प्रतिभूतिकरण कंपनी तथा पुनर्निर्माण कंपनी (रिज़र्व बैंक) मार्गदर्शी सिद्धांत तथा निदेश 2003- संशोधन - आरबीआई - Reserve Bank of India
प्रतिभूतिकरण कंपनी तथा पुनर्निर्माण कंपनी (रिज़र्व बैंक) मार्गदर्शी सिद्धांत तथा निदेश 2003- संशोधन
भारिबैं/2009-2010/413 21 अप्रैल 2010 सभी पंजीकृत प्रतिभूतिकरण कंपनियाँ तथा पुनर्निर्माण कंपनियाँ प्रिय महोदय, प्रतिभूतिकरण कंपनी तथा पुनर्निर्माण कंपनी कृपया वर्ष 2010-2011 के लिए जारी 20 अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति संबंधी वक्तब्य के पैराग्राफ 113 और 114 (उद्धरण संलग्न) देखें। मौद्रिक नीति में की गई घोषणा के मद्देनज़र यह निर्णय लिया गया है कि 23 अप्रैल 2003 को जारी अधिसूचना सं. गैबैंपवि. 2/सीजीएम(सीएसएम)-2003 में अंतर्विष्ट प्रतिभूतिकरण कंपनी तथा पुनर्निर्माण कंपनी (रिज़र्व बैंक) मार्गदर्शी सिद्धांत और निदेश, 2003 (जिन्हें इसके बाद निदेश कहा गया है) को संशोधित किया जाए ताकि कतिपय मुद्दों यथा प्रतिभूतिकरण कंपनियों या पुनर्निर्माण कंपनियों द्वारा स्थापित ट्रस्टों द्वारा वित्तीय परिसंपत्तियों के अर्जन, वित्तीय परिसंपत्तियों की वसूली के लिए विनिर्दिष्ट समय - सीमा में विस्तार, बेशी निधियों के नियोजन, प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनियों द्वारा भूमि और भवन के अधिग्रहण, परिसंपत्तियों के वर्गीकरण, तुलनपत्र में अतिरिक्त प्रकटीकरण के बारे में कतिपय स्पष्टीकरण दिए जा सकें जैसाकि ब्योरा नीचे दिया गया है: (क) निदेश के पैराग्राफ 3(1)(iii) में संशोधन-अर्जन (अभिग्रहण) की तारीख अर्जन की तारीख का अर्थ उस तारीख से है, जिस तारीख को प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा वित्तीय परिसंपत्तियों का स्वामित्व अपनी बहियों या सीधे ट्रस्ट की बहियों में ग्रहण किया जाता है। (ख) निदेश के पैराग्राफ 7(1) में संशोधन-वित्तीय परिसंपत्तियों के अर्जन की नीति प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा "वित्तीय परिसंपत्तियों के अर्जन की नीति" के निर्माण में वित्तीय परिसंपत्तियों का अर्जन, चाहे वह उसकी अपनी बहियों में हो या सीधे ट्रस्ट की बहियों मे हो, शामिल होगा। (ग) निदेश के पैराग्राफ 7(6)(ii) में संशोधन-वसूली की योजना निदेश के खंड 7(6)(i) के अनुसार प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी से अपेक्षित है कि वह अर्जित वित्तीय परिसंपत्तियों की वसूली की योजना तैयार करे जिसमें इसके एक या अधिक उपायों को सूचीबद्ध किया गया हो। इसके अलावा निदेश के खंड 7(6)(ii) के अनुसार वसूली योजना में परिसंपत्तियों के पुनर्निर्माण और एक विनिर्दिष्ट समय सीमा, जो किसी भी मामले में पांच वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए, के अंदर उनकी वसूली के लिए प्रस्तावित उपायों का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए। समीक्षा करने पर, यह निर्णय लिया गया है कि वित्तीय परिसंपत्तियों के अर्जन की तारीख से पांच वर्ष की समाप्ति पर, प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी का निदेशक बोर्ड वित्तीय परिसंपत्तियों की वसूली के लिए अवधि को इस प्रकार बढ़ा सकता है कि वह अवधि संबंधित वित्तीय परिसंपत्ति के अर्जन की तारीख से कुल आठ वर्षं से अधिक न हो। प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी का निदेशक बोर्ड प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा विनिर्दिष्ट अवधि में वित्तीय परिसंपत्तियों की वसूली के लिए उपायों का स्पष्ट उल्लेख भी करेगा। अर्हता प्राप्त संस्थागत क्रेता ऊपर किए गए उल्लेख के अनुसार ऐसी विस्तारित अवधि की समाप्ति पर ही सरफायसी अधिनियम की धारा 7(3) के उपबंधों का अवलंबन लेने के हकदार होंगे। यदि वसूली की समय-सीमा में विस्तार नहीं किया जाता है तो अर्हता प्राप्त संस्थागत क्रेता वसूली की समय सीमा,जो संबंधित वित्तीय परिसंपत्ति के अर्जन की तारीख से पांच वर्षों से अधिक नहीं होगी, की समाप्ति पर उक्त अधिनियम की धारा 7(3) के उपबंधों का अवलंबन ले सकेंगे। (घ) निदेश के पैराग्राफ 8(1) में संशोधन-प्रतिभूति रसीदें जारी करना निदेश का पैराग्राफ 8(1) विनिर्दिष्ट करता है कि प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी, उक्त अधिनियम की धारा 7(1) और (2) के उपबंधों को, विशेष रूप से इस प्रयोजन के लिए स्थापित किए गये एक या अधिक न्यासों(ट्रस्टों) के माध्यम से लागू करेगी। प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी उक्त परिसंपत्तियों को उपर्युक्त न्यासों को उसी मूल्य पर हस्तांतरित करेगी, जिस पर वे प्रवर्तक (ऑरीजिनेटर) से अर्जित की गई हों। यह स्पष्ट किया जाता है कि प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी बैंकों/वित्तीय संस्थाओं से परिसंपत्तियों को या तो अपनी बहियों में अर्जित करके फिर उसे ट्रस्ट को अंतरित कर सकती हैं या ट्रस्टों की बहियों में सीधे अर्जित कर सकती हैं। यदि ऐसी वित्तीय परिसंपत्तियाँ प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी की बहियों में पहले अर्जित की जाएं तो प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी उक्त परिसंपत्तियों को न्यासों को प्रवर्तक (ऑरीजिनेटर) से अर्जित मूल्य पर अंतरित करेगी। (ङ) निदेश के पैराग्राफ 10(ii) में संशोधन-बेशी निधियों का नियोजन कोई प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी अपने पास उपलब्ध बेशी/अधिक धनराशियां इस संबंध में उसके निदेशक मंडल द्वारा निर्धारित की गयी नीति के अनुसार केवल सरकारी प्रतिभूतियों और अनुसूचित वाणिज्य बैंकों में जमाराशियों के रूप में रख सकती है। प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी को उनकी बेशी निधियों के नियोजन के लिए अतिरिक्त माध्यम उपलब्ध कराने हेतु यह सूचित किया जाता है कि प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी, अपने निदेशक बोर्ड द्वारा निर्मित नीति के अंतर्गत, भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक या ऐसी ही अन्य संस्था जिसे भारतीय रिज़र्व बैंक समय-समय पर विनिर्दिष्ट करे, की जमाराशियों में भी नियोजित कर सकती है। (च) निदेश के पैराग्राफ 10(iii) में संशोधन- प्रतिभूतिकरण संप्रति किसी भी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी को अपनी स्वाधिकृत निधियों में से भूमि या भवन में निवेश करने की अनुमति नहीं है, परंतु शर्त यह है कि यह प्रतिबंध उधार ली गयी निधियों और न्यूनतम निर्धारित स्वाधिकृत निधि से अधिक निधियों पर लागू नहीं होगी। समीक्षा करने पर यह निर्णय लिया गया है कि कोई भी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी, भूमि एवं भवन में निवेश नहीं करेगी:- बशर्ते यह प्रतिबंध प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा अपने स्वयं के उपयोग हेतु भूमि एवं/या भवन में अपनी स्वाधिकृत निधियों के 10% तक निवेश करने पर लागू नहीं होगा, बशर्ते उसके अलावा यह प्रतिबंध प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा परिसंपत्तियों के पुनर्निर्माण के सामान्य कारोबार के अंतर्गत अपनी प्रतिभूतियों के हितों को प्रवर्तित करते समय अधिग्रहीत/अर्जित भूमि और/या भवन के संबंध में भी लागू नहीं होगा यदि उसका निपटान ऐसे अर्जन की तारीख से पांच वर्ष या प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी की प्राप्य राशियों की वसूली के हित में बैंक द्वारा अनुमत विस्तारित अवधि में कर दिया जाता है। (छ) निदेश के पैराग्राफ 12 में संशोधन- परिसंपत्ति वर्गीकरण यह स्पष्ट किया जाता है कि परिसंपत्तियों के वर्गीकरण से संबंधित उपबंध प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी की बहियों में धारित परिसंपत्तियों पर ही लागू होंगे। इसके अलावा उक्त पैराग्राफ 7(6)(ii) या 7(6)(iii) में प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा बनाई गई वसूली योजना में विनिर्दिष्ट कुल समय-सीमा में वसूल न की जा सकी और प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा लगातार धारण रही प्रतिभूति रसीदों सहित वित्तीय परिसंपत्तियों को शामिल करने के लिए "हानिगत परिसंपत्ति" शब्दों के अर्थ को विस्तृत किया गया है। (ज) निदेश के पैराग्राफ 15 में संशोधन-तुलनपत्र में प्रकटीकरण यह निर्णय लिया गया है कि प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी अपने तुलनपत्र में निम्नलिखित मुद्दों पर अतिरिक्त प्रकटीकरण करेगी:-
2. इस संबंध में 21 अप्रैल 2010 की संशोधनकारी अधिसूचना सं. गैबैंपवि. नीति प्रभा.(एससी/ आरसी) 8/मुमप्र(एएसआर)-2010 की
प्रतिलिपि संलग्न है।
भवदीय (ए. एस. राव) संलग्नक - यथोक्त |