अर्थव्यवस्था में दबावग्रस्त आस्तियों को सशक्त करना – विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों की समीक्षा - आरबीआई - Reserve Bank of India
अर्थव्यवस्था में दबावग्रस्त आस्तियों को सशक्त करना – विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों की समीक्षा
आरबीआई/2015-16/330 25 फरवरी 2016 सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर) महोदय, अर्थव्यवस्था में दबावग्रस्त आस्तियों को सशक्त करना – विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों की समीक्षा भारतीय रिज़र्व बैंक ने अर्थव्यवस्था में दबावग्रस्त आस्तियों को सशक्त करने के उद्देश्य से विभिन्न दिशानिर्देश जारी किए हैं। रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए उपायों में कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना प्रणाली, अर्थव्यवस्था में दबावग्रस्त आस्तियों को सशक्त करने के लिए ढांचा, दीर्घावधि परियोजना ऋणों की लचीली संरचना तथा प्रतिभूतीकरण कंपनियों (एससी) /पुनर्निर्माण कंपनियों (आरसी) को वित्तीय आस्तियों की बिक्री संबंधी दिशानिर्देशों में संशोधन शामिल है। 2. इन दिशानिर्देशों की समीक्षा करने पर तथा हितधारकों से प्राप्त फीडबैक के आधार पर यह निर्णय लिया गया है कि इन दिशानिर्देशों के कुछ पहलुओं को आंशिक रूप से संशोधित और स्पष्ट भी किया जाए, जैसा कि अनुबंध में दिया गाय है। ये संशोधन भावी प्रभाव से लागू किए जाएंगे। भवदीय, (सुदर्शन सेन) भाग क - कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना (एसडीआर) योजना 1. दबावपूर्ण खातों को सशक्त करने हेतु प्रवर्तकों का अधिक हिस्सा सुनिश्चित करने के लिए तथा सहमत संकटपूर्ण परिस्थितियों में अर्थक्षम उपलब्धियां पाने में असफल रहने वाले खातों में, जहां आवश्यक हो, स्वामित्व परिवर्तन शुरू करने के लिए बैंकों को अधिक क्षमताएं उपलब्ध कराने की दृष्टि से कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना (एसडीआर) की शुरुआत की गई है। अतएव, बैंकों को केवल ऐसे मामलों में एसडीआर का प्रयोग करने पर विचार करना चाहिए, जहां स्वामित्व में परिवर्तन के कारण ऋण आस्ति का आर्थिक मूल्य बढ़ने तथा उनकी देयताओं की वसूली की संभावना हो। इस संबंध में, एसडीआर को लागू करने की शुरुआत के मुद्दे पर 08 जून 2015 के परिपत्र के पैरा 3.i में निहित अनुदेशों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए। यह दोहराया जाता है कि एसडीआर की शुरुआत व्यवहार्यता संबंधी उपलब्धियां प्राप्त न करना तथा/ अथवा एसडीआर लागू करने से जुड़ी संकटपूर्ण/नाजुक परिस्थितियों का पालन न करना होना चाहिए, जैसा कि पुनर्रचना करार में निर्धारित किया गया है, तथा अन्य किसी भी कारण से एसडीआर की शुरुआत नहीं की जा सकती। 2. ऊपर उल्लिखित परिपत्र के पैरा 3.vii में यह कहा गया है कि 'भविष्य में बैंकों को पुनर्रचना सहित सभी ऋण समझौतों में आवश्यक प्रसंविदाएं शामिल करनी चाहिए, जो उधारकर्ता कम्पनी से आवश्यक अनुमोदनों/प्राधिकारों (शेयरधारकों द्वारा विशेष संकल्प सहित) द्वारा समर्थित हों, जैसे कि मौजूदा नियमों/ विनियमों के अंतर्गत अपेक्षित है, ताकि लागू हो सकने वाले मामलों में एसडीआर का प्रयोग किया जा सके'। इसके अतिरिक्त दबावग्रस्त आस्तियों को सशक्त करने संबंधी 24 सितंबर 2015 के परिपत्र के पैरा 7 में यह सूचित किया गया है कि जेएलएफ द्वारा निर्धारित किए गए अनुसार सीएपी के रूप में सुधार या पुनर्रचना करने में असफल रहने के मामलों में जेएलफ के पास यह विकल्प होगा कि वह उधारकर्ता कंपनी के प्रबंधन में बदलाव के लिए एसडीआर प्रारंभ करे, बशर्ते निर्धारित शर्तों का पालन किया जाता है। हम उपर्युक्त दिशानिर्देशों को दोहराते हुए यह सूचित करते हैं कि आवश्यक प्रसंविदाएं भी परिशोधन व्यवस्था का भाग होनी चाहिए। 3. उपर्युक्त परिपत्र के पैराग्राफ 3.xiv.क में यह कहा गया है कि नया प्रवर्तक (जिसके लिए ऋणदाता अपनी इक्विटी छोड़ देता है) वर्तमान प्रवर्तक/प्रवर्तक समूह में से कोई व्यक्ति/ संस्था/अनुषंगी कम्पनी/ सहायक कम्पनी (देशी या विदेशी) आदि नहीं होनी चाहिए। यह दोहराया जाता है कि बैंकों को इस संबंध में समुचित सावधानी का प्रयोग करना चाहिए। 4. बैंकों को प्रबंधन फर्मों/ कंपनियों/फर्मों में विशेषज्ञता वाले व्यक्तियों का एक पैनल तैयार करने की संभावना का पता लगाना चाहिए, जिन पर कंपनियों का स्वामित्व नए प्रवर्तकों को अंतरित किए जाने तक कंपनियों का प्रबंधन करने के लिए विचार किया जा सकता है। बैंक इस संबंध में भारतीय बैंक संघ और अन्य उद्योग निकायों के साथ परामर्श कर सकते हैं। 5. किसी भी मामले में कंपनी के बोर्ड में बैंकों के प्रतिनिधियों के बिना और बैंक द्वारा नियुक्त इकाई / व्यक्ति द्वारा पर्यवेक्षण के बिना वर्तमान प्रबंधन को जारी रखने के लिए अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। 6. पुनर्रचना का सामान्य सिद्धांत यह होना चाहिए कि पहली हानि शेयरधारक सहन करें, न कि ऋणदाता। तदनुसार, मौजूदा प्रवर्तकों से प्राप्त व्यक्तिगत गारंटी / प्रतिबद्धताओं को भी उधारदाताओं द्वारा किए गए नुकसान में शामिल किया जाना चाहिए। इसलिए, बैंकों को अपनी बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति के अनुसार व्यक्तिगत गारंटी मांगने/ निर्मुक्त करने के लिए एक उपयुक्त प्रणाली विकसित करनी चाहिए और इसे उधारदाताओं के दावों की उचित संतुष्टि के सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए। इसमें उधारदाताओं के पक्ष में मौजूदा प्रवर्तकों की हिस्सेदारी को बंधक रखना शामिल हो सकता है, यदि पहले से ऐसा नहीं किया हो। किसी भी मामले में, व्यक्तिगत गारंटी को नए प्रवर्तकों को स्वामित्व और / या प्रबंधन नियंत्रण के हस्तांतरण के बाद ही मुक्त किया जाना चाहिए। 7. 'नए प्रवर्तकों के पक्ष में बैंक की धारिताओं के विनिवेश के मुद्दे' पर उपर्युक्त परिपत्र के पैरा 3. xiii में आंशिक संशोधन करते हुए यह निर्णय लिया गया है कि आस्ति-वर्गीकरण का लाभ ऋणदाताओं के लिए उपलब्ध होगा,बशर्ते वे 18 महीने की निर्धारित समय-सीमा के भीतर कंपनी के शेयरों का न्यूनतम 26% (और अब तक की तरह प्रारंभ में 51% जरूरी नहीं) नए प्रवर्तकों को छोड़ दें तथा नए प्रवर्तक कंपनी का प्रबंधन अपने हाथ में ले लें। इस प्रकार, जैसे कंपनी का कायाकल्प होता है, ऋणदाताओं के पास अपनी शेष धारिताओं के क्रमिक रूप से निकास का विकल्प होगा। तथापि, ऋणदाताओं को अपनी शेष हिस्सेदारी छोड़ने के लिए नए प्रवर्तकों को 'पहले इनकार का अधिकार' देना चाहिए। 8. मौजूदा अनुदेशों के अनुसार जेएलएफ से अपेक्षित है कि वे एसडीआर प्रक्रिया के दौरान कुछ निर्धारित समय- सीमाओं का पालन करें। मौजूदा अनुदेशों के आंशिक संशोधन में यह सूचित किया जाता है कि जेएलएफ द्वारा अनुमोदित एसडीआर पैकेज के अनुसार जेएलएफ ऋणदाताओं के पक्ष में ऋण के इक्विटी में रूपांतरण तक वैयक्तिक कार्यकलापों के पूर्ण होने में लगने वाले समय में लचीलापन (उपलब्धियों/संकटपूर्ण परिस्थितियों की समीक्षा से 210 दिनों तक) ले सकता है। यह भी स्पष्ट किया जाता है कि आस्ति वर्गीकरण में ‘ठहराव’ (stand still) का लाभ संदर्भ तारीख से ही लागू होगा। तथापि, यदि उपलब्धियों/संकटपूर्ण परिस्थितियों की समीक्षा से 210 दिनों के भीतर ऋण का लक्ष्य के अनुसार इक्विटी में रूपांतरण नहीं हुआ, तो यह लाभ विद्यमान नहीं रहेगा। उसके बाद, ऋणों को मौजूदा आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधानीकरण संबंधी मानदंडों के अनुसार खाते के व्यवहार के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा। 9. एसडीआर स्कीम पर 08 जून 2015 के परिपत्र के पैरा 2 में निम्नलिखित निर्धारित किया गया है: बैंकों द्वारा स्कीम के अंतर्गत अर्जित और धारित इक्विटी शेयरों को पैरा 3 (xi) में इंगित 18 माह की अवधि के लिए आवधिक मार्क-टू-मार्केट अपेक्षा (जिसे बैंकों द्वारा निवेश पोर्टफोलियो वर्गीकरण, मूल्यन और परिचालन के लिए विवेकपूर्ण मानदंडों के माध्यम से निर्धारित किया गया है) से छूट प्राप्त रहेगी। तथापि, यह संभावना है कि 18 महीनों की अवधि के अंत में बैंकों को मार्क टू मार्केट अपेक्षा के कारण (यदि इक्विटी का एक भाग रख लिया जाता है) तथा/ अथवा नए प्रवर्तकों को इक्विटी की बिक्री में हानि उठाने के कारण प्रावधानीकरण में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि निवेश संविभाग के लिए आय निर्धारण तथा आस्ति वर्गीकरण (आईआरएसी) मानदंडों के अनुसार बैंकों को इन इक्विटी शेयरों के आवधिक मूल्यन तथा मूल्यह्रास के लिए प्रावधान करना चाहिए। तथापि, बैंकों के पास यह विकल्प होगा कि वे एसडीआर के अंतर्गत प्राप्त इक्विटी शेयरों के मूल्यह्रास का वितरण ऋण के इक्विटी में संपरिवर्तन की तारीख से अधिकतम चार कैलेंडर तिमाहियों में कर सकते हैं; अर्थात् ऐसे मूल्यह्रास के लिए मौजूदा मूल्यन के अनुसार धारित प्रावधान पहली तिमाही के लिए 25% से कम नहीं होना चाहिए, दूसरी तिमाही के लिए 50% से कम नहीं होना चाहिए, और आगे इसी प्रकार प्रावधान किया जाना चाहिए। इसके अलावा, जो बैंक प्रावधान करने के लिए दीर्घतर अवधि, जैसे 6 तिमाहियां चाहते हैं, उन्हें संदर्भ तारीख से ही मार्क-टू मार्केट अपेक्षाओं के अनुसार पूर्वानुमानित प्रावधान करना शुरू कर देना चाहिए। 10. एसडीआर स्कीम पर 08 जून 2015 के परिपत्र के पैरा 3.xiii में निम्नलिखित निर्धारित किया गया है: जेएलएफ तथा ऋणदाताओं को यथाशीघ्र कम्पनी में अपनी धारिताओं का विनिवेश कर देना चाहिए। ‘नए प्रवर्तक’ के पक्ष में बैंक की धारिता के विनिवेश के बाद खाते के आस्ति वर्गीकरण को उन्नत कर ‘मानक’ कर दिया जाए। तथापि, विनिवेश की तिथि को कथित खाते के विरुद्ध बैंक द्वारा धारित प्रावधान की मात्रा, जो कि ‘सन्दर्भ तिथि’ को धारित मात्रा से कम नहीं होगी, को वापस परिवर्तित नहीं किया जाएगा। यह संभव है कि ऋणदाता 18 महीनों की अवधि के भीतर नए प्रवर्तकों को अपना भाग नहीं बेच पाते हैं, और इस प्रकार स्टैन्ड स्टिल लाभ रद्द करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप संदर्भ तारीख को प्रचलित आस्ति वर्गीकरण की तुलना में उनके शेष ऋण एक्सपोजरों के आस्ति वर्गीकरण में तीव्र गिरावट हो सकती है। परिणामी प्रावधानीकरण के क्लिफ इफेक्ट से बचने के लिए बैंकों को इस प्रकार प्रावधान करने चाहिए कि संदर्भ तारीख से 18 महीनों के बाद उनके पास शेष ऋण का कम से कम 15 प्रतिशत प्रावधान हो। अपेक्षित प्रावधान चार तिमाहियों में एक समान किश्तों में किया जाना चहिए। इस प्रावधान का प्रत्यावर्तन केवल तब किया जाएगा, जब नए प्रवर्तकों को स्वामित्व/ प्रबंधन नियंत्रण का हस्तांतरण किए जाने के बाद खाते के सभी बकाया ऋण/सुविधाएं 'विनिर्दिष्ट अवधि' (अग्रिमों की पुनर्रचना पर विद्यमान मानदंडों में यथापरिभाषित) के दौरान संतोषजनक रूप से कार्य निष्पादन कर रही हों। 11. उधारकर्ता संस्थाओं (कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना योजना से बाहर) के स्वामित्व में परिवर्तन पर विवेकपूर्ण मानदंड पर दिनांक 24 सितंबर 2015 के परिपत्र डीबीआर/ बीपी.बीसी.सं.41/21.04.048/2015-16 के अंतर्गत जिन मामलों में स्वामित्व में परिवर्तन किया गया है, उन पर पैरा 3 और 6 में निहित अनुदेश भी लागू होंगे। इसके अलावा, ऐसे मामलों में इस परिपत्र का पैरा 7 भी इस शर्त के अधीन लागू होगा कि ऋणदाता नए प्रवर्तकों के साथ मिल कर उधारकर्ता कंपनी की चुकता इक्विटी पूंजी का कम से कम 51 प्रतिशत भाग धारण करेंगे। 12. दिनांक 08 जून 2015 के परिपत्र के पैरा 5 के अनुसार कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना योजना के अंतर्गत कीमत निर्धारण के उपर्युक्त फार्मूले को कतिपय शर्तों के अधीन भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (पूंजी का निर्गम तथा प्रकटीकरण अपेक्षाएं) विनियम, 2009 से छूट प्रदान की गई है। साथ ही, सूचीबद्ध कम्पनियों के मामले में, एसडीआर के अंतर्गत ऋण के इक्विटी में रूपांतरण के कारण अधिग्रहणकर्ता ऋणदाता को भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (शेयरों और टेक ओवरों का पर्याप्त अधिग्रहण) के अंतर्गत भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड विनियम 2011 के विनियम 3 और विनियम 4 के प्रावधानों अंतर्गत खुला प्रस्ताव देने की बाध्यता से भी छूट प्राप्त होगी। तदनुसार, यह स्पष्ट किया जाता है कि एसडीआर संरचना किसी एआरसी के लिए भी उपलब्ध रहेगी, जो उधारकर्ता कंपनी के एसडीआर लेने वाले जेएलएफ का सदस्य हो। 13. हम उक्त परिपत्र के पैरा 3.xiii की और भी ध्यान आकर्षित करते हैं, जिसमें यह निर्धारित किया गया है कि “नए प्रवर्तक” के प्रति अपनी धारिताओं का विनिवेश करते समय बैंक, कम्पनी के परिवर्तित जोखिम प्रोफाइल को ध्यान में रखते हुए, मौजूदा ऋण का पुनर्वित्तीयन इस प्रक्रिया को ‘पुनर्रचना’ माने बिना ही कर सकते हैं, बशर्ते बैंक पुनर्वित्तीयन के कारण मौजूदा ऋण के उचित मूल्य में आई किसी प्रकार की कमी के लिए प्रावधान करें। इस संबंध में यह सूचित किया जाता है कि बैंकों को “नए प्रवर्तक” के अधीन कंपनी के मौजूदा ऋणों का पुनर्वित्तीयन करते समय एसडीआर संरचना के अंतर्गत निर्धारित प्रावधानीकरण का कड़ाई से पालन करना चाहिए। यह स्पष्ट किया जाता है कि यदि बैंक पुनर्वित्तीयन किए जा रहे मौजूदा ऋण को आंशिक रूप से बट्टे खाते डालते हैं तो ऊपर उल्लिखित उचित मूल्य में कमी के लिए प्रावधान बट्टे खाते डाली गई राशि का निवल होगा। 14. ये संशोधित दिशानिर्देश भावी प्रभाव से लागू होंगे। तथापि, यह विवेकपूर्ण होगा यदि बैंक ऐसे मामलों में भी इन दिशानिर्देशों का पालन करते हैं, जहां जेएलएफ ने पहले ही एसडीआर का निर्णय ले लिया है। भाग ख - अर्थव्यवस्था में दबावग्रस्त आस्तियों को सशक्त करने के लिए ढांचा – संयुक्त ऋणदाता फोरम सशक्त समूह (जेएलएफ - ईजी) 15. मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार सीएपी संबंधी निर्णय मूल्य के अनुसार जेएलएफ के न्यूनतम 75% ऋणदाताओं द्वारा तथा संख्या के अनुसार जेएलएफ के न्यूनतम 60% ऋणदाताओं द्वारा अनुमोदित होना चाहिए। समीक्षा के उपरांत, सीएपी के अनुमोदन के लिए अपेक्षित ऋणदाताओं की संख्या के अनुसार अनुपात घटा कर 50% कर दिया गया है। 16. अर्थव्यवस्था में दबावग्रस्त आस्तियों को सशक्त करने पर 24 सितंबर 2015 के परिपत्र के पैरा 3.2 के अनुसार जेएलएफ सीएपी को अंतिम रुप देगा तथा इसे ऋणदाताओं के एक शक्तिप्राप्त समूह (ईजी) के समक्ष रखा जाएगा, जिसका कार्य सीएपी के अंतर्गत परिशोधन / पुनर्रचना पैकेजों के अनुमोदन देना होगा। उक्त के आंशिक संशोधन में यह सूचित किया जाता है कि केवल अतिरिक्त वित्त के साथ परिशोधन के मामलों में तथा सीएपी के अंतर्गत पुनर्रचना के मामलों मे जेएलएफ–ईजी का अनुमोदन अनिवार्य होगा। 17. दिनांक 24 सितंबर 2015 के परिपत्र के पैरा 3.2 में जेएलएफ– जी की संरचना का भी निर्धारण किया गया है। यह निर्णय लिया गया है कि जेएलएफ-ईजी की संरचना में निम्नानुसार संशोधन किया जाए।
18. मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार जेएलएफ से अपेक्षित है कि यदि उसे आसन्न दबाव महसूस होता है, तो सुधारात्मक कार्रवाई योजना (सीएपी) के लिए अपनाए जाने वाले विकल्प, अर्थात् परिशोधन, या पुनर्रचना या वसूली पर (i) एक या अधिक ऋणदाताओं द्वारा खाते को एसएमए-2 रिपोर्ट करने की तारीख, या (ii) उधारकर्ता से उचित आधार के साथ जेएलएफ बनाने का अनुरोध प्राप्त होने के 45 दिन के भीतर सहमति प्राप्त करे। जेएलएफ द्वारा ऐसी सहमति प्राप्त करने के 30 दिन के भीतर विस्तृत अंतिम सीएपी पर हस्ताक्षर किए जाने चाहिए। साथ ही, मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार (दिनांक 24 सितंबर 2015 के परिपत्र का पैरा 5.2), अलग राय रखने वाले उन उधारकर्ताओं, जो सीएपी के रूप में खाते के संशोधन या पुनर्रचना, जिसमें अतिरिक्त वित्तपोषण हो भी सकता है और नहीं भी, में प्रतिभाग नहीं करना चाहते हैं, के लिए एक विकल्प होगा कि वे सहमति प्राप्त सीएपी लागू करने की निर्धारित समयसीमा के भीतर नए या विद्यमान ऋणदाताओं को अपना एक्सपोजर बेचकर अपने एक्सपोजर से पूरी तरह एक्ज़िट कर जाएं। एक्ज़िट करनेवाले ऋणदाता के पास यह विकल्प नहीं होगा कि वह अपने वर्तमान एक्सपोजर को जारी भी रखे और साथ ही, सीएपी के रूप में संशोधन या पुनर्रचना के लिए सहमत भी न हो। नया ऋणदाता जिसे बाहर निकलने ऋणदाता अपनी हिस्सेदारी बेचता है, किसी भी अतिरिक्त वित्त प्रतिबद्ध है, यदि सहमति कैप अतिरिक्त वित्त शामिल आवश्यकता नहीं जा सकता। जिस नए ऋणदाता को एक्ज़िट करने वाला ऋणदाता अपना हित बेचता है, उससे किसी अतिरिक्त वित्त की प्रतिबद्धता नहीं होगी, यदि सहमति प्राप्त कैप में अतिरिक्त वित्त भी शामिल है। ऐसे मामलों में, यदि नया ऋणदाता अतिरिक्त वित्त में प्रतिभाग न करने का चुनाव करता है, एक्ज़िट करने वाले उधारदाता से संबंधित अतिरिक्त वित्त के भाग को वर्तमान उधारदाताओं से आनुपातिक आधार पर पूरा किया जाएगा। अतएव यह दोहराया जाता है कि यदि असहमत ऋणदाता ऊपर निर्धारित अवधि के भीतर किसी क्रेता की व्यवस्था करके बाहर जाने में असफल रहता है तो उसे सहमत सीएपी का आवश्यक रूप से पालन करना होगा तथा यदि सीएपी में ऐसा विचार किया गया है, तो अतिरिक्त वित्त उपलब्ध कराना होगा। इसके अतिरिक्त, यह पाया गया है कि कुछ मामलों में बैंकों द्वारा सीएपी संबंधी निर्णय सूचित करने में अनावश्यक विलंब होता है, जिससे दबावपूर्ण खातों के मामलों में त्वरित सुधारात्मक उपाय करने का इस संरचना का मूल उद्देश्य ही विफल हो जाता है। इसलिए यह निर्णय लिया गया है कि बैंकों को समयबद्ध रूप में अपने सीएपी पर सहमति संबंधी निर्णय व्यक्त करने के लिए एक प्रोत्साहन संरचना बनाई जाए। तदनुसार, जहां जेएलएफ के बहुसंख्य सदस्यों (अर्थात्, ऋण के मूल्यानुसार 75 प्रतिशत और संख्या के अनुसार 50 प्रतिशत ऋणदाताओं) ने सीएपी के लिए सहमति व्यक्त की गई है, वहां ऋणदाताओं की विभिन्न श्रेणियों के लिए परिशिष्ट में निर्धारित परिसंपत्ति वर्गीकरण और प्रावधानीकरण मानदंड लागू होंगे। 19. इसके अलावा, सीएपी के एक भाग के रूप में पुनर्रचना/परिशोधन के अंतर्गत उपलब्ध कराए गए अतिरिक्त वित्त की चुकौती को मौजूदा ऋणों की चुकौती में प्राथमिकता दी जाएगी। इसलिए, अतिरिक्त वित्त की जो किश्तें चुकौती के लिए देय होंगी, उन्हें मौजूदा ऋण की चुकौती के दायित्वों पर प्राथमिकता दी जाएगी। तदनुसार, जेएलएफ समझौते में आवश्यक शर्तें शामिल की जाएंगी। भाग ग – अग्रिमों की पुनर्रचना पर विवेकपूर्ण दिशानिर्देश 20. हम दोहराते हैं कि मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार पुनर्रचना किए जाने पर 'मानक परिसंपत्तियों' के रूप में वर्गीकृत खातों को तुरंत 'उप मानक परिसंपत्तियों' के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए। इसके अलावा, मौजूदा मानदंडों के अनुसार अनुमोदित पुनर्रचना पैकेज के अंतर्गत किसी भी अतिरिक्त वित्त को विनिर्दिष्ट अवधि के दौरान 'मानक परिसंपत्ति' माना जाए। 21. आईआरएसी मानदंडों पर दिनांक 01 जुलाई 2015 के मास्टर परिपत्र के पैरा 17.1.5 में निम्नानुसार निर्धारित किया गया है: यद्यपि जिन उधारकर्ताओं ने कपट या दुराचार किया है वे पुनर्रचना के पात्र नहीं होंगे, तथापि बैंकों को इरादतन चूककर्ताओं के रूप में उधारकर्ताओं के वर्गीकरण के कारणों की समीक्षा करनी चाहिए, खास कर पुराने मामलों में जब उधारकर्ता को इरादतन चूककर्ता के रूप में वर्गीकृत करने का तरीका पारदर्शी नहीं था। बैंकों को अपने आप को इस बात से संतुष्ट करना चाहिए कि उधारकर्ता इरादतन चूक में सुधार लाने की स्थिति में है। ऐसे मामलों में बोर्ड के अनुमोदन से पुनर्रचना की जा सकती है तथा सीडीआर प्रणाली के अंतर्गत ऐसे खातों की पुनर्रचना केवल केंद्रीय समूह (कोर ग्रुप) के अनुमोदन से की जानी चाहिए। 22. समीक्षा के उपरांत, तथा अर्थक्षम खातों के आर्थिक मूल्य का संरक्षण करने की दृष्टि से यह निर्णय लिया गया है कि धोखाधड़ी / भ्रष्टाचार के मामलों में जहां नए प्रवर्तकों ने मौजूदा प्रवर्तकों का स्थान ले लिया है, और ऋण लेने वाले कंपनी पूरी तरह से ऐसे पूर्व- प्रवर्तकों/ प्रबंधन से अलग हो चुकी है, बैंक और जेएलएफ पूर्व-प्रवर्तकों/ प्रबंधन के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की निरंतरता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे खातों की व्यवहार्यता के आधार पर उनकी पुनर्रचना का विचार कर सकते हैं। इसके अलावा, यदि ऐसे खातों के स्वामित्व में ऐसे परिवर्तन 'उधारकर्ता संस्थाओं (कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना योजना से बाहर) के स्वामित्व में परिवर्तन पर विवेकपूर्ण मानदंड' पर दिनांक 24 सितंबर 2015 के परिपत्र डीबीआर/बीपी.बीसी.सं.41/21.04.048/2015-16 में निहित दिशानिर्देशों के तहत किया जाता है, तो ऐसे खाते भी स्वामित्व में परिवर्तन के बाद पुनर्वित्त पर उपलब्ध परिसंपत्ति वर्गीकरण लाभों के लिए पात्र होंगे। प्रत्येक बैंक अपने बोर्ड के अनुमोदन से ऐसी आस्तियों की पुनर्रचना पर अपनी नीति और अपेक्षाएं तैयार कर सकता है। 23. हम यह भी दोहराते हैं कि अनर्जक आस्तियों के रूप में वर्गीकृत पुनर्रचित खातों का जब मानक श्रेणी के लिए उन्नयन किया जाता है, तब उस पर पहले वर्ष में उन्नयन की तारीख से 5 प्रतिशत का प्रावधान करना होगा। 24. सामान्य शर्तें 24.1 अग्रिमों के संबंध में आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधान करने से संबंधित विवेकपूर्ण मानदंड पर दिनांक 1 जुलाई 2015 के मास्टर परिपत्र बैंविवि.सं.बीपी.बीसी.2/21.04.048/2015-16 के भाग ख में निहित आस्ति वर्गीकरण के लिए विशेष विनियामक व्यवहार पर अनुदेशों को वापिस लिया गया। 24.2 अब से पुनर्रचना के सभी मामलों में उक्त मास्टर परिपत्र के पैरा 21 (विविध) में पहले से उल्लिखित सामान्य शर्तों के अतिरिक्त निम्नलिखित सामान्य शर्तें लागू होंगी:
24.3. अग्रिमों के संबंध में आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधान करने से संबंधित विवेकपूर्ण मानदंड पर दिनांक 1 जुलाई 2015 के मास्टर परिपत्र बैंविवि.सं.बीपी.बीसी.2/21.04.048/2015-16 के भाग ख के अंतर्गत अन्य सभी अनुदेश अपरिवर्तित रहेंगे। भाग घ – परियोजना ऋणों की लचीली संरचना 25. हमें बैंकों से ऐसे प्रश्न मिलते रहे हैं कि क्या बैंक विदेशी मुद्रा में लिए गए ऋणों की लचीली संरचना कर सकते हैं। इस संबंध में, यह स्पष्ट किया जाता है कि विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 के अंतर्गत जारी विनियमों के अधीन बुनियादी संरचना क्षेत्र और महत्वपूर्ण उद्योगों के लिए दीर्घावधि परियोजना ऋणों की लचीली संरचना पर दिनांक 15 जुलाई 2014 के बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.24/21.04.132/2014-15 तथा 15 दिसंबर 2014 के बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.53/21.04.132/2014-15 में निहित दिशानिर्देश बुनियादी संरचना क्षेत्र और महत्वपूर्ण उद्योगों की परियोजनाओं के निधीयन हेतु लिए गए बाह्य वाणिज्यिक उधारों (ईसीबी) पर भी लागू हैं। भाग ङ- प्रतिभूतीकरण कंपनियों (एससी) / पुनर्निर्माण कंपनियों (आरसी) को वित्तीय आस्तियों की बिक्री 26. आरक्षित कीमत – दिनांक 26 फरवरी 2014 के परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी.98/ 21.04.132/2013-14 के पैरा 3.5 में निहित मौजूदा अनुदेशों के अनुसार बैंकों को सूचित किया गया था कि आरक्षित कीमत के प्रकटीकरण, बोलियों को स्वीकार न करने की शर्तें विनिर्दिष्ट करने आदि सहित एससी/आरसी को एनपीए की बिक्री की क्रियाविधि अधिक पारदर्शी होनी चाहिए। इस संबंध में यह स्पष्ट किया जाता है कि बैंक एससी/आरसी से बोलियां/ हित- प्रकटन आमंत्रित करते समय ही आरक्षित कीमत का प्रकटन करेंगे। 27. समुचित सावधानी – बैंक बिक्री के लिए प्रस्तावित वित्तीय आस्तियों पर समुचित सावधानी प्रक्रिया करने के लिए एससी/आरसी को पर्याप्त समय और उचित सुविधाएं उपलब्ध कराएंगे। बैंक बोलियां/ हित- प्रकटन आमंत्रित करने के समय से कम से कम दो सप्ताह का समय उपलब्ध कराएंगे। एससी/आरसी 28. प्राप्ति अवधि के बाद प्रतिभूति रसीदों/ पास-थ्रू प्रमाणपत्र का प्रबंध/व्यवहार - मौजूदा अनुदेशों के अनुसार यदि एससी / आरसी द्वारा जारी किए गए (और बैंकों द्वारा निवेशित) लिखतों में से किसी के मोचन संबंधित योजना में लिखतों को दी गई वित्तीय आस्तियों की वास्तविक प्राप्ति तक सीमित है, तो बैंक/ वित्तीय संस्था द्वारा ऐसे निवेशों के मूल्यांकन के लिए एससी/ आरसी से समय-समय पर प्राप्त निवल आस्ति मूल्य (एनएवी) को हिसाब में लिया जाएगा। इस संबंध में यह निर्णय लिया गया है कि जिन प्रतिभूति रसीदों/ पास-थ्रू प्रमाणपत्रों को संकल्प अवधि (अर्थात् , पांच वर्ष या आठ वर्ष, जैसा भी मामला हो) के अंत में भुनाया नहीं गया है, उन्हें बैंकों की बहियों में हानि आस्तियों के रूप में माना जाएगा।
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