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धन शोधन निवारण (लेनदेनों के स्वरूप और लागत के अभिलेखों का रखरखाव, रखरखाव की प्रक्रिया और पद्धति तथा जानकारी प्रस्तुत करने  के लिए समय और बैंकिंग कंपनियों, वित्तीय संस्थानों और मध्यवर्ती संस्थाओं के ग्राहकों की पहचान के अभिलेखों का सत्यापन और रखरखाव) द्वितीय  संशोधन नियम, 2010 - प्राधिकृत व्याक्तियों के दायित्व

भारिबैंक/2010-11/311
ए.पी.(डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं. 24
ए.पी. (एफएल/आरएल सिरीज) परिपत्र सं.05

13 दिसंबर 2010

सभी प्राधिकृत व्यक्ति

महोदया/महोदय

धन शोधन निवारण (लेनदेनों के स्वरूप और लागत के अभिलेखों का रखरखाव, रखरखाव की प्रक्रिया और पद्धति तथा जानकारी प्रस्तुत करने  के लिए समय और बैंकिंग कंपनियों, वित्तीय संस्थानों और मध्यवर्ती संस्थाओं के ग्राहकों की पहचान के अभिलेखों का सत्यापन और रखरखाव) द्वितीय  संशोधन नियम, 2010 - प्राधिकृत व्याक्तियों के दायित्व

भारत सरकार ने 16 जून 2010 की अपनी अधिसूचना सं.10/2010-ई.एस./एफ.सं. 6/8/2009-ई.एस. के जरिये धन शोधन निवारण (लेनदेनों के स्वरुप और लागत के अभिलेखों का रखरखाव, रखरखाव की प्रक्रिया और पद्धति तथा जानकारी प्रस्तुत करने के लिए समय और बैंकिंग कंपनियों, वित्तीय संस्थानों और मध्यवर्ती संस्थाओं के ग्राहकों की पहचान के अभिलेखों का सत्यापन और रखरखाव) नियम, 2005 में संशोधन किया है। अधिसूचना की प्रति जानकारी तथा आवश्यक अनुपालन के लिए संलग्न है ।

2. यथा संशोधित उपर्युक्त नियम, जिस सीमा तक विदेशी मुद्रा लेनदेनों के संबंध में लागू हैं, की अपेक्षाओं का अनुपालन करने में किसी विफलता को, विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 की धारा 10 (4) और 11 (1) के तहत भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी निर्देशों का अनुपालन करने की विफलता भी माना जाएगा ।

भवदीय

(सलीम गंगाधरन)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक


वित्त मंत्रालय
(राजस्व विभाग)

अधिसूचना
नयी दिल्ली, 16 जून 2010

भारत का राजपत्र : असाधारण भाग ॥- खंड 3(i)

जी.एस.आर.508(ई)- धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (2003 का 15) की धारा 73 की उप-धारा 2 के खंड(एच), खंड(आइ), खंड(जे), खंड(के) के साथ पठित उप-धारा (1) द्वारा प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग करते हुए, केंद्र सरकार, भारतीय रिज़र्व बैंक से परामर्श करते हुए, एतद्द्वारा धन शोधन निवारण (लेनदेनों के स्वरुप और लागत के अभिलेखों का रखरखाव, रखरखाव की प्रक्रिया और पद्धति तथा जानकारी प्रस्तुत करने  के लिए समय  और बैंकिंग कंपनियों, वित्तीय संस्थानों और मध्यवर्ती संस्थाओं के ग्राहकों की पहचान के अभिलेखों का सत्यापन और रखरखाव) नियम, 2005 में संशोधन करने के लिए निम्नलिखित नियम बनाती है, अर्थात्:-

  1. (1) ये नियम धन शोधन निवारण (लेनदेनों के स्वरुप और लागत के अभिलेखों का रखरखाव, रखरखाव की प्रक्रिया और पद्धति तथा जानकारी प्रस्तुत करने  के लिए समय  और बैंकिंग कंपनियों, वित्तीय संस्थानों और मध्यवर्ती संस्थाओं के ग्राहकों की पहचान के अभिलेखों का सत्यापन और रखरखाव) द्वितीय संशोधन नियम, 2010कहलाएंगे।

(2) सरकारी गज़ट में प्रकाशन की तारीख से वे लागू होंगे ।

2.धन शोधन निवारण (लेनदेनों के स्वरुप और लागत के अभिलेखों का रखरखाव, रखरखाव
    की प्रक्रिया और पद्धति तथा जानकारी प्रस्तुत करने  के लिए समय  और बैंकिंग कंपनियों,
    वित्तीय संस्थानों और मध्यवर्ती संस्थाओं के ग्राहकों की पहचान के अभिलेखों का सत्यापन
    और रखरखाव) नियम, 2005 में :-

a. नियम 2 में उप-नियम (1), खंड (जी) के बाद, निम्नलिखित स्पष्टीकरण जोड़ा जाएगा, अर्थात्:-

"स्पष्टीकरण:- आतंकवाद से संबंधित गतिविधियों के वित्तपोषण में शामिल होनेवाले लेनदेनों में ऐसे लेनदेन शामिल हैं, जिनमें निधियों के आतंकवाद, आतंकी कार्यों या किसी आतंकी, आतंकी संगठन या उनसे जो आतंकवाद को वित्तपोषित करने या वित्तपोषित करने के प्रयास से संबध्द होने अथवा आतंकवाद के लिए इस्तेमाल होने का संदेह हो ।"

b. नियम 9 में, उप-नियम(1ए) के लिए, निम्नलिखित उप-नियम प्रतिस्थापित किया जाएगा, अर्थात्:-

" (1ए) प्रत्येक बैंकिंग कंपनी, वित्तीय संस्था और मध्यवर्ती संस्था, जैसी भी स्थिति हो, यह निर्धारित करेगी कि क्या ग्राहक/मुवक्किल किसी हिताधिकारी स्वामी की ओर से कार्य कर रहा है, हिताधिकारी स्वामी की पहचान करेगी तथा उसकी पहचान सत्यापित करने के लिए सभी यथोचित कदम  उठायेगी ।"

c. नियम 9 में, उप-नियम(1बी) के लिए, निम्नलिखित उप-नियम प्रतिस्थापित किया जाएगा, अर्थात्:-

" (1बी) प्रत्येक बैंकिंग कंपनी, वित्तीय संस्था और मध्यवर्ती संस्था, जैसी भी स्थिति हो, प्रत्येक मुवक्किल के साथ व्यवसाय संबंध के बारे में लगातार समुचित सावधानी बरतेगी तथा अपने मुवक्किल, उनके व्यवसाय और जोखिम प्रोफाइल तथा जहाँ आवश्यक हो, निधियों के स्त्रोत के संबंध में अपनी जानकारी से संगत होने को सुनिश्चित करने के लिए लेनदेनों की नजदीकी/सूक्ष्मता से जांच करेगी ।"

d. नियम 9 में, उप-नियम(1सी) के लिए, निम्नलिखित उप-नियम प्रतिस्स्थापित कियाजाएगा, अर्थात्:-

" (1सी) कोई भी बैंकिंग कंपनी, वित्तीय संस्था और मध्यवर्ती संस्था, जैसी भी
         स्थिति  हों, अज्ञात व्यक्ति का खाता अथवा काल्पनिक नाम का खाता अथवा किसी
         अन्य व्यक्ति, जिसकी पहचान प्रकट नहीं की गयी हो अथवा सत्यापित नहीं की जा
         सकती हो, की ओर से खाता खोलने अथवा रखने के लिए अनुमति नहीं देगी ।"

e. नियम 9 में, उप-नियम(1सी) के बाद, निम्नलिखित उप-नियम प्रतिस्थापित किया
जाएगा, अर्थात्:-

"(1डी) जब धन शोधन अथवा आतंकवाद से संबंधित गतिविधि के वित्तपोषण का शक/संदेह हो अथवा जहाँ पहले से प्राप्त ग्राहक पहचान संबंधी डाटा की पर्याप्तता अथवा यथातथ्यता के बारे में संदेह हो, तो प्रत्येक बैंकिंग कंपनी, वित्तीय संस्था और मध्यवर्ती संस्था समुचित सावधानी संबंधी उपायों की पुनरीक्षा करेगी, जिसमें मुवक्किल की पहचान फिर से सत्यापित करना तथा व्यवसाय संबंध के प्रयोजन और अभिप्रेत स्वरूप पर जानकारी प्राप्त करना, जैसी भी स्थिति हो, का समावेश होगा ।"

f . नियम 10 में, उप-नियम(3) के बाद, निम्नलिखित स्पष्टीकरण प्रतिस्थापित कियाजाएगा, अर्थात्:-

"स्पष्टीकरण: इस नियम के प्रयोजन के लिए:-

(i) 'मुवक्किल की पहचान के अभिलेख' अभिव्यक्ति में पहचान संबधी डाटा, खाते की फाइलें और व्यवसाय संबंधी पत्राचार के अभिलेखों का समावेश होगा ।
(ii)'लेनदेनों की समाप्ति' अभिव्यक्ति का अर्थ खाते अथवा व्यवसाय संबंध की समाप्ति है।"

[अधिसूचना सं.10/2010-ई.एस./एफ.सं.6/8/2009-ई.एस.]
एस.आर. मीना, अवर सचिव

टिप्पणी - मूल नियमावली 1 जुलाई 2005 को जी.एस.आर.सं.444 (ई) के जरिये सरकारी राजपत्र, असाधारण, भाग ।।, खंड 3, उपधारा (i) में प्रकाशित की गयी थी और तत्पश्चात् 13 दिसंबर 2005 को जी.एस.आर.717(ई), 24 मई 2007 को जी.एस.आर.389(ई), 12 नवंबर 2009 को जी.एस.आर. 816(ई) और 12 फरवरी 2010 को जी.एस.आर. 76(ई)  द्वारा संशोधित की गयी ।

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