बैंकों के तुलन पत्र में शामिल न होनेवाले एक्सपोज़र के संबंध में विवेकपूर्ण मानदंड - आरबीआई - Reserve Bank of India
बैंकों के तुलन पत्र में शामिल न होनेवाले एक्सपोज़र के संबंध में विवेकपूर्ण मानदंड
आरबीआइ/2008-09/252 29 अक्तूबर 2008 सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और स्थानीय क्षेत्र बैंकों को छोड़कर) महोदय बैंकों के तुलन पत्र में शामिल न होनेवाले एक्सपोज़र के संबंध में विवेकपूर्ण मानदंड कृपया उपर्युक्त विषय पर 13 अक्तूबर 2008 का हमारा परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 57/21.04.157/ 2008-09 देखें । 2. उपर्युक्त परिपत्र के पैरा 2.1(i) के अनुसार यदि किसी डेरिवेटिव संविदा के सकारात्मक बाजार-दर- आधारित मूल्य दर्शानेवाली प्राप्य राशि 90 दिन या उससे अधिक अवधि तक अतिदेय है तो उसे अनर्जक आस्ति माना जाना चाहिए तथा उधारकर्ता-वार वर्गीकरण के सिद्धांत के आधार पर उस ग्राहक को स्वीकृत अन्य निधिक सुविधाएं भी अनर्जक आस्ति मानी जाएंगी । 3. इस मामले की समीक्षा करने पर अब यह निर्णय लिया गया है कि उधारकर्ता-वार आस्ति वर्गीकरण के सिद्धांत को केवल वायदा संविदा तथा प्लेन वनीला स्वैप और ऑप्शंस से उत्पन्न होनेवाली अतिदेय राशियों पर ही लागू किया जाए । अत: अप्रैल 2007 से जून 2008 की अवधि के दौरान की गयी विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदाओं (वायदा संविदा तथा प्लेन वनीला स्वैप तथा ऑप्शंस को छोड़कर) के सकारात्मक बाजार-दर-आधारित मूल्य दर्शानेवाली यदि कोई राशि पहले ही निश्चित रूप धारण कर चुकी है या भविष्य में निश्चित रूप धारण कर सकती है और ग्राहक से प्राप्य हो जाती है, तो उसे ग्राहक/काउंटरपार्टी के नाम में खोले गये अलग खाते में रखा जाना चाहिए ।यह राशि 90 दिन या उससे अधिक अवधि तक देय होने पर भी उधारकर्ता-वार आस्ति वर्गीकरण के सिद्धांत के आधार पर ग्राहक को दी गयी अन्य निधिक सुविधाओं को अनर्जक आस्ति में परिणत नहीं करेगी, हालांकि 90 दिन या उससे अधिक अवधि से अतिदेय ऐसी प्राप्य राशियां विद्यमान आय निर्धारण और आस्ति वर्गीकरण (आइआरएसी) मानदंडों के अनुसार स्वयं अनर्जक आस्ति के रूप में वर्गीकृत की जाएंगी । तथापि, ऐसे ग्राहकों की अन्य आस्तियों का वर्गीकरण विद्यमान आइआरएसी मानदंडों के अनुसार किया जाना जारी रहेगा। 4. यह छूट भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं पर भी लागू होगी । 13 अक्तूबर 2008 के उपर्युक्त परिपत्र में निहित सभी अन्य अनुदेश अपरिवर्तित रहेंगे । भवदीय (प्रशांत सरन) |