भारत में निवासियों द्वारा रखे गए निवासी बैंक खाते-संयुक्त खाता धारक–उदारीकरण - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारत में निवासियों द्वारा रखे गए निवासी बैंक खाते-संयुक्त खाता धारक–उदारीकरण
भारिबैंक/2013-14/437 9 जनवरी 2014 विदेशी मुद्रा का कारोबार करने के लिए प्राधिकृत सभी बैंक महोदया/महोदय भारत में निवासियों द्वारा रखे गए निवासी प्राधिकृत व्यापारी बैंकों का ध्यान 15 सितंबर 2011 के ए.पी.(डीआईआर सीरीज) परिपत्र सं.12 की ओर आकृष्ट किया जाता है जिसके अनुसार भारत में निवासी व्यक्तियों को अपने निवासी बचत बैंक खातों में ‘प्रथम अथवा उत्तरजीवी’ के आधार पर अनिवासी घनिष्ठ रिशतेदारों (कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 6 में यथा परिभाषित रिश्तेदार) को संयुक्त खाताधारक बनाने की अनुमति प्रदान की गयी थी। हालांकि, ऐसे अनिवासी भारतीय घनिष्ठ रिश्तेदार उल्लिखित अनुदेशों के अनुसार खाताधारक के जीवन काल में खाते का परिचालन करने के लिए पात्र नहीं हैं। 2. रिज़र्व बैंक को ऐसे अभिवेदन मिले हैं कि परिचालन संबंधी सुगमता के लिए 3 मई 2000 की अधिसूचना सं॰ फेमा. 5 के विनियम 2(vi) में यथा परिभाषित अनिवासी व्यक्तियों को ‘उनमें से कोई अथवा उत्तरजीवी’ के आधार पर ऐसे खातों का परिचालन करने की अनुमति प्रदान की जाए। तदनुसार, समीक्षा करने पर यह निर्णय लिया गया है कि प्राधिकृत व्यापारी मौजूदा/नए निवासी बैंक खातों में संयुक्त खाताधारक के तौर पर अनिवासी भारतीय घनिष्ठ रिश्तेदार (कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 6 में यथा परिभाषित) को ‘उनमें से कोई अथवा उत्तरजीवी’ के आधार पर निम्नलिखित शर्तों के तहत शामिल करने की अनुमति दे सकते हैं:- ए) ऐसे खाते को सभी प्रयोजनों के लिए निवासी बैंक खाता समझा जाएगा और निवासी खाते पर लागू सभी विनियम उस पर लागू होंगे। बी) अनिवासी भारतीय घनिष्ठ रिश्तेदार से संबंधित चेक, लिखत, विप्रेषण, नकदी, कार्ड अथवा अन्य आमद राशि इस खाते में जमा होने के लिए पात्र नहीं होगी। सी) अनिवासी भारतीय घनिष्ठ रिश्तेदार निवासी खाताधारक के लिए और उसकी ओर से घरेलू भुगतानों के लिए उक्त खाते का परिचालन करेगा और स्वयं के लिए कोई लाभ निर्मित करने हेतु उसका इस्तेमाल नहीं करेगा। डी) जहाँ अनिवासी भारतीय घनिष्ठ रिश्तेदार ऐसे खाते का संयुक्त धारक बनता है जिसमें एक से अधिक निवासी खाताधारक हैं, वहाँ ऐसा अनिवासी भारतीय घनिष्ठ रिश्तेदार ऐसे सभी निवासी खाताधारकों का घनिष्ठ रिश्तेदार होना चाहिए। ई) जहाँ किसी घटनावश, ऐसा अनिवासी खाताधारक उत्तरजीवी खाताधारक बन जाता है, वहाँ इसे वर्तमान विनियमों के अनुसार अनिवासी सामान्य रुपया खाते (NRO) के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा। एफ) अनिवासी खाताधारक का यह दायित्व होगा कि वह प्राधिकृत व्यापारी बैंक को ऐसे खाते को अनिवासी सामान्य रुपया खाते में वर्गीकृत करने के लिए सूचित करे और इस बाबत अनिवासी सामान्य रुपया खाते के लिए लागू विनियम ऐसे खाते पर लागू होंगे। जी) उल्लिखित संयुक्त खाताधारक बनाने की सुविधा बचत बैंक खाते सहित अन्य सभी निवासी खातों के लिए दी जा सकती है। 3. यह सुविधा देते समय प्राधिकृत व्यापारी बैंक ऐसी सुविधा देने की आवश्यकता के प्रति स्वयं संतुष्ट हो ले और अनिवासी खाताधारक से विधिवत हस्ताक्षरित निम्नलिखित वचन पत्र प्राप्त करे:- “मैं बचत बैंक/सावधि जमा/आवर्ती जमा/चालू खाता सं.......का संयुक्त खाताधारक हूँ जो श्री/श्रीमती/ सुश्री.........................................के नाम में है जो मेरे...................(रिश्तेदारी का स्वरूप) हैं। मैं वचन देता/ देती हूँ कि मैं उक्त खाते में जमा राशि का उपयोग विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999, उसके अंतर्गत निर्गमित नियमों/विनियमों के उपबंधों और समय-समय पर रिजर्व बैंक द्वारा जारी परिपत्रों/अनुदेशों का उल्लंघन करते हुये किसी लेनदेन हेतु नहीं करूंगा/नहीं करूंगी। मैं यह भी वचन देता/देती हूँ कि यदि उक्त खाते से कोई लेनदेन फेमा, 1999 अथवा उसके तहत निर्मित नियमों/विनियमों का उल्लंघन करते हुये किया जाता है, तो उसके लिए मुझे उत्तरदायी माना जाएगा। मैं अपनी अनिवासी/निवासी की स्थिति में कोई परिवर्तन होने पर अपने बैंक को सूचित करूंगा/करूंगी”। 4. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंक इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने संबंधित घटकों और ग्राहकों को अवगत कराएं। 5. इस परिपत्र में निहित निर्देश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और धारा 11(1) के अंतर्गत और किसी अन्य कानून के अंतर्गत अपेक्षित अनुमति/अनुमोदन, यदि कोई हो, पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बगैर जारी किये गये हैं। भवदीय (रुद्र नारायण कर) |