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अग्रणी बैंक योजना की समीक्षा हेतु उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट - सिफारिशों का कार्यान्वयन

भारिबैं/2009-10/329
ग्राआऋवि.केंका.एलबीएस.एचएलसी.बीसी.सं. 56 /02.19.10/2009-10

फरवरी 26, 2010

अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
(सभी एसएलबीसी आयोजक बैंक)

महोदय,

अग्रणी बैंक योजना की समीक्षा हेतु उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट -
सिफारिशों का कार्यान्वयन

अग्रणी बैंक योजना (एलबीएस) की शुरुआत से चार दशक की अवधि के दौरान कई परिवर्तन हुए हैं जिससे योजना पर पुनर्विचार करना आवश्यक हो गया है ताकि उसे बैंकिंग क्षेत्र में हाल की गतिविधियों तथा वित्तीय समावेशन पर ध्यानपूर्वक केंद्रीकरण के साथ बदलते आर्थिक परिवेश में और भी प्रभावी बनाया जा सके। अत: अग्रणी बैंक योजना की समीक्षा हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा एक उच्च स्तरीय समिति गठित की गई।

2. समिति ने सिफारिश की कि एलबीएस उपयोगी है तथा उसे जारी रखना आवश्यक है। योजना का मुख्य उद्देश्य समाविष्ट वृद्धि के लिए बैंकों और राज्य सरकारों को एक साथ कार्य करने हेतु सक्षम बनाना।

3. समिति की सिफारिशों से उत्पन्न सभी कार्य बिन्दुओं जिस पर राज्य स्तर पर एसएलबीसी आयोजक बैंकों तथा जिला स्तर पर अग्रणी बैंकों / वाणिज्य बैंकों द्वारा कार्रवाई आवश्यक है, वे क्रमश: अनुबंध I और II में संलग्न हैं। कृपया आप सिफारिशों के शीघ्र कार्यान्वयन हेतु कार्रवाई करें तथा इस संबंध में अग्रणी बैंकों / वाणिज्य बैंकों द्वारा की गई प्रगति की निगरानी ध्यानपूर्वक करें।

4. एसएलबीसी राज्य स्तरीय विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अत: उसे कारगर और मजबूत बनाने की आवश्यकता है। अग्रणी बैंक योजना की क्षमता को सुधारने के लिए हम सूचित करते हैं कि अग्रणी बैंक योजना के अंतर्गत विभिन्न मंचों (फोरा) को मजबूत बनाया जाए। हम आपका ध्यान विशेष रूप से, राज्य और जिला स्तर पर अग्रणी बैंक योजना के कार्यान्वयन को मजबूत करने संबंधी समिति की सिफारिशों की ओर आकर्षित करते हैं। राज्य स्तरीय बैंकर समिति (एसएलबीसी) बैठकों के आयोजन पर व्याख्यात्मक दिशा-निर्देश विस्तार से नीचे प्रस्तुत हैं :

I. एसएलबीसी बैठकों का आयोजन

i) एसएलबीसी बैठकें त्रैमासिक अंतरालों पर नियमित रूप से होनी चाहिए तथा उसकी अध्यक्षता आयोजक बैंक के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक (सीएमडी) द्वारा की जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त, एसएलबीसी बैठकों की सह-अध्यक्षता संबंधित राज्य के अपर मुख्य सचिव या विकास आयुक्त द्वारा की जानी चाहिए।

ii) एसएलबीसी की बृहत् सदस्यता को देखते हुए, एसएलबीसी के लिए यह वांछनीय होगा कि वे विशिष्ट कार्यों के लिए उप-समितियों का गठन करें। उप-समितियां इन विशिष्ट कार्यों की गहराई से जांच करें तथा एसएलबीसी के विचारार्थ उपायों / सिफारिशें तैयार करें। उप-समिति की रचना तथा वित्तीय समावेशन के समीपस्थ / सुसाध्यकारी विचारणीय विषय/विशिष्ट मुद्दे, राज्यों द्वारा अनुभव की जा रही समस्याओं के आधार पर राज्य प्रति राज्य भिन्न-भिन्न हो सकते हैं।

iii) एसएलबीसी के सचिवालय / कार्यालयों को पर्याप्त रूप से मजबूत किया जाए ताकि एसएलबीसी आयोजक बैंक अपने कार्य कारगर रुप से कर सकें। प्रत्येक एसएलबीसी की अपनी वेबसाइट होनी चाहिए। प्रत्येक राज्य में, प्रतिवर्ष अप्रैल / मई में एसएलबीसी आयोजक बैंक द्वारा एक पूर्ण दिवस का सुग्राहीकरण (सेंज़ीटाइज़ेशन) कार्यशाला आयोजित की जानी चाहिए।

iv) निम्न स्तर के विभिन्न मंच उन मामलों पर एसएलबीसी को पर्याप्त फीड बैक दें जिस पर व्यापक रूप से विचार-विमर्श करना आवश्यक है।

v) विभिन्न संस्थाएं तथा शिक्षाविद ऐसे अनुसंधान और अध्ययन कर रहे हैं जो कृषि और एमएसएमई क्षेत्र के धारणीय विकास के लिए प्रभावकारी हैं। ऐसी अनुसंधान संस्थाओं तथा शिक्षाविदों की संबद्धता अग्रणी बैंक योजना के उद्देश्यों की प्राप्ति में गति लाने हेतु नए विचार लाने में उपयोगी होगी। अत: एसएलबीसी/डीसीसी ऐसे शिक्षाविदों और अनुसंधानकर्ताओं का चयन करें और उन्हें समय-समय पर एसएलबीसी / डीसीसी की दोनों बैठकों में "विशेष अतिथि" के रूप में उपस्थित रहने के लिए आमंत्रित करें ताकि वे चर्चा को और सार्थक बना सकें और उन्हें राज्य/जिला के लिए उपर्युक्त उत्पाद प्रतिपादन हेतु अध्ययन में सहभागी बनाएं। अन्य "विशेष अतिथियों" को बैठकों में चर्चा की जानेवाली कार्यसूची मदों / मामलों के आधार पर एसएलबीसी बैठकों में उपस्थित रहने के लिए आमंत्रित किया जाए।

vi) आनेवाले वर्षों में न्यूनतम आय वाले परिवारों को सुगम ऋण मुहैया कराने में एनजीओ के कार्यकलाप बढ़ने के आसार हैं। कई कार्पोरेट प्रतिष्ठान भी दीर्घकालिक विकास के लिए कार्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व गतिविधियों में लगे हुए हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि एनजीओ/कार्पोरेट आवश्यक "क्रेडिट प्लस" सेवाएं प्रदान करते हैं, क्षेत्र में परिचालित ऐसे एनजीओ/कार्पोरेट प्रतिष्ठानों के साथ बैंक की सहलग्नता, समाविष्ट वृद्धि हेतु बैंक ऋण को वृद्धिगत करने में सहायक हो सकती है। सफल वार्ताओं को एसएलबीसी/डीसीसी की बैठकों में प्रस्तुत किया जा सकता है ताकि मॉडेल के रूप में उनका अनुसरण किया जा सके।

कार्यसूची की मदें

जबकि सभी एसएलबीसी / अग्रणी बैंकों से अपेक्षा की जाती है कि वे संबंधित राज्य की विशेष समस्याओं को हल करे, तथापि कुछ ऐसे महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं जो सभी राज्यों के लिए समान हैं और जिन पर एसएलबीसी/अग्रणी बैंकों को अपने मंच पर निरपवाद रुप से विचार-विमर्श करना चाहिए, वे निम्नानुसार हैं :

i) निर्धारित समय-सीमा के भीतर बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराने हेतु रोड मैप की प्राप्ति में हुई प्रगति का आवधिक रूप से मूल्यांकन हेतु निगरानी तंत्र

ii) शत प्रतिशत वित्तीय समावेशन प्राप्त करने की दृष्टि से समयबद्ध तरीके से बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराने हेतु बैंक रहित/कम बैंक वाले क्षेत्रों को पहचानना

iii) आइटी आधारित वित्तीय समावेशन को रोकने और समर्थ बनाने वाले विशिष्ट मुद्दे

iv) समाविष्ट वृद्धि के लिए बैंकिंग विकास हेतु "सक्षम" (इनेबलर्स) को सुविधा प्रदान करना तथा "बाधकों" को हटाने / कम करने के मामले

v) बैंकों और राज्य सरकारों द्वारा "क्रेडिट प्लस" कार्यकलापों के लिए जैसे कि कारोबार प्रबंधन हेतु कौशल और क्षमता-निर्माण प्रदान कराने के लिए ऋण परामर्श केद्रों के गठन और आरसेटीज़ जैसी प्रशिक्षण संस्थानों द्वारा की गई पहल की निगरानी

vi) वार्षिक ऋण योजना (एसीपी) के अंतर्गत बैंकों के कार्य-निष्पादन की समीक्षा

vii) अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के ऋण अभिनियोजन में क्षेत्रीय असंतुलन

viii) राज्य का ऋण - जमा अनुपात

ix) प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र तथा समाज के कमजोर वर्गों को ऋण उपलब्ध कराना

x) सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाओं के अंतर्गत सहायता

xi) शैक्षिक ऋण प्रदान करना

xii). एसएचजी के अंतर्गत प्रगति-बैंक सहलग्नता

xiii) एसएमई वित्त पोषण तथा उसके मार्गावरोध, यदि कोई हें

xiv) भूमि रिकार्ड तथा वसूली तंत्र को सुधारने हेतु किए गए उपाय

xv. बैंकों द्वारा समय पर डाटा प्रस्तुत करना

xvi) राहत उपायों की समीक्षा (प्राकृतिक आपदाओं के संबंध में जहां भी लागू हो) तथा

xvii) डीसीसी/डीएलआरसी बैठकों में अनुत्तरित रह गए मामले उपर्युक्त सूची उदाहरणात्मक है, परिपूर्ण नहीं। एसएलबीसी आयोजक बैंक आवश्यक समझी जानेवाली अन्य किसी कार्यसूची मद को शामिल कर सकता है।

एसएलबीसी बैठकों में मुख्य मंत्री / वित्त मंत्री तथा राज्य/भारतीय रिज़र्व बैंक के वरिष्ठ स्तर के अधिकारियों (उप गवर्नर / कार्यपालक निदेशक पद के ) को आमंत्रित किया जा सकता है।

5. साथ ही, हम आपका ध्यान निम्नलिखित प्रमुख सिफारिशों की ओर आकर्षित करते हैं :

I.  बैंकिंग पहुँच :

i)  एसएलबीसी आयोजक बैंकों / अग्रणी बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं की पहुँच के माध्यम से शत प्रतिशत वित्तीय समावेशन प्राप्त करने की तत्काल आवश्यकता पर ध्यान केद्रित करें। यह जरूरी नहीं कि ऐसी बैंकिंग सेवाएं इंट और गारे से बनी शाखा के माध्यम से ही प्रदान की जाएं बल्कि वे बीसी सहित आइसीटी आधारित मॉडलों के विभिन्न प्रकारों के माध्यम से भी उपलब्ध करायी जा सकती हैं। तथापि, वाणिज्य बैंकों / क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा वित्तीय समावेशन प्राप्त न करने के लिए आइसीटी कनेक्टिविटी बाधक नहीं होनी चाहिए। इस संबंध में आप दिनांक 27 नवंबर 2009 का हमारा परिपत्र ग्राआऋवि.केंका.एलबीएस. एचएलसी. बीसी. सं. 43/02.19.10/2009-10 देखें।

ii)  जहां औपचारिक बैंकिंग प्रणाली द्वारा पहुँच की जरुरत है वहां सभी केद्रों में बैंकिंग विस्तार सुनिश्चित करने हेतु एसएलबीसी आयोजक बैंक रोड / डिजिटल कनेक्टिविटी, प्रेरक कानून और व्यवस्था की स्थिति, अबाधित बिजली आपूर्ति तथा पर्याप्त सुरक्षा आदि से संबंधित बाधाओं को राज्य सरकारों के पास उठाएं। तथापि, इससे वित्तीय समावेशन पहल की शुरुआत में रूकावट नहीं आनी चाहिए।

II.  निजी क्षेत्र के बैंकों के लिए बृहत्तर भूमिका

निजी क्षेत्र के बैंकों को सूचना प्रौद्योगिकी पर कार्यनीतिगत योजना में अपनी विशेषता और लिवरेजिंग लाकर सक्रिय रूप से स्वयं को शामिल करना चाहिए। अग्रणी बैंकों को अपनी ओर से यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि निजी क्षेत्र के बैंक एसीपी/डीसीपी दोनों तैयार करते समय तथा उसे कार्यान्वित करते समय अग्रणी बैंक योजना में पूर्ण रुप से सहभागी होते हैं।

III.  जिला ऋण योजना / वार्षिक ऋण योजना तैयार करना

i)  नाबार्ड देश के सभी जिलों के लिए पीएलपी तैयार करता है। ये योजनाएं प्रति वर्ष अक्तूबर-नवंबर तक तैयार हो जानी चाहिए ताकि वे जिला आयोजना प्राधिकारियों के लिए उनकी बजट योजना तैयार करने तथा अग्रणी बैंकों को जिला ऋण योजनाएं (डीसीपी) तैयार करने में निविष्टि के रूप काम कर सके। पीएलपी तैयार करने में तेजी लानी चाहिए ताकि वह प्रति वर्ष अगस्त तक पूरी हो जाए और राज्य सरकारें पीएलपी के पूर्वानुमानों में कारक प्रदान कर सकें। जिलों के लिए पीएलपी तैयार करते समय, नाबार्ड को वर्ष के लिए राज्य सरकार / बैंकों / अन्य हित धारकों द्वारा दी गई अटल वचनबद्धताओं को ध्यान में रखना चाहिए।

ii) वर्ष के लिए अपनी कारोबार योजनाओं को अंतिम रूप देते समय बैंकों के अंचल / नियंत्रक कार्यालय, एसीपी, जो कार्य-निष्पादन बजट को अंतिम रूप देने से पूर्व समय रहते तैयार हो जानी चाहिए, में दी वचनबद्धताओं को ध्यान में रखना चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाए कि डीसीपी/एसीपी तथा पीएलपी के बीच बहुत कम या कोई भिन्नता न रहे।

IV.  त्रैमासिक सार्वजनिक बैठक तथा शिकायत निवारण

अग्रणी जिला प्रबंधक, क्षेत्र में मौजूद बैंकों तथा अन्य हितधारकों के सहयोग से जिले के विभिन्न स्थानों में एक त्रैमासिक सार्वजनिक बैठक आयोजित करें ताकि विभिन्न बैंकिंग सुविधाओं, नीतियों और नियमों, जो सामान्य व्यक्ति को प्रभावित करते हों, के प्रति जागरूकता ला सकें, जनता से फीडबैक प्राप्त कर सके तथा ऐसी बैठकों में जहां तक संभव हो, शिकायत निवारण उपलब्ध करा सकें या शिकायत निवारण के लिए उचित तंत्र की पहुँच सुविधा उपलब्ध करा सकें।

V.  क्षमता निर्माण / प्रशिक्षण / प्रबोधन कार्यक्रम

i)  जिलाधीशों और जिला परिषदों के सीइओ को बैंकों और बैंकिंग सामान्य रूप से तथा अग्रणी बैंक योजना के विशिष्ट प्रयोजन और भूमिका के प्रति जागरुक करना आवश्यक है। ऐसी जागरुकता इन अधिकारियों के प्रोबेशनरी प्रशिक्षण का एक अंग होना चाहिए। साथ ही, जैसे ही वे किसी जिले में तैनात किए जाते हैं, एसएलबीसी, जिलाधीशों के लिए अग्रणी बैंक योजना की जागरुकता और उसे समझने के लिए एसएलबीसी आयोजक कार्यालय में उनके एक्सपोज़र दौरे की व्यवस्था करें।

ii)  बैंकों और सरकारी एजेंसियों के परिचालन स्तर के कर्मचारियों को जो अग्रणी बैंक योजना के कार्यान्वयन से संबद्ध हैं, अद्यतन गतिविधियों तथा उभरते अवसरों के प्रति जागरूक रहना आवश्यक है। आवधिक अंतरालों पर लगातार आधार पर कर्मचारी जागरुकता / प्रशिक्षण / संगोष्ठी आदि की आवश्यकता है।

VI.  राज्य सरकार के साथ संपर्क

चूंकि अग्रणी बैंक योजना की कारगरता जिलाधीश और अग्रणी जिला प्रबंधक की गतिशीलता तथा क्षेत्रीय / अंचल कार्यालय की सहायक भूमिका पर निर्भर करती है, आपको सूचित किया जाता है कि आप आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिए संबंधित राज्य सरकारों से संपर्क करें क्योंकि वित्तीय समावेशन के उद्देश्य को बहुत व्यापक मायनों में पाना बैंकों के लिए असंभव हो सकता है।

6.  इस परिपत्र के पूर्व जारी सभी अन्य अनुदेश क्रियाशील / प्रभावी बने रहेंगे।

7.  कृपया आप हमारे संबंधित क्षेत्रीय कार्यालयों को विभिन्न सिफारिशों पर आपके द्वारा की गई कार्रवाई से त्रैमासिक अंतरालों पर अवगत कराते रहें।

8.  कृपया प्राप्ति - सूचना दें।

भवदीया

(दिपाली पंत जोशी)
मुख्य महाप्रबंधक

अनु : यथोक्त


अनुबंध - I

अग्रणी बैंक योजना की समीक्षा हेतु उच्च स्तरीय समिति - एसएलबीसी आयोजक बैंकों हेतु कार्य बिन्दु

क्रम सं.

सिफारिश सं.

सिफारिशें

1

1

अग्रणी बैंक योजना (एलबीएस) उपयोगी है तथा उसे जारी रखना आवश्यक है। एलबीएस के अंतर्गत राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति (एसएलबीसी) तथा विभिन्न मंचों को सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाओं की निगरानी करते समय प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों को अधिक वित्तीय समावेशन तथा ऋण उपलब्धता प्रदान करने में ’सक्षम’ तथा ’बाधकों’ पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। (पैरा 3.1, 3.8)

2

3

अग्रणी बैंक योजना का मुख्य उद्देश्य समाविष्ट वृद्धि के लिए बैंकों और राज्य सरकारों को साथ में कार्य करने हेतु सक्षम बनाना होगा। (पैरा 3.4)

3

4

यह आवश्यक है कि योजना के कार्यक्षेत्र को व्यापक बनाया जाए ताकि वित्तीय समावेशन हेतु पहल, राज्य सरकारों की भूमिका, वित्तीय साक्षरता और ऋण परामर्श तथा ’क्रेडिट प्लस’ कार्यकलापों भी, समाविष्ट वृद्धि के लिए बैंकिंग विकास हेतु ’सक्षम’ (इनेबलर्स) को सुविधा प्रदान करना तथा ’बाधकों’ को हटाना / कम करना, शिकायत निवारण तंत्र आदि को कवर किया जा सकें। (पैरा 3.7)

4

7

बैंकों को उपलब्ध आइटी उपायों का अधिकतम लाभ उठाना चाहिए। वित्तीय समावेशन प्रौद्योगिकी निधि (नाबार्ड के पास) के अंतर्गत उपलब्ध निधियन व्यवस्थाएं या अन्य विकल्प जैसे सरकारी भुगतान के वितरण हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्रदान सहायता, इस प्रयोजन हेतु ढूंढे जा सकते हैं। तथापि, वाणिज्य बैंकों / क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा वित्तीय समावेशन प्राप्त न करने के लिए कनेक्टिविटी बाधक नहीं होनी चाहिए । (पैरा 3.13)

5

9

अनुमति प्रदान करने के बावजूद प्राथमिक कृषि ऋण समिति (पीएसीएस) बीसी के रूप में प्रयोग नहीं किए जा रहे हैं। जहां ऐसे पीएसीएस अच्छे चल रहे हैं, वहाँ पीएसीएस को बीसी के रूप में प्रयोग करने के लिए संयुक्त प्रयास किए जाए। (पैरा 3.16)

6

11

जहां औपचारिक बैंकिंग प्रणाली द्वारा पहुँच की जरूरत है वहां राज्य सरकार सभी केद्रों में रोड / डिजिटल कनेक्टिविटी सुनिश्चित करें। ऐसी कनेक्टिविटी की उपलब्धि की निगरानी डीसीसी के एक उप-समिति द्वारा की जाए। दूर दराज क्षेत्रों में छोटे वी-सेट के माध्यम से भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्रदान सेटीलाइट कनेक्टिविटी की विशेष योजना का लाभ उठाया जाए। (पैरा 3.19)

7

12

राज्य सरकारें प्रेरक कानून और व्यवस्था की स्थिति, पर्याप्त सुरक्षा, अबाधित बिजली आपूर्ति तथा सिंचाई सुविधाएं सुनिश्चित करें। (पैरा 3.20)

8

18

’क्रेडिट प्लस’ सेवाएं प्रदान करने हेतु बैंकों और राज्य सरकार द्वारा की गई पहल की निगरानी डीएलसीसी/एसएलबीसी द्वारा की जाए। अग्रणी बैंकों को योजना के पुर्वानुमान के अनुसार आरएसइटीआइ गठित करने हेतु तत्काल कदम उठाने पड़ेगे। बीमार एसएमइ पर कार्यकारी दल (अध्यक्ष : डॉ. के.सी.चक्रबर्ती, अप्रैल 2008) की सिफारिशों के अनुसार टाइनी माइक्रो उद्यमों को प्रशिक्षण और अन्य सेवाएं उपलब्ध कराने हेतु निर्धारित एनजीओ को इस्तेमाल करने की योजना पर एसएलबीसी आयोजक बैंकों राज्य सरकारों के परामर्श से दिनांक 4 मई 2009 के भारतीय रिज़र्व बैंक परिपत्र ग्राआऋवि.एसएमइ एंड एनएफएस.बीसी.सं. 102/06.04.01/2008-09 में निहित दिशा-निर्देशों के अनुसार विचार कर सकते हैं। (पैरा 3.26)

9

31

शैक्षिक ऋण की उचित वसूली सुनिश्चित करने हेतु राज्य सरकारों, शैक्षिक संस्थानों की मदद से एक ट्रेकिंग तंत्र विकसित करके बैंकों द्वारा प्रदान की गई शैक्षिक ऋणों की निगरानी तथा प्रगति की समीक्षा एसएलबीसी बैठकों में की जाए। (पैरा 3.44)

10

32

आनेवाले वर्षों में न्यूनतम आय वाले परिवारों को सुगम ऋण मुहैया कराने में एनजीओ के कार्यकलाप बढ़ने के आसार हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि एनजीओ / कोर्पोरेट आवश्यक ’क्रेडिट प्लस ’ सेवाएं प्रदान करते हैं, क्षेत्र में परिचालित ऐसे एनजीओ / कोर्पोरेट प्रतिष्ठानों के साथ बैंक की सहलग्नता, समाविष्ट वृद्धि हेतु बैंक ऋण को वृद्धिगत करने में सहायक हो सकती है। सफल वार्ताओं को डीसीसी/एसएलबीसी बैठकों में प्रस्तुत किया जा सकता है ताकि मॉडेल के रूप में उनका अनुसरण किया जा सके। (पैरा 3.45)

11

33

एसएलबीसी / डीसीसी अनुसंधान और विकासात्मक अध्ययन में रहे शिक्षाविदों और अनुसंधानकर्ताओं का चयन करें और उन्हें इन इकाइयों की बैठकों में समय-समय पर आमंत्रित करें । (पैरा 3.46)

12

37

ऐसे राज्य जहां मुख्य मंत्री या वित्त मंत्री एसएलबीसी में सक्रिय रूचि लेते हें तथा बैठकों में उपस्थित रहते हों, वहां एसएलबीसी समन्वय फोरम के रूप में अधिक प्रभावी रही है। ( पॅरा 4.2 )

13

39

एसएलबीसी की बृहत् सदस्यता को देखते हुए, एसएलबीसी के लिए यह वांछनीय होगा कि वे विशिष्ट कार्यों के लिए उप-समितियों का गठन करें। पहले से ही मौजूद उप-समितियों के अलावा इनमें आइटी आधारित वित्तीय समावेशन, शहरी क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन, वित्तीय साक्षरता हेतु कार्य-योजना, शैक्षिक ऋण प्रदान करना, भूमि अभिलेख / भूमि स्वामित्व / कारोबार हेतु अन्य साक्ष्य में सुधार, वसूली प्रणाली सुधारना, कटौती (डाउनटर्न) के संबंध में उपाय करना, बैंक / एसएचजी सहलग्नता बढ़ाना तथा राज्य में माइक्रो वित्त उपलब्ध कराने संबंधी मामले देखना, शामिल किए जा सकते हैं। (पैरा 4.4)

14

41

निम्न स्तर के विभिन्न मंच उन मामलों पर एसएलबीसी को पर्याप्त फीड बैक दें जिस पर व्यापक रूप से विचार-विमर्श करना आवश्यक है। बीएलबीसी, डीसीसी और डीएलआरसी के महत्वपूर्ण मामले / निर्णयों को एसएलबीसी की अगली बैठक में रखा जाए ताकि इन पर राज्य स्तर पर पर्याप्त ध्यान दिया जा सके । (पैरा 4.6)

15

42

एसएलबीसी के सचिवालय / कार्यालयों को पर्याप्त रूप से मजबूत किया जाए तथा एसएलबीसी आयोजक बैंक के पास अपने कार्य कारगर रूप से निष्पादित करने हेतु एक संपूर्ण सचिवालय होना चाहिए। (पैरा 4.7)

16

60

प्रत्येक एसएलबीसी की अपनी वेबसाइट होनी चाहिए जहां अग्रणी बैंक योजना से संबंधित सभी अनुदेश तथा रिज़र्व बैंक और अन्य एजेंसियों द्वारा जारी अन्य अनुदेश तथा सामान्य व्यक्ति के हित के लिए सरकारी योजनाओं संबंधी अनुदेश भी उपलब्ध कराई जाती हों। (पैरा 5.8 और 5.9)

17

62

प्रत्येक एसएलबीसी के पास विभिन्न अनुदेशों के प्रचार हेतु एक समर्पित वित्तीय साक्षरता प्रभाग हो। स्थानीय मीडिया को वित्तीय साक्षरता प्रभाग के साथ बार-बार बातचीत करने हेतु प्रोत्साहित किया जाए तथा सामान्य व्यक्ति तक पहुँचने के लिए उनकी सहायता ली जाए। (पैरा 5.11)


अनुबंध II

अग्रणी बैंक योजना की समीक्षा हेतु उच्च स्तरीय समिति - अग्रणी बैंकों / वाणिज्य बैंकों हेतु कार्य बिन्दु

क्रम सं.

सिफारिश सं.

सिफारिशें

1

1

अग्रणी बैंक योजना (एलबीएस) उपयोगी है तथा उसे जारी रखना आवश्यक है। एलबीएस के अंतर्गत राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति (एसएलबीसी) तथा विभिन्न मंचों को सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाओं की निगरानी करते समय प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों को अधिक वित्तीय समावेशन तथा ऋण उपलब्धता प्रदान करने में ’सक्षम’ तथा ’बाधकों’ पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। (पैरा 3.1, 3.8)

2

2

देश के विभिन्न भागों में बैंकिंग पहुँच अब भी सीमित है। अत: यह समीक्षात्मक है कि बैंकिंग सेवाओं को सार्वजनिक माल (पब्लिक गुड) के रूप में देखा जाता है तथा देश के सभी वर्गों की जनता और क्षेत्रों को भी वहनीय कीमत पर उपलब्ध कराई जाती हैं। राज्य विकास तंत्र को उत्पादन पूर्व और उत्पादनोत्तर सुविधाएं सुनिश्चित करनी होगी यह सुनिश्चित करने हेतु कि ऋण को लाभप्रद रूप से परिनियोजित किया जा रहा है तथा आय स्तर में वृद्धि हो रही है। (पैरा 3.3)

3

3

अग्रणी बैंक योजना का मुख्य उद्देश्य समाविष्ट वृद्धि के लिए बैंकों और राज्य सरकारों को साथ में कार्य करने हेतु सक्षम बनाना होगा। (पैरा 3.4)

4

4

यह आवश्यक है कि योजना के कार्यक्षेत्र को व्यापक बनाया जाए ताकि वित्तीय समावेशन हेतु पहल, राज्य सरकारों की भूमिका, वित्तीय साक्षरता और ऋण परामर्श तथा ’क्रेडिट प्लस’ कार्यकलापों भी, समाविष्ट वृद्धि के लिए बैंकिंग विकास हेतु ’सक्षम’ (इनेबलर्स) को सुविधा प्रदान करना तथा ’बाधकों’ को हटाना / कम करना, शिकायत निवारण तंत्र आदि को कवर किया जा सकें। (पैरा 3.7)

5

7

बैंकों को उपलब्ध आइटी उपायों का अधिकतम लाभ उठाना चाहिए। वित्तीय समावेशन प्रौद्योगिकी निधि (नाबार्ड के पास) के अंतर्गत उपलब्ध निधियन व्यवस्थाएं या अन्य विकल्प जैसे सरकारी भुगतान के वितरण हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्रदान सहायता, इस प्रयोजन हेतु ढूंढे जा सकते हैं। तथापि, वाणिज्य बैंकों / क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा वित्तीय समावेशन प्राप्त न करने के लिए कनेक्टिविटी बाधक नहीं होनी चाहिए । (पैरा 3.13)

6

9

अनुमति प्रदान करने के बावजूद प्राथमिक कृषि ऋण समिति (पीएसीएस) बीसी के रूप में प्रयोग नहीं किए जा रहे हैं। जहां ऐसे पीएसीएस अच्छे चल रहे हैं, वहाँ पीएसीएस को बीसी के रूप में प्रयोग करने के लिए संयुक्त प्रयास किए जाए। (पैरा 3.16)

7

11

जहां औपचारिक बैंकिंग प्रणाली द्वारा पहुँच की जरूरत है वहां राज्य सरकार सभी केद्रों में रोड / डिजिटल कनेक्टिविटी सुनिश्चित करें। ऐसी कनेक्टिविटी की उपलब्धि की निगरानी डीसीसी के एक उप-समिति द्वारा की जाए। दूर दराज क्षेत्रों में छोटे वी-सेट के माध्यम से भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्रदान सेटीलाइट कनेक्टिविटी की विशेष योजना का लाभ उठाया जाए। (पैरा 3.19)

8

17

प्रत्येक जिले में जहां अग्रणी जिम्मेवारी हो वहां अग्रणी बैंकों को एक वित्तीय साक्षरता और ऋण परामर्श केद्र (एफएलसीसी) खोलना चाहिए। (पैरा 3.25)

9

18

’क्रेडिट प्लस’ सेवाएं प्रदान करने हेतु बैंकों और राज्य सरकार द्वारा की गई पहल की निगरानी डीएलसीसी/एसएलबीसी द्वारा की जाए। अग्रणी बैंकों को योजना के पुर्वानुमान के अनुसार आरएसइटीआइ गठित करने हेतु तत्काल कदम उठाने पड़ेगे। बीमार एसएमइ पर कार्यकारी दल (अध्यक्ष : डॉ. के.सी.चक्रबर्ती, अप्रैल 2008) की सिफारिशों के अनुसार टाइनी माइक्रो उद्यमों को प्रशिक्षण और अन्य सेवाएं उपलब्ध कराने हेतु निर्धारित एनजीओ को इस्तेमाल करने की योजना पर एसएलबीसी आयोजक बैंकों राज्य सरकारों के परामर्श से दिनांक 4 मई 2009 के भारतीय रिज़र्व बैंक परिपत्र ग्राआऋवि.एसएमइ एंड एनएफएस.बीसी.सं. 102/06.04.01/2008-09 में निहित दिशा-निर्देशों के अनुसार विचार कर सकते हैं। (पैरा 3.26)

10

23

वर्तमान आयोजना प्रक्रिया देश के सभी जिलों में नाबार्ड द्वारा पीएलपी तैयार करने में विचार करती है। ये योजनाएं प्रति वर्ष अक्तूबर-नवंबर तक तैयार हो जानी चाहिए तथा दोनों, क्रमश: जिला आयोजना प्राधिकारियों को उनकी बजट  योजनाएं तैयार करने तथा अग्रणी बैंकों को जिला ऋण योजनाएं (डीसीपी) तैयार करने हेतु निविष्टियां उपलब्ध कराने चाहिए। पीएलपी तैयार करने में तेजी लानी चाहिए ताकि वह प्रतिवर्ष अगस्त तक पूरी हो जाए और राज्य सरकारें पीएलपी के पूर्वानुमानों में कारक प्रदान कर सकें। (पैरा 3.31)

11

25

वर्ष के लिए अपनी कारोबार योजनाओं को अंतिम रूप देते समय बैंकों के अंचल / नियंत्रक कार्यालयों को, नाबार्ड  द्वारा तैयार पीएलपी तथा एलडीएम द्वारा कृषि और उससे संबद्ध अन्य कार्यकलापों के अलावा अन्य क्षेत्रों के लिए तैयार की गई योजनाएं, जो कार्य-निष्पादन बजट को अंतिम रूप देने से पूर्व समय रहते तैयार हो जानी चाहिए, ध्यान में रखना चाहिए। (पैरा 3.33)

12

26

संबंधित अग्रणी बैंकों के अग्रणी जिला प्रबंधक द्वारा पीएलपी को ध्यान में रखकर वार्षिक ऋण योजना तैयार की जाएगी। अन्यों के साथ-साथ, वार्षिक ऋण योजना में अजा/अजजा, अल्पसंख्यकों के लिए प्रस्तावित कवरेज तथा जिला में एसएचजी की वृद्धि स्पष्ट रूप से दर्शाई जानी चाहिए। (पैरा 3.34)

13

30

बैंकों को लाभार्थियों के चयन में सक्रिय भाग निभाना चाहिए तथा समग्र हित में अच्छी वसूली सुनिश्चित करने हेतु योजना की बैंकिंग क्षमता और व्यवहार्यता पर ध्यान देना चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सब्सिडी नियत प्रयोजन हेतु प्रभावी रुप से इस्तेमाल हो रही है। आबंटित राशि पूर्णत: खर्च की गई है या नहीं, यह देखने के बजाय सरकारों को परिणामों का मूल्यांकन करना चाहिए। (पैरा 3.43)

14

32

आनेवाले वर्षों में न्यूनतम आय वाले परिवारों को सुगम ऋण मुहैया कराने में एनजीओ के कार्यकलाप बढ़ने के आसार हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि एनजीओ / कोर्पोरेट आवश्यक ’क्रेडिट प्लस ’ सेवाएं प्रदान करते हैं, क्षेत्र में परिचालित ऐसे एनजीओ / कोर्पोरेट प्रतिष्ठानों के साथ बैंक की सहलग्नता, समाविष्ट वृद्धि हेतु बैंक ऋण को वृद्धिगत करने में सहायक हो सकती है। सफल वार्ताओं को डीसीसी/एसएलबीसी बैठकों में प्रस्तुत किया जा सकता है ताकि मॉडेल के रूप में उनका अनुसरण किया जा सके। (पैरा 3.45)

15

33

एसएलबीसी / डीसीसी अनुसंधान और विकासात्मक अध्ययन में रहे शिक्षाविदों और अनुसंधानकर्ताओं का चयन करें और उन्हें इन इकाइयों की बैठकों में समय-समय पर आमंत्रित करें । (पैरा 3.46)

16

34

निजी क्षेत्र के बैंकों को सूचना प्रौद्योगिकी पर कार्यनीतिगत योजना और लिवरेजिंग में अपनी विशेषज्ञता लाकर अग्रणी बैंक योजना (एलबीएस) में सक्रिय रूप से स्वयं को शामिल करना चाहिए। अग्रणी बैंकों को एसीपी तैयार करने तथा उसक कार्यान्वित करते समय अग्रणी बैंक योजना में निजी क्षेत्र के बैंकों को पूर्ण रूप से शामिल करना चाहिए। (पैरा 3.47)

17

35

सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाओं को बढ़ावा देने हेतु बैंकों द्वारा सरकारी कारोबार करने के लाभ को राज्य सरकारों द्वारा वृद्धिगत किया जाना चाहिए। निजी क्षेत्र के बैंक जहां मौजूद हो तथा कम बैंक वाले और बैंक रहित क्षेत्र में स्वीकार्य चैनल के माध्यम से अपनी सेवाएं प्रदान करते हों वहां वे डीसीसी और कार्य योजनाओं में सक्रिय रूप से सहभागी हो सकते हैं। (पैरा 3.49)

18

41

निम्न स्तर के विभिन्न मंच उन मामलों पर एसएलबीसी को पर्याप्त फीड बैक दें जिस पर व्यापक रूप से विचार-विमर्श करना आवश्यक है। बीएलबीसी, डीसीसी और डीएलआरसी के महत्वपूर्ण मामले / निर्णयों को एसएलबीसी की अगली बैठक में रखा जाए ताकि इन पर राज्य स्तर पर पर्याप्त ध्यान दिया जा सके । (पैरा 4.6)

19

49

विशिष्ट मामलों पर गहन कार्य करने हेतु डीसीसी की उप-समिति गठित की जाए। एसएचजी/एमएफआइ की भूमिका, आइटी आधारित वित्तीय समावेशन, एमएसइ क्षेत्र, आदि कार्य हेतु अलग से उप-समितियां हो सकती हैं। (पैरा 4.14)

20

50

एलडीएम की भूमिका में डीसीसी और डीएलआरसी की बैठकों का आयोजना करना, लंबित मामलों के समाधान हेतु डीडीएम/एलडीओ/सरकारी अधिकारियों की आवधिक बैठकें, बैंकों द्वारा वित्तीय साक्षरता और ऋण परामर्श केद्र (एफएलसीसी), आरएसइटीआइ गठित करने में सहायता, एनजीओ/पीआरआइ की सहभागिता के साथ बैंकों और सरकारी अधिकारियों के लिए वार्षिक सुग्राहीकरण कार्यशाला आयोजित करना, शिकायत निवारण, जिला के लिए एक बारगी व्यापक विकास योजना तथा वार्षिक जिला ऋण योजना की तैयारी के माध्यम से जिला स्तर पर ऋण आयोजना तथा वार्षिक ऋण योजना के कार्यान्वयन की निगरानी कवर की जानी चाहिए। (पैरा 4.15)

21

51

अग्रणी बैंक योजना के सफल कार्यान्वयन हेतु एलडीएम का कार्यालय केद्र बिन्दु होने के कारण पदाधिकारी का चयन सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए तथा जहां आवश्यकता हो तैनाती की जानी चाहिए। (पैरा 4.16 (i) )

22

53

एक ऐसे तंत्र की आवश्यकता है जो निर्धारित डीसीसी/डीएलआरसी बैठकों के अलावा एलडीएम, एलडीओ और डीडीएम के बीच लगातार अधिक समन्वय बनाये रखे तथा अन्य बातों के साथ-साथ बैंकिंग सेवाओं के उपभोगकर्ताओं की शिकायतों के निवारण में भी सहायता कर सके। एलडीएम को पर्याप्त रूप से सशक्तिकृत होना चाहिए तथा उन्हें अपनी जिम्मेवारी निभाने हेतु अधिकार प्रत्यायोजित किए जाने चाहिए। क्षेत्रीय निदेशकों/मुख्य महाप्रबंधकों को उपलब्ध सहायता की पर्याप्तता की समीक्षा करना चाहिए। (पैरा 4.16) (iv)(v)(vi) )

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54

जैसे ही रिज़र्व बैंक, भारत सरकार, नाबार्ड और आइबीए के अनुदेश उनके वेबसाइटों पर रखे जाएं, बैंक उसे अपनी शाखाओं, को इलेक्ट्रॉनिक रूप में सूचित करें ताकि संबंधित अनुदेश तत्काल परिचालित हो जाएं। (पैरा 5.2)

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56

अग्रणी जिला प्रबंधकों के रूप में तैनात बैंक अधिकारियों को जिला परिषद/कलक्टरी में दो से तीन सप्ताह के लिए संबद्ध रखे ताकि वे विकासात्मक कार्यक्रमों के संबंध में सरकार की भूमिका और कार्य से परिचित हो सकें। (पैरा 5.4)

25

57

सफल वार्ताओं को वृद्धिगत करने हेतु जिलाधीशों, खंड विकास अधिकारियों, बैंक अधिकारियों, एसएचजी के लिए अग्रणी बैंक द्वारा विभिन्न स्तरों पर एक्सपोज़र दौरे आयोजित किये जाने चाहिए। (पैरा 5.5)

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58

एसएचजी को बेहतर समझने के लिए बैंक प्रबंधकों को एसएचजी के बैठक स्थलों का भी दौरा करना चाहिए। (पैरा 5.6)

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59

पीआरआइ के पदाधिकारी विशेषत: ग्राम पंचायतों को बैंक-ग्राह्य योजनाओं की तैयारी से परिचित कराना चाहिए ताकि वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने और ऋण समावेश क्षमता की वृद्धि के लिए जीवन-यापन बढ़ाने की बजट निधि को वृद्धिगत किया जा सके। इस संबंध में एलडीएम/डीडीएम पहल कर सकते हैं। (पैरा 5.7)

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64

प्रत्येक तिमाही में अग्रणी बैंक अपने जिले में एक जागरुकता आयोजित करें तथा सार्वजनिक बैठक में जानकारी दें। (पैरा 5.14)

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65

एलडीएम ऐसी बैठकों में बैंकिंग लोकपाल को आमंत्रित करें जो अपनी सुविधानुसार उपस्थित होंगे / होंगी। (पैरा 5.15 और 5.16)

30

66

प्रत्येक अग्रणी बैंक से अपेक्षित है कि इस संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंकद्वारा जारी वर्तमान दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए प्रत्येक जिले में जहाँ उनकी अग्रणी जिम्मवारी हो वहाँ एक वित्तीय साक्षरता और ऋण परामर्श केद्र (एफएलसीसी) खोलें। राज्य सरकार तंत्र बैंकों द्वारा वित्तीय साक्षरता हेतु किए गए प्रयासों का समर्थन करें। इसके प्रति राज्य सरकार अग्रसक्रिय रुप से सरकारी तंत्र की सहायता प्रदान कर सकता है विशेषत: इस प्रयोजन हेतु आरंभिक स्तर पर जैसे विद्यालयों, पंचायतों आदि। (पैरा 5.18)

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