोखाधड़ी कर भुनाने के मामले में पुलिस में शिकायत दर्ज करना 7.2.1. जाली दस्तावेजों वाली धोखाधड़ियों के मामले में अदाकर्ता बैंकर को पुलिस में शिकायत (एफआइआर) दर्ज करनी चाहिए न कि वसूली बैंकर को। 7.2.2. तथापि, ऐसी लिखतों की वसूली के मामले में, जो वास्तविक हों लेकिन राशि किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा धोखाधड़ी से प्राप्त कर ली गई हो जो कि वास्तविक मालिक नहीं है, तो वसूलीकर्ता बैंक को, जिसके साथ धोखाधड़ी हुई है, पुलिस में शिकायत (एफआइआर) दर्ज करानी चाहिए। 7.2.3 लिखत वसूली के ऐसे मामले, जहाँ वसूली से पूर्व रकम की जमा प्रविष्टि कर दी गई हो तथा बाद में लिखत नकली/ फर्जी पाई गई हो तथा अदाकर्ता बैंक द्वारा लौटा दी गई हो, वहाँ वसूलीकर्ता बैंक को, जिसके साथ धोखाधड़ी हुई है, पुलिस में शिकायत (एफआइआर) दर्ज करानी चाहिए क्योंकि वसूली से पूर्व रकम अदा करने के कारण उसका नुकसान हुआ है। 7.2.4 रूपांतरित/ जाली चेक उगाही के मामलों में, जहां एक ही बैंक की दो या अधिक शाखाएं शामिल हैं, उस शाखा को जहाँ रूपांतरित/ जाली लिखत भुनाया गया है, पुलिस शिकायत दर्ज करवानी चाहिए। 7.2.5. सीबीएस के अंतर्गत रूपांतरित/ जाली चेक के भुगतान/ नकदीकरण के मामले में, जहां एक बैंक की दो या अधिक शाखाएं शामिल है, उस शाखा को जिसने धोखाधड़ी द्वारा निकासी पर भुगतान अवमुक्त किया है, पुलिस शिकायत दर्ज करवानी चाहिए। जहाँ आगे कार्रवाई अपेक्षित नहीं है वहाँ धोखाधडियों के मामले बंद करने के संदर्भ में बयौरे, बंद होने के कारण के साथ बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को सूचित करेंगे जिसके न्याय क्षेत्र के अधीन उसका प्रधान कार्यालय स्थित है। तिमाही के दौरान बंद किए गए धोखाधड़ी संबंधी मामलों की सूचना एफएमआर II तिमाही विवरणी में दी जानी चाहिए। बैंक ऐसे ही मामलों को बंद किए गए मामलों के रूप में सूचित करें जिनमें नीचे लिखे अनुसार कार्रवाई पूरी हो गई हो क) पुलिस/ न्यायालय में विचाराधीन धोखाधड़ी संबंधी जिन मामलों का अंतिम निपटान हो गया हो। ख) स्टाफ के उत्तरदायित्व पक्ष की जांच पूरी हो गई हो। ग) धोखाधड़ी की राशि वसूल हो गई हो अथवा बट्टे खाते लिख दी गई हो। घ) जहाँ भी लागू हो वहाँ बीमा संबंधी दावे का निपटान हो गया हो। ङ) बैंक ने कार्य प्रणाली तथा कार्यविधि की समीक्षा कर ली हो, कारक घटकों का पता लगा लिया हो तथा कमियों को दुरुस्त कर लिया गया हो तथा इस तथ्य को बोर्ड द्वारा प्रमाणित कर दिया हो। बैंक लंबित मामलों के अंतिम निपटान के लिए, विशेष कर ऐसे मामलों में जहाँ स्टाफ से संबंधित कार्रवाई पूरी हो गई हो, धोखाधड़ी के मामलों के अंतिम निपटान के लिए पुलिस प्राधिकारियों/ न्यायालय के साथ भी गंभीरतापूर्वक अनुवर्ती कार्रवाई करें। 9. बैंक में चोरी, सेंधमारी, डकैती और लूटमार होने की सूचना देना 9.1 बैंकों को चाहिए कि वे बैंक में लूटमारी, डकैती, चोरी तथा सेंधमारी की घटनाओं की रिपोर्ट, उनके होने पर तत्काल फैक्स/ ई-मेल द्वारा निम्नलिखित प्रधिकारियों को देने की व्यवस्था करें। (क) प्रधान मुख्य महाप्रबंधक, भारतीय रिज़र्व बैंक, सहकारी बैंक विनियमन विभाग, केंद्रीय कार्यालय, गारमेंट हाऊस, वरली, मुंबई - 400018 (ख) जिस राज्य में लूटमारी/ डकैती/ चोरी/ सेंधमारी की घटना हुई है वहाँ के भारतीय रिज़र्व बैंक के क्षेत्रीय कार्यालय का सहकारी बैंक पर्यवेक्षण विभाग - ताकि क्षेत्रीय कार्यालय संबंधित प्राधिकारियों के समक्ष प्रभावित शाखा/ शाखाओं (पृष्ठांकन) में सुरक्षा व्यवस्था के संदर्भ में मुद्दे उठा सकें। इस रिपोर्ट में घटना की कार्यप्रणाली के विवरण तथा अन्य सूचना एफएमआर-4 के कालम 1 से 11 में दी गई सूचनानुसार होनी चाहिए। 9.2 बैंकों को भारतीय रिज़र्व बैंक के उस क्षेत्रीय कार्यालय को जिसके अधिकार क्षेत्र में बैंक का प्रधान कार्यालय स्थित है, तिमाही से संबंधित सभी मामलों को शामिल करते हुए एफएमआर-4 (सॉफ्ट कॉपी) में दिए गए फार्मेट में तिमाही समेकित विवरण भी प्रस्तुत करना चाहिए। यह संबंधित तिमाही की समाप्ति से 15 दिनों के भीतर प्रस्तुत किया जा सकता है । 9.3 जिन बैंकों में तिमाही के दौरान रिपोर्ट किए जाने हेतु चोरी, सेंधमारी, डकैती तथा/या लूटमारी की कोई घटनाएं नहीं हुई हैं, वे शून्य रिपोर्ट प्रस्तुत करें। |