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एमएसई क्षेत्र को ऋण की वृद्धि पर निगरानी के लिए संरचित तंत्र

भारिबैं / 2012-13 /495
ग्राआऋवि.सं.एमएसएमइ एण्ड एनएफएस.बीसी.74/06.02.31/2012-13

9 मई 2013

अध्यक्ष / प्रबंध निदेशक /
मुख्य कार्यपालक अधिकारी
सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)

महोदय/ महोदया,

एमएसई क्षेत्र को ऋण की वृद्धि पर निगरानी के लिए संरचित तंत्र

माइक्रो और लघु उद्यमों (एमएसई) को ऋण वृद्धि में गिरावट से उभरी चिंताओं के परिप्रेक्ष्य में बैंकों में प्रत्येक  पर्यवेक्षी स्तर (शाखा, क्षेत्र,अंचल, प्रधान कार्यालय स्तर आदि) पर एमएसई क्षेत्र से संबंधित सभी ऋण संबंधी मामलों की समग्र रूप से निगरानी और निरंतर आधार पर कार्रवाई बिंदुओं के फॉलो-अप के लिए लागू करने हेतु एक संरचित निगरानी तंत्र की जरूरत है। उक्त प्रस्ताव एमएसएमई पर गठित 14वीं स्थायी परामर्शदात्री समिति में प्रस्तुत किया गया जहां यह निर्णय लिया गया कि इस मुद्दे की जांच करने के लिए आइबीए के नेतृत्व में बैंकों की एक उप समिति गठित की जाए (अध्यक्ष: श्री के.आर कामथ)। उप समिति द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने के बाद मौद्रिक नीति 2013-14 के पैरा 66 में यह प्रस्ताव किया गया कि बैंकों को अपना निगरानी तंत्र सुदृढ़ बनाना चाहिए और अपनी ऋण निपटान प्रक्रिया पर निगरानी रखनी चाहिए ताकि उक्त क्षेत्र को ऋण प्रवाह में बढ़ोतरी हो तथा रूग्ण एमएसई यूनिटों का समय पर पुनर्वास सुनिश्चित हो सके।

2. जहां एमएसई क्षेत्र का वित्तपोषण करने के लिए बैंकों के पास अपनी बोर्ड अनुमोदित ऋण नीति होती है तथा उक्त क्षेत्र को ऋण प्रवाह की समीक्षा करने के लिए अपनी स्वयं की निगरानी प्रणाली होती है, वहीं उप समिति ने सदस्य बैंकों द्वारा अपनायी जानेवाली चालू प्रणालियों की समीक्षा की है तथा निगरानी प्रणाली को सभी चरणों एवं स्तरों पर अधिक कारगर बनाने के लिए सिफारिशें की हैं। अत: बैंकों को निम्नलिखित सिफारिशों का कार्यान्वयन करने के लिए सूचित किया जाता है:

अ. व्यापक कार्य निष्पादन एमआइएस की जरूरत

3. बैंक में विभिन्न पर्यवेक्षी स्तरों अर्थात क्षेत्र, अंचल, बैंक स्तर आदि पर एक प्रणाली-चालित व्यापक कार्यनिष्पादन प्रबंध सूचना प्रणाली (एमआइएस) स्थापित की जानी चाहिए । प्रत्येक बैंक अपनी जरूरतों के अनुसार एमआइएस की बारंबारता भी निर्धारित कर सकता है ताकि सभी स्तरों पर नियमित निगरानी  सुनिश्चित हो सके। कार्यनिष्पादन एमआइएस के माध्यम से लिए जानेवाले डाटा का बारीकी से मूल्यांकन किया जाए और एक समयबद्ध रूप में अनुवर्ती कार्रवाई की जाए। किसी कम कार्यनिष्पादन वाली शाखा/ क्षेत्र में जो भी निवारक कार्रवाई आवश्यक हो, वह अविलंब की जाए ताकि वह कमी पूरी हो जाए। बैंकों के बोर्ड द्वारा इस क्षेत्र को दिए जानेवाले ऋण प्रवाह की भी समीक्षा आवधिक अंतरालों पर की जाए।

आ. ऋण प्रस्ताव ट्रैकिंग प्रणाली

4. हम 4 मई 2009 और 4 जनवरी 2012 के अपने परिपत्र क्रमश: सं. ग्राआऋवि. एसएमई एण्ड एनएफएस. बीसी.सं.102/06.04.01 /2008-09 तथा ग्राआऋवि. एमएसएमई एण्ड एनएफएस. बीसी. सं. 53/ 06.02.31 /2011-12 द्वारा बैंकों को दिए गए अनुदेशों को दोहराते हैं जिसमें बैंकों को ऋण आवेदन पत्रों के केंद्रीकृत पंजीकरण तथा ऋण आवेदन पत्रों की ऑनलाइन ट्रैकिंग स्थापित करने के लिए टेक्नालॉजी को उपयोग में लाने हेतु सूचित किया गया था जैसाकि रूग्ण एमएसई यूनिटों के पुनर्वास पर गठित कार्यकारी दल (अध्यक्ष: डॉ.के.सी. चक्रवती) द्वारा सिफ़ारिश की गई है। जहां बैंक अपने एमएसएमई उधारकर्ता के ऋण प्रस्तावों की ऑनलाइन ट्रैकिंग के लिए अपनाई जानेवाली परिचालनात्मक पद्धतियों को अंतिम रूप दे सकते हैं, वहीं उप समिति की नीचे दी गई सिफ़ारिशों को एक बेंचमार्क के रूप में लिया जाए जिसमें बैंकों द्वारा आवश्यकतानुसार सुधार किए जा सकते हैं। बैंकों की ऋण प्रस्ताव ट्रैकिंग प्रणाली (सीपीटीएस) में सुनिश्चित किया जाए कि:

  • शाखा द्वारा आवश्यक प्रलेखों के साथ भौतिक रूप में प्राप्त किए गए सभी एमएसएमई आवेदन पत्र की सीपीटीएस में प्रविष्टि की जाती है।

  • सीपीटीएस से आवेदन  पत्र की स्वत: ही एक पावती निर्मित की जाएगी जिस पर विशिष्ट आवेदन क्रम संख्या होगी।

  • उक्त पावती शाखा द्वारा आवेदक को जारी की जाएगी। 

  • बैंकों को विशिष्ट आवेदन क्रमसंख्या का प्रयोग करते हुए दैनंदिन आधार पर आवेदन पत्र की स्थिति की जानकारी ग्राहक को उपलब्ध कराने के प्रयास करने चाहिए।

  • पावती तथा स्थिति आवेदक को स्वत: (ऑटोमेटिक्ली) ही भेजी जाए।

  • जांच सूची (चेक लिस्ट) के अनुसार प्रलेखों का एक सेट प्रस्तुत करने पर आवेदन पत्र के निपटान में लगने वाला समय भी आवेदक को सूचित किया जाए जिसमें बैंक को यह अधिकार होगा कि वह आवश्यकता महसूस होने पर अतिरिक्त प्रलेख/जानकारी की मांग करेगा।

5. बैंक में सभी स्तरों पर निपटान प्रणाली की निगरानी में सुविधा प्रदान करने की दृष्टि से एमएसएमई के ग्राहकों से प्राप्त  स्वीकृत/अस्वीकृत आवेदन पत्रों की रिपोर्टिंग के लिए एक फार्मेट अनुबंध 'अ' में दिया गया है।

बैंकों द्वारा जून 2013 में समाप्त होनेवाली तिमाही से उक्त स्थिति अपनी वेबसाइट पर प्रदर्शित की जा सकती है। फार्मेट में पिछली तिमाही के अंत में लंबित आवेदन पत्रों, तिमाही के दौरान प्राप्त आवेदन पत्रों, तिमाही के दौरान स्वीकृत/अस्वीकृत और तिमाही के अंत में लंबित आवेदन पत्रों के ब्यौरे पाने का प्रावधान है। रिपोर्ट निर्मित करने का कार्य केंद्रीकृत रूप से स्वचालित (आटोमेटेड) होना चाहिए। रिपोर्टिंग सॉफ्टवेयर में रिपोर्टं शाखावार, क्षेत्रवार, अंचलवार और समग्र रूप में बैंक के लिए निर्मित करने की क्षमता होनी चाहिए। डाटा को बैंक, भारतीय रिज़र्व बैंक और सरकार द्वारा उपयोग में लाए जाने हेतु जिलावार तथा राज्यवार भी निर्मित किया जाए। बैंक द्वारा प्रत्येक स्तर पर एमएसएमई क्षेत्र को ऋण प्रवाह में की गई प्रगति का पता लगाने के लिए इस प्रकार का डाटा प्रयुक्त किया जा सकता है। समग्र रूप में बैंक के डाटा से उक्त बैंक प्रत्येक माह/तिमाही के अंत में अपने स्वयं के कार्यनिष्पादन की समीक्षा करने और आवश्यक होने पर क्षेत्र के कार्यनिष्पादन में सुधार लाने के लिए अनुवर्ती उपाय और निवारक कार्रवाई करने में समर्थ होगा।

घ रुग्ण यूनिटों का पुनर्वास

6. रूग्णता का समय पर पता चलना किसी उद्यम के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इसमें होनेवाले किसी विलंब के कारण, रूग्ण परंतु संभावित रूप से अर्थक्षम यूनिटों की पुनर्जीवित होने की संभावना प्रभावित हो सकती है। किसी यूनिट की रूग्ण के रूप में पहचान की प्रक्रिया और उसके पुनर्वास में तेजी लाने के उद्देश्य से रिज़र्व बैंक द्वारा जारी 1 नवंबर 2012 के परिपत्र सं. ग्राआऋवि. केंका. एमएसएमई एण्ड एनएफएस. बीसी.40/ 06.02.31/2012-13 द्वारा जारी संशोधित दिशानिर्देशों का सही अर्थ में पालन किया जाना चाहिए। उक्त दिशानिर्देशों में किसी यूनिट की रूग्ण के रूप में पहचान की तेज प्रक्रिया, संभावित रूग्ण्ता की पूर्व में पहचान और किसी यूनिट को गैर अर्थक्षम घोषित करने से पूर्व बैंकों द्वारा एक कार्य-विधि निर्धारित करने पर बल दिया गया है।

7. बैंक रूग्ण एमएसई यूनिट के पुनर्वास के लिए एक प्रणाली आधारित तंत्र बना लें । प्रत्येक बैंक को अपने प्रत्येक अंचल/मंडल,  प्रधान मुख्यालयों में एक एमएसई पुनर्वास कक्ष (एमआरसी) गठित करना चाहिए। उक्त कक्ष को अर्थक्षम/संभाव्य रूप से रूग्ण एमएसई यूनिटों का समय पर पुनर्वास करने के लिए रूग्ण यूनिटों/संभाव्य रूग्णता की पहचान पर निगरानी रखने, अर्थक्षमता अध्ययन संचालित करने, अनुवर्ती कार्रवाई करने आदि का दायित्व दिया जाना चाहिए। तिमाही आधार पर रूग्ण एमएसई यूनिटों के पुनवार्स में होनेवाली प्रगति पर निगरानी रखने के लिए एक फार्मेट अनुबंध आ में दिया गया है। इस संबंध में होनेवाली प्रगति जून 2013 में समाप्त होनेवाली तिमाही से बैंकों की वेबसाइटों पर उपलब्ध होनी चाहिए।

ड. शाखा स्तरीय अधिकारियों को सेंसीटाइज करना

8. बैंकों को चाहिए कि वे एमएसई क्षेत्र की आवश्यकताओं से अपने शाखा स्तरीय अधिकारियों को सेंसीटाइज़ करें और शाखा स्तर पर इस क्षेत्र से संबंधित दिशानिर्देशों के प्रति जागरूकता में सुधार लाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाएं।

9. कृपया पावती दें और की गई कार्रवाई की रिपोर्ट 15 जून 2013 तक अग्रेषित करें।

भवदीया

(माधवी शर्मा)
मुख्य महाप्रबंधक

अनुलग्नक : अनुबंध 'अ' और 'आ'

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