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माइक्रो और छोटे उद्यम क्षेत्र को ऋण प्रदान करना

आरबीआई/2008-09/467
ग्राआऋवि.एसएमइएण्डएनएफएस.बीसी.सं.102/06.04.01/2008-09

4 मई 2009

सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक

महोदय/महोदया

माइक्रो और छोटे उद्यम क्षेत्र को ऋण प्रदान करना

माइक्रो और छोटे उद्यम (एमएसई) क्षेत्र द्वारा विशेषत: संभाव्य रूप से व्यवहार्य रुग्ण इकाइयों के संबंध में अनुभव की जा रही समस्याओं का पता लगाने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक ने डॉ.के.सी.चक्रवर्ती,अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक, पंज़्ााब नैशनल बैंक की अध्यक्षता में एक कार्यदल गठित किया था।

2. उक्त दल ने रिज़र्व बैंक को अपनी रिपोर्ट अप्रैल 2008 में प्रस्तुत की ज़िसमें इस क्षेत्र को बाधा पहुंचानेवाली कठिनाइयों और समस्याओं के समस्त विस्तार को व्यापक रूप से समाविष्ट किया गया है। रिज़र्व बैंक ने यह रिपोर्ट अपनी वेबसाइट पर रखी थी और सभी पणधारियों से उस बारे में अभिमत आमंत्रित किए थे। रिपोर्ट के बारे में प्राप्त प्रतिसादों और अभिमतों की ध्यानपूर्वक ज़्ाांच की गई है।

3. कार्यदल द्वारा की गई सिफारिशों पर भारत सरकार, राज्य सरकार और वाणिज्य बैंकों द्वारा (क्रमश: अनुबंध I से III) विचार करना जरूरी है। भारत सरकार से सबंधित सिफारिशें उनके विचारार्थ और आवश्यक कार्रवाई के लिए भेज दी गई हैं। राज्य सरकारों से संबंधित सिफारिशें एसएलबीसी के आयोज़क बैंकों को भेज़ दी गई है ताकि वे एसएलबीसी की बैठकों में उन समस्याओं को उठा सकें। अन्य सिफारिशें जाट सिडबी से संबंधित थीं, उन्हें भेज़ दी गई हैं।

4. माइक्रो और छोटे उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी फंड (सीााटीएमएसई) योज़ना के संबंध में कई सिफारिशें की गई हैं। इन सिफारिशों पर एमएसई को संस्थागत ऋण उपलब्ध कराने पर स्थायी सलाहकार समिति द्वारा वर्ष 2009-10 की वार्षिक नीति के पैरा 114 के अनुसार विचार किया ज़ाएगा।

5. दल ने पर्याप्त रूप से और समय पर ऋण प्राप्त करने में क्षेत्र द्वारा अनुभव की जा रही समस्याओं पर विचार किया है। उसने न केवल रुग्णता की शुरु आत का समय पर पता लगाने और उसकी निवारक कार्रवाई के संबंध में सिफारिशें की है, बल्कि, उन रुग्ण इकाइयों के पुनर्वास की सिफारिश भी की है ज़िन्हेंें पुनाादवित किया ज़ा सकता है।

6. त्वरित कार्यान्वयन के लिए एमएसई क्षेत्र को समय पर और पर्याप्त मात्रा में ऋण उपलब्ध कराने के संबंध में अनुबंध III में दी गई कार्यदल की सिफारिशों पर आप विचार करें ताकि उन्हें त्वरित कार्यान्वित किया ज़ा सके।

7. रिज़र्व बैंक ने संभाव्य अर्थक्षम युनिटों/उद्यमों के पुनर्वास के संबंध में दल की उन सिफारिशों पर ध्यानपूर्वक विचार किया है ज़्ानिका अनिवार्यत: उद्देश्य संभाव्य अर्थक्षम इकाइयों की रुग्णता का समय पर पता लगाना और उसे दूर करने के लिए निवारक उपाय अपनाना है। दल की सिफारिशों के आशय से पूर्णत: सहमत होते हुए भी बैंकों का ध्यान रुग्णता के लक्षण दिखाने वाले उन उधार खातों के संबंध में एमएसई ऋण के पुनर्गठन पर रिज़र्व बैंक द्वारा ज़ारी अपने निम्नलिखित परिपत्रों में निहित दिशानिर्देशों की ओर आकर्षित किया ज़्ााता है :

i) दिनांक 8 सितंबर 2005 का परिपत्र डीबीओडी.बीपी.बीसी.सं.34/21.04.132/2005-06
ii) दिनांक 27 अगस्त 2008 का परिपत्र डीबीओडी.बीपी.बीसी.सं.37/21.04.132/2008-09

वास्तव में, इन दिशानिर्देशों में रुग्णता के शुरुआती चरण का समावेश है और इन दिशानिर्देशों को, यदि बताए गए अनुसार, कार्यान्वित किया जाए तो, रुग्णता को शुरुआती स्तर पर ही टाला या रोका ज़ा सकता है। ऐसी एमएसई युनिटें/उद्यम कुछेक ही होंगे ज़्ााट ऋण के पुनर्गठन के बाद भी रुग्ण हो गए हैं और वे संभाव्य अर्थक्षम रुग्ण युनिटों/उद्यमों के पुनर्वास पर ज़ारी वर्तमान दिशानिर्देशों (देखें 16 ज़नवरी 2002 का परिपत्र ग्राआऋवि.सं.पीएलएनएफएस.बीसी.57/06.04.01/2001-02) की परिघि में आएंगे। अत: बैंकों से अनुरोध है कि वे ऋण के पुनर्गठन पर जारी रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों को इष्टतम रूप से और पूर्णत: लागू करें। यह उनके अपने और एमएसई ग्राहकें के हित में होगा।

8. दल ने यह सिफारिश भी की है कि रिज़र्व बैंक एमएसएमई क्षेत्र के लिए एकबारगी निपटान योज़्ाना (ओटीएस) घोषित करें। तथापि, अनादक ऋणों के निपटान के संबंध में किसी नीति का निर्धारण करना अनिवार्यत: प्रबंध तंत्र का कार्य है ज़ाट प्रत्येक बैंक द्वारा अपने वाणिय़िक निर्णय के आधार पर किया ज़ाए । यह आवश्यक है कि बैंकों में अपनी नॉन-डिक्रीशनरी ओटीएस योज़्ाना हो ताकि अधिकारी एकबारगी निपटान के मामले पर शीघ्र और विवेकपूर्ण निर्णय ले सकें। इसलिए, बैंक इस क्षेत्र के लिए यथोचित एकबारगी निपटान योज़्ाना बनाएं।

9. तदनुसार, एमएसई उधारकर्ताओं के लिए कार्यदल की सिफारिशों और भारतीय बैंकिंग संहिता और मानक बोर्ड की वायदा संहिता के परिप्रेक्ष्य में समीक्षा करके आपका बैंक निदेशक मंडल द्वारा एमएसई क्षेत्र के लिए विधिवत रूप से अनुमोदित निम्नलिखित नीतियां तय करे :

i) ऋण सुविधाएं प्रदान करने की नियंत्रक ऋण नीति।
ii) संभाव्य अर्थक्षम रुग्ण युनिटों/उद्यमों के पुनर्ज़िवन के लिए पुनर्गठन/पुनर्वास नीति।
iii) अनादक ऋणों की वसूली के लिए नॉन-डिक्रीशनरी एकबारगी निपटान योज़्ाना।

10. कृपया प्राप्ति-सूचना दें और की गई कार्रवाई पर एक रिपोर्ट 30 जून 2009 तक भेज़्ो।

भवदीय

(बी.पी.विज़्ायेद्र)
मुख्य महाप्रबंधक

अनु : अनुबंध I से III


अनुबंध I

क्र.सं.

भारत सरकार से संबंधित कार्रवाई

1.

क्योंकि यह देखा गया है कि रूग्ण एसएमई का पुनर्वास कई मामलों में प्रवर्तकों का अंशदान उपलब्ध न होने के कारण नहीं किया ज़ा सका इसलिए दल यह सिफारिश करता है कि इस क्षेत्र की सुविधा के लिए सरकार निम्नलिखित निधियां निर्मित करे.ं

i.

रूग्ण माइक्रो, छोटे और मध्यम उद्यमों के पुनर्वास के लिए एक स्वतंत्र पुनर्वास निधि निर्मित की ज़ाए। निधि की राशि 1000 करोड़ रुपए होगी। ज़्ाबकि 75% निधि माइक्रो और छोटे उद्यमों के लिए निश्चित की ज़ा सकेगी, शेष निधि को मध्यम उद्यमों की सहायता करने के लिए उपयोग में लाया ज़्ाा सकेगा। यह निधि माइक्रो और छोटे उद्यमों के पुनर्वास में काफी हद तक मदद कर सकेगा। इस निधि का उपयोग रियायती दर ज़्ाठसे कि 5-6% पर सुलभ ऋण / 75 लाख रुपए की अधिकतम सीमा के अधीन प्रवर्तकों के अपेक्षित अंशदान के 50% तक कासी इक्विटी प्रदान करने के लिए किया ज़ा सकता है। (पैरा 3.21इ(i))

ii.

प्रौद्योगिकीय उन्नयन अपनाने वाली युनिटों के प्रवर्तकों द्वारा लाई ज़्ााने वाली अपेक्षित मार्ज़िन में अंशदान करने के लिए एक दूसरी निधि निर्मित की ज़ाए। यह सहायता सुलभ ऋण/कासी इक्विटी/इक्विटी के रूप में प्रदान की ज़ानी चाहिए। (पैरा 3.21इ(ii)।)

iii.

अपने उत्पादों की बिक्री करने के लिए एमएसएमई इकाइयों को प्रोत्साहन देने के लिए विपणन विकास निधि (मार्केटिंग डेवलपमेंट फंड) स्थापित करना वांछनीय होगा ज़्ासिका उपयोग, अन्य कार्यों के साथ-साथ, वितरण और विपणन संबंधी बुनियादी सुविधाएं/बिक्री केद्र स्थापित करने के लिए किया ज़्ाा सकेगा। इस निधि से विभिन्न स्तरों पर प्रदर्शनियां आदि आयोज़ित करने वाली संस्थाओं के लिए संसाधन जटाने में योगदान मिल सकता है। (पैरा 3.21 इ(iii))

iv.

राष्ट्रीय इक्विटी निधि योज़्ाना (नैशनल इक्विटी फंड स्कीम) पुन: आरंभ की ज़ाए। इस निधि का उपयोग हरित क्षेत्र या विस्तार परियोज़्ाानाओं के लिए किया ज़ा सकेगा।

v.

नए तरीके स्थापित करने के लिए उद्यमियों को प्रोत्साहित करने हेतु ज़्ााटखिम (वेंचार) पूंज़ा/मेज़नाइन फाइनेंस को प्रोत्साहन दिया ज़्ााना चाहिए। शीर्ष संस्था (रिपोर्ट में दिए गए सुझ़ाव के अनुसार)/सिडबी में अलग से एक निधि होनी चाहिए ज़िससे इक्विटी/मेज़नाइन फाइनेंस/सुलभ ऋण आदि के रूप में छोटे उद्यमियों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जटखिम पूंज निधियों को सहायता मिल सके। (पैरा 3.21इ(v))

vi.

ऋण सहबद्ध पूजागत सब्सिडी योज़ना (ग्रामीण क्षेत्र की युनिटों को छोड़कर अन्य युनिटों के लिए) और केवीआइसी मार्ज़िन मनी योज़ना (ग्रामीण क्षेत्र की इकाइयों के लिए) जाठसी योज़नाओं की सहायता पुनर्वास पैकेटं को भी प्रदान की ज़ानी चाहिए। (पैरा 3.21इ(vi))

2.

संबंधित क्षेत्र के औद्योगिकरण में राय़ वित्त निगमों के योगदान को देखते हुए तथा इन निगमों की क्षमता को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार संबंधित राज्य सरकारों को निर्देश दे कि वे अर्थक्षम राय़ वित्त निगमों के पुनपजीकरण के लिए एकबारगी वित्तीय सहायता प्रदान करें। ज़ट राज्य वित्त निगम अर्थक्षम नहीं पाए गए हैं उन्हें अपने परिचलन बंद करने की अनुमति दी ज़ाए तथा राज्य सरकार ऋणदाताओं/उधारदाताओं के ऋणों का निपटान करें।

3.

प्रवर्तकों के पास प्रौद्योगिकीय उन्नयन के लिए बहुत कम निधि उपलब्ध है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ज़ाट छोटे और बड़े उद्योगों के लिए नई प्रौद्योगिकी के विकास के लिए सक्रिय रूप से कार्यरत है, भारत के एमएसएमई क्षेत्र की जरुरतों के मुताबिक अन्य देशों में विकसित प्रौद्योगिकी को अपनाने पर विचार करे ताकि इस क्षेत्र को किफायती और ग्राहकों की आवश्यकताओं से ाजड़ा हुआ बनाया जा सके। (पैरा 3.22)।

4.

यह आवश्यक है कि सभी पणधारक, इंज़नियरिडग कॉलेज़टं/आइआइटियों को माइक्रो, छोटे और मध्यम उद्यमों में प्रौद्योगिकीय उन्नयन के लिए रिसर्ादिं करने हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करें। माइक्रो, छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए प्रौद्योगिकी के उन्नयन के प्रति अनुसंधान और विकास (आरएण्डडी) को प्रोत्साहन देने के लिए दल यह प्रस्तावित करता है कि आय कर अधिनियम की धारा 10(21) में संशोधन किया जाए ज़िसके अनुसार इंज़नियरिडग संस्थाओं में अनुसंधान और विकास कार्य के लिए निधियन के प्रति किए गए अंशदान के लिए 150% कटौती की अनुमति दी जाए। (पैरा 5.4.3))

5.

सरकार प्रौद्योगिकी के उन्नयन और आधुनिक प्रौद्योगिकी वाली नई इकाइयां स्थापित करने के लिए टीयूएफएस की ताद पर एसएमई के लिए उद्योग विशिष्ट ब्याज सब्सिडी योज़ना आरंभ करे। तथापि, आधुनिक प्रौद्योगिकी जिसे प्रत्येक उद्योग में कवर किया ज़ाए, मंत्रालय द्वारा विनिर्दिष्ट होनी चाहिए। (पैरा 5.4.4)

6.

आधुनिक प्रौद्योगिकी पर कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने के लिए सरकार, विशेषत: उपयोगकर्ता उद्योग के कमांड एरिया में ज्यादा से ज्यादा आइटीआई, टूल रूम प्रशिक्षण केद्र आदि स्थापित करे (पैरा 5.4.5)

अनुबंध II

क्रम सं.

राज्य सरकार/एसएलबीसी संयोजक बैंकों से संबंधित कार्रवाई

1

स्वामित्व, भागीदारी, सहकारी समिति, न्यास, कंपनी या किसी अन्य रूप में दाद किए गए उधारकर्ताओं की सभी चल और अचल संपत्तियों के संबंध में सभी बैंकों और अन्य ऋणदात्री संस्थाआंट के प्रभारों के पंजिकरण हेतु राज्य सरकारों द्वारा एक केंद्रीय रिजस्ट्री स्थापित करना। (पैरा 3.20डी)

2

कार्रवाई योग्य दावों के समनुदेशन पर स्टॉम्प ड्युटी देय होती है । स्टाम्प ड्यूटी पर छूट या उचितम सीमा निर्धारण के माध्यम से इन कारकों के उपबंधों में संशोधन से इस कार्य को बडावा मिलेगा।

3

अत्यंत लघु माइक्रो उद्यमों को प्रशिक्षण सेवाएं उपलब्ध कराने हेतु निर्दिष्ट एनज़ाओ का उपयोग करने की योज़ना पर विचार किया ज़ा सकता है। (पैरा 4.10)

4

प्रत्येक राज्य सरकार में एमएसएमइ के लिए अलग मंत्रालय भी हो। इसके अतिरिक्त, राज्य सरकार में एमएसएमइ क्षेत्र के विकास/उन्नयन हेतु दीर्घावधि और अल्पावधि नीति भी होनी चाहिए। (पैरा 5.9)

5

राज्य सरकार को चाहिए कि वह एमएसएमइार को निरंतर विद्युत आपूर्ति उपलब्ध कराने को प्राथमिकता दे। यदि यह संभव नहीं है तो राज्य सरकार डीाा सेट खरीदने हेतु लिए गए ऋण पर सब्सिडी का अंतिम भाग प्रदान करें। (पैरा 5.11)

6

केवल एमएसएमई के लिए औद्योगिक संपदा स्थापित करने हेतु राज्य सरकारों को सामान्य दर के 50 प्रतिशत पर भूमि उपलब्ध कराने हेतु प्रोत्साहित किया ज़ाए। साथ ही, सामान्य सुविधाएं जठसे अपगामी ट्रीटमेंट प्लांट, पॉवर प्लांट आदि की पूंजगत लागत पर 50 प्रतिशत की सब्सिडी प्रदान की ज़ाए। (पैरा 7.9)

7

राज्य औद्योगिक विकास निगम या डीआइसी द्वारा विकसित औद्योगिक संपदाओं में प्रत्येक एसएमइ इकाइयों या एसएमई के लिए निज़ा उद्यमियों द्वारा विकसित अनुमोदित औद्योगिक संपदाओं के लिए डीआइसी द्वारा पंजिकरण को छोड़कर और कोई अनुमति प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होगी क्योंकि अनुमोदित लेआउट के अनुसार वे विकसित हैं।

8

श्रेष्ठ उद्योग या क्षेत्र में अच्छी संकेंद्रित गतिविधियों का बैंकों और डीआइसी द्वारा पता लगाया ज़ाए। सामान्य रूप से मौजुद उद्योग की विभिन्न संख्या के लिए परियोज़ना की मॉडल लागत तथा गतिविधि की समग्र व्यवहार्यता का आकलन एक समिति द्वारा किया जाए जिसमें अग्रणी बैंक के तत्वावधान में जिला के 2-3 प्रमुख बैंक शामिल हों, ताकि अलग-अलग मामलों में टीइवी अध्ययन तैयार करने में किसी विशेषज्ञ/व्यवसायी की आवश्यकता न पड़े। मशीनरी और अन्य आवश्यक अचल संपत्तियों की कीमत, कर्चिंट माल के स्रोत, तकनीकी सुविज्ञता और कुशल श्रमिक की उपलब्धता, बाजार तक पहुंर्चिं आदि पर विचार करने के बाद यह कार्रवाई आवधिक रूप से की जाए। डीआइसी को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जाए। छोटे उद्यमी भी इस परियोज़ना प्रोफाइलों का उपयोग करें तथा अधिक समय लेनेवाले और मंहंगे टीइवी अध्ययन/व्यवहार्यता रिपोर्ट तैयार करने में व्यवसायी की मदद न लें। वित्तपोषण करते समय बैंक प्रत्येक मामले में टीइवी अध्ययन न करवाएं। शुरु आत के तौर पर इस प्रथा को 1 करोड़ तक का मीयादी ऋण जाट समीक्षा के बाद प्राप्त किया जा सकता है की परियोज़नाओं से आरंभ किया जाए। (पैरा 3.6.1)

अनुबंध III

क्रम सं.

बैंकों से संबंधित कार्रवाई

1

सामान्य रूप से मौज़ुद उद्योग की विभिन्न संख्या के लिए परियोज़ना की मॉडल लागत तथा गतिविधि की समग्र व्यवहार्यता का आकलन एक समिति द्वारा किया जाए जिसमें अग्रणी बैंक के तत्वावधान में जिला के 2-3 प्रमुख बैंक शामिल हों, ताकि अलग-अलग मामलों में टीइवी अध्ययन तैयार करने में किसी विशेषज्ञ/व्यवसायी की आवश्यकता न पड़े। मशीनरी और अन्य आवश्यक अचल संपत्तियों की कीमत, कच माल के स्रोत, तकनीकी सुविज्ञता और कुशल श्रमिक की उपलब्धता, बाजार तक पहुंचा आदि पर विचार करने के बाद यह कार्रवाई आवधिक रूप से की जाए। डीआइसी को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जाए। छोटे उद्यमी भी इस परियोज़ना प्रोफाइलों का उपयोग करें तथा अधिक समय लेनेवाले और महंगे टीइवी अध्ययन/व्यवहार्यता रिपोर्ट तैयार करने में व्यवसायी की मदद न लें। वित्तपोषण करते समय बैंक प्रत्येक मामले में टीइवी अध्ययन न करवाएं।
एसएमई की मंाझरी/पुनर्वास के लिए अधिकारों का पर्याप्त प्रत्यायोज़न फील्ड स्तर पर किया जाना चाहिए । (पैरा 3.6.1)
अग्रणी बैंक आवश्यक कार्रवाई करें।

2

2 करोड़ तक के सभी अग्रिमों का उधार स्कोरिडग मॉडल के आधार पर किया जाए। स्कोरिडग मॉडल की आवश्यक जानकारी आवेदन फार्म में ही दी जानी चाहिए। ऐसे मामलें में अलग-अलग जटखिम निर्धारण की आवश्यकता नहीं है ।(पैरा 3.6.3ए)

3

बैंक ऋण आवेदनों का केंद्रीयकृत पंज़करण शुरु कर सकते हैं। इसी प्रौद्योगिकी को ऋण आवेदन की ऑन-लाइन प्रस्तुती तथा ऋण आवेदनों की ऑन लाइन ट्रेकिंग के लिए भी उपयोग में लाया जा सकता है। (पैरा 3.6.3बी)

4

आवेदन फार्म इस तरह से बनाए जाएं कि ऋण स्वीकृति पर उधारकर्ता द्वारा भरे जानेवाले सभी आवश्यक दस्तावेज़ उनका एक भाग बन जाएं। फार्म में अनिवार्य रूप से दस्तावेज़टं की ज़ांच-सूचि होनी चहिए जट स्वीकृति के बाद आवेदक द्वारा आवेदन तथा आवश्यक औपचारिकताएं पूरी करने, कार्योत्तर मंाझरी के साथ प्रस्तुत किए जाने होते हैं। (पैरा 3.6.3सी)

5

सभी माइक्रो उद्यमों के मामलों में 1 करोड़ रुपए तक के ऋण तथा नायक समिति के मानदंडों के अंतर्गत कार्यशील पूंज़ा के लिए सरल आवेदन व स्वीकृति फार्म (जट स्थानीय भाषा में भी छपवाया जाएं) शुरू किए ज़ाएं। (पैरा 3.6.3डी)

6

जिन बैंकों ने एकल या संयुक्त रूप से मीयादी ऋण स्वीकृत किए हों वे एकल ( या संयुक्त रूप से मीयादी ऋण के अनुपात में) डब्ल्यूसी सीमा भी स्वीकृत करें ताकि वाणिय़िक उत्पादन शुरू करने में विलंब न हो। यह सुनिश्चित किया जाए कि ऐसे मामले न हो जहां मीयादी ऋण तो स्वीकृत किया गया हों लेकिन कार्यशील पूंज़ सुविधाएं स्वीकृत करना बाकी हो। (पैरा 3.8)

7.

केद्रीयकृत ऋण प्रोसेसिंग कक्ष शुरू किए जाएं। इन कक्षों का उपयोग एकल बिंदु मूल्यांकन, स्वीकृति, प्रलेखीकरण, नवीकरण तथा बडाटतरी के लिए किया जाए। केद्रीयकृत ऋण प्रोसेसिंग के कार्य की समीक्षा बैंक के नियंत्रक कार्यालय द्वारा की जाए। सीपीसी को बैंक के बैक ऑफिस के रूप में कार्य करना चाहिए। (पैरा 3.9)।

8.

नए ऋण की स्वीकृति तथा पुनर्वास मामलों के लिए समिति दृष्टिकोण अपनाया जाए। माइक्रो, छोटे और मध्यम उद्यम क्षेत्र की हरित क्षेत्र परियोज़नाओं या पुनर्वास प्रस्तावों के ऋण आवेदनों पर निर्णय लेते समय इससे निर्णय की गुणवता बटेगी क्योंकि इसमें सदस्यों के सामूहिक विवेक का उपयोग होगा।

9.

बैंक, स्टाक और प्राप्य राशियों के संयुक्त स्तर पर विर्ाारिं करें और ऋणकर्ताओं के लिए कोई उप सीमा निर्धारित न की जाए। बैंक एक सुविधा के अंतर्गत स्टॉक और प्राप्य राशियों की जमानत पर सीसी/ओडी की अनुमति दे सकते हैं।

10.

नायक समिति के मानदंडों के अनुसार बैंकों से बिज़नेस उद्यम को बैंक वित्त के रुप में आवर्त का 20% प्रदान करना और 5% माादिन के रूप में प्राप्त करना अपेक्षित है। यह 1.25 का चालू अनुपात होता है। (पैरा 3.15)

11.

बैंक सिडबी द्वारा विकसित साफ्टवेयर की ताद पर उचित ऋण मूल्यांकन और रेटिंग तंत्र (सीएआरटी) विकसित करें या छोटे और मध्यम उद्यमों के ऋण/कार्यशील पूंज के प्रस्तावों पर कार्रवाई करने के लिए ऐसे तंत्र की सहायता लें। (पैरा 3.19)

12.

बैंक अधिकाधिक विशेषीकृत माइक्रो छोटे और मध्यम उद्यम शाखाएं खोलने पर ध्यान दें। जाने गए सभी समूहों और औद्योगिक संपदाओं में विशेषीकृत शाखा नेटवर्क के विस्तार का कार्य समयबद्ध तरीके से 3-5 वर्ष में पूरा कर लिया जाना चाहिए। (पैरा 3.20बी)

13.

बैंक तकनीकी संस्थाओं द्वारा प्रदान किए गए मंचाटं का उपयोग करें ऐसी संस्थाओं में अपने स्टाफ को नियमित रूप से भेज़े। शाखा प्रबंधकों और ऋण अधिकारियों को भी प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि एमएसएमई क्षेत्र को किए ज़ानेवाले वित्तपोषण को जटखिम मानने की उनकी समझ़ को दिमाग से हटाया जा सके। एमएसएमई को वित्तपोषण करने में अच्छे कार्यानिष्पादन के लिए प्रोत्साहन देने की एक प्रणाली लागू की जाए ज़ाट कार्यनिष्पादन मूल्यांकन रिपोर्ट में विशेष उल्लेख या विशेष प्रशिक्षण आदि के रूप में हो सकती है (पैरा 3.20ए)

14.

बैंक विशेष रूप से एमएसएमई क्षेत्र के लिए फैक्टरिडग सेवाएं आरंभ करने पर विचार कर सकते हैं।(पैरा 3.21बी)

15.

रूग्ण माइक्रो, छोटे और मध्यम उद्यमों की सही पहचान और रिपोर्टिंग करने के लिए प्रौद्योगिकी को अपनाया जाना चाहिए।(पैरा 9.19)

 

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