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"अपने ग्राहक को जानिए"(केवाइसी) मानदंड / धनशोधन निवारण (एएमएल) मानक / आतंकवाद के वित्तपोषण का प्रतिरोध (सीएफटी)

आरबीआइ/2007-08/250
आरपीसीडी.केंका.आरएफ.एएमएल.बीसी. सं. 51 /07.40.00/2007-08

28 फरवरी 2008

सभी राज्य और जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक


महोदय

"अपने ग्राहक को जानिए"(केवाइसी) मानदंड / धनशोधन निवारण (एएमएल)
मानक / आतंकवाद के वित्तपोषण का प्रतिरोध (सीएफटी)

18 फरवरी 2005 के हमारे परिपत्र आरपीसीडी.सं.एएमएल.बीसी.80/07.40.00/ 2004-05 द्वारा बैंकों को सूचित किया गया था कि ग्राहक स्वीकृति नीति अपनाने तथा उसे लागू करने का यह परिणाम नहीं होना चाहिए कि सामान्य जनता, विशेष रूप से वे जो वित्तीय तथा सामाजिक रूप से पिछड़े हुए हैं, बैंकिंग सेवाओं से वंचित हो जाएँ । बैंकों को यह भी स्पष्ट किया गया था कि रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किए गए केवाइसी मानदंडों में जोखिम आधारित दृष्टिकोण अपनाया गया है ताकि बैंकों के लिए लागत अत्यधिक न हो और ग्राहकों के लिए बोझिल व्यवस्था न हो। बैंकों को तदनुसार सूचित किया गया था कि ग्राहक की पहचान का अर्थ है ग्राहक को पहचानना और अपनी संतुष्टि के अनुसार विश्वसनीय, स्वतंत्र स्रोत वाले दस्तावेजों, डाटा अथवा जानकारी का उपयोग करके उसकी पहचान को सत्यापित करना।

2. इसके अलावा बैंकों को यह भी स्पष्ट किया गया था कि "संतुष्ट होना" का अर्थ यह है कि बैंक सक्षम प्राधिकारियों को इस बात से संतुष्ट करा सकता है कि मौजूदा दिशानिर्देशों का अनुपालन करते हुए ग्राहक की जोखिम प्रोफाइल के आधार पर उचित सावधानी बरती गई है। ग्राहक की पहचान के लिए जिन दस्तावेज़ों /जानकारी पर निर्भर किया जा सकता है उनके स्वरूप तथा प्रकार की निर्देशात्मक सूची भी उक्त परिपत्र के अनुबंध -II में दी गई थी। हमें यह सूचना मिली है कि अनुबंध II, जिसे स्पष्ट रूप से निर्देशात्मक सूची कहा गया है, को कुछ बैंक एक संपूर्ण सूची के रूप में मानते हैं, जिसके परिणामस्वरूप जनता के एक हिस्से को बैंकिंग सेवाओं तक पहुंच से वंचित रखा जा रहा है। अत: बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे इस संबंध में अपने मौजूदा आंतरिक अनुदेशों की समीक्षा करें।

3. यह स्पष्ट किया जाता है कि हमारे उक्त परिपत्र के अनुबंध II में उल्लिखित स्थायी सही पता का अर्थ है वह पता जिस पर कोई व्यक्ति सामान्यत: रहता है और वह ग्राहक के पते के सत्यापन के लिए बैंक द्वारा स्वीकृत जनोपयोगी (यूटिलिटी)सेवा के बिल अथवा कोई अन्य दस्तावेज में उल्लिखित पता हो सकता है। यह पाया गया है कि कुछ नजदीकी रिश्तेदारों को, उदाहरण के लिए, अपने पति, पिता/माता तथा पुत्र के साथ रहने वाली पत्नी, पुत्र, पुत्री तथा माता-पिता आदि, को कुछ बैंकों में खाता खोलने में कठिनाई हो रही है क्योंकि पते के सत्यापन के लिए आवश्यक यूटिलिटी बिल उनके नाम पर नहीं हैं। यह स्पष्ट किया जाता है कि ऐसे मामलों में बैंक भावी ग्राहक जिस रिश्तेदार के साथ रहता है उससे इस आशय का एक घोषणा पत्र कि खाता खोलने के लिए इच्छुक उक्त व्यक्ति (भावी ग्राहक) उसका रिश्तेदार है और उसके साथ रहता है तथा उसका पहचान दस्तावेज तथा यूटिलिटी बिल प्राप्त कर सकता है। पते के और अधिक सत्यापन के लिए बैंक डाक से प्राप्त पत्र जैसे अनुपूरक साक्ष्य का उपयोग कर सकता है। इस विषय पर शाखाओं को परिचालन संबंधी अनुदेश जारी करते समय बैंकों को रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किए गए अनुदेशों का भाव ध्यान में रखना चाहिए और उन व्यक्तियों को जिन्हें कम जोखिम वाले ग्राहकों के रूप में वर्गीकृत किया गया है, होने वाली अनुचित कठिनाइयों को टालना चाहिए।

4. 18 फरवरी 2005 के परिपत्र के पैराग्राफ 4 में निहित अनुदेशों के अनुसार बैंकों को खातों के जोखिम संवर्गीकरण की आवधिक समीक्षा की प्रणाली भी स्थापित करनी चाहिए और किसी ग्राहक के संबंध में उच्चतर जोखिम समझे जाने पर उचित सावधानी के और अधिक उपाय लागू करना आवश्यक है। इसके अलावा, बैंकों को सूचित किया जाता है कि ग्राहकों के जोखिम संवर्गीकरण की ऐसी समीक्षा की आवधिकता छ: महीने में एक बार से कम नहीं होनी चाहिए। खाता खोलने के बाद बैंकों को ग्राहक पहचान संबंधी जानकारी (फोटोग्राफ सहित) को आवधिक रूप से अद्यतन करने की एक प्रणाली भी प्रारंभ करनी चाहिए। इस तरह से ग्राहक पहचान संबंधी जानकारी को अद्यतन बनाने की आवधिकता कम जोखिम श्रेणी के ग्राहकों के मामले में पांच वर्ष में एक बार से कम नहीं होनी चाहिए और उच्च तथा मध्यम जोखिम श्रेणियों के मामले में दो वर्ष में एक बार से कम नहीं होनी चाहिए।

5. आंतकवाद के वित्तपोषण का प्रतिरोध

क) धनशोधन निवारण अधिनियम के नियमों के अनुसार संदेहास्पद लेनदेन में अन्य लेनदेन के साथ-साथ वे लेनदेन होने चाहिए जो इस बात का संदेह करने के लिए उचित आधार देते हैं कि ये आतंकवाद से संबंधित कार्यों के वित्तपोषण से संबंधित हैं। अत: बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे उचित नीतिगत ढांचे के माध्यम से आंतकवादी संबंध होने की आशंका वाले खातों की अधिक निगरानी के लिए तथा ऐसे लेनदेन को तुंत पहचानकर प्राथमिकता के आधार पर वित्तीय आसूचना यूनिट-भारत (एफआइयू -आइएनडी) को रिपोर्ट करने के लिए समुचित प्रणाली विकसित करें।

ख) सयुंक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विभिन्न संकल्पों (यूएनएससीआर) के अनुसरण में स्थापित सुरक्षा परिषद समिति द्वारा अनुमोदित व्यक्तियों तथा संस्थाओं की सूची भारत सरकार से प्राप्त होने पर रिज़र्व बैंक उसे सभी बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं में परिचालित करता है। बैंकों /वित्तीय संस्थाओं को रिज़र्व बैंक द्वारा परिचालित सूची के अनुसार व्यक्तियों तथा संस्थाओं की समेकित सूची को अद्यतन करना चाहिए। इसके अलावा ऐसे व्यक्तियों/संस्थाओं की अद्यतन सूची संयुक्त राष्ट्र की वेबसाईट http://www.un.org/sc/committees/1267/consolist.shtml पर मिल सकती है। बैंकों को सूचित किया जाता है कि कोई भी नया खाता खोलने से पहले वे सुनिश्चित करें कि प्रस्तावित ग्राहक का नाम/के नाम सूची में शामिल नहीं हैं। इसके साथ ही, बैंकों को सभी मौजूदा खातों की जांच करनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो कि कोई भी खाता सूची में शामिल व्यक्तियों अथवा संस्थाओं का नहीं है अथवा उनसे संबंधित नहीं है। सूची में शामिल किसी भी व्यक्ति /संस्था से किसी भी प्रकार की समानता होने वाले खातों के संपूर्ण ब्यौरे भारतीय रिज़र्व बैंक तथा एफआइयू-आइएनडी को तत्काल सूचित किए जाने चाहिए।

6. यह ध्यान में रखा जाए कि ‘अपने ग्राहक को जानिए’ मानदंड/धनशोधन निवारण/ आतंकवाद वित्तपोषण प्रतिरोध उपाय यह सुनिश्चित करने के लिए निर्धारित किए गए हैं ताकि अपराधी बैंकिंग सरणड्ढ का दुरुपयोग न कर सकें। अत: बैंकों के लिए यह आवश्यक है कि वे कार्मिकों की नियुक्ति/ नियोजन की अपनी प्रक्रिया के एक अविभाज्य भाग के रूप में समुचित क्रीनिंग प्रणाली स्थापित करें।

7. ये दिशानिर्देश बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (जैसाकि सहकारी समितियों पर लागू है) की धारा 35ए के अंतर्गत जारी किए गए हैं तथा इनका किसी भी प्रकार से उल्लंघन किए जाने पर अधिनियम के संबंधित प्रावधानों के अधीन दंड लागू हो सकता है।

भवदीय

( सी.एस.मूर्ति )
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक

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