‘दोनों में से एक या जीवित’ अथवा ‘पहला या जीवित’ अधिदेश के साथ मीयादी / सावधि जमा राशियों की पुनर्भुगतान
आरबीआई/2012-13/176 23 अगस्त 2012 सभी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक /राज्य और केंद्रीय सहकारी बैंक महोदय, ‘दोनों में से एक या जीवित’ अथवा ‘पहला या जीवित’ अधिदेश हमें यह पता चला है कि क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) /राज्य और केंद्रीय सहकारी बैंकों (एसटीसीबी/ डीसीसीबी) सावधि /मीयादी जमाराशियों की धनवापसी की अनुमति के लिए दोनों ही जमाकर्ताओं से हस्ताक्षर किए जाने का आग्रह करते हैं, हालांकि जमा खाता ‘दोनों में से एक या जीवित’ अथवा ‘पहला या जीवित’ के परिचालन अनुदेशों (कभी कभी ‘पुर्नभुगतान अनुदेश’ कहा जाता है) के साथ खोला हुआ होता है । दोनों ही जमाकर्ताओं के हस्ताक्षर का आग्रह करने का प्रभाव यह होता है कि जमाकर्ताओं द्वारा दिया गया अधिदेश अनावश्यक बन जाता है । इसके परिणामस्वरूप अनुचित विलम्ब तथा खराब ग्राहक सेवा के आरोप की स्थिति बन जाती है । 2. इस संबंध में, यह स्पष्ट किया जाता है कि यदि सावधि /मीयादी जमाराशि खाते "दोनों में से एक या जीवित" के परिचालन अनुदेश के साथ खोले जाते हैं तो परिपक्व हो जाने पर जमाराशि के भुगतान के लिए दोनों जमाकर्ताओं के हस्ताक्षर मांगने की जरूरत नहीं है। तथापि, यदि परिपक्वता से पूर्व जमाराशि का भुगतान किया जाना हो तो दोनों ही जमाकर्ताओं के हस्ताक्षर प्राप्त किए जाने चाहिए । यदि परिचालन अनुदेश "दोनों में से एक या जीवित" हो और परिपक्वता से पूर्व जमाकर्ताओं में से एक की मृत्यु हो जाती है तो मृत संयुक्त धारक के कानूनी वारिसों की सहमति के बिना सावधि / मीयादी जमा के किसी पूर्व भुगतान की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए । तथापि, इससे परिपक्वता पर जीवित व्यक्ति को भुगतान करने में कोई बाधा नहीं आएगी । 3. यदि अधिदेश "पहला या जीवित" का हो तो दोनों जमाकर्ताओं के जीवित रहने की स्थिति में केवल ‘पहला’ सावधि / मीयादी जमा का परिचालन की परिपक्व राशि का आहरण कर सकता है । तथापि, परिपक्वता से पहले जमाराशि का भुगतान करने के लिए दोनों जमाकर्ताओं के हस्ताक्षर प्राप्त करने चाहिए । यदि "पहला" व्यक्ति मीयादी/ सावधि जमाराशि की परिपक्वता के पहले मृत हो जाता है तो जीवित व्यक्ति परिपक्वता पर जमाराशि आहरित कर सकता है । फिर भी, जमाराशि के अवधिपूर्व आहरण के लिए दोनों ही जीवित हो तो, दोनों पार्टियों की सहमति आवश्यक है तथा दोनों में से किसी एक की मृत्यु हो जाने पर जीवित जमाकर्ता के और मृत जमाकर्ता के कानूनी वरिसों के हस्ताक्षर आवश्यक हैं । 4. यदि संयुक्त जमाकर्ता सावधि / मीयादी जमाराशियों का अवधिपूर्व आहरण करना चाहते हैं और यह भी यथास्थिति ‘दोनों में से एक या जीवित' अथवा "पहला या जीवित" के अधिदेश के अनुसरण में, तो आरआरबी / एसटीसीबी / डीसीसीबी ऐसा कर सकते हैं, बशर्ते उक्त प्रयोजन के लिए उन्होंने जमाकर्ताओं से विशिष्ट संयुक्त अधिदेश ले लिया हो। इस संबंध में आप 19 जुलाई 2005 के हमारे परिपत्र ग्राआऋवि.केंका.आरआरबी.बीसी.22/ 03.05.33/2005-06 का पैरा 3 और 12 जुलाई 2005 का हमारा परिपत्र ग्राआऋवि.केंका.आरएफ.बीसी.सं. 12/ 07.38.01/2005-06 भी देखें जिसके अनुसार आरआरबी / एसटीसीबी / डीसीसीबी को सूचित किया गया था कि वे इसके लिए खाता खोलने के फार्म में ही एक खंड जोड़ दें कि जमाकर्ता की मृत्यु हो जाने के मामले में उनके द्वारा उस फार्म में निर्दिष्ट की जानेवाली शर्तों पर उस मीयादी जमाराशि को अवधिपूर्व समाप्त करने की अनुमति दी जाएगी । आरआरबी / एसटीसीबी / डीसीसीबी को यह भी सूचित किया गया था कि वे उपर्युक्त बात का व्यापक प्रचार करें और जमाखाताधारियों का इस संबंध में मार्गदर्शन करें । 5. तथापि, आरआरबी / एसटीसीबी / डीसीसीबी ने अपने खाता खोलने के फार्म में न ऐसा खंड शामिल किया है और न ही ऐसे अधिदेश की सुविधा के बारे में ग्राहकों को अवगत कराने के पर्याप्त उपाय किए हैं, जिसके कारण ‘जीवित’ खाताधारी को अनावश्यक असुविधा हो जाती है । अत: आरआरबी / एसटीसीबी / डीसीसीबी को सूचित किया जाता है कि वे खाता खोलने के फॉर्म में उपर्युक्त खंड अनिवार्यत: शामिल करें तथा अपने वर्तमान के एवं भावी मीयादी जमाकर्ताओं को इस प्रकार का विकल्प मौजूद होने की सूचना दें । 6. संयुक्त जमाखाताधारियों को सावधि जमाराशियों के अवधिपूर्व आहरण की तथा साथ ही, "दोनों में से एक या जीवित" अथवा ‘पहला या जीवित’ अधिदेश के अनुसरण में भी आहरण की अनुमति देने का संयुक्त अधिदेश सावधि जमा रखने के समय अथवा जमाराशि की मीयाद /अवधि के दौरान बाद में कभी भी देने की अनुमति दी जाए । यदि इस प्रकार का अधिदेश प्राप्त किया जाता है तो आरआरबी / एसटीसीबी / डीसीसीबी मृत संयुक्त जमाखाताधारी के कानूनी वारिसों की सहमति लिए बिना जीवित जमाकर्ता द्वारा मीयादी / सावधि जमा के अवधिपूर्व आहरण की अनुमति दे सकते हैं । यह भी दोहराया जाता है कि अवधिपूर्व आहरण पर दंडात्मक प्रभार नहीं लगेगा । 7. इस परिपत्र के पैरा 5 और 6 में दिए गए स्पष्टीकरण 19 जुलाई 2005 के हमारे परिपत्र ग्राआऋवि. केंका. आरआरबी. बीसी. 22/ 03.05.33/ 2005-06 और 12 जुलाई 2005 के परिपत्र ग्राआऋवि.केंका.आरएफ.बीसी.सं.12/ 07.38.01/ 2005-06 के पैरा 3 का अधिक्रमण करते हुए हैं । भवदीय (सी.डी.श्रीनिवासन ) |
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