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प्राधिकृत व्यापारी बैंकों द्वारा ओवरसीज़ विदेशी मुद्रा उधार-सीमा में वृध्दि

भारिबैंक/2013-14/240
ए.पी.(डीआईआर सीरीज) परिपत्र सं. 40

10 सितंबर 2013

सभी श्रेणी-I प्राधिकृत व्यापारी बैंक

महोदया/ महोदय,

प्राधिकृत व्यापारी बैंकों द्वारा ओवरसीज़ विदेशी मुद्रा उधार-सीमा में वृध्दि

प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंकों का ध्यान 15 अक्तूबर 2008 के ए.पी.(डीआईआर सीरीज) परिपत्र सं. 23 की ओर आकृष्ट किया जाता है, जिसके अनुसार :

(i) मौजूदा बाह्य वाणिज्यिक उधार, अपने प्रधान कार्यालय, समुद्रपारीय शाखाओं, तदनुरूपी बैंकों से प्राप्त ऋण और ओवरड्राफ्ट तथा नास्ट्रो खाते में ओवरड्राफ्ट (पांच दिनों में समायोजित न हुए) सहित सभी श्रेणी के ओवरसीज़ विदेशी मुद्रा उधार, पिछली तिमाही के अंत में उनकी कुल अक्षत टियर I पूंजी के 50% अथवा 10 मिलियन अमरीकी डालर (अथवा उसके समतुल्य) में से, जो भी अधिक हो, से अधिक नहीं होने चाहिए, और

(ii) प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंकों द्वारा विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण के वित्तपोषण हेतु लिए गए समुद्रपारीय उधार, विदेशी बैंकों के प्रधान कार्यालयों द्वारा टियर-II पूंजी के रूप में भारत में उनकी शाखाओं में रखे गए गौण ऋण, नवोन्मेषी शाश्वत ऋण लिखत जारी करके ली/बढ़ायी गयी पूंजीगत निधियां और विदेशी मुद्रा में ऋण पूंजी लिखत तथा रिज़र्व बैंक के विशिष्ट अनुमोदन से लिए गए अन्य समुद्रपारीय उधार इस सीमा से बाहर होंगे।

2. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंकों को समुद्रपारीय निधियां प्राप्त करने में और लचीलापन प्रदान करने की दृष्टि से यह निर्णय लिया गया है कि इस सुविधा को और उदार बनाया जाए। तदनुसार, प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंक अब आगे से अपने प्रधान कार्यालय, समुद्रपारीय शाखाओं और तदनुरूपी बैंकों से निधियाँ तथा नास्ट्रो खाते में ओवरड्राफ्ट उधार ले सकते हैं जो पिछली तिमाही के अंत में उनकी कुल अक्षत  टियर-I पूंजी की अब तक की 50% की सीमा के बजाए 100% अथवा 10 मिलियन अमरीकी डालर (अथवा उसके समतुल्य) में से, जो भी अधिक हो, (विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण के वित्तपोषण हेतु लिए गए उधारों और पूँजी लिखतों को छोड़कर) से अधिक नहीं होंगे।

3. बाज़ार की मौजूदा स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए, यह भी निर्णय लिया गया है कि प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंक, अपने विकल्प पर, इस परिपत्र की तारीख के बाद लिए गए उधारों के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ स्वाप लेनदेन संबंधी करार कर सकते हैं। यह स्वाप न्यूनतम एक वर्ष की अवधि और अधिकतम तीन वर्ष की अवधि हेतु लिए गए सभी नये उधारों के संबंध में बाज़ार दर से 100 आधार बिंदु कम की रियायती दर पर उपलब्ध होंगे, भले ही ऐसे उधार अक्षत टियर । पूँजी के 50 प्रतिशत से अधिक हों अथवा नहीं। इसके अलावा, हालांकि स्वाप उधार की पूरी अवधि के लिए होंगे, फिर भी इनकी दर प्रत्येक वर्ष के बाद पुनर्निधारित की जाएगी जो ऐसी तारीख को प्रचलित बाज़ार दर से 100 आधार बिंदु कम होगी। जबकि बैंक किसी भी मुक्त रूप से परिवर्तनीय मुद्रा में उधार ले सकते हैं, स्वाप अमरीकी डालर को रुपये में परिवर्तित करने के लिए ही उपलब्ध होंगे और अमरीकी डालर के समतुल्य की गणना स्वाप की तारीख को प्रचलित संबंधित विनिमय दर (Cross rate) पर की जाएगी। प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंक स्वाप सुविधा के लिए प्रधान मुख्य महाप्रबंधक, वित्तीय बाज़ार विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक, केंद्रीय कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं। रियायती स्वाप विंडो 30 नवंबर 2013 तक खुली रहेगी। यह नोट किया जाए कि भारतीय रिज़र्व बैंक स्वाप लेनदेन को मना करने अथवा पर्याप्त समय पहले सूचना देकर इस सुविधा को वापस लेने का अधिकार सुरक्षित रखता है। 24 मार्च 2004 के ए.पी.(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं. 81 में निहित सभी अन्य निर्देश अपरिवर्तित बने रहेंगे।

4. इसके अलावा, अपनी अक्षत टियर । पूँजी के 50 प्रतिशत के अब तक के अनुमत स्तर की सीमा से अधिक उधार निम्नलिखित शर्तों के अंतर्गत लिए जा सकेंगे :

(i) बैंक के पास बोर्ड अनुमोदित समुद्रपारीय उधार नीति हो जिसमें बैंक द्वारा विदेशी मुद्रा में समुद्रपारीय उधार लेते समय जोखिम प्रबंधन व्यवहार का पालन करना सम्मिलित हो।

(ii) बैंक ने 12 प्रतिशत का सीआरएआर बनाये रखा हो ।

(iii) वर्तमान उच्च्तम सीमा से अधिक के उधारों की न्यूनतम देयता अवधि तीन वर्ष होगी।

(iv) सभी अन्य वर्तमान मानदंड (फेमा विनियम, एनओपीएल मानदंड, आदि) लागू बने रहेंगे।

5.  प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंक इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने संबंधित घटकों और ग्राहकों को अवगत करायें ।

6. भारतीय रिज़र्व बैंक ने अब 6 सितंबर 2013 के जी.एस.आर. सं. 595 (ई) के जरिये अधिसूचित, 5 सितंबर 2013 की अधिसूचना सं. फेमा. 286/2013-आरबी के द्वारा संबंधित विनियमों में संशोधन कर दिया है।

7. इस परिपत्र में निहित निर्देश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10 (4) और धारा 11 (1) के अधीन और अन्य किसी कानून के अंतर्गत अपेक्षित अनुमति/अनुमोदन, यदि कोई हो, पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बगैर जारी किए गए हैं ।

भवदीय,

(सी. डी. श्रीनावासन)
मुख्य महाप्रबंधक

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