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79160042

कारपोरेट ऋण प्रतिभूतियों में तैयार वायदा संविदाएँ

भारिबैं/2014-15/447
एफएमआरडी.डीआइआरडी.04/14.03.002/2014-15

3 फरवरी 2015

सभी बाजार प्रतिभागी

कारपोरेट ऋण प्रतिभूतियों में तैयार वायदा संविदाएँ

कृपया आप कारपोरेट ऋण प्रतिभूतियों में तैयार वायदा संविदाओं के संबंध में अधिसूचना सं. आइडीएमडी.पीसीडी.21/11.08.38/ 2010-11 दिनांक 9 नवंबर 2010 और अधिसूचना सं. आइडीएमडी.पीसीडी. 08/14.03.02/ 2012-13 दिनांक 4 जनवरी 2013 द्वारा यथा संशोधित अधिसूचना सं.आइडीएमडी.डीओडी.04/11.08.38/2009-10 दिनांक 8 जनवरी 2010 देखें । परिपत्र आइडीएमडी.डीओडी.08/11.08.38/2009-10 दिनांक 16 अप्रैल 2010, आइडीएमडी.पीसीडी.1423/14.03.02/2012-13 दिनांक 30 अक्तूबर 2012 और आइडीएमडी.पीसीडी.13/14.01.02/2013-14 दिनांक 25 जून 2014 की ओर भी ध्यान आकृष्ट किया जाता है ।

2. कारपोरेट ऋण बाजार को और विकसित करने के लिए यह निर्णय लिया गय़ा है कि भारत में बहुपक्षीय वित्तीय संस्थाओं, यथा, विश्व बैंक समूह (उदाहरणार्थ, आइबीआरडी, आइएफसी), एशियाई विकास बैंक और अफ्रीकी विकास बैंक द्वारा जारी किये गये बांडों को कारपोरेट ऋण प्रतिभूतियों में रेपो के लिए पात्र आधार के रूप में अनुमति दी जाये ।

3. इस संबंध में एफएमआरडी. डीआइआरडी.03/14.03.002/2014-15 दिनांक 3 फरवरी 2015 द्वारा जारी किये गये निदेश (कारपोरेट ऋण प्रतिभूतियों में रेपो, निदेश 2015) संलग्न हैं ।

भवदीय,

(डिंपल भांडिया)
महाप्रबंधक

अनुलग्नक : यथोक्त


भारतीय रिज़र्व बैंक
वित्तीय बाजार विनियमन विभाग
23वीं मंजिल केंद्रीय कार्यालय
फोर्ट मुम्बई 400 001
मुम्बई, 3 फरवरी 2015

कारपोरेट ऋण प्रतिभूतियों में रेपो (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2015

भारतीय रिज़र्व बैंक लोक हित में आवश्य़क समझते हुए और देश के लाभार्थ वित्तीय प्रणाली को विनियमित करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 (आरबीआई ऐक्ट) की धारा 45डब्लू द्वारा प्रदत्त शक्तियों का और उन सभी शक्तियों का प्रयोग करते हुए, जो इसके लिए उसे समर्थ बनाती हैं, इसके द्वारा उन सभी व्यक्तियों को, जो कारपोरेट ऋण प्रतिभूतियों में रेपो लेन देन करते हैं, निम्नलिखित निदेश देता है ।

1. संक्षिप्त नाम और निदेशों का प्रारंभ

इन निदेशों को कारपोरेट ऋण प्रतिभूतियों में रेपो (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2015 कहा जा सकेगा और ये 3 फरवरी 2015 से प्रभावी होंगे और ये इस संबंध में जारी किये गये अन्य सभी निदेशों का अधिक्रमण करेंगे ।

2. परिभाषाएँ

क. ‘कारपोरेट ऋण प्रतिभूति‘ का अर्थ है अपरिवर्तनीय ऋण प्रतिभूतियाँ, जो ऋणग्रस्तता का सृजन या अभिस्वीकृति करती हैं, जिनमें किसी कंपनी या निगम निकाय, जो केंद्र या राज्य अधिनियम के द्वारा या उसके अंतर्गत गठित किये गये हों, के डिबेंचर, बांड और ऐसी अन्य प्रतिभूतियाँ शामिल हैं, चाहे वे कंपनी या निगम निकाय की आस्तियों पर ऋण-भार का सृजन करें या नहीं करें, लेकिन इनमें सरकार या ऐसे अन्य व्यक्तियों द्वारा, जो रिज़र्व बैंक द्वारा विनिर्दिष्ट किये जायें, जारी की गयी ऋण प्रतिभूतियाँ, प्रतिभूति रसीदें और प्रतिभूतिकृत ऋण लिखतें शामिल नहीं हैं ।

ख. ‘प्रतिभूति रसीदें‘ का अर्थ है कोई प्रतिभूति, जिसकी परिभाषा सिक्युरिटाइजेशन एंड रिकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनैंशियल ऐसेट्स एंड इन्फोर्समेंट ऑफ सिक्युरिटी इंटरेस्ट ऐक्ट, 2002 (2002 का 54) की धारा 2 के खंड (जेडजी) में दी गयी है ।

ग. ‘प्रतिभूतिकृत ऋण लिखत‘ का अर्थ है उस स्वरूप की प्रतिभूतिय़ाँ, जिनका निर्देश सिक्युरिटीज कंट्रैक्ट्स (रेगुलेशन) अधिनियम, 1956 (1956 का 42) की धारा 2 के खंड (एच) के उपखंड (आइई) में किया गया है ।

3. कारपोरेट ऋण प्रतिभूतियों में रेपो के लिए पात्र अंतर्निहित संपार्श्विक

क. एक वर्ष से अधिक की मूल परिपक्वता अवधि वाली सूचीबद्ध कारपोरेट ऋण प्रतिभूतियाँ, जिनका श्रेणी-निर्धारण भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) में पंजीकृत श्रेणी-निर्धारण करने वाली एजेंसियों द्वारा ‘एए‘ या उससे ऊपर किया गया हो और जिन्हें रेपो विक्रेता के प्रतिभूति खाता में डिमैट रूप में रखा गया हो ।

ख. वाणिज्यिक पत्र (सीपी), जमा प्रमाणपत्र (सीडी) और एक वर्ष तक की मूल परिपक्वता अवधि वाले अपरिवर्तनीय डिबेंचर (एनसीडी), जिनका श्रेणी-निर्धारण सेबी में पंजीकृत श्रेणी-निर्धारण करने वाली एजेंसियों द्वारा ‘ए2‘ या उससे ऊपर किया गया हो ।

ग. ऐसे बांड, जिनका श्रेणी-निर्धारण सेबी में पंजीकृत श्रेणी-निर्धारण करने वाली एजेंसियों द्वारा या बहुपक्षीय वित्तीय संस्थाओं, यथा, विश्व बैंक समूह (उदाहरणार्थ, आइबीआरडी, आइएफसी), एशियाई विकास बैंक या अफ्रीकी विकास बैंक और ऐसे अन्य प्रतिष्ठानों द्वारा मान्यताप्राप्त श्रेणी-निर्धारण एजेंसियों द्वारा, जो समय-समय पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अधिसूचित किये जायें, ‘एए‘ या उससे ऊपर किया गया हो ।

4. पात्र प्रतिभागी

निम्नलिखित प्रतिष्ठान कारपोरेट ऋण प्रतिभूतियाँ में रेपो लेन देन करने के पात्र होंगे :

a. कोई अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक, जिसमें आरआरबी और एलएबी शामिल नहीं हैं;

b. कोई प्राथमिक व्यापारी, जो भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्राधिकृत किया गया हो;

c. कोई गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी. जो भारतीय रिज़र्व बैंक में पंजीकृत हो (कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 2 की उपधारा (45) में यथा परिभाषित सरकारी कंपनियों से भिन्न);

d. अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाएँ, यथा, एक्जिम बैंक, नाबार्ड, एनएचबी और सिडबी;

e. इंडिया इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनैंस कंपनी लिमिटेड;

f. कोई अनुसूचित शहरी सहकारी बैंक, बशर्ते कि वह भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित शर्तों का पालन करता हो;

g. अन्य विनियमित प्रतिष्ठान, बशर्ते कि उनका अनुमोदन संबंधित विनियामकों द्वारा किया गया हो, यथा,

  1. भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड में पंजीकृत कोई म्युचुअल फंड;
  2. राष्ट्रीय आवास बैंक में पंजीकृत कोई आवास वित्त कंपनी; और
  3. बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण में पंजीकृत कोई बीमा कंपनी

h. कोई अन्य प्रतिष्ठान, जिसे रिज़र्व बैंक द्वारा विनिर्दिष्ट रूप से अनुमति दी गयी है ।

5. कालावधि (Tenor)

कारपोरेट ऋण प्रतिभूतियों में रेपो न्यूनतम एक दिन और अधिकतम एक वर्ष की अवधि के लिए होंगे ।

6. व्यापार

प्रतिभागी ओटीसी बाजार में कारपोरेट ऋण प्रतिभूतियों में रेपो लेन देन करेंगे ।

7. व्यापार की रिपोर्टिंग

सभी रेपो व्यापार की रिपोर्ट व्यापार करने के 15 मिनट के भीतर क्लियरकॉर्प डीलिंग सिस्टम्स (इंडिया) लि. (सीडीएसआइएल) के रिपोर्टिंग प्लैटफार्म पर की जायेगी ।

8. व्यापार का निपटान

a. कारपोरेट ऋण प्रतिभूतियों में सभी रेपो व्यापार का निपटान या तो T+0, T+1 या T+2 आधार पर डीवीपी-। (सकल आधार) ढाँचे पर होगा ।

b. कारपोरेट ऋण प्रतिभूतियों में रेपो लेन देनों का निपटान नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) के क्लियरिंग हाउस, अर्थात्, नैशनल सिक्युरिटीज क्लियरिंग कारपोरेशन लिमिटेड (एनएससीसीएल), बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) के क्लियरिंग हाउस, अर्थात्, इंडियन क्लियरिंग कारपोरेशन लिमिटेड (आइसीसीएल), और एमसीएक्स-स्टॉक एक्सचेंज के क्लियरिंग हाउस, अर्थात्, एमसीएक्स-एसएक्स क्लियरिंग कारपोरेशन लिमिटेड (सीसीएल) के माध्यम से एनएससीसीएल, आइसीसीएल और सीसीएल द्वारा समय-समय पर विनिर्दिष्ट किये गये मानदंडों के आधार पर किया जायेगा ।

c. रेपो व्यापार को रिवर्स किये जाने की तिथि को क्लियरिंग हाउस पार्टियों के दायित्वों की गणना करेंगे और डीवीपी-। आधार पर निपटान को सुविधाजनक बनायेंगे ।

9. रेपो की गयी प्रतिभूति के विक्रय के संबंध में निषेध

रेपो के अंतर्गत अर्जित प्रतिभूतियों को रेपो क्रेता (निधियों का उधारदाता) द्वारा रेपो-अवधि के दौरान बेचा नहीं जायेगा ।

10. मार्जिन (Haircut)

एक रेटिंग आधारित न्यूनतम मार्जिन, जैसाकि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित किया जाय (या उससे अधिक, जिसका निश्चय प्रतिभागियों द्वारा रेपो अवधि और रिमार्जिनिंग के आधार पर किया जाये) कारपोरेट ऋण प्रतिभूति के बाजार मूल्य पर, जो रेपो व्यापार के प्रथम चरण की तिथि को प्रचलित हो, लागू होगा । इस समय निर्धारित न्यूनतम हेयरकट निम्नानुसार है :

रेटिंग एएए/ए1 एए+/ए2+ एए/ए2
न्यूनतम हेयरकट 7.5% 8.5% 10%

11. मूल्य-निर्धारण

कारपोरेट ऋण प्रतिभूतियों के बाजार मूल्य पर पहुँचने के लिए कारपोरेट बांडों में रेपो करने वाले प्रतिभागियों को एफआइएमएमडीए द्वारा प्रकाशित क्रेडिट स्प्रेड्स को देखना चाहिए ।

12. पूँजी पर्याप्तता

प्रतिभागी कारपोरेट ऋण प्रतभूतियों में रेपो लेन देन के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक या संबंधित विनियामकों द्वारा जारी किये गये पूँजी पर्याप्तता दिशा-निर्देशों/अनुदेशों का पालन करेंगे ।

13. प्रकटीकरण

रेपो या रिवर्स रेपो के अंतर्गत उधार दी गयी या अर्जित की गयी कारपोरेट ऋण प्रतिभूतियों के ब्यौरे तुलनपत्र के ‘नोट्स ऑन एकाउंट‘ में प्रकट किये जायेंगे ।

14. लेखांकन

कारपोरेट ऋण प्रतिभूतिय़ों में रेपो लेन देन का हिसाब रेपो/रिवर्स रेपो लेन देनों के लिए एकसमान लेखांकन के संबंध में परिपत्र आइडीएमडी/4135/11.08.43/2009-10 दिनांक 23 मार्च 2010 द्वारा, जो समय-समय पर संशोधित किये जा सकते हैं, जारी किये गये दिशा-निर्देशों के अनुसार किया जायेगा ।

15. सीआरआर/एसएलआर एवं उधार सीमा की गणना

क. किसी बैंक द्वारा कारपोरेट ऋण प्रतिभूतियों में रेपो के माध्यम से उधार ली गयी राशि को उसकी मांग और मीयादी देयताओं (डीटीएल) के एक भाग के रूप में गिना जायेगा और उस पर सीआरआर/एसएलआर लागू होगा ।

ख. किसी बैंक द्वारा कारपोरेट ऋण प्रतिभूतियों के माध्यम से लिये गये उधार को प्रारक्षित निधि अपेक्षाओं के लिए उसकी देयताओं के रूप में गिना जायेगा और जिस सीमा तक ये बैंकिंग प्रणाली की देयताएँ होंगे, उस सीमा तक उनकी नेटिंग आरबीआई ऐक्ट, 1934 की धारा 42(1) के अंतर्गत स्पष्टीकरण के खंड (घ) के अनुसार की जायेगी । तथापि, ऐसे उधार, यथास्थिति, संबंधित विनियामक विभागों द्वारा अंतर-बैंक देयताओं के लिए निर्धारित विवेकपूर्ण सीमाओं के अधीन होंगे ।

16. प्रलेखीकरण

प्रतिभागी एफआइएमएमडीए द्वारा अंतिम रूप दिये गये प्रलेखीकरण के अनुसार द्विपक्षीय मास्टर रेपो करार करेंगे ।

जी पद्मनाभन
कार्यपालक निदेशक

एफएमआरडी.डीआइआरडी.03/14.03.002/2014-15

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