मास्टर परिपत्र - बैंकों में हिन्दी का प्रयोग - आरबीआई - Reserve Bank of India
मास्टर परिपत्र - बैंकों में हिन्दी का प्रयोग
आरबीआई / 2004-05/111
बैंपविवि. सं.राजभाषा. बीसी.25 /06.11.04/2004-05
10 अगस्त 2004
अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक,
सरकारी क्षेत्र के सभी बैंक
प्रिय महोदय,
मास्टर परिपत्र - बैंकों में हिन्दी का प्रयोग
सरकारी क्षेत्र के बैंकों में हिन्दी के प्रयोग के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 30 जून 2004 तक जारी किये गये अनुदेशों / दिशानिर्देशों को समेकित कर एक मास्टर परिपत्र तैयार किया गया है। इस मास्टर परिपत्र में, 30 जून 2004 तक जारी किये गये अनुदेशों को अद्यतन बना दिया गया है और इसे रिज़र्व बैंक की वेबसाइट (www.rbi.org.in) पर भी उपलब्ध करा दिया गया है।
2. यह उल्लेखनीय है कि परिशिष्ट में सूचीबद्ध परिपत्रों में निहित सभी अनुदेशों को इसमें समेकित कर दिया गया है ।
भवदीय,
(पी.विजय भास्कर)
मुख्य महाप्रबंधक
संलग्नक : यथोक्त
विषय-सूची
बैंकों में हिन्दी के प्रयोग के संबंध में
मास्टर परिपत्र
क. सरकारी क्षेत्र के बैंकों में हिन्दी का प्रयोग
सरकारी क्षेत्र के बैंकों में हिन्दी का प्रयोग राजभाषा अधिनियम, 1963 (1967 में यथासंशोधित) और अधिनियम के अंतर्गत, गफ्ह मंत्रालय, राजभाषा विभाग, भारत सरकार द्वारा बनाये गये राजभाषा नियम, 1976 द्वारा नियंत्रित होता है । अधिनियम और नियमों के उपबंधों के अनुसार भारत सरकार, गफ्ह मंत्रालय, राजभाषा विभाग हिन्दी के प्रयोग के संबंध में व्यापक दिशानिर्देश तथा वार्षिक कार्यक्रम तैयार करता है । सरकारी क्षेत्र के बैंकों में हिन्दी के प्रयोग में हुई प्रगति की निगरानी भारतीय रिज़र्व बैंक के बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग, केंद्रीय कार्यालय द्वारा की जाती है । भारत सरकार, वित्त मंत्रालय (बैंकिंग प्रभाग) के निर्देशों के अनुसार सरकारी क्षेत्र के बैंकों की राजभाषा कार्यान्वयन समिति का गठन 1976 में किया गया । बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग के मुख्य महाप्रबंधक इस समिति के पदेन अध्यक्ष और सरकारी क्षेत्र के बैंकों के महाप्रबंधक स्तर के वरिष्ठ कार्यपालक सदस्य हैं । यह समिति तिमाही बैठकों के माध्यम से राजभाषा नीति के कार्यान्वयन में हुई प्रगति की समीक्षा करती है ।
भारत सरकार से प्राप्त दिशानिर्देशों /अनुदेशों और राजभाषा कार्यान्वयन समिति की तिमाही बैठकों में लिये गये निर्णयों के आधार पर बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग राजभाषा नीति संबंधी अपेक्षाओं को पूरा करने तथा भारत सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सरकारी क्षेत्र के बैंकों को दिशानिर्देश /अनुदेश जारी करता है । बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग द्वारा इस संबंध में जारी किये गये अनुदेश /दिशानिर्देश परवर्ती पैराग्राफों में दिये गये हैं (प्रसंगवश राजभाषा नीति सरकारी क्षेत्र के बैंकों से भिन्न बैंकों पर लागू नहीं होती है, यद्यपि ग्राहक सेवा हिंदी में प्रदान करने के संबंध में निजी क्षेत्र के बैंकों को भी कुछ अनुदेश जारी किये गये थे । इस प्रकार परवर्ती पैराग्राफों में सरकारी क्षेत्र के बैंकों को ‘‘बैंकों’’ के रूप में निर्दिष्ट किया गया है ) ।
क) व) केन्द्र सरकार के कार्यालयों* , राज्य सरकारों** और जनसाधारण से प्राप्त होने वाले हिन्दी पत्रों पर विचार किया जाना चाहिए तथा उनका उत्तर अनिवार्यत: हिन्दी में ही दिया जाना चाहिए, बैंक या उसका कार्यालय /उसकी शाखा चाहे किसी भी क्षेत्र में स्थित हो ।
वव) हिन्दी में प्राप्त सभी पत्रों का निपटान त्वरित गति से किया जाना चाहिए ।
ख) भारत सरकार के अनुदेशों के अनुसार, जब तक कोई हिन्दी पत्र विधिव या तकनीकी प्रवफ्ति का न हो तब तक ऐसे हिन्दी पत्रों के अंग्रेजी अनुवाद मांगने की प्रवफ्त्ति हतोत्साहित की जानी चाहिए । फिर भी हिन्दी में प्राप्त सरल पत्रों को अंग्रेजी अनुवाद के लिए हिन्दी अनुभागों में सामान्यत: नहीं भेजा जाना चाहिए ।
ग) बैंक के कार्यालयों द्वारा हिन्दी भाषी क्षेत्रों में भेजे गये पत्रों के लिफाफों पर पते हिन्दी में लिखे जाने चाहिए (यह निर्णय राजभाषा विभाग, गफ्ह मंत्रालय, भारत सरकार के 16 मई 1990 के कार्यालय ज्ञापन सं. 12024/4/90-राभा (बी-2) द्वारा "ख" क्षेत्र पर भी लागू कर दिया गया है । )
3. हिन्दी में लिखे गये और हिन्दी में हस्ताक्षरित चेक स्वीकार करना
क) (व) हिन्दी भाषी क्षेत्र में स्थित बैंक के कार्यालयों को अपने बैंकिंग हॉल में हिन्दी और अंग्रेजी में इस आशय का नोटिस बोड़ प्रमुखता से प्रदर्शित करना चाहिए कि बैंक हिन्दी में लिखे /हस्ताक्षरित चेक स्वीकार करता है ।
(वव) हिन्दी में लिखित, पफ्ष्ठांकित और हस्ताक्षरित चेक, किसी अतिरिक्त औपचारिकता का पालन किए बिना, भुगतान हेतु स्वीकार किये जाने चाहिए।
(ववव) सरकारी कार्यालयों के उन आहरण अधिकारियों को, जिनके नमूना हस्ताक्षर बैंकों के कार्यालयों में पंजीवफ्त हैं, चेकों पर हस्ताक्षर करने के लिए केवल एक भाषा अर्थात् हिन्दी या अंग्रेजी, का प्रयोग करने की अनुमति दी जानी चाहिए ।
ख) राजभाषा कार्यान्वयन समिति की 18 जनवरी 1994 को आयोजित की गई 58वीं बैठक में लिये गये निर्णय के अनुसार सभी बैंकों को, किसी अतिरिक्त औपचारिकता का पालन किये बिना, हिन्दी में हस्ताक्षरित /लिखे गये चेक स्वीकार करने चाहिए ।
4. सरकारी दस्तावेजों पर हिन्दी में हस्ताक्षर
क) अंग्रेजी में तैयार किये गये सरकारी दस्तावेजों पर हिन्दी में हस्ताक्षर किये जा सकते हैं । फिर भी हस्ताक्षर के नीचे हस्ताक्षर करने वाले का नाम अंग्रेजी में टाइप कर दिया जाना चाहिए । वित्तीय विषयों पर तैयार किये गये दस्तावेज़ों (वेतन बिलों सहित) पर भी हिन्दी में हस्ताक्षर किये जा सकते हैं; लेकिन संबंधित अधिकारी को ऐसे दस्तावेजों पर केवल एक भाषा में ही अपने हस्ताक्षर करने चाहिए ताकि भ्रम या धोखाधड़ी से बचा जा सके ।
ख) ‘‘सरकारी दस्तावेज़ों’’ अभिव्यक्ति के अंतर्गत ऐसे सभी नोट, ड्राफ्ट /पत्रों की स्वच्छ प्रतियां, मंजूरियां /रजिस्टर इत्यादि शामिल होंगे जहां कोई व्यक्ति, अपनी व्यक्तिगत हैसियत से हस्ताक्षर न करके, अपनी सरकारी पदस्थिति में हस्ताक्षर करता है ।
ग) सरकारी दस्तावेज़ों /पत्रों पर किसी भी भाषा में हस्ताक्षर किया जा सकता है क्याेंकि किसी व्यक्ति का हस्ताक्षर केवल एक प्रतीक होता है और ऐसा प्रतीक किसी भी भाषा में हो सकता है ।
5. राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 3(3) का कार्यान्वयन
व) राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 3(3) के अनुसार निम्नलिखित दस्तावेज हिन्दी और अंग्रेजी में अनिवार्यत: साथ-साथ जारी किये जाने चाहिए :
क) संकल्प, सामान्य आदेश* और प्रेस विज्ञप्तियां /प्रकाशनी /नोट,
ख) नोटिस**
ग) नियम, प्रशासनिक और अन्य रिपोर्टें इत्यादि जिन्हें संसद के किसी सदन के पटल पर रखे जाने की आवश्यकता पड़े
घ) भारत के राजपत्र में प्रकाशित की जानेवाली अधिसूचनाएं
ङ) बैंकों द्वारा निष्पादित सभी प्रकार की संविदाएं और करार
- बैंकों को चाहिए कि वे संशोधित परिभाषाओं /स्पष्टीकरणों (अक्तूबर 1991 में निर्गत) के अनुसार अपनी तिमाही प्रगति रिपोर्टों में आंकड़ें /सूचनाएं भेजें ।
6. विज्ञापन द्विभाषिक रूप में जारी करना
क) ऐसे विज्ञापन, प्रेस विज्ञप्तियां /प्रेस प्रकाशनी इत्यादि जो पूरे भारतवर्ष के लिए तथा हिन्दी भाषी क्षेत्रों के लिए हों, हिन्दी और अंग्रेजी में साथ-साथ जारी किये जाने चाहिए (हिन्दी विज्ञापन हिन्दी समाचारपत्रों में और अंग्रेजी विज्ञापन अंग्रेजी समाचारपत्रों में) ।
ख) केन्द्र सरकार द्वारा /की ओर से या केन्द्र सरकार के स्वामित्वाधीन या केन्द्र सरकार द्वारा नियंत्रित किसी निगम या कंपनी द्वारा या ऐसे निगम या कंपनी के किसी अन्य कार्यालय द्वारा जारी किये गये नोटिस हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं में, अर्थात् द्विभाषिक होने चाहिए ।
7. वार्षिक रिपोर्टों का द्विभाषीकरण
वार्षिक रिपोर्टें हिन्दी और अंग्रेजी में साथ-साथ प्रकाशित की जानी चाहिए । इस रिपोर्ट में वर्ष के दौरान हिन्दी के प्रयोग में हुई प्रगति के संबंध में एक अलग अध्याय या खंड दिया जाना चाहिए ।
8.‘ए गवर्नमेंट ऑफ इंडिया अंडरटेकिंग’ का हिन्दी रूपांतर
बैंकों को चाहिए कि वे अंग्रेजी अभिव्यक्ति ‘ए गवर्नमेंट ऑफ इंडिया अंडरटेकिंग’ के लिए हिन्दी में ‘‘भारत सरकार का उपक्रम’’ लिखें ।
9. लेखन-सामग्री की मदों का द्विभाषीकरण
क) (व) राजभाषा नियम, 1976 के नियम 11(3) के अनुसार सभी रजिस्टर, फाइल कवर इत्यादि द्विभाषिक रूप में तैयार किये जाने चाहिए तथा उनमें हिन्दी रूपांतर अंग्रेजी रूपांतर से पहले होना चाहिए ।
(वव) पत्रशीर्ष इत्यादि हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में मुद्रित कराये जाने चाहिए तथा उनमें हिन्दी रूपांतर अंग्रेजी रूपांतर से पहले होना चाहिए । पत्रशीर्षों में पूरी सामग्री (जिसमें बैंक का प्रतीक भी शामिल होगा, केवल बैंक का नाम ही नहीं) द्विभाषिक होनी चाहिए ।
(ववव) बैंकों द्वारा प्रयोग में लाये जा रहे लिफाफों पर बैंकों के नाम और पते द्विभाषिक रूप में होने चाहिए तथा हिन्दी रूपांतर अंग्रेजी रूपांतर से पहले होना चाहिए ।
(वख्) सीलें और रबर की मुहरें द्विभाषिक रूप में तैयार की जानी चाहिए । यद्यपि समाशोधन गफ्ह की मुहरें द्विभाषिक रूप में तैयार की जानी चाहिए, तथापि यदि सभी सदस्य बैंक सहमत हों तो "क" क्षेत्र में ऐसी मुहरें केवल हिन्दी में तैयार करायी जा सकती हैं ।
(ख्) डायरियां, वाल कैलेंडर, डेस्क कैलेंडर इत्यादि द्विभाषिक रूप में मुद्रित कराये जाने चाहिए । केवल लीजेंड ही नहीं, बल्कि उनमें दिये जाने वाले विवरण भी द्विभाषिक रूप में मुद्रित कराना वांछनीय है ।
ख) (व) बैंकों को चाहिए कि वे लेखनसामग्री की मदें, राजभाषा नीति के अनुसार हिन्दी और अंग्रेजी में (द्विभाषिक रूप में), और यदि आवश्यक हो तो त्रिभाषिक रूप में भी अर्थात् हिन्दी, अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषा में मुद्रित करायें ।
(वव) जहां तक जनता के साथ पत्रव्यवहार में क्षेत्रीय भाषा के प्रयोग का सवाल है, भारत सरकार ने स्पष्टीकरण दिया था कि संविधान की धारा 343 (1) के अंतर्गत हिन्दी संघ सरकार की राजभाषा घोषित की गयी है । (1960 में राष्ट्रपति द्वारा एक अध्यादेश जारी किये जाने के बाद) संसद द्वारा राजभाषा अधिनियम, 1963 पारित किया जा चुका है जिसे 1967 में संसद द्वारा संशोधित किया गया है । सांविधानिक और सांविधिक प्रावधानों से यह स्पष्ट है कि संघ सरकार के कार्यालयीन कार्यों के लिए हिन्दी और अंग्रेजी का प्रयोग, न कि किसी क्षेत्रीय भाषा का प्रयोग, अधिवफ्त किया गया है। इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 345 के अनुसार राज्यों के कार्यालयीन कार्यों के लिए क्षेत्रीय भाषाओं का प्रयोग अधिवफ्त किया गया है ।
10. नाम बोड़, पदनाम बोड़, काउंटर बोड़, साइन बोड़ इत्यादि प्रदर्शित करना
क) बैंकों के सभी साइन बोड़, काउंटर बोड़, नाम बोड़ और अन्य बोड़, प्लेकाड़ इत्यादि हिन्दी भाषी क्षेत्रों में, अंग्रेजी के अलावा हिन्दी में भी प्रदर्शित किये जाने चाहिए ।
ख) बैंकों को चाहिए कि वे हिन्दी भाषी क्षेत्रों में स्थित शाखाओं में इस आशय के नोटिस बोड़ लगायें कि हिन्दी में भरे गये फार्म इत्यादि वहां स्वीकार किये जाते हैं ।
ग) बैंकों के कार्यालयों /अधिकारियों /कर्मचारियों के नाम /पदनाम के बोड़ तथा विभागों /प्रभागों के नामबोड़ इत्यादि क और ख क्षेत्रों में फिलहाल द्विभाषिक रूप में लगाये जायें ।
11. आंतरिक परिपत्रों, कार्यालय आदेशों, आमंत्रण पत्रों इत्यादि के लिए हिन्दी का प्रयोग
- बैंकों के क और ख क्षेत्रों में स्थित कार्यालयों में स्टाफ से संबंधित सामान्य आदेश, परिपत्र, स्थायी अनुदेश इत्यादि द्विभाषिक रूप में जारी किये जाने चाहिए ।
- आरंभ में, बैंकों के स्टाफ सदस्यों को जारी किये जाने वाले कारण बताओ नोटिस और आरोपपत्र केवल क क्षेत्र में ही द्विभाषिक रूप में जारी किये जाने चाहिए ।
- सरकारी /कार्यालयीन समारोहों के लिए निमंत्रणपत्र हिन्दी और अंग्रेजी - दोनों भाषाओं में जारी किये जाने चाहिए । ऐसे निमंत्रणपत्र जहां भी आवश्यक हो, क्षेत्रीय भाषा सहित त्रिभाषिक रूप में मुद्रित कराये जाने चाहिए । ऐसे निमंत्रणपत्रों में त्रिभाषिक रूप में भाषा का क्रम (व) क्षेत्रीय भाषा, (वव) हिन्दी और (ववव) अंग्रेजी होना चाहिए ।
12. अखिल भारतीय स्तर के सम्मेलनों के लिए कार्यसूची से संबंधित नोट और कार्यवाही द्विभाषिक रूप में जारी करना
जिन सम्मेलनों में हिन्दी भाषी राज्यों के गैर-सरकारी व्यक्तियों के साथ-साथ मंत्रियों को भी आमंत्रित किया गया हो तथा ऐसे सम्मेलनों में जहां हिन्दी से संबंधित मामलों पर विचार-विमर्श किया जाने वाला हो, तथा जिनमें गैर सरकारी व्यक्तियों को भी निमंत्रित किया गया हो, उनकी कार्यसूची से संबंधित टिप्पणियां और कार्यवाही हिन्दी और अंग्रेजी में साथ-साथ जारी की जायें । जनहित से संबंधित अखिल भारत स्तर के उन सम्मेलनों की कार्यसूची से संबंधित टिप्पणियां और कार्यवाही, जिनमें मंत्री और गैर- सरकारी व्यक्ति भाग लेते हों, द्विभाषिक रूप में जारी की जानी चाहिए ।
13. हिन्दी विभागों /अनुभागों /कक्षों इत्यादि की स्थापना
बैंकों के कार्यालयों में उपयुक्त हिन्दी स्टाफ अर्थात् हिन्दी अधिकारी, अनुवादक, लिपिक वर्गीय कर्मचारी, हिन्दी टंकक, हिन्दी आशुलिपिक इत्यादि के साथ हिन्दी कक्षों /अनुभागों /विभागों की स्थापना की जानी चाहिए । इन कक्षों इत्यादि में पर्याप्त संख्या में हिन्दी टाइपराइटर उपलब्ध कराये जाने चाहिए तथा सभी राजभाषा अधिकारियों को द्विभाषिक सॉफ्टवेयर की सुविधा वाले पर्सनल कंप्यूटर्स उपलब्ध कराये जाने चाहिए। प्रधान कार्यालयों और आंचलिक /क्षेत्रीय कार्यालयों तथा प्रशिक्षण महाविद्यालयों में स्थित राजभाषा विभागों में इंटरनेट कनेक्शन भी उपलब्ध कराये जाने चाहिए ।
14. हिन्दी संवर्ग का निर्माण और हिन्दी पदों का भरा जाना
क) बैंकों को, भारत सरकार, वित्त मंत्रालय (बैंकिंग प्रभाग) द्वारा निर्धारित स्टाफिंग मानदंडों के अनुसार विभिन्न स्तरों पर राजभाषा अधिकारियों की तैनाती सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी उपाय करने चाहिए ।
ख) बैंकों को राजभाषा सवंर्ग के निर्माण तथा संबंधित रिक्तियों को भरने के लिए, संसदीय राजभाषा समिति की अपेक्षाओं के अनुसार, आवश्यक कदम उठाने चाहिए ।
15. हिन्दी अधिकारियों के कर्तव्य
हिन्दी अधिकारियों को राजभाषा अधिनियम और राजभाषा नियम के प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए और अधिक रुचि लेनी चाहिए । हिन्दी अधिकारियों द्वारा किये जाने वाले कार्य निम्नलिखित प्रकार के होंगे :
- हिन्दी और अंग्रेजी में अनुवाद और उसकी जांच तथा ऐसे अनुवाद की व्यवस्था का पर्यवेक्षण;
- राजभाषा अधिनियम की अपेक्षाओं के अनुसार अनिवार्य /आवश्यक प्रयोजनों के लिए हिन्दी का प्रयोग सुनिश्चित करना;
- विभिन्न कार्यालयीन /सरकारी प्रयोजनों के लिए हिन्दी के प्रगामी प्रयोग के संबंध में प्राप्त अनुदेशों का कार्यान्वयन;
- विभागीय और प्रधान कार्यालय स्तर पर राजभाषा कार्यान्वयन समितियों का प्रभावी ढंग से कार्य करना;
- कार्यालयीन कार्य में हिन्दी के प्रगामी प्रयोग के लिए संदर्भ साहित्य तैयार करके अनुसंधान, संदर्भ और समन्वय कार्य से संबंधित आवश्यकताओं को पूरा करना, हिन्दी सीखने और कार्यालयीन कार्यों में हिन्दी के प्रयोग के लिए कार्यशालाएं आयोजित करना, प्रशिक्षण देना तथा अधिकारियों /स्टाफ को आवश्यक सहायता और मार्गदर्शन प्रदान करना।
16. हिन्दी कक्षों /अनुभागों /विभागों और हिन्दी अधिकारियों के नामों में परिवर्तन
बैंकों के हिन्दी कक्षों /अनुभागों /विभागों और हिन्दी अधिकारियों के नाम राजभाषा कक्ष /अनुभाग /विभाग और राजभाषा अधिकारी कर दिये जायें ।
17. तिमाही प्रगति रिपोर्टें और अन्य रिपोर्टें प्रस्तुत करना
क) हिन्दी के प्रयोग के संबंध में क्षेत्रवार तिमाही रिपोर्टें भारतीय रिज़र्व बैंक, बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग, केंद्रीय कार्यालय को भारतीय रिज़र्व बैंक, बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग के दिनांक 21 जून 2000 के पत्र बैंपविवि. बीसी. सं.185/06.11.04/ 99-2000 और दिनांक 25 जुलाई 2000 के पत्र सं. 10/06.11.04/2000-01 द्वारा निर्धारित कंप्यूटरीवफ्त प्रोफार्मा में (हाड़ कॉपी में और साथ ही फ्लॉपी में भी) प्रस्तुत की जानी चाहिए । तथापि बैंक के प्रधान कार्यालय से संबंधित रिपोर्ट भारत सरकार, वित्त मंत्रालय के बैंकिंग प्रभाग को भेजी जानी चाहिए और उसकी एक प्रति बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग के केंद्रीय कार्यालय को भी भेजी जानी चाहिए । मार्च, जून, सितंबर और दिसंबर तिमाहियों की तिमाही प्रगति रिपोर्टें संबंधित तिमाही के बाद छ: सप्ताह के भीतर भेज दी जानी चाहिए । तथापि वार्षिक रिपोर्ट भारत सरकार, वित्त मंत्रालय के बैंकिंग प्रभाग को संबंधित वर्ष पूरा होने के बाद एक महीने के भीतर भेज दी जानी चाहिए ।
ख) बैंकों को चाहिए कि वे प्रधान /केन्द्रीय कार्यालय से संबंधित आंकड़े उस क्षेत्र की रिपोर्ट में दर्शायें जिसमें उनका प्रधान /केन्द्रीय कार्यालय स्थित हो । इसके अलावा जो आंकडे वार्षिक आधार पर दिये जाने हों वे जनवरी-मार्च तिमाही की रिपोर्टों में ही दर्शाये जाने चाहिए ।
ग) रिज़र्व बैंक को तिमाही प्रगति रिपोर्ट भेजते समय बैंकों को चाहिए कि वे अपने कार्यालयों / शाखाओं द्वारा क्षेत्रीय भाषाओं (अर्थात् हिन्दी और अंग्रेजी से भिन्न) में भेजे गये पत्रों की संख्या को कुल पत्रों की संख्या में से घटाकर ही दर्शायें ।
घ) बैंकों को चाहिए कि पत्राचार और आंतरिक कार्यों की समेकित स्थिति बताते समय कंप्यूटरीवफ्त शाखाओं के पत्राचार और आंतरिक कार्यों से संबंधित आंकड़ों को भी शामिल करें, जैसा कि दिनांक 27.11.2000 के बीसी. सं. 55 द्वारा सूचित किया गया था ।
18. राजभाषा कार्यान्वयन समितियां
क) (व) प्रत्येक बैंक के मुख्यालय और उसके सभी कार्यालयों /शाखाओं में राजभाषा कार्यान्वयन समितियां गठित की जानी चाहिए ।
(वव) कार्यालय /शाखा के प्रभारी अधिकारी इस समिति के पदेन अध्यक्ष होंगे । हिन्दी अधिकारी या उनकी अनुपस्थिति में बैंक द्वारा नामित कोई अन्य अधिकारी इस समिति के सदस्य-सचिव के रूप में कार्य करेंगें । इस समिति के अन्य सदस्य विभिन्न विभागों से लिये जाने चाहिए । समिति के सदस्यों की कुल संख्या बहुत अधिक नहीं होनी चाहिए ।
(ववव) यह समिति सरकार की राजभाषा नीति / कार्यक्रम तथा इस संबंध में समय-समय पर जारी किए गए अनुदेशों के प्रभावी और त्वरित कार्यान्वयन के लिए उत्तरदायी होगी। इस समिति को आवश्यकतानुसार इस प्रयोजन हेतु चरणबद्ध रूप से समयबद्ध कार्यक्रम तैयार करना चाहिए।
(वख्) इस समिति की बैठक, निम्नलिखित बातों की समीक्षा के लिए, तीन महीने में कम-से-कम एक बार आयोजित की जानी चाहिए :
क) यथासंशोधित राजभाषा अधिनियम, 1963 के प्रावधानों का अनुपालन;
ख) शासकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी का प्रगामी प्रयोग;
ग) आवधिक रिपोर्टें;
घ) हिन्दी भाषा /हिन्दी टंकण और आशुलिपि के सेवाकालीन प्रशिक्षण में प्रगति; और
ङ) सांविधिक /गैर-सांविधिक दस्तावेजों, प्रक्रिया साहित्य इत्यादि के हिन्दी अनुवाद में हुई प्रगति । प्रधान कार्यालय की राजभाषा कार्यान्वयन समिति की बैठकों के कार्यविवरण (द्विभाषी) की प्रतिलिपि भारतीय रिज़र्व बैंक, बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग, केंद्रीय कार्यालय को बैठक के बाद तैयार करके यथाशीघ्र भेजी जानी चाहिए ।
ख) बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा आयोजित की जाने वाली राजभाषा कार्यान्वयन समिति की बैठकों में पर्याप्त उच्च स्तर के अधिकारी /संबंधित बैंक की राजभाषा कार्यान्वयन समिति के अध्यक्ष, राजभाषा विभाग /अनुभाग /कक्ष के प्रभारी अधिकारी के साथ भाग लें ।
19. हिन्दी पुस्तकालयों की स्थापना
क) सामान्य रुचि की हिंदी पुस्तकों के पुस्तकालय स्थापित किये जाने चाहिए ताकि स्टाफ सदस्य अपना हिन्दी ज्ञान बनायें रख सकें और साथ ही साथ उसमें वफ्द्धि भी कर सकें ।
ख) अधिकारियों को हिन्दी समाचारपत्रों और पत्रिकाओं की आपूर्ति की जानी चाहिए ताकि हिन्दी में उनकी रुचि बढ़ सके ।
ग) बैंक यह सुनिश्चित करें और इस बात की पुष्टि करें कि स्टाफ सदस्यों में हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के लिए, हिन्दी पुस्तकों के क्रय हेतु बजट प्रावधान का पूरा उपयोग किया जाए । (संसदीय राजभाषा समिति की सिफारिशों के अनुसार) बैंकों के लिए यह अपेक्षित है कि वे पुस्तकालय के बजट की कम से कम 50 प्रतिशत राशि हिन्दी पुस्तकों के लिए आबंटित करें । इसके अंतर्गत हिन्दी पत्रिकाएं, जर्नल और मानक संदर्भ ग्रंथ शामिल नहीं माने जाने चाहिए ।
20. हिन्दी पत्रिकाओं का प्रकाशन
क) जो प्रकाशन /बुकलेट /पत्रिकाएं जनसाधारण के उपयोग के लिए हों, वे सभी हिंदी और अंग्रेजी में जारी की जानी चाहिए । छोटे प्रकाशनों के मामले में संबंधित सामग्री को डिग्लट फार्म में, अर्थात् एक ओर हिंदी और दूसरी ओर अंग्रेजी में, प्रकाशित करने की संभावना पर विचार किया जाना चाहिए । विभिन्न पिरियाडिकल /पत्रिकाएं हिन्दी में भी प्रकाशित की जानी चाहिए । ऐसे प्रकाशनों की हिन्दी प्रतियों की संख्या अंग्रेजी प्रतियों की संख्या से कम नहीं होनी चाहिए ।
ख) बैंकों द्वारा प्रकाशित की गयी पत्रिकाओं में बैंकिंग विषयों से संबंधित सामग्री अधिक से अधिक मात्रा में हिन्दी में शामिल करने, हिन्दी पफ्ष्ठाें की संख्या बढ़ाने और भाषा के प्रवाह में सुधार लाने के प्रयास किये जाने चाहिए ।
21. गफ्ह पत्रिकाओं में हिन्दी खंड जोड़ना
क) बैंकों द्वारा प्रकाशित की जाने वाली गफ्ह पत्रिकाओं में हिंदी खंड शामिल किया जाना चाहिए । गफ्ह पत्रिकाओं हिंदी खंड अंग्रेजी खंड से पहले होना चाहिए ।
ख) बैंक गफ्ह पत्रिकाओं /प्रकाशनों में हिन्दी खंड में केवल पफ्ष्ठों की संख्या बढ़ाने के प्रयास ही न करें बल्कि वे यह भी सुनिश्चित करें कि हिंदी खंड अंग्रेजी खंड से पहले रहे ।
ग) बैंकिंग विषयों पर अधिक से अधिक सामग्री शामिल की जानी चाहिए और उनमें शामिल किये गये लेख इत्यादि अधिक सरल भाषा में होने चाहिए ताकि ऐसी सामग्री की स्वीकार्यता बढ़े और उसे पढ़ने वालों की संख्या में भी वफ्द्धि हो।
क) बैंकों के स्टाफ सदस्यों द्वारा हिन्दी सीखे जाने को प्रोत्साहित करने की दृष्टि से बैंक स्वयं अपनी हिन्दी शिक्षण योजनाएं तैयार करें, भारत सरकार की हिन्दी शिक्षण योजना के अंतर्गत आयोजित की जाने वाली हिन्दी कक्षाओं में अपने स्टाफ को नामित करें या केन्द्रीय हिन्दी निदेशाालय, शिक्षा और समाज कल्याण मंत्रालय, वेस्ट ब्लॉक - ङघ्घ्, रामवफ्ष्णपुरम, नयी दिल्ली - 110 022 द्वारा संचालित किये जाने वाले पत्राचार पाठ्यक्रम में शामिल होने के लिए उन्हें कहें। इसके अलावा स्टाप सदस्यों द्वारा प्रबोध, प्रवीण, प्राज्ञ और अन्य मान्यताप्राप्त हिंदी परीक्षाएं उत्तीर्ण किये जाने के बाद उनके सेवा अभिलेखों में उक्त आशय की प्रविष्टि भी की जाए।
ख) बैंकिंग प्रभाग की राजभाषा कार्यान्वयन समिति की 2 सितंबर 1983 को आयोजित की गई बैठक में बैंकों को प्रायोगिक आधार पर इस बात की अनुमति दी गयी थी कि वे अपने कर्मचारियों के लाभ हेतु 3 वर्ष की अवधि के लिए पाठ्यपुस्तकें मुद्रित करें । इस संबंध में बैंकों के लिए यह जरूरी है कि वे ‘‘प्रबंधक, भारत सरकार मुद्रणालय, फरीदाबाद द्वारा मुद्रित और नियंत्रक, प्रकाशन विभाग, दिल्ली द्वारा प्रकाशित’’ के स्थान पर ‘‘अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, प्रधान कार्यालय द्वारा बैंक के हिन्दी प्रशिक्षण के लिए मुद्रित’’ लिखें । बैंकों को चाहिए कि वे गफ्ह मंत्रालय को निम्नलिखित सूचनाएं भेजें :
- प्रत्येक पाठ्यक्रम के लिए मुद्रित प्रतियों की संख्या
- विभिन्न कार्यालयों में वितरित प्रतियों की संख्या
ग) बैंक कर्मचारियों को दिये जा रहे हिन्दी प्रशिक्षण से जुड़े विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक में गठित समिति द्वारा प्रस्तुत की गयी रिपोर्टों की ओर सभी बैंकों के अध्यक्षों का ध्यान आवफ्ष्ट किया जाता है । हिन्दी प्रशिक्षण व ो और अधिक प्रभावी बनाने के लिए बैंक रिपोर्ट में दी गयी क्षेत्रवार सिफारिशों को कार्यान्वित करें ताकि हिन्दी में प्रशिक्षित स्टाफ की भावी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके ।
घ) सरकार की हिन्दी शिक्षण योजना के अंतर्गत चलायी जा रही हिन्दी कक्षाओं के लिए अपने अधिकारियों /कर्मचारियों को प्रतिनियुक्त करने के मामले में कुछ कार्यालयों /शाखाओं की अनिच्छा समाप्त करने की दृष्टि से बैंक यह नोट करें कि भारत सरकार की योजना के अंतर्गत उनके यहाँ चलाई जा रही कक्षाओं में या ऐसी सुविधा वाले किसी अन्य केन्द्र पर, पात्र बैंक कर्मचारियों को ऐसे प्रशिक्षणों हेतु भेजना अनिवार्य है ।
ङ) बैंकों को यह सूचित किया गया कि वे अपने सभी स्टाफ सदस्यों को क्षेत्र क, ख और ग में 2005 के अंत तक कार्यसाधक ज्ञान प्रदान कर दें । इसलिए जो बैंक यह लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सके हैं वे ऐसे प्रशिक्षण की प्रक्रिया में तेजी लायें ।
च) नयी व्यवस्था /प्रणाली, प्रक्रिया, हिन्दी भाषा इत्यादि का ज्ञान प्राप्त करने में जो सदस्य रुचि नहीं लेते हैं उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की जानी चाहिए, इस बात पर दिल्ली में 16 दिसंबर 1988 को आयोजित की गयी राजभाषा कार्यान्वयन समिति की 39वीं बैठक में विचार-विमर्श किया गया । भारतीय बैंक संघ के सचिव ने सहभागियों को सूचित किया कि त्रिपक्षीय समझौते में भारतीय बैंक संघ ने एक निर्णय लिया है जिसके अनुसार, जो कर्मचारी हिन्दी सीखने में या हिन्दी कक्षाओं में शामिल होने में या हिन्दी परीक्षाओं में बैठने में रुचि नहीं लेते हैं उनके विरुद्ध बैंकों द्वारा कार्रवाई की जायेगी । इस निर्णय के अनुरूप अब यदि कोई कर्मचारी हिन्दी प्रशिक्षण की कक्षाओं में शामिल नहीं होगा या उसे जिस प्रशिक्षण के लिए नामित किया जायेगा उसमें यदि वह पर्याप्त रुचि नहीं लेगा तो इसका यह मतलब होगा कि वह प्रबंध तंत्र के विधिसम्मत और उपयुक्त आदेशाें की जानबूझकर अवहेलना कर रहा है और उसके विरुद्ध तदनुसार अनुशासनिक कार्रवाई की जायेगी । तथापि वास्तविक /उचित मामलों में यदि कोई कर्मचारी पर्याप्त रुचि लेने के बाद भी हिन्दी में दक्षता प्राप्त नहीं कर पाता है या हिन्दी परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पाता है तो उसके विरुद्ध कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए ।
23. हिन्दी माध्यम से बैंकिंग प्रशिक्षण
क) 11 सितंबर 1987 को आयोजित की गयी केन्द्रीय राजभाषा कार्यान्वयन समिति की बैठक में हिन्दी के प्रयोग के संबंध में की गयी निम्नलिखित सिफारिशें प्रशिक्षण संस्थानों में प्रशिक्षण के लिए कार्यान्वित की जानी चाहिए :
- प्रशिक्षण संस्थान चाहे कहीं भी स्थित हो प्रशिक्षण सामग्री हिन्दी और अंग्रेजी में अर्थात् दोनों भाषाओं में तैयार की जानी चाहिए ।
- बैंकों द्वारा आयोजित की जानेवाली किसी भी परीक्षा के मामले में प्रश्नपत्र दोनों भाषाओं में होने चाहिए तथा परीक्षा में शामिल होनेवालों को इस बात का विकल्प उपलब्ध होना चाहिए कि वे उत्तर हिन्दी या अंग्रेजी में दे सकें ।
- यदि किसी प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेने वाले क और ख क्षेत्रों के हों तो ऐसे प्रशिक्षण हिन्दी में दिये जाने चाहिए । लेकिन यदि अधिकतर प्रशिक्षणार्थी अंग्रेजी में प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहें तो तदनुसार व्यवस्था की जानी चाहिए ।
- यदि किसी प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रशिक्षणार्थी केवल ग क्षेत्र के हों या सभी क्षेत्रों के हों तो ऐसे प्रशिक्षण अंग्रेजी में दिये जाने चाहिए लेकिन यदि पर्याप्त संख्या में प्रशिक्षणार्थी हिन्दी में प्रशिक्षण प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त करें तो उनकी मांग को पूरा करने की व्यवस्था की जानी चाहिए ।
- जिस प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रशिक्षणार्थी विभिन्न क्षेत्रों के हों उनमें व्याख्यान देनेवाले ऐसे व्यक्ति आमंत्रित किये जाने चाहिए जो हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं से सुपरिचित हों ताकि प्रशिक्षणार्थी अपनी पसंद के अनुसार किसी भी भाषा में प्रश्न पूछ सकें ।
- प्रशिक्षण संस्थानों के जो प्रशिक्षक हिन्दी और अंग्रेजी - दोनों भाषाओं का कार्यसाधक ज्ञान न रखते हों उनके लिए अल्प अवधि के गहन प्रशिक्षण पाठ्यक्रम आयोजित किये जाने चाहिए ।
- किसी प्रशिक्षण संस्थान में, जहां हिन्दी में प्रशिक्षण दिये जाने की आवश्यकता हो, यदि हिन्दी में प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए कोई योग्य /उपयुक्त प्रशिक्षक उपलब्ध न हो तो मध्यम मार्ग के रूप में हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं के मिश्रण से प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए ।
ख) संसदीय राजभाषा समिति की साक्ष्य और अभिलेख उप समिति ने भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर और बैंकों के अध्यक्षों के साथ जो विचार-विमर्श किया था उसके आधार पर लिये गये निर्णय के अनुसार बैंकों के लिए यह अपेक्षित है कि वे अपने प्रशिक्षण संस्थानों में हिन्दी माध्यम से प्रशिक्षण देने की व्यवस्था करें ।
ग) बैंकों को चाहिए कि वे भारतीय रिज़र्व बैंक के प्रशिक्षण महाविद्यालयों द्वारा हिन्दी माध्यम से आयोजित किये जानेवाले प्रशिक्षण कार्यक्रमों में अपेक्षित संख्या में अपने अधिकारी प्रतिनियुक्त करें ।
घ) बैंकों को चाहिए कि वे हिन्दी माध्यम से नवोन्मेष बैंकिंग पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करें ।
24. बैंकों के टंककों और आशुलिपिकों द्वारा हिन्दी टंकण /आशुलिपि सीखा जाना
क) हिन्दी टंकण /आशुलिपि की परीक्षा उत्तीर्ण करने पर एकमुश्त पुरस्कार दिये जाने के संबंध में गफ्ह मंत्रालय के दिनांक 12 अप्रैल 1973 के कार्यालय ज्ञापन सं. ई 12033/2972-एचटी में निहित अनुदेशों और हिन्दी टंकण सीखने के लिए टंककों को इंसेंटिव प्रदान करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक की योजना के आधार पर बैंकों के लिए यह अपेक्षित है कि वे इस प्रयोजन हेतु उपयुक्त योजना बनायें ।
ख) बैंकों के लिए यह भी अपेक्षित है कि वे भारतीय बैंक संघ के उस आशय के निर्णय को नोट करें कि वे अपने उन आशुलिपिकों /टंककों को एकमुश्त पुरस्कार प्रदान करें जो हिन्दी और अंग्रेजी दोनों में काम करते हैं और साथ ही क्षेत्रीय भाषाओं में भी काम करते हैं । ऐसा पुरस्कार केवल उन्हीं कर्मचारियों को दिया जाना चाहिए जो लिखित रूप में इस बात की सहमति दें कि वे अंग्रेजी के साथ-साथ, हिन्दी आश्ुालिपि /टंकण और /या क्षेत्रीय भाषा में, जैसी भी स्थिति हो, में काम करेंगे ।
ग) बैंक ऐसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदें जिनमें हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में काम करने की सुविधा /का प्रावधान हो ।
क) जिन कर्मचारियों को हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त है उन्हें हिन्दी में नोटिंग और ड्राफ्टिंग करने का प्रशिक्षण प्रदान करने की दृष्टि से बैंकों को हिन्दी कार्यशालाएं आयोजित करनी चाहिए तथा जिन स्टाफ सदस्यों को हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान हो उन सभी को हिन्दी कार्यशालाओं में प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए । साथ ही, ऐसी कार्यशालाओं में भाग लेने वालों को सहायता सामग्री भी दी जानी चाहिए ।
ख) 27 मार्च 1986 के कार्यालय ज्ञापन सं. 14013/1,85 ओ एल (डी) के अनुसार जिन सरकारी कर्मचारियों ने मैट्रिकुलेशन या उसके समकक्ष परीक्षा हिन्दी विषय के साथ किसी अहिन्दी भाषी राज्य से उत्तीर्ण की थी परंतु उन्होंने हिन्दी में 50 प्रतिशत से कम अंक प्राप्त किये थे, उनके मामले में यह माना जाना चाहिए कि उन्हें अनिवार्य हिन्दी शिक्षण योजना से छूट नहीं प्राप्त है । जिन कर्मचारियों ने मैट्रिकुलेशन या समकक्ष परीक्षा हिन्दी विषय के साथ उत्तीर्ण की थी और हिन्दी में 50 प्रतिशत से कम अंक प्राप्त किये थे परंतु उन्हें हिंदी में अपना कार्यालयीन काम करने के लिए हिन्दी का ज्ञान प्राप्त है, ऐसे कर्मचारियों को अनिवार्य हिन्दी शिक्षण योजना से तब छूट प्रदान की जाये जब वे राजभाषा नियम 1976 में दिये गये फार्मेट में लिखित रूप में अपनी घोषणा दे दें, भले ही उन्होंने उपर्युक्त परीक्षाओं में हिन्दी में 50 प्रतिशत से कम अंक प्राप्त किये हों ।
26. फार्मों का मुद्रण और कोडों /मैनुअलों इत्यादि का अनुवाद
क) बैंकों के साथ कारोबार के दौरान जनता को जिन फार्मों का प्रयोग करने की आवश्यकता पड़ती हो, ऐसे सभी फार्म हिन्दी भाषी क्षेत्रों में कार्यालयीन प्रयोग के लिए हिन्दी और अंग्रेजी (द्विभाषिक) में मुद्रित कराये जाने चाहिए और यदि बैंक आवश्यक समझें तो अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में कार्यालयों में प्रयोग के लिए अंग्रेजी और संबंधित क्षेत्रीय भाषा में मुद्रित कराये जाने चाहिए । यदि फार्म लंबे हो तो उन्हें अलग-अलग, विभिन्न भाषाओं में छपवाया जा सकता है।
ख) बैंकों को चाहिए कि वे कोडों, मैनुअलों, फार्मों, रबर स्टैंपों, सीलों, साइनबोर्डों इत्यादि के हिन्दी अनुवाद का काम यथाशीघ्र पूरा कर लें और इस काम को पूरा करने के लिए वे एक चरणबद्ध कार्यक्रम तैयार कर लें ।
27. नियम 10(4) के अंतर्गत अधिसूचना और राजभाषा नियम, 1976 के नियम 8(4) के अंतर्गत विनिर्दिष्ट करना
क) बैंकों को चाहिए कि वे राजभाषा नियम, 1976 के नियम 10(4) के अंतर्गत अपने आंचलिक /क्षेत्रीय कार्यालयों /शाखाओं को एक इकाई के रूप में अधिसूचित करें बशर्ते उस कार्यालय के 80 प्रतिशत स्टाफ सदस्यों ने हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त कर लिया हो ।
ख) सभी बैंेकों को चाहिए कि वे बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग के केन्द्रीय कार्यालय को उन शाखाओं /कार्यालयों की सूची की अलग-अलग दो प्रतियां हिन्दी और अंग्रेजी में भेजें जिन्हें राजभाषा नियम 1976 के नियम 10(4) के अंतर्गत सरकार द्वारा अधिसूचित किया
जा सकता हो ।
ग) बैंकों को चाहिए कि वे नियम 8(4) के अंतर्गत अपने कार्यालयों को विनिर्दिष्ट करें तथा ऐसे कार्यालयों में हिंदी में प्रवीणताप्राप्त स्टाप को इस आशय के अनुदेश दें कि वे विनिर्दिष्ट काम हिन्दी में करें । ऐसे स्टाफ /अधिकारियों को उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा इस आशय का पत्र व्यक्तिश: दिया जाना चाहिए ।
28. लेजरों और रजिस्टरों में हिंदी में प्रविष्टियां करना
क्षेत्र क में स्थित ग्रामीण /अर्धशहरी शाखाओं को अपने लेजरों और रजिस्टरों में हिन्दी में प्रविष्टियां करने की शुरुआत करनी चाहिए । बैंकों को क्षेत्र ख में भी ऐसी प्रविष्टियां करनी चाहिए ।
29. राजभाषा विभाग के अधिकारियों द्वारा अग्रेषित निरीक्षण रिपोर्टों का प्रस्तुतीकरण
क) राजभाषा विभाग के अधिकारियों द्वारा निरीक्षण किये जाने के बाद उनके द्वारा प्रस्तुत की गयी निरीक्षण रिपोर्टों में उठाये गये मुद्दों पर बैंकों को अपनी राजभाषा कार्यान्वयन समिति की बैठकों में चर्चा करनी चाहिए ताकि निरीक्षण रिपोर्ट में बतायी गयी कमियों को दूर करने के तौर-तरीके निकाले जा सकें ।
ख) बैंक शाखाओं के आंतरिक निरीक्षणों के मामले में निरीक्षण टीम को अपनी निरीक्षण रिपोर्ट में अन्य बातों के साथ-साथ इस बात पर भी टिप्पणी देनी चाहिए कि संबंधित शाखा ने भारत सरकार द्वारा वार्षिक कार्यान्वयन कार्यक्रम में निर्धारित लक्ष्य की तुलना में हिन्दी के प्रयोग में कितनी प्रगति की है ।
30. राजभाषा नीति के कार्यान्वयन की रिपोर्ट निदेशक-मंडल को प्रस्तुत करना
बैंकों को चाहिए कि वे राजभाषा नीति के कार्यान्वयन के संबंध में आवधिक अंतराल पर, उदाहरणार्थ छ: महीने पर, अपने निदेशक-मंडल को रिपोर्ट प्रस्तुत करें और उसकी एक प्रति भारतीय रिज़र्व बैंक, बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग, केंद्रीय कार्यालय को भी भेजें ।
बैंकों को चाहिए कि वे ऐसे अहिन्दी भाषी अधिकारियों के लिए उपयुक्त कैप्सूल कोर्स तैयार करें जिनकी तैनाती हिन्दी भाषी क्षेत्रों में की जा रही हो ।
32. बैंकों के प्रवेश पाठ्यक्रम
बैंकों को चाहिए कि वे नये भर्ती होने वालों के लिए अपने कुछ प्रवेश पाठ्यक्रम हिन्दी में तैयार करें ।
33. बैंकों द्वारा अपने तुलनपत्र द्विभाषिक रूप में प्रकाशित किया जाना
क) बैंकों को चाहिए कि वे भारत सरकार द्वारा दिये गये, तुलनपत्र के द्विभाषिक संशोधित फार्मेट का प्रयोग करें ताकि उसमें प्रयुक्त विभिन्न शब्दावली में एकरूपता सुनिश्चित की जा सके । बैंकों को अपने तुलनपत्र द्विभाषिक रूप में प्रकाशित करने चाहिए ।
ख) बैंकों को, बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 के अंतर्गत निर्धारित, लाभ-हानि लेखे के द्विभाषिक फार्मेट का प्रयोग करना चाहिए ।
34. वित्तीय, बैंकिंग और आर्थिक विषयों पर मूल रूप से हिन्दी में लिखी गयी पुस्तकों और निबंधों के लिए
पुरस्कार देना ।
बैंकों को चाहिए कि वे वित्तीय विषयों पर मूल रूप से हिन्दी में निबंध और पुस्तकें लिखने के लिए पुरस्कार दिये जाने के संबंध में भारत सरकार द्वारा तैयार की गयी दो योजनाओं के प्रावधानों को लागू करें ।
35. नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति की बैठकों में भाग लेना
क) बैंकों को चाहिए कि वे नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति की बैठकों में शामिल हों । संबंधित नगर में उपलब्ध प्रभारी अधिकारी को इस समिति की बैठकों में भाग लेना चाहिए । यदि अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण उनके लिए यह संभव न हो तो उन्हें अपने से बाद वाले वरिष्ठतम अधिकारी को ऐसी बैठक में भेजना चाहिए । इसके अलावा जब प्रभारी अधिकारी या उनकी अनुपस्थिति में बाद वाले वरिष्ठतम अधिकारी ऐसी बैठक में भाग लें तो हिन्दी अधिकारी या राजभाषा का कार्य देखने वाले अन्य अधिकारी उनके साथ बैठक में जायें । यह उल्लेख करना है कि ऐसी बैठकों में केवल हिन्दी अधिकारी को भेजना वांछनीय नहीं समझा गया है ।
ख) कुछ शहरों में बैंकों के लिए अलग से नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियां गठित की गयी हैं । ऐसी समितियों की बैठकों में बैंकों को अपनी सहभागिता सुनिश्चित करनी चाहिए, जैसा कि उपर (क) पर बताया गया है ।
36. बैंकों की सहायक संस्थाओं /योजनाओं का नाम हिन्दी में या अन्य भारतीय भाषाओं में रखना
जैसा कि भारत सरकार ने (दिनांक 24 दिसंबर 1983 के अपने कार्यालय ज्ञापन स 120021/4/ 83 ओ एल (बी-1) द्वारा ) सूचित किया है और जिस पर सरकारी क्षेत्र के बैंकों की राजभाषा कार्यान्वयन समिति की 58वीं बैठक में जोर दिया गया है, बैंक अपनी नयी सहायक संस्थाओं /योजनाओं के नाम हिन्दी में या भारतीय भाषाओं में रख सकते हैं । उन्हें चाहिए कि वे अपनी सहायक संस्थाओं /प्रचलित योजनाओं के अंग्रेजी नाम का हिन्दी नाम (या अन्य भारतीय भाषाओं में नाम) भी तैयार करें ।
37. कार्पोरेट प्लान में शामिल किया जाना
- बैंकों को चाहिए कि निम्नलिखित के संबंध में कार्रवाई योजना तैयार करें :
क) स्टाफ सदस्यों को हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान देने की व्यवस्था करना और उनके लिए हिन्दी कार्यशालाएं आयोजित करना ।
ख) आशुलिपिकों और टंककों के लिए हिन्दी आशुलिपि और टंकण के प्रशिक्षण की व्यवस्था करना ।
ग) हिन्दी माध्यम से बैंकिंग प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाना, और
घ) भारत सरकार द्वारा निर्धारित विभिन्न लक्ष्यों को प्राप्त करना।
वव) बैंकों को चाहिए कि वे हिन्दी के प्रयोग से संबंधित विषय को भी अपने कार्पोरेट प्लान में शामिल कर लें ।
38. ग्राहक सेवा के मामले में हिन्दी का प्रयोग
ग्राहक सेवा की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं का प्रयोग किया जाना चाहिए ।
39. क) खाताधारकों को कंप्यूटरीवफ्त शाखाओं द्वारा हिन्दी में लेखा-विवरण दिया जाना
सरकारी क्षेत्र के बैंकों की दिनांक 28 दिसंबर 1994 को आयोजित की गयी राजभाषा कार्यान्वयन समिति की 62वीं बैठक में लिये गये निर्णय के अनुसार बैंक यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठायें कि उनकी कंप्यूटरीवफ्त शाखाएं खाताधारकों को हिन्दी में भी लेखा विवरण उपलब्ध करायें । बैंकों को यह भी चाहिए कि वे अपनी शाखाओं में कंप्यूटरों में हिन्दी में भी डेटा प्रोसेसिंग करने के लिए उपयुक्त बैंकिंग सॉफ्टवेयर बनवाने का प्रयास करें ।
ख) द्विभाषिक सॉफ्टवेयर की व्यवस्था
बैंकों से यह भी अपेक्षा की जाती है कि वे सभी पर्सनल कंप्यूटरों में द्विभाषिक सॉफ्टवेयर लगायें और अधिक से अधिक वड़ प्रोसेसिंग इत्यादि का काम हिन्दी में करें ।
40. भारतीय बैंकों की विदेशों में काम कर रही शाखाओं में हिन्दी का प्रयोग
बैंकों को चाहिए कि वे लेखन-सामग्री में (उदाहरणार्थ पत्रशीर्ष, फाइल कवर, लिफाफे, सील, रबर की मुहरें, नेमप्लेट, साइनबोड़ इत्यादि) अंग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी और स्थानीय भाषा (यदि स्थानीय भाषा अंग्रेजी से भिन्न है) का प्रयोग करें । बैंकों को चाहिए कि वे ऐसी विदेशी शाखाओं के मुख्य द्वार पर हिन्दी में ‘‘स्वागतम्’’ शब्द लिखें ।
41. कार्यालयीन कार्यों में हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के लिए माननीय प्रधानमंत्री के निर्देश
माननीय प्रधानमंत्री के सुझावों के अनुसार बैंकों को चाहिए कि वे हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के लिए अनुकूल वातावरण निर्मित करने हेतु निम्नलिखित कदम उठायें :
- उच्चतम प्रशासनिक बैठकों में हिन्दी में विचार-विमर्श किया जाये और ऐसी बैठकों की कार्यवाही हिन्दी में चलाये जाने को प्रोत्साहित किया जाये ।
- राजभाषा अधिनियम की धारा 3(3) और राजभाषा नियम 5 के प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों को लिखित रूप में सलाह दी जाये कि वे भविष्य में ऐसी प्रवफ्त्ति से बचें ।
- हिन्दी में किये गये प्रशंसनीय काम का उल्लेख संबंधित स्टाफ की गोपनीय रिपोर्टों में किया जाये ।
- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के अवसरों पर हिन्दी में व्याख्यान दिये जाने चाहिए । दूसरे देशों में जाने वाले भारतीय शिष्टमंडलों को भी हिन्दी का प्रयोग करना चाहिए ।
- अधिकारियों /कर्मचारियों द्वारा हिन्दी में किये गये प्रशंसनीय कार्य का उल्लेख उनकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्टो में ‘‘कम्यूनिकेशन स्किल’’ स्तंभ के अंतर्गत किया जाना चाहिए ।
42. बैंकों के आंतरिक काम में हिन्दी का प्रयोग - रिपोर्टिंग प्रणाली के संबंध में गठित दल की सिफारिशें
तिमाही प्रगति रिपोर्ट में कार्यनिष्पादन की रिपोर्ट देने के लिए मानदंड सुझाने और वास्तविक तथा अधिक विश्वसनीय तरीके से आंकड़ों की रिपोर्टिंग की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए सुझाव देने हेतु, राजभाषा कार्यान्वयन समिति की 11 जनवरी 2002 को मुंबई में आयोजित की गयी 90वीं बैठक में लिये गये निर्णय के अनुसार एक दल गठित किया गया था ।
उक्त दल की सिफारिशों और स्पष्टीकरणों को अंतिम रूप दे दिया गया है तथा भारत सरकार, गफ्ह मंत्रालय, राजभाषा विभाग ने उन्हें अनुमोदित कर दिया है । इन सिफारिशाें को बैंकिग परिचालन और विकास विभाग के दिनांक 9 अगस्त 2002 के पत्र बैंपविवि. सं. बीसी. 16/06.11.04/2002-2003 द्वारा कार्यान्वयन तथा तिमाही प्रगति रिपोर्ट के भाग 1 के विभिन्न मदों के अंतर्गत आंकड़ों की सूचना देने के लिए बैंकों के पास भेज दिया गया है ।
43. कंप्यूटरों पर हिन्दी में कार्य
राजभाषा कार्यान्वयन समिति की 11 जनवरी 2002 को आयोजित की गयी 90वीं बैठक में लिये गये निर्णय के अनुसार, हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के माध्यम से ग्राहक सेवा में सुधार लाने के लिए हिन्दी में कार्य बढ़ाने के लिए कंप्यूटरों के प्रयोग के संबंध में समय-समय पर बैंकों को जारी किये गये अनुदेशों /दिशा-निर्देशों को भारतीय रिज़र्व बैंव , बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग, केंद्रीय कार्यालय ने (दिनांक 27 मार्च 2002 के बैंपविवि.बीसी. सं. 83/ 06.11.04/ 2001-2002 द्वारा ) समेकित किया है । इन दिशा-निर्देशों के अंतर्गत निम्नलिखित क्षेत्रों को शामिल किया गया है :
क) ग्राहक-सेवा में हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं का प्रयोग
ख) कंप्यूटरों पर आंतरिक कार्य
ग) हिन्दी माध्यम से कंप्यूटर प्रशिक्षण
घ) आवश्यक मूलभूत सुविधाएं /व्यवस्थाएं
ङ) कार्य की उन 33 मदों की सूची (अनुबंध ‘क’ के अनुसार) जिन्हें कंप्यूटरों पर हिन्दी में किया जा सकता है ।
बैंकों को चाहिए कि वे इन दिशानिर्देशों का अत्यंत सावधानीपूर्वक पालन करें ।
II) द्विभाषिक डेटा प्रोसेसिंग सॉफ्टवेयर /कोर बैंकिंग सॉल्यूशन
क) सरकारी क्षेत्र के बैंकों के मुख्य कार्यपालकों के साथ 2 सितंबर 1999 को हुए विचार-विमर्श के अनुसार बैंकों को चाहिए कि वे द्विभाषिक डेटा प्रोसेसिंग सॉफ्टवेयर विकसित कराने के लिए कार्रवाई आरंभ करें तथा ग्राहक सेवा की दृष्टि से जहां कहीं भी आवश्यक समझा जाये वे ऐसे सॉफ्टवेयर इन्स्टाल भी करायें ।
ख) 4 अक्तूबर 2002 को आयोजित की गयी 93वीं बैठक में लिये गये निर्णय के अनुसार बैंकों को चाहिए कि वे हिन्दी में डेटा प्रोसेसिंग के संबंध में निम्नलिखित निर्णयों को कार्यान्वित करें :
- इस समय जिन शाखाओं में डेटा प्रोसेसिंग का काम अंग्रेजी सॉफ्टवेयरों के माध्यम से किया जा रहा है या कंप्यूटरों पर सारा काम अंग्रेजी में किया जा रहा है (जहां टी बी ए = टोटल बैंक ऑटोमेशन है), द्विभाषिक या हिन्दी प्रिंट लेने के लिए इंटरफेस की सुविधा उपलबध करायी जाये और भविष्य में जहां कहीं भी सॉफ्टवेयर बदला जाये वहां द्विभाषिक सॉफ्टवेयर इन्स्टाल किया जाये ।
- जिन शाखाओं को भविष्य में कंप्यूटरीवफ्त किया जाये वहां आरंभ से ही द्विभाषिक सॉफ्टवेयर इन्स्टाल किये जायें ।
ववव) चूंकि कुछ बैंक कोर बैंकिंग सॉल्यूशन की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं (भविष्य में अन्य बैंक भी कोर बैंकिंग सॉल्यूशन अपना सकते हैं), अब यह सुझाव दिया जाता है कि कोर बैंकिंग सॉल्यूशन में प्रारंभ से ही द्विभाषिक सुविधा उपलब्ध करायी जाये ।
वख्) चूंकि कुछ बैंक क्लस्टर बैंकिंग का विकल्प अपना रहे हैं, अर्थात् शाखाओं को लैन, मैन या वैन के जरिये जोड़कर कनेक्टिविटी दी जा रही है (या भविष्य में दी जायेगी), अत: ऐसी शाखाओं में हिन्दी में भी कनेक्टिविटी की सुविधा उपलब्ध करायी जाये ।
ख्) इंटरफेस के माध्यम से द्विभाषिक प्रिंट देने के लिए प्रयोग किये जा रहे सॉफ्टवेयर के निर्माताओं /विकसितकर्ताओं से संबंधित बैंक यह अनुरोध करें कि वे देवनागरी (आवश्यकता के अनुसार क्षेत्रीय भाषाओं में भी ) में डेटा एंट्री की सुविधा प्रदान करें । ग्राहक सेवा की अपनी आवश्यकताओं के अनुसार बैंक तीसरी भाषा की सुविधा के संबंध में स्वयं निर्णय लें ।
ख्व) इन्स्टाल किये जाने वाले द्विभाषिक सॉफ्टवेयरों में इंटरकनेनिवटी की सुविधा तथा अन्य सॉफ्टवेयरों के साथ कंपैटिबिलिटी होनी चाहिए ।
ग) बैंकों को चाहिए कि वे 9.10.2001 को राजभाषा कार्यान्वयन समिति की 89वीं बैठक में लिये गये निम्नलिखित निर्णयों को लागू करने के लिए शीघ्र कार्रवाई करें :
- हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के लिए कंप्यूटर प्रणाली का प्रयोग किया जाना चाहिए ।
- शाखा बैंकिंग के लिए द्विभाषिक डेटा प्रोसेसिंग सॉफ्टवेयर लगाया जाना चाहिए (दिनांक 18 सितंबर 1999 के हमारे परिपत्र सं. बैंपविवि. बीसी. 90/ 06.11.04/ 99-2000 की ओर ध्यान आवफ्ष्ट किया जाता है) ।
- निम्नलिखित कदम उठाये जाने चाहिए ताकि स्टाफ सदस्य कम्प्यूटरों पर हिन्दी में काम कर सकें :
- कंप्यूटरों पर हिन्दी के काम की विभिन्न मदों को संपादित करने की व्यवस्था की जाए, जैसा कि तिरुवनंतपुरम में राजभाषा कार्यान्वयन समिति की 19 जुलाई 2001 को आयोजित की गयी 88वीं बैठक में निर्णय लिया गया था ।
- कंप्यूटरों में हिन्दी के प्रयोग से संबंधित तिमाही डेटा निर्धारित प्रोफार्मा में (89वीं बैठक के कार्यविवरण के अनुबंध घ्घ् के रूप में संलग्न करके भेजा गया) नियमित रूप से भेजा जाये ।
- प्रशासनिक कार्यालयों और प्रशिक्षण संस्थानों में राजभाषा अधिकारियों को इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध करायी जाये । यदि बैंक आवश्यक समझें तो यह सुविधा अन्य केंद्रों पर भी उपलब्ध करायी जानी चाहिए । साथही, सभी राजभाषा अधिकारियों को कंप्यूटर उपलब्ध कराये जाने चाहिए ।
क) उन्हें आवश्यक प्रशिक्षण दिया जाये तथा
ख) हिन्दी माध्यम से और अधिक कंप्यूटर प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाये जायें।
शाखाओं में /कार्यालयों में प्रत्येक स्तर पर कंप्यूटरों में हिंदी का प्रयोग बढ़ाने के लिए बैंकों को चाहिए कि वे प्रधान कार्यालय में तथा क्षेत्रीय कार्यालय में आंतरिक स्थायी कार्यदलों का गठन करें । ऐसे कार्यदल में राजभाषा के विशेषज्ञ, सूचना प्रौद्योगिकी के विशेषज्ञ तथा व्यावहारिक बैंकर होने चाहिए । इस संबंध में हुई प्रगति की रिपोर्ट हर छ: महीने पर भारतीय रिज़र्व बैंक को भेजी जानी चाहिए ।
IV) केवल द्विभाषिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का प्रयोग
कंप्यूटरों इत्यादि को द्विभाषिक तभी माना जायेगा जब :-
(क) उनमें अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी में भी डेटा एंट्री की सुविधा उपलब्ध हो,
(ख) कोई कर्मचारी उसका प्रयोग हिंदी या अंग्रेजी में काम करने के लिए कर सके । इसके लिए मशीन में ऐसी सुविधा होना आवश्यक है जिससे कर्मचारी चाहने पर किसी भी सामग्री को हिन्दी या अंग्रेजी में देख /दिखा सके ।
(ग) मशीन पर काम करने वाला कोई व्यक्ति उस प्रणाली का आउटपुट (रिपोर्ट, पत्र इत्यादि) चाहने पर हिन्दी में या अंग्रेजी में प्राप्त कर सके ।
क) बैंकों को चाहिए कि वे बैंकों में हिन्दी के प्रयोग से संबंधित डेटा / सूचना को, रिज़र्व बैंक द्वारा भेजे गये प्रोफार्मा में कंप्यूटरीवफ्त कर दें ताकि जब भी जरूरत पड़े, ऐसी सूचना रिट्रीव की जा सके ।
ख) कार्यालयीन कारोबार संपादित करते समय सरल हिंदी का प्रयोग किया जाना चाहिए । अधिकारियों / स्टाफ सदस्यों को चाहिए कि वे अंग्रेजी के तकनीकी और पदनाम वाले शब्दों को बेहिचक देवनागरी लिपि में लिखे । इस प्रयोजन के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना उपयोगी होगा :
- कार्यालयीन कामों में अधिक से अधिक सामान्य शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए तथा अन्य भाषाओं में सामान्यत: प्रयोग किये जाने वाले शब्दों का प्रयोग करने में कोई हिचक/ झिझक नहीं होनी चाहिए ।
- जब भी ऐसा लगे कि कोई पाठक हिन्दी के तकनीकी या पदनाम वाले शब्दों को समझने में कठिनाई महसूस करेगा तो ऐसे शब्दों का अंग्रेजी रूपांतर कोष्ठक में लिख देना उपयोगी होगा ।
- बनावटी अनुवाद की तुलना में, आधुनिक मशीनरी, विभिन्न प्रकार के उपकरणों और आधुनिक वस्तुओं के लिए साधारणत: प्रयोग किये जाने वाले अंग्रेजी नामों को देवनागरी में लिख दिया जाना चाहिए ।
- हिन्दी लिखते समय केवल सरल और सामान्यत: प्रयोग किये जाने वाले शब्दों को लिखा जाना चाहिए तथा अत्यधिक संस्वफ्तनिष्ठ शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए । वाक्यरचना हिन्दी भाषा की प्रवफ्ति के अनुसार होनी चाहिए । वाक्यों में संस्वफ्त के कठिन शब्दों का अधिक प्रयोग करना उचित नहीं होगा । मूल अंग्रेजी का शब्दश: अनुवाद करना भी उचित नहीं होगा । अंग्रेजी के प्रारूपों का हिन्दी में अनुवाद करने की अपेक्षा बेहतर होगा कि ऐसे प्रारूप मूलत: हिन्दी में ही तैयार किये जायें तथा ऐसा करते समय हिन्दी भाषा की प्रवफ्ति का ध्यान रखा जाना चाहिए । इससे भाषा न केवल स्वाभाविक और प्रवाहपूर्ण होगी, यह बीच-बीच में अपरिचित और नये शब्दों के प्रयोग के बावजूद समझ में आ सकेगी ।
- बैंकों के कार्यालयों को चाहिए कि वे हिन्दी टेलीफोन डाइरेक्टरी की कम से कम एक प्रति अवश्य खरीद लें क्योंकि इससे कार्यालयों के हिन्दी नामों और अधिकारियों के पदनामों की एक शब्दावली उन्हें सुलभ हो जायेगी ।
ग) उपहार चेक, यात्री चेक, नकदी प्रमाणपत्र इत्यादि द्विभाषिक रूप में मुद्रित कराये जाने चाहिए ।
घ) यूनिफार्मों पर लगाये जाने वाले बैज तथा कारों पर लगाये जानेवाले नेमप्लेट भी क्षेत्र क और ख में द्विभाषिक रूप में तैयार कराये जाने चाहिए ।
ङ) हिन्दी में तैयार किये जाने वाले आवेदन-प्रपत्रों तथा मुद्रित कराये जाने वाले साहित्य में अंकों के अंतरराष्ट्रीय रूप (1,2,3,4......) का ही प्रयोग किया जाना चाहिए ।
च) विधि, न्याय और कंपनी-कार्य मंत्रालय के कार्यदल द्वारा अनुमोदित 1 से 100 तक सभी अंकों के मानक रूप (जिन्हें भारत सरकार, शिक्षा और संस्वफ्ति मंत्रालय, हिन्दी निदेशालय ने प्रकाशित किया था) बैंकों को भेजे गये थे । बैंकों को चाहिए कि वे अपने सभी कार्यालयों और शाखाओं को निर्देश दें कि वे इन अंकों की वर्तनी हिन्दी में (शब्दों में) लिखते समय उसी प्रकार लिखें ताकि अंकों के लेखन, टंकण और मुद्रण में एकरूपता सुनिश्चित की जा सके ।
छ) बैंकों द्वारा तैयार की गयी सांख्यिकीय पॉकेट बुक्स और अन्य सांख्यिकीय सामग्री द्विभाषिक रूप में प्रकाशित की जानी चाहिए । वफ्हदाकार (बड़े) प्रकाशनों के मामले में उनके हिन्दी और अंग्रेजी रूपांतर अलग-अलग प्रकाशित किये जा सकते हैं ।
ज) बैंकों को अपने प्रशिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रमों में हिन्दी को एक विषय के रूप में शामिल करना चाहिए ।
झ) हिन्दी के प्रयोग को प्रोत्साहन देने की दृष्टि से बैंक अपने आंचलिक /क्षेत्रीय कार्यालयों के बीच प्रतियोगिता आयोजित करने और विजेता को शील्ड देने की योजना बना सकते हैं । तथापि प्रत्येक बैंक अपनी आवश्यकताओं के अनुसार अपनी योजना स्वयं बनाने के लिए स्वतंत्र है ।
ञ) जैसा कि राजभाषा कार्यान्वयन समिति की 28वीं बैठक में निर्णय लिया गया था, बैंक हिन्दी में अधिकतम काम करने वाली शाखा /शाखाओं को ट्रॉफी देने की योजना बनायें ।
ट) भारत सरकार की हिन्दी शिक्षण योजना के अंतर्गत संचालित प्रबोध, प्रवीण और प्राज्ञ परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले कर्मचारियों को प्रमाणपत्र वितरित करने के लिए वर्ष में कम से कम एक समारोह अवश्य आयोजित किया जाना चाहिए ।
ठ) डाक और तार विभाग वर्तमान तार के पतों का हिन्दी लिप्यंतरण, बिना कोई अतिरिक्त प्रभार लिये, पंजीवफ्त कर रहा है। इसलिए बैंक अपने तार के पतों का हिन्दी लिप्यंतरण पंजीवफ्त करा लें ।
ढ) उत्तर पूर्व के राज्यों में नयी योजनाओं इत्यादि के प्रचार के लिए हिन्दी में भी होर्डिंग प्रदर्शित करने पर जोर दिया जाना चाहिए ।
45. निजी क्षेत्र के बैंकों में हिन्दी का प्रयोग
व) मार्च 1972 में निजी क्षेत्र के बैंकों को सूचित किया गया था कि भारत सरकार, वित्त मंत्रालय, बैंकिंग प्रभाग की 12 जुलाई और 22 दिसंबर 1971 की बैठकों में बैंकों में हिन्दी के प्रयोग की स्थिति की समीक्षा करते समय यह नोट किया गया कि बैंकों द्वारा हिन्दी के प्रयोग की स्थिति संतोषजनक नहीं है तथा हिन्दी में प्राप्त पत्रों का उत्तर प्राय: अंग्रेजी में दिया जाता है । साथ ही हिन्दी हस्ताक्षरों के सत्यापन के चलते विलंब होता है और बैंक के ग्राहकों को ऐसी असुविधा होती है जिससे बचा जा सकता है । इस स्थिति में सुधार लाने और बैंकों में हिन्दी का प्रगामी प्रयोग सुनिश्चित करने की दृष्टि से भारत सरकार ने 9 फरवरी 1972 के अपने कार्यालय आदेश सं. 13016/1/हिन्दी 72 द्वारा निम्नलिखित सुझाव दिये थे :
क) बैंकों को चाहिए कि वे अपने कार्यालयों /शाखाओं में दैनंदिन कारोबार में हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा दें, वह भी विशेषत: उनमें जो हिन्दीभाषी क्षेत्रों में स्थित हैं ।
ख) बैंकों को चाहिए कि वे अपने कार्यालयों /शाखाओं में आवेदनपत्रों के मानक प्रारूप, चेकबुक, जमा पर्ची इत्यादि हिन्दी में मुद्रित करायें और उपलब्ध करायें, वह भी विशेषत: उनमें जो हिन्दीभाषी क्षेत्रों में स्थित हैं ।
ग) बैंकों को चाहिए कि वे विज्ञापन हिन्दी और अंग्रेजी में - अर्थात् द्विभाषिक रूप में - जारी करें, वह भी विशेषत: हिन्दी भाषी क्षेत्रों में ।
घ) बैंक के कार्यालयों को, वह भी जो विशेषत: हिन्दीभाषी क्षेत्रों में स्थित हैं, हिन्दी में किये गये हस्ताक्षरों को, अंग्रेजी में प्रतिहस्ताक्षर कराने की किसी अतिरिक्त औपचारिकता के बिना, स्वीकार करना चाहिए ।
वव) यदि बैंकों में इन सुझावों को पहले कार्यान्वित न किया गया हो तो संबंधित बैंक इन्हें कार्यान्वित करने के लिए आवश्यक कदम उठायें । बैंकों को चाहिए कि वे भारतीय रिज़र्व बैंक को इन सुझावों को कार्यान्वित करने की स्थिति की सूचना दें तथा उन उपायों की भी जानकारी दें जो वे इस संबंध में करना चाहते हैं ।
ववव) वित्त मंत्रालय, भारत सरकार की हिन्दी सलाहकार समिति की दिनांक 28 जून 1978 को आयोजित की गयी पहली बैठक में, सरकारी क्षेत्र के बैंकों में हिन्दी के प्रयोग की स्थिति की समीक्षा की गयी थी । यह अपेक्षा की गयी थी कि निजी क्षेत्र के बैंक भी ग्राहक सेवा के हित में यथासंभव सीमा तक हिन्दी का प्रयोग करें । इस प्रयोजन के लिए, सरकारी क्षेत्र के बैंकों द्वारा अपने यहां हिन्दी के प्रगामी प्रयोग के संबंध में किये गये विभिन्न उपायों की विशिष्टताएं अनुबंध में दी गयी हैं । साथ ही सरकारी क्षेत्र के बैंकों से यह भी कहा गया था कि वे इन उपायों के कार्यान्वयन की स्थिति और उन्हें कार्यान्वित करने के लिए उनके द्वारा प्रस्तावित उपायों के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक को अवगत करायें ताकि भारतीय रिज़र्व बैंक भारत सरकार को प्रत्येक बैंक में हिन्दी के प्रयोग में हुई प्रगति की सूचना दे सके । यह भी बताया गया था कि भारतीय रिज़र्व बैंक के बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग (डीबीओडी) में एक राजभाषा अनुभाग काम कर रहा है तथा कोई भी बैंक अपने यहां उसी तरह का कक्ष /अनुभाग स्थापित करने के लिए या हिन्दी के प्रगामी प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए किसी भी तरह की सहायता लेना चाहे तो वह भारतीय रिज़र्व बैंक के बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग के राजभाषा अनुभाग से संपर्क स्थापित कर सकता है ।
डपैराग्राफ सं. ख (ववव) देखें
हिन्दी के प्रगामी प्रयोग के लिए सरकारी क्षेत्र के बैंकों द्वारा किये गये
उपायों की विशिष्टताएं
- हिन्दी में (पूरी तरह) लिखे गये चेकों को, बिना किसी अतिरिक्त औपचारिकता के, स्वीकार करना ।
- विशेषत: हिन्दी भाषी क्षेत्रों में स्थित बैंकों की शाखाओं में ‘‘बैंक हिन्दी में हस्ताक्षरित चेक स्वीकार करता है’’ लिखा हुआ साइनबोड़ /नोटिसबोड़ प्रदर्शित किया जाना ।
- हिन्दी भाषी क्षेत्रों में स्थित कार्यालयों द्वारा हिन्दी भाषी क्षेत्रों में भेजे गये सभी पत्रों इत्यादि पर पते लिखने के लिए हिन्दी का प्रयोग ।
- बैंकों के पत्रशीर्ष इत्यादि द्विभाषिक रूप में मुद्रित कराना ।
- लिफाफों पर बैंकों के नाम और पते द्विभाषिक रूप में मुद्रित कराना ।
- हिन्दी भाषी क्षेत्रों में नेम बोड़ /साइनबोड़ इत्यादि द्विभाषिक रूप में और अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में त्रिभाषिक रूप में (अर्थात् क्षेत्रीय भाषा, हिन्दी और अंग्रेजी के क्रम से) प्रदर्शित करना ।
- जनता के साथ संपर्क वाले स्थानों पर द्विभाषिक रबर मुहरों का प्रयोग ।
- बैंकों द्वारा विज्ञापन द्विभाषिक रूप में जारी किया जाना ।
- बैंकों के प्रधान द्वारा हिन्दी के प्रयोग के संबंध में सभी परिपत्र, पत्र इत्यादि द्विभाषिक रूप में जारी किया जाना ।
- बैंकों द्वारा आयोजित जनहित के अखिल भारतीय सम्मेलनों की कार्यसूची से संबंधित टिप्पणियाँ और उससे संबंधित कार्यविवरण द्विभाषिक रूप में जारी किया जाना ।
- सांविधिक /गैर-सांविधिक दस्तावेजों और कार्यविधि विषयक साहित्य इत्यादि का हिन्दी अनुवाद ।
- चेकबुक, जमापर्चियां, आवेदनपत्रों के मानक प्ररूप इत्यादि द्विभाषिक रूप में मुद्रित कराना और उन्हें बैंकों के सभी कार्यालयों को उपलब्ध कराना, वह भी विशेषत: उनमें जो हिन्दी भाषी क्षेत्रों में स्थित हैं ।
- बैंकों की वार्षिक रिपोर्टें इत्यादि हिन्दी और अंग्रेजी में साथ-साथ प्रकाशित कराना ।
- डायरियों में अंग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी में भी विवरण मुद्रित कराना ।
- बैंकों में भर्ती /विभागीय परीक्षाओं में प्रश्नों के उत्तर देने के लिए हिन्दी के प्रयोग का विकल्प उपलब्ध कराना, वह भी विशेषत: उनमें जो हिन्दी भाषी क्षेत्रों में स्थित हैं ।
- बैंक कर्मचारियों को सेवाकालीन हिन्दी प्रशिक्षण, और
- कार्यालयीन प्रयोजनों के लिए हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए हिन्दी प्रकाशन उपलब्ध कराना ।
(पैराग्राफ 43.घ् देखें)
काम की उन मदों की सूची जिन्हें कंप्यूटरों पर हिन्दी में किया जा सकता है
(88वीं बैठक के कार्यविवरण के साथ भेजी गयी )
(सभी बैंकों से प्राप्त सुझावों के आधार पर समेकित)
- पत्राचार
- प्रबंध सूचना प्रणाली की विभिन्न मदें
- नेम बोड़ /नेम प्लेट्स
- राजभाषा अधिनियम की धारा 3(3) की विभिन्न मदें
- प्रशिक्षण सामग्री (पावर पॉइंट में प्रस्तुति सहित)
- वेतनपर्चियां और वेतन पत्रक
- नये खाताधारियों को जारी किया जाने वाला स्वागतपत्र
- नये खाताधारियों का परिचय देने वालों को जारी किया जानेवाला धन्यवाद पत्र
- पासबुकों में प्रविष्टियां
- ग्राहकों को खाताविवरण देना
- विभिन्न बिलों और भत्तों के भुगतान से संबंधित कार्य
- बैठकों से संबंधित सूचनाएं, कार्यसूची और कार्यविवरण
- स्थापना और स्टाफ से संबंधित सभी कार्य
- समूह बीमा से संबंधित सूचनाएं
- नीति संबंधी दिशा-निर्देश
- सभी प्रकार की प्रचार सामग्री
- आवधिक रिपोर्टें
- विवरणियां
- शाखा बैंकिंग
- ऋण वसूली के लिए अनुस्मारक
- भविष्य निधि और पेंशन का ब्यौरा
- ऋण मंजूरी संबंधी सूचनाएं
- बैंकर चेक और ड्राफ्ट
- भुगतान आदेश /जमा आदेश
- सावधि जमा रसीदें
- जमाराशियों की परिपक्वता संबंधी सूचनाएं
- चेक (म्पलि) लिस्ट तैयार करना
- ग्राहकों के साथ शाखा अधिकारियों की बैठकों से संबंधित सभी लिखित कार्य
- डिमांड ड्राफ्ट्स
- चेक वापसी का मेमो
- वेबसाइटों पर हिंदी में अधिक से अधिक सामग्री
- इंटरनेट पर और कार्पोरेट ई-मेल के माध्यम से हिंदी (देवनागरी) में ई-मेल संदेशों का आदान-प्रदान
- ऋण मंजूरी की प्रक्रिया से संबंधित नोट
बैंपविवि.राभा. 1722/सी.486/53-91 |
29 जून 1991 |
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बैंपविवि.राभा. 240/सी.486/53-91 |
24 अक्तूबर 1991 |
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बैंपविवि.राभा. बीसी 65/सी.486/53-91 |
27 दिसंबर 1991 |
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बैंपविवि. बीसी 122/06.02.06/92 |
23 अप्रैल 1992 |
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बैंपविवि.राभा. 1/06.02.01/92 |
1 जुलाई 1992 |
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बैंपविवि.बीसी सं.27/06.02.01/94 |
8 मार्च 1994 |
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बैंपविवि.बीसी सं.286/06.02.01/95 |
30 जनवरी 1995 |
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बैंपविवि. बीसी सं. 51/06.02.01/98 |
2 जून 1998 |
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बैंपविवि. सं. 06/06.02.01/98 |
4 जुलाई 1998 |
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बैंपविवि. बीसी सं. 60/06.11.04/98-99 |
8 जून 1999 |
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बैंपविवि. बीसी सं. 68/06.11.04/98-99 |
7 जुलाई 1999 |
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बैंपविवि. सं. 38/06.11.04/99-2000 |
26 जुलाई 1999 |
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बैंपविवि. सं. 51/06.03.05/99-2000 |
3 अगस्त 1999 |
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बैंपविवि. बीसी सं. 90/06.11.04/99-2000 |
18 सितंबर 1999 |
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बैंपविवि. सं. 94/06.07.03/99-2000 |
30 सितंबर 1999 |
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बैंपविवि. बीसी. सं. 01/06.11.04/99-2000 |
06 जनवरी 2000 |
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बैंपविवि. सं. 747/06.11.04/99-2000 |
29 फरवरी 2000 |
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बैंपविवि. बीसी. सं. 146/06.11.04/99-2000 |
08 मार्च 2000 |
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बैंपविवि. बीसी. सं. 162/06.11.04/99-2000 |
03 अप्रैल 2000 |
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बैंपविवि. बीसी. सं. 185/06.11.04/99-2000 |
21 जून 2000 |
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बैंपविवि. बीसी. सं. 10/06.11.04/2000-2001 |
25 जुलाई 2000 |
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बैंपविवि. सं. 155/06.02.01/2000-2001 |
8 सितंबर 2000 |
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बैंपविवि. सं. 160/06.11.04/2000-2001 |
12 सितंबर 2000 |
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बैंपविवि. बीसी. सं. 55/06.11.04/2000-2001 |
27 नवंबर 2000 |
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बैंपविवि. बीसी. सं. 89/06.11.04/2000-2001 |
15मार्च 2001 |
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बैंपविवि. बीसी. सं. 40/06.11.04/2001-2002 |
31 अक्तूबर 2001 |
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बैंपविवि. सं. 257/06.11.04/2001-2002 |
10 दिसंबर 2001 |
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बैंपविवि. सं. 308/06.02.01/2001-2002 |
18 जनवरी 2002 |
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बैंपविवि. सं. 83/06.11.04/2001-2002 |
27 मार्च 2002 |
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बैंपविवि. बीसी. सं. 16/06.11.04/2002-2003 |
9 अगस्त 2002 |
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बैंपविवि. बीसी. सं. 49/06.11.04/2002-2003 |
13 दिसंबर 2002 |
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बैंपविवि. बीसी. सं. 77/06.11.04/2002-2003 |
5 मार्च 2003 |
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बैंपविवि. सं. 610/06.02.01/2002-2003 |
12 अप्रैल 2003 |
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बैंपविवि. सं. 14/06.02.10/2003-2004 |
16 जुलाई 2003 |
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बैंपविवि. सं. 121/06.02.01/2003-2004 |
30 सितंबर 2003 |
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बैंपविवि. सं. 250/06.11.04/2003-2004 |
30 दिसंबर 2003 |