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माइक्रो वित्त - बैंकों के साथ तथ्य पता लगाने हेतु संयुक्त अध्ययन

भारिबैं. 2006-07 /185
ग्राआऋवि.कें.का.प्लान.बीसी.सं.34/04.09.22/2006-07

नवंबर 22, 2006

अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक
सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों सहित )

महोदय,

माइक्रो वित्त - बैंकों के साथ तथ्य पता लगाने हेतु संयुक्त अध्ययन

हाल ही में रिज़र्व बैंक और कुछ प्रमुख बैंकों द्वारा आयोजित माइक्रो वित्त के संबंध में तथ्य पता लगाने हेतु संयुक्त अध्ययन में निम्नलिखित अवलोकन किए गए :

i) ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ बैंकों अथवा उनके मध्यस्थों/भागीदारों के रुप में कार्यरत माइक्रो वित्त संस्थाएँ तुलनात्मक रुप से कुछ बेहतर बैंक युक्त क्षेत्रों , स्वयं सहायता समूह - बैंक सहलग्न कार्यक्रम द्वारा कवर किए गए क्षेत्रों सहित, पर ध्यान केद्रित कर रहे हैं । माइक्रोवित्त संस्थाएँ भी उसी क्षेत्र में ही कार्यरत हैं और गरीबों के उसी समूह तक पहुँचने की कोशिश करने की स्पर्धा में हैं, जिसका परिणाम बहुमुखी उधार और ग्रामीण घरेलू क्षेत्र पर अतिरिक्त भार है ।

ii) बैंकों द्वारा समर्थित बहुत सी माइक्रो वित्त संस्थाएँ अपेक्षित स्तर तक क्षमता निर्माण और समूहों को अधिकारयुक्त करने की दिशा में कार्यरत नहीं हैं । माइक्रोवित्त संस्थाएँ नवगठित समूहों को उनके गठन के 10-15 दिन के भीतर ही ऋण संवितरित कर रही थी ; यह स्वयं सहायता समूह -बैंक सहलग्नता कार्यक्रम की प्रक्रिया, जो समूहों के गठन / उन्हें सुयोग्य बनाने / सहारा देने के लिए लगभग 6-7 माह का समय लेती है , के विपरीत है। इसके परिणामस्वरुप इन माइक्रो वित्त संस्थाओं द्वारा गठित समूहों में संयोगशीलता और प्रयोजन की भावना उत्पन्न नहीं हो रही थी ।

iii) ऐसा प्रतीत होता है कि बैंक माइक्रो वित्त संस्थाओं के प्रमुख वित्तपोषक होने के कारण, अपनी प्रणाली, प्रक्रिया और उधार नीतियों के संबंध में उन्हें सम्मिलित नहीं करते हैं ताकि बेहतर पारदर्शिता और सर्वोत्तम प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित किया जा सके । बहुत से मामलों में, ऋण सुविधाएँ स्वीकृत करने के बाद माइक्रो वित्त संस्थाओं के परिचालनों की समीक्षा नहीं की गई ।

2. हम ये निष्कर्ष आपकी जानकारी में ला रहे हैं ताकि आप, जहाँ भी आवश्यक हो, आवश्यक सुधारात्मक कार्रवाई कर सकें ।

भवदीय,

(रोज़मेरी सेबेस्टियन )
महा प्रबंधक

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