अस्थायी प्रावधानों का विवेकपूर्ण प्रयोग - आरबीआई - Reserve Bank of India
अस्थायी प्रावधानों का विवेकपूर्ण प्रयोग
आरबीआइ/2008-09/429 |
बैंपविवि. बीपी. बीसी. सं. 122/21.04.048/2008-09 |
9 अप्रैल 2009
|
19 चैत्र 1931 (शक)
|
अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक/मुख्य कार्यपालक अधिकारी |
महोदय |
अस्थायी प्रावधानों का विवेकपूर्ण प्रयोग ऋण संविभागों से संबंधित विभिन्न प्रकार के प्रावधानों के विवेकपूर्ण प्रयोग के संबंध में 25 मार्च 2009 का हमारा परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी.118/21.04.048/2008-09 देखें, जिसके द्वारा बैंकों को सूचित किया गया था कि अस्थायी प्रावधानों को सकल अनर्जक आस्तियों में से घटाकर निवल अनर्जक आस्ति की गणना नहीं की जा सकती, लेकिन अस्थायी प्रावधानों को कुल जोखिम भारित आस्तियों के 1.25% की समग्र सीमा के भीतर टीयर II पूंजी के भाग के रूप में माना जा सकता है । 2. बैंकों को यह मालूम है कि बीस देशों के समूह के नेता 2 अप्रैल 2009 को लंदन में मिले तथा उन्होंने आर्थिक उत्थान और सुधार की विश्व व्यापी योजना तथा वित्तीय प्रणाली को सुदृढ़ करने के संबंध में घोषणा की । उक्त समूह विवेकपूर्ण विनियमन के अन्तरराष्ट्रीय ढांचे को सुदृढ़ करने के लिए अनेक उपाय करने के लिए सहमत हुआ है तथा उन्होंने अपेक्षा की है कि वित्तीय स्थायित्व बोर्ड (एफएसबी), बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बासल समिति (बीसीबीएस) और वैश्विक वित्तीय प्रणाली संबंधी समिति (सीजीएफएस) लेखा मानक स्थापित करनेवालों के साथ कार्य करते हुए 2009 के अंत तक प्रोसाइक्लिकैलिटी कम करने की सिफारिशों को कार्यान्वित करे । इन सिफारिशों में एक सिफारिश यह भी है कि बैंक एक प्रतिरोधक (बफर) संसाधन बनाए अर्थात् अच्छे दिनों की पूंजी और प्रावधान का उपयोग बुरे दिनों में किया जा सके । इस स्थिति से 22 जून 2008 के हमारे परिपत्र बैंपविवि. बीपी. बीसी. 89/21.04.048/2005-06 में निहित अस्थायी प्रावधानों के उपयोग से संबंधित अनुदेश परिवर्तित हो जाएंगे । 3. यद्यपि एफएसबी, बीसीबीएस और सीजीएफएस प्रोसाइक्लिकैलिटी को कम करने के लिए यथासमय व्यापक उपाय तैयार करेंगे और भारतीय रिज़र्व बैंक भी प्रोसाइक्लिकैलिटी को कम करने के लिए कदम उठाता रहेगा, तथापि यह आवश्यक है कि बैंक अच्छे दिनों में अस्थायी प्रावधान जैसे बफर बनाने के महत्व को समझें ताकि वे प्रतिकूल परिस्थितियों में उनका उपायोग कर सकें । अत: बैंकों को प्रोत्साहित किया जाता है कि वे अस्थायी प्रावधानों का बफर निर्माण करें ताकि बाद में आस्ति गुणवत्ता पर संभावित दबाव का सामना करने के लिए उनका उपयोग किया जा सके । प्रोसाइक्लिकैलिटी को कम करने के संबंध में एफएसबी, बीसीबीएस और सीजीएफएस द्वारा सिफारिशों को अंतिम रूप दिये जाने के बाद भारतीय रिज़र्व बैंक इस वर्ष इस संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश जारी करेगा । 4. यह निर्णय लिया गया है कि 25 मार्च 2009 के उपर्युक्त परिपत्र के पैरा (iv) का कार्यान्वयन वर्ष 2009-10 तक आस्थगित कर दिया जाए । अत: बैंक या तो सकल अनर्जक आस्तियों से अपने मौजूदा अस्थायी प्रावधान घटाकर निवल अनर्जक आस्तियां प्राप्त कर सकते हैं या अस्थायी प्रावधानों को कुल जोखिम भारित आस्तियों के 1.25% की समग्र सीमा के भीतर टीयर II पूंजी का अंग मान सकते हैं । यह नोट किया जाए कि यह विकल्प केवल वित्तीय वर्ष 2008-09 तक ही सीमित है । |
भवदीय |
(प्रशांत सरन) |