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धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के अंतर्गत अधिसूचित नियमों के अनुसार बैंकों का दायित्व

आरबीआइ/2007-08/372
आरपीसीडी. केका.आरआरबी. बीसी. सं. 77/03.05.33(इ)/2007-08

18 जून 2008

अध्यक्ष
सभी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक

महोदय

धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के अंतर्गत अधिसूचित नियमों के अनुसार बैंकों का दायित्व

कृपया 09 मार्च 2006 का हमारा परिपत्र आरपीसीडी.केका.आरआरबी. बीसी. 68/03.05.33(इ)/ 2005-06 देखें। उक्त परिपत्र के पैराग्राफ 3 में यह सूचित किया गया था कि बैंकों से अपेक्षित है कि वे नियम 3 में उल्लिखित अपने ग्राहक के साथ किए गए लेनदेन से संबंधित जानकारी हार्ड तथा सॉफ्ट प्रतियों में रखें तथा परिरक्षित करें। आगे यह स्पष्ट किया जाता है कि बैंकों को पूर्वोक्त नियम 3 में उल्लिखित सभी लेनदेन से संबंधित जानकारी निदेशक, वित्तीय आसूचना इकाई- भारत (एफआइयू-आइएनडी) को भी रिपोर्ट करनी चाहिए।

2.‘अपने ग्राहक को जानिए’ मानदंड तथा धन शोधन निवारण उपायों पर दिशानिर्देश संबंधी हमारे 18 फरवरी 2005 के परिपत्र के पैराग्राफ 2 में निहित अनुदेशों के अनुसार बैंकों को जोखिम वर्गीकरण के आधार पर प्रत्येक ग्राहक का एक प्रोफाइल तैयार करना चाहिए। इसके अतिरिक्त 27 फरवरी 2008 के हमारे परिपत्र के पैरा 4 में जोखिम वर्गीकरण की आवधिक समीक्षा करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है । अत:, इस बात को दोहराया जाता है कि लेनदेन निगरानी व्यवस्था के एक भाग के रूप में बैंकों को एक ऐसा उपयुक्त सॉफ्टवेयर एप्लिकेशन स्थापित करना चाहिए जो ग्राहक के अद्यतन प्रोफाइल तथा जोखिम वर्गीकरण से असंगत लेनदेन होने पर सतर्कता का संकेत दे। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि सतर्कता के संकेत देनेवाला एक सक्षम सॉफ्टवेयर संदिग्ध लेनदेन की प्रभावी पहचान तथा रिपोर्टिंग के लिए आवश्यक है ।

3. 09 मार्च 2006 के हमारे उपर्युक्त परिपत्र के पैराग्राफ 6 में बैंकों को सूचित किया गया था कि वे एफआइयू-आइएनडी को भेजी जाने वाली नकद लेनदेन रिपोर्ट (सीटीआर) तथा संदिग्ध लेनदेन रिपोर्ट (एसटीआर) को इलेक्ट्रॉनिक रूप से फाइल करने के लिए तत्काल कदम उठाएं। एफआइयू-आइएनडी ने सूचित किया है कि बहुत सारे बैंकों ने अभी तक इलेक्ट्रॉनिक रिपोर्ट फाइल नहीं की हैं । अत: यह सूचित किया जाता है कि उन बैंकों के मामले में जहां सभी शाखाएं अभी तक पूर्णत: कंप्यूटरीकृत नहीं हुई हैं, बैंक के प्रधान अधिकारी को चाहिए कि वे कंप्यूटरीकृत नहीं हुई शाखाओं से लेनदेन के ब्यौरों को छांटकर, उन्हें एफआइयू-आइएनडी द्वारा अपनी वेबसाइट http://fiuindia.gov.in पर उपलब्ध कराई गयी सीटीआर/एसटीआर की एडिटेबल इलैक्ट्रॉनिक यूटिलिटिज की सहायता से एक इलैक्ट्रॉनिक फाइल में डालने की उपयुक्त व्यवस्था करें।

4. 09 मार्च 2006 के हमारे उपर्युक्त परिपत्र के पैराग्राफ 6(।) (क) में बैंकों को सूचित किया गया था कि वे प्रत्येक महीने की नकद लेनदेन रिपोर्ट (सीटीआर) एफआइयू-आइएनडी को परवर्ती महीने की 15 तारीख तक अवश्य भेजें। यह भी स्पष्ट किया जाता है कि शाखाओं द्वारा अपने नियंत्रक कार्यालयों को भेजी जाने वाली नकद लेनदेन रिपोर्ट अनिवार्यत:मासिक आधार (पाक्षिक आधार पर नहीं) पर प्रस्तुत की जानी चाहिए तथा बैंकों को सुनिश्चित करना चाहिए कि निर्धारित समय अनुसूची के अनुसार एफआइयू-आइएनडी को प्रत्येक महीने की सीटीआर प्रस्तुत की जाती है।

5. सीटीआर के संबंध में यह पुन: सूचित किया जाता है कि दस लाख रुपये की उच्चतम सीमा आपस में जुड़े नकद लेनदेन पर भी लागू होगी। इसके अलावा, एफआइयू-आइएनडी के साथ विचार-विमर्श करने के बाद यह स्पष्ट किया जाता है कि :

क) आपस में जुड़े नकद लेनदेन को निर्धारित करने के लिए बैंकों को एक कैलेंडर महीने के दौरान किसी खाते में किए गए ऐसे सभी अलग-अलग नकद लेनदेन को ध्यान में लेना होगा जहां नामे अथवा जमा प्रविष्टियों का अलग-अलग योग महीने के दौरान दस लाख रुपये से अधिक है। तथापि, सीटीआर फाइल करते समय पचास हजार रुपये से कम अलग-अलग नकद लेनदेन के ब्यौरों को न दर्शाया जाए। आपस में जुड़े नकद लेनदेन का उदाहरण अनुबंध - 1 में दिया गया है।

ख) सीटीआर में केवल वही लेनदेन होने चाहिए जो बैंक ने अपने ग्राहकों की ओर से किए हैं। बैंक के आंतरिक खातों के बीच किए गए लेनदेन इसमें शामिल नहीं होंगे।

ग) जहां जाली अथवा नकली भारतीय मुद्रा नोटों का असली के रूप में उपयोग किया गया हो, वहां ऐसे सभी नकद लेनदेनों की सूचना प्रधान अधिकारी द्वारा अनुबंध II तथा III में दिए गए फॉर्मेट (नकदी मुद्रा की रिपोर्ट -सीसीआर) में एफआइयू-आइएनडी को तत्काल भेजी जानी चाहिए। इलेक्ट्रॉनिक डाटा स्ट्रक्यर अनुबंध IV में दिया गया है ताकि बैंक इलेक्ट्रॉनिक सीसीआर निकाल सकें । इन नकद लेनदेनों में ऐसे लेनदेन भी शामिल होने चाहिए जहां मूल्यवान प्रतिभूति अथवा दस्तावेजों की जालसाजी की गई है। यह सूचना एफआइयू-आइएनडी को प्लेन टेक्स्ट में भेजी जानी चाहिए ।

6. 18 फरवरी 2005 के हमारे परिपत्र आरपीसीडी. सं. आरआरबी. बीसी. 81/03.05.33(इ)/2004-05 से संलग्न अपने ग्राहक को जानिए मानदंड /धन शोधन निवारण उपायों से संबंधित दिशानिर्देशों के पैराग्राफ 4 में बैंकों को सूचित किया गया है कि वे सभी जटिल, असामान्य रूप से बड़े लेनदेन और लेनदेन के ऐसे असामान्य स्वरूप की ओर विशेष ध्यान दें जिनका कोई सुस्पष्ट आर्थिक अथवा विधि सम्मत प्रयोजन न हो। यह भी स्पष्ट किया जाता है कि जहां तक संभव हो ऐसे लेनदेन से संबंधित सभी दस्तावेज / कार्यालयीन अभिलेख / ज्ञापन सहित उसकी पृष्ठभूमि तथा उसके प्रयोजन की जांच की जाए तथा शाखा तथा प्रधान अधिकारी दोनों स्तर पर प्राप्त निष्कर्षों को उचित रूप से रिकार्ड किया जाए। धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 की अपेक्षा के अनुसार इन अभिलेखों को दस वर्ष की अवधि के लिए परिरक्षित किया जाना है।लेनदेन की संवीक्षा से संबंधित दिन-प्रति-दिन का कार्य करने में लेखा परीक्षकों की सहायता के लिए तथा रिज़र्व बैंक/अन्य संबंधित प्राधिकारियों को भी ऐसे रिकार्ड तथा संबंधित दस्तावेज उपलब्ध कराये जाएँ।

7. 09 मार्च 2006 के परिपत्र के पैराग्राफ 7 में बैंकों को सूचित किया गया है कि एफआइयू-आइएनडी को उनके द्वारा भेजे गए एसटीआर के बारे में ग्राहक को पता नहीं चलना चाहिए। यह संभव है कि कुछ मामलों में ग्राहकों को कुछ ब्योरे देने अथवा दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए कहे जाने पर ग्राहक अपने लेनदेन का परित्याग करे अथवा उसे बीच में ही रोक दे। यह स्पष्ट किया जाता है कि बैंकों को एसटीआर में लेनदेन के ऐसे सभी प्रयासों के संबंध में सूचना देनी चाहिए, भले ही ग्राहकों ने इन लेनदेनों को अधूरा छोड़ दिया हो।

8. एसटीआर तैयार करते समय बैंक पूर्वोक्त नियमावली के नियम 2(छ) में निहित ‘संदिग्ध लेनदेन’ की परिभाषा को ध्यान में रखें । साथ ही, यह स्पष्ट किया जाता है कि बैंक लेनदेन की राशि पर तथा /अथवा धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 की अनुसूची के भाग - ख में तिरूपित अपराधों के लिए परिकल्पित न्यूनतम सीमा पर ध्यान दिए बिना एसटीआर तब बनाएं जब उनके पास यह विश्वास करने के लिए उचित आधार है कि लेनदेन में सामान्यत: अपराध से प्राप्त राशि सम्मिलित है।

9. स्टाफ को अपने ग्राहक को जानिए /धन शोधन निवारण के संबंध में जागरूक बनाने के लिए तथा संदिग्ध लेनदेन के लिए सतर्कता संकेत तैयार करने के लिए बैंक ‘बैंकों के लिए आइबीए के मार्गदर्शी नोट 2005’ के अनुबंध इ में निहित संदिग्ध गतिविधियों की निदर्शी सूची (प्रति लिपि संलग्न) देखें ।

10. ये दिशानिर्देश बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (जैसाकि सहकारी समितियों पर लागू है ) की धारा 35क तथा पूर्वोक्त नियमावली के अधीन जारी किए गए हैं। उक्त दिशानिर्देशों का किसी भी प्रकार से उल्लंघन करने पर अधिनियम के संबंधित प्रावधानों के अंतर्गत दंड दिया जा सकता है।

भवदीय

(जी. श्रीनिवासन)

प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक

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