छोटे और मध्यम उद्यमों को ऋण उपलब्ध कराने के लिए नीतिगत पैकेज - केंद्रीय वित्त मंत्री मबेदय द्वारा की गयी घोषणा - आरबीआई - Reserve Bank of India
छोटे और मध्यम उद्यमों को ऋण उपलब्ध कराने के लिए नीतिगत पैकेज - केंद्रीय वित्त मंत्री मबेदय द्वारा की गयी घोषणा
भारिबैं / 2005-06 / 131
ग्राआऋवि. पीएलएनएफएस.बीसी.सं. 31 /06.02.31/2005-06
अध्यक्ष / प्रबंध निदेशक /
सभी सरकारी क्षेत्र के बैंक मबेदय ,
छोटे और मध्यम उद्यमों को ऋण उपलब्ध कराने के लिए नीतिगत पैकेज - केंद्रीय वित्त मंत्री मबेदय द्वारा की गयी घोषणा
माननीय वित्त मंत्री, भारत सरकार ने छोटे और मध्यम उद्यमों को ऋण उपलब्ध कराने के लिए 10 अगस्त 2005 को संसद में कतिपय उपायों की घोषणा की (नीतिगत पैकेज की प्रतिलिपि संलग्न है ), जिसका कार्यान्वयन सभी सरकारी क्षेत्र के बैंकों द्वारा किया जाना आवश्यक है । तदनुसार, बैंक निम्नानुसार कार्रवाई कर सकते हैं :-
उक्त क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराने में सुधार लाने के उपाय
2. वर्तमान में बेसयरी, बथ के औज़ार, दवा और फार्मास्यूटिकल्स, लेखन सामग्री और खेल-कूद के सामान के अंतर्गत कुछ विशेष वस्तओं के संबंध में, जबँ निवेश की सीमा 5 करोड़ रुपए तक बढ़ा दी गई बे, को छोड़कर लघु उद्योग इकाई वह औद्योगिक उपक्रम है, जिसका संयंत्र और मशीनरी में निवेश 1 करोड़ रु. से अधिक न बें । एक व्यापक विधिव्यवस्था संसद में विचाराधीन है, जिससे लघु उद्योगों का छोटे और मध्यम उद्यमों में आमूल-चूल परिवर्तन सुलभ बे सकेगा । उपर्युक्त विधिव्यवस्था का अधिनियम बेने तक वर्तमान लघु उद्योगों / अत्यंत लघु उद्योगों की परिभाषा वही रहेगी । संयंत्र और मशीनरी में लघु उद्योग सीमा से अधिक तथा 10 करोड़ रु. तक निवेश वाली इकाइयां मध्यम उद्यम मानी जाएंगी । प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र में केवल लघु उद्योग वित्तपोषण ही सम्मिलित किया जाएगा । बैंक मध्यम उद्यमों को ऋण उपलब्धि बढ़ाने के लिए नीति की रुपरेखा बनाएं, जो बैंकों की छोटे और मध्यम उद्यमों को ऋण नीति के समग्र ढांचे में भी सम्मिलित बेती बे ।
3. सभी बैंक छोटे और मध्यम उद्यम क्षेत्र को वित्तपोषण हेतु स्वयं के लक्ष्य निर्धारित करें ताकि पहले के वर्ष से अधिक संवितरण परिलक्षित बे सके तथा अत्यंत लघु इकाइयों और अपेक्षा से छोटी इकाइयों के लिए वित्तपोषण हेतु क्रमश: 40% और 20% की सीमा तक उप-लक्ष्य वही रहेंगे । बैंक नई परिभाषा के अनुसार 31 मार्च 2005 को छोटे और मध्यम उद्यम क्षेत्र को बकाया ऋण का ब्योरा एकत्र करने तथा अत्यंत लघु, छोटे और मध्यम उद्यमों को अलग-अलग दर्शाने की व्यवस्था करें ।
4. बैंक उधार की लागत की पारदर्शक रेटिंग प्रणाली जो उद्यम के क्रेडिट रेटिंग से सहलग्न बे, अपनाकर छोटे और मध्यम उद्यम क्षेत्र के लिए ऋणों की लागत को युक्तिसंगत बनाने के लिए आवश्यक कदम उठाएं ।
सिडबी ने छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए उधार मूल्यांकन और रेटिंग साधन (सीएआरटी) साथ ही साथ जोखिम मूल्यांकन मॉडल (आरएएम) और जोखिम मूल्यांकन प्रस्तावों के लिए व्यापक रेटिंग मॉडल विकसित किये हैं । बैंक इन मॉडलों का उचित लाभ उठाकर अपनी लेन-देन लागत कम करने पर विचार कर सकते हैं ।
राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम ने बल ही में लघु उद्योग इकाइयों का प्रसिध्द क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा उनका क्रेडिट रेटिंग करवाने के लिए प्रोत्साहन देने हेतु एक क्रेडिट रेटिंग योजना आरंभ की है । बैंक उपलब्धता और जबं कहीं छोटे और मध्यम उद्यम उधारकर्ता इकाइयों को दिये गये रेटिंग के आधार पर उनकी ब्याज दरों के उचित पध्दति के अनुसार इन रेटिंग पर विचार कर सकते हैं ।
सिडबी, क्रेडिट इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (इंडिया) लि. के साथ मिलकर क्रेडिट रेटिंग एजेंसी के शीघ्र गठन के लिए आवश्यक कदम उठा रही है ।
5. छोटे और मध्यम उद्यम क्षेत्र को औपचारिक ऋण की पहुंच बढ़ाने की दृष्टि से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों सहित सभी बैंक प्रति वर्ष अपनी प्रत्येक अर्धशहरी / शहरी शाखा में औसत कम से कम 5 नये छोटे / मध्यम उद्यमों को क्रेडिट कवर देने के सधन प्रयास करें ।
6. भारतीय रिज़र्व बैंक ने लघु उद्योग अग्रिमों के संबंध में दिनांक 1 जुलाई 2005 को एक विस्तफ्त मास्टर परिपत्र ग्राआऋवि.पीएलएनएफएस.बीसी.सं. 03/06.02.31/2005-06 जारी किया है जिसमें लघु उद्योग इकाइयों के ऋण आवेदन पत्रों के निपटान हेतु लिया जाने वाला समय, वह सीमा जबँ तक बैंक संपार्श्विक रहित ऋण प्रदान कर सकते हैं , इत्यादि के बारे में निर्दिष्ट किया गया है । उक्त दिशानिर्देशों के आधार पर बैंकों के बोड़ छोटे और मध्यम उद्यमी क्षेत्र को ऋणों के संबंध में वर्तमान नीतियों की तुलना में अधिक व्यापक तथा अधिक उदार नीतियाँ तैयार कर सकते हैं । बैंकों द्वारा इस प्रकार की नीतियाँ तैयार किए जाने तक लघु और मध्यम उद्यम इकाइयों को प्रदान किए जाने वाले ऋण के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक के वर्तमान अनुदेश लागू रहेंगे ।
7. छोटे तथा मध्यम उद्यम क्षेत्र को सामूहिक आधार पर वित्तपोषण से लेन-देन लागत में कमी, जोखिम कम करने की संभावना बेती है तथा इससे मूलभूत ढाँचे में सुधार के लिए उचित स्तर उपलब्ध बेता है । अभी तक 388 समूबें की पहचान कर ली गई है । छोटे तथा मध्यम उद्यम क्षेत्र के वित्तपोषण हेतु समूह आधारित दृष्टिकोण से बेने वाले लाभों के मेनिज़र बैंक इसे एक महत्चपूर्ण क्षेत्र मान सकते हैं तथा छोटे और मध्यम उद्यम वित्तपोषण हेतु इसे अपनाने को बढ़ावा दे सकते हैं । भारतीय बैंक संघ के सहयोग से सिडबी प्रत्येक पहचान किए गए समूह में जोखिम पर सामान्य आँकड़े इकठ्ठे करने के लिए आवश्यक उपाय कर सकता है तथा छोटे (अत्यन्त छोटे सहित) उद्यमों के लिए सूचना प्रौद्योगिकी समर्थित आवेदन पत्र, मूल्यांकन और निगरानी प्रणाली विकसित कर सकता है । यह आशा है कि इस उपाय से लेन-देन लागत में कमी आएगी तथा छोटे तथा अत्यन्त लघु उद्यमियों को समूह में ऋण उपलब्ध कराने में सुधार बेगा ।
सरकारी निजी भागीदारी के माध्यम से समूह में मूलभूत सुविधाओं के विकास हेतु वित्तपोषण विकल्पों को व्यापक बनाने के लिए सिडबी, जोखिम उठाने वालों के परामर्श से एक योजना तैयार करेगा ।
इस बीच, सिडबी ने चयनित समूबें में लघु उद्यम वित्तीय केन्द्र (एस ई एफ सी) स्थापित करने की प्रक्रिया आरंभ कर दी है । प्रत्येक समूह के जोखिम प्रोफाइल का अध्ययन व्यावसायिक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी द्वारा किया जाएगा तथा ऐसी जोखिम प्रोफाइल रिपोर्टें वाणिज्य बैंकों को उपलब्ध करा दी जाएंगी । जिले का प्रत्येक अग्रणी बैंक कम से कम एक समूह को अपनाने पर विचार कर सकता है ।
8. छोटे तथा मध्यम उद्यम क्षेत्र की रुग्ण इकाइयों के पोषण हेतु ऋण पुनर्गठन तंत्र तथा बैंकों की बहियों में 31 मार्च 2004 को छोटे अनर्जक आस्तियों के खातों के लिए एक बारगी समझौता योजना बैंकों द्वारा आरम्भ की जा रही है । इस संबंध में आवश्यक परिपत्र पफ्थक रूप से जारी किया जा रब है ।
9. निगरानी और समीक्षा तंत्र
क) लघु उद्योग क्षेत्र को ऋण की समीक्षा के लिए वर्तमान संस्थागत व्यवस्था यथा रिज़र्व बैंक में स्थायी परामर्शदात्री समिति तथा बैंक के प्रधान कार्यालय स्तर पर कक्ष तथा महत्वपूर्ण क्षेत्रीय केन्द्र समग्र रूप से अत्यंत लघु क्षेत्र सहित छोटे तथा मध्यम उद्यम क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराए जाने की समय-समय पर समीक्षा करेंगें ।
ख) क्षेत्रीय कार्यालयों में रिज्!र्व बैंक, रुग्ण लघु उद्योग और मध्यम उद्यम इकाइयों के पुनर्वास तथा छोटे एवं मध्यम उद्यम के वित्तपोषण में हुई प्रगति की समीक्षा करने और क्षेत्र में सहज ऋण उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु तथा अन्य बैंकों/वित्तीय संस्थानों और राज्य सरकार के साथ बााधाओं, यदि कोई बें, के निवारण हेतु समन्वय करने के लिए अधिकार प्राप्त समितियों का गठन कर रब है जिनके अध्यक्ष रिज़र्व बैंक के क्षेत्रीय निदेशक बेंगे । ये क्षेत्र स्तरीय समितियाँ समूह/जिला स्तर पर ऐसी ही समितियां गठित करने की आश्यकता का निर्णय लेगी ।
ग) बैंक मध्यम उद्यम की प्रधानता वाले पहचाने गए समूबें/केन्द्रों में विशेषीवफ्त छोटी और मध्यम उद्यम शाखाएं सुनिश्चित करें ताकि छोटे और मध्यम उद्यमी की बैंक ऋण हेतु सुलभ पहुँच बे सके तथा बैंक स्टाफ में आवश्यक दक्षता विकसित करने में सबयक बन सके । मौजूदा विशेषीवफ्त लघु उद्योग शाखाओं को छोटी और मध्यम उद्यम शाखाओं के रुप में पुन: नामित किया जाएगा । बलाँकि, मुख्य क्षमता को छोटे और मध्यम उद्यम क्षेत्र में वित्त और अन्य सेवाएं प्रदान करने हेतु उपयोग में लाया जाएगा लेकिन उसमें अन्य क्षेत्रों/ उधारकर्ताओं को वित्त/अन्य सेवाएं प्रदान करने में परिचालन संबंधी लचीलापन बेगा ।
घ) व्यापक प्रसार और सुलभ पहुँच के लिए बैकों के बोड़ द्वारा तैयार किए गए नीति संबंधी दिशा-निर्देश तथा रिज़र्व बैंक द्वारा जारी अनुदेश/दिशा-निर्देश संबंधित बैंकों के वेब साइट और सिडबी के वब साइट पर प्रदर्शित किए जाएं । बैंक छोटे उद्यमियों को उनके द्वारा प्रदान की जा रही सभी सुविधाओं/योजनाओं को उनकी प्रत्येक शाखा में भी मुख्य रूप से प्रदर्शित करें ।
10. आपके निदेशक मंडल द्वारा तैयार किए जानेवाले उपर्युक्त अनुदेशें और दिशा-निर्देशों की सूचना तत्काल कार्यान्वयन हेतु आपके नियंत्रक कार्यालय और शाखाओं को दे दी जाए ।
11. बैंक के बोड़ स्व-निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति तथा छोटे और मध्यम उद्यम खातों के पुनर्वास और पुनर्गठन में हुई प्रगति की समीक्षा त्रैमासिक आधार पर करें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस क्षेत्र को बैंकों के उच्चतम मंच पर आवश्यक महत्व दिया जा रब है ।
12. वफ्पया प्राप्ति-सुचना दें ।
भवदीय
(जी. श्रीनिवासन)
मुख्य मबप्रबंधक
छोटे और मध्यम उद्यमों को ऋण उपलब्ध कराने के लिए नीतिगत पैकेज
लघु उद्योग लगभग 8000 उत्पादकों का उत्पाद करता है जो औद्योगिक उत्पादन का 40% है और जो वफ्षि के बाद बड़ी संख्या में रोज़गार प्रदान करता है । अत: यह क्षेत्र राष्ट्र को विश्व में प्रधानता पाने के लिए स्थानीय प्रतियोगी लाभ प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है । इन पहलुओं को पहचानते हुए राष्ट्रीय साझा न्यूनतम कार्यक्रम में लघु क्षेत्र के विकास की बढ़ौती के लिए निम्नलिखित घोषणा की गयी है ।
"घरेलू और कारीगरी विनिर्माण को अधिक प्रौद्योगिकी, निवेश और विपणन सबयता दी जाएगी । लघु उद्योग को इंस्पेक्टर राज से मुक्त किया जाएगा तथा संपूर्ण ऋण, प्रौद्योगिकी और विपणन सबयता प्रदान की जाएगी । बड़े औद्योगिक समूबें में मूलभूत सुविधाओं के उन्नयन पर तुरंत ध्यान दिया जाएगा । "
2. लघु उद्योग से छोटे और मध्यम उद्यम : नवीन प्रतिमान की परिभाषा
2.1 सरकारी नीति तथा ऋण नीति ने अब तक लघु उद्योग क्षेत्र में विनिर्माण इकाइयों पर ध्यान दिया है । विश्व में व्यापार अड़चने कम बेने से उद्यमों के व्यवबर्य न्यूनतम मान बढ़ गया है । फर्मों को वैश्विक प्रतियोगिक बनाने के लिए नियोजित यूनिट और तकनीक की मात्रा अब अधिक है । लघु उद्योग क्षेत्र की परिभाषा पर पुनर्विचार की आवश्यकता है तथा नीति की परिधि में सेवाओं तथा व्यापार क्षेत्रों को शामिल करने हेतु विचार किया जाना चाहिए । वैश्विक प्रक्रिया के मेनिजर इस क्षेत्र की वर्तमान अवधारणा को व्यापक बनाने तथा छोटे और मध्यम उद्यमों के संमिश्र क्षेत्र में मध्यम उद्यमों को शामिल करने की आवश्यकता है । लघु उद्योगों का छोटे और मध्यम उद्यमों में आमूल-चूल परिवर्तन करने के लिए एक व्यापक विधि - व्यवस्था संसद के विचाराधीन है । इस बीच भारतीय रिज़र्व बैंक ने आंतरिक समूह का गठन किया है जिसने यह सिफारिश की है । वर्तमान लघु उद्योगों / अत्यंत लघु उद्योगों की परिभाषा वही रहेगी । संयंत्र और मशीनरी में लघु उद्योग सीमा से अधिक तथा 10 करोड़ रु. तक निवेशवाली इकाइयां मध्यम उद्यम मानी जाएंगी । प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र में केवल लघु उद्योग वित्तपोषण ही सम्मिलित किया जाएगा ।
2.2 यह प्रस्ताव है कि बैंकिंग क्षेत्र द्वारा दी जानेवाली ऋण सुविधाओं के संबंध में सिफारिश को स्वीकफ्त किया जाए और तदनुसार भारतीय रिज़र्व बैंक को अनुरोध किया जाए कि छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए बैंकों की ऋण नीति की समग्र रुप-रेखा के भीतर छोटे और मध्यम उद्यमों को ऋण उपलब्धि बढ़ाने हेतु एक नीति तैयार करने के लिए बैंकों को सूचित किया जाए ।
2.3 छोटे और मध्यम क्षेत्र के सामने आयी चुनौतियाँ संक्षेप में निम्नानुसार हैं -
क) छोटे और मध्यम उद्यम विशेषकर छोटे उद्यम के अत्यंत छोटे खंड के पास वित्त संबंधी जानकारी और अनौपचारिक व्यापार व्यवबर के अभाव के कारण वित्त हेतु अपर्याप्त पहुँच बेती है । छोटे और मध्यम उद्यमों के पास निजी ईक्विटी और उद्यम के लिए पूंजी तक पहुँच तथा अनुषंगी बाजार उपकरण में सीमित पहुँच का भी अभाव है ।
ख) छोटे और मध्यम उद्यम उनकी निविष्टियाँ तथा उत्पादनों के संबंध में बिखरे हुए बाजार का सामना करते हैं तथा अस्थिर बाजार के प्रति असुरक्षित हैं ।
ग) छोटे और मध्यम उद्यमों में अंतर-राज्य और अंतर्राष्ट्रीय बाजार के प्रति आसान पहुँच का अभाव है ।
घ) छोटे और मध्यम उद्यमों की प्रौद्योगिकी और उत्पाद की नवीन प्रक्रिया में भी सीमित पहुँच है । वैश्विक सर्वोत्तम व्यवबर में जागरुकता का अभाव है ।
ङ) छोटे और मध्यम उद्यमों को बड़े क्रेता से बिलों का बकाया / भुगतान के निपटान में विलंब का सामना करना पड़ता है ।
वित्तीय क्षेत्र के अविनियमन से छोटे और मध्यम उद्यम क्षेत्र की ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने की बैंकों की क्षमता, निहित लेन-देन लागत, प्रभावशाली वसूली प्रक्रियाएं और उपलब्ध प्रतिभूति पर निर्भर है । बैंकिग क्षेत्र द्वारा छोटे और मध्यम उद्यमों की ऋण और वित्तीय आवश्यकताओं पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है ।
- छोटे और मध्यम उद्यमों को सही कीमत पर ऋण की मात्रा बढ़ाना
3.1 सरकारी क्षेत्र के बैंकों को छोटे और मध्यम उद्यमों के निधियन हेतु अपने लक्ष्य निर्धारित करने के लिए सूचित किया जाएगा ताकि छोटे और मध्यम उद्यमों को ऋण में प्रतिवर्ष न्यूनतम 20% की वफ्ध्दि बे सकें । इसका उेश्यि छोटे और मध्यम उद्यमों को ऋण उपलब्धि 5 वर्ष की अवधि के भीतर अर्थात वर्ष 2004-05 में 67,600 करोड़ रुपए से वर्ष 2009-10 में 1,35,200 करोड़ रुपए तक दुगुनी करना है ।
3.2 सरकारी क्षेत्र के बैंकों को उधार की लागत की पारदर्शक रेटिंग प्रणाली जो उद्यम के क्रेडिट रेटिंग से सहलग्न बे , को अपनाने के लिए सूचित किया जाएगा ।
3.3 सिडबी, क्रेडिट इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (इंडिया) लि. के साथ मिलकर क्रेडिट रेटिंग एजेंसी के शीघ्र गठन के लिए आवश्यक कदम उठाएगा ।
3.4 सिडबी भारतीय बैंक संघ के साथ मिलकर प्रत्येक पहचाने गए समूह में जोखिम पर समान ब्योरे एकत्र करेगा तथा छोटे उद्यमों (अत्यंत छोटे उद्यमों सहित) के लिए सूचना प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग, मूल्यांकन और निगरानी प्रणाली विकसित करेगा । इससे लेन-देन लागत घट जाएगी और छोटे (अत्यंत छोटे उद्यमों सहित ) उद्यमों को समूबें में ऋण उपलब्ध कराने में सुधार बेगा ।
3.5 राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम ने बल ही में लघु उद्योग इकाइयों का प्रसिध्द क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा उनका क्रेडिट रेटिंग करवाने के लिए प्रोत्साहन देने हेतु एक क्रेडिट रेटिंग योजना आरंभ की है । सरकारी क्षेत्र के बैंकों को सूचित किया जाएगा कि वे इन रेटिंग की उपलब्धता के आधार पर उचित रुप से विचार करें तथा अपनी दरें उचित रुप से तैयार करें ।
3.6 सिडबी ने छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए उधार मूल्यांकन और रेटिंग साधन (सीएआरटी) साथ ही साथ जोखिम मूल्यांकन मॉडल (आरएएम) और जोखिम मूल्यांकन ऋण प्रस्तावों के लिए व्यापक रेटिंग मॉडल विकसित किये हैं । सरकारी क्षेत्र के बैंकों को सूचित किया जायेगा कि वे इन मॉडलों का उचित लाभ उठाकर अपनी लेन-देन लागत कम करने पर विचार कर सकते हैं ।
4. औपचारिक ऋण की पहुँच : नये खाते खोलना
वाणिज्य बैंकों (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों सहित) की लगभग 67,000 शाखाएं प्रति वर्ष अपनी प्रत्येक अर्धशहरी / शहरी शाखा में औसत कम से कम 5 नये छोटे / मध्यम उद्यमों को क्रेडिट कवर देने के सदन प्रयास करेंगें ।
5. रुग्ण इकाइयों को सामान्य स्थिति में लाने हेतु उनका पोषण : ऋण पुनर्निर्धारण
रिज़र्व बैंक ऋण पुनर्निर्धारण तंत्र संबंधी विस्तफ्त दिशा-निर्देश जारी करेगा ताकि सभी पात्र छोटे और मध्यम उद्यमों का ऋण पुनर्निर्धारण सुनिश्चित किया जा सके जो बैंकिंग क्षेत्र में कंपनी ऋण पुनर्निर्धारण तंत्र से कम अनुकूल नहीं है । उधारकर्ता इकाई के अनुरोध पर पुनर्निर्धारण किया जाएगा । "बनि आस्तियां" के रुप में वर्गीवफ्त को छोड़कर सभी खाते पुनर्निर्धारण के लिए पात्र बेंगे, बशर्ते औद्योगिक इकाइयाँ सक्षम या संभाव्य रुप से सक्षम बे ।
रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देशों के आधार पर बैंक अपने निदेशक मंडल के अनुमोदन से खातों के पुनर्निर्धारण संबंधी और उदार नीतियां तैयार कर सकते हैं । जब तक बैंक स्वयं की नीतियां नहीं बनाता तब तक रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देश लागू बेंगे ।
बैंकों की बहियों में 31 मार्च 2004 को छोटे अनर्जक आस्तियों के खातों के लिए एक-बारगी समझौता योजना आरंभ की जा रही है । यह योजना 31 मार्च 2006 से लागू बेगी ।
6. सुविधा हेतु उपाय
रिज़र्व बैंक ने लघु उद्योग इकाइयों के ऋण आवेदन पत्रों के निपटान हेतु लिए जाने वाले समय, वे सीमा जबँ बैंक संपार्श्विक रहित और सम्मिश्र ऋण प्रदान कर सकते हैं, लघु उद्योग इकाइयों को कार्यकारी पूंजी ऋण सीमा की गणना के मानदण्ड, प्रत्येक जिले में कम से कम एक विशेषीवफ्त शाखा खोलने इत्यादि के संबंध में मार्च 2005 में एक मास्टर परिपत्र जारी किया था । इन दिशानिर्देशों को न्यूनतम निर्दिष्ट मानते हुए बैंक लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र को अग्रिम देने के संबध में एक व्यापक और अधिक उदार नीति तैयार करेंगे । बैंकों द्वारा ऐसी नीति तैयार किए जाने तक बैंकों द्वारा लघु और मध्यम उद्यम इकाइयों को अग्रिम देने हेतु लागू वर्तमान अनुदेश जारी रहेंगे ।
7. लघु उद्योगों के लिए क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट योजना (सीजीटीएसआइ)
वर्तमान में, बैंकों जैसी सदस्य उधारदाता संस्थाओं को चूक की राशि का 75%, गारंटी कवर सीजीटीएसआइ द्वारा दिया जाता है । सदस्य उधारदाता संस्थाओं द्वारा संपार्श्विक जमानत और/या तफ्तीय पक्ष गारंटी लिए बिना नये और वर्तमान लघु उद्योग इकाइयों/सूचना प्रौद्योगिकी/सॉफटवेयर इकाइयां / लघु उद्योग सेवा व्यवसाय उद्यम (एसएसएसबीइ) को 25 लाख रु. तक मीयादी ऋण और /या कार्यकारी पूंजी सुविधाओं के लिए दिया जाता है । वर्तमान में, सीजीटीएसआइ द्वारा सदस्य उधारदाता संस्थाओं से स्वीकफ्त ऋण सीमा के 2.5% एकमुश्त गारंटी फीस और 0.75% वार्षिक सेवा फीस प्रभारित की जाती है । उधारकर्ताओं के कमज़ोर वर्ग को विशेष कर अत्यंत लघु इकाइयों को गारंटी लागत कम करने के लिए सीजीटीएसआइ को सूचित किया जाएगा कि निम्नलिखित के लिए एकमुश्त गारंटी फीस घटाकर 2.5% से 1.5% की जाए :- (व) 2 लाख रु. तक के ऋण (वव) पात्र महिला उद्यमी और (ववव) उत्तर पूर्वी क्षेत्र (सिक्किम) तथा जम्मू और कश्मीर में स्थित पात्र उधारकर्ता । साथ ही, सरकारी क्षेत्र के बैंकों को (व) 2 लाख रुपए तक के ऋण (वव) पात्र महिला उद्यमी और उत्तर पूर्वी क्षेत्र (सिक्किम) तथा जम्मू और कश्मीर में स्थित पात्र उधारकर्ताओं को गारंटी के संबंध में 0.25% से अधिक वार्षिक सेवा फीस को आमेलित करने को प्रोत्साहित किया जाए ।
8. समूह आधारित दृष्टिकोण
छोटे तथा मध्यम उद्यम क्षेत्र को सामूहिक आधार पर वित्तपोषण से लेन-देन लागत में कमी, जोखिम कम करने की संभावना बेती है तथा इससे मूलभूत ढाँचे में सुधार के लिए उचित स्तर उपलब्ध बेता है । अभी तक 388 समूबें की पहचान कर ली गई है । छोटे तथा मध्यम उद्यम क्षेत्र के वित्तपोषण हेतु समूह आधारित दृष्टिकोण से बेने वाले लाभों के मेनिज़र बैंक इसे एक महत्चपूर्ण क्षेत्र मान सकते हैं तथा छोटे और मध्यम उद्यम वित्तपोषण हेतु इसे अपनाने को बढ़ावा दे सकते हैं । सरकारी निजी भागीदारी के माध्यम से समूह में मूलभूत सुविधाओं के विकास हेतु वित्तपोषण विकल्पों को व्यापक बनाने के लिए सिडबी, जोखिम उठाने वालों के परामर्श से एक योजना तैयार करेगा ।
सिडबी ने चयनित समूबें में लघु उद्यम वित्तीय केन्द्र (एस ई एफ सी) स्थापित करने की प्रक्रिया आरंभ कर दी है । प्रत्येक समूह के जोखिम प्रोफाइल का अध्ययन व्यावसायिक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी द्वारा किया जाएगा तथा ऐसी जोखिम प्रोफाइल रिपोर्टें वाणिज्य बैंकों को उपलब्ध करा दी जाएंगी । जिले का प्रत्येक अग्रणी बैंक कम से कम एक समूह को अपनाने पर विचार कर सकता है ।
9. निगरानी केंद्रों का निर्माण - निगरानी और समीक्षा
निम्नलिखित पर्यवेक्षी व्यवस्था सुनिश्चित की जाएगी :
क) लघु उद्योग क्षेत्र को ऋण की समीक्षा के लिए वर्तमान संस्थागत व्यवस्था यथा रिज़र्व बैंक में स्थायी परामर्शदात्री समिति तथा बैंक के प्रधान कार्यालय स्तर पर कक्ष तथा महत्वपूर्ण क्षेत्रीय केन्द्र यथार्थ और नियमित बेंगे । वे छोटे तथा मध्यम उद्यम क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराए जाने की भी समीक्षा करेंगें ।
ख) क्षेत्रीय कार्यालयों में रिज़र्व बैंक, रुग्ण लघु उद्योग और मध्यम उद्यम इकाइयों के पुनर्वास तथा छोटे एवं मध्यम उद्यम के वित्तपोषण में हुई प्रगति की समीक्षा करने और क्षेत्र में सहज ऋण उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु तथा अन्य बैंकों /वित्तीय संस्थानों और राज्य सरकार के साथ बााधाओं, यदि कोई बें, के निवारण हेतु समन्वय करने के लिए अधिकार प्राप्त समितियों का गठन करेंगे जिनके अध्यक्ष रिज़र्व बैंक के क्षेत्रीय निदेशक बेंगे । ये क्षेत्र स्तरीय समितियाँ समूह /जिला स्तर पर ऐसी ही समितियां गठित करने की आश्यकता का निर्णय लेगी ।
ग) बैंक छोटे उद्यम की प्रधानता वाले पहचाने गए समूबें / केन्द्रों में विशेषीवफ्त छोटी और मध्यम उद्यम शाखाएं सुनिश्चित करें ताकि छोटे और मध्यम उद्यमी की बैंक ऋण हेतु सुलभ पहुँंच बे सके तथा बैंक स्टाफ में आवश्यक दक्षता विकसित करने में सबयक बन सके । मौजूदा विशेषीवफ्त लघु उद्योग शाखाओं को छोटी और मध्यम उद्यम शाखाओं के रुप में पुन: नामित किया जाएगा ।
घ) बैंक के बोड़ को स्व-निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति तथा छोटे और मध्यम उद्यम खातों के पुनर्वास और पुनर्गठन में हुई प्रगति की समीक्षा त्रैमासिक आधार पर करने हेतु सूचित किया जाएगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस क्षेत्र को बैंकों के उच्चतम मंच पर आवश्यक महत्व दिया जा रब है ।
ङ) व्यापक प्रसार और सुलभ पहुँच के लिए बैकों के बोड़ द्वारा तैयार किए गए नीति संबंधी दिशा-निर्देश तथा रिज़र्व बैंक द्वारा जारी अनुदेश /दिशा-निर्देश संबंधित सरकारी क्षेत्र के बैंकों के वेब साइट और सिडबी के वेब साइट पर प्रदर्शित किए जाएं । बैंकों को छोटे उद्यमियों को उनके द्वारा प्रदान की जा रही सभी सुविधाओं/योजनाओं को उनकी प्रत्येक शाखा में भी मुख्य रूप से प्रदर्शित करने हेतु सूचित किया जाएगा ।