क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक - प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार – लक्ष्य और वर्गीकरण - आरबीआई - Reserve Bank of India
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक - प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार – लक्ष्य और वर्गीकरण
भारिबैं/2015-16/257 03 दिसंबर 2015 अध्यक्ष प्रिय महोदय / महोदया, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक - प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार – लक्ष्य और वर्गीकरण पिछले दशक के दौरान, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी) अन्य बातों के साथ महत्वपूर्ण संरचनात्मक और परिचालनात्मक परिवर्तन के दौर से गुजरा है, चाहे वह दो चरणीय समामेलन हो, सीबीएस का कार्यान्वयन या पुनर्पूंजीकरण। वित्तीय समावेशन एजेंडा के अनुसरण में आरआरबी के बढ़ते महत्व को ध्यान में रखते हुए, यह निर्णय किया गया है कि आरआरबी के लिए प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के दिशा-निर्देशों में संशोधन किया जाए। तदनुसार, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के लिए प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार - लक्ष्य और वर्गीकरण पर व्यापक संशोधित दिशा-निर्देश अनुबंध के रूप में संलग्न है। संशोधित दिशा-निर्देशों से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक - प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार पर 1 जुलाई 2014 के मास्टर परिपत्र ग्राआऋवि.केंका.आरआरबी.बीसी.5/03.05.33/2014-15 में उल्लिखित सभी दिशा-निर्देश अधिक्रमित हुए हैं। इन दिशा-निर्देशों की कुछ मुख्य विशेषताएं निम्नानुसार हैं :
(*8 प्रतिशत का उप लक्ष्य प्राप्त न करने वाले आरआरबी इसे चरणबद्ध रूप में प्राप्त कर सकते हैं अर्थात मार्च 2016 तक 7 प्रतिशत और मार्च 2017 तक 8 प्रतिशत।) (**7.5 प्रतिशत का उप लक्ष्य प्राप्त न करने वाले आरआरबी इसे चरणबद्ध रूप में प्राप्त कर सकते हैं अर्थात मार्च 2016 तक 7 प्रतिशत और मार्च 2017 तक 7.5 प्रतिशत।) संशोधित दिशा-निर्देश 01 जनवरी 2016 से प्रभावी होंगे। इस तारीख से पहले जारी दिशा-निर्देशों के अधीन स्वीकृत प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के ऋण उनकी चुकौती / अवधि पूर्ण होने / नवीकरण तक प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाते रहेंगे। भवदीय, (ए. उद्गाता) I. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत श्रेणियां
उपर्युक्त श्रेणियों के अंतर्गत पात्र गतिविधियों के ब्योरे पैरा III में निर्दिष्ट किए गए हैं। II. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लिए लक्ष्य / उप-लक्ष्य आरआरबी के लिए निम्नानुसार प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार देने हेतु उनके कुल बकाया अग्रिमों के 75 प्रतिशत का लक्ष्य तथा उप क्षेत्र लक्ष्य होगा :
* निर्धारित सभी श्रेणियों अर्थात कृषि, एमएसएमई, शिक्षा, आवास, सामाजिक बुनियादी संरचना, नवीकरणीय ऊर्जा और अन्य में प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र का समग्र लक्ष्य प्राप्त किया जाए। तथापि, मध्यम उद्यम, सामाजिक बुनियादी संरचना तथा नवीकरणीय ऊर्जा को दिए गए उधार को कुल बकाया के केवल 15 प्रतिशत तक ही प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की उपलब्धि में गिना जाएगा। ** 8 प्रतिशत का उप लक्ष्य प्राप्त न करने वाले आरआरबी इसे चरणबद्ध रूप में प्राप्त कर सकते हैं अर्थात मार्च 2016 तक 7 प्रतिशत और मार्च 2017 तक 8 प्रतिशत। *** 7.5 प्रतिशत का उप लक्ष्य प्राप्त न करने वाले आरआरबी इसे चरणबद्ध रूप में प्राप्त कर सकते हैं अर्थात मार्च 2016 तक 7 प्रतिशत और मार्च 2017 तक 7.5 प्रतिशत। प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्यों/ उप लक्ष्यों में उपलब्धि की गणना पूर्ववर्ती वर्ष की तदनुरूपी तारीख को कुल बकाया के आधार पर की जाएगी। III प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत पात्र श्रेणियों का विवरण 1. कृषि कृषि क्षेत्र को उधार को इस तरह से वर्गीकृत किया गया है (i) कृषि ऋण (जिसमें किसानों को अल्पावधि फसल ऋण और मध्यावधि / दीर्घावधि ऋण शामिल होगा) (ii) कृषि बुनियादी संरचना और (iii) संबद्ध गतिविधियां। तीन उप श्रेणियों के अंतर्गत पात्र कार्यकलापों की सूची नीचे दी गई है :
7 प्रतिशत / 8 प्रतिशत लक्ष्य की गणना के लिए छोटे और सीमांत किसानों में निम्नलिखित शामिल होंगे :- - एक हेक्टेयर तक के भूधारक किसान सीमांत किसान माने जाते हैं। एक हेक्टेयर से अधिक परंतु 2 हेक्टेयर तक के भूधारक किसान छोटे किसान के रूप में माने जाते हैं। - भूमिहीन कृषि श्रमिक, काश्तकार, मौखिक पट्टेदार तथा बंटाईदार जिनकी जमीन की जोत में शेयर, छोटे एवं सीमांत किसानों के लिए निर्धारित सीमा के अंतर्गत हो। - स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) या संयुक्त देयता समूहों (जेएलजी) अर्थात कृषि तथा उससे संबद्ध कार्यकलापों से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े अलग-अलग छोटे और सीमांत किसानों के समूहों को ऋण, बशर्ते बैंक ऐसे ऋणों का अलग से ब्योरा रखते हों। - अलग-अलग किसानों की कृषि उत्पादक कंपनियों तथा कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी किसानों की सहकारी संस्थाओं को ऋण, जहां छोटे और सीमांत किसानों की सदस्यता संख्या की दृष्टि से 75 प्रतिशत से कम न हो और जिनकी भू-धारिता का शेयर कुल भू-धारिता के 75 प्रतिशत से कम न हो। 2. माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) 2.1. सूक्ष्म (माइक्रो), लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय द्वारा 9 सितम्बर 2006 के एस.ओ.1642(ई) द्वारा यथा अधिसूचित विनिर्माण / सेवा उद्यम के लिए संयंत्र और मशीनरी / उपकरणों में निवेश की सीमाएं निम्नानुसार हैं :
विनिर्माण और सेवा दोनों क्षेत्रों के माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यमों को दिए जाने वाले बैंक ऋण निम्नालिखित मानदंडों के अनुसार प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाने के पात्र होंगे : 2.2. विनिर्माण उद्यम उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 की प्रथम अनुसूची में निर्दिष्ट और सरकार द्वारा समय-समय पर यथा अधिसूचित किसी उद्योग के लिए विनिर्माण या वस्तुओं के उत्पादन में लगी माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम संस्थाएं। विनिर्माण उद्यमों को संयंत्र और मशीनरी में निवेश के अनुसार परिभाषित किया गया है। 2.3. सेवा उद्यम एमएसएमईडी अधिनियम, 2006 के अंतर्गत उपकरणों में निवेश के अनुसार परिभाषित और सेवाएं उपलब्ध कराने या प्रदान करने में लगे माइक्रो और लघु उद्यमों को प्रति यूनिट ₹ 5 करोड़ और मध्यम उद्यमों को ₹ 10 करोड़ तक का बैंक ऋण। 2.4. खादी और ग्राम उद्योग क्षेत्र (केवीआई) खादी और ग्राम उद्योग (केवीआई) क्षेत्र की इकाइयों को दिए गए सभी ऋण प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत माइक्रो उद्यमों हेतु नियत 7 प्रतिशत / 7.5 प्रतिशत के उप लक्ष्य के अधीन वर्गीकरण के लिए पात्र होंगे। 2.5. एमएसएमई को अन्य वित्त (i) काश्तकारों, ग्राम और कुटीर उद्योगों को निविष्टियों की आपूर्ति और उनके उत्पादन के विपणन के विकेंद्रीकृत सेक्टर को सहायता प्रदान करने में निहित संस्थाओं को ऋण। (ii) विकेंद्रित सेक्टर अर्थात काश्तकार, ग्राम और कुटीर उद्योग के उत्पादकों की सहकारी समितियों को ऋण। (iii) सामान्य क्रेडिट कार्ड (वर्तमान में प्रचलित और व्यक्तियों की कृषि से इतर उद्यमीय क्रेडिट आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले काश्तकार क्रेडिट कार्ड, लघु उद्यमी कार्ड, स्वरोजगार क्रेडिट कार्ड, तथा बुनकर कार्ड आदि सहित) के अंतर्गत बकाया ऋण। 2.6. यह सुनिश्चित करने के लिए कि एमएसएमई केवल प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की स्थिति के लिए पात्र बने रहने हेतु लघु और मध्यम उद्यम इकाई नहीं रहती है, एमएसएमई यूनिट को संबंधित एमएसएमई श्रेणी से अधिक विकसित होने के बाद तीन वर्षों तक प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार का लाभ मिलना जारी रहेगा। 2.7. पीएमजेडीवाई के अंतर्गत ओवरड्राफ्ट प्रधान मंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाई) खातों के अंतर्गत बैंकों द्वारा 8 अप्रैल 2015 से दिए गए ₹ 5,000/- तक के ओवरड्राफ्ट, बशर्ते उधारकर्ता की घरेलू वार्षिक आय ग्रामीण क्षेत्रों में ₹ 100,000/- और गैर ग्रामीण क्षेत्रों में ₹ 1,60,000/- से अधिक न हो| ये ओवरड्राफ्ट प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार के अंतर्गत माइक्रो उद्यम तथा कमजोर वर्ग के लिए निर्धारित लक्ष्य के लिए पात्र होंगे। 3. शिक्षण व्यावसायिक पाठ्यक्रमों सहित शिक्षा के प्रयोजनों के लिए व्यक्तियों को ₹ 10 लाख तक का ऋण चाहे स्वीकृत राशि कुछ भी हो, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लिए पात्र माना जाएगा। 4. आवास (i) प्रति परिवार निवासी यूनिट की खरीद / निर्माण के लिए व्यक्तियों को ₹ 20 लाख तक के ऋण बशर्ते निवासी यूनिट की समग्र सीमा ₹ 25 लाख से अधिक न हो। बैंक के अपने कर्मचारी को स्वीकृत ऋण को इसमें शामिल नहीं किया जाएगा। (ii) परिवारों के क्षतिग्रस्त निवासी यूनिटों की मरम्मत के लिए ₹ 2 लाख तक का ऋण। (iii) किसी सरकारी एजेंसी को निवासी यूनिटों के निर्माण अथवा गंदी बस्ती हटाने और गंदी बस्ती में रहने वालों के पुनर्वास के लिए प्रति निवास यूनिट ₹ 10 लाख की अधिकतम सीमा की शर्त पर बैंक ऋण। (iv) केवल आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग और निम्न आय समूह के लोगों के लिए मकान बनवाने के प्रयोजन हेतु ऐसी आवास परियोजनाओं जिनकी कुल लागत प्रति निवासी यूनिट ₹ 10 लाख से अधिक नहीं है, को बैंकों द्वारा स्वीकृत ऋण। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग और निम्न आय समूह के लोगों की पहचान के प्रयोजन के लिए वार्षिक ₹ 2 लाख की पारिवारिक आय सीमा निर्धारित है चाहे वह कहीं भी स्थित हो। 5. सामाजिक बुनियादी संरचना टियर II से टियर VI के केंद्रों में स्कूल, स्वास्थ्य रक्षा सुविधा, पेयजल सुविधा और स्वच्छता सुविधाओं, घरेलू स्वच्छता-गृहों के निर्माण / नवीकरण और घरेलू स्तर पर जल आपूर्ति में सुधार हेतु सामाजिक बुनियादी संरचना के निर्माण के लिए प्रति उधारकर्ता ₹ 5 करोड़ की सीमा तक के बैंक ऋण। 6. नवीकरणीय ऊर्जा सौर आधारित बिजली जनित्र, बायो मास आधारित बिजली जनित्र, पवन मिल, माइक्रो-हैडल संयंत्र के लिए और गैर पारंपरिक ऊर्जा आधारित सार्वजनिक उपयोग जैसे रास्ते पर बत्ती लगाने की प्रणाली तथा सुदूर गांव में विद्युतिकरण के लिए उधारकर्ताओं को ₹ 15 करोड़ की सीमा तक के बैंक ऋण। अलग-अलग परिवारों को प्रति उधारकर्ता ₹ 10 लाख की ऋण सीमा होगी। 7. अन्य 7.1 बैंकों द्वारा व्यक्तियों और उनके एसएचजी / जेएलजी को सीधे दिए जाने वाले प्रति उधारकर्ता ₹ 50,000/- से अनधिक के ऋण, बशर्ते उधारकर्ता की घरेलू वार्षिक आय ग्रामीण क्षेत्रों में ₹ 100,000/- से अनधिक हो और गैर-ग्रामीण क्षेत्रों में यह ₹ 1,60,000/- से अधिक न हो। 7.2 आपदाग्रस्त व्यक्तियों (पहले ही III (1.1) क (v) के अंतर्गत शामिल किसानों को छोड़कर) को उनके गैर संस्थागत ऋणदाताओं के कर्जं की पूर्व अदायगी के लिए प्रति उधारकर्ता ₹ 100,000/- से अनधिक के ऋण। 7.3 अनुसूचित जातियों / अनुसूचित जनजातियों के लिए राज्य प्रायोजित संगठनों को इन संगठनों के लाभार्थियों को निविष्टियों की खरीद और आपूर्ति और / या उनके उत्पादनों के विपणन के विशिष्ट प्रयोजन के लिए स्वीकृत ऋण। IV. कमज़ोर वर्ग निम्नलिखित उधारकर्ताओं को दिए जाने वाले प्राथमिताकता-प्राप्त क्षेत्र ऋण कमज़ोर वर्गो की श्रेणी के अंतर्गत शामिल हैं :
उन राज्यों में जहां अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित कोई समुदाय वास्तव में बहुसंख्यक में है वहां मद (12) केवल अन्य अधिसूचित समुदायों का समावेश होगा। ये राज्य / संघशासित क्षेत्र हैं - जम्मू और कश्मीर, पंजाब, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड और लक्षद्वीप। V. निगरानी आरआरबी द्वारा प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को दिये गए अग्रिम संबंधी डाटा नाबार्ड को तिमाही तथा वार्षिक अंतराल पर प्रस्तुत करना होगा। तिमाही और वार्षिक रिपोर्टिंग प्रारूप संलग्न है। प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार के लक्ष्य की गणना हेतु पूर्ववर्ती वर्ष की तदनरूपी तारीख (अर्थात जून 2016 को समाप्त तिमाही के लिए पीएसएल डाटा के रिपोर्टिंग के लिए, 30 जून 2015 की स्थिति के आधार पर विचार के किया जाएगा) की स्थिति के आधार पर कुल बकाया की गणना की जाएगी। VI. अन्य दिशा-निर्देश आरआरबी अपने बकाया अग्रिमों के 75 प्रतिशत से अधिक के प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्रों के अग्रिमों के संबंध में अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को अंतर बैंक सहभागिता प्रमाणपत्र (आईबीपीसी) जारी कर सकते हैं। VII. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को ऋण हेतु सामान्य दिशा-निर्देश आरआरबी को प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत अग्रिमों की सभी श्रेणियों के संबंध में निम्नलिखित सामान्य दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए। 1. ब्याज की दर बैंक ऋणों पर ब्याज दर बैंकिंग विनियमन विभाग द्वारा समय-समय पर जारी निदेशों के अनुसार रहेगी । 2. सेवा प्रभार ₹ 25,000/- तक के प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों पर ऋण संबंधी और तदर्थ सेवा प्रभार / निरीक्षण प्रभार नहीं लगाया जाना चाहिए। एसएचजी / जेएलजी को उधार देने के मामले में, ऋण की सीमा समग्र समूह की अपेक्षा एसएचजी / जेएलजी के प्रति सदस्य पर लागू होगी। 3. प्राप्ति, स्वीकृति / नामंजूर / वितरण रजिस्टर बैंक द्वारा एक रजिस्टर / इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड बनाया जाए जिसमें प्राप्ति की तारीख, मंजूरी / नामंजूरी / वितरण का कारणों सहित उल्लेख, आदि को दर्ज किया जाए। सभी निरीक्षणकर्ता एजेन्सियों को उक्त रजिस्टर / इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड उपलब्ध करवाया जाए। 4. ऋण आवेदनों की पावती जारी करना बैंकों द्वारा प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों के अंतर्गत प्राप्त ऋण आवेदनों की पावती दी जानी चाहिए। बैंक बोर्ड एक ऐसी समय सीमा निर्धारित करें जिसके पहले बैंक आवेदकों को अपना निर्णय लिखित रूप में सूचित करेंगे। VIII. संशोधन ये दिशानिर्देश रिजर्व बैंक द्वारा समय समय पर जारी किए जाने वाले अनुदेशों की शर्त के अधीन हैं। बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत प्रदान किए जाने वाले ऋण अनुमोदित प्रयोजनों के लिए हैं और उसके अंतिम उपयोग पर निरंतर निगरानी रखी जाती है। बैंकों को इस संबंध में उचित आंतरिक नियंत्रण और प्रणालियां स्थापित करनी चाहिए। |