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वर्ष 2007-08 का वार्षिक नीति वक्तव्य - बैंकों द्वारा अत्यधिक ब्याज लगाये जाने के संबंध में शिकायतें

आरबीआइ/2006-2007/395
ग्राआऋवि.केंका.आरएफ.बीसी. 93/07.38.01/2006-07

16 मई 2007

अध्यक्ष / मुख्य कार्यपालक अधिकारी / प्रबंध निदेशकसभी राज्य सहकारी बैंक और जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक

महोदय

वर्ष 2007-08 का वार्षिक नीति वक्तव्य - बैंकों द्वारा अत्यधिक ब्याज लगाये जाने के संबंध में शिकायतें

कृपया वर्ष 2007-08 के वार्षिक नीति वक्तव्य के पैराग्राफ 168 (प्रतिलिपि संलग्न) का अवलोकन करें ।

2. भारतीय रिज़र्व बैंक को अनेक शिकायतें प्राप्त हो रही हैं जो कुछ ऋणों और अग्रिमों पर अत्यधिक ब्याज और प्रभार लगाने से संबंधित हैं । इस संबंध में कृपया हमारे 29 अप्रैल 2002 के परिपत्र ग्राआऋवि.केंका.सं. आरएफ.बीसी.परि.सं. 85/07.38.02/2001-02 का संदर्भ लें जिसके द्वारा सभी राज्य / मध्यवर्ती सहकारी बैंकों के लिए उधार की न्यूनतम ब्याज दर के निर्धारण को वापस लिया गया था तथा इन बैंकों को यह सूचित किया गया था कि वे अपनी निधियों की लागत, लेनदेन की लागत आदि को ध्यान में रख कर अपनी प्रबंध समिति के अनुमोदन से पारदर्शिता बरतते हुए उधार की अपनी दरें निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र हैं —

3. आप सहमत होंगे कि हालांकि ब्याज दरें अविनियमित हो गयी हैं, तथापि एक विशेष स्तर से अधिक ब्याज दर को सूदखोरी माना जा सकता है, जो न तो निर्वहणीय है और न ही सामान्य बैंकिंग प्रथा के अनुरूप ।

4. अत: बैंकों के बोर्डों को सूचित किया जाता है कि वे समुचित आंतरिक सिद्धांत और प्रक्रियाएं निर्धारित करें ताकि उनके द्वारा ऋणों और अग्रिमों पर अत्यधिक ब्याज, प्रोसेसिंग और अन्य प्रभार न लगाया जाए । छोटे मूल्य के ऋणों, खास कर, व्यक्तिगत ऋण और इसी प्रकार के अन्य ऋणों के संबंध में बैंक अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित सामान्य दिशानिर्देशों को ध्यान में रखें :

ऐसे ऋणों को मंजूर करने के लिए एक समुचित पूर्वानुमोदन प्रक्रिया निर्धारित की जानी चाहिए, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ संभावित उधारकर्ता के नकद-प्रवाह (कैशर्ग़ख्र्द्गद्य्र्ंख्र्ख्र्श्च्) को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए ।

  • बैंकों द्वारा लगायी गयी ब्याज दरों में अन्य बातों के साथ-साथ उधारकर्ता की आंतरिक रेटिंग को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त और न्यायोचित जोखिम प्रीमियम को शामिल करना चाहिए । इसके अलावा जोखिम के प्रश्न पर विचार करते समय, प्रतिभूति है या नहीं तथा उसका मूल्य क्या है,इसे ध्यान में रखना चाहिए ।

  • बैंकों द्वारा ऋण देने में बैंक की कुल लागत तथा उक्त लेनदेन से प्रत्याशित उचित लाभ को ध्यान में रखते हुए ऋण की चुकौती के लिए उधारकर्ता की कुल लागत, जिसमें ऋण का ब्याज और अन्य प्रभार शामिल है, न्यायोचित होनी चाहिए ।

  • ऐसे ऋणों के संबंध में प्रोसेसिंग और अन्य प्रभारों सहित ब्याज की एक समुचित सीमा निर्धारित की जानी चाहिए, जिसका उपयुक्त रीति से प्रचार किया जाना चाहिए ।

5. इस परिपत्र की तारीख से तीन महीने के भीतर बैंक पुष्टि करें कि इस संबंध में उपयुक्त सिद्धांत और प्रक्रियाएं लागू कर दी गयी हैं ।

6. इस बीच, कृपया प्राप्ति-सूचना हमारे संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को दें ।

भवदीय

( सी.एस.मूर्ति )
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधव्


संलग्नक : 1

उद्धरण

वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य

बैंकों द्वारा अत्यधिक ब्याज लगाये जाने के संबंध में शिकायतें

168. रिज़र्व बैंक और बैंकिंग लोकपालों के कार्यालयों में अनेक शिकायतें प्राप्त हो रही हैं जो कुछ ऋणों और अग्रिमों पर अत्यधिक ब्याज और प्रभार लगाने से संबंधित हैं । हालांकि ब्याज दरें अविनियमित हो गयी हैं, तथापि एक विशेष स्तर से अधिक ब्याज दर को सूदखोरी माना जा सकता है, जो न तो निर्वहणीय है और न ही सामान्य बैंकिंग प्रथा के अनुरूप है ।

  • अत: बैंकों के बोर्डों को सूचित किया जाता है कि वे समुचित आंतरिक सिद्धांत और प्रक्रियाएं निर्धारित करें ताकि उनके द्वारा ऋणों और अग्रिमों पर अत्यधिक ब्याज, प्रोसेसिंग और अन्य प्रभार न लगाया जाए ।
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