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आवास ऋण - दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश - यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य के विरुध्द कल्याण संस्था वेल्फेअर ऑर्गनाइजेशन द्वारा रिट याचिका - निदेशों का कार्यान्वयन

भारिबैं / 2006 - 07 /188
ग्राआऋवि.केका.सं. आरआरबी.बीसी. 36 / 03.05.33 /2006-07

22 नवंबर 2006

सभी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के मुख्य कार्यकारी अधिकारी

महोदय,

आवास ऋण - दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश - यूनियन ऑफ इंडिया
और अन्य के विरुध्द कल्याण संस्था वेल्फेअर ऑर्गनाइजेशन द्वारा रिट
याचिका - निदेशों का कार्यान्वयन

उक्त रिट याचिका की सुनवाई के दौरान माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय ने निम्नानुसार निदेश दिया है -

"हम एतद्द्वारा यह निदेश देते हैं कि आगे से बैंक यह जाँच करेंगे कि क्या मांगा गया ऋण प्राधिकृत निर्माण के लिए है या अप्राधिकृत निर्माण के लिए है । बैंक ऐसे ऋण चाहने वाले पक्षों से शपथपत्र पर वचन लेंगे कि स्वीकृत भवन योजना के अनुसार भवन का निर्माण किया जाएगा । बैंक यह भी सुनिश्चित करेंगे कि स्वीकृत भवन योजना वचनपत्र के साथ संलग्न हो । इस संबंध में संबंधित बैंकिंग मंत्रालय अथवा भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा आवश्यक निदेश जारी किए जायें " ।

2. इस संदर्भ में अप्राधिकृत निर्माण, संपदा का दुरुपयोग और सरकारी जमीन पर अधिक्रमण के संबंध में माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा गठित निगरानी समिति ने बैंकों / वित्तीय संस्थाओं द्वारा तुरंत अनुपालन करने हेतु निम्नलिखित निदेश जारी किये हैंे :

क. भवन निर्माण के लिए आवास ऋण

i) जहां आवेदक किसी भूखंड / जमीन का मालिक हो और गृह निर्माण हेतु ऋण सुविधा के लिए बैंकों / वित्तीय संस्थाओं से संपर्क करता हो तो ऐसे मामलों में ऐसी ऋण सुविधा के लिए आवेदन करने वाले व्यक्ति के नाम से सक्षम प्राधिकारी द्वारा स्वीकृत भवन योजना की एक प्रति आवास ऋण मंजूर करने से पहले बैंकों / वित्तीय संस्थाओं द्वारा अवश्य प्राप्त की जानी चाहिए ।

ii) ऐसी ऋण सुविधा के लिए आवेदन करने वाले व्यक्ति से एक वचन पत्र सहित शपथपत्र लेना चाहिए कि वह स्वीकृत भवन योजना का अतिक्रमण नहीं करेगा, भवन निर्माण पूर्णत: स्वीकृत भवन योजना के अनुसार ही होगा और भवन निर्माण पूरा करने से 3 महीने के भीतर पूर्णता प्रमाणपत्र प्राप्त करने की संपूर्ण जिम्मेदारी निष्पादक (आवेदक) की होगी । ऐसा न करने पर बैंक के पास ब्याज, लागत तथा बैंक के अन्य सामान्य प्रभारों सहित संपूर्ण ऋण वापस मांगने की शक्ति तथा प्राधिकार होगा ।

iii) बैंक द्वारा नियुक्त वास्तुविद को भवन निर्माण के विभिन्न चरणों पर यह भी प्रमाणित करना चाहिए कि भवन का निर्माण स्वीकृत भवन योजना के अनुसार ही है । वास्तुविद निश्चित समय पर यह भी प्रमाणित करेगा कि सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी भवन निर्माण का पूर्णता प्रमाणपत्र प्राप्त किया गया है ।

ख. निर्मित संपदा / बनी - बनायी संपदा की खरीद के लिए आवास ऋण

i) जहां आवेदक निर्मित आवास / फलैट की खरीद हेतु ऋण सुविधा के लिए बैंकों / वित्तीय संस्थाओं से संपर्क करता है तो ऐसे मामलों में वचनपत्र सहित शपथपत्र के जरिए यह घोषणा करना उसके लिए अनिवार्य होना चाहिए कि निर्मित भवन / संपदा का निर्माण स्वीकृत भवन योजना और / अथवा निर्माण संबंधी उप-नियमों के अनुसार किया गया है और जहां तक संभव हो निर्माण पूर्णता प्रमाणपत्र भी प्राप्त हुआ है ।

ii) बैंक द्वारा नियुक्त वास्तुविद को भी ऋण संवितरण के पहले यह प्रमाणित करना होगा कि निर्मित संपदा पूर्णतया स्वीकृत भवन योजना और / अथवा निर्माण संबंधी उप-नियमों के अनुसार है ।

. अप्राधिकृत बस्तियों की श्रेणी में आनेवाली संपदा के संबंध में कोई भी ऋण वितरण नहीं करना चाहिए जब तक कि उन्हें नियमित न किया गया हो और विकास और अन्य प्रभार का भुगतान न किया गया हो ।

. जो संपदा आवासीय उपयोग के लिए है, परंतु जिसका उपयोग आवेदक वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए करना चाहता है और ऋण के लिए आवेदन करते समय ऐसी घोषणा करता है तो ऐसी संपदा के संबंध में कोई भी ऋण नहीं देना चाहिए ।

3. हालाँकि उक्त अनुदेश दिल्ली उच्च न्यायालय में रिट याचिका के संदर्भ में जारी किए गए थे, सभी बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे तत्काल प्रभाव से उक्त निर्देशों का अनुपालन कड़ाई से करें ।

4. कृपया इसकी पावती हमारे संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को दें ।

भवदीय

( के.भट्टाचार्य )
महाप्रबंधक

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