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माइक्रो ऋण पर मास्टर परिपत्र

भारिबैं/2006-07/47
ग्राआऋवि.सं.प्लान.बी.सी. 05 /04.09.22/2006-07.

3 जुलाई 2006

अध्यक्ष /प्रबंध निदेशक /मुख्य कार्यपालक अधिकारी
सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक

महोदय

माइक्रो ऋण पर मास्टर परिपत्र

कृपया उपर्युक्त विषय पर 30 जुलाई 2005 का हमारा मास्टर परिपत्र ग्राआऋवि.सं.प्लान.बी.सी. 24/04.09.22/2005-06 देखें। संलग्न मास्टर परिपत्र में उक्त विषय पर 30 जून 2006 तक जारी अनुदेश सम्मिलित हैं। परिपत्रों की सूची, जिनमें ये अनुदेश सम्मिलित हैं, इस मास्टर परिपत्र के परिशिष्ट में दी गई है।

कृपया पावती दें ।

भवदीय

(सी.एस. मूर्ति)

प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक


माइक्रो ऋण पर मास्टर परिपत्र

1. माइक्रो ऋण

ग्रामीण, अर्ध शहरी और शहरी क्षेत्रें में गरीबों को, ऋण और अन्य वित्तीय सेवाएं तथा उत्पाद बहुत कम मात्रा में उपलब्ध कराने को माइक्रो ऋण के रुप में पारिभाषित किया गया है जिससे वे अपने आय स्त्र और जीवन स्तर में सुधार ला सकें । माइक्रो ऋण संस्थान वे हैं जो ये सभी सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं ।

2. स्वयं सहायता समूह - बैंक सहलग्नता कार्यक्रम

देश में औपचारिक ऋण प्रक्रिया का तेजी से विस्तार होने के बावजूद, बहुत से क्षेत्रों में, विशेष रूप से आकस्मिक आश्यकताओं को पूरा करने के लिए गरीब ग्रामीणों को निर्भरता साहुकारों पर ही है । ऐसी आकस्मिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गरीब ग्रामीणों को निर्भरता साहूकारों पर ही है । ऐसी निर्भरता सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग और जनजातियों के सीमान्त किसानों, भूमिहीन मजदूरों, छोटे व्यवसायियों और ग्रामिण कारीगरों में देखने को मिलती है जिनकी बचत की राशि इतनी सीमित होती है कि बैंकों द्वारा उसे इकठठा नहीं किया जा सकता । कई कारणों से इस वर्ग को दिए जाने वाले ऋण को संस्थगत नहीं किया जा सका है । गैर सरकारी संगठनों द्वारा बनाए गए अनौपचारिक समूहों पर नाबार्ड, एशियाई और प्रशांत क्षेत्रीय ऋण संघ (एप्राका) और अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आइ एल ओ) द्वारा किए गए अध्ययनों से यह बात सामने आई है कि स्वयं सहायता बचतों और ऋण समूहों में औपचारिक बैंकिंग ढांचे और ग्रामीण गरीबों को आपसी लाभ के लिए एकसाथ लोने की संभाव्यता है तथा यह भी उनकी कार्यप्रणाली उत्साहजनक है ।

तदनुसार, नाबार्ड ने इस प्रयोजन हेतु एक प्रायोगिक परियोजना आरंभ की है तथा उसे पुनर्वित्त से समर्थन दिया है । कार्यक्रम में भाग लेने वाली एजेंसियों को तकनीकी समर्थन और मार्गदर्शन भी उपलब्ध कराया है । स्वयं सहायता समूहों के चयन के लिए नाबार्ड द्वारा माटे तौर पर निम्नलिखित मानदंड अपनाए जाएंगे ।

क) समूह पछिले छह माह से बना हो ।

ख) समूह को सक्रिय रूप से बचत की आदत को बढाया हो ।

ग) समूह औपचारिक (पंजीकृत) अथवा अनौपचारिक (गैर-पंजीकृत) हो सकते हैं ।

घ) समूह की सदस्यता 10 से 25 सदस्यों के बीच हो सकती है ।

समूहों को दिए गए अग्रिमों को प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अन्तर्गत "कमजोर वर्गो" को दिए गए अग्रिमों के रूप में माने जाते थे । स्वयं सहायता समूहों को उधार देने के संबंध में मार्जिन, प्रतिभूति और वित्त के स्तर तथा इकाई लामत से संबंधित मानदंड बैंकों को मार्गदर्शन करेंगें लेकिन जहां बैंक आश्यक समझें, उनमें परिवर्तन कर सकते हैं । ये मार्जिन, प्रतिभूति मानदझ्ड लत्यादि में छूट प्रायोगिक परियोजना के अन्तर्गत वित्तपोषित किए जाने वाले स्वयं सहायता समूहों पर ही लागू होंगे ।

नाबार्ड ने 26 फरवरी 1992 के अपने परिपत्र सं.एनबी.डीपीडी.एफएस.4631/92ए/91-92 इस परियोजना के कार्यान्वयन के लिए विस्तृत परिचालनगत दिशानिर्देश जारी किए हैं । नाबार्ड द्वारा कुछ राज्यों में परियोजना सहलग्नता के प्रभाव के मूल्यांकन के संबंध में किए गए त्वरित अध्ययन से प्रोत्साहनपूर्ण तथा सकारात्मक विशेषताएं सामने आई हैं यथा स्वयं सहायता समूहों के ऋण की मात्रा में वृध्दि, सदस्यों के ऋण ढांचे में, आयन होने वाली गतिविधियों से उत्पादक गतिविधियों में परिवर्तन लगभग 100% वसूली कार्यनिष्पादन, बैंकों और उधारकर्ताओं इत्यादि दोनों के लिए लेन-देन लागत में भारी कटौती के साथ-साथ स्वयं सहायता समूह सदस्यों के आय स्तर में क्रमिक वृध्दि । सहलग्नता परियोजना की एक और महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि बैंकों से सहलग्न 85% के लगभग समूह केवल महिलाओं के हैं ।

स्वयं सहायता समूहों और गैर संगठनों की कार्यप्रणाली के अध्ययन के विचार से ग्रामीण क्षेत्र में उनकी भूमिका के विस्तार के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक ने श्री. एस. के. कालिया उस समय नाबार्ड से प्रबंध निदेशक की अध्यक्षता में नवबंर 1994 में एक कार्यदल का गठन किया जिसमें प्रमुख गैर सरकारी संगठनों के कार्यकर्ता, शिक्षाविद् परामर्शदाता और बैंकर थे । कार्य दल की सिफारिशों अनुवर्ती कार्रवाई के रूप में बैंकों को अप्रैल 1996 में निम्नानुसार सूचित किया गया ।

क) सामान्य् उधार गतिविधि के रूप में स्वयं सहायता समूह उधार

स्वयं सहायता समूह सहलग्नता कार्यक्रम बैंकों की एक सामान्य कारोबार गतिविधि के रूप में माना जाएगा । तदनुसार, बैंकों को सूचित किया गया कि वे अपने नीति तथा कार्यान्वयन, दोनों स्तरों पर स्वयं सहायता समूह को उधार, को अपने ऋण परिचालन मुख्यधारा का ही एक भाग मानें । वे स्वयं सहायता समूह सहलग्नता को अपनी प्रणाली/योजना, अपने अधिकारियों तथा के प्रशिक्षण पाठयक्रम में सम्मिलित करें तथा इसे एक नियमित व्यवसाय गतिविधि के रूप में लागू करें तथा आवधिक रूप से उसकी निगरानी और समीक्षा करें ।

ख) प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अन्तर्गत एक पृथक खंड

बैंकों को अपने स्वयं सहायता समूह उधारों को बिना किसी कठिनाई के रिपोर्ट करने के लिए यह निर्णय लिया गया कि बैंक के उधार रिपोर्ट की जो स्वयं सहायता समूहों और/अथवा गैर सरकारी संगठनों को आगे उन स्वयं सहायता समूहों/स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों/व्यक्तियों अथवा छोटे समूहों को उधार दिया गया, जो स्वयं सहायता समूह बनाने की प्रक्रिया में हैं अर्थात "स्वयं सहायता समूहों को अग्रिम" चाहे स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों को दिए गए ऋण को प्रयोजन कुछ भी रहा हो, स्वयं सहायता समूहों को उधार को उनके द्वारा कमजोर वर्ग को उधार के भाग के रूप में सम्मिलित किया जाना चाहिए ।

ग) सेवा क्षेत्र दृष्टिकोण में सम्मिलित करना

बैंक उन शाखाओं की पहचान करें जिनमें सहलग्नता की संभाव्यता हो तथा ऐसी शाखाओं को आवश्यक समर्थन सेवाएं उपलब्ध कराएं तथा स्वयं सहायता समूहों को उधार अपनी सेवा क्षेत्र योजना में सम्मिलित करें ।

संभाव्यता को कार्यान्वयन करने के मद्देनजर सेवा क्षेत्र शाखाएं स्वयं सहायता समूहों को उधार के लिए अपने कार्यक्रम उसी प्रकार निर्धारित करें जैसा वे प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अन्तर्गत अन्य गतिविधियों के लिए करते हैं ।

"सेवा क्षेत्र ऋण योजनाओं के पृष्ठभूमि कागज" में ब्लॉकवार आधार पर स्वयं सहायता समूहों के साथ कारोबार करने वाली गैर सरकारी संस्थाओं के नाम दिए जाने चाहिए ताकि बैंक शाखाएं गैर सरकारी संगठनों की उत्प्रेरक सेवाओं का लाभ ले सकें।

सेवा क्षेत्र शाखा प्रबंधक प्रभावी सहलग्नता के लिए क्षेत्र के गैर सरकारी संगठनों और स्वयं सहायता समूहों के साथ लगातार बातचीत करें और सम्पर्क बनाएं रखें । यदि काई गैर सरकारी संगठन/स्वयं सहायता समूह को ऐसा विश्वास है कि वह सेवा क्षेत्र शाखा से इतर शाखा के साथ कारोबार कर सकता है और यदि वह शाखा वित्तपोषण के लिए तैयार है तो उस गैर सरकारी संगठन/स्वयं सहायता समूह को विवेकाधिकार है कि वह सेवा क्षेत्र शाखा से इतर शाखा के साथ कारोबार करें । बैंकों द्वारा स्वयं सहायता समूहों को उधार दिए एल बी आर रिपोर्टिंग प्रणाली में सम्मिलित किया जाना चाहिए और उसकी समीक्षा की जानी चाहिए; यह कार्य राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति स्तर से आरंभ किया जा सकता है । तथापि, यह बात ध्यान में रखी जाए कि स्वयं सहायता समूह सहलग्नता ऋण उन्नयन है, न कि लक्ष्य निर्धारित ऋण कार्यक्रम ।

घ) बचत बैंक खाता खोलना

पंजीकृत और अपंजीकृत स्वयं सहायता समूह जो अपने सदस्यों की बचत आदतों को बढ़ाने के कार्य में संलग्न हैं, बैंकों के साथ बचत खाते खोलने के पात्र हैं । यह आवश्यक नहीं है कि इन स्वयं सहायता समूहों ने बचत बैंक खाते खोलने से पहले बैंकों से पहले से ही ऋण सुविधा का उपयोग किया हो ।

ड) मार्जिन और प्रतिभूति मानदण्ड

नाबार्ड के परिचालनगत दिशानिर्देशों के अनुसार स्वयं सहायता समूहों को बैंकों से बचत सहलग्न ऋण स्वीगृत किया जाता है (यह बचत और ऋण अनुपात 1 : 1 से 1 :4 तक भिन्न-भिन्न होता है)। अनुभव यह दर्शाता है कि समूह के महत्व और दबाव से स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों से अत्यधिक वसूली हुई है । बैंकों को सूचित किया गया कि बैंकों को मार्जिन, प्रतिभूति मानदण्डों इत्यादि के संबंध में दी गई लचीलेपन की अनुमति के अन्तर्गत ये प्रायोगिक परियोजनाएं इस प्रायोगिक चरण के बाद भी सहलग्नता कार्यक्रम के अन्तर्गत बने रहेंगे ।

च) दस्तावेजीकरण

उधार के स्वरूप और उधारकर्ताओं के स्तर को ध्यान में रखते हुए, बैंक स्वयं सहायता समूहों के लिए उधार देने के लिए आसान दस्तावेजीकरण निर्धारित करें ।

छ) स्वयं सहायता समूहों में चूककर्ताओं की उपस्थिति

स्वयं सहायता समूहों के कुछ सदस्यों तथा/अथवा उनके परिवारों द्वारा बैंके वित्त के प्रति चूक को सामान्यताया स्वयं सहायता समूह के आड़े नहीं आना चाहिए, बशर्ते कि स्वयं सहायता समूह ने चूक न की हो । तथापि, स्वयं सहायता समूह द्वारा बैंक ऋण का उपयोग बैंक के चूककर्ता सदस्य को देने के लिए न किया जाए ।

ज) प्रशिक्षण

सहलग्नता कार्यक्रम में आधार स्तर के पदाधिकारियों और बैंक के नियंत्रक तथा अन्य वरिष्ठ अधिकारियों का सुग्राहीकरण एक सीत्वपूर्ण कदम होगा । आधार स्तर और नियंत्रक कार्यालय स्तर पर बैंक अधिकारियों/स्टाफ की प्रशिक्षण अपसश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए बैंक स्वयं सहायता समूहों की सहलग्नता परियोजना के आन्तरिककरण के लिए आवश्यक उपााय कर सकते हैं तथा आधार स्तर के कार्यकर्ताओं के लिए अल्पावधि कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं । साथ ही, उनके मध्यम स्तर के नियंत्रक अधिकारियों तथा वरिष्ठ अधिकारियों के लिए उचित जागरूकता/सुग्राहीकरण कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं ।

झ) स्वयं सहायता समूह उधार की निगरानी और समीक्षा

स्वयं सहायता समूहों की बढ़ती हुई संभाव्यता और स्वयं सहायता समूहों को उधार देने के संबंध में बैंक शाखाओं को जानकारी न होने के मद्देनजर बैंकों को विभिन्न स्तरों पर नियमित रूप से प्रगति की निगरानी करनी चाहिए । साथ ही, बैंकों द्वारा नियमित अन्तराल पर कार्यक्रम की प्रगति की समीक्षा की जाए । प्रत्येक वर्ष 30 सितंबर और 31 मार्च को समाप्त तिमाही को छिमाही आधार पर अनुबंध घ् के प्राफार्मा में भारतीय रिज़र्व बैंक (ग्रा.आ.ऋ.वि.) तथा नाबार्ड (एम.सी.आइ.डी.), मुम्बई को प्रगति रिपोर्ट भेजी जाए ताकि वह संबंधित रिपोर्ट की छमाही के 30 दिन के भीतर पहुंच जाए ।

असंगठित क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराने के लिए चल रहे स्वयं सहायता समूह बैंक सहलग्नता कार्यक्रम को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बैंकों को जनवरी 2004 में सूचित किया गया कि राज्य स्तरीय बैंकर्ससमिति और जिला स्तरीय बैंकर्स समिति की बैठकों में स्वयं सहायता समूह बैंक सहलग्नता कार्यक्रम की निगरानी को कार्यसूची की एक मद के रूप में नियमित रूप से रखा जाना चाहिए ।

3. माइक्रो वित्त गतिविधियों में कार्यरत गैर बैकिंग वित्तीय कम्पनियाँ

नाबार्ड द्वारा 1999 में स्थापित माइक्रो वित्त के लिए समर्थक नीति और विनियामक ढाँचे पर कार्य दल ने सिफारिश की कि माइक्रो वित्त गतिविधियों में लगे स्वयं सहायता समूहों अथवा गैर सरकारी संगठनों को इस नीति और विनियामक ढांचे से बढ़ावा मिलना चाहिए । तदनुसार, यह निर्णय लिया गया कि ऐसी गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों का छूट दे देनी चाहिए जा (व) माइक्रो वित्त (वव) कम्पनी अधिनियम 1965 की धारा 25 के अन्तर्गत लाइसेंस प्राप्त हो (ववव) जो भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 की धारा 45 - 1ए (पंजीकरण), 45 - 1बी (चल अस्तियों का अनुरक्षण) तथा 45 - सी (प्रारक्षित निधि में लाभ का अन्तरण) के क्षेत्र में कार्यरत हो ।

बैंकिंग प्रणाली से कृषि और उससे सम्बन्धित गतिविधियों के लिए ऋण उपलब्ध कराने पर परामर्शदात्री समिति की सिफारिशों के आधार पर, वर्ष 2004-05 के वार्षिक नीति विवरण में यह घोषण की गई है कि जामाकर्ताओं के हितों की रक्षा की आवश्यकता के मद्देनजर, माइक्रो वित्त संस्थाओं को तब तक जमाराशियां स्वीकार करने की अनुमति नहीं दी जाएगी जब तक वे रिजॅर्व के वर्तमान विनियामक ढांचे का अनुपालन नहीं करते ।

4. ब्याज दरें

बैंकों द्वारा माइक्रो ऋण संस्थाओं अथवा माइक्रो ऋण संस्थाओं द्वारा स्वयं सहायता समूहों/सदस्य हिताधिकारियों को दिए गए ऋणों पर लागू होने वाली ब्याज दरें उनके विवेकाधिकार पर छोड दी जानी चाहिए ।

5. मुख्य धारा में शामिल करना तथा पहुंच

वर्ष 1999-2000 के लिए गवर्नर की मौद्रिक और ऋण नीति में की गई घोषण के अनुसार माइक्रो ऋण उपलब्ध कराने में वृध्दि हेतु उपाय संझाने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक में एक माइक्रो ऋण विशेष कक्ष की स्थापना की गई । इसी बीच, नाबार्ड द्वारा भी माइक्रो ऋण हेतु समर्थक नीति और विनियामक ढांचे पर एक कार्यदल का गठन किया गया । उनकी सिफारिशों के आधार पर बैंकों को सूचित किया गया कि वे निम्नलिखित दिशानिर्देशों को पालन करें ताकि माइक्रो ऋण को मुख्य धारा में शामिल किया जा सके, माइक्रो ऋण उपलब्ध कराने वालों की पहुंच बढ़ाई जा सके ।

(व) बैंक माइक्रो क्रेडिट देने के लिए अपने मॉडल बना सकते हैं अथवा अन्य प्रणाली/मध्यस्थ का चयन कर सकते हैं । वे ऐसी उपयुक्त शाखाओं/पॉकेटों/क्षेत्रों को चयन कर सकते हैं जहां माइक्रो वित्त कार्यक्रम लागू किए जा सकते हैं । इसे एक चयनित छोटे क्षेत्र से आरंभ करके उसी क्षेत्रे में गरीबों पर पूरी तरह केन्द्रित करना तथा उसके बाद अन्य चयनित क्षेत्रों में इसी व्यवस्था का अनुभव के आधार पर लागू करना ज्यादा उपयोगी रहेगा । बैंकों द्वारा व्यक्तियों का सीधे ही अथवा किसी मध्यस्थ द्वारा उपलब्ध कराया गया माइक्रो ऋण प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार का एक हिस्सा माना जाएगा ।

(वव) माइक्रो ऋण संगठनों के चयन के लिए मानदण्ड निर्धारित नहीं किए गए हैं । तथापि, बैंकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे उचित साख, सही रिकार्ड, खातों के अनुरक्षण की प्रणाली, नियमित रूप से लेखा-परीक्षित रिकार्ड और पर्यवेक्षण और अनुवर्ती कार्रवाई के लिए श्रम शक्ति वाले माइक्रो ऋण संगठनों से ही कारोबार करें ।

(ववव) बैंक आधार वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए अपने उधार मानदण्ड निर्धारित करें । वे अपने ऋण और जमा उत्पाद तथा उनसे संबंधित शर्तें और ऋण का आकार, इकाई लागत, इकाई को आकार, परिपक्वता अवधि, रियायत अवधि और मार्जिन इत्यादि स्वयं निर्धारित करें । इसके आशय यह है कि माइक्रो उधार के संबंध में, प्रचलित स्थानीय स्थिति तथा गरीबों को वित्त उपलब्ध कराने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, अधिकतम लचीलापन उपलब्ध कराया जाए । अत: ऐसे ऋणों में गरीबों के लिए विथन्न कृषि और गैर कृषि गतिविधियों के लिए उपभा्रग और उत्पादन के लिए ही ऋण सम्मिलित न किया जाए बल्कि उनकी आवास और आवास सुधार जैसी आवश्यकताओं को भी सम्मिलित किया जाए ।

(वख्) प्रत्येक बैंक की शाखा ऋण योजना, ब्लॉक ऋण योजना और राज्य ऋण योजना में काइक्रो ऋण को सम्मिलित किया जाना चाहिए । जबकि माइक्रो क्रेडिट के लिए कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया गया है, इन योजनाओं को तैयार करने में माइक्रो ऋण क्षेत्र को सबसे अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिए । माइक्रो ऋण बैंक की कम्पनी ऋण योजना को एक महत्वपूर्ण भाग होना चाहिए तथा इसकी समीक्षा तिमाही आधार पर उच्चतम स्तर पर की जारी चाहिए ।

(ख्) माइक्रो ऋण उपलब्ध कराने में संवर्धन के लिए न्यूनतम प्रक्रिया और दस्तावेजीकरण वाली आसान प्रणाली एक पूर्व शर्त होनी चाहिए । अत: बैंकों को अपने शाखा प्रबंधकों को स्वीकृति हेतु शक्तियां प्रदान करके माइक्रो ऋण शीघ्र स्वीकृत और संवितरित करने की व्यवस्थ करनी चाहिए तथा परिचालनगत सभी व्यवधानों का दूर करना चाहिए । ऋण आवेदन फार्मों, प्रक्रिया और दस्तावेजों को आसान बताना चाहिए ताकि शीघ्र और सुविधा जनक रूप से माइक्रो ऋण उपलब्ध कराया जा सके ।

6. सुपुर्दगी मुद्दे

रिज़र्व बैंक ने माइक्रो वित्त सुपुर्दगी से संबंधित विभिन्न मुद्दों की जांच के लिए अक्तूबर 2002 में चाार अनौपचारिक समूहों का गठन किया । इन समूहों की सिफारिशों के आधार पर तथा वर्ष 2003-04 के लिए गवर्नर के मौद्रिक और ऋण नीति की मध्यवधि समीक्षा के वक्तव्य के पैराग्राफ 55 में की गई घोषणा के अनुसार बैंकों को निम्नानुसार सूचित किया जाता है :

(i) बैंकों को अपनी शाखाओं को स्वयं सहायता समूहों को वित्तपोषित करने और उनके साथ सहलग्नता स्थापित करने के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन देना चाहिए ताकि प्रक्रिया बिलकुल सरल हो तथा स्थानीय स्थिति से मेल खाने वाली ऐसी प्रक्रिया में पर्याप्त लचीलापन हो ।

(ii) स्वयं सहायता समूहों की कार्यप्रणाली का सामूहिक प्रगति उन पर ही छोडॅ दी जाए और न उन्हें विनियमित किया जाए और न ही उन पर औपचारिक ढांचा थोपा जाए ।

(iii) स्वयं सहायता समूहों का माइक्रो वित्तपोषण दृष्टिकोण बिलकुल बाधारहित होना चाहिए तथा उनमें उपभोग व्यय भी सम्मिलित किया जाए ।


परिशिष्ट

मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची

क्रम सं.

परिपत्र सं.

तारीख

विषय

1

ग्राआऋवि.सं.प्लान.बीसी.13/पीएल-09.22/91/92

24 जुलाई 1991

ग्रामीण गरीबों की बैंकिंग तक पहुच में सुधार -
मध्यस्थ एजेंसियों की भूमिका - स्वयं सहायता समूह

2

ग्राआऋवि.सं.प्लान.बीसी.120/ 04.09.22/95-96

2 अप्रैल 1996

बैंकों से स्वयं सहायता समूहों को सहलग्न करना - गैर
सरकारी संगठनों और स्वयं सहायता समूहों पर कार्यदल -
सिफारिशें - अनुवर्ती कार्रवाई

3

बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.22/ 13.01.08/98

10 फरवरी 1998

स्वयं सहायता समूहों के नाम में बचत बैंक खाते खोलना

4

ग्राआऋवि.सं.पीएल.बीसी.12/ 04.09.22/98-99

24 जुलाई 1998

बैंकों के साथ स्वयं सहायता समूहों की सहलग्नता

5

ग्राआऋवि.सं.प्लान.बीसी.94/ 04.09.01/98-99

24 अप्रैल 1999

माइक्रो ऋण संगठनों को ऋण - ब्याज दरें

6

ग्राआऋवि.सं.पीएल.बीसी.28/04.09.22/99-2000

30 सितंबर 1999

माइक्रो ऋण संगठनों/स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से ऋण सुपुर्दगी

7

गैबैंपवि(पीडी)सीसीसं. 12/02.01/99-2000

13 जनवरी 2000

गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनी विनियमावली में सुधार

8

ग्राआऋवि.सं.पीएल.बीसी.62/ 04.09.01/99-2000

18 फरवरी 2000

माइक्रो ऋण

9

ग्राआऋवि.सं.प्लान.बीसी.42/ 04.09.22/2003-04

3 नवंबर 2003

माइक्रो वित्त

10

ग्राआऋवि.सं.प्लान.बीसी.61/04.09.22/2003-04

9 जनवरी 2004

असंगठित क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराना

11

भारिबैं/385/2004-05 ग्राआऋवि.सं.प्लान.बीसी

3 मार्च 2005

माइक्रो ऋण के अन्तर्गत प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करना ।


अनुबंध I

माइक्रो ऋण प्रगति रिपोर्ट

मार्च/सितंबर के अन्त में

बैंक का नाम : ------------------

भाग ए - स्वयं सहायता समूह

बैंक सहलग्नता कार्यक्रम

बैंक में बचत खाता रखने वाले स्वयं सहायता समूह

   

सं.

राशि

स्वयं सहायता समूहों की कुल संख्या

इनमें से स्वर्णजयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना तथा सरकार द्वारा प्रायोजित अन्य योजनाओं के अन्तर्गत आने

वालों की संख्या

   

केवल महिलाओं के स्वयं सहायता समूह

इनमें से स्वर्णजयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना तथा सरकार द्वारा प्रायोजित अन्य योजनाओं के अन्तर्गत आने

वालों की संख्या

   


1. बैंकों द्वारा सीधे वित्तपोषित स्वयं सहायता समूह

   

वित्तपोषित स्वयं सहायता समूहों की सं.

सदस्यों की संख्या

हिताधिकारियों की संख्या

संवितरित राशि

संचयी

           

स्वयं सहायता समूहों की संख्या

सदस्यों की संख्या

हिताधिकारियों की संख्या

संवितरित राशि

बकाया राशि

मांग की तुलना में वसूल ी की प्रतिशतता

स्वयं सहायता समूहों की कुल संख्या

इनमें से स्वर्णजयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना तथा सरकार द्वारा प्रायोजित अन्य योजनाओं के अन्तर्गत आने वालेां की संख्या

                   

केवल महिलाओं के स्वयं सहायता समूह

इनमें से स्वर्णजयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना तथा सरकार द्वारा प्रायोजित अन्य योजनाओं के अन्तर्गत आने वालों की संख्या

                   


2. गैर सरकारी संगठनों के सहयोग से सीधे वित्तपोषित स्वयं सहायता समूह

   

वित्तपोषित स्वयं सहायता समूहों की सं.

सदस्यों की संख्या

हिताधिकारियों की संख्या

संवितरित राशि

संचयी

           

स्वयं सहायता समूहों की संख्या

सदस्यों की संख्या

हिताधिकारियों की संख्या

संवितरित राशि

बकाया राशि

मांग
की
तुलना
में
वसूली
की प्रतिशतता

क.

ख.

स्वयं सहायता समूहों की कुल संख्या

इनमें से स्वर्णजयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना
तथा सरकार
द्वारा प्रायोजित अन्य योजनाओं के
अन्तर्गत आने
वालों की संख्या

                   

क.

ख.

केवल महिलाओं के स्वयं सहायता समूह

इनमें से स्वर्णजयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना
तथा
सरकार
द्वारा प्रायोजित अन्य योजनाओं के
अन्तर्गत आने
वालों की संख्या

                   

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