आईएफएससी बैंकिंग यूनिटों (आईबीयू) की स्थापना – अनुमेय गतिविधियां - आरबीआई - Reserve Bank of India
आईएफएससी बैंकिंग यूनिटों (आईबीयू) की स्थापना – अनुमेय गतिविधियां
भा.रि.बैं/2016-17/118 10 नवंबर 2016 अध्यक्ष/प्रबंध निदेशक और सीईओ महोदय/महोदया, आईएफएससी बैंकिंग यूनिटों (आईबीयू) की स्थापना – अनुमेय गतिविधियां कृपया दिनांक 01 अप्रैल 2015 का हमारा परिपत्र बैंविवि.आईबीडी.बीसी.14570/23.13.004/2014-15 देखें, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्रों (आईएफएससी) बैंकिंग यूनिटों (आईबीयू) के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक के निदेश जारी किए गए हैं। हमें गत कुछ महीनों के दौरान कुछ सुझाव और प्रश्न प्राप्त हुए हैं, जो इन विनियमों को लागू करने में बैंकों के समक्ष आ रहे व्यवहारिक मुद्दों को दर्शाते हैं। इन मुद्दों की जांच की गई है और निदेशों में निम्नानुसार संशोधन किया गया है: 2. दिनांक 1 अप्रैल, 2015 के उपर्युक्त परिपत्र के अनुबंध I और अनुबंध II के मौजूदा पैरा 2.5 को संशोधन के बाद निम्नानुसार पढ़ा जाएगा: “2.5.1 विदेशी मुद्रा में उधार लेने सहित, निधियां जुटाने के स्रोत भारत में निवास न करने वाले व्यक्ति और भारतीय बैंकों की विदेश में स्थित शाखाएं होंगी। 2.5.2 निधियों का अभिनियोजन भारत में निवासी व्यक्तियों और भारत में निवास न करने वाले व्यक्तियों दोनों के साथ किया जा सकता है। तथापि, भारत में निवासी व्यक्तियों के साथ निधियों का अभिनियोजन फेमा, 1999 के प्रावधानों के अधीन होगा।” 3. दिनांक 1 अप्रैल, 2015 के उपर्युक्त परिपत्र के अनुबंध I और अनुबंध II के मौजूदा पैरा 2.6 (i) को संशोधन के बाद निम्नानुसार पढ़ा जाएगा: “आईबीयू उपर्युक्त पैरा 2.5.1 और 2.5.2 में बताए गए उच्च मालियत वाले व्यक्तियों (एचएनआई)/ खुदरा ग्राहकों सहित व्यक्तियों को छोड़कर निवासी इकाइयों (निधियों के अभिनियोजन के लिए) और गैर-निवासी इकाइयों (संसाधन जुटाने और निधियों के अभिनियोजन दोनों के लिए) के साथ लेनदेन कर सकते हैं।” 4. दिनांक 1 अप्रैल, 2015 के उपर्युक्त परिपत्र के अनुबंध I और अनुबंध II के मौजूदा पैरा 2.6 (vii) को संशोधन के बाद निम्नानुसार पढ़ा जाएगा: “उनके निदेशक बोर्ड के पूर्वानुमोदन से आईबीयू संरचित उत्पादों सहित ऐसे डेरिवेटिव का लेनदेन कर सकते हैं जिनके लेनदेन करने की अनुमति भारतीय रिज़र्व बैंक के मौजूदा निदेशों के अनुसार भारत में परिचालन करने वाले बैंकों को दी गई है। तथापि, आईबीयू अन्य डेरिवेटिव अथवा संरचित उत्पादों के प्रस्ताव देने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक से पूर्वानुमोदन प्राप्त करेंगे। भारतीय रिज़र्व बैंक से अनुमोदन मांगने से पहले, बैंक यह सुनिश्चित करेंगे कि प्रस्तावित किए जाने के लिए उपलब्ध उत्पाद/लेनदेन से जुड़े पूंजी प्रभार का मूल्य निर्धारण करने, कीमत आंकने और उसकी गणना करने के लिए और जोखिम का प्रबंधन करने के लिए आईबीयू के पास आवश्यक विशेषज्ञता हो और ऐसे लेनदेन करने के लिए उनके बोर्ड का अनुमोदन भी प्राप्त करना चाहिए।” 5. दिनांक 1 अप्रैल, 2015 के उपर्युक्त परिपत्र के अनुबंध I और अनुबंध II में एक नया पैरा सं. 2.6 (viii) जोड़ा जाएगा, जिसे निम्नानुसार पढ़ा जाएगा: “आईबीयू को यह अनुमति होगी कि वे जीडीआर/एडीआर इश्यू में अंशकालीन अभिदान धारिता के लिए भारतीय निवासी इकाइयों के विदेशी मुद्रा एस्क्रो खाते तब तक के लिए खोल सकते हैं जब तक कि उक्त रसीदों का निर्गमन न हो जाए। जीडीआर/एडीआर के निर्गम के बाद, निधियों को आईबीयू के बाहर ग्राहक के खाते में तुरंत अंतरित कर दिया जाना चाहिए तथा बैंक द्वारा उन्हें दीर्घावधि जमाओं सहित किसी भी अन्य रूप में नहीं रखा जा सकता।” 6. दिनांक 1 अप्रैल, 2015 के उपर्युक्त परिपत्र के अनुबंध I और अनुबंध II में एक नया पैरा सं. 2.6 (ix) जोड़ा जाएगा, जिसे निम्नानुसार पढ़ा जाएगा: “आईबीयू को यह अनुमति होगी कि वे विदेशी मुद्रा विभाग, केंद्रीय कार्यालय के दिनांक 29 सितंबर 2015 के एपी डीआईआर परिपत्र सं.17 में दिए गए भारतीय रिज़र्व बैंक के मौजूदा अनुदेशों के अनुसार विदेशी बाजार में भारतीय इकाइयों द्वारा जारी भारतीय रुपये में अंकित विदेशी बांडों के निम्नांकक/प्रबंधकर्ता के रूप में कार्य करें। तथापि, उन मामलों में जहां किसी आईबीयू द्वारा निम्नांकित किए गए निर्गमन का भाग उस पर अवक्रमित होता हो तो निम्नांकित की गई धारिता को बेचने के प्रयास किए जाने आवश्यक है और निर्गम तिथि के 6 महीने के बाद, ये धारिताएं निर्गम के आकार के 5% से अधिक नहीं होना चाहिए।” 7. उपर्युक्त परिपत्र में निहित अन्य सभी नियम और शर्तें अपरिवर्तित रहेंगी। 8. आईबीयू पर भारतीय रिज़र्व बैंक के दिनांक 1 अप्रैल 2015 के परिपत्र की अद्यतन प्रति, जिसमें 7 जनवरी 2016 और 10 नवंबर 2016 को किए गए संशोधन को समाहित किया गया है, भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर उपलब्ध है। भवदीय, (राजिंदर कुमार) |