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बैंकों के तुलनपत्रेतर एक्सपोजरों के संबंध में वि‍वेकपूर्ण मानदंड

आरबीआइ/2011-12/151
बैंपवि‍वि‍.  सं. बीपी. बीसी. 28/21.04.157/2011-12

11 अगस्त  2011
20 श्रावण 1933 (शक)

अध्यक्ष और प्रबंध नि‍देशक/मुख्य कार्यपालक अधि‍कारी
सभी अनुसूचि‍त वाणि‍ज्य बैंक (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और स्थानीय क्षेत्र बैंकों को छोड़कर) और
अखि‍ल भारतीय मीयादी ऋण और पुनर्वि‍त्त संस्थाएं

महोदय

बैंकों के तुलनपत्रेतर एक्सपोजरों के संबंध में वि‍वेकपूर्ण मानदंड

13 अक्तूबर 2008 के हमारे परि‍पत्र बैंपवि‍वि‍. सं.बीपी. बीसी. 57/21.4.157/2008-09 के अनुसार कि‍सी डेरि‍वेटि‍व संवि‍दा के धनात्मक बाजार दर आधारि‍त मूल्य को दर्शानेवाली अति‍देय प्राप्य राशि‍ का यदि‍ 90 दि‍न या उससे अधि‍क अवधि‍ तक भुगतान नहीं होता है तो वह अनर्जक आस्ति‍ (एनपीए) मानी जाएगी । उस मामले में ग्राहक को दी गयी अन्य सभी नि‍धि‍ आधारि‍त सुवि‍धाएं भी वर्तमान आस्ति‍ वर्गीकरण मानदंडों के अनुसार उधारकर्तावार वर्गीकरण के सि‍द्धांत का अनुसरण करते हुए एनपीए के रूप में वर्गीकृत की जानी चाहि‍ए । चूंकि‍ अति‍देय प्राप्त राशि‍यां बैंक द्वारा `लाभ और हानि‍ खाते' में उपचय के आधार पर पहले ही दर्शायी गयी वसूल न की गयी आय हैं, अत: ऐसी राशि‍ को 90 दि‍न की अति‍देय अवधि‍ के बाद प्रति‍ प्रवि‍ष्टि‍ की जानी चाहि‍ए तथा उसे ` उचंतखाता-क्रि‍स्टलाइज्ड प्राप्य राशि‍' में उसी प्रकार रखा जाना चाहि‍ए जैसे अति‍देय अग्रि‍मों के मामले में कि‍या जाता है ।

2. आगे यह स्पष्ट कि‍या जाता है कि‍ उन मामलों में जहां डेरि‍वेटि‍व संवि‍दाओं में भवि‍ष्य में और नि‍पटान होने की व्यवस्था हो, वहां बाजार दर आधारि‍त (एमटीएम) मूल्य के अंतर्गत (क) प्राप्त प्राप्य राशि‍यां और (ख) भावी प्राप्य राशि‍यों के संबंध में धनात्मक या ऋणात्मक एमटीएम शामि‍ल होगा । यदि‍ अति‍देय प्राप्य राशि‍यों का 90 दि‍न तक भुगतान नहीं होने पर डेरि‍वेटि‍व संवि‍दा समाप्त नहीं की जाती है तो ऊपर पैरा 1 में दी गयी व्यवस्था के अनुसार लाभ और हानि‍ खाते से प्राप्त प्राप्य राशि‍यों की प्रति‍ प्रवि‍ष्टि‍ करने के अलावा भावी प्राप्य राशि‍यों से संबंधि‍त धनात्मक एमटीएम की भी लाभ और हानि‍ खाते से प्रति‍ प्रवि‍ष्टि‍ करनी चाहि‍ए और उसे "उचंतखाता - धनात्मक एमटीएम" नामक खाते में रखा जाना चाहि‍ए । एमटीएम मूल्य में परवर्ती धनात्मक परि‍वर्तन `उचंतखाता - धनात्मक एमटीएम' में जमा कि‍या जाना चाहि‍ए, लाभ और हानि‍ खाते में नहीं । एमटीएम मूल्य में परवर्ती गि‍रावट `उचंतखाता - धनात्मक एमटीएम' की शेष राशि‍ में समायोजि‍त की जानी चाहि‍ए । यदि‍ इस खाते की शेष राशि‍ पर्याप्त न हो तो बाकी राशि‍ लाभ और हानि‍ खाते में नामे की जानी चाहि‍ए । अति‍देय राशि‍यों का नकद भुगतान होने पर `उचंतखाता - प्राप्त प्राप्य राशि‍यों' की शेष राशि‍यां उस हद तक `लाभ और हानि‍ खाते' में अंतरि‍त की जा सकती हैं, जि‍स हद तक भुगतान प्राप्त हुआ हो ।

3. यदि‍ बैंक का उधारकर्ता पर अन्य डेरि‍वेटि‍व एक्सपोजर हो तो कि‍सी डेरि‍वेटि‍व लेनदेन को एनपीए मानने पर प्राप्त/नि‍पटान की गयी राशि‍ के संबंध में अन्य डेरि‍वेटि‍व एक्सपोजर के एमटीएम पर भी ऊपर पैरा 2 में वर्णि‍त तरीके से कार्रवाई की जानी चाहि‍ए ।

4. चूंकि‍ द्वि‍पक्षीय नेटिंग के संबंध में कानूनी स्थि‍ति‍ पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, अत: एक ही काउंटरपार्टी से/को प्राप्य राशि‍ और देय राशि‍ तथा एक डेरि‍वेटि‍व संवि‍दा से संबंधि‍त प्राप्य राशि‍ और देय राशि‍ की नेटिंग नहीं की जानी चाहि‍ए ।

5. इसी प्रकार, यदि‍ कि‍सी उधारकर्ता को दी गयी नि‍धि‍ आधारि‍त ऋण सुवि‍धा एनपीए के रूप में वर्गीकृत की जाती है तो सभी डेरि‍वेटि‍व एक्सपोजर के एमटीएम के संबंध में उपर्युक्त रीति‍ से कार्रवाई की जानी चाहि‍ए ।

6. ये अनुदेश बकाया डेरि‍वेटि‍व संवि‍दाओं और इस परि‍पत्र की तारीख से कि‍ये जाने वाले डेरि‍वेटि‍व लेनदेनों, दोनों पर लागू होंगे ।

भवदीय

(दीपक सिंघल)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक

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