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अपने ग्राहक को जानिए मानदंड/धनशोधन निवारणमानक/ आतंकवाद केवित्त पोषणका प्रतिरोध(सीएफटी)/ धनशोधन निवारण अधिनियम(पीएमएलए), 2002 केअंतर्गत बैंकों के दायित्व

आरबीआइ/2009-10/507
ग्राआऋवि.केंका.आरएफ. एएमएल. बीसी. सं. 89/07.40.00/2009-10

 25 जून 2010

मुख्यकार्यपालकअधिकारी
सभीराज्यऔरजिलामध्यवर्तीसहकारीबैंक

महोदय

अपनेग्राहककोजानिएमानदंड/धनशोधननिवारणमानक/
आतंकवादकेवित्तपोषणकाप्रतिरोध(सीएफटी)/ धनशोधननिवारण
अधिनियम(पीएमएलए), 2002 केअंतर्गतबैंकोंकेदायित्व

कृपया अपने ग्राहक को जानिए मानदंड/धन शोधन निवारण मानक पर 18 फरवरी 2005 का हमारा परिपत्र ग्राआऋवि.एएमएल.बीसी.सं.80/07.40.00/2004-05 देखें।

व्यावसायिक मध्यवर्तियों द्वारा खोले गए ग्राहक खाते

2. 18 फरवरी 2005 के उपर्युक्त परिपत्र के साथ संलग्न "अपने ग्राहक को जानिए" मानदंड तथा धनशोधन निवारण उपायों पर दिशा-निर्देशों के अनुबंध - I के अनुसार "जब किसी बैंक को यह पता है अथवा ऐसा विश्वास करने का कारण है कि व्यावसायिक मध्यवर्ती द्वारा खोला गया ग्राहक खाता किसी एकल ग्राहक के लिए है तो उस ग्राहक की पहचान कर ली जानी चाहिए । बैंकों में विविध प्रकार के ग्राहकों के लिए`ऑन डिपोजिट' अथवा `इन एस्क्रो' धारित निधियों के लिए वकीलों/चार्टर्ड एकाउंटंट्स अथवा स्टॉक ब्रोकरों द्वारा प्रबंधित `समूहित' खाते भी होते हैं। जहां मध्यवर्तियों द्वारा धारित निधियां बैंक में एक साथ मिश्रित नहीं होती हैं और बैंक में `उप-खाते' भी हैं, जिनमें से प्रत्येक किसी एक हितार्थी स्वामी का खाता हो, वहां सभी हितार्थी स्वामियों की पहचान करनी   होगी । जहां ऐसी निधियों को बैंक में एक साथ मिश्रित किया गया है, वहां भी बैंक को हितार्थी स्वामियों की पहचान करनी चाहिए "। साथ ही, "अपने ग्राहक को जानिए" मानदंड तथा धनशोधन निवारण उपायों पर उपर्युक्त दिशा-निर्देशों  के पैराग्राफ 3 के अनुसार यदि बैंक ग्राहक स्वीकृति नीति के अनुसरण में ऐसे खाते को स्वीकार करने का निर्णय लेता है तो संबंधित बैंक को चाहिए कि वे हितार्थी स्वामी/स्वामियों की पहचान करने हेतु समुचित कदम उठाएं और उसकी/उनकी पहचान का सत्यापन इस प्रकार करें ताकि इस बात की संतुष्टि हो जाए कि हितार्थी स्वामी कौन है। अतः मौजूदा एएमएल/सीएफटी ढांचे में वकील तथा चार्टर्ड एकाउंटंट्स आदि जैसे व्यावसायिक मध्यवर्तियों के लिए अपने ग्राहकों की ओर से खाता रखना संभव नहीं है, क्योंकि वे ग्राहक गोपनीयता से बंधे होते हैं जिसके कारण ग्राहक के ब्योरे प्रकट करना प्रतिबंधित है।

3.अतः इस बात को फिर से दोहराया जाता है कि बैंकों को वकीलों तथा चार्टर्ड एकाउंटंट्स आदि जैसे व्यावसायिक मध्यवर्तियों द्वारा ग्राहक/ग्राहकों की ओर से खाता खोलने तथा/अथवा रखने की अनुमति नहीं देनी चाहिए क्योंकि वे ग्राहक गोपनीयता की व्यावसयिक बाध्यता के कारण खाते के स्वामी की सही पहचान प्रकट नहीं कर सकते। इसके अलावा, ऐसे किसी भी व्यावसायिक मध्यवर्ती को किसी ग्राहक की ओर से खाता खोलने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए जो किसी बाध्यता से संबंध होने के कारण जिस ग्राहक की ओर से खाता रखा गया है उसकी सही पहचान अथवा खाते के लाभार्थी स्वामी की सही पहचान जानने तथा सत्यापित करने अथवा लेनदेन के सही स्वरूप तथा प्रयोजन को समझने की बैंक की क्षमता को प्रतिबंधित करता है।

4. ये दिशानिर्देश बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी समितियों पर यथा लागू) की धारा 35क के अंतर्गत जारी किए गए हैं। इनका कोई भी उल्लंघन होने पर अथवा अनुपालन न करने पर उक्त अधिनियम के अंतर्गत दंड दिया जा सकता है।

5.  कृपया हमारे संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को प्राप्ति-सूचना दें।

भवदीय

(बी.पी.विजयेन्द्र)
 मुख्य महाप्रबंधक

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