विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 की धारा 6 (4)के अंतर्गत उपबंध – स्पष्टीकरण - आरबीआई - Reserve Bank of India
विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 की धारा 6 (4)के अंतर्गत उपबंध – स्पष्टीकरण
भारिबैंक/2013-14/440 9 जनवरी 2014 सभी श्रेणी-। प्राधिकृत व्यापारी बैंक और प्राधिकृत बैंक महोदया/महोदय, विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 की प्राधिकृत व्यापारियों का ध्यान विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम (फेमा), 1999 की धारा 6(4) की ओर आकृष्ट किया जाता है जिसके अनुसार भारत में निवासी कोई व्यक्ति विदेशी मुद्रा, विदेशी प्रतिभूति अथवा भारत से बाहर स्थित किसी अचल संपत्ति को धारित (होल्ड), स्वाधिकृत, अंतरित अथवा निविष्ट (invest) कर सकता है, यदि ऐसी (विदेशी) मुद्रा, प्रतिभूति अथवा संपत्ति ऐसे व्यक्ति द्वारा भारत से बाहर निवासी होने के दौरान अर्जित, धारित अथवा स्वाधिकृत की गयी हो अथवा भारत से बाहर के निवासी किसी व्यक्ति से विरासत में प्राप्त की गयी हो। 2. हमें फेमा, 1999 की धारा 6(4) में शामिल लेनदेनों के स्वरूप के संबंध में अभिवेदन प्राप्त होते रहे हैं। इस संबंध में स्पष्ट किया जाता है कि फेमा, 1999 की धारा 6(4) में निम्नलिखित लेनदेन शामिल हैं : (i) ऐसे व्यक्ति द्वारा खोले और रखे गए विदेशी मुद्रा खाते, जब वह भारत से बाहर का निवासी था; (ii) भारत से बाहर किए गए अथवा शुरू किए गए रोजगार अथवा व्यवसाय अथवा वोकेशन जब ऐसा व्यक्ति भारत से बाहर का निवासी था अथवा ऐसे व्यक्ति के भारत से बाहर निवासी रहने के दौरान किए गए निवेश अथवा ऐसे व्यक्ति के भारत से बाहर निवासी रहने पर प्राप्त उपहार अथवा विरासत से अर्जित आय; (iii) भारत से बाहर के निवासी किसी व्यक्ति से विरासत स्वरूप अर्जित विदेशी मुद्रा, उससे हुई आय और उसके परिवर्तन अथवा प्रतिस्थापन अथवा उपचित राशि सहित भारत में निवासी किसी व्यक्ति द्वारा भारत से बाहर धारित विदेशी मुद्रा राशि। (iv) भारत में निवासी कोई व्यक्ति विदेश स्थित अपनी सभी पात्र परिसंपत्तियों के साथ ही साथ ऐसी परिसंपत्तियों से हुई आय अथवा बिक्रीगत आमदनी, जो भारत लौटने पर हुई हो, को रिज़र्व बैंक की पूर्वानुमति के बगैर विदेश में भुगतान करने अथवा नए निवेश करने के लिए इस्तेमाल कर सकता है, बशर्ते ऐसे निवेशों की लागत और/अथवा तत्संबंध में प्राप्त उत्तरवर्ती भुगतान उसके द्वारा धारित पात्र परिसंपत्तियों के भाग के रूप में शामिल निधियों में से ही किया जाए और ऐसे लेनदेन फेमा के मौजूदा उपबंधों का उल्लंघन न करते हों। 3. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी । बैंक इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने संबंधित घटकों और ग्राहकों को अवगत करायें । 4. इस परिपत्र में निहित निर्देश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम,1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और धारा 11(1) के अंतर्गत और किसी अन्य कानून के अंतर्गत अपेक्षित अनुमति/अनुमोदन, यदि कोई हो, पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बगैर जारी किये गये हैं। भवदीय (रुद्र नारायण कर) |